विचार / लेख
-प्रकाश दुबे
हीरे की परख जौहरी को होती है। फौजी मुंह से नहीं बोलता। उसकी तलवार बोलती है। ये महज पुराने मुहावरे नही हैं। चतुर सुजान व्यक्ति इन नुस्खों पर अमल करते हैं। जम्मू-कश्मीर की साल भर पुरानी केन्द्र शासित इकाई में लोकतंत्र की लड़ाई में इसका पूरा ध्यान रखा गया। देश की राजधानी के विधान सभा के दंगल में चुनौती देने वाले वीर की दहाड़ का जबर्दस्त असर हुआ। उसे दोबारा मैदान में उतारने की जरूरत नहीं पड़ी। लोग इस गलतफहमी में खुश रहे कि चुनाव आयोग ने प्रचार करने पर रोक लगा दी। ऐसी रोक टोक असरदार होती तो बिहार के दंगल में पहले चरण में जीत खिसकने का अंदाज लगने के बाद परमवीर फिर ताल ठोंकते न दिखते। जम्मू-कश्मीर में स्थानीय संस्थाओं के चुनाव की कमान पार्टी ने केन्द्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर को सौंप दी। सीमा पर हिमाचल के जवान लड़ते हैं। पार्टी के बढ़ते अनुराग से प्रसन्न चुनाव प्रभारी की ठकुराई के दांव कसौटी पर हैं।
जी का जंजाल
वस्तु एवं सेवाकर कहने से आप समझेंगे या समझेंगी नहीं। जीएसटी नाम की बला ही कितनों की समझ में आई? उपभोक्ता नहीं जानता कि लागू करने से पहले बताए गए फायदे मिलने लगे या नहीं? व्यापारी नाखुशी दिखा रहे हैं। सरकार ने एक दो बार अच्छी वसूली पर खुशी जतलाई। लेकिन राज्यों ने बकाया न मिलने पर हंगामा मचाकर गुड़ गोबर कर दिया। जीएसटी की पकड़ से कम ही वस्तुएं बाहर हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने वसूली में सख्ती का फरमान जारी किया। सरकार और सरकारी विभागों को सामान की आपूर्ति करने वाले बुरे फंसे। महामारी की मार ऐसी पउ़ी कि अनेक सरकारी विभागों ने भुगतान नहीं किया। उधर जीएसटी वाले कहते हैं हम तो जीएसटी काटेंगे। तुम्हारा बकाया मिले या नहीं। मंत्रालय और निगम तक तो फिर भी खैर थी। प्रधानमंत्री कार्यालय को सप्लाई करने वाले भी इस पचड़े में फंसे हैं।
चुनाव का चक्कर
चुनाव के नाम से कई कांग्रेस जनों को बुखार आता होगा। सरकार ने नियम इस तरह बदले हैं कि अगले तीन महीने के अंदर कांग्रेस को संगठन चुनाव कराना जरूरी है। महामारी का बहाना नहीं चलेगा। अध्यक्ष के चुनाव के लिए तैयारी जारी है। महामारी का कारण बताकर बैठक टाली जा सकती है। इसलिए मतदान आन लाइन होगा। अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के 1500 सदस्य मतदान कर सकेंगे। ये कब चुने गए? शायद कोई कांग्रेसी बता सके। बहरहाल डेढ़ हजार मतदाताओं को पासवर्ड भेजा जाएगा। सारी उठा पटक के बाद क्या होगा? पता नहीं। अभी तो अध्यक्ष े लिए उम्मीदवारों के नाम सामने नीं आए। चुनाव की परंपरा नहीं है। लेकिन परिवार के तीन रत्नों पर समर्थकों की निगाह टिकी है। किसी एक नाम पर आम राय बनी तो मतदाता वोट डालने की जहमत उठाने से बच जाएंगे। कोई राहुल भैया को मनाए।
बढ़ती का नाम
पश्चिम बंगाल चुनाव की चर्चा छिड़ते ही चेहरा दिखाकर चहकने वाले कवि कुल गुरु रवीन्द्र नाथ ठाकुर से तुलना करने लगे। केन्द्रीय मंत्री रह चुके अरुण शौरी ने फब्ती कसी-रूप बदलते रहते हैं। राजर्षि कहलाना चाहते हैं। घर और वार करने का जिम्मा संभालने वाले दाढी बिरादरी के। सूचना का संचार करने वाले का पुणेरी चेहरा। मध्यप्रदेश की सरकार बचाने के लिए विधायकों का इस्तीफा कराने से लेकर उपचुनाव में विधायक जिताने वाले प्रहलाद की पटैली चमक। गद्य को पद्य में बदल कर समाज कल्याण करने वाले भारतीय रिपब्लिकन दास के मुख मंडल पर ध्यान दो।
राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर प्रधानमंत्री और सूचना मंत्री तस्वीर में और प्रेस एसोसिएशन के अध्यक्ष जयशंकर गुप्त सदेह उपस्थित थे। गुप्त ने दाढी जमात में शामिल होकर चौंकाया। चलती का नाम गाड़ी फिल्म से नोट बटोरने के बरसों बाद किशोर कुमार ने बढ़ती का नाम दाढ़ी फिल्म बनाई। सिनेमाई दाढ़ी फहरा नहीं सकी। चुनावी दाढ़ी के जादू की परीक्षा बंगाल के चुनाव में होगी।
(लेखक दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक हैं)