अंतरराष्ट्रीय
नयी दिल्ली , 2 मार्च | रूस के राजदूत डेनिस अलीपोव ने बुधवार को कहा कि उनका देश यूक्रेन में फंसे भारतीय नागरिकों को बाहर निकालने के लिये सुरक्षित मार्ग बना रहा है। यूक्रेन स्थित भारतीय दूतावास ने भारतीय नागरिकों को किसी भी हालत में तत्काल खारकीव और कीव छोड़ने की चेतावनी जारी की है।
अलीपोव ने कहा, हम सुरक्षित मार्ग बनाने के लिये तेजी से काम कर रहे हैं ताकि उन इलाकों में फंसे भारतीय नागरिक सुरक्षित उसके जरिये रूस जा सकें।
उन्होंने कहा कि यूक्रेन के जिन इलाकों में संघर्ष गंभीर है, वहां से भारतीय छात्रों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिये रूस हरसंभव प्रयास करेगा।
उन्होंने साथ ही यूक्रेन में मंगलवार की सुबह मारे गये भारतीय छात्र नवीन के परिजनों के प्रति संवेदना जतायी और कहा कि उसकी मौत की जांच होगी।
कर्नाटक का 21 साल का नवीन खारकिव शहर में स्थित खारकिव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में अंतिम वर्ष का छात्र था। वह राशन लेने के लिये एक कतार में खड़ा था जब हमले में वह मारा गया।
राजदूत ने कहा कि खारकिव, सुमी और पूर्वोत्तर के अन्य क्षेत्रों में फंसे भारतीय नागरिकों को लेकर भारतीय प्रशासन से लगातार संपर्क बना हुआ है।
उन्होंने कहा कि रूस कुछ सुरक्षित गलियारा बनाने की तैयारी कर रहा है, जिससे लोग सुरक्षित तरीके से रूस में आ सकें।
राजदूत ने साथ ही कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के तटस्थ और संतुलित रूख अपनाने से हम उसके प्रति कृतज्ञ हैं। भारत मौजूदा संकट को समझता है। वह इस संकट की गहराई, इसके कारण और पूरी स्थिति को बाखूबी समझता है। हमें उम्मीद है कि भारत आगे भी यही रूख रखेगा।
उन्होंने कहा कि रूस और भारत के बीच के रक्षा सौदे में देर नहीं होगी और जमीन से हवा में मार करने वाली लंबी दूरी की मिसाइल एस400 की डिलीवरी में कोई बाधा नहीं आयेगी।
राजदूत ने कहा कि प्रतिबंधों से सौदे में कोई दिक्कत नहीं आयेगी। (आईएएनएस)
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदोमीर ज़ेलेंस्की ने राजधानी कीएव में एक होलोकॉस्ट मेमोरियल पर रूस के मिसाइल हमले की आलोचना की है और इसे मानवता से परे बताया है. बेबीन यार मेमोरियल दूसरे विश्व युद्ध के दौरान कीएव में मारे गए 33 हज़ार से अधिक यहूदियों की याद में बना है. इन्हें नाज़ी सैनिकों ने मारा था.
ज़ेलेंस्की ने कहा- इस तरह का मिसाइल हमला ये दिखाता है कि रूस के कई लोगों के लिए हमारा कीएव पूरी तरह विदेश है. वे हमारी राजधानी के बारे में, हमारे इतिहास के कुछ भी नहीं जानते उन्होंने कहा- उनके पास हमारे इतिहास को मिटाने का आदेश है, हमारे देश को मिटाने का, हम सबको मिटाने का.
यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने बुधवार को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन से भी बात की. उन्होंने सुरक्षा सहायता सुनिश्चित कराने के लिए जॉनसन को धन्यवाद किया और कहा कि रूसी सैनिकों को रोकने के लिए ये बहुत ज़रूरी है. दोनों नेता इस पर सहमत थे कि पुतिन पर दबाव बढ़ाने के लिए और पाबंदियाँ लगाने की आवश्यकता है. बोरिस जॉनसन ने रूस के हमलों की निंदा की और कहा कि उनकी प्रार्थना यूक्रेन के लोगों के साथ है. (bbc.com)
रूस यूक्रेन के दूसरे बड़े शहर खारकीएव पर लगातार हमले कर रहा है. यहाँ के कई सरकारी भवनों को निशाना बनाया जा रहा है. अब खारकीएव में नगर परिषद भवन पर रूस ने क्रूज मिसाइल दागी है.
खारकीएव के डिप्टी गवर्नर ने यह जानकारी दी है. खारकीएव रूसी सीमा से महज 30 मील दूर है. पिछले दो दिनों से रूसी सेना यहाँ जम कर बमबारी कर रही है. शहर की सड़कों पर रूसी और यूक्रेनी सेना के बीच आमने-सामने की लड़ाई की खबरें हैं. पिछली रात रूस ने यहाँ विमान से सैनिक उतारे थे. इसके बाद लड़ाई और तेज हो गई.
मंगलवार को एक मिसाइल सरकारी मुख्यालय पर भी दागी गई थी. जिससे आसपास आग का गोला फैल गया था. इसने इमारत और आसपास की कारों को भारी नुकसान पहुँचाया. इस हमले के बाद यूक्रेन के राष्ट्रपति ने कहा था कि रूस रिहायशी इलाकों पर हमला कर युद्ध अपराध को अंजाम दे रहा है.
विज़ुअल जर्नलिज़्म टीम
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने देश की न्यूक्लियर फ़ोर्सज़ को 'स्पेशल अलर्ट' पर रखा है. उनके इस क़दम से दुनिया भर में चिंता जताई जा रही है.
लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि पुतिन का ये क़दम शायद यूक्रेन के साथ उनकी जंग में अन्य किसी देश को शामिल होने से रोकने के लिए है. इसे परमाणु हथियार इस्तेमाल करने की इच्छा का संकेत नहीं माना जाना चाहिए.
दुनिया में 80 साल से परमाणु हथियार मौजूद रहे हैं. बहुत से देश उन्हें एक हथियार के तौर पर देखते हैं जो उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा की गारंटी देते हैं.
रूस के पास कितने परमाणु हथियार?
परमाणु हथियार की संख्या के आंकड़े अनुमान ही होते हैं लेकिन फ़ेडरेशन ऑफ़ अमेरिकन साइंटिस्ट्स नामक संस्था के मुताबिक रूस के पास दुनिया भर में 5,977 परमाणु हथियार हैं. इनमें से 1,500 एक्सपायर होने वाले हैं या पुराने हो जाने के कारण जल्द ही उन्हें तबाह कर दिया जाएगा.
बाक़ी के 4,500 हथियारों को स्ट्रैटेजिक न्यूक्लियर वेपन (रणनीतिक परमाणु हथियार) माना जाता है. इनमें बैलिस्टिक मिसाइलें और रॉकेट्स शामिल हैं जो लंबी दूरी तक मार कर सकते हैं. यही हथियार हैं जिन्हें परमाणु युद्ध के साथ जोड़कर देखा जाता है.
रूस के परमाणु हथियार
बाक़ी के हथियार काफ़ी छोटे और कम तबाही करने वाले हैं जिनका प्रयोग ज़मीन या पानी से कम दूरी के लक्ष्यों के लिए किया जा सकता है.
लेकिन इसका ये भी अर्थ नहीं है कि रूस के पास हज़ारों लंबी दूरी तक मार करने वाले परमाणु हथियार हैं जो किसी भी वक्त दाग़े जा सकते हैं
विश्लेषकों का अनुमान है कि रूस ने क़रीब 1,500 परमाणु हथियार तैनात कर रखे हैं. इसका अर्थ है कि इतने हथियार मिसाइल और एयर फ़ोर्स के अड्डों पर या पन्नडुब्बियों पर तैनात किए हुए हैं.
बाक़ी दुनिया की तुलना में कहां ठहरता है रूस?
दुनिया में नौ देशों - चीन, फ़्रांस, भारत, इसराइल, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान,रूस, अमेरिका और ब्रिटेन - के पास परमाणु हथियार हैं.
परमाणु हथियार
चीन, फ़्रांस, रूस, अमेरिका और ब्रिटेन उन 191 देशों में शामिल हैं जिन्होंने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए हुए हैं.
इस संधि के अंतर्गत उन्हें अपने परमाणु हथियारों के जख़ीरे को कम करना है और सैद्धांतिक तौर पर पूरी तरह से ख़त्म करना है.
1970 और 1980 के दशक में इन देशों ने अपने हथियारों की संख्या में बड़ी कटौती की है.
भारत, इसराइल और पाकिस्तान ने कभी इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए. उत्तर कोरिया ने 2003 में ख़ुद को इस संधि से अलग कर लिया था.
विश्व की नौ परमाणु शक्तियों में से मात्र इसराइल ही ऐसा है जिसने आजतक कभी औपचारिक रूस से खुद के पास परमाणु हथियार होने की बात नहीं कही है.
लेकिन माना जाता है कि उसके पास परमाणु हथियार हैं.
यूक्रेन के पास कोई परमाणु हथियार नहीं है. रूसी राष्ट्रपति पुतिन के आरोपों के बावजूद आजतक इस बात का सबूत नहीं मिला है कि यूक्रेन पर परमणु हथियार जुटाने का प्रयास कर रहा है.
परमाणु हथियारों से कितनी तबाही?
परमाणु हथियारों का मकसद ही है अधिकतक तबाही. लेकिन तबाही का स्तर नीचे दी गई चीज़ों पर निर्भर करती है -
परमाणु हथियार का साइज़
ज़मीन से कितने ऊपर इसका विस्फोट हुआ
स्थानीय वातावरण
लेकिन छोटे से छोटा परमाणु हथियार में बड़ी संख्या में लोगों की जान ले सकता है और आने वाली पीढ़ियों पर भी असर डाल सकता है.
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा में गिराया गया अमेरिका परमाणु बम 15 किलोटन था.
परमाणु हथियार
आजकल के परमाणु बम एक हज़ार किलोटन तक के हो सकते हैं.
जैसे ही किसी इतने बड़े परमाणु हथियार के इस्तेमाल के बाद विस्फोट होगा, इसके आस-पास कुछ नहीं बचेगा.
परमाणु विस्फोट के दौरान, एक आँखे चौंधिया देने वाली रोशनी के बाद एक आग का गोला निकलता है जो अपने आस-पास कई किलोमीटर तक इमारतों और अन्य ढांचे को नेस्तनाबूद करते जाता है.
परमाणु हमला प्रतिरोधक क्या है और क्या ये कारगर रहा है?
न्यक्लियर डेटेरेंट यानी परमाणु हमला प्रतिरोधक का अर्थ है कि आप इतनी बड़ी संख्या में परमाणु हथियार तैयार रखें जो आपके दुश्मन को पूरी तरह से तबाह करने के काबिल हों. अगर ऐसा होगा तो आपका विरोधी कभी आप पर हमला नहीं करेगा.
इसके लिए अंग्रेज़ी में एक मुहावरा गढ़ा गया था जिसे MAD कहते हैं यानी म्यूचुअली एश्योरड डिस्ट्रक्शन.
रूस यूक्रेन संकट: दुनिया में किस देश के पास कितने परमाणु हथियार हैं
1945 के बाद न्यूक्लियर हथियारों की तकनीक और तबाही करने की क्षमता में बेतहाशा वृद्धि हुई है लेकिन राहत की बात है कि उसके बाद से उनका इस्तेमाल नहीं हुआ है.
रूस की परमाणु नीति भी अपने हथियार को डेटेरेंट के रूप में स्वीकारती है. रूस का कहना है कि वो नीचे दी गई चार सूरतों में ही परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करेगा.
रूसी फ़ेडरेशन या उसके सहयोगियों पर बैलिस्टिक मिसाइल का हमला
रूसी फ़ेडरेशन या उसके सहयोगियों पर परमाणु हमला
रूस की ऐसी मिलिट्री और सरकारी जगह पर हमला जिससे उसकी परमाणु क्षमता को ख़तरा हो
रूसी फ़ेडरेशन के ख़िलाफ़ आम हथियारों से ऐसा हमला की राज्य का अस्तित्व ही ख़तरे में पड़ जाए.
यहां तक कि पुतिन की धमकी भी एक चेतावनी है. ये उनके परमाणु हथियारों को इस्तेमाल करने की इच्छा को नहीं दिखाता. लेकिन युद्ध के दौरान अपने दुश्मन से होने वाले रिस्क के ग़लत आंकलन से चीज़ें कई बार हाथ से निकल जाती हैं.
तो क्या हमें चिंतित होना चाहिए?
ब्रिटेन के विदेश मंत्री बेन वैलेस ने बीबीसी न्यूज़ को बताया है कि ब्रिटेन ने अब तक रूसी परमाणु हथियारों को वास्तविक स्थान से हरकत करते नहीं देखा है.
ख़ुफ़िया सूत्रों के मुताबिक इस पर बारीक़ी से नज़र रखी जा रही है. (bbc.com)
एक फूटे हुए रॉकेट के अवशेष 9,300 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चांद की सतह से टकराने वाले हैं. तीन टन वजन वाले इस कचरे से इतना बड़ा गड्ढा हो सकता है जिसमें ट्रैक्टर जितने बड़े कई वाहन समा जाएंगे.
चांद की सतह के जिस तरफ यह कचरा टकराएगा वो सुदूर ऐसी जगह है जहां तक धरती की दूरबीनों की नजर नहीं पहुंचती है. सैटेलाइट चित्रों की मदद से टक्कर की पुष्टि करने में कई सप्ताह या कई महीने भी लग सकते हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि यह रॉकेट चीन का है जिसने इसे करीब एक दशक पहले अंतरिक्ष में छोड़ा था. यह तबसे अंतरिक्ष में इधर उधर भटक रहा है. लेकिन चीन के अधिकारियों ने इस रॉकेट के चीनी होने पर संदेह व्यक्त किया है.
निजी पर्यवेक्षक ने लगाया पता
बहरहाल, रॉकेट हो किसी का भी वैज्ञानिकों का मानना है कि इसकी टक्कर से चांद की सतह पर 10 से 20 मीटर गहरा गड्ढा हो जाएगा और चांद की धूल उड़ कर सतह पर सैकड़ों किलोमीटर तक फैल जाएगी.
पृथ्वी के पास ही अंतरिक्ष में तैर रहे कचरे पर नजर रखना तुलनात्मक रूप से आसान होता है. गहरे अंतरिक्ष में भेजी जाने वाली चीजों के किसी दूसरी चीज से टकराने की संभावना कम ही होती है और उन्हें अक्सर जल्दी ही भुला भी दिया जाता है.
सिर्फ शौकिया तौर पर खगोलीय जासूस की भूमिका निभा रहे मुट्ठीभर अंतरिक्ष पर्यवेक्षक उन पर नजर रखते हैं. इसी तरह के एक पर्यवेक्षक बिल ग्रे ने जनवरी में इस रॉकेट के चांद से टकराने के मार्ग का पता लगाया था. ग्रे एक गणितज्ञ और एक भौतिकशास्त्री हैं.
चीन का इनकार, संदेह बरकरार
शुरू में उन्होंने स्पेसएक्स को इसका जिम्मेदार बताया था जिसके बाद कंपनी की आलोचना भी हुई थी. लेकिन ग्रे ने एक महीने बाद बताया कि शुरू में वो गलत थे और अब उन्हें पता चला है कि वो "रहस्मयी" चीज स्पेसएक्स का रॉकेट नहीं है.
उन्होंने बताया कि संभव है कि वो एक चीनी रॉकेट का तीसरा चरण है जिसने 2014 में चांद पर एक टेस्ट सैंपल कैप्सूल भेजा था. कैप्सूल फिर वापस आ गया था लेकिन रॉकेट उसके बाद भटकता ही रहा.
चीनी सरकार के अधिकारियों का कहना है कि वो रॉकेट पृथ्वी के वायुमंडल में वापस लौट आने के बाद जल गया था. लेकिन एक जैसे नाम वाले दो चीनी मिशन थे जिनमें एक थी यह टेस्ट उड़ान और दूसरी थी 2020 का चांद की सतह से पत्थरों के सैंपल ले कर वापस आने वाला मिशन.
क्यों होती है टक्कर
अमेरिकी पर्यवेक्षकों का मानना है कि दोनों मिशनों की जानकारी को मिलाया जा रहा है. धरती के पास अंतरिक्ष कचरे पर नजर रखने वाले अमेरिकी अंतरिक्ष कमांड ने मंगलवार को बताया कि 2014 वाले मिशन का चीनी रॉकेट कभी धरती के वायुमंडल में कभी वापस आया ही नहीं.
लेकिन कमांड इस बात की पुष्टि नहीं कर पाया कि अभी चांद से टकराने वाली चीज किस देश की है. ग्रे का कहना है उन्हें पूरा विश्वास है कि यह चीन का ही रॉकेट है. चांद पर पहले से ही कई गड्ढे हैं. चांद का वायुमंडल लगभग न के बराबर है जिसकी वजह से वो लगातार गिरने वाले उल्कापिंडों और क्षुद्रग्रहों से अपना बचाव नहीं कर पाता है.
बीच बीच में अंतरिक्ष यान भी उससे टकराते रहते हैं. इनमें ऐसे यान भी हैं जिन्हें वैज्ञानिक परीक्षणों के लिए जानबूझकर टकराया जाता है. चांद पर कोई मौसम भी नहीं है जिसकी वजह से उसकी सतह का घिसाव भी नहीं होता और ये गड्ढे हमेशा के लिए रह जाते हैं.
सीके/एए (एपी)
मंगलवार को यूक्रेन पर रूस की तरफ से बड़ा हमला किया गया. इस हमले में कई नागरिक ठिकानों को भी निशाना बनाया गया है जिसमें आम लोगों की जानें गई हैं. युद्ध रोकने की कोशिशों में कोई खास प्रगति नहीं हुई.
रूसी सैनिकों की गोलीबारी ने यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर खारकीव के मुख्य चौराहे और दूसरे नागरिक इलाकों पर भारी प्रहार किया है. हमले के बाद खारकीव का मुख्य चौराहा धूल और मलबे से भर गया है. रूसी सैनिकों का हमला सूरज निकलने के कुछ देर बाद ही शुरू हो गया. हमले के बाद एक प्रत्यक्षदर्शी ने कहा, "आप इसे रोए बिना नहीं देख सकते." एक आपातकालीन अधिकारी ने बताया कि मलबे में से कम से कम 6 लोगों के शव निकाले जा चुके है. 20 दूसरे लोग भी इसमें घायल हुए हैं. यह साफ नहीं है कि हमला किस हथियार से किया गया या कुल कितने लोग इसके शिकार हुए हैं.
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने आरोप लगाया है कि रूस यूरोप की जमीन पर कई पीढ़ियों बाद हो रही सबसे बड़ी जंग में दबाव बनाने के लिए आतंकवादी तरीकों का सहारा ले रहा है. रणनीतिक रूप से यूक्रेन के लिए अहम खारकीव में सोवियत जमाने की प्रशासनिक और रिहायशी इमारतों को निशाना बनाया गया है. सोशल मीडिया पर आ रही तस्वीरों और वीडियो में यह देखा जा सकता है. गोलीबारी में एक मैटर्निटी वार्ड भी ध्वस्त हो गया है. जेलेंस्की ने खराकीव के मुख्य चौराहे पर हमले को "साफ तौर पर आतंकवाद" माना है और इसके लिए रूसी मिसाइल को जिम्मेदार बताते हुए युद्ध अपराध कहा है.
शहर के केंद्र पर हमला
यह पहली बार है जब रूसी सेना ने शहर के केंद्र को निशाना बनाया है. खारकीव के बाहरी इलाके में कई दिनों से हमले चल रहे हैं. यूक्रेन के आपातकालीन सेवा का कहना है कि गोलाबारी के बाद 24 जगहों पर आग बुझाई है और 69 विस्फोटकों को बेकार किया गया है. बहुत सारे स्वयंसेवक और गार्डों ने इन प्रशासनिक इमारतों को अपना ठिकाना बनाया था. आशंका है कि कुछ स्वयंसेवक भी इस गोलीबारी के शिकार हुए हैं.
उधर रूसी सेना ने नागरिक ठिकानों को निशाना बनाने के आरोप से इनकार किया है. रक्षा मंत्री सर्गेइ शोइगो का कहना है कि सेना, "नागरिकों के जीवन की सुरक्षा के लिए सारे कदम उठा रही है. मैं इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि हमले केवल सैन्य ठिकानों पर किए जा रहे हैं और बेहद सटीक हथियारों का इस्तेमाल किया जा रहा है."ऐसी खबरें आ रही हैं कि रूस ने आबादी वाले तीन इलाकों में क्लस्टर बमों का प्रयोग किया है. मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा है कि उसने एक क्लस्टर बम का इस्तेमाल पूर्वी यूक्रेन के अस्पताल पर हुए हमले में दर्ज किया है. स्कूल, अस्पताल और रिहायशी इमारतें हमले की चपेट में आई हैं लेकिन रूस इसे मानने से इनकार कर रहा है.
पश्चिमी देशों के तमाम उपायों के बावजूद रूसी अधिकारी लगातार धमकियां दे रहे है यहां तक कि रूसी राष्ट्रपति ने परामणु हथियारों को भी हाई अलर्ट पर रखने का आदेश दे दिया है.
रूस के पूर्व राष्ट्रपति और पुतिन के करीबी दमित्री मेदवेदेव ने तो यहां तक कह दिया है कि रूस के खिलाफ चल रही "आर्थिक जंग असल जंग में भी" बदल सकती है. मेदवेदेव रुस की सुरक्षा परिषद के उप प्रमुख हैं. फ्रांस के वित्त मंत्री ब्रूनो ले मायर ने कहा था कि यूरोपीय संघ रूस के खिलाफ आर्थिक जंग छेड़ने जा रहा है. इसी के जवाब में मेदवेदेव ने कहा, "अपनी जबान पर ध्यान दीजिए जेंटलमैन और यह मत भूलिए कि मानव इतिहास में आर्थिक जंग कई बार सचमुच की जंग में बदल गई है."
दूसरे दौर की बातचीत
रूस और यूक्रेन के प्रतिनधियों के बीच पहले दौर की बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकला हालांकि दोनों पक्ष दूसरे दौर की बातचीत पर तैयार हो गए हैं. रूस की सरकारी समाचार एजेंसी तास ने खबर दी है कि दोनों पक्षों की 2 मार्च को दूसरे दौर की बातचीत होगी.
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विभाग का कहना है कि उसने अब तक 136 आम लोगों की मौत दर्ज की है. इनमें 13 बच्चे भी हैं. जंग में मरने वालों की असल संख्या इससे बहुत ज्यादा हो सकती है. इस बीच खारकीव से एक भारतीय छात्र के मौत की भी खबर आई है. छात्र की उम्र 21 साल बताई गई है. भारत के विदेश विभाग ने इस बात की पुष्टि की है कि और कहा है कि कर्नाटक का एक छात्र यूक्रेन में मारा गया है और सरकार पीड़ित परिवार के संपर्क में है. बीते दिनों में करीब 8 हजार भारतीय छात्र यूक्रेन से वापस आए हैं. इनमें से 1,400 छात्रों को यूक्रेन के पड़ोसी देशों से छह खास उड़ानों में वापस लाया गया है. अनुमान है कि अब भी करीब 12,000 छात्र यूक्रेन में फंसे हुए हैं और मदद का इंतजार कर रहे हैं. भारत सरकार ने उन्हें निकालने के लिए एक बड़ा अभियान शुरू किया है.
पूरे यूक्रेन में बहुत सारे लोगों ने सोमवार को एक और रात शेल्टरों, तहखानों या फिर कॉरिडोर में बिताई है. खारकीव के एक तहखाने में कई पड़ोसियों के साथ पांच रातों से रह रही एकातेरिना बाबेंको ने कहा, "यह भयानक अनुभव है, और आपको बहुत अंदर तक मजबूती से जकड़ ले रहा है, इसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता. हमारे साथ छोटे बच्चे हैं, बुजुर्ग लोग हैं और साफ कहूं तो यह बहुत डरावना है."
यूक्रेन सेना के एक अधिकारी ने बताया कि मंगलवार को चेर्निहीव इलाके में बेलारूस के सैनिक भी जंग में शामिल हो गए हैं. यूक्रेनी अधिकारी ने ज्यादा ब्यौरा नहीं दिया. इससे कुछ ही पहले यूक्रेन के राष्ट्रपति आलेक्जांडर लुकाशेंको ने कहा था कि उनके देश की युद्ध में शामिल होने की कोई योजना नहीं है.
खारकीव के केंद्र को निशाना बनाने का उद्देश्य फिलहाल समझ में नहीं आ रहा है. पश्चिमी अधिकारियों का अनुमान है कि रूस चाहता है कि यूक्रेन के सैनिक खारकीव की सुरक्षा में लग जाएं इस बीच वह कीव को घेर ले. उनका मानना है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का लक्ष्य यूक्रेन की सरकार को सत्ता से हटा कर वहां अपने मनपसंद लोगों को बिठाना है.
कीव को घेरने की को कोशिश
रूसी सेना मंगलवार सुबह भारी हथियारों और सैनिक साजो सामान के साथ करीब 60 किलोमीटर लंबा काफिला लेकर राजधानी कीव की तरफ बढ़ी. फिलहाल यह काफिला कीव से 25 किलोमीटर दूर बताया जा रहा है. रूसी सेना को यूक्रेन की तरफ से कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है साथ ही वह आसमान में भी अभी पूरी तरह से अपना दबदबा नहीं बना सकी है.
यूक्रेन के लोग रूसी सेना का रास्ता रोकने के लिए हर संभव तरीके अपना रहे हैं. दक्षिणी यूक्रेन में ओडेसा और मिकोलाइव के बीच एक हाइवे को स्थानीय लोगों ने ट्रैक्टर के टायरों में रेत भर कर जाम कर दिया. इसके ऊपर रेत की बोरियां रख कर उन्होंने रूसी सैनिक काफिले के रास्ते में बाधा खड़ी कर दी. कीव में सिटी हॉल के दरवाजे और खिड़कियों पर रेत से भरे बोरियों का अंबार लगा है.
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के मुताबिक यूक्रेन से बाहर जाने वाले लोगों की संख्या 6,60,000 को पार कर गई है एक दिन पहले यह संख्या 5,00,000 बताई गई थी. संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी आयुक्त की प्रवक्ता शाबिया मंटू का कहना है कि जिस दर से शरणार्थियों की संख्या बढ़ रही है उससे लग रहा है कि यह "इस शताब्दी में यूरोप की सबसे बड़ी शरणार्थी समस्या होगी." एजेंसी ने ज्यादा से ज्यादा देशों से शरणार्थियों को अपने देश में आने देने का अनुरोध किया है. इसके साथ ही मंटू ने कहा, "हम इस बात पर जोर दे रहे हैं कि किसी इंसान या समूह के साथ भेदभाव ना हो.
युद्ध अपराध
अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत के मुख्य अभियोजक ने कहा है कि उसने यूक्रेन में जांच शुरू करने की योजना बनाई है और वह युद्ध पर नजर रख रहे हैं. यूक्रेन और कनाडा ने अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत में इस बात की शिकायत करने की घोषणा की है. इस बीच पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को हथियारों की सप्लाई बढ़ा दी है. हालांकि ये देश सैनिक भेजने से अब तक इंकार कर रहे हैं.
यूरोपीय आयोग की प्रमुख उर्सुला फॉन डेय लेयन ने बताया है कि मंगलवार को यूरोपीय संघ ने एक खास सत्र में यूक्रेन के लिए 56 करोड़ यूरो का बजट तय किया है. इस धन का इस्तेमाल के अंदर चल रहे संकट से निपटने और लाखों शरणार्थियों को मदद देने में किया जाएगा. यूक्रेन को यूरोपीय संघ में शामिल करने के सवाल पर उर्सुला फॉन डेय लेयन ने कहा "इसके लिए लंबा रास्ता तय करना होगा. हमें इस युद्ध को खत्म करना है उसके बाद अगले कदम उठाए जाएंगे." यूरोपीय संघ में शामिल होने की प्रक्रिया में सालों का वक्त लगता है. इसके लिए देशों को कारोबार, न्यायिक स्वतंत्रता और भ्रष्टाचार रोकने की कठोर शर्तों का पालन करना होता है.
एनआर/आरपी (एपी, एफपी, रॉयटर्स)
रूस के बैंकों से लेकर रईसों और वोदका से लेकर खिलाड़ियों तक, जिस तरह के प्रतिबंध का सामना कर रहे हैं उसने भविष्य के लिए दुनिया की नई तस्वीर बना दी है. जल्दबाजी में लगे प्रतिबंधों की आंच क्या रूस को लंबे समय तक महसूस होगी?
डॉयचे वैले पर निखिल रंजन की रिपोर्ट-
दुनिया अब आपस में इतनी ज्यादा जुड़ चुकी है कि वुहान के मांस बाजार से निकला एक वायरस सुदूर, विशाल, ताकतवर देशों को एक साथ एक झटके में घुटने के बल बैठा सकता है. आपस में गुंथे सप्लाई चेन, बैंकिंग, खेल ऐसी असंख्य चीजें हैं जो पृथ्वी के कोने कोने में मौजूद देशों का संपर्क जोड़ रही हैं. एक दूसरे में गहराई तक धंसे संबंधों के इन तारों के टूटने का असर क्या होता है इसकी बानगी फिलहाल रूस में दिखनी शुरू हो चुकी है.
रूस पर हर तरह के प्रतिबंध
रूस ने यूक्रेन पर हमले के लिए कई हफ्तों, महीनों या फिर सालों तैयारी की लेकिन अमेरिका और यूरोपीय संघ ने प्रतिबंधों के एलान में जरा भी वक्त नहीं लिया. इस हफ्ते रूस की अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग क्षमता में बड़े पैमाने पर कटौती हुई है. अंतरराष्ट्रीय खेल मुकाबलों से उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है. उसके विमान अब यूरोप और अमेरिकी वायुसीमा में नहीं जा सकेंगे. अमेरिका के कई राज्यों में अब मेहमानों का स्वागत वोदका से नहीं होगा. यहां तक कि विश्वयुद्धों के दौर में तटस्थ रहने वाले स्विट्जरलैंड ने भी व्लादिमीर पुतिन को पीठ दिखा दी है.
यूक्रेन पर हमला करने की वजह से बीते तीन दिनों में ही रूस अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में एक तरह से बाहरी नजर आने लगा है. पुतिन के दोस्तों की तादाद तेजी से घटने लगी है. बड़ी बात यह है कि रूस के खिलाफ प्रतिबंधों में हर तरह के रंग नजर आ रहे हैं, यह रूसी लोगों के जीवन पर कई तरह से असर डालेंगे जिनकी शुरुआत हो चुकी है.
मैकलेस्टर कॉलेज में अंतरराष्ट्रीय संबंध पढ़ाने वाले और भूराजनीति के विशेषज्ञ प्रोफेसर एंड्रयू लाथम कहते हैं, "यहां कुछ हुआ है. यह किसी झरने के समान जिस तरह आगे बढ़ा है, उसकी तो चार दिन पहले तक किसी ने कल्पना भी नहीं की थी."
ईरान और उत्तर कोरिया से ज्यादा कड़े प्रतिबंध
पिछले तीन दिनों में प्रतिबंधों ने रूस को जंगल की आग की तरह अपने घेरे में लिया है. सरकारों, गठबंधनों, संगठनों और लोगों को जहां भी गुंजाइश दिखी है वहां प्रतिबंध ठोक दिए गए हैं. कुल मिला कर देखें तो कई मामलों में यह ईरान और उत्तर कोरिया पर लगे प्रतिबंधों से भी आगे निकल गए हैं.
यूरोपीय देश इस मामले में खासतौर से बहुत एकजुट हैं. इन देशों ने रूसी जहाजों के लिए वायुसीमा बंद कर दी है. 11,000 बैंकों और दूसरे संगठनों के साथ काम करने वाले स्विफ्ट भुगतान तंत्र से रूस के प्रमुख बैंकों को बाहर कर दिया गया है. रूस के रईसों यानी ओलिगार्कों की संपत्तियां जब्त करने की तैयारी हो रही है और उन पर अनेक तरह से घेरा डाला जा रहा है.
सोमवार को दुनिया और यूरोप की फुटबॉल संस्थाओं ने रूसी टीमों को अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल से बाहर कर दिया इनमें 2022 के वर्ल्ड कप के लिए क्वालिफाइंग मैच भी शामिल हैं. इससे पहले अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक संघ ने खेल संगठनों को रूसी एथलीटों और अधिकारियों को अंतरराष्ट्रीय आयोजनों से बाहर करने को कहा. जूडो और ताइक्वांडों के अंतरराष्ट्रीय खेल संघों ने ना सिर्फ पुतिन को दी मानद उपाधियां छीन ली है बल्कि रूस पर प्रतिबंध लगाने की भी बात कही है.
जब अंतरराष्ट्रीय आईस हॉकी फेडरेशन और नेशनल हॉकी लीग ने रूस के खिलाफ अपने कदमों का एलान किया तो यह साफ हो गया कि रूस के खिलाफ शुरू हुआ अभियान इतना बड़ा है जिसकी तपिश खेलों की दुनिया कई दशकों तक महसूस करेगी.
बैंक से लेकर वोदका तक
जर्मनी ने दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से चली आ रही अपनी विदेश नीति बदल दी है और यूक्रेन को हथियार देने का फैसला किया है. जर्मन चांसलर ने इस कदम को "नई सच्चाई" कहा है. फिनलैंड और स्वीडन जैसे देश जो बड़ी मुश्किल से ही इस तरह के मामलों में सामने आते हैं, वो भी रूस के खिलाफ चले गए हैं और यूक्रेन को हथियार भेज रहे हैं. स्विट्जरलैंड अपनी सुरक्षित बैंकिंग के लिए दुनिया भर में जाना जाता है. अब उसने भी "रूस के मामले में सख्त रवैया" अपनाने की बात कही है.
अमेरिका के कई राज्यों ने भी रूस के खिलाफ कदम उठाने की शुरूआत की है. भले ही ये कदम रूस को सीधे प्रभावित ना करें लेकिन इन कोशिशों का असर होगा. पेन्सिल्वेनिया, नॉर्थ कैरोलाइना, वेरमोंट, वेस्ट वर्जीनिया और माइन जैसे अमेरिकी राज्यों ने रूसी वोदका और दूसरे सामान को दुकानों से हटाने का फैसला किया है. पेन्सिल्वेनिया ने तो एक कदम और आगे जा कर कंपनियों में रूसी हिस्सेदारियों का विनिवेश भी शुरू कर दिया है.
फिलाडेल्फिया के स्टेट सीनेटर शरीफ स्ट्रीट ने लिखा है, "अंतरराष्ट्रीय कानून और मानवीय सहयोग का उल्लंघन करने के लिए रूस गंभीर नतीजे भुगते यह सुनिश्चित करने के लिए हमें अपनी आर्थिक ताकत का जरूर इस्तेमाल करना चाहिए."
सोशल मीडिया का असर
आनन फानन में उठाए गए इस तरह के कदमों को अमेरिकी राष्ट्रपति के दफ्तर व्हाइट हाउस की सराहना भी मिल रही है. व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव जेन प्साकी का कहना है, "राष्ट्रपति पुतिन आधुनिक इतिहास में नाटो को एकजुट करने वाले सबसे बड़े कारक साबित हुए हैं. मुझे लगता है कि इस एक चीज के लिए हम उनका आभार मान सकते हैं."
जितनी तेजी से इस बार सब कुछ हुआ है उसने 9/11 के हमले के बाद हुए प्रतिबंधों को भी पीछे छोड़ दिया है. इसमें एक बड़ी भूमिका सोशल मीडिया और इंटरनेट की भी है. यूक्रेन और इससे बाहर क्या हो रहा है इस बारे में पर्यवेक्षकों को सीधे जानकारी मिल रही है और इसका असर तुरंत और कई गुना ज्यादा हो रहा है. माइने के गवर्नर ने वोदका से जुड़े कदम उठाने का फैसला एकदम से कर लिया.
लाथम कहते हैं, "एक पीढ़ी पहले यह सब विदेश मंत्रालयों और 6 बजे के समाचार में सुनाई देता है, उसमें आज जितनी तेजी और एक दूसरे से जुड़ाव नहीं दिखते थे. मुझे लगता है कि यह इसके असर को और तेज कर रहा है." जर्मन राजधानी में यूक्रेन पर हमले के विरोध में एक लाख सेज्यादा लोगों का जमा होना और कोलोन के कार्निवाल का यूक्रेनी रंग में रंग जाना अनायास नहीं है. सोशल मीडिया की इसमें बड़ी भूमिका है और अब तो सरकारों को लामबंद करने में भी यह कारगर हो रहा है. यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की खुद इसका भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं.
रूस के मददगार भी हैं
ऐसा भी नहीं है कि हर कोई रूस को अलग थलग करने की होड़ में है. चीन ने इस मामले में खुद को बाकी दुनिया के साथ नहीं रखा है और इसमें कोई हैरानी भी नहीं है. हालांकि चीन लंबे समय से यह कहता रहा है कि देशों को दूसरे की संप्रभुता को सबसे ऊपर रखना चाहिए और इस मामले में उसकी स्थिति आने वाले दिनों में कमजोर होगी. वैसे भी ताइवान, हांगकांग और दक्षिण चीन सागर के मामले में उसका रुख उसकी नीतियों से मेल नहीं खाता.
बहरहाल सजा की कार्रवाइयों में चीन के शामिल नहीं होने से दूसरे देशों पर बहुत असर नहीं पड़ा है. अगर चीन इसे कमजोर करने की कोशिश करता है तो मुमकिन है कि उस पर भी प्रतिबंध लगें. बेलारूस ने यूक्रेन पर हमले के लिए जमीन दी है और यूएई के साथ भारत ने भी संयुक्त राष्ट्र की कार्रवाई से अलग रह कर रूस को मदद पहुंचाई है. कुछ और देश भी हैं जो रूस के साथ सहयोग कर सकते हैं जाहिर है कि वो एकदम अकेला भी नहीं है.
इस हफ्ते दुनिया ने जो कदम उठाए हैं वो बहुत जल्दबाजी में लिए फैसलों का नतीजा हैं लेकिन क्या ये लंबे समय तक टिके रहेंगे? पुराने गठबंधन तेजी से साथ तो आ गए लेकिन हफ्ते गुजरने के साथ उनमें टकराव भी शुरू होगा. इसके अलावा इसी वैश्विक संबंधों के ताने बाने और संपर्कों में जितनी ताकत किसी देश को अलग थलग करने देने की है उतनी ही सुविधा इनके असर को कम करने की भी है.
इसके बाद भी देशों को नए जमाने के तरीकों से पुराने जमाने की हरकत, यानी किसी और की जमीन पर ताकत से कब्जा करने वाले देश को सबक सिखाने की ताकत तो मिल ही गई है. वास्तव में प्रतिबंधों ने वैश्विक तंत्र को इस तरह से एकजुट कर दिया है कि विश्लेषक भी हैरान हैं. प्रतिबंध वैश्विक दुनिया में कितने कारगर हो सकते हैं रूस पर यूक्रेन के हमले ने इसे परखने का अच्छा मौका दिया है. (dw.com)
बाइडेन द्वारा भेजे गए पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों का एक दल ताइवान की राजधानी ताइपेई पहुंच गया है. रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद ही ताइवान ने कहा था कि चीन भी ऐसे समय में उस पर हमला कर सकता है.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा भेजे गए इस प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व अमेरिकी सेना के पूर्व जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ माइक मलेन कर रहे हैं. चीन ने इस दल के दौरे की निंदा की है. चीन ताइवान को अपना इलाका मानता है और उसे अपने अधीन लाने का प्रण ले चुका है.
अमेरिकी दल में मलेन के अलावा पूर्व उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मेघन ओ'सलिवन और पूर्व रक्षा अवर सचिव मिशेल फ्लोरनॉय, राष्ट्रीय सुरक्षा काउंसिल में एशिया के लिए पूर्व वरिष्ठ निदेशक माइक ग्रीन और एवन मेदेरोस शामिल हैं.
दौरे से नाराज चीन
एक अमेरिकी अधिकारी के अनुसार इस दल के दौरे का उद्देश्य "यह दिखाना है कि ताइवान के लिए हमारा मजबूत समर्थन बरकरार है."
दल एक निजी जेट में ताइपेई के सोंगशान हवाई अड्डे पर पहुंचा जहां उसके सदस्यों का स्वागत ताइवान के विदेश मंत्री जोसफ वू ने किया. दल के सदस्य बुधवार को ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन से मिलेंगे. उसी दिन वहां अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री माइक पोम्पियो भी पहुंचेंगे, हालांकि वो अलग से और अपनी निजी क्षमता में वहां जा रहे हैं.
चीन ताइवान को अमेरिका के साथ अपने रिश्तों में सबसे संवेदनशील और महत्वपूर्ण मुद्दा मानता है और कोई भी उच्च स्तरीय बातचीत या दौरा उसे परेशान करता है.
इस दल के दौरे को लेकर चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेंबिन ने कहा, "हमारे देश की संप्रभुता और अखंडता के बचाव में खड़े रहने की हमारे लोगों की इच्छाशक्ति अडिग है. अमेरिका जिसे भी ताइवान के समर्थन के लिए भेजेगा वो असफल ही होगा."
जंगी जहाज पर विवाद
ताइवान के प्रीमियर सू सेंग-चांग ने पत्रकारों को बताया कि यह दौरा "ताइवान-अमेरिका रिश्तों और ताइवान के रुख दोनों की अहमियत" को और ताइवान के प्रति अमेरिका के पक्के समर्थन को दिखाता है. उन्होंने कहा, "यह एक बहुत अच्छी बात है."
हालांकि इस दल ने ताइवान पहुंचने के लिए सामान्य रास्ता नहीं लिया. सामान्य रूप से पूर्वी चीनी सागर के ऊपर से ताइवान पहुंचा जाता है लेकिन इस बार इस दल का जहाज ताइवान के उत्तर पूर्वी तट की तरफ से देश में घुसा और चीनी मार्ग से पूरी तरह से दूर रहा. यह जानकारी उड़ानों को ट्रैक करने वाली वेबसाइट फ्लाइटराडार24 से मिली.
इसके पहले शनिवार को एक अमेरिकी जंगी जहाज संवेदनशील ताइवान स्ट्रेट से होकर गुजरा था. अमेरिकी सेना से इसे सामान्य गतिविधि बताया लेकिन चीन ने इसे उकसाने वाला बताया. मंगलवार को वांग ने और आगे बढ़ कर और कठोर शब्दों का इस्तेमाल किया.
उन्होंने कहा, "अगर अमेरिका ऐसा करके चीन को धमकाने और उस पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है तो हमें उन्हें यह बता देने की जरूरत है कि 1.4 अरब चीनी लोगों की इस्पात की महान दीवार के आगे कोई भी सैन्य शक्ति कबाड़ से ज्यादा कुछ नहीं है. ताइवान स्ट्रेट से अमेरिकी जंगी जहाज के गुजरने हथकंडा उन्हीं को मुबारक को जो मूर्खों की तरह आधिपत्य में विश्वास करते हैं."
सीके/एए (रॉयटर्स)
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को "तानाशाह" बताते हुए कहा है कि दुनिया में लोकतंत्र और तानाशाही के बीच जंग छिड़ी है. उधर रूस ने अपना आक्रामक रवैया जारी रखा है.
बाइडेन ने ये बातें अपने पहले 'स्टेट ऑफ द यूनियन' भाषण में कहीं. उन्होंने पुतिन को एक ऐसा 'तानाशाह' बताया जिसे यूक्रेन पर हमला करने की वजह से इस तरह से आर्थिक और कूटनीतिक रूप से अलग थलग किया जा रहा है जिससे वो बर्बाद हो जाएगा.
अमेरिकी संसद के दोनों सदनों और अमेरिकी जनता को संबोधित करते हुए बाइडेन ने रूसी हमले के खिलाफ अपनी रक्षा करने वाले यूक्रेन की "शक्ति की दीवार" की सराहना की. साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यूक्रेन युद्ध में अमेरिका अपने सैनिक बिलकुल भी नहीं भेजेगा.
रूस के करोड़पतियों, नेताओं को चेतावनी
बाइडेन ने कहा, "मैं स्पष्ट कह रहा हूं: हमारी सेना यूक्रेन में रूसी सेना के खिलाफ इस संघर्ष में न शामिल है और न होगी." लेकिन उन्होंने पुतिन की तीखी आलोचना करते हुए कहा, "एक रूसी तानाशाह ने एक दूसरे देश पर हमला कर दिया है और अब उसे पूरी दुनिया में इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी."
उन्होंने आगे कहा, "लोकतंत्र और तानाशाही के बीच जंग में लोकतांत्रिक देशों का पलड़ा भारी हो रहा है और दुनिया स्पष्ट रूप से शांति और सुरक्षा का पक्ष चुन रही है." बाइडेन ने रूस के करोड़पतियों और "भ्रष्ट नेताओं" को भी चेतावनी देते हुए कहा कि पश्चिमी देश "उनकी नौकाएं, उनके विलासमय मकान, उनके निजी जेट जब्त कर लेंगे."
यूक्रेन की सराहना
तालियों की गड़गड़ाहट के बीच बाइडेन ने कहा, "हम तुम्हारी काली कमाई तुमसे ले लेने आ रहे हैं." उन्होंने यूक्रेन के साहस की भी सराहना की. बल्कि डेमोक्रैट और रिपब्लिकन दोनों पार्टियों के सांसदों ने मिल कर यूक्रेन की सराहना की. सांसदों ने खड़े हो कर अमेरिका में यूक्रेन की राजदूत ओक्साना मारकरोवा की तरफ मुड़ कर तालियां बजाईं.
मारकरोवा को राष्ट्रपति की पत्नी जिल बाइडेन के वीआईपी बॉक्स में बिठाया गया था. उधर रूस ने यूक्रेन पर हमला जारी रखा है. यूक्रेन का कहना है कि उसके दूसरे सबसे बड़े शहर खरकीव पर अब रूसी सेना के विमान हमला कर रहे हैं. इसी बीच रूस ने बेरेंट्स सागर में अपनी परमाणु पनडुब्बियों के साथ एक ड्रिल शुरू कर दी है.
सीके/एए (एपी, एएफपी)
वाशिंगटन, 2 मार्च| रूस से जारी युद्ध के बीच यूक्रेन की आर्थिक मदद के लिये विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) सामने आये हैं। चीन की संवाद समिति शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार दोनों अंतराष्ट्रीय संगठन वित्तीय और नीतिगत मोर्चे पर यूक्रेन की सहायता करेंगे।
आईएमएफ की प्रबंध निदेशक क्रिस्टैलीना जॉर्जिवा और विश्व बैंक के समूह अध्यक्ष डेविड मैल्पस ने संयुक्त बयान जारी करते हुये कहा है कि युद्ध के कारण जिंसों के दाम बढ़ गये हैं और अभी महंगाई के अधिक बढ़ने की संभावना है। इससे गरीबों को सबसे अधिक परेशानी होगी।
उन्होंने कहा है कि रूस-यूक्रेन के बीच की स्थिति अगर जारी रहती है तो इससे वित्तीय बाजार में अस्थिरता का माहौल बना रहेगा। इसके अलावा गत कुछ दिनों में घोषित प्रतिबंधों का भी आर्थिक परिदृश्य पर प्रभाव दिखेगा।
दोनों संगठन फिलहाल स्थिति का आंकलन कर रहे हैं और मौजूदा स्थिति से निपटने के नीतिगत पहलू पर अपने अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों से चर्चा कर रहे हैं।
यूक्रेन ने आईएमएफ से मांग की थी कि वह आपात वित्तीय सहायता प्रदान करे। आईएमएफ बोर्ड इसके बारे में अगले सप्ताह विचार कर सकता है।
विश्व बैंक आने वाले महीनों में यूक्रेन को तीन अरब डॉलर का पैकेज देने की तैयारी कर रहा है। इस पैकेज के तहत 35 करोड़ डॉलर की पहली किश्त का अनुमोदन विश्व बैंक बोर्ड संभवत: इसी सप्ताह कर देगा। इसके बाद 20 करोड़ डॉलर का पैकेज स्वास्थ्य एवं शिक्षा क्षेत्र के लिये जारी किया जायेगा। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 2 मार्च | अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यूक्रेन पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आक्रमण की निंदा की है और रूस को दंडित करने के लिए और उपायों की चेतावनी दी है। सीएनएन ने बुधवार को इसकी जानकारी दी है। बाइडेन ने मंगलवार को अपने स्टेट ऑफ द यूनियन संबोधन के दौरान अमेरिकी न्याय विभाग के तहत एक नए टास्क फोर्स की घोषणा करते हुए कहा, "आज रात, मैं रूसी कुलीन वर्गों और भ्रष्ट नेताओं से कहता हूं, जिन्होंने इस हिंसक शासन से रूसी कुलीन वर्गों की जांच करने के लिए अरबों डॉलर कमाए हैं, बस अब और बर्दाश्त नहीं करेंगे।"
सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, "हम अपने यूरोपीय सहयोगियों के साथ उनकी नौकाओं, उनके लक्जरी अपार्टमेंट और उनके निजी जेट विमानों को खोजने और जब्त करने के लिए शामिल हो रहे हैं।"
बाइडेन ने कहा कि अमेरिका भी रूसी विमानों के लिए अपने हवाई क्षेत्र को बंद कर रहा है, कई देशों में शामिल हो रहा है जिन्होंने पिछले सप्ताह इसी तरह के उपाय किए, 'रूस को और अलग कर दिया।'
फिर उन्होंने पुतिन का जिक्र करते हुए कहा, "उन्हें नहीं पता कि क्या होने वाला है।"
बाइडेन ने कहा, "पुतिन ने हिंसा और अराजकता फैलाई है। लेकिन जब वह युद्ध के मैदान में लाभ कमा सकते हैं तो वह लंबे समय तक निरंतर उच्च कीमत चुकाएंगे।"
बाइडेन ने कहा कि पुतिन की आक्रामकता ने दुनिया के लोकतंत्रों को बढ़ती निरंकुशता का मुकाबला करने के उनके संकल्प को मजबूत किया है।
बाइडेन ने कहा, "छह दिन पहले, रूस के व्लादिमीर पुतिन ने मुक्त दुनिया की नींव को हिला देने की कोशिश की, यह सोचकर कि वह इसे अपने खतरनाक तरीकों से मोड़ सकते हैं। लेकिन उन्होंने बुरी तरह से गलत अनुमान लगाया।" (आईएएनएस)
बर्लिन, 2 मार्च| उत्तरी सागर में अकार्बनिक और जैविक प्रदूषकों से प्रदूषण 1980 के दशक के बाद से काफी कम हो गया है। ये जानकारी जर्मनी की फेडरल मैरीटाइम एंड हाइड्रोग्राफिक एजेंसी (बीएसएच) द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन से सामने आई है। बीएसएच ने मंगलवार को कहा, "समुद्री पर्यावरण की निगरानी से पता चलता है कि कुछ प्रदूषकों पर प्रतिबंध लगाने वाले कानूनी नियम किस हद तक हानिकारक पदार्थो को समुद्र में प्रवेश करने से रोकते हैं।"
समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने सरकारी एजेंसी के हवाले से बताया कि हालांकि, अध्ययन में ऐसे नए पदार्थ भी मिले जो समुद्री पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं। प्रतिबंधित पदार्थो की रासायनिक संरचना में छोटे बदलाव भी उन्हें फिर से वैध बनाने के लिए पर्याप्त हो सकते हैं।
यह अध्ययन बीएसएच, हेल्महोल्ट्ज-जेंट्रम हिरॉन और विश्वविद्यालयों एचएडब्ल्यू हैम्बर्ग और आरडब्ल्यूटीएच आचेन के एक शोध समूह द्वारा आयोजित किया गया। इसने उत्तरी सागर से कोर में 90 अकार्बनिक और कार्बनिक प्रदूषकों का विश्लेषण किया।
बीएसएच ने कहा कि सैंपल के आधार पर, "पिछले 100 सालों में परतों में विभिन्न प्रदूषकों की उच्च सांद्रता के साथ कई प्रदूषण का पता लगाया जा सकता है। इनमें पॉलीक्लोराइनेटेड बाइफिनाइल (पीसीबी) का एक समूह शामिल है, जिसे 1979 में प्रतिबंधित कर दिया गया था।"
अध्ययन के अनुसार, साल 1929 से प्रतिबंध तक पीसीबी, जहरीले कार्बनिक क्लोरीन यौगिकों का उपयोग पेंट और सीलेंट में सॉफ्टनर के रूप में किया गया। प्रतिबंध से ठीक पहले की अवधि में पीसीबी का भार सबसे अधिक था। (आईएएनएस)
तेलिन, 2 मार्च| उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के दौरे पर आए महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने मौजूदा यूक्रेन संकट को हल करने के लिए राजनयिक प्रयासों पर जोर दिया है। स्टोल्टेनबर्ग ने मंगलवार को एस्टोनियाई प्रधानमंत्री काजा कैलास और उत्तरी एस्टोनिया में तापा आर्मी बेस में ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के साथ एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में यह टिप्पणी की।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने यूक्रेन में युद्ध को तत्काल रोकने रूसी सेना की वापसी और राजनयिक प्रयासों को शामिल करने का आह्वान किया।
उन्होंने कहा, "पिछले हफ्तों में यूक्रेन पर रूस के हमलों के जवाब में हमने हवा में जमीन पर और समुद्र में अपनी रक्षात्मक उपस्थिति बढ़ा दी है।"
स्टोल्टेनबर्ग ने कहा, "30 अलग-अलग स्थानों से 100 से अधिक जेट हाई अलर्ट पर हैं और बाल्टिक सागर से भूमध्य सागर तक 120 से अधिक जहाज हैं। साथ ही ब्रिटेन, अमेरिका और अन्य सहयोगी पूर्वी हिस्से में हजारों और सैनिकों को तैनात कर रहे हैं।"
नाटो प्रमुख ने कहा, "इतिहास में पहली बार हम नाटो प्रतिक्रिया बल की तैनाती कर रहे हैं।"
तास समाचार एजेंसी ने मंगलवार को सूत्रों के हवाले से बताया कि रूस और यूक्रेन के बीच शांति वार्ता का दूसरा दौर बुधवार को हो सकता है।
वार्ता का पहला दौर लगभग पांच घंटे तक चला, जो सोमवार को बेलारूस के गोमेल क्षेत्र में संपन्न हुआ, जिसमें कोई स्पष्ट सफलता नहीं मिली।
एस्टोनियाई पब्लिक ब्रॉडकास्टिंग ने मंगलवार को बताया कि ब्रिटिश सेना की रॉयल वेल्श इन्फैंट्री रेजिमेंट के 900 से अधिक सदस्य और लगभग 200 डेनिश सैनिक अपने वाहनों और उपकरणों के साथ नाटो बैटलग्रुप एस्टोनिया में तापा आर्मी बेस में शामिल होंगे।
एस्टोनिया के राष्ट्रपति एलार केरिस ने पहले दिन तेलिन हवाई अड्डे पर स्टोलटेनबर्ग से मुलाकात की।
स्टोलटेनबर्ग ने भी मंगलवार को लास्क एयरबेस के दौरे के साथ पोलैंड की यात्रा की। (आईएएनएस)
एप्पल ने अपने सभी उत्पादों की रूस में बिक्री पर रोक लगा दी है. यूक्रेन पर हमले के कारण ऐसा फ़ैसला लेने वाली एप्पल सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है.
एप्पल के अलावा ऊर्जा कंपनी एक्सॉनमॉबिल ने भी रूस में अपना काम बंद करने और निवेश रोकने की घोषणा की है.
आईफ़ोन निर्माता कंपनी ने कहा है कि वो रूस के हमले से ‘बेहद चिंतित’है और उनके साथ खड़ी है जो ‘हिंसा से पीड़ित’ हैं.
इसके साथ ही रूस में एप्पल पे और एप्पल मैप जैसी सेवाओं को भी सीमित कर दिया गया है.
गूगल ने रूस के सरकारी सहायता प्राप्त मीडिया आरटी को भी अपने फ़ीचर्स से हटा दिया है.
समाचार एजेंसी आरआईए के मुताबिक़, रूस के वीटीबी बैंक जैसे ऐप अब एप्पल के आईओएस ऑपरेटिंग सिस्टम में रूसी भाषा में नहीं चल पाएंगे.
एप्पल ने अपने बयान में बताया है कि उसने यूक्रेन में एप्पल मैप्स में ‘यूक्रेनी नागरिकों की सुरक्षा के लिहाज़ से’ट्रैफ़िक और लाइव इंसिडेंट्स को डिसेबल्ड कर दिया है. (bbc.com)
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने संसद को संबोधित करते हुए इस बात की पुष्टि की है कि रूस की सभी उड़ानें अब अमेरिकी हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगी.
उन्होंने अपने भाषण के दौरान कहा कि इन रूसी उड़ानों में सभी प्रकार की कमर्शियल और प्राइवेट उड़ानें शामिल हैं.
इसी तरह का क़दम पहले ही यूरोपीय राष्ट्र और कनाडा उठा चुके हैं.
बाइडन ने कहा है कि यह प्रतिबंध रूस को और अलग-थलग करेगा और उसकी अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव डालेगा.
उन्होंने यह भी बताया कि रूसी मुद्रा रूबल और स्टॉक मार्केट पहले ही अपनी वैल्यू 30 से 40 फ़ीसदी गंवा चुके हैं.
राष्ट्रपति बाइडन ने अमेरिकियों से यूक्रेनी लोगों से प्रेरणा लेने को भी कहा.
उन्होंने कहा,“पुतिन टैंक्स से कीएव को ज़रूर घेर सकते हैं लेकिन वो कभी भी यूक्रेनी लोगों के दिलों को नहीं जीत पाएंगे.” (bbc.com)
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद मंगलवार की रात अमेरिकी संसद को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति जो बाइडन ने अमेरिका के फ़ैसलों से देश और संसद को अवगत कराया.
उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत अपनी और अन्य देशों की विदेश नीति से की.
यूक्रेन पर रूस के हमले को सात दिन हो चुके हैं. आइये जानते हैं इस दौरान यूक्रेन की मदद के लिए अमेरिका ने क्या कुछ किया है:
35 करोड़ डॉलर के हथियार यूक्रेन को दिए
5.4 करोड़ डॉलर की मानवीय सहायता जारी की
चुनिंदा रूसी बैंकों को वैश्विक स्विफ़्ट मैसेजिंग सिस्टम से हटाया
रूसी केंद्रीय बैंक को रूबल को बचाने से रोका
ओलिगार्क (रूस के कुलीन तंत्र के सदस्य या समर्थक) की संपत्ति को ज़ब्त करने के लिए ट्रांस-अटलांटिक टास्क फ़ोर्स में शामिल
रूसी विमानों और रूस से संचालित विमानों के लिए अमेरिकी हवाई क्षेत्र को बंद किया
व्हाइट हाउस ने संसद से अगले कुछ महीनों के लिए आपातकालीन सहायता के लिए अतिरिक्त 6.4 अरब डॉलर की मांग की.
हालांकि बाइडन ने यह भी बताया कि यूक्रेन में रूस से लड़ाई के लिए अमेरिका अपनी सेना नहीं भेजेगा. (bbc.com)
यूरोपीय संघ के देशों समेत 22 देशों के शीर्ष राजनयिकों ने पाकिस्तान सरकार से अपील की है कि वो संयुक्त राष्ट्र महासभा में यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस के हमले की निंदा प्रस्ताव का समर्थन करे.
बीते सप्ताह रूस की सेना जिस दिन यूक्रेन में दाख़िल हुई तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान मॉस्को में थे और उन्होंने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाक़ात की थी.
पाकिस्तान ने इस हमले को लेकर चिंता जताई थी लेकिन उसने इसकी निंदा नहीं की थी.
22 देशों के राजनयिकों ने एक साझा बयान में कहा, “इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ पाकिस्तान में मिशन के प्रमुख होने के नाते हम मांग करते हैं कि रूस की कार्रवाई की निंदा में पाकिस्तान में हमारे साथ आए.”
इस साझा बयान में यूरोपीय संघ के सदस्य देश फ़्रांस, जर्मनी, ग्रीस, हंगरी, इटली, पुर्तगाल, पोलैंड, स्पेन, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम समेत ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान, नॉर्वे और ब्रिटेन भी शामिल हैं.
193 सदस्यों वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस सप्ताह मॉस्को की कार्रवाई के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पेश किया जाएगा.
इससे पहले शुक्रवार को सुरक्षा परिषद में पेश किए गए प्रस्ताव के ख़िलाफ़ रूस ने वीटो का प्रयोग किया था. (bbc.com)
यूक्रेन की सेना ने पुष्टि की है कि रूसी पैराट्रूपर्स खारकीएव में उतरे हैं. इस शहर को पहले ही रूसी सेना ने घेर रखा है.
यूक्रेनी सेना के मुताबिक़, खारकीएव और इसके आसपास के इलाक़ों में एयर रेड सायरन्स के बाद हवाई हमले शुरू हुए हैं.
इस बयान में बताया गया है कि रूसी सैनिकों ने क्षेत्रीय सैन्य अस्पताल पर हमला किया है और लड़ाई जारी है.
इस शहर में अधिकतर रूसी भाषा बोली जाती है और हालिया दिनों में यूक्रेन में सबसे अधिक हिंसा खारकीएव में ही देखी गई है.
मंगलवार को एक सरकारी इमारत पर मिसाइल हमला हुआ था जिसमें कारों और आसपास की इमारतों को नुक़सान पहुंचा था.
मंगलवार को ही दूसरा हमला एक रिहाइशी इमारत पर हुआ था. यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने इस हमले को युद्ध अपराध बताया था.
मंगलवार को खारकीएव में हुए हमलों में 17 लोगों की मौत हुई थी जिनमें एक भारतीय छात्र भी शामिल था.
कुछ विश्लेषकों का अनुमान है कि रूस ने रिहाइशी जगह पर इसलिए हमले किए हैं ताकि यूक्रेनियों को रूस के ख़िलाफ़ लड़ाई में कमज़ोर किया जा सके.
खारकीएव, सूमी और मारियुपोल शहर में रूसी हमले का जवाब यूक्रेनी जवान मुस्तैदी से दे रहे हैं.
खारकीएव में भारी लड़ाई हो रही है और यूक्रेनी जवान रूसी सेना से लड़ रहे हैं. (bbc.com)
तुर्की के मेहमत इलकर आयची ने टाटा समूह के एयर इंडिया के सीईओ का पद संभालने से इनकार कर दिया है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े एक संगठन के उनका विरोध किया था.
कोलकाता से प्रकाशित होने वाला अंग्रेज़ी दैनिक टेलिग्राफ़ ने इस ख़बर को प्रमुखता से जगह दी है. आज की प्रेस रिव्यू की लीड में यही ख़बर पढ़िए.
दक्षिणपंथी संगठन ने इलकर आयची के पुराने राजनीतिक संबंधों को लेकर उनका विरोध किया था.
आयची ने एक बयान में कहा है कि भारतीय मीडिया के कुछ धड़ों में ''मेरी नियुक्ति को कुछ अलग रंग देने की कोशिश की गई है''.
उन्होंने कहा, ''मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि इस तरह की बातों के बीच पद को स्वीकार करना संभव या सम्मानजनक फ़ैसला नहीं होगा.''
अख़बार लिखता है कि पद पर आने से पहले ही आयची का जाना दबाव समूहों की एक ख़तरनाक मिसाल कायम करता है जो निजी निवेशकों के पेशेवर निर्णयों को कमज़ोर करने के लिए वैचारिक मानदंडों और ''राष्ट्रीय सुरक्षा'' के बहाने का इस्तेमाल करते हैं.
इलकर आयची तुर्की के एक चर्चित कारोबारी है. वो टर्किश एयरलाइन के अध्यक्ष रह चुके हैं. साथ ही वो 1994 में तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन के सलाहकार भी रहे हैं. उस समय अर्दोआन इस्तांबुल के मेयर थे.
कुछ विदेशी मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक़ आयची ने कथित तौर पर एक बार अल क़ायदा के फाइनेंसर को निवेश की सुविधा दी थी.
रेचेप तैय्यप अर्दोआन की हाल के सालों में पाकिस्तान के साथ नज़दीकियां बढ़ी हैं और कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का भी उन्होंने पुरज़ोर विरोध किया था.
स्वदेशी जागरण मंच का विरोध
पिछले हफ़्ते स्वदेशी जागरण मंच ने कहा था कि सरकार को आयची की नियुक्ति को अनुमति नहीं देनी चाहिए क्योंकि इससे ''राष्ट्रीय सुरक्षा'' के लिए ख़तरा हो सकता है. स्वेदशी जागरण मंच आरएसएस की आर्थिक यूनिट है.
संगठन के सह-संयोजक ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, ''मुझे लगता है कि सरकार इस मुद्दे को लेकर पहले ही संवेदनशील है और मामले को बेहद गंभीरता से लिया है. मुझे नहीं लगता कि सरकार इसकी अनुमति देगी.''
एक विदेशी नागरिक को भारत में किसी एयरलाइन का मुख्य कार्यकारी अधिकारी यानी सीईओ नियुक्त करने से पहले सरकार की अनुमति की ज़रूरत होती है.
एक सरकारी सूत्र ने पिछले हफ़्ते समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया था कि भारत सरकार आयची और एयर इंडिया के मामले में सामान्य जांच से ज़्यादा सख्त जांच कर रही है क्योंकि सुरक्षा एजेंसियों ने उनके तुर्की से संबंधों को लेकर चिंता ज़ाहिर की है.
14 फ़रवरी को टाटा समूह ने इलकर आयची को एयर इंडिया का सीईओ नियुक्त किया था. टाटा समूह ने एयर इंडिया को जनवरी में 18 हज़ार करोड़ में सरकार से ख़रीदा था.
आयची ने कहा कि टाटा समूह के अध्यक्ष एन. चंद्रशेखरन के साथ हुई हालिया बैठक के बाद उन्होंने ये पद लेने से इनकार कर दिया है. टाटा समूह के एक प्रवक्ता ने इस ख़बर की पुष्टि की है.
स्वदेशी जागरण मंच ने इलकर आयची के मामले को लेकर सरकार को कोई पत्र नहीं लिखा था और ना ही आयची की नियुक्ति को लकर कोई बयान जारी किया था.
स्वदेशी जागरण मंच के संयोजक अश्विनी महाजन ने अख़बार को बताया, ''हमने सरकार को कोई पत्र नहीं लिखा है. हालांकि, मंच ने सुरक्षा कारणों से उनकी नियुक्ति का विरोध किया था और हम चाहते थे कि सरकार इसे अनुमति ना दे.''
''हमें पूरा विश्वास था कि मौजूदा सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर बहुत संवेदनशील है, वो मामले को बहुत गंभीरता से लेंगे और नियुक्ति को स्वीकृति नहीं देंगे.''
ये पहली बार नहीं है जब आरएसए से जुड़े संगठनों और प्रकाशनों ने अपनी ताक़त दिखाई है. सरकार चुप रहकर या हल्का-फुल्का विरोध करके इनका समर्थन करती है.
हाल ही में आरएसएस की पत्रिका पांचजन्य में इंफ़ोसिस पर भारतीय अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने के लिए ''राष्ट्र-विरोधी'' तत्वों के साथ संबंध होने का आरोप लगाया गया था.
इसके बाद पत्रिका ने अपनी एक कवर स्टोरी में रीटेल कंपनी अमेज़न को ''ईस्ट इंडिया कंपनी 2.0'' कहा था.
दोनों ही मामलों में सरकार चुप रही. बाद में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसका हल्का विरोध किया था.
इस तरह के मामलों ने इस धारणा को बल दिया है कि आरएसएस सरकार में महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णयों को प्रभावित करता है. (bbc.com)
यूक्रेन में युद्ध के बीच एक भारतीय छात्र नवीन शेखरप्पा की मौत के बाद भारत ने रूस और यूक्रेन के राजदूतों से भारतीयों को सुरक्षित निकालने के लिए फिर से बात की है.
अंग्रेज़ी अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया में ख़बर है कि पोलैंड के सीमा के पास भारतीय दूतावास का कार्यालय बनाया गया है ताकि भारतीय छात्रों को निकलने में मदद मिल सके.
रूस के विदेश मंत्रालय ने सोमवार को सभी नगारिकों से राजधानी कीएव छोड़कर जाने के लिए कहा था. सरकार के मुताबिक सभी भारतीय छात्र कीएव से निकल चुके हैं.
एक अनुमान के मुताबिक करीब 4000 भारतीय छात्र पूर्वी यूक्रेन में फंसे हुए हैं. ये खासतौर पर खारकिएव और समी में हैं. (bbc.com)
रूस, यूक्रेन और पश्चिमी देशों के बीच का संकट बढ़ने के बाद ओलिगार्क की फिर से चर्चा हो रही है जो रूस के बेहद रईस और रसूख़दार लोग हैं.
पश्चिमी देशों की मीडिया में अक्सर ऐसे लोगों को पुतिन के 'क्रोनीज़' यानी जिगरी दोस्त, कहा जाता रहा है. यूक्रेन पर हमले के बाद पश्चिमी देशों की लगाई पाबंदियों का एक निशाना ये ओलिगार्क भी हैं.
ओलिगार्क शब्द का इतिहास बहुत लंबा है. हालांकि आज के वक़्त में इसका एक ख़ास मतलब हो गया है.
पारंपरिक परिभाषा या मान्यता के अनुसार ओलिगार्क वो लोग हैं जो कुलीन तंत्र के सदस्य या समर्थक होते हैं. यानी एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था का हिस्सा होते हैं
अब इस शब्द का ज़्यादातर इस्तेमाल रूस के बहुत बड़े धनी लोगों के एक समूह के लिए होता है. 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद वहां ओलिगार्क तेज़ी से उभरकर सामने आए.
ओलिगार्क शब्द ग्रीक शब्द ओलिगोई से निकला है, जिसका अर्थ 'कुछ' होता है. वहीं आर्क़िन शब्द का अर्थ 'शासन करना' होता है.
ओलिगार्की इस तरह राजशाही (किसी एक व्यक्ति का शासन यानी मोनोस) या लोकतंत्र (लोगों का शासन या डेमोस) से अलग होती है.
ऐसे में एक ओलिगार्क का धर्म, रिश्तेदार, सम्मान, आर्थिक दर्जा और भाषा जो भी हो, वो उसी धर्म, भाषा-भाषी समूह के बाक़ी लोगों से अलग होते हैं. और वो शासन करने वाले गुट का हिस्सा होते हैं.
ऐसे लोग अपने हितों को ध्यान में रखते हुए शासन करते हैं और इनके साधन अक्सर संदेह के दायरे में होते हैं.
बड़े ओलिगार्क
आजकल किसी ओलिगार्क का अर्थ अक्सर बहुत अमीर शख़्स के रूप में लिया जाता है. ऐसे इंसान ने शासन के सहयोग से कारोबार करके अकूत दौलत बनाई होती है.
दुनिया में रूस के सबसे मशहूर ओलिगार्क में से एक ब्रिटेन के रोमन अब्रामोविच हैं, जो चेल्सी फुटबॉल क्लब के मालिक है. अनुमान है कि उनके पास इस समय 14.3 अरब डॉलर की संपत्ति है.
उन्होंने सोवियत संघ के पतन के बाद रूस की जिन सरकारी संपत्तियों को खरीदा था, उसे बेच दौलत बनाई है.
वहीं ब्रिटेन के और ओलिगार्क एलेक्जेंडर लेबेदेव हैं, जो केजीबी के पूर्व अधिकारी और बैंकर हैं. उनके बेटे एवगेनी लेबेदेव लंदन से निकलने वाले बड़े अख़बार - इवनिंग स्टैंडर्ड -के मालिक हैं. एवगेनी ब्रिटेन के नागरिक हैं और उन्हें हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स का सदस्य भी बनाया गया है.
ऐसा नहीं है कि ये ओलिगार्क केवल रूस में ही हैं. दुनिया के दूसरे देशों में भी कुलीन वर्ग मौजूद हैं.
'यूक्रेन की बदहाली के ज़िम्मेदार हैं ये ओलिगार्क'
कीएव की एक स्वतंत्र संस्था 'यूक्रेनियन इंस्टीट्यूट फ़ॉर द फ़्यूचर' (यूआईएफ़) का मानना है कि वहां की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था, समाज, उद्योग और राजनीति के ज़िम्मेदार ओलिगार्क ही हैं.
अपनी एक रिपोर्ट में यूआईएफ ने कहा कि सोवियत संघ के पतन के बाद लियोनिद कुचमा के राष्ट्रपति रहने के दौरान देश के 'पुराने ओलिगार्क' काफ़ी फले-फूले.
उसका कहना है, "यूक्रेन के ओलिगार्क ने अपनी अधिकांश संपत्ति अधिकारियों के साथ मिलीभगत करके और ग़ैर-पारदर्शी निजीकरण के ज़रिए कमाई. और तभी से अपने कारोबार को बचाने के लिए राजनीति पर नियंत्रण रखना, उनके लिए काफ़ी अहम बना हुआ है.''
ओलिगार्क ने कैसे बनाई अपनी दौलत?
इस बारे में यूक्रेन की संस्था यूआईएफ़ के कार्यकारी निदेशक विक्टर एंड्रुसिव ने वॉशिंगटन में एक कार्यक्रम के दौरान 2019 में कहा कि ओलिगार्क 'ख़ास वर्ग' के लोग हैं, जो 'ख़ास तरीक़े से कारोबार' करते हैं. उनके पास 'जीने और लोगों को प्रभावित करने का ख़ास तरीक़ा' भी होता है.
एंड्रूसिव ने कहा, "वास्तव में वे कारोबारी नहीं हैं. वे अमीर बने हैं, पर जिस तरह से वे अमीर बने, वो किसी पूंजीवादी देश की तरह का मामला नहीं होता. उन्होंने कारोबार नहीं खड़ा किया, बल्कि देश के सहारे कारोबार पर क़ब्ज़ा कर लिया."
सोवियत संघ के ख़त्म होते वक़्त दिसंबर 1991 में मिख़ाइल गोर्बाचेव (बाएं) ने इस्तीफ़ा दे दिया. उसके बाद बोरिस येल्तसिन (दाएं) देश के नए राष्ट्रपति बने.
आज लोग रूस के ओलिगार्क के बारे में इसलिए बात कर रहे हैं, क्योंकि 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद जो कुछ हुआ, वो इनके लिए अहम था.
1991 में क्रिसमस के दिन राष्ट्रपति मिख़ाइल गोर्बाचेव ने सोवियत संघ के राष्ट्रपति से इस्तीफ़ा देकर बोरिस येल्तसिन को सत्ता सौंप दी.
हालांकि जब वहां कम्युनिस्ट शासन था, तब कोई निजी संपत्ति नहीं होती थी. लेकिन उसके बाद रूस की पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के दौरान देश में बड़े पैमाने पर निजीकरण हुआ. ख़ासकर औद्योगिक, ऊर्जा और वित्तीय क्षेत्रों में.
इसका नतीज़ा ये हुआ कि 90 के दशक के शुरू में हुए निजीकरण के दौरान बहुत से लोग यूं ही अमीर बन गए.
यदि उनके अच्छे संपर्क होते थे, तो अपने संपर्कों के दम पर वे रूसी उद्योग के बड़े हिस्से का अधिग्रहण कर सकते थे. ऐसे लोग अक्सर कच्चे मालों की आपूर्ति वाले, खनिज या गैस और तेल उद्योग में सक्रिय थे, क्योंकि इन चीज़ों की दुनिया भर में मांग थी.
उसके बाद इस काम में मदद करने वाले अधिकारियों को उन्होंने पुरस्कृत किया और उन्हें डायरेक्टर जैसे पद से नवाज़ा.
ओलिगार्क के पास मीडिया, तेल कुएं, इस्पात के कारखाने, इंजीनियरी कंपनियां आदि हो गईं. अक्सर वे अपने कारोबार के लिए बहुत कम कर का ही भुगतान करते थे.
ऐसे ही लोगों ने बोरिस येल्तसिन को अपना समर्थन दिया और 1996 के उनके राष्ट्रपति चुनाव के दौरान उन्हें पैसे से मदद दी.
पुतिन के दौर में ओलिगार्क
व्लादिमीर पुतिन जब बोरिस येल्तसिन के उत्तराधिकारी बने, तो उन्होंने ओलिगार्कों पर लगाम लगाना शुरू कर दिया. हालांकि, जो ओलिगार्क उनके साथ जुड़े रहे वे और कामयाब होते गए.
बैंकर बोरिस बेरेज़ोव्स्की जैसे पहले के कुछ कुलीन लोगों ने उनके साथ आने से इनकार कर दिया, तो उन्हें देश छोड़कर भागने को मजबूर होना पड़ा.
कभी रूस के सबसे अमीर शख़्स माने जाने वाले मिख़ाइल ख़ोदोरकोव्स्की भी अब लंदन में रहते हैं.
इस बारे में पूछे जाने पर व्लादिमीर पुतिन ने 2019 में फ़ाइनेंशियल टाइम्स से कहा था, "अब हमारे यहां कोई ओलिगार्क नहीं है."
हालांकि जिन लोगों के पुतिन के साथ क़रीबी संबंध थे, वे उनके शासन में अपना व्यापारिक साम्राज्य बनाने में कामयाब रहे.
ऐसे लोगों में, बोरिस रोटेनबर्ग हैं. वे दोनों बचपन में एक ही जूडो क्लब में खेलते थे. ब्रिटेन की सरकार ने रोटेनबर्ग को पुतिन के साथ नजदीकी और निजी रिश्ते रखने वाला एक अहम कारोबारी क़रार दिया है. फ़ोर्ब्स मैगज़ीन के अनुसार, रोटेनबर्ग की संपत्ति क़रीब 1.2 अरब डॉलर है.
इसलिए जब पुतिन ने पूर्वी यूक्रेन के डोनेत्सक और लुहान्स्क के दो अलगाववादी क्षेत्रों को 'पीपल्स रिपब्लिक' का दर्जा दिया तो, बोरिस और उनके भाई अर्काडी दोनों को ब्रिटेन के प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा है.
ब्रिटेन के साथ यूक्रेन, अमेरिका, यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया और जापान ने भी रूस के ओलिगार्क यानी कुलीन वर्गों पर प्रतिबंध लगाए हैं. यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद तो ये प्रतिबंध और कड़े ही होंगे. (bbc.com)
-अभिनव गोयल
''शाम का वक्त था. यूक्रेन के टेरनोपिल शहर से पोलैंड बॉर्डर पहुंचने के लिए बहुत मुश्किल से मुझे दो हजार रुपये में बस की टिकट मिली. बस ने बीच रास्ते में ही मुझे छोड़ दिया. तापमान माइनस में था, सर्दी बर्दाश्त नहीं हो रही थी. मैं करीब 45 किलोमीटर पैदल चलकर यूक्रेन-पौलेंड सीमा के चेक पोस्ट पर पहुंची. वहां कहा गया, 'इंडियन आर नोट अलाउड टू गो'.''
ये आपबीती उत्तर प्रदेश के झांसी की रहने वाली बिंदु की है.
बिंदु यूक्रेन की टेरनोपिल नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में मेडिकल की पढ़ाई कर रही हैं.
भारत से बीबीसी ने बिंदु के नंबर पर संपर्क किया. बिंदु ने फोन पर पूरी कहानी सुनाई, '' रात में तापमान माइनस चार डिग्री तक चला गया था. हमारे पास ना खाने के लिए कुछ था और ना रुकने के लिए कोई शेल्टर था. हम लोग आग जला रहे थे लेकिन यूक्रेन के सैनिक बार बार आग बुझा देते थे''
''घंटों लाइन में लगते थे लेकिन नंबर नहीं आता था. लाइन में थोड़ा सा टच होने पर धक्का देने लगते थे. भारतीय छात्रों के साथ मारपीट भी की जा रही थी. यूक्रेन में ऐसा भेदभाव हमने पहले कभी नहीं देखा. 27 फरवरी की रात दो बजे पौलेंड का वीजा मिला. सिर्फ लड़कियों को जाने दिया. पौलेंड में दाखिल होने के बाद अब कोई दिक्कत नहीं है''
बॉर्डर पर भारतीयों छात्रों के साथ हो रही परेशानी को लेकर पोलैंड के राजदूत और शिवसेना नेता प्रियंका चतुर्वेदी के बीच ट्विटर पर बहस हुई. प्रियंका चतुर्वेदी ने आरोप लगाया कि बहुत से भारतीय स्टूडेंट्स को पोलैंड में घुसने से रोक दिया गया है. इसके जवाब में पोलैंड के राजदूत एडम बुराकोव्स्की ने लिखा,''मैडम, ये बिल्कुल भी सच नहीं है. पोलैंड की सरकार ने यूक्रेन से लगती सीमा से घुसने से किसी को भी मना नहीं किया है.''
यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों से हो रहे भेदभाव की ख़बरें भारत सरकार तक भी पहुँची हैं. भारत सरकार ने छात्रों को सकुशल स्वदेश वापस लाने के लिए यूक्रेन के चार पड़ोसी देशों में विशेष दूत भी तैनात करने का फैसला लिया है. ये दूत समन्वय स्थापित करते हुए लोगों को बाहर निकालने की प्रक्रिया को देखेंगे.
लेकिन यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद ये मुश्किल सिर्फ एक भारतीय छात्रा बिंदु की नहीं है बल्कि यूक्रेन के अलग अलग शहरों में फंसे हजारों भारतीय छात्रों की है. इनमें से एक की गोलीबारी में मौत भी हो गई है. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने इसकी जानकारी दी है. उन्होंने बताया कि मंत्रालय परिजनों के संपर्क में है और उन्होंने परिजनों के प्रति सहानुभूति प्रकट की है.
यूक्रेन के खारकीएव में फंसे भारतीय छात्र
यूक्रेन के पूर्व में स्थित खारकीएव शहर रूस से करीब 50 किलोमीटर दूर है. वहीं इस शहर की दूरी राजधानी कीएव से करीब 600 किलोमीटर है. खारकीएव से पौलेंड, रोमानिया या हंगरी बॉर्डर पहुंचना भी आसान नहीं है. खारकीएव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में पांच सौ से ज्यादा भारतीय छात्र फंसे हुए हैं. इतनी ही छात्र खारकीएव के पास सुमी शहर में भी हैं. ऐसे में यूक्रेन के पूर्व में फंसे छात्रों की वतन वापसी कैसे होगी ?
खारकीएव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी हॉस्टल के बंकर में फंसे भारतीय छात्रों से बीबीसी ने वीडियो कॉल पर बात की. उपासना पांडे यूपी के गोरखपुर की रहने वाली हैं जो पिछले पांच दिनों से बंकर में रह रही हैं. उपासना बताती हैं, ''खारकीएव से पोलैंड और हंगरी बॉर्डर पहुंचने के लिए ट्रेन से एक दिन लगता है. लोग बोल रहे हैं कि आप बॉर्डर पर क्यों नहीं जा रहे? यहां डबल मार्शल लॉ लगा हुआ है, शूट एट साइट का ऑर्डर है, ऐसे में हम कैसे बॉर्डर तक जा सकते हैं.''
जम्मू-कश्मीर की रहने वाली विशाखा बताती हैं, ''पूर्वी यूक्रेन के शहरों में फंसे बच्चों के लिए कुछ नहीं किया जा रहा, यहां तक की हमारे लिए एडवाइजरी तक नहीं आती है. पांच दिन से बंकर में फंसे हैं. कैसे बाहर निकाला जाएगा. क्या हमें रूस बॉर्डर से एंट्री मिलेगी ? इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी जा रही''
वीडियो इंटरव्यू के बीच में ही विशाखा की मां भी बीबीसी से बातचीत के लिए जुड़ीं. अपनी बेटी को मोबाइल स्क्रीन पर देख मां भरभरा कर रोने लगती हैं. मां बेटी से कहती हैं, ''आपका फोन बंद होता है ना, हमारी जान निकल जाती है''. मां को ढांढस बंधाते हुए बेटी कहती है, ''मम्मी हम आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों आ जाएंगे. रूस की सेना के टारगेट से बचने के लिए हमें फोन बंद करना पड़ता है''.
रोते रोते मां कहती हैं ''भारत सरकार चाहे तो सब कुछ कर सकती है. सरकार से बस एक गुजारिश है कि मेरी बेटी को मुझ तक पहुंचा दो''.
इस बीच भारत सरकार ने एक बार फिर भारतीय नागरिकों को सुरक्षित यूक्रेन से निकालने की अपनी माँग को मंगलवार को भी दोहराया है.
रोमानिया बॉर्डर पर फंसे भारतीय छात्र
सिक्किम के रहने वाली बीरी के मन में बस एक ही सवाल है कि उनकी बेटी भारत कब लौटेगी ? बीरी की बेटी ग्रासिआ लपेचा पांच साल पहले यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई के लिए गई थीं. ग्रासिआ यूक्रेन की विनितसिया नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी की छात्रा हैं. यूक्रेन के विनितसिया शहर से रोमानिया बॉर्डर की दूरी करीब 300 किलोमीटर है.
ग्रासिआ लेपचा ने बीबीसी को बताया, ''26 फरवरी को यूनिवर्सिटी से रोमानिया बॉर्डर के लिए बस ली. यूक्रेन- रोमानिया बॉर्डर पर हजारों छात्र फंसे हुए हैं. बॉर्डर पर पहुंचने के बाद भी मुझे रोमानिया में एंट्री नहीं मिली''.
ग्रासिआ के मुताबिक लंबे इंतजार के बाद उसे 28 फरवरी की सुबह रोमानिया में एंट्री मिली. ग्रासिआ लेपचा के साथ मणिपुर की रुकसाना, निमशिम और एक लड़का भी है. फिलहाल ग्रासिआ और उसके दोस्तों को रोमानिया के वॉलंटरी टाउन में रखा गया है.
ग्रासिआ की मां बीरी का कहना है, ''कल शाम से मेरी बेटी रोमानिया में है. मेरी बेटी रोमानिया में भारतीय दूतावास से कोई संपर्क नहीं कर पा रही है ना ही वहां का दूतावास कोई संपर्क कर रहा है. वो भारत कब आएगी कुछ पता नहीं लग रहा है''.
मणिपुर कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स के पूर्व सदस्य केसाम प्रदीप के मुताबिक, ''अभी तक की जानकारी के मुताबिक मणिपुर के कुल 14 बच्चे फंसे हुए हैं. सात बच्चे यूक्रेन से निकलकर रोमानिया पहुंच गए हैं वहीं सात बच्चे यूक्रेन के अलग अलग इलाकों में हैं. एक बच्चे का पासपोर्ट गुम होने की जानकारी भी मिली है जिसे लेकर हम सरकार से बातचीत कर रहे हैं. मणिपुर के मुख्यमंत्री भी लगातार बात हो रही है''
रूस-यूक्रेन संकट पर भारतीय रुख से नाराजगी
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस के यूक्रेन के ख़िलाफ़ हमले के प्रस्ताव पर भारत ने न तो इसके पक्ष में वोट किया था और ना ही इसका विरोध किया था. यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों के मुताबिक भारत के इस रुख की वजह से यूक्रेन के लोगों में आक्रोश है.
अमृतसर के रहने वाले पृथ्वी, मेडिकल की पढ़ाई के लिए यूक्रेन गए थे. बीबीसी से वीडियो कॉल पर हुई बातचीत में पृथ्वी बताते हैं, ''यहां लोग गुस्से में हैं. जो भारतीय छात्र मेट्रो में यूक्रेन के लोगों के साथ रह रहे हैं वहां स्थानीय लोगों के साथ काफी लड़ाई होती है. कई लोगों को बहुत गुस्सा आता है. यूक्रेन के लोग बोल रहे हैं कि भारत ने हमारी कोई मदद नहीं की है. हम भी तुम्हें बॉर्डर पार नहीं करवा सकते. हमें सुनने को मिलता है यूक्रेन के सैनिक भारतीयों को देखकर आक्रोश भरा कदम उठाते हैं. बॉर्डर पर भी यूक्रेन आर्मी ने बच्चों के साथ मारपीट की है''
महाराष्ट्र के रहने वाले नीतीश भी कुछ ऐसी ही बात बताते हैं, ''भारत ने न्यूट्रल टेक लिया है UNSC में. मेरा दोस्त लविव मेडिकल यूनिवर्सिटी में पढ़ता है. वे करीब चालीस लोग ग्रुप में एक साथ बॉर्डर पहुंचे थे यूक्रेन के सैनिकों ने उन्हें भगा दिया गया. मजबूरन उन्हें हॉस्टल वापस आना पड़ा''
यूक्रेन बॉर्डर पार कर पौलेंड पहुंचने वाली बिंदु भी कहती हैं ''ऐसा व्यवहार हमने यूक्रेन में इससे पहले भारतीयों के लिए नहीं देखा. हालांकि कुछ यूक्रेन के लोग खाने पीने में मदद भी कर रहे हैं''
बंकर में रहना कितना मुश्किल
खारकीएव मेडिकल यूनिवर्सिटी और सुमी स्टेट यूनिवर्सिटी में 500 से ज्यादा भारतीय मेडिकल छात्र पिछले पांच दिनों से बंकर में रह रहे हैं. जम्मू-कश्मीर की रहने वाली ख्वाहिश दिसंबर 2020 में मेडिकल की पढ़ाई के लिए यूक्रेन गई थीं. बीबीसी से बातचीत में ख्वाहिश बताती हैं, ''मेरी 25 फरवरी को भारत जाने की फ्लाइट बुक थी लेकिन मैं जा नहीं पाई. 24 फरवरी को बमबारी हो रही थी. सुरक्षित स्थान के लिए मैं अपने फ्लैट से हॉस्टल आ गई. तब से हम हॉस्टल के नीचे बंकर में रह रहे हैं''
''बंकर में लड़कियों का रहना काफी मुश्किल है. दिन में सिर्फ पंद्रह मिनट का ब्रेक मिलता है. इसी समय हम अपने कमरों में जाकर फ्रेश हो पाते हैं. हमें दिन में दो बार ही खाना मिलता है एक दोपहर में 1 बजे और दूसरी बार रात में करीब 9 बजे. खाने की मात्रा कम होती है हम बस सर्वाइव कर रहे हैं.''
गोरखपुर की रहने वाली उपासना पांडे बताती हैं, ''बंकर में हिटिंग की कोई व्यवस्था नहीं है. यहां तापमान माइनस में भी चला जाता है. रात गुजारनी काफी मुश्किल होती है. हम किसी तरह एक दूसरे को सब कुछ ठीक होने का भरोसा दिला रहे हैं ताकि उम्मीदें टूटने ना पाएं. बंकर में रहकर वीडियो कॉल पर मां-पिता से बात करना कितना मुश्किल है मैं आपको नहीं बता सकती''
महाराष्ट्र के रहने वाले नीतीश बताते हैं, ''बंकर में हर जगह धूल है. कुछ बच्चों को अस्थमा की बीमारी है. उनको दवाइयों की जरूरत है लेकिन बाहर नहीं जा सकते. मेडिकल की दुकानें बंद हैं. एंबेसी को फोन करते हैं तो वे काट देते हैं या फिर लाइन बिजी आती है''
पंजाब के रहने वाले पृथ्वी बताते हैं, ''हमारी उम्मीद खत्म हो रही है. धीरे धीरे खाने पीने का सामान कम हो रहा है. यहां पर एक हफ्ते से भी कम का स्टॉक बचा है. कल दाल चावल खाने को मिले थे. सबको खाना नहीं मिल पाता. जो बच्चे बच जाते हैं उन्हें अगले दिन ही खाना मिल पाता है''
उत्तराखंड के ऋषिकेश की रहने वाली जिया बलूनी यूक्रेन के सुमी शहर में फंसी हुई हैं. जिया सुमी स्टेट यूनिवर्सिटी से मेडिकल की पढ़ाई कर रही हैं. बीबीसी से बातचीत में जिया बताती हैं, ''जिस दिन रूस ने यूक्रेन पर हमला किया उस दिन बाजार में लंबी लंबी लाइन लगी हुई थी. हमने मुश्किल से खाने पीने का सामान जुटाया. हमें सायरन बजते ही बंकर में पहुंचना होता है''
भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची का कहना है कि यूक्रेन में फंसे भारतीय लोगों को बाहर निकालने के लिए सरकार व्यवस्था कर रही है. घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि पर्याप्त उड़ाने मौजूद हैं. (bbc.com)
-सुशीला सिंह
''मेरी यही इच्छा है कि मैं, मेरे पति और बच्चा हम सब भारत एक साथ जाएँ, क्योंकि अभी मॉर्शल लॉ लागू है तो मेरे पति नहीं जा सकते इसलिए मैं अपने पति को छोड़कर भारत नहीं लौटना चाहूंगी.''
ये शब्द हैं भारतीय मूल की सफ़ीना अकिमोवा के जो अभी यूक्रेन में हैं. सफ़ीना के पति यूक्रेन से हैं और उनका 11 महीने का बेटा है.
वे बीबीसी से वीडियो बातचीत में कहती हैं कि अभी हम जहां मौजूद हैं वहां से निकालना काफ़ी मुश्किल है क्योंकि यहां के प्रवेश और निकलने की जगहों पर रूसी सैनिक मौजूद हैं. अभी हमला हमारे इलाके में नहीं हुआ है लेकिन हम घिरे हुए हैं. हमें नहीं पता हम कब तक सुरक्षित रहेंगे.
यूक्रेन पर रूस के हमले को पांच दिन हो चुके हैं और इस बारे में देश के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने टेलीविज़न पर दिए अपने संबोधन में रूस की तरफ से किए गए हमले में 56 रॉकेट और 113 क्रूज़ मिसाइलें दागे जाने की जानकारी दी है.
भारत के बेंगलुरु की रहने वाली सफ़ीना कहती हैं,''हम काफ़ी दहशत में है और कुछ सकारात्मक नहीं सोच पा रहे हैं.''
'पुतिन पर भरोसा नहीं'
उनके अनुसार, ''हम लोग रूस या पुतिन पर यकीन नहीं करते. वो पहले कह रहे थे कि हम सैन्य अभयास कर रहे हैं लेकिन फिर उन्होंने हम पर बिना किसी उकसावे के हमला कर दिया था. हमें नहीं पता आगे क्या होगा कि क्योंकि इसका नुकसान हमें और रूस दोनों को हो रहा है.''
सफ़ीना इस साल के जनवरी महीने से भारत आने की कोशिश कर रही थीं. लेकिन टीआरपी यानी अस्थायी निवास परमिट समाप्त होने और बेटे का पासपोर्ट ना होने की वजह से उन्हें पूरे दस्तावेज़ों का इंतज़ार था. 14 फरवरी को दस्तावेज़ हाथ में थे लेकिन फिर बेटा और वो कोविड की चपेट में आ गए.
कोविड से ठीक होने के बाद 26 फरवरी की टिकट भारत के लिए बुक हुई लेकिन उससे पहले 24 फरवरी को ये हमला शुरू हो गया और हवाई क्षेत्र बंद कर दिए गए.
वो हंसती हुए कहती हैं, ''मेरी मां और परिवार के लोग बहुत मायूस हो गए क्योंकि मेरे बेटे की पैदाइश से अब तक वो उससे मिल नहीं पाए हैं. मेरी मां सुबह-शाम वीडियो कॉल के ज़रिए बात करती रहती है. वो काफी उदास हैं कि मैं भारत नहीं आ पा रहीं हूं. मेरे बेटे का जन्मदिन 23 मार्च है और हम दोनों का जन्मदिन 19 मार्च है. हम तकलीफ़ है लेकिन जैसे-तैसे रह रहे हैं.''
मॉर्शल लॉ
सफ़ीना की हँसी में दुख साफ़ दिखाई देता है. वो कहती हैं, ''मैं भारत गई तो मैं अपने पति को लेकर परेशानी रहूंगी. अभी हम लोग साथ में हैं तो ठीक हैं. क्या पता इंटरनेट कनेक्शन यहां काम करेगा कि नहीं. मुझे कैसे पता चलेगा कि वो जिंदा हैं या नहीं हैं और इससे ज्यादा तनाव होगा. मैं अभी यहां हूं मेरे पति और उसका परिवार है.''
वो बताती हैं कि उन्होंने गनशॉट सुने हैं, इससे पहले उन्होंने साइरन की आवाजें सुनी थी और सेना का काफ़िला जाता भी देखा थाम. ये काफ़ी डरावना है.
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के यूक्रेन के ख़िलाफ़ विशेष सैन्य अभियान के आदेश के बाद देश में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया है.
इधर यूक्रेन सीमा रक्षक सेवा या डीपीएसए ने वहां 18 से 60 साल के यूक्रेन के सभी पुरुषों के देश छोड़ कर जाने पर पाबंदी लगा दी है. डीपीएसए का कहना है कि 'यूक्रेन की सुरक्षा की गारंटी और ज़रूरत पड़ने पर लोगों को संगठित करने के लिए' ये क़दम उठाया गया है.
ये अस्थायी रोक मॉर्शल लॉ लागू रहने तक रहेगी.
सफ़ीना कहती हैं कि यहां यूक्रेन के हर नागरिक को आर्मी का सर्टिफिकेट दिया जाता है चाहे उन्होंने आर्मी के लिए सेवा दी हो या नहीं. साथ ही उन्हें कॉलेज के बाद ट्रेनिंग भी दी जाती है. इसके बाद जो आर्मी में सेवा देते हैं उनके आगे सैनिक लिखा जाता है.
वे बताती हैं, ''अगर मेरे पति को बुलाते हैं तो जाना आसान नहीं होगा लेकिन सरकार की तरफ से बुलाया जाएगा तो वो शायद जा सकते हैं.''
वे बताती हैं कि अभी शहरों के मध्य भाग में रहना काफ़ी ख़तरनाक है इसलिए अब हम अपने अपार्टमेंट में नहीं रह रहे हैं. जैसे ही हमें हमले के बारे में पता चला हम शिफ्ट हो गए क्योंकि यहां पर बंकर हैं. हमारा सामान पूरा पैक ही था क्योंकि हमें भारत आना था. हमें सरकार से कोई चेतावनी मिलती है तो हम यहां से बंकर में चले जाते हैं.
बाइक चलाने का शौक रखने वाली सफ़ीना को बाइक के लिए प्यार उन्हें अपने पति के नज़दीक ले आया.
दरअसल उनके पति भी बाइक चलाने के शौकीन हैं और बाइकर समूह के सदस्य भी हैं और सोशल मीडिया साइट इंस्टाग्राम के ज़रिए उनकी अपने पति से मुलाकात हुई.
मुस्कराते हुए वो बताती हैं, ''मैं भारत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत से बाइकर ग्रूप से जुड़ना चाह रही थी ताकि दूसरों देशों में भी राइड करने जा सकूं. ऐसे में जो ग्रुप मैं फॉलो कर रही थी उसमें मेरे पति का ग्रुप भी शामिल था. हमने एक दूसरे से नंबर अदला-बदली किए और चैट होने लगी. मेरे पति के ग्रुप की तरफ से मुझे यूक्रेन आने का न्यौता मिला.''
उनके अनुसार,'' मेरे पति अंग्रेज़ी बिल्कुल नहीं जानते थे. हम दोनों गूगल के ज़रिए बात करते थे.''
साल 2019 के जून महीने में सफ़ीना पहली बार यूक्रेन आईं थीं. दस दिन मोटरबाइक पर पश्चिमी यूक्रेन का दौरा किया. इस दौरान दोनों में करीबी इतनी बढ़ी कि शादी तक बात पहुंच गई.
वो बताती हैं, ''हम दोनों का जन्मदिन एक ही दिन था, हमें ट्रेवल का शौक था और ऐसे ही बातचीत में बहुत सी रुचियां मेल खाने लगीं और ऐसा महसूस हुआ कि हम सोलमेट हैं.''
सफ़ीना ने वापस आकर अपने माता-पिता से बात की और परिवार को इससे कोई एतराज़ नहीं था.
सफ़ीना दोबारा कीएव पहुंची वहां मस्जिद में पूरे रीति-रिवाज़ से शादी हुई इसके बाद पति के साथ भारत लौटी जहां उनका रिसेप्शन हुआ और फिर यूक्रेन की राजधानी कीएव में आकर शादी का रजिस्ट्रेशन कर लिया. अब ये परिवार देश के उत्तरपूर्वी भाग में रहता है.
सफ़ीना कहती हैं कि बहुत डर है और बस ये उम्मीद है कि ये सब ख़त्म हो तो वो भारत जाकर अपने माता-पिता से मिल सकें. (bbc.com)
"अगर मैं तुरंत रूस छोड़ पाऊं तो छोड़ दूंगा पर मैं अपनी नौकरी नहीं छोड़ सकता." ये शब्द हैं आंद्रे के. आंद्रे अब अपने घर की किस्त नहीं दे पाएंगे क्योंकि रूस ने ब्याज दरों में भारी बढ़ोतरी की है.
आंद्रे की तरह लाखों रूसी अब पश्चिमी देशों के लगाए आर्थिक प्रतिबंधों की मार झेल रहे हैं. प्रतिबंधों का उद्देश्य रूस को यूक्रेन पर हमला करने की सज़ा देना है.
31 के साल आंद्रे डिज़ानर हैं. वो कहते हैं, "मैं जितना जल्दी संभव हो रूस के बाहर अपने लिए ग्राहक खोज रहा हूँ. ग्राहक मिलते ही मैं घर की किस्त देने के लिए बचाए पैसों की मदद से रूस छोड़ दूंगा. "
"मुझे यहाँ डर लग रहा है. कई लोगों को पार्टी लाइन से हटकर बोलने पर गिरफ़्तार कर लिया गया है. मैं ख़ुद शर्मिंदा महसूस कर रहा हूँ हालांकि मैंने सत्तारूढ़ पार्टी को वोट नहीं दिया था."
सुरक्षा कारणों से इस आर्टिकल में हम लोगों के पूरे नाम या उनके चेहरे नहीं दिखा रहे हैं. कुछ नाम बदल भी दिए हैं.
रूस पर लगाए गए इन प्रतिबंधों को अब आर्थिक युद्ध कहा जा रहा है. एक ऐसा युद्ध जो रूस को अलग-थलग कर देगा और उसे एक भयानक आर्थिक मंदी में धकेल देगा. पश्चिमी देंशों के नेताओं को उम्मीद है कि उनके द्वारा उठाए गए अप्रत्याशित क़दमों की वजह से रूस अपनी सोच में बदलाव लाएगा.
लेकिन आम नागरिकों का पैसा देखते ही देखते ग़ायब होता जा रहा है. उनकी ज़िंदगियां बुरी तरह से प्रभावित हो रही हैं
"फ़ोन से पेमेंट नहीं कर पा रहा हूँ"
कुछ रूसी बैंकों के ख़िलाफ़ पाबंदियों का अर्थ ये है कि इनके जो ग्राहक वीज़ा और मास्टरकार्ड का प्रयोग करते थे, अब नहीं कर पा रहे हैं. इसी वजह से एपल पे और गूगल पे जैसी सेवाएं भी इन बैंकों के ग्राहकों को उपलब्ध नहीं हैं.
35 वर्षीय डारिया मॉस्को में प्रोजेक्ट मैनेजर हैं. वो मेट्रो में सफर नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि उनका कार्ड रिचार्ज नहीं हो रहा है.
"मैं हमेशा अपने फ़ोन से पेमेंट करती थी लेकिन अब वो काम नहीं कर रहा है. मेरे जैसे और भी कई लोग हैं. दरअसल, मेट्रों में एंट्री को वीटीबी बैंक ऑपरेट करता है. अब इस बैंक पर प्रतिबंध लग गया है. इसलिए न तो गूगल पे काम कर रहा है और न ही एपल पे."
डारिया ने बीबीसी को आगे बताया, "मुझे मेट्रो कार्ड ख़रीदना पड़ा है. इसके अलावा अब मैं दुकानों में सामान ख़रीदने के लिए भी फ़ोन से पेमेंट नहीं कर पा रहा हूँ"
सोमवार को रूस ने रूस की ब्याज दरें लगभग दोगुनी करते हुए 20 प्रतिशत कर दी थीं. देश के शेयर बाज़ार भारी बिकवाली के डर से बंद कर दिए गए हैं.
रूस की सरकार कह रही है कि उनके पास प्रतिबंधों से निपटने के लिए पर्याप्त साधन हैं लेकिन ये एक बहस का विषय है.
बीते हफ़्ते रूस के केंद्रीय बैंक ने माहौल पर शांत बनाए रखने की अपील की थी क्योंकि इस बात का डर बरकरार है कि बहुत सारे लोग एक साथ अपना पैसा निकालने की कोशिश कर सकते हैं. इससे बैंको पर अतिरिक्त दबाव पड़ सकता है.
मॉस्को में एक एटीएम के बाहर लाइन में खड़े एंटोन (बदला हुआ नाम) कहते हैं, "डॉलर तो बिल्कुल नहीं है. रूबल हैं पर मुझे वो चाहिए ही नहीं. मुझे नहीं मालूम अब क्या करना है. मुझे लगता है कि हम ईरान या उत्तर कोरिया की तरह बनते जा रहे हैं."
रूस में विदेशी मुद्रा ख़रीदना अब पिछले हफ़्ते की तुलना में 50% महंगा हो गया है. साथ ही उसकी उपलब्धता भी बहुत कम हो गई है.
साल 2022 की शुरुआत में एक अमेरिका डॉलर के बदले 75 और एक यूरो के बदले 80 रूबल मिलते थे. लेकिन इस लड़ाई ने नए कीर्तिमान स्थापित कर दिए हैं. सोमवार को एक वक़्त तो एक डॉलर की क़ीमत 113 रूबल तक पहुँच गई थी.
सोवियत संघ का विघटन होने के बाद 1990 के दशक में डॉलर ही वो मुद्रा थी जो रूस के लोग अपने बचत के तौर पर पास में रखते थे, लेकिन छुपा कर.
जब 1998 में तत्कालीन राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन की सरकार अपना बकाया चुकाने में नाकाम रही तब जिन्होंने अपने पैसे डॉलर में रखे थे वो ख़ुद को सुरक्षित महसूस कर रहे थे.
हालांकि, आने वाले दशकों में कई बैंकिंग उपायों ने रूसियों को रूबल को लेकर आश्वस्त करने का काम किया.
और इस तरह लोगों की जमा राशि रूसी मुद्रा में बढ़ी और रूसी कंपनियों के शेयरों में भी निवेश किया गया.
लेकिन आज भी जब कभी कोई अनिश्चितता का माहौल बनता है तो लोग झटपट अपने पैसे डॉलर में निकालने के लिए पास के एटीएम में दौड़ पड़ते हैं.
ठीक उसी तरह वर्तमान पैदा हुई स्थिति के दौरान भी हो रहा है.
बीते हफ़्ते जैसे ही यूक्रेन पर हमला शुरू हुआ, रूसियों ने पिछली बार ऐसी ही किसी परिस्थिति से सबक लेते हुए अलग अलग कैश पॉइंट्स पर लाइनें लगा दीं.
30 से कुछ अधिक उम्र के इल्या (बदला हुआ नाम) ने अभी-अभी मॉस्को में अपना क़र्ज़ चुकता किया है. वे कहते हैं कि फ़िलहाल वो यहां से किसी नई जगह पर बसने के लिए जाने में सक्षम नहीं हैं.
"जब डोनबास में ऑपरेशन शुरू हुआ था तब मैं एटीएम अपनी बचत निकालने गया था, जो सेब्रबैंक में डॉलर में रखा था. अब उन्हें वाक़ई अपने तकिए के नीचे रखता हूँ."
"बाक़ी बचत अब भी बैंक में ही है, जिसमें से आधी डॉलर में और बाक़ी रूबल में है. अगर चीज़ें बदतर होती हैं तो मुझे बहुत सारी बचत निकालनी होंगी. मैं डरा हुआ भी हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि बड़ी संख्या में लूटपाट हो सकती है. लेकिन अब जो है वो है."
"यहाँ से ज़िंदगी और ख़राब हो जाएगी"
सोशल मीडिया पर जो तस्वीरें दिख रही हैं, उनमें एटीएम और मुद्रा विनिमय (मुद्रा को अदला बदली करने की जगह) केंद्रों पर लंबी क़तारें दिखाई पड़ती हैं. लोगों को ये भी चिंता है कि उनके बैंक कार्ड काम करना बंद कर सकते हैं या फिर लोग कितनी नक़द निकाल सकते हैं, उसकी सीमा भी तय की जा सकती है.
हमले के कुछ ही घंटों में डॉलर और यूरो ख़त्म होने लगे थे. तब से वो मुद्राएं बहुत कम मात्रा में उपलब्ध हैं और आप कितना रूबल निकाल सकते हैं, उसकी भी एक सीमा है.
मॉस्को में एक लाइन में खड़े 45 वर्षीय इवगेनी (बदला हुआ नाम) कहते हैं वो अपना क़र्ज़ चुकाने के लिए पैसे निकालना चाहते हैं.
"मुझे पता है कि हर कोई चिंतित है. सभी तनाव में हैं. इसमें कोई शक नहीं कि यहाँ से ज़िंदगी और ख़राब ही हो जाएगी. ये युद्ध डरावना है."
"मुझे लगता है कि सभी देश दोहरे मापदंड अपनाते हैं और अब बड़े देश एक दूसरे की ताक़त का माप रहे हैं कि कौन कितना कूल है. और आम लोगों को ये सब भुगतना पड़ रहा है.
35 वर्षीय मार्टर ने कहा, "आज वो पहला दिन है जब मैंने पैसे निकालने को सोचा और मुझे कोई समस्या का सामना नहीं करना पड़ा. वैसे मैंने रूबल निकाला है. मैं कोई अनुमान लगाने में बेहतर नहीं हूँ लेकिन इस बात का संदेह ज़रूर है कि हमारी ज़िंदगी यहाँ से ख़राब ही होगी. लेकिन ये सब समय ही बताएगा."
अब बैंक जाकर फॉर्म साइन करना पड़ रहा है
बीबीसी रूस ने बताया कि कैश की समस्या केवल मॉस्को तक ही सीमित नहीं है, लोग डॉलर या यूरो पाने के लिए पर्म, कोस्त्रोमा, बेलग्रॉद और अन्य प्रांतीय शहरों में भी दौड़ रहे हैं.
एक अनाम आईटी-एक्सपर्ट ने एक टेलीग्राम बॉट भी बनाया है जो निजी बैंक टिंकऑफ के एटीएम में यूरो या डॉलर है या नहीं इसकी जानकारी देता है. ये अपने सब्सक्राइब को उन एटीएम का लोकेशन बताता है.
कई लोगों ने अपने बैंकिंग ऐप के ज़रिए प्री-कैश-ऑर्डर करने की कोशिश कर रहे हैं. ये रूस की बैंकिंग में एक उन्नत सुविधा है.
रविवार की शाम को जब रूस के केंद्रीय बैंक पर प्रतिबंधों की घोषणा की गई थी तब भी आप वहां 140 रूबल तक के मूल्य के डॉलर और 150 रूबल तक के यूरो ऐप के ज़रिए ऑर्डर कर सकते थे.
लेकिन सोमवार को रूस के सबसे बड़े सरकार समर्थिक बैंक सेब्रबैंक ने बीबीसी रूस को कहा कि ऐप के ज़रिए कैश ऑर्डर नहीं कर सकते. इसके लिए अब बैंक की शाखा में जाकर वहां एक फॉर्म पर हस्ताक्षर करने होंगे.
असमंजस में लोग
हालांकि बैंक इस बात से इनकार करते हैं कि नक़दी की कमी है और जानकारों की नज़र में ये आगे एटीएम में कैश की कमी न हो और बैंक बिना किसी बाधा के चले ये उसका उपाय दिखता है.
क्रेमलिन ने कहा है कि रूस पहले से इन प्रतिबंधों के लिए तैयार था हालांकि उसने ये नहीं बताया कि क्या बिज़नेस को कुछ अतिरिक्त मदद दी जाएगी जैसा कि कोरोना महामारी के दौरान किया गया था.
लेकिन आम रूसी, जिनमें से कइयों को ख़बरें सरकारी नियंत्रण वाले टेलीविजन से मिलती हैं और वो सरकार की कही बातों को ही दोहराते हैं, उम्मीद है कि वो भी जल्द ही अपनी ज़िंदगी में बदलाव देखना शुरू करेंगे.
राजधानी मॉस्को के लोग खाद्य भंडारों के आगे लगी कतारों की ख़बरें दे रहे हैं. वहाँ लोग इस बात से चिंतित हो कर की आने वाले वक़्त में इनकी सप्लाई में कमी आएगी और प्रतिबंधों की वजह से कीमतें बढ़ेंगी, वो अधिक से अधिक सामान अपने पास स्टोर करना चाह रहे हैं.
प्रतिबंधों की वजह से रूस की कंपनियों के उत्पादन में कटौती देखने को मिल सकता है या ये ठप भी पड़ सकता है. साथ ही उनकी बचत का भी अवमूल्यन हो रहा है. पश्चिम के साथ आर्थिक गतिविधियां थमने से अर्थव्यवस्था में गिरावट आई तो कई रूसियों की नौकरियां जाने का भी ख़तरा है.
आज जो कुछ भी हो रहा है उससे रूसियों को छह साल पहले जब 2014 में क्राइमिया पर क़ब्ज़ा किया गया था तब की याद आ गई क्योंकि तब भी लोगों की क़तारें एटीएम के बाहर घंटों देखी जाती थी.
तब एक डॉलर की क़ीमत आमतौर पर 30 से 35 रूबल हुआ करती थी जिसकी आज की तारीख़ में कल्पना करना भी बेमानी है. (bbc.com)
नई दिल्ली, 1 मार्च| पाकिस्तान मंगलवार को 'पैरिया' व्लादिमीर पुतिन का समर्थन करने वाला पहला बड़ा देश बन गया, क्योंकि उसने यूक्रेन पर आक्रमण के बाद रूस के साथ पहले नए व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने पिछले गुरुवार को कहा था कि उनका देश रूसी राष्ट्रपति पुतिन से मिलने के बाद रूस से लगभग 20 लाख टन गेहूं और प्राकृतिक गैस आयात करेगा। उसी दिन बाद में रूस ने पड़ोसी यूक्रेन के खिलाफ सैन्य हमला किया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि रूस को अंतर्राष्ट्रीय अलगाव का सामना करने और उसकी अर्थव्यवस्था को पंगु बनाने के लिए प्रतिबंधों का सामना करने के बावजूद खान ने क्रेमलिन के खजाने में संभावित अरबों की वृद्धि का बचाव किया है, यह कहते हुए कि पाकिस्तान के आर्थिक हितों को इसकी जरूरत है।
उन्होंने दो दिवसीय यात्रा के बारे में कहा, "हम वहां गए, क्योंकि हमें रूस से 20 लाख टन गेहूं आयात करना है। दूसरे, हमने प्राकृतिक गैस आयात करने के लिए उनके साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, क्योंकि पाकिस्तान के अपने गैस भंडार कम हो रहे हैं।"
उन्होंने कहा, "इंशाअल्लाह (भगवान की इच्छा), समय बताएगा कि हमने बहुत चर्चा की है।"
पुतिन ने मंगलवार को रूस से बाहर निकलने वाली विदेशी कंपनियों को ब्लॉक करने का निर्देश दिया। उधर, बीपी और शेल ने यूक्रेन के हमले के बाद 20 अरब डॉलर के संयुक्त उपक्रम बेचने का वादा किया।
रूसी प्रधानमंत्री मिखाइल मिशुस्टिन ने घोषणा की कि राष्ट्रपति ने एक आदेश पर हस्ताक्षर किए किए हैं, क्योंकि पश्चिमी देशों ने प्रतिबंध बढ़ा दिया है, रूबल अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है और रूसी लोग बैंकों पर संकट के बीच एटीएम से नकदी निकालने के लिए रात-दिन कतार में खड़े दिखाई दे रहे हैं। (आईएएनएस)