अंतरराष्ट्रीय
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने शनिवार को कहा कि सऊदी अरब अपने तेल उत्पादन को बढ़ाकर प्रतिदिन एक करोड़ 30 लाख बैरल करने की कोशिश करेगा. लेकिन इसके साथ ही उन्होंने तेल उत्पादन बढ़ाने की अपनी सीमा भी बता दी.
सऊदी के शहर जेद्दाह में आयोजित अरब-अमेरिकी सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि देश अभी प्रति दिन एक करोड़ 10 लाख बैरल तेल उत्पादन कर रहा है.
क्राउन प्रिंस ने कहा, ''फ़िलहाल हमारी क्षमता प्रति दिन एक करोड़ 20 लाख बैरल तक तेल उत्पादन करने की है और निवेश के साथ ये उत्पादन एक करोड़ 30 लाख बैरल तक जा सकता है. सऊदी अरब की इससे ज़्यादा तेल उत्पादन बढ़ाने की क्षमता नहीं है.''
क्राउन प्रिंस ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को सहयोग करने के लिए एकजुट होकर प्रयास करने की बात कही.
उन्होंने आगाह किया, ''ऊर्जा के मुख्य स्रोतों को छोड़कर उत्सर्जन घटाने के लिए अवास्तविक नीतियां अपनाना आने वाले दिनों में असाधारण महंगाई, ऊर्जा के दामों में बढ़ोतरी, बेरोज़गारी और सामाजिक और सुरक्षा संबंधी समस्याओं की जटिलता की ओर ले जाएगा.''
यूक्रेन-रूस के युद्ध के चलते पश्चिमी देशों के रूस पर प्रतिबंध लगाने के बाद तेल के दामों में बढ़ोतरी हुई है.
शनिवार को हुए सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और खाड़ी सहयोग परिषद के सदस्य देश, मिस्र, इराक़ और जॉर्डन भी मौजूद थे. (bbc.com)
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने शनिवार को एक कार्यक्रम में बोलते हुए अपनी सरकार में मीडिया पर लगी पाबंदियों और लोगों के लापता होने से ख़ुद को अलग कर लिया. उन्होंने कहा कि ये कार्रवाई उनके निर्देशों पर नहीं हुई थी.
इमरान ख़ान मीडिया की स्वतंत्रता पर आयोजित एक सेमिनार में संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा, ''मैं जब प्रधानमंत्री बना तो मुझे कभी मीडिया से कोई ख़तरा नहीं था. मैंने तो कभी कोशिश नहीं की मीडिया को पैसे ख़िलाने की. मैंने नजम सेठी के अलावा किसी मीडियाकर्मी पर कार्रवाई नहीं की. नजम ने मेरी जाति पर अटैक किया था. उसके ऊपर अदालत में गया. तीन चार ऐसा हुआ कि हमें कैबिनेट बैठक में पता चला कि किसी पत्रकार को उठा लिया है. मेरे निर्देशों पर कभी किसी को नहीं उठाया. समस्या कुछ और थी.''
उन्होंने कहा कि लोगों को उठाने और उनके ग़ायब होने का मसला आंतकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई के जुड़ा था जिनके ख़िलाफ़ उन्होंने आवाज़ उठाई थी.
इमरान ख़ान ने बताया, ''आतंक के ख़िलाफ़ युद्ध में उन्होंने लोगों को उठाना शुरू कर दिया. लोग लापता होने शुरू हो गए. जब तक मैं सरकार में नहीं आया तो मुझे फौज का नज़रिया नहीं पता था तो मैं तब तक इसके ख़िलाफ़ हमेशा बोलता रहा. मेरे पास लापता लोगों के परिजन आते थे. मैंने इससे ज़्यादा तकलीफ़देह चीज़ें नहीं देखी हैं कि औरत आ रही है कि पति ग़ायब हैं, माँ आ रही हैं कि बेटे ग़ायब हैं.''
''सरकार में आने पर पता चला कि जो लोगों को उठाया जाता था वो राष्ट्रीय सुरक्षा के तहत आता था. मेरी जब जनरल बाजवा से इस पर बात हुई, एक तो उन्होंने काफ़ी लोग छोड़े लेकिन वो कहते थे समस्या ये है कि अगर एक आतंकवादी का मामला हम अदालत ले जाते हैं तो उसे साबित करना बड़ा मुश्किल है.चश्मदीद कहाँ से आएंगे.
उन्होंने कहा, ''अमेरिका की मिसाल दी जाती थी कि आंतक के ख़िलाफ़ युद्ध में उन्होंने कैसे लोगों को पकड़ा. ये और बात है कि वो ज़्यादातर मुसलमानों को ही पकड़ते थे. फौज उधर से डरती थी कि अगर हम इन्हें छोड़ देंगे तो वो फिर हमारे ख़िलाफ़ एक्टिविटी करेंगे. इसके ऊपर भी एक विधेयक आना वाला था कि किसी लापता व्यक्ति के रिश्तेदारों को तो पता हो कि वो कहाँ है.
इमरान ख़ान ने कहा कि पाकिस्तान जिस जगह खड़ा है वो निर्णायक दौर है. इस समय सही फ़ैसले करने ज़रूरी हैं.(bbc.com)
बांग्लादेश में हिंदू समुदाय के घरों, दुकानों और मंदिरों में तोड़फोड़ और आग लगाने का मामला सामने आया है.
ये घटना बांग्लादेश के नरेल ज़िले में लोहागढ़ उपज़िले की है, जहाँ एक फ़ेसबुक पोस्ट को लेकर ईशनिंदा के आरोप में हिंदू समुदाय को निशाना बनाया गया है.
लोहागढ़ उपज़िले में दिघलिया गाँव में शुक्रवार को ये हमला हुआ है, जिससे इलाक़े में पूरे दिन तनाव का माहौल बना रहा. बाज़ार में सभी दुकाने बंद रहीं. इस मामले में एक शख़्स को गिरफ़्तार किया गया है.
लोहागढ़ थाना प्रभारी शेख़ अबु ने बताया कि इलाक़े में शांति बनाए रखने के लिए अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया गया है और हालात अभी नियंत्रण में हैं.
उन्होंने बताया कि इस घटना को लेकर फ़िलहाल कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है. गिरफ़्तार किए गए शख़्स अभियुक्त लड़के के पिता हैं.
बीजेपी की पूर्व नेता नुपूर शर्मा के समर्थन में एक कॉलेज स्टूडेंट ने हाल ही में फ़ेसबुक पोस्ट किया था. इसके बाद वहां कॉलेज प्रिंसिपल स्वपन कुमार बिस्वास को जूते की माला भी पहनाई गई थी जिसका काफ़ी विरोध हुआ था.
नुपूर शर्मा ने पैग़ंबर मोहम्मद को लेकर अपमानजनक टिप्पणी की थी जिसका बड़े स्तर पर विरोध किया गया था.
पुलिस ने गुरुवार को इस बारे में जानकारी दी थी कि एक कॉलेज स्टूडेंट की फ़ेसबुक आईडी से एक पोस्ट किया गया था, जिसमें पैग़ंबर मोहम्मद को लेकर विवादित कॉमेंट किए गए थे. हालांकि, पुलिस जांच कर रही है कि ये पोस्ट असली है या नहीं. इस व्यक्ति की फ़ेसबुक आईडी से पोस्ट किया गया था वो भाग गया है.
इस पोस्ट के कारण शुक्रवार की नमाज़ के दौरान इलाक़े में तनाव की स्थिति बन घई. इसके बाद शाम को हिंदुओं पर हमले शुरू हो गए जो रात 9:30 बजे तक चले.
हमलावरों को रोकने के लिए पुलिस ने फायरिंग की और आंसू गैस के गोले छोड़े. पुलिस ने बताया कि इलाक़े के लोगों का कहना है कि वो हमलावरों को नहीं जानते. अब पुलिस उनकी पहचान करने की कोशिश कर रही है.
बांग्लादेश में ही एक अन्य मामले में मानिकगंज के सिंगैर उपज़िला में एक शख़्स ने हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों के साथ तोड़फोड़ कर उन्हें खंडित कर दिया. ये घटना शनिवार रात की है. इस मामले में एक शख़्स को गिरफ़्तार किया गया है जिसे मानसिक रूप से अस्थिर और नशे का आदी बताया जा रहा है. (bbc.com)
कोलंबो, 16 जुलाई। श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने अपने त्यागपत्र में खुद का बचाव करते हुए कहा है कि उन्होंने पूरी क्षमता के साथ मातृभूमि की रक्षा की और भविष्य में भी ऐसा करते रहेंगे।
सिंगापुर से संसद अध्यक्ष महिंदा यापा अभयवर्द्धने को भेजे गए राजपक्षे के इस त्यागपत्र को शनिवार को संसद के विशेष सत्र के दौरान पढ़ा गया। संसद के सचिव धम्मिका दसनायके ने उनका त्याग पत्र पढ़ा।
राजपक्षे के इस्तीफे के बाद राष्ट्रपति पद के लिए हुई रिक्ति की घोषणा करने के सिलसिले में श्रीलंकाई संसद की बैठक हुई। अर्थव्यस्था को संभालने में सरकार की नाकामी के चलते श्रीलंका में तेज हुए विरोध प्रदर्शनों के चलते बुधवार को राजपक्षे देश से भाग गए थे।
राजपक्षे (73) ने अपने त्यागपत्र में श्रीलंका की अर्थव्यवस्था के गंभीर संकट में पड़ने के लिए कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन को जिम्मेदार ठहराया।
राजपक्षे ने कहा कि उन्होंने आर्थिक मंदी का मुकाबला करने के लिए सर्वदलीय सरकार बनाने की कोशिश करने जैसे बेहतरीन कदम उठाए।
राजपक्षे ने त्यागपत्र में लिखा है, 'मैंने पूरी क्षमता के साथ मातृभूमि की रक्षा की और भविष्य में भी ऐसा ही करता रहूंगा।'
उन्होंने कहा कि उनके राष्ट्रपति बनने के बाद तीन महीने के अंदर पूरी दुनिया कोविड-19 की चपेट में आ गई।
राजपक्षे ने कहा, 'मैंने उस समय पहले से ही खराब आर्थिक माहौल से विवश होने के बावजूद लोगों को महामारी से बचाने के लिए कार्रवाई की।'
उन्होंने कहा, "2020 और 2021 के दौरान मुझे लॉकडाउन का आदेश देने के लिए मजबूर होना पड़ा और विदेशी मुद्रा भंडार घटने लगा। मेरे विचार से, मैंने स्थिति से निपटने के लिए एक सर्वदलीय या राष्ट्रीय सरकार बनाने का सुझाव देकर सबसे अच्छा कदम उठाया।"
राजपक्षे ने पत्र में कहा, "नौ जुलाई को पार्टी नेताओं की इच्छा के बारे में पता चलने के बाद मैंने इस्तीफा देने का फैसला किया।"
वह बुधवार को मालदीव भाग गए थे और इसके बाद बृहस्पतिवार को सिंगापुर पहुंच गए। सिंगापुर के विदेश मंत्रालय ने कहा था कि न तो राजपक्षे ने शरण मांगी है और न ही उन्हें शरण दी गई है तथा उन्हें 'निजी यात्रा' के लिए प्रवेश की अनुमति दी गई। (भाषा)
-अली हमेदानी
"वो मुझे अपनी मासूम और सुंदर आँखों से देखता है. वो मुझे टहलाने के लिए बाहर ले जाने को कह रहा है, लेकिन मुझमें ऐसा करने की हिम्मत नहीं है. हम गिरफ़्तार कर लिए जाएंगे."
तेहरान में अपने घर में एक कुत्ता पालने वाली महसा, शहर में पालतू जानवरों को ज़ब्त करने और उनके मालिकों को गिरफ़्तार करने के नए आदेश का ज़िक्र करते हुए ये बता रही थीं.
ईरान की राजधानी तेहरान में हाल में पुलिस ने एलान किया है कि वहाँ के पार्कों में कुत्ते घुमाना अब एक 'अपराध' है. इस प्रतिबंध को 'जनता की सुरक्षा' के लिहाज से ज़रूरी क़रार दिया गया है.
इसी समय, महीनों की बहसबाज़ी के बाद ईरान की संसद जल्द ही 'जानवरों के ख़िलाफ़ लोगों के अधिकारों के संरक्षण' के नाम से एक विधेयक को मंज़ूरी देने जा रही है. ऐसा हो जाने के बाद पूरे देश में घरों में कुत्ते, बिल्ली जैसे पालतू जानवरों को रखना एक अपराध हो जाएगा.
भारी जुर्माने का प्रावधान
प्रस्तावित क़ानून के प्रावधानों के अनुसार, घरों में पालतू जानवर तभी रखे जा सकते हैं यदि इसके लिए बनी एक विशेष समिति से परमिट हासिल कर लिया जाए.
इस क़ानून के अनुसार, बिल्ली, कछुए, खरगोश जैसे कई जानवरों के 'आयात, ख़रीद-बिक्री, लाने-ले जाने और रखने' पर क़रीब 800 डॉलर का न्यूनतम जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
इस विधेयक का विरोध करने वाले ईरानी वेटरनरी असोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. पायम मोहेबी ने इस बारे में बीबीसी से बातचीत की.
उन्होंने बताया, "इस विधेयक पर बहस की शुरुआत क़रीब एक दशक पहले शुरू हुई थी. उस समय ईरान के सांसदों के एक समूह ने सभी कुत्तों को ज़ब्त करके उन्हें चिड़ियाघरों में दे देने या उन्हें रेगिस्तान में छोड़ देने के लिए एक क़ानून बनाने की कोशिश की थी."
डॉ. मोहेबी कहते हैं, "इतने सालों में, उन्होंने इस विधेयक में दो बार बदलाव किए. यहाँ तक कि कुत्ते के मालिकों को शारीरिक दंड देने पर भी चर्चा की. हालांकि उनकी योजना मूर्त रूप नहीं ले सकी."
ईरान के गाँवों में हमेशा से कुत्ते पालना आम बात रही है, लेकिन पिछली सदी में शहरों में भी पालतू जानवर रखना शहरी लाइफ़स्टाइल का प्रतीक बन गया.
1948 में ईरान ने जब पशु कल्याण क़ानून बनाया तो ऐसा करने वाला वो पश्चिम एशिया के चुनिंदा देशों में से एक था.
इसके बाद सरकार ने पशुओं के अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए देश की पहली संस्था बनाने में सहायता की. यहाँ तक कि देश के शाही ख़ानदान के पास भी पालतू कुत्ते थे.
हालांकि 1979 में देश में हुई इस्लामी क्रांति ने ईरान के लोगों और कुत्तों की ज़िंदगी से जुड़ी कई बातों को बदलकर रख दिया.
इस्लाम में जानवरों को 'अशुद्ध' माना जाता है. इसलिए इस्लामी क्रांति के बाद बनी नई सरकार की नज़र में कुत्ते भी 'पश्चिमीकरण' के प्रतीक बन गए. ऐसे में वहाँ के अधिकारियों ने इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की कोशिश की.
तेहरान के जानवरों के डॉक्टर अशकन शेमीरानी ने बीबीसी से कहते हैं कि कुत्ते पालने को लेकर कभी कोई ठोस नियम नहीं रहा है.
उनके अनुसार, "लोगों को अपने कुत्तों के साथ टहलने या अपनी कारों में उन्हें ले जाने पर पुलिस लोगों को गिरफ़्तार कर लेती है. पुलिस के अनुसार, लोगों का ऐसा करना पश्चिमीकरण का प्रतीक है."
ईरान में कुत्तों के लिए भी है जेल
अशकन शेमीरानी कहते हैं, "सरकार ने कुत्तों के लिए भी एक जेल बनाया है. हमने उस जेल के बारे में बहुत सी डरावनी कहानियां सुनी हैं. कुत्तों को वहां कई दिनों तक खुले में बिना पर्याप्त भोजन या पानी के रखा जाता था. वहीं कुत्तों के मालिकों को हर तरह की क़ानूनी परेशानियों से दो चार होना पड़ रहा था."
ईरान पर सालों तक लगे पश्चिमी देशों के आर्थिक प्रतिबंधों से पैदा हुए आर्थिक संकट की भी इस नए विधेयक के पेश होने में अहम भूमिका रही है.
ईरान के विदेशी मुद्रा भंडार को बचाने के लिए पालतू पशुओं के भोजन के आयात पर तीन सालों से अधिक वक़्त के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया है.
विदेशी ब्रांडों के प्रभुत्व वाले इस मार्केट में सरकार के इस फ़ैसले का मतलब ये हुआ कि इसकी कालाबाज़ारी का बाज़ार तो तैयार हुआ ही और ये काफ़ी महंगे भी हो गए.
ईरान के मशहद शहर के एक वेटरनरी क्लिनिक के मालिक ने बीबीसी को बताया, "अब हम उन लोगों पर बहुत अधिक निर्भर हैं, जो गुप्त रूप से ऐसे खाद्य पदार्थों की सप्लाई करते हैं. इसका नतीज़ा यह हुआ है कि कुछ महीने पहले की तुलना में इनकी क़ीमतें अब क़रीब पांच गुनी हो गई हैं."
उनका दावा है कि स्थानीय स्तर पर तैयार ये खाद्य पदार्थ स्तरीय नहीं होते. उनके अनुसार, "इसकी गुणवत्ता बेहद ख़राब होती है. इसे तैयार करने के लिए सस्ते मांस या मछली का उपयोग किया जाता है, यहां तक कि एक्सपायर्ड माल का भी इस्तेमाल होता है."
कुत्ते ही नहीं बिल्लियां भी हैं निशाने पर
प्रस्तावित क़ानून केवल कुत्तों के लिए ही परेशानी का सबब साबित नहीं होने वाले. इसके निशाने पर बिल्लियां भी हैं. इस क़ानून में मगरमच्छों का भी ज़िक्र किया गया है.
ईरान 'पर्सियन कैट' के जन्मस्थान के रूप में मशहूर रहा है. यह बिल्लियों की दुनिया की सबसे प्रसिद्ध नस्लों में से एक है.
तेहरान के एक वेटरनरी डॉक्टर ने बीबीसी को बताया, "क्या आप यकीन कर सकते हैं कि अब पर्सियन कैट्स भी अपनी मातृभूमि में सुरक्षित नहीं हैं? इस क़ानून का कोई लॉजिक नहीं है. कट्टरपंथी लोग बस जनता को अपनी ताक़त का एहसास कराना चाहते हैं."
वहीं ईरानियन वेटरनरी एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. मोहेबी प्रस्तावित क़ानून को 'शर्मनाक' क़रार देते हैं.
वे कहते हैं, "यदि संसद यह विधेयक पारित कर देती है, तो आने वाली पीढ़ियां हमें ऐसे लोगों के रूप में याद रखेंगी, जिन्होंने कुत्तों और बिल्लियों पर प्रतिबंध लगा दिया."
ईरान में महसा जैसे पालतू पशुओं के कई मालिक वास्तव में अपने पालतू पशुओं के भविष्य को लेकर बहुत चिंतित हैं.
वे कहती हैं, "मैं अपने 'बेटे' के लिए अनुमति मांगने को आवेदन देने की हिम्मत नहीं करूंगी. तब क्या होगा जब वे मेरे आवेदन को ख़ारिज़ कर देंगे? मैं उसे सड़क पर नहीं छोड़ सकती."(bbc.com)
कंज़र्वेटिव सांसदों ने पार्टी के नेता और ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री को चुनना शुरू कर दिया है.
टोरी सांसदों के दूसरे मतदान के बाद पाँच उम्मीदवार प्रधानमंत्री की रेस में बने हुए हैं. अगला मतदान सोमवार को होना है.
बोरिस जॉनसन कैबिनेट वित्त मंत्री रहे ऋषि सुनक दूसरे दौर की वोटिंग में भी 101 वोट के साथ सबसे आगे चल रहे हैं. पहले दौर की वोटिंग में उन्हें 88 वोट मिले थे.
वहीं पेनी मोर्डेंट, लिज़ ट्रस और केमी बडेनोच को भी बुधवार की वोटिंग में ज़्यादा वोट मिले हैं जबकि टॉम टुगेंडहट को पाँच वोट का नुकसान हुआ है. वे 37 वोट से 32 पर आ गए हैं.
ऋषि सुनक पहले नंबर पर बने हुए हैं. वे भारत के विख्यात उद्योगपति और इंफ़ोसिस कंपनी के संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति के दामाद हैं. उन्होंने अक्षता मूर्ति से साल 2009 शादी की थी.
ऋषि सुनक, बोरिस जॉनसन कैबिनेट में वित्त मंत्री थे. उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद देश की अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने का वादा किया है.
2015 से सुनक यॉर्कशर के रिचमंड से कंज़र्वेटिव सांसद चुने गए थे. वो नॉर्दलर्टन शहर के बाहर कर्बी सिग्स्टन में रहते हैं. उनके पिता एक डॉक्टर थे और माँ फ़ार्मासिस्ट थीं. भारतीय मूल के उनके परिजन पूर्वी अफ़्रीका से ब्रिटेन आए थे.
1980 में सुनक का जन्म हैंपशर के साउथहैम्टन में हुआ था और उनकी पढ़ाई ख़ास प्राइवेट स्कूल विंचेस्टर कॉलेज में हुई. इसके बाद वो ऑक्सफ़ोर्ड पढ़ाई के लिए गए, जहाँ उन्होंने दर्शन, राजनीति और अर्थशास्त्र की पढ़ाई की. ब्रिटेन के महत्वाकांक्षी राजनेताओं के लिए ये सबसे आज़माया हुआ और विश्वसनीय रास्ता है.
उन्होंने स्टैनफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में एमबीए की पढ़ाई भी की. राजनीति में दाख़िल होने से पहले उन्होंने इन्वेस्टमेंट बैंक गोल्डमैन सैक्स में काम किया और एक निवेश फ़र्म को भी स्थापित किया. ऋषि और अक्षता की दो बेटियां हैं.
सुनक ने यूरोपियन यूनियन को लेकर हुए जनमत संग्रह में इसे छोड़ने के पक्ष में प्रचार किया और उनके संसदीय क्षेत्र में यूरोपियन यूनियन छोड़ने के पक्ष में 55 फ़ीसदी लोगों ने मतदान किया था.
जुलाई 2019 में जॉनसन को सुनक ने वित्त मंत्रालय सौंपा था. इससे पहले वो जनवरी 2018 से जुलाई 2019 तक आवास, समुदाय और स्थानीय सरकार मंत्रालय में संसदीय अवर सचिव थे.
ऋषि सुनक कह चुके हैं कि उनकी एशियाई पहचान उनके लिए मायने रखती है. उन्होंने कहा था, "मैं पहली पीढ़ी का आप्रवासी हूँ. मेरे परिजन यहाँ आए थे, तो आपको उस पीढ़ी के लोग मिले हैं जो यहाँ पैदा हुए, उनके परिजन यहाँ पैदा नहीं हुए थे और वे इस देश में अपनी ज़िंदगी बनाने आए थे."
अपनी पत्नी के कर मामलों पर विवाद और लॉकडाउन नियमों के उल्लंघन के लिए जुर्माना लगने से उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची. ऋषि सुनक, बोरिस जॉनसन कैबिनेट छोड़ने वाले सबसे पहले कैबिनेट मंत्रियों में से एक थे.
द गार्डियन न्यूज़ वेबसाइट पर छपे एक लेख के मुताबिक़ पिछले महीने के विश्वास मत में बोरिस जॉनसन का समर्थन करने वाले टोरी सांसदों की संख्या की सटीक भविष्यवाणी करने वाले प्रोफेसर ने ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री के नाम को लेकर बयान दिया है.
लिवरपूल विश्वविद्यालय में ब्रिटिश राजनीति पढ़ाने वाले जोनाथन टोंगे ने कहा कि मुझे लगता है कि ऋषि सुनक अगले प्रधानमंत्री होंगे. उन्होंने कहा कि ये चुनाव 51/49 का रहेगा, क्योंकि लिज़ ट्रस को भी पार्टी से सदस्यों का अच्छा ख़ासा समर्थन हासिल है.
पेनी मोर्डेंट दूसरे नंबर पर हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री बनने पर ईंधन पर वैट कटौती और बढ़ती महंगाई के हिसाब से मध्यम आय वाले लोगों की आयकर सीमा बढ़ाने का वादा किया है.
उन्होंने साल 2019 में ब्रिटेन की पहली महिला रक्षा मंत्री का इतिहास रचा था. डेविड कैमरन सरकार में उनके पास आर्म्ड फोर्सेस मंत्री का ज़िम्मा था. पेनी मोर्डेंट का समर्थन करने वालों में एंड्रिया लेडसम और डेविड डेविस शामिल हैं.
कंजर्वेटिव पार्टी की यूथ विंग की प्रमुख बनने वाली पेनी मोर्डेंट 2010 में पोर्ट्समाउथ नॉर्थ के लिए सांसद बनी थीं.
लिज़ ट्रस तीसरे नंबर पर बनी हुई हैं. कैबिनेट मंत्री के तौर पर सरकार में सबसे अधिक समय लिज़ ट्रस ने बिताया है. प्रधानमंत्री की रेस में उन्होंने तत्काल कर कटौती, राष्ट्रीय बीमा में वृद्धि को वापस लेने की घोषणा की थी.
लिज़ ट्रस को बोरिस जॉनसन के वफ़ादार संस्कृति सचिव नादिन डोरिस और जैकब रिस-मोग, सुएला ब्रेवरमैन सहित अन्य लोगों का समर्थन हासिल हैं. वर्तमान में लिज ट्रस ब्रिटेन की विदेश मंत्री हैं.
लिज़ ट्रस विदेश मंत्री बनने वाली दूसरी महिला हैं, जिन्हें ईरान से नाजनीन जगारी-रैटक्लिफ की रिहाई करवाने का श्रेय दिया जाता है. वे पहली बार साल 2010 में दक्षिण पश्चिम नॉरफ़ॉक के सांसद के रूप में चुनी गई थी.
साल 2014 में कंजर्वेटिव कॉन्फ्रेंस में पनीर के आयात करने पर भाषण देने के लिए उनका मज़ाक उड़ाया गया था.
केमी बडेनोच चौथे नंबर पर हैं, जो पूर्व में लेवलिंग अप मंत्री रही हैं. केमी सॉफ्टवेयर इंजीनियर रही हैं. उन्होंने अपना बचपन अमेरिका और नाइजीरिया में बिताया है. शुरू में केमी ने बैंकिंग में काम किया और बाद में स्पेक्टेटर पत्रिका के निदेशक का पद भी संभाला.
2017 में सेफ्रॉन वाल्डेन के लिए सांसद बनने से पहले केमी लंदन असेंबली के लिए चुनी गई थीं.
केमी लेवलिंग अप मंत्री से पहले इक्वेलिटी मंत्री भी रही हैं. बोरिस जॉनसन का साथ छोड़ने वालों में केमी का नाम भी शामिल था.
टॉम टुगेंडहट पांचवे नंबर पर हैं. टॉम टुगेंडहट सांसद हैं. उनके पास मंत्री के तौर पर सबसे अधिक अनुभव है. वे कैबिनेट मंत्री भी रहे हैं. ऋषि सुनक की तुलना में टॉम टुगेंडहट ने सरकार में अधिक समय बताया है लेकिन वे लंबे समय तक कैबिनेट में नहीं रहे.
टॉम टुगेंडहट ने प्रधानमंत्री बनने पर राष्ट्रीय बीमा और ईंधन शुल्क में कटौती करने और दक्षिण पूर्व के बाहर निवेश बढ़ाने का वादा किया है. उन्होंने ईरान और अफगानिस्तान में टेरिटोरियल आर्मी के अफसर के रूप में अपनी सेवा दी है. सालों से इनके प्रधानमंत्री बनने को लेकर चर्चा होती रही है.
इन्हें पूर्व कैबिनेट मंत्री डेमियन ग्रीन, जेक बेरी और रहमान चिश्ती का समर्थन हासिल है. टॉम टुगेंडहट साल 2015 में कैंट में टोनब्रिज से सांसद चुने गए थे और जनवरी 2020 से कॉमन्स फॉरेन अफेयर्स सेलेक्ट कमेटी के अध्यक्ष हैं.
कैसे चुना जाता है ब्रिटेन का प्रधानमंत्री
उम्मीदवार को प्रधानमंत्री की रेस में क़दम रखने के लिए कम से कम 20 सांसदों के समर्थन की ज़रूरत थी जो पिछले मुक़ाबले की तुलना में अधिक है. नामांकन के बाद पहले मतदान की वोटिंग होती है, जिसमें 30 से कम वोट मिलने वाला उम्मीदवार रेस से बाहर हो जाता है.
पहले वोटिंग में जीतने वाले उम्मीदवार दूसरी वोटिंग में हिस्सा लेते हैं. इसमें जिस उम्मीदवार को सबसे कम वोट मिलते हैं वो बाहर हो जाता है. इसके बाद कई दौर का मतदान होता है.
टोरी सांसदों के वोटों का सिलसिला तब तक जारी रहेगा जब तक सिर्फ़ दो उम्मीदवार प्रधानमंत्री की रेस में नहीं रह जाते हैं.
आख़िर में कंजर्वेटिव पार्टी के सदस्य पोस्टल वोट डालते हैं और पार्टी के नेता का चुनाव करते हैं. विजयी उम्मीदवार पार्टी नेता के साथ साथ प्रधानमंत्री का पद भी संभालता है. यानी जो उम्मीदवार कंजर्वेटिव पार्टी के नेता के तौर पर चुना जाएगा वही ब्रिटेन का अगला प्रधानमंत्री होगा.
समर्थन ना मिलने पर रेस से बाहर
पूर्व स्वास्थ्य मंत्री साजिद जाविद और विदेश कार्यालय मंत्री रहमान चिश्ती और परिवहन मंत्री ग्रांट शाप्स शुरू में ही बाहर हो गए. उन्हें 20 सांसदों का समर्थन नहीं मिला जिसके चलते वे पहली वोटिंग में हिस्सा नहीं ले पाए.
इसके बाद बुधवार को हुई पहली वोटिंग में पूर्व विदेश मंत्री जेरेमी हंट और चांसलर नादिम ज़हावी को कम से कम टोरी सांसदों से 30 वोट नहीं मिले जिसके चलते वे दोनों बाहर हो गए.
वहीं गुरुवार को हुई दूसरी वोटिंग में अटॉर्नी जनरल सुएला ब्रेवरमैन को सबसे कम वोट मिले जिसके चलते वे भी बाहर हो गईं.
अहम तारीखें-
12 जुलाई - उम्मीदवारों के लिए नामांकन बंद - प्रत्येक को 20 सांसदों के समर्थन की जरूरत थी.
13 जुलाई - पहले दौर का मतदान - 30 से कम मतों वाले उम्मीदवार रेस से बाहर हो गए हैं.
14 जुलाई - दूसरे दौर का मतदान - सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवार रेस से बाहर हो गए हैं
18-21 जुलाई - दो उम्मीदवारों के रहने तक लगातार मतदान होगा
जुलाई/अगस्त - देश भर में अंतिम दो उम्मीदवारों के लिए पार्टी के सदस्य वोट करेंगे
5 सितंबर - नए पीएम की घोषणा
मॉस्को, 16 जुलाई | रूस के क्रास्नोडार शहर में एएन-2 विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने से एक पायलट और एक यात्री की मौत हो गई। समाचार एजेंसी तास ने स्थानीय आपातकालीन एजेंसी के हवाले से बताया कि शुक्रवार की रात लैंड करते समय विमान बिजली लाइन के खंभे से टकरा गया।
समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने तास के हवाले से बताया कि सूचना मिलते ही आग बुझाने वाले दस्ते और बचाव दल को दुर्घटनास्थल पर भेजा गया है।
(आईएएनएस)
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के सऊदी अरब दौर पर शुक्रवार को दोनों देशों के बीच ऊर्जा, निवेश, संचार और स्वास्थ्य क्षेत्र में 18 समझौते हुए हैं.
सऊदी अरब और अमेरिका 5जी नेटवर्क, उन्नत साइबर सुरक्षा और अंतरिक्ष अन्वेषण सहित कई भावी उद्योगों में सहयोग करेंगे.
अमेरिकी राष्ट्रपति सऊदी अरब के दौरे पर हैं. यहाँ उनकी शुक्रवार को सऊदी किंग सलमान और क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से मुलाक़ात हुई. इसके बाद दोनों देशों के बीच इन समझौतों की घोषणा की गई.
व्हाइट हाउस के एक बयान के मुताबिक़ दोनों देशों में हुआ एक समझौता स्थानीय स्तर पर खुले, वर्चुअल और क्लाउड-आधारित रेडियो एक्सेस नेटवर्क का इस्तेमाल करके सऊदी और अमेरिकी प्रौद्योगिकी कंपनियों को 5जी तकनीक के लिए जोड़ेगा.
सऊदी अरब ने कथित तौर पर जून में जी7 शिखर सम्मेलन में घोषित ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर एंड इन्वेस्टमेंट के लिए साझेदारी के तहत इस परियोजना में निवेश की प्रतिबद्धता जताई थी.
इसके अलावा साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में दोनों देश गंभीर ख़तरों और दुर्भावनापूर्ण गतिविधियों को साझा करने को लेकर पहले से मौजूद द्विपक्षीय संबंधों को विस्तार देंगे. बयान के मुताबिक़ ये क़दम दोनों देशों की साझा सुरक्षा को बढ़ाएगा.
अंतरिक्ष और स्वास्थ्य क्षेत्र में समझौता
वहीं, अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में मानव अंतरिक्ष उड़ान और स्पेस सेक्टर में वाणिज्यिक विकास को लेकर दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ाने को लेकर भी समझौता हुआ है.
सऊदी और अमेरिका के स्वास्थ्य मंत्रालय के बीच भी एक समझौता हुआ जो दोनों देशों की सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर प्रतिबद्धता को मज़बूत करेगा.
इस समझौते से क्षमता निर्माण, बीमारियों पर निगरानी, स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए सरकारी नीतियां और स्वास्थ्य सूचना प्रणाली में बेहतर सहयोग बनाएगा.
जो बाइडन ने बैठक को लेकर कहा कि उन्होंने किंग सलमान और क्राउन प्रिंस के साथ सऊदी अरब की सुरक्षा ज़रूरतों को लेकर भी बात की है.
वहीं, अमेरिका में राष्ट्रपति जो बाइडन का सऊदी दौरा विवाद का विषय बना हुआ है.
सऊदी अरब के पत्रकार और क्राउन प्रिंस के आलोचक जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या को लेकर एक वर्ग बाइडन की क्राउन प्रिंस से मुलाक़ात का विरोध कर रहा है. (bbc.com)
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पहली पत्नी इवाना ट्रंप की मौत के कारणों को लेकर जानकारी दी गई है.
न्यूयॉर्क सिटी मेडिकल एग्ज़ामिनर ऑफिस ने बताया कि इवाना ट्रंप की मौत शरीर के ऊपरी हिस्से में आईं गंभीर चोटों के कारण हुई थी. उनकी मौत एक दुर्घटना थी.
अमेरिकी मीडिया में आई रिपोर्ट के मुताबिक इवाना ट्रंप की मौत सीढ़ियों से गिरने से हुई थी. घटना वाले दिन 14 जुलाई को वो न्यूयॉर्क में अपने अपार्टमेंट में थीं.
इवाना ट्रंप का जन्म चेकोस्लोवाकिया में हुआ था. उन्होंने 1977 में डोनाल्ड ट्रंप से शादी की और 15 साल बाद 1992 में उनका तलाक हो गया.
अपनी पहली पत्नी की मौत पर डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट किया, ''वो अद्भुत, सुंदर और गज़ब की महिला थीं जिन्होंने एक बेहतरीन और प्रेरणादायक जीवन बिताया.''
डोनाल्ड ट्रंप और इवाना ट्रंप के तीन बच्चे हैं- डोनाल्ड जूनियर, इवांका और एरिक ट्रंप. (bbc.com)
श्रीलंका के क्रिकेटर चमिका करुणारत्ने ने बताया कि देश में जारी पेट्रोल की किल्लत की वजह से वो प्रैक्टिस तक नहीं कर पा रहे हैं. उन्होंने श्रीलंका की मदद के लिए भारत को धन्यवाद दिया है.
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 2019 में कदम रखने वाले चमिका करुणारत्ने ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा, ''एशिया कप और लंका प्रीमियर लीग इस साल आयोजित हो रही हैं. मैं नहीं जानता कि क्या होगा.''
''मुझे प्रैक्टिस के लिए कोलंबो और अलग-अलग जगहों पर जाना पड़ता है और क्लब क्रिकेट सीज़न भी चल रहा है. लेकिन, मैं दो दिन से प्रैक्टिस के लिए नहीं जा पाया हूं क्योंकि मुझे पेट्रोल के लिए लाइन में खड़ा होना पड़ा. तब जाकर 10 हज़ार रुपये का पेट्रोल भरवा पाया हूं जो मुश्किल से दो-तीन दिन ही चलेगा. मुझे नहीं पता कि आगे मैं क्या करूंगा क्योंकि लोग कह रहे हैं कि अगले हफ़्ते पेट्रोल नहीं आने वाला है.''
श्रीलंका इस साल अगस्त में एशिया कप की मेजबानी करने जा रहा है. लेकिन, पूरा देश गंभीर आर्थिक संकट से गुज़र रहा है और पेट्रोल से लेकर खाने के सामने तक की भारी कमी हो गई है.
एशिया कप की तैयारियों को लेकर चमिका ने कहा, ''हम एशिया कप के लिए तैयार हैं और मुझे लगता है कि बडे़ इवेंट के लिए देश पर्याप्त तेल उपलब्ध कराएगा. ऑस्ट्रेलिया के साथ मैच बहुत अच्छा रहा. एशिया कप की तैयारियां भी चल रही हैं.''
क्या मौजूदा सरकार मसले को सुलझा पाएगी? इस पर चमिका ने कहा, ''मुझे पता नहीं है, मैं इसके लिए कोई जवाब नहीं दे रहा हूं. लेकिन, अभी स्थितियां ख़राब हैं. लोगों को सही जगह के लिए सही व्यक्ति को चुनना होगा तो स्थितियां बेहतर होंगी.''
चमिका करुणारत्ने ने भारत की मदद के लिए कहा, ''भारत हमारे लिए भाई की तरह है और वो हमारी काफ़ी मदद कर रहे हैं. मैं उन्हें इसके लिए बहुत धन्यवाद करता हूं. हम जानते हैं कि हम बड़ी परेशानी में हैं और भारत ने हमेशा हमारा साथ दिया है. हमारा समृद्ध इतिहास रहा है. हम आगे और बेहतर होंगे.'' (bbc.com)
सियोल, 16 जुलाई | अमेरिका के एक वरिष्ठ अधिकारी ने उद्योग और सरकारी अधिकारियों को उत्तर कोरियाई लोगों को काम पर रखने से जुड़े जोखिमों के बारे में जानकारी दी है, जो सूचना और प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र में काम करने वाले तीसरे देश के नागरिक हैं। यह जानकारी स्टेट डिपार्टमेंट ब्यूरो ने दी। ब्यूरो ऑफ इंटरनेशनल सिक्योरिटी एंड नॉनप्रोलिफरेशन के सहायक सचिव सीएस एलियट कांग ने गुरुवार को (वाशिंगटन समय) उन अधिकारियों से मुलाकात की।
सूचना स्टेट डिपार्टमेंट ब्यूरो ने ट्वीट किया और डेटा चोरी, कानूनी परिणामों और प्रतिष्ठित नुकसान समेत जोखिमों की चेतावनी दी।
समाचार एजेंसी योनहाप के अनुसार, चेतावनी तब आई, जब सोल और वाशिंगटन प्योंगयांग के भड़काऊ गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए सुरक्षा समन्वय बढ़ा रहे हैं।
ब्यूरो ने ट्वीट किया, "वे अत्यधिक कुशल उत्तर कोरियाई आईटी कार्यकर्ता डीपीआरके शासन और बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रमों के लिए राजस्व उत्पन्न कर रहे हैं।"
डीपीआरके का मतलब उत्तर का आधिकारिक नाम, डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया है।
इसमें कहा गया है, "वे अक्सर अमीर देशों को निशाना बनाते हैं, जहां वेतन सबसे अधिक होता है।"
ब्यूरो ने प्योंगयांग के साथ हुई वाशिंगटन की निरंतर बातचीत का भी जिक्र किया। साथ ही उत्तर की दुनिया भर में अवैध राजस्व-सृजन गतिविधियों को बाधित करने की अपनी प्रतिबद्धता को भी रेखांकित किया। (आईएएनएस)
संयुक्त राष्ट्र/जिनेवा, 16 जुलाई। कोरोना वायरस के ज्यादा संक्रामक स्वरूप के उभरने, प्रतिरक्षा को भेदने और अस्पताल में भर्ती होने की बढ़ती दर को लेकर चिंताओं के बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की मुख्य वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन ने आगाह किया कि कोविड-19 की नयी लहरों के लिए तैयार रहना चाहिए।
ऐसे साक्ष्य लगातार मिल रहे हैं कि ओमीक्रोन के उपस्वरूप- बीए.4 और बीए.5 टीका ले चुके लोगों को भी संक्रमित कर रहे हैं। स्वामीनाथन ने बृहस्पतिवार को ट्वीट किया, ‘‘हमें कोविड-19 की नयी लहरों के लिए तैयार रहना चाहिए। वायरस का प्रत्येक स्वरूप और संक्रामक तथा प्रतिरक्षा को भेदने वाला होगा। ज्यादा लोगों के संक्रमित होने से बीमारों और अस्पतालों में भर्ती मरीजों की संख्या बढ़ेगी। सभी देशों के पास आंकड़ों के आधार पर उभरते हालात से निपटने की योजना होनी चाहिए।’’
स्वामीनाथन ने ‘वर्ल्ड बैंक ग्रुप’ में वरिष्ठ सलाहकार फिलिप शेलेकंस के ट्वीट के जवाब में यह बात कही। शेलेकंस ने कहा, ‘‘हम कोविड-19 की मृत्यु दर में वैश्विक स्तर पर बदलाव देख रहे हैं। महीनों तक मृत्यु दर में कमी आने के बाद, यह फिर से बढ़ने लगी है।’’ उन्होंने कहा कि यह हैरानी की बात नहीं है क्योंकि संक्रमण को नियंत्रित करने के प्रति ढिलाई वाला दृष्टिकोण अपनाया जा रहा और वैश्विक स्तर पर टीकाकरण कार्यक्रम भी सुस्त है।
शेलेकंस ने कहा कि उच्च आय वाले देशों और मध्यम आय वाले देशों में भी महामारी फैल रही है। उन्होंने उल्लेख किया कि उच्च आय वाले देशों में अमेरिका, फ्रांस, इटली, जर्मनी और जापान ‘‘वैश्विक महामारी के उभार के वाहक बन रहे जबकि मध्यम आय वाले देशों में ब्राजील अग्रणी है।
उन्होंने कहा, ‘‘मृत्यु दर तेजी से बढ़ने लगी है।’’ शेलेकंस ने कहा कि वैश्विक मृत्यु दर के मामले में अमेरिका और ब्राजील सबसे आगे हैं।
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस अदनोम घ्रबेयिसस ने इस सप्ताह की शुरुआत में संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि वह चिंतित हैं कि कोविड-19 के बढ़ रहे मामले स्वास्थ्य प्रणालियों और स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों पर और दबाव डाल रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मैं मौतों के बढ़ते मामलों को लेकर भी चिंतित हूं।’’
डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि चार जुलाई से 10 जुलाई के सप्ताह के दौरान कोविड-19 के 57 लाख नए मामले आए। इससे पिछले सप्ताह आए मामलों की तुलना में छह प्रतिशत की वृद्धि हुई। चार जुलाई से 10 जुलाई के सप्ताह में 9800 से ज्यादा लोगों की संक्रमण से मौत हुई। (भाषा)
(अदिति खन्ना) लंदन, 16 जुलाई। ब्रिटेन के नये प्रधानमंत्री के लिए दौड़ के गति पकड़ने के बीच कार्यवाहक प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने अपने सहयोगियों से कथित तौर पर कहा कि ‘‘किसी का भी समर्थन कीजिए, लेकिन ऋषि सुनक का नहीं।’’ मीडिया में आई एक खबर में यह जानकारी दी गई।
सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव पार्टी के जॉनसन ने सात जुलाई को पार्टी के नेता के तौर पर इस्तीफा दे दिया था।
‘द टाइम्स’ अखबार की खबर में कहा गया है कि उन्होंने पार्टी का नेतृत्व हासिल करने की दौड़ में पिछड़ गये नेताओं से अनुरोध किया है कि वे पूर्व वित्त मंत्री एवं चांसलर सुनक का समर्थन नहीं करें, जो जॉनसन के अपनी ही पार्टी में समर्थन खोने के लिए जिम्मेदार हैं।
एक सूत्र ने बताया कि जॉनसन विदेश मंत्री लिज ट्रस का समर्थन कराने को इच्छुक नजर आ रहे हैं, जिनका अनुमोदन उनके (जॉनसन के) कैबिनेट सहयोगियों जैकब रीस-मोग और नैडीन डोरिस ने किया है।
जॉनसन ने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर पेनी मोरडाउंट के लिए भी कथित तौर पर विकल्प खुले रखे हैं। मोरडाउंट कनिष्ठ व्यापार मंत्री हैं।
खबर के मुताबिक, पूर्व चांसलर के इस्तीफे को अपने साथ कथित तौर पर विश्वासघात के रूप में देख रहे जॉनसन और उनका खेमा ‘किसी का भी समर्थन कीजिए, लेकिन ऋषि सुनक का नहीं’ के रूप में एक गुप्त अभियान चला रहा है। उल्लेखनीय है कि वित्त मंत्री पद से उनके इस्तीफे ने 10 डाउनिंग स्ट्रीट से जॉनसन की विदाई सुनिश्चित कर दी।
अखबार ने एक सूत्र को उद्धृत करते हुए कहा, ‘‘पूरी 10 डाउनिंग स्ट्रीट टीम ऋषि से नफरत करती है। वे उन्हें (जॉनसन को) अपदस्थ करने के लिए साजिद जाविद को जिम्मेदार नहीं ठहरा रहे हैं। वे ऋषि को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। उन्हें लगता है कि वह महीनों से इसकी साजिश रच रहे थे। ’’
गौरतलब है कि सुनक संसद के टोरी (कंजर्वेटिव) सदस्यों द्वारा किये गये प्रथम दो चरण के मतदान में विजेता रहे हैं।
इस बीच, जॉनसन के एक सहयोगी ने इस दावे को खारिज कर दिया कि वह (जॉनसन) सुनक के अलावा किसी को भी अपना उत्तराधिकारी बनते देखना चाहते हैं। हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि निवर्तमान प्रधानमंत्री सुनक के विश्वासघात करने से नाराज हैं।
वहीं, सुनक के खेमे ने इन सुझावों को तवज्जो नहीं देने की कोशिश की कि उनका मजबूत समर्थन टोरी सांसदों के अतिरिक्त नहीं है। सुनक का समर्थन कर रहे टोरी सांसद रिचर्ड होल्डेन ने कहा, ‘‘उम्मीद है कि हम आगे बढ़ेंगे। ’’ (भाषा)
(गुरदीप सिंह)
सिंगापुर, 16 जुलाई। श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे की सिंगापुर की निजी यात्रा को लेकर पूर्व राजनयिकों और शिक्षाविदों ने अपनी-अपनी राय रखी है। किसी ने इसे किसी देश का नागरिक होने के कारण सामान्य पर्यटन यात्रा बताया तो किसी ने कहा कि सिंगापुर एक लोकप्रिय पारगमन स्थल है जो आम तौर पर अपने पर्यटकों को लौटाता नहीं है।
राजपक्षे कोलंबो से मालदीव जाने के बाद निजी यात्रा पर सिंगापुर पहुंचे हैं।
‘टुडे’ अखबार में शनिवार को प्रकाशित एक खबर के अनुसार, हालांकि राजपक्षे ने शरण देने का अनुरोध नहीं किया है लेकिन पासपोर्ट धारक के तौर पर सिंगापुर की यात्रा करना उनका अधिकार है।
विदेश मंत्रालय में पूर्व स्थायी सचिव बिलाहरी कौशिकन ने कहा कि कई देशों के नागरिक अपनी वीजा की शर्तों के अनुसार विभिन्न समयावधि के लिए सिंगापुर आ सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘वैध पासपोर्ट रखने वाला श्रीलंका का कोई भी नागरिक कोई खास अनुमति लिए बगैर निश्चित समय के लिए सिंगापुर आ सकता है...वह सामान्य व्यक्ति हैं, एक राष्ट्रपति अपने देश का नागरिक होता है।’’
उन्होंने कहा कि अपवाद भी हैं, जैसे कि कहीं वह व्यक्ति वांछित अपराधी तो नहीं है। कौशिकन ने कहा, ‘‘वह किसी भी अपराध में वांछित नहीं हैं, उनके लिए इंटरपोल ने कोई रेड नोटिस जारी नहीं किया तो हम उन्हें क्यों न आने दें?’’
सिंगापुर की वीजा वेबसाइट से पता चलता है कि राजपक्षे की तरह श्रीलंकाई नागरिक पर्यटन, परिवार एवं दोस्तों से मिलने तथा इलाज के लिए 30 दिनों से कम अवधि के लिए सिंगापुर की वीजा मुक्त यात्रा कर सकते हैं।
‘नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर’ में राजनीतिक विज्ञान पढ़ाने वाले सहायक प्रोफेसर चोंग जा इयान ने कहा कि सिंगापुर को लोकप्रिय पारगमन स्थल के तौर पर देखा जाता है, जो आम तौर पर अपने पर्यटकों को लौटाता नहीं है।
‘टुडे’ अखबार ने प्रोफेसर चोंग के हवाले से कहा, ‘‘हम प्रमुख पारगन और परिवहन स्थल हैं, जहां लोग आते-जाते रहते हैं। जब तक कि कोई बड़ी राजनीतिक वजह या कोई अन्य बात न हो तब तक किसी को आने से रोकने का कोई मतलब नहीं है।’’
प्रोफेसर चोंग ने कहा कि जिन लोगों को शरण दी जाती है, उन पर सामान्य तौर पर यह पाबंदी नहीं होती कि वे कब तक देश में रहेंगे।
गृह मंत्री के. षणमुगम ने पिछले सात सितंबर में संसद में कहा था, ‘‘छोटे, घनी आबादी वाले देश के साथ ही सीमित जमीन होने के कारण सिंगापुर राजनीतिक शरण या शरणार्थी का दर्जा मांगने वाले किसी भी व्यक्ति के अनुरोध को स्वीकार करने की स्थिति में नहीं है।’’
राजपक्षे के बृहस्पतिवार रात को चांगी हवाईअड्डे पर पहुंचने के बाद सिंगापुर के विदेश मंत्रालय ने पुष्टि की कि श्रीलंकाई नेता को निजी यात्रा पर शहर में प्रवेश करने की अनुमति दी गयी है।
विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘‘उन्होंने शरण नहीं मांगी है और न ही उन्हें कोई शरण दी गयी है। सिंगापुर आम तौर पर शरण देने के अनुरोधों को स्वीकार नहीं करता है।’’
गौरतलब है कि राजपक्षे ने सिंगापुर पहुंचने के तुरंत बाद राष्ट्रपति पद से अपना इस्तीफा पत्र ईमेल के जरिए भेज दिया था।
नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (एनटीयू) के सहायक प्रोफेसर दिलान लोह ने कहा कि शरणार्थियों और शरण मांगने वालों पर सिंगापुर की मौजूदा स्थिति यह है कि उसके पास जगह की कमी है और लोगों के अचानक आने से उसके समाज का सामाजिक और सुरक्षा संतुलन बिगड़ सकता है। उन्होंने कहा कि इसकी कोई गुंजाइश नहीं हो सकती क्योंकि इससे भविष्य के लिए एक मिसाल कायम हो जाएगी।
वहीं, टुडे अखबार की खबर में कहा गया है कि पूर्व में कई मामले रहे हैं जिनमें राजनीतिक नेता निर्वासन में या इलाज के लिए सिंगापुर आए।
‘बैंकॉक पोस्ट’ की एक खबर के अनुसार, उदाहरण के लिए थाईलैंड के पूर्व प्रधानमंत्री थाकसिन शिनवात्रा को कई बार सिंगापुर में देखा गया। वह निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं और अपने देश में विभिन्न अपराधों का सामना कर रहे हैं।
जिम्बाब्वे के आजादी के बाद के पहले राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे 2019 में इलाज कराने सिंगापुर आए थे और यहीं के एक अस्पताल में उनका निधन हो गया था। उन्होंने करीब चार दशकों तक जिम्बाब्वे पर शासन किया और 2017 में उन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया गया।
मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति इब्राहिम नासिर भी 2008 में 82 वर्ष की उम्र में अपने निधन तक सिंगापुर में रहे थे। वह 1978 से सिंगापुर में स्वनिर्वासन में रह रहे थे। (भाषा)
हार्डिन (अमेरिका), 16 जुलाई। अमेरिका में मोंटाना राज्य के इंटरस्टेट 90 पर शुक्रवार शाम को कम से कम 20 वाहनों के आपस में टकरा जाने के कारण पांच लोगों की मौत हो गयी है।
प्राधिकारियों ने बताया कि इस हादसे में बड़ी संख्या में लोग हताहत हुए हैं।
गर्वनर ग्रेग गियाफोर्ते ने ट्वीट किया, ‘‘मैं हार्डिन के समीप बड़ी संख्या में लोगों के हताहत होने की खबरों से बहुत दुखी हूं। कृपया मेरे साथ पीड़ितों और उनके प्रियजनों के लिए दुआ कीजिए। हम प्रथम बचावकर्ताओं की उनकी सेवा के लिए आभारी हैं।’
समाचार चैनल ‘केटीवीए’ की खबरों के अनुसार, यह हादसा हार्डिन से पांच किलोमीटर दूर पश्चिम में हुआ।
मोंटाना राजमार्ग गश्ती दल के सर्जेंट जे नेल्सन ने ‘एमटीएन’ न्यूज को बताया कि घटना की सूचना शाम करीब साढ़े चार बजे मिली और प्रथम बचावकर्ता 90 मिनट बाद घटनास्थल पर पहुंचे। (एपी)
वाशिंगटन, 16 जुलाई। अमेरिका में गर्भपात संबंधी कानून बहाल करने को लेकर डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से कांग्रेस के निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव में पेश किए गए एक विधेयक को मंजूरी मिल गई है। हालांकि, इस विधेयक के कानून बनने की संभावना कम है क्योंकि इसके लिए उच्च सदन सीनेट से भी मंजूरी चाहिए।
डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव में पेश किया गया विधेयक 210 के मुकाबले 219 मतों से पारित हुआ। सदन में एक और प्रस्ताव पर मतदान होना है जिसके तहत गर्भपात के लिए किसी अन्य प्रांत में जाने वाली महिलाओं को संरक्षण प्रदान किया जाएगा।
दरअसल, अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने रो बनाम वेड मामले से संबंधित फैसले को पलटते हुए गर्भपात कराने के महिलाओं के संवैधानिक अधिकार को निरस्त करने का फैसला सुनाया था। उसके बाद देश भर में प्रदर्शन हो रहे हैं।
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न प्रांतों को अपनी सुविधा के मुताबिक गर्भपात संबंधी कानून लागू करने का आदेश दिया था। (एपी)
-एलमुदेना दा काबो
पूरी दुनिया में ये पॉडकास्ट में उफान का दौर है. प्रसारण की इस विधा में लगातार नए प्रोडक्ट आ रहे हैं और ये काफी पॉपुलर भी हो रहे हैं.
अब वॉशिंग मशीन की आवाज़, फैन चलने या बारिश की आवाज़ की रिकार्डिंग से बने पॉडकास्ट से खासी कमाई की जा रही है.
ऐसी आवाज़ों को व्हाइट नॉइज कहा जाता है. इसे सुकून भरी जिंदगी जीने का एक नया तरीका माना जा रहा है.
व्हाइट नॉइज पॉडकास्टर शांति की एक दुनिया रचते हैं. वे हजारों श्रोताओं को ध्वनि प्रदूषण से दूर ध्यान केंद्रित करने, शांत रहने और उनके लिए सुकून भरी नींद लाने में मदद कर रहे हैं.
पॉपुलर वीडियो और ऑडियो प्लेटफॉर्म पर उनकी लिस्ट देख कर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ये किस कदर लोकप्रिय हो रहे हैं.
यूट्यूब पर 'सेलेस्टियल व्हाइट नॉयज' के पांच करोड़ सत्तर लाख व्यूज़ हैं वहीं 'व्हाइट नॉइज फॉर बेबीज टु स्लीप'' के दो करोड़ अस्सी लाख व्यूज.
अब इस तरह की आवाज़ों के ज्यादा से ज्यादा पॉडकास्ट आ रहे हैं. ये आवाज़ें दूसरी आवाज़ों को ढंकने या उनके ऊपर लगाए जाने के लिहाज से आदर्श हैं.
अमूमन कारों, कंस्ट्रक्शन या कुत्ते को भौंकने की आवाज को ढंकने के लिए इनका इस्तेमाल किया जाता है.
टीएमसॉफ्ट्स व्हाइट नॉइज स्लीप साउंड्स नाम के पॉडकास्ट के लिए पिछले 12 साल से व्हाइट नॉइज रिकॉर्ड करने वाले अमेरिकी कारोबारी टोड मूर कहते हैं, "मेरा मानना है कि हर आदमी अच्छी नींद के तरीके खोजता है. कुछ लोग ध्यान करते हैं. लेकिन मैंने अच्छी नींद के लिए सबसे अच्छा तरीका खोजा. मेरे हिसाब से व्हाइट नॉइज और प्रकृति में मौजूद आवाज़ अच्छी नींद लाने का सबसे कारगर तरीका हैं."
मूर ने 2009 में व्हाइट नॉइज लाइट नाम से एक फ्री ऐप उतारा था. लेकिन अब ऐपल स्टोर पर ही इसके 1,70,000 रिव्यू हैं.
मूर कहते हैं, "व्हाइट नॉइज ऐप बनाने कि विचार उस दौर में आया, जब आईफोन आया और इसने ऐप स्टोर लॉन्च किया. चूंकि मैं हमेशा पंखे के नीचे सोता था इसलिए सबसे पहले मेरे दिमाग में इसी की आवाज़ रिकॉर्ड करने का विचार आया. मैं इसे आईफोन में रिकॉर्ड कर अपने साथ ले जा सकता था."
वह कहते हैं, "अब मैं एयर कंडीशनर जैसी दूसरी तरह की आवाजें रिकॉर्ड करने लगा. मैं गार्डन में जाता और झींगुरों की आवाज़ रिकॉर्ड करता. बारिश और प्रकृति की दूसरी आवाज़ें भी रिकॉर्ड करने लगा. इसके बाद मैं इन्हें ऐप में डालने लगा. शुरू में ये काफी सरल था. मेरे पास दस तरह की आवाजें थीं और मैं सारी रात इन्हें सुन सकता था."
मूर ने बताया, "बगैर किसी बाधा के दस घंटे तक ऑडियो को सुनना इसका सबसे मुश्किल हिस्सा था. इसने मेरा काफी वक्त लिया. लेकिन एक बार जब मैंने इसे पूरा कर लिया तो मुझे सिर्फ एक जगह डालना भर था. शुरू में मैं इससे पैसा बनाने की कोशिश नहीं कर रहा था. मुझे लग रहा था शायद यह किसी के लिए मददगार साबित होगा. इसलिए मैंने इसे फ्री डाउनलोड मोड में डाल रखा था."
मूर कहते हैं, "जल्दी ही यह नंबर वन ऐप हो गया. हर कोई इसे डाउनलोड कर इसे सुन रहा था. मुझे सैकड़ों ई-मेल रहे थे. फिर मैंने पॉडकास्ट शुरू किया."
इस बीच लोगों के बीच पॉडकास्ट को लेकर दिलचस्पी बढ़ती जा रही थी. इसे देखते हुए मूर ने अपने व्हाइट नॉइज रिकॉर्डिंग को पॉडकास्ट में डालना शुरू कर दिया.
मूर कहते हैं, "हम हर हफ्ते नए साउंड डालते हैं. यह ऐप में कंप्लीमेंटरी है. हमारा मानना है कि इससे ज्यादा से ज्यादा लोग ऐप के नजदीक आएं. हम इस तरह ठीक-ठाक पैसा कमा रहे हैं. हमें लोगों से खासी तवज्जो मिलती है लेकिन हमें उम्मीद नहीं थी कि हमें हर दिन 50 हजार श्रोताओं को जोड़ लेंगे."
ट्विटर ने ब्लॉक करने के आदेशों को हाईकोर्ट में दी चुनौती, मंत्री बोले- क़ानून मानना होगा
फायदे का धंधा
पॉडकास्टिंग तेजी से बढ़ता हुआ धंधा बन गया है. अब उनकी कंपनी में वह खुद पांच लोगों के साथ काम कर रहे हैं. तीन फुल टाइम कर्मचारी है. अब ये काफी पैसा देना वाला बिजनेस है.
मूर कहते हैं, "हम अच्छा पैसा कमा रहे हैं."
हालांकि वह अपनी कमाई का ज्यादा ब्योरा देने से बच रहे हैं.
ब्लूमबर्ग में प्रकाशित एक आर्टिकल के मुताबिक एंकर उनके पॉडकास्ट के लिए कॉमर्शियल लोड को जिम्मा संभालते हैं और हर 1000 बार बजने पर उन्हें 12.25 डॉलर मिलते हैं. यानी हर महीने उनके 18,375 डॉलर बनते हैं. यह सिर्फ पॉडकास्ट की शुरुआत समेत दूसरे विज्ञापनों के हैं. इसके अलावा ऐप से भी मूर को पैसा मिलता है. इस पर पंद्रह लाख एक्टिव यूजर हैं. मूर अपने ऐप पर 2.99 डॉलर में प्रो वर्जन भी बेचते हैं.
इतना भी आसान नहीं है पैसा बनाना
लेकिन पॉडकास्ट को मोनेटाइज करना यानी इससे पैसे बनाने का काम जटिल भी है. स्पैनिश पॉडकास्टर और यस वी कास्ट के फाउंडर फ्रांसिस्को इजिजक्विजा कहते हैं हर कोई पैसा नहीं बना पाता. सिर्फ कुछ ही पॉडकास्टर रेवेन्यू जुटा पाते हैं.
हालांकि उन्होंने बीबीसी से कहा, "इस वक्त पॉडकास्टिंग का जो ट्रेंड चल रहा है, उसके लिए ज्यादा फंड और ज्यादा संसाधन उपलब्ध है इसलिए नए फॉरमेट बनाने और व्हाइट नॉइज जैसे नए कंटेट डेवलप करने की संभावना है."
वह कहते हैं, "पॉडकास्ट शुरू करने वाले 99 फीसदी लोग यूट्यूब यू ट्यूब की तरह ब्लॉग से शुरुआत करते हैं. शुरू में वो पैसा नहीं कमाते हैं. उन्हें पैसा कमाने में काफी वक्त लगेगा."(bbc.com)
अमेरिका के हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव ने एक संशोधन पास किया है जो 'काउंटरिंग अमेरिकाज़ ऐडवर्सरीज़ थ्री सैंक्शंस ऐक्ट' या 'काट्सा कानून' के कड़े प्रावधानों से भारत को छूट देता है.
भारतीय मूल के कांग्रेसमैन रो खन्ना ने इस संशोधन को लिखा और पेश किया था. इसके पक्ष में 330 और विरोध में 99 मत पड़े.
काट्सा क़ानून के तहत अमेरिका उन देशों पर प्रतिबंध लगा सकता है जिन्होंने रूस से हथियार खरीदे हैं.
भारत ने रूस से आधुनिक डिफेंस सिस्टम 'एस-400' खरीदा था, जिसके बाद कयास लगने लगे थे कि अमेरिका भारत पर भी इस कानून के अंतर्गत प्रतिबंध लगा सकता है.
रो खन्ना के दफ़्तर से जारी एक वक्तव्य में कहा गया, "चीन के तेज़ होते आक्रमण को देखते हुए अमेरिका को भारत के साथ ज़रूर खड़ा होना चाहिए. भारत कॉकस के वाइस चेयर होने के नाते मैं दोनो देशों की भागीदारी को मज़बूत करने के लिए काम करता रहा हूं और इसलिए भी ताकि भारत चीन के साथ अपनी सीमा पर खुद की सुरक्षा कर पाए."
अमरीका में भारत की पूर्व राजदूत मीरा शंकर ने इस संशोधन को महत्वपूर्ण बताया है.
मीरा शंकर ने कहा कि उन्होंने संशोधन की कॉपी नहीं देखी है लेकिन हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव में ये संशोधन पास होने के बाद सेनेट में जाएगा जहां इस पर बहस होगी. वहां पर इसे पास किया जा सकता है या ब्लॉक किया जा सकता है, या उसमें बदलाव हो सकते हैं.
अगर ये संशोधन बदलाव के बाद सेनेट में पास हो जाता है, उसके बाद ये फिर हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव के पास आएगा जहां संशोधन के दोनो प्रारूपों में सामंजस्य बिठाना होगा, और उसके बाद संशोधन का आखिरी प्रारूप सामने आएगा जिसके बाद इसे राष्ट्रपति बाइडन के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा जाएगा.
अगर सेनेट इस प्रारूप को खारिज कर देता है तो ये प्रक्रिया दोबारा शुरू करनी होगी.
मीरा शंकर कहती हैं कि अगर दोनो दलों, रिपब्लिकन और डेमोक्रैट पार्टी के सदस्यों ने इस हाउस में पास करने में भूमिका निभाई है, तो इसके सेनेट मे पास होने के आसार बढ़ जाते हैं.
इस संशोधन की अहमियत पर मीरा शंकर कहती हैं, "भारत के लिए मुश्किल है कि आपको दूसरा देश बताए कि आप किसी तीसरे देश के साथ कैसे संबंध रखें. इसमें पूर्व की बातें हैं. अभी की बातें भी हैं जब हमारा 60 प्रतिशत रक्षा उपकरण रूस से आता है. इसके अलावा इसमें रूस के साथ सामरिक रिश्तों की भी बात आती है. भारत के लिए ये ज़रूरी है कि हम अमेरिका के साथ अपने रिश्तों का विस्तार करें. साथ ही साथ हम इस बात की जगह बचा कर रखें कि हम किसी और देश के साथ रिश्तों को भी आगे बढ़ा सकें."
उनका जन्म फ़िलाडेल्फिया में हुआ. वो मध्यवर्गीय परिवार से आते हैं. उनके माता-पिता 70 के दशक में बच्चों की बेहतर ज़िंदगी के लिए भारत से अमेरिका आए थे.
खन्ना के पिता एक केमिकल इंजीनियर थे, और मां एक स्कूल टीचर. उनके दादा ने आज़ादी की लड़ाई में लाला लाजपत राय के साथ काम किया और कई साल जेल में भी बिताए थे.
कांग्रेस में आने से पहले उन्होंने स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी, सैंटा क्लारा यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र पढ़ाया. राष्ट्रपति ओबामा के प्रशासन में वो डिपार्टमेंट ऑफ़ कॉमर्स में डेप्युटी असिस्टेंट सेक्रेटरी के पद पर रहे.
वो भारत अमेरिका संबंधों के मज़बूत समर्थक रहे हैं. (bbc.com)
10 साल पहले मारियो द्रागी ने "चाहे जैसे भी हो" वाला रुख अपनाया और यूरो को बचा लिया लेकिन महामारी से उबरने के बाद इटली कर्ज संकट के घेरे में है. इस बार बेबसी के आलम में प्रधानमंत्री द्रागी ने इस्तीफा दे दिया है.
यूरोपीय सेंट्रल बैंक यानी ईसीबी के पूर्व प्रमुख और अब इटली के प्रधानमंत्री इटली को आर्थिक संकट से बचाने में कितने कारगर होंगे इसे लेकर सवाल उठ रहे हैं. आर्थिक संकटों का सामना कर रहे इटली को बचाने लिए द्रागी ने पुरजोर कोशिश की है और उसके कुछ अच्छे नतीजे हुए मगर ताजा संकट ज्यादा बड़ा बन कर उभरा है. 10 साल पहले की तरह निवेशक फिर पूछ रहे हैं कि क्या यूरोजोन के देश सार्वजनिक कर्ज को बढ़ाते रह सकते हैं. महामारी के दौर में यह कर्ज काफी ज्यादा बढ़ गया और महंगा भी क्योंकि यूरोपीय सेंट्रल बैंक ब्याज की दरें बढ़ाने की तैयारी में है. इस बार संकट की वजह इटली में आर्थिक विकास की कमी है. ग्रीस, पुर्तगाल, आयरलैंड और स्पेन अत्यधिक खर्चों की वजह से जिस संकट में 10 साल पहले घिर गये थे वैसे हालात नहीं है, लेकिन इटली की अस्थिरता और बढ़ गई है.
मारियो द्रागी का इस्तीफा
गुरुवार को गठबंधन सरकार में शामिल एक पार्टी ने विश्वास मत पर द्रागी का साथ देने से इनकार किया तो द्रागी ने इस्तीफा दे दिया. हालांकि राष्ट्रपति ने उनका इस्तीफा मंजूर नहीं किया है और बुधवार को द्रागी संसद को संबोधित करेंगे. उनका भविष्य फिलहाल अधर में है. 74 साल के द्रागी को यूरोप में वीडियो गेम के सितारे सुपर मारियो का खिताब दिया जाता है. अपने लंबे करियर में उन्होंने आर्थिक संकटों को हल करने वाले के रूप में पहचान अर्जित की है. इटली के प्रधानमंत्री के रूप में 17 महीने के करियर में उन्होंने देखा है कि देश में कर्ज का खर्च किस तरह से बढ़ता जा रहा है. दो महीने पहले उन्होंने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा था, "यह दिखाता है कि मैं हर घटना के लिए कवच नहीं हूं. मैं भी एक इंसान हूं इसलिए कुछ चीजें होंगी."
इटली पर कैसा संकट
इटली पर फिलहाल 2.5 लाख करोड़ यूरो का सरकारी कर्ज है. यह चार दूसरे देशों के संयुक्त कर्ज से भी बड़ा है और इतना ज्यादा कि बेलआउट पैकेज देना भी संभव नहीं है. 10 साल पहले यूरोपीय सेंट्रल बैंक के प्रमुख के रूप में मारियो द्रागी ने बाजार को यह कह कर शांत किया था कि यूरो को बचाने के लिए "चाहे जो करना पड़े" करेंगे. यह संकेत था कि मुश्किल झेल रहे देशों के बॉन्ड जम कर खरीदे जायेंगे. यही हुआ भी.
26 जुलाई 2012 को कही उनकी बातों की गूंज आज भी सुनाई देती है, बाजार तुलनात्मक रुप से थोड़ा शांत है और उम्मीद की जा रही है कि यूरोपीय सेंट्रल बैंक कर्ज के बढ़ते खर्चों पर रोक लगायेगा. बॉन्ड खरीदने की एक नई योजना पर काम चल रहा है और इसके लिए भी बाजार की यही उम्मीदें हैं. हालांकि यह उपाय भी कुछ समय के लिए ही होगा. इटली जब तक यह भरोसा नहीं दिला देता कि वह अपने दो पैरों पर खड़ा हो सकता है तब तक यूरोपीय सेंट्रल बैंक की तरफ ही निवेशकों की नजर रहेगी. एलबीबीडब्ल्यू के प्रमुख अर्थशास्त्री मोरित्ज क्रेमर का कहना है, "असल समस्या है कि बीते दो दशकों से इटली का विकास के पैमाने पर प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है."
पर्याप्त सुधार नहीं
इटली को वैश्विक आर्थिक संकट के दौरान हाउसिंग के बुलबुला फूटने जैसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा और उसके बजट की समस्या भी चार दूसरे संकटग्रस्त देशों की तुलना में छोटी रही है. ऐसे में उसे ईसीबी, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और यूरोपीय आयोग की तिकड़ी से बेलआउट पैकेज मांगने की जरूरत नहीं पड़ी. हालांकि शायद अब उसे अपने इस कदम पर अफसोस हो रहा होगा.
अंतरराष्ट्रीय कर्जदाताओं की मदद और दबाव के कारण पुर्तगाल ने अपना बजट संभाल लिया, स्पेन और आयरलैंड ने अपने बैंकिंग सेक्टर को दुरूस्त कर लिया और यहां तक कि ग्रीस ने भी पेंशन सिस्टम, श्रम बाजार और प्रॉडक्ट रेग्यूलेशन को में सुधार कर लिया. इस तरह के कदमों ने इन देशों को अपना आर्थिक विकास बेहतर करने में मदद दी है.
इसके उलट इटली ने विकास में बेहतरी के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाये. हालांकि पेंशन सिस्टम, श्रम बाजार और द्रागी के शासन में धीमे न्याय तंत्र को सुधारने की दिशा में कुछ बदलाव हुए हैं.
इसके नतीजे में देश जो कभी संकटग्रस्त देशों में सबसे अच्छा माना जाता था वह बॉन्ड बाजार से लिए कर्जे पर सबसे ऊंची प्रीमियम चुका रहा है. उसके आगे सिर्फ ग्रीस है जिसने बीते दशक में दो बार डिफॉल्ट किया है और उसका दर्जा आज भी "जंक" का है.
कुछ दक्षिणपंथी पार्टियों की यूरो विरोधी नारेबाजी के कारण भी निवेशक किनारा कर रहे हैं. बेरेनबर्ग के अर्थशास्त्री होल्गर श्मिडिंग का कहना है, "द्रागी कोशिश कर रहे हैं, उन्होंने थोड़ा बहुत किया भी है लेकिन ना तो मैं और ना ही बाजार इस बात को लेकर अब भी निश्चिंत हो पा रहा है कि इटली में विकास का रुझान पर्याप्त रूप से मजबूत है."
द्रागी की बेबसी
ईसीबी के प्रमुख के रूप में द्रागी नियमित रूप से सरकारों के मौद्रिक और दूसरे सुधारों के महत्व पर जोर देते रहे हैं. हालांकि इटली के प्रधानमंत्री के रूप में उनका बहुत सारा समय आर्थिक नीतियों पर अलग अलग विचारों वाली पार्टियों में बीचबचाव करने में गुजर रहा है. टैक्स और पेंशन सुधार जैसे विवादित मुद्दे आये दिन उभर रहे हैं.
अगर वे इटली की मौजूदा राजनीतिक उठापटक से निकल जाते हैं तो भी भी सत्ताधारी गठबंधन विभाजनों की वजह से कमजोर होगा और 2023 के वसंत में आम चुनाव होने तक प्रधानमंत्री कुछ ज्यादा हासिल कर पायेंगे इसकी उम्मीद कम ही लोगों को है. द्रागी ने यूरोपीय संघ से 200 अरब यूरो की महामारी से उबरने के नाम पर धन पाने के लिए एक योजना तैयार की है. यूरोपीय संघ की बैठक में उन्होंने कथित सैकड़ों "लक्ष्यों और पड़ावों" वाली इस योजना को मजबूती से लागू करने की बात कही. हालांकि इनमें ज्यादातर विधानमंडल में छोटे स्तर के बदलाव ही हैं. इनमें से भी 527 तो 2026 में शुरू होंगे जब द्रागी का मौजूदा कार्यकाल खत्म हुए काफी समय बीत चुका होगा. मदद और सस्ते कर्ज के रूप में मिलने वाली यह रकम इटली की जीवनरेखा बन सकती है अगर वह अपने बजट को थोड़ा संभाल ले. हालांकि यूरोपीय संघ से मिलने वाली आर्थिक मदद को खर्च करने का उसका पुराना रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं है. पिछले बजट के साइकिल में वह यूरोपीय संघ से मिलने वाली मदद का महज आधा ही खर्च कर पाया. इस मामले में वह स्पेन के बाद सबसे खराब स्थिति में है.
इटली का संकट पुराना है
द्रागी और उनके पूर्ववर्तियों के लिए यह बात कही जा सकती है कि इटली का संकट वैश्विक आर्थिक संकट की तुलना में बहुत पुराना है. इटली में प्रति व्यक्ति जीडीपी आज 20 साल पहले की स्थिति से भी नीचे है. तब इटली सिर्फ फ्रांस और जर्मनी से नीचे थे. इस कालखंड में ग्रीस को छोड़ दूसरे सभी यूरोपीय देशों ने विकास कर लिया लेकिन यूरोपीय संघ में इटली का प्रदर्शन सबसे खराब रहा. इटली में उत्पादकता यानी एक घंटे के काम या फिर एक यूरो के निवेश से हासिल होने वाली आर्थिक उपज 1990 के दशक में बढ़नी बंद हो गई और उसके बाद से लगातार नीचे जा रही है.
इटली में दोराहे पर खड़े किसान
इन सब के पीछे तेजी से बूढ़ी होती आबादी, कुशल कामगारों की कमी, नौकरशाही, एक धीमा और लगभग बेकार हो चुका न्याय तंत्र, शिक्षा, बुनियादी ढांचे और नई तकनीकों में जरूरत से कम निवेश जैसे कई कारण हैं. कई और यूरोपीय देशों में भी इनमें से कुछ समस्यायें मौजूद हैं लेकिन ऐसा कोई नहीं जहां ये सारी समस्या एक साथ मौजूद हो वो भी इतने ही बड़े स्तर पर. कई अर्थशास्त्री इसके पीछे इटली के कारोबारियों की उस सोच को जिम्मेदार मानते हैं जिसकी वजह से वो कारोबार को परिवार के हाथों में ही बनाये रखते हैं और बाहरी निवेशकों के साथ मिल कर उसे आगे नहीं बढ़ाते. यूरोजोन में शामिल होने की वजह से इटली के पास अपनी मुद्रा के अवमूल्यन का विकल्प भी खत्म हो गया. कई दशकों तक इस उपाय के जरिये अपनी निर्यात की कीमत घटा कर इटली ने आर्थिक विकास को मजबूत बनाये रखा था. रोम की लुईस यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर फ्रांसेस्को साराकेनो कहते हैं, "हमने 1980 के दशक में विकास का गलत मॉडल चुन लिया. वैश्वीकरण के दौर में हम उभरते बाजारों से खर्च घटा कर होड़ लेने में जुट गये. इसकी बजाय जर्मनी ने उच्च गुणवत्ता के उत्पादन में निवेश का उदाहरण पेश किया."
एनआर/ओएसजे (रॉयटर्स)
जर्मन सेना के एक अधिकारी को एक या अधिक नेताओं पर हमले की योजना बनाने के आरोप में 5 साल 6 महीने के कैद की सजा सुनाई गई है. इस अधिकारी ने खुद को सीरियाई शरणार्थी के रूप में दिखाया ताकि आरोप शरणार्थियों पर लगे.
फ्रैंकफर्ट की अदालत में सजा सुनाये जाते वक्त खड़े गहरी दाढ़ी और चोटी वाले अभियुक्त की पहचान फ्रांको ए. के रूप में अधिकारियों ने की है. मुकदमा शुरू होने के करीब एक साल बाद अदालत ने उसे सजा सुनाई है. फ्रांको ए. दक्षिणपंथी है और उसने खुद को सीरियाई शरणार्थी के रूप में पेश करने की कोशिश की जिससे कि उसकी करतूतों का आरोप शरणार्थियों पर लगाया जा सके. यह मामला 2017 में सामने आया था और इसने सेना में दक्षिणपंथी लोगों के होने की खबरों पर मुहर लगा दी. जर्मनी के लोग इस घटना से हैरान रह गये और इस मुद्दे पर बहस तेज हो गई.
देश के खिलाफ हिंसक कार्रवाई
अदालत ने फ्रांको ए. को देश के खिलाफ हिंसक कार्रवाई की योजना बनाने और हथियारों के कानून का उल्लंघन करने का दोषी माना है. अदालत ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि उसने ये अपराध अपनी धुर दक्षिणपंथी विचारधारा के कारण किए. अभियोजकों ने फ्रांको ए. के लिए छह साल तीन महीने के कैद की सजा मांगी थी. अभियोजकों का कहना था कि उसने सीरियाई शरणार्थी के रूप में गलत पहचान हासिल कर इस घटना की जिम्मेदारी शरणार्थियों पर डालने की कोशिश की थी. अभियोजकों के मुताबिक उसका इरादा जर्मन सरकार की शरणार्थी नीति में लोगों का भरोसा घटाना था.
जर्मन सेना के इस अधिकारी ने बड़े राजनेताओं और सार्वजनिक चेहरों को निशाना बनाने की साजिश रची थी. हालांकि उसने इन आरोपों से इनकार किया है लेकिन हथियार और गोला बारूद जुटाने की बात मानी है. उसने यह भी माना है कि वह जर्मनी में सार्वजनिक व्यवस्था को तोड़ने की तैयारी में था.
फ्रांको ए. के बचाव पक्ष के वकीलों ने पिछले हफ्ते उसे मुख्य आरोप यानी देश के खिलाफ हिंसक कार्रवाई से मुक्त करने की मांग की थी. उनका कहना था कि उसे बाकी मामलों में जुर्माना और निलंबित कैद की सजा दे कर छोड़ दिया जाना चाहिए.
वियना से हुई गिरफ्तारी
फ्रांको ए. को वियना एयरपोर्ट पर फरवरी 2017 में गिरफ्तार किया गया था. वह एयरपोर्ट के शौचालय में छिपा कर रखे गये एक गोलियों से भरे पिस्टल को हासिल करने की कोशिश कर रहा था. यह पता नहीं चल सका कि यह हथियार वहां कैसे आया और इसके साथ उसने क्या करने की योजना बनाई थी.
34 साल का फ्रांको तीन बच्चों का पिता है और मई 2021 में फ्रैंकफर्ट की रीजनल सुपीरियर कोर्ट में आने से पहले डॉक में रहा था. जर्मन सेना के लेफ्टिनेंट को कैबिनेट मंत्रियों, सांसदों और प्रमुख यहूदी मानवाधिकारों पर हमले की योजना बनाने का दोषी माना गया है. फ्रांको को जर्मन नेताओं के शरणार्थियों के प्रति स्वागत का भाव रखने से आपत्ति थी और वह मानता था कि ये लोग "जर्मन राष्ट्र की जगह" ले लेंगे. अभियोजकों ने इस मामले को युद्ध के बाद के इतिहास में पहला माना है जब सेना के एक सदस्य को आतंकवादी हमले की योजना का दोषी माना गया है.
जर्मन अधिकारियों को धोखा
फ्रांको ए. ने अदालत को बताया है कि 2015-16 में उसने अधिकारियों को धोखा दे कर अपनी पहचान बदल ली. तब जर्मनी में करीब 10 लाख सीरियाई शरणार्थी दाखिल हुए थे. उसने अपनी त्वचा का रंग गहरा कर लिया और मेकअप के जरिये खुद को खाली हाथ शरणार्थी के रूप में दर्ज करा कर 15 महीने तक आप्रवासन अधिकारियों को झांसा देता रहा. हालांकि वह अरबी नहीं बोल सकता था. उसने खुद को जर्मन मां और इटैलियन आप्रवासी पिता की संतान डेविड बेंजामिन बताया जो दमिश्क में फल बेचता था. उसने अदालत में बताया, "ना तो अरबी भाषा और ना ही मेरी कहानी को पुष्ट करने के लिए किसी ब्यौरे की जरूरत पड़ी."
जांच के दौरान उसके पास से हिटलर की लिखी प्रतिबंधित किताब "माइन काम्फ" की एक कॉपी भी मिली. वह आप्रवासन की गतिविधियों को एक तरह का "नरसंहार" मानता था. उसे जांच शुरू होने के बाद जमानत पर रिहा कर दिया गया था लेकिन इस साल फरवरी में जब उसके पास से हथियार और नाजी प्रतीक हासिल हुए तो उसे फिर से जेल में डाल दिया गया.
एनआर/ओएसजे (डीपीए, एएफपी)
दक्षिण एशिया खासतौर पर भारत में वसंत के दिनों का रंग भरा त्यौहार होली, जर्मनी में गर्मियों में मनाया जाता है. इसमें थोड़ा त्यौहारी रस्मो-रिवायत भी शामिल रहती है. बता रही हैं डॉयचे वेले की शबनम सुरिता.
डॉयचे वैले पर शबनम सुरिता का लिखा
होली दक्षिण एशिया का संभवतः सबसे रंग भरा त्यौहार है. सर्दियों की विदाई और वसंत के आगमन का त्यौहार. हर साल मार्च में भारत भर में लाखों लोग होली मनाते हुए एक दूसरे के चेहरे रंगों-गुलाल से भर देते हैं. खास किस्म के पेय बनाए जाते हैं, मिठाइयां बनाई जाती हैं. भांग की मस्ती भी घुली रहती है. दूसरे त्यौहारों की तरह होली के साथ कई कहानियां जुड़ी हैं, हरेक की अपनी क्षेत्रीय महक है.
भारत के पूर्वी हिस्से में होली को "डोल " कहा जाता है जिसमें राधा-कृष्ण की प्रेम कहानी गुंथी हुई है. डोल में आमतौर पर रंग और गुलाल की मस्ती होती है जबकि उत्तरी भारत में मनाई जाने वाली होली सूखे रंगों के साथ साथ गीले रंगो से भी सराबोर रहती है. इसे अक्सर होलिका या धुलेटी भी कहा जाता है.
'देसी' होली और 'अन्य'
जर्मनी में इस समय करीब 171000 भारतीय रहते हैं. और वे दो किस्म की होलियों में शामिल होते हैं. पहली तो है देसी या विशुद्ध रूप से दक्षिण एशियाई होली जो हिंदू कैलेंडर के हिसाब से आती है और मार्च में मनाई जाती है. इन समारोहों का आयोजन मुख्य रूप से दक्षिण एशियाई लोग करते हैं. और वही उनमें भाग लेते हैं. समारोह में देसी खाने, संगीत और रंगों की बहार रहती है.
इंडीशे गेमाइन्डे ड्युसेलडॉर्फ इ.वी उन कुछ संगठनों में से है जो जर्मनी में दुर्गा पूजा या दिवाली जैसे त्योहारों का नियमित रूप से आयोजन करता है. इस संगठन के एक सदस्य अर्पण घोष बताते हैं, "जर्मनी में मार्च का महीना भारत की अपेक्षा यूं तो ठंडा रहता है इसके बावजूद हम उस दौरान होली मनाने की कोशिश करते हैं. छोटा ही आयोजन करते हैं ताकि हमारे बच्चे भारतीय संस्कृति का सार महसूस कर सकें. उसके पीछे लाभ कमाने का इरादा नहीं होता है."
लेकिन जर्मनी में होली की दूसरी किस्म यानी होली का जर्मनीकरण, लोगों में ज्यादा लोकप्रिय है. देश में होने वाली समर पार्टियों में इसका बोलबाला है.
क्या है 'जर्मनीकृत' होली?
जर्मनी की दावतों के कैलेंडर में होली को जगह दिलाने वाले उद्यमी यास्पर हेलमान ने 2012 में होली कंसेप्ट जीएमबीएच की स्थापना की थी. तबसे पूरे जर्मनी में गर्मियो के दौरान वो होली की थीम वाली पार्टियों का आयोजन करते आ रहे हैं. संगठन की प्रोडक्शन टीम की मेंबर योहाना शम के मुताबिक "ये दावतें भारत की पारंपरिक त्यौहारी समारोह की तरह नहीं होती है, वे जर्मन टेक्नो संगीत के साथ रंगों की फुहार का एक मस्ती भरा संस्करण होती हैं. "
हजारों लोग जर्मनी की होली दावतों में शामिल होते हैं. योहाना के मुताबिक हाम्बुर्ग और बर्लिन की पार्टियों में तो 10,000 से 15,000 लोग तक जुट जाते हैं. 2012 में सफल शुरुआत के बाद ये आयोजन सिर्फ जर्मनी तक महदूद नहीं रह गया है. संगठन ने सुदूर मेक्सिको सिटी और जोहान्सबर्ग तक में होली दावतें कर डाली हैं.
होली से मिलती प्रेरणा और बदला हुआ रूप
मैं डॉर्टमुंड के गैलपरेनबाह्न रेस कोर्स में ऐसी ही एक दावत में शामिल हुई थी. वहां एक प्रतिभागी मेरे पास आई और मुझसे पूछने लगी, "आपने तो रंग लगाया ही नहीं?" एक अजनबी की ये भाव-भंगिमा मुझे फौरन, भारत में अपने बचपन में ले गई जहां अंजान लोग मुझे अपनी होली की मस्तियों में कुछ इसी तरह शामिल होने का जोर डालते थे. उस वक्त और डॉर्टमुंड में, रंग लगाए बिना दिखना अपवाद ही हो सकता था.
लेकिन भारतीय पृष्ठभूमि की जर्मन लड़की अर्पिता (बदला हुआ नाम) मानती हैं कि रंग और गुलाल ही तो हैं जो इन समारोहों को भारतीय होली से जोड़ पाते हैं. इस तरह की दो पार्टियों में भागीदारी के बाद उन्हें लगता है कि उन्हें "होली" कहना शायद उचित नहीं होगा, हालांकि "ग्लोब्लाइजेशन की बदौलत लोग फायदे के लिए किसी भी संस्कृति के हिस्से चुन लेते हैं. "
बॉन यूनिवर्सिटी के दक्षिण एशियाई अध्ययन विभाग में जूनियर प्रोफेसर कार्मन ब्रांट जर्मनीकृत होली दावतों से जुड़ी सांस्कृतिक विनियोग की बहस की बारीकियों को सामने रखती हैं. वो कहती हैं, "किसी विशिष्ट मूल की तह तक होली की शिनाख्त कर पाना क्योंकि काफी मुश्किल है, लिहाजा होली को लेकर सुरक्षात्मक या बचाव का रवैया अर्थहीन है. खासतौर पर ये देखते हुए कि होली एक तयशुदा, स्थिर सांस्कृतिक रिवायत नहीं है. आखिरकार समय के साथ उसमें बदलाव हुए हैं और क्षेत्र के लिहाज से अलग अलग ढंग से मनाई जाती रही है."
कार्मन ब्रांट के मुताबिक, "आज होली मनाने से जुड़े जो भी तत्व हैं, जैसे कि रंगों का इस्तेमाल, वे सब होली शब्द के आने से पहले के हैं." और इसीलिए समकालीन भारतीय होली समारोहों की इस संदर्भ में "मौलिक" होली के रूप में ब्रांडिंग, समस्याजनक हो सकती है.
होली के प्रति जर्मनों का आकर्षण
डॉर्टमुड के होली समारोह में शामिल होने वाली सारा (बदला हुआ नाम) के मुताबिक रंगों की बदौलत वो नये लोगों से मिलती हैं और उनके करीब जा पाती हैं. फ्लोरेन्टीन सिमरमान, होली कन्सेप्ट जीएमबीएच में इंटर्न के रूप में काम करती हैं. वो इस आयोजन को उन बंदिशों से मिली एक राहत के रूप में देखती है जो कोविड महामारी की वजह से लोगों पर लाद दी गई थीं.
दक्षिण एशिया में होली समारोहों में यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़ या बदसलूकी की रिपोर्टे भी आती हैं. लेकिन सारा और फ्लोरेन्टीन, दोनों ने ऐसी किसी घटना का अनुभव नहीं किया है. सारा के लिए ये "जर्मनी में एक और पार्टी जैसी बात है." कार्मन ब्रांट का ख्याल है कि "भारत में खासतौर पर हाल की नकारात्मक खबरों के बीच ऐसे समारोहों की "पॉजिटिव वाइब" (सकारात्मक अनुभूति) ही देश को एक नयी रोशनी में दिखाने में मदद कर सकती है.
वो ये रेखांकित करती हैं, "रोजमर्रा के झंझटों और माथापच्चियों से खुद को अलग करने का एक अस्थायी मौका देने वाला ये वही सकारात्मक अहसास है जिसमें रंग भरे हैं और उसी की बदौलत जर्मन युवा और दूसरे लोग इन समारोहों में उमड़ आते हैं.
सैन फ्रांसिस्को, 15 जुलाई | टेस्ला और स्पेसएक्स के सीईओ एलन मस्क के पिता एरोल मस्क ने दावा किया है कि उनका अपनी 35 वर्षीय सौतेली बेटी जाना बेजुइडेनहाउट के साथ संबंध है, जिसने तीन साल पहले उनके दूसरे बच्चे को जन्म दिया। उन्होंने बताया कि यह बच्चा अनियोजित था। द सन को दिए एक इंटरव्यू में 76 वर्षीय एरोल ने बताया कि उन्होंने तीन साल पहले 35 वर्षीय बेजुइडेनहाउट के साथ दूसरे बच्चे का स्वागत किया था।
2017 में एरोल ने अपने बच्चे इलियट रश का स्वागत किया था, जिसकी उम्र अब 5 साल है। वही, एलोर और बेजुइडेनहाउट की उम्र के बीच 41 साल का अंतर है।
एरोल और बेजुइडेनहौट की मां हीड दोनों 18 साल तक साथ रहे थे।
एरोल ने कहा, पृथ्वी पर हम केवल एक चीज के लिए है और वह है प्रजनन करना। (आईएएनएस)
कोलंबो, 15 जुलाई। श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने अपने पद से आखिरकार इस्तीफा दे दिया है। संसद अध्यक्ष महिंदा यापा अभयवर्धने ने शुक्रवार को इसकी आधिकारिक घोषणा की।
दिवालिया हो चुके देश की अर्थव्यवस्था को न संभाल पाने के कारण अपने और अपने परिवार के खिलाफ बढ़ते जन आक्रोश के बीच देश छोड़कर चले जाने के बाद राजपक्षे ने इस्तीफा दिया है।
राजपक्षे (73) ने बृहस्पतिवार को एक ‘‘निजी यात्रा’’ पर सिंगापुर जाने की अनुमति मिलने के तुरंत बाद अध्यक्ष को अपना इस्तीफा पत्र ईमेल के जरिए भेजा।
अध्यक्ष अभयवर्धने ने शुक्रवार सुबह राजपक्षे के इस्तीफा देने की आधिकारिक घोषणा की।
अध्यक्ष ने एक संक्षिप्त बयान में कहा कि प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे नए नेता के निर्वाचित होने तक राष्ट्रपति का प्रभार संभालेंगे।
उन्होंने जनता से निर्वाचन की प्रक्रिया में सभी सांसदों के भाग लेने के लिए शांतिपूर्ण माहौल बनाने का अनुरोध किया। यह प्रक्रिया सात दिन के भीतर पूरी करनी है। श्रीलंकाई संसद की बैठक शनिवार को होगी।
अध्यक्ष के मीडिया सचिव इंदुनिल अभयवर्धने ने बताया कि अध्यक्ष को बृहस्पतिवार रात को सिंगापुर में श्रीलंकाई उच्चायोग के जरिए राजपक्षे का इस्तीफा पत्र मिल गया था, लेकिन वह सत्यापन प्रक्रिया और कानूनी औपचारिकताओं के बाद आधिकारिक घोषणा करना चाहते थे। (भाषा)
यरुशलम, 15 जुलाई । अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन की यात्रा से पहले सऊदी अरब ने अपने हवाई क्षेत्र को ‘‘सभी उड़ानों’’ के लिए शुक्रवार को खोल दिया, जो सऊदी के हवाई क्षेत्र में इजराइल की उड़ानों के प्रवेश पर लंबे समय से लगे प्रतिबंध के अंत का संकेत है और दोनों देशों के बीच हालात सामान्य होने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
बाइडन ऐसे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति होंगे, जो इजराइल से सीधे सऊदी अरब के लिए उड़ान भरेंगे। बाइडन के दौरे से कुछ घंटे पहले ट्विटर पर पोस्ट किए गए एक बयान में सऊदी अरब के नागरिक उड्डयन के सामान्य प्राधिकरण ने कहा कि वह ‘‘उन सभी उड़ानों के लिए सऊदी के हवाई क्षेत्र को खोलने के निर्णय की घोषणा कर रहा है जो उड़ान के लिए प्राधिकरण की अनिवार्यताओं को पूरा करते हैं।’’
यह घोषणा सऊदी अरब और इजराइल के बीच संबंधों के सामान्य होने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और यह ईरान के बढ़ते प्रभाव को लेकर साझा चिंताओं के कारण हाल के वर्षों में दोनों पूर्व शत्रु देशों के बीच बने मजबूत, लेकिन अनौपचारिक संबंधों को आगे बढ़ाता है।
हाल के वर्षों में सऊदी अरब ने इजराइल और खाड़ी देशों के बीच उड़ानों को अपने हवाई क्षेत्र से होकर जाने की अनुमति दी है। इजराइल के तत्कालीन प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के साथ बैठक के लिए 2020 में सऊदी अरब की उड़ान भरी थी और पिछले हफ्ते कई इजराइली रक्षा पत्रकारों ने देश का दौरा किया और उनके स्वागत के संबंध में खबरें प्रकाशित कीं।
बाइडन और इजराइल के प्रधानमंत्री यायर लापिड बृहस्पतिवार को एक साथ खड़े हुए और घोषणा की कि वे ईरान को परमाणु शक्ति नहीं बनने देंगे। हालांकि ऐसा करने का तरीका क्या होगा, इस पर दोनों नेताओं की राय अलग थीं।
बाइडन ने इजराइली नेता के साथ आमने-सामने मुलाकात के बाद एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा कि वह अब भी कूटनीति को एक मौका देना चाहते हैं। इससे कुछ देर पहले, लापिड ने जोर देकर कहा कि सिर्फ बातों से ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षाएं विफल नहीं होंगी।
बाइडन ने आशा व्यक्त की कि ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकने के मकसद से उसे एक समझौते में फिर से शामिल होने के लिए राजी किया जा सकता है। बाइडन ने इजराइल और सऊदी अरब की चार दिवसीय यात्रा के दूसरे दिन कहा, ‘‘मेरा मानना है कि कूटनीति इस परिणाम को हासिल करने का सबसे अच्छा तरीका है।’’ अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में यह पश्चिम एशिया की उनकी पहली यात्रा है।
लापिड ने कहा, ‘‘बातों से उन्हें (ईरान को) नहीं रोका जा सकता। कूटनीति उन्हें नहीं रोक सकेगी।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ईरान को केवल एक चीज रोकेगी और इसके लिए उन्हें इस बात का एहसास दिलाना होगा कि अगर उन्होंने अपने परमाणु कार्यक्रम को विकसित करना जारी रखा तो दुनिया उनके खिलाफ बल का उपयोग करेगी।’’(एपी)
नयी दिल्ली, 14 जुलाई। न्यूजीलैंड की पूर्व प्रधानमंत्री हेलन क्लार्क ने बृहस्पतिवार को अफसोस जताया कि महिला और बालिका अधिकारों के खिलाफ ऐसे समय युद्ध छेड़ा गया है जब महिला सशक्तिकरण की दिशा में हुई प्रगति पीछे की ओर जा रही है।
संयुक्त राष्ट्र उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच (एचएलपीएफ) के सह कार्यक्रम ‘‘ विकल्प, आवाज और स्वायत्ता : खंडित दुनिया में स्वास्थ्य के लिए महिलाओं का राजनीतिक नेतृत्व’’ विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम को ऑनलाइन संबोधित करते हुए उन्होंने यह बात कही।
एचएलपीएफ का कार्यक्रम इस समय न्यूयॉर्क में चल रहा है। इसके साथ इतर कार्यक्रम का आयोजन संयुक्त रूप से पीएमएनएसीएच, वुमेन इन ग्लोबल हेल्थ, यूएससी2030 और ग्लोबल-हेल्थ 50/50 जैसे संगठनों ने ने किया है जिसकी मेजबानी एस्टोनिया की सरकार ने बुधवार को की।
पीएमएनसीएच बोर्ड की अध्यक्ष क्लार्क ने कहा, ‘‘ऐसे समय जब महिला और बालिका सशक्तिकरण की दिशा में हुई प्रगति का असर जटिल समस्याओं की वजह से कम हो रहा है, महिलाओं और बालिकाओं के मूल अधिकारों के खिलाफ भी युद्ध छेड़ा गया है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हमें तत्काल परिवर्तनकारी कदम उठाने की जरूरत है ताकि इस चिंताजनक परिपाटी को उलट सकें। निर्णय लेने वाले मंचों पर महिलाओं का स्थान और आवाज दोनों होने चाहिए। दृष्टिकोण की विकास की दौड़ में कोई पीछे नहीं रह जाए, इसे हासिल करने के लिए समाज को केवल बोलने के बदले अधिकारों और संवेदनशील तरीकों को लागू करना चाहिए ताकि समानता, लचीलापन और स्थिरता आ सके।’’ (भाषा)