विचार / लेख

-आर.के.जैन
देश के इतिहास में ये भी पहली हुआ था कि किसी मामले की कोर्ट में सुनवाई के दौरान देश के राष्ट्रपति पद पर रहते हुए गवाही देने के लिए पहुंचे हों। इसके बाद भी फिर कभी ऐसा नजारा सुप्रीम कोर्ट में देखने को नहीं मिला। ये साल था 1970, जब कानूनी तौर पर छूट हासिल होने के बाद भी तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरि ने कोर्ट में पेश होकर अपना बयान दर्ज करवाया था।
उस दिन काफी गहमागहमी थी । देश की सबसे बड़ी अदालत में हर कोई चौकन्ना बैठा था। उस दिन एक खास मुकदमे की सुनवाई होनी थी, जिसमें एक अहम शख्सियत को गवाही देने के लिए आना था। एक कोर्टरूम के कटघरे में सोफे जैसी बड़ी कुर्सी लगाई गई थी । ऐसा पहली और आखिरी बार हुआ कि किसी गवाह के लिए सुप्रीम कोर्ट के कटघरे में सोफा लगाया गया हो। दरअसल, उस दिन वो शख्स गवाही देने आने वाला था, जो खुद सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को पलटने की ताकत रखता है । हम बात कर रहे हैं देश के चौथे राष्ट्रपति वीवी गिरि की।
अब जानते हैं कि किस मुकदमे की सुनवाई के दौरान देश के चौथे राष्ट्रपति वीवी गिरि सुप्रीम कोर्ट में गवाही देने के लिए पहुंचे थे। दरअसल, देश के तीसरे राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की 13 मई 1969 को मौत हो गई। इसके बाद वीवी गिरि को कार्यवाहक राष्ट्रपति नियुक्त किया गया । बाद में फैसला लिया गया कि अगले राष्ट्रपति के लिए चुनाव कराया जाए। इस पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और सिंडिकेट के नाम से मशहूर कांग्रेस पार्टी के नेताओं के बीच तनातनी का माहौल बन गया। ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी ने इंदिरा गांधी के विरोध को दरकिनार करते हुए नीलम संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर समर्थन देने का निर्णय लिया ।
इंदिरा गांधी का समर्थन, गिरि की जीत -
सिंडिकेट से नाराज इंदिरा गांधी ने वीवी गिरि को समर्थन देने का ऐलान कर दिया । उन्?होंने कांग्रेस विधायकों और सांसदों से अपनी अंतरात्मा की आवाज पर वोट करने की अपील की । नीलम संजीव रेड्डी, वीवी गिरि और विपक्ष के उम्मीदवार सीडी देशमुख के बीच 16 अगस्त 1969 को राष्ट्रपति चुनाव में मुकाबला हुआ। इसमें वीवी गिरि को जीत हासिल हुई। पहली वरीयता में उन्हें 48 फीसदी से ज्यादा वोट मिले। फिर दूसरी वरीयता के वोटों की गिनती में उन्हें बहुमत मिल गया। बता दें कि वीवी गिरि ना केवल देश के पहले निर्दलीय राष्ट्रपति बने, बल्कि अब तक इकलौते कार्यवाहक राष्ट्रपति भी हैं, जो बाद में राष्ट्रपति बने।
सुप्रीम कोर्ट पहुंचा चुनाव का मुद्दा -
सुप्रीम कोर्ट में वीवी गिरि के चुनाव की वैधता को चुनौती देने वाली एक याचिका दायर की गई। याचिका में कहा गया कि राष्ट्रपति चुनाव में मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया गया ।
इसी मामले की सुनवाई के दौरान राष्ट्रपति वीवी गिरि खुद सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए और उनसे गवाह के तौर पर सवाल किए गए । आखिर में शीर्ष अदालत ने याचिका खारिज कर दी और उनके चुनाव को बरकरार रखा। वह 24 अगस्त 1969 से 24 अगस्त 1974 तक राष्ट्रपति पद पर रहे । उन्हें साल 1975 में उनके श्रेष्ठ कार्यों के लिए देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। उनका निधन मद्रास (अब चेन्नई) में 24 जून 1980 को 85 साल की उम्र में हुआ।