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अमेरिका के साथ कारोबार में भेदभाव से जुड़े ट्रंप के दावे कितने सही
15-Feb-2025 2:55 PM
अमेरिका के साथ कारोबार में भेदभाव से जुड़े ट्रंप के दावे कितने सही

-बेन चू

डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी टीम से कहा है कि वह अमेरिका में आने वाले सामानों पर नए टैरिफ लगाने की योजना पेश करें।

ट्रंप बाकी देशों पर ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ या बराबर टैरिफ़ लगाना चाहते हैं यानी उन देशों के सामानों पर उतना ही आयात शुल्क लगाना जितना वे अमेरिकी सामानों पर लगाते हैं।

राष्ट्रपति ट्रंप का कहना है कि अन्य देश अमेरिकी सामानों के आयात पर, अमेरिका को निर्यात होने वाले अपने सामानों की तुलना में अधिक टैरिफ लगाते हैं। ट्रंप का मानना है कि अमेरिका के ‘व्यापारिक साझेदार अमेरिका के साथ भेदभाव करते हैं और ऐसा दोस्त और विरोधी, दोनों तरह के देश करते हैं।’

बीबीसी वेरिफाई ने ये जानने की कोशिश की है कि ट्रंप के इन दावों में कितना दम है।

पहले तो वैश्विक व्यापार को समझना महत्वपूर्ण है।

विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की सदस्यता की शर्तों के तहत देशों को आयात पर टैरिफ़ लगाने की इजाज़त है।

ये टैरिफ अलग-अलग आयात होने वाले सामानों पर अलग-अलग हो सकता है।

उदाहरण के लिए एक देश चावल के आयात पर 10त्न और कारों के आयात पर 25त्न टैक्स लगा सकता है।

लेकिन डब्ल्यूटीओ के नियमों के मुताबिक, किसी एक ही वस्तु के अलग-अलग देशों से आयात पर लगाये जाने वाले टैरिफ में भेदभाव नहीं किया जा सकता है।

उदाहरण के लिए मिस्र को इसकी इजाज़त नहीं दी जा सकती कि वह रूस से आयात किए जाने वाले गेहूं पर 2 फीसदी टैरिफ लगाए और यूक्रेन से आने वाले गेहूं पर 50 फीसदी टैरिफ लगा दे।

इसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार में मोस्ट फेवर्ड नेशन (एमएफएन) के सिद्धांत के तौर पर जाना जाता है। यानी टैरिफ लगाने वाले देश द्वारा हर देश पर बराबर टैरिफ लगाना होगा।

लेकन जब दो देश आपस में मुक्त व्यापार समझौता करते हैं जिसमें व्यापार का अधिकांश हिस्सा शामिल होता तो यह सिद्धांत अपवाद होता है। इन स्थितियों में वे एक दूसरे के सामान पर कोई टैरिफ़ नहीं भी लगा सकते हैं लेकिन दुनिया के बाकी देशों से आने वाली वस्तुओं पर टैरिफ लगा सकते हैं।

हालांकि अधिकांश देश अलग-अलग आयातित वस्तुओं पर अलग-अलग टैरिफ लगाते हैं, लेकिन वे डब्ल्यूटीओ को अपने औसत टैरिफ के बारे में जानकारी देते हैं, जो कुल आयात पर लगने वाले टैरिफ दर का औसत होता है।

साल 2023 में अमेरिका का औसत बाहरी टैरिफ 3.3त्न था।

यह ब्रिटेन के 3.8त्न टैरिफ़ दर से थोड़ा कम था।

यह यूरोपीय संघ के 5त्न टैरिफ और चीन के 7,5त्न से काफ़ी नीचे था।

अमेरिका का औसत टैरिफ़, इसके अन्य कुछ व्यापारिक साझेदारों के मुकाबले काफ़ी कम है।

उदाहरण के लिए भारत का औसत टैरिफ 17त्न है, जबकि दक्षिण कोरिया का 13.4त्न है।

अमेरिका का औसत टैरिफ़ मैक्सिको (6.8त्न) और कनाडा (3.8त्न) से कम है, हालांकि इन देशों से अमेरिका के व्यापारिक समझौते का मतलब है कि अमेरिका इन देशों को होने वाले अमेरिकी निर्यात पर टैरिफ नहीं लगाता।

दक्षिण कोरिया के साथ यही बात सही है, जिसके साथ अमेरिका का मुक्त व्यापार समझौता है।

लेकिन आम तौर पर कहा जाए तो ट्रंप का ये कहना सही है कि अमेरिका के मुकाबले कुछ देशों का आयात पर औसत टैरिफ अधिक है।

और इन टैरिफ दरों के चलते अधिकांश अमेरिकी निर्यात उन देशों में महंगे पड़ते हैं और जो देश अमेरिका में सामान भेजते हैं, उन देशों में अमेरिकी निर्यातकों के लिए अपेक्षाकृत नुकसान उठाना पड़ता है।

हालांकि यह भेदभाव वाला व्यापार है, जिससे अमेरिका को नुक़सान होता है, इसे दो टूक नहीं कहा जा सकता।

अधिकांश अर्थशास्त्रियों का मानना है कि आयात टैरिफ की कीमत आखिरकार उस देश में परिवारों को वहन करना पड़ती है जो उन सामान पर टैरिफ लगाते हैं, क्योंकि इसका मतलब होता है कि आयातित वस्तुएं अधिक महंगी हो जाती हैं।

इसका ये भी मतलब निकाला जा सकता है कि अमेरिका के मुक़ाबले औसत बाहरी टैरिफ की ऊंची दरों वाले देश, अमेरिकियों की तुलना में अपने ही उपभोक्ताओं को सज़ा देते हैं।

रेसिप्रोकल टैरिफ कैसे काम करता है?

10 फरवरी को ट्रंप ने बताया कि रेसिप्रोकल टैरिफ से उनका आशय है, उन देशों पर उतना ही टैरिफ लगाना, जितना वे अमेरिकी सामानों पर लगाते हैं।

उन्होंने पत्रकारों से कहा, ‘अगर वे हम पर शुल्क लगाते हैं, तो हम उन पर लगाएंगे। अगर वे उनकी दर 25 तो हमारी भी 25 होगी। अगर उनकी दर 10 है तो हमारी भी दर 10 होगी।’

इसका मतलब होगा कि यह डब्ल्यूटीओ के एमएफएन नियमों का उल्लंघन, जिसके तहत एक देश को खास सामान पर समान टैरिफ लगाना होता है, चाहे वे कहीं से आ रहे हों।

मान लीजिए अगर अमेरिका वियतनाम से आने वाली सभी वस्तुओं पर 9.4त्न टैरिफ़ लगाता है लेकिन ब्रिटेन से आने वाले सामान पर 3.8त्न टैरिफ़ लगाता है, तो यह नियमों का उल्लंघन होगा।

अगर अमेरिका दिखा सके कि कोई देश उसके साथ डब्ल्यूटीओ के नियमों का किसी तरह से उल्लंघन कर रहा है तो अमेरिका ये कह सकता कि उसने बदले में उसके खिलाफ टैरिफ लगाया है और यह डब्ल्यूटीओ नियमों के तहत जायज है।

लेकिन एक आम नीति के तहत सीधे रेसिप्रोकल टैरिफ़ थोपना डब्ल्यूटीओ के नियमों के उल्लंघन के दायरे में आ सकता है।

एक और संभावना है कि ट्रंप औसत राष्ट्रीय टैरिफ़ दरों की बजाय अलग-अलग सामानों पर विभिन्न देशों द्वारा लगाए जाने वाले अलग-अलग टैरिफ की बराबरी करें।

उदाहरण के लिए यूरोपीय संघ, गुट के बाहर अमेरिका समेत बाकी देशों से आयातित सभी कारों पर 10त्न टैरिफ लगाता है।

लेकिन अमेरिका यूरोपीय संघ समेत बाकी देशों से आयातित कारों पर केवल 2.5त्न टैरिफ लगाता है।

इस स्थिति में अमेरिका समान अवसर के लिए यूरोपीय संघ से आयातित कारों पर 10त्न का टैरिफ़ लगाने का निर्णय ले।

हालांकि अगर उसने हर अलग-अलग देश के साथ हर तरह के आयात पर लगाए जाने वाले टैरिफ़ की बराबरी करने की कोशिश की तो यह बहुत लंबी और जटिल प्रक्रिया हो जाएगी, क्योंकि वैश्विक व्यापार और डब्ल्यूटीओ के 166 सदस्य देशों द्वारा अलग अलग टैरिफ दरें होती हैं।

इस नीति की रूपरेखा बनाने वाले ट्रंप के आधिकारिक मेमोरेंडम के अनुसार, रेसिप्रोकल टैरिफ़ को बाकी देशों के नियमों, घरेलू सब्सिडी, एक्सचेंज रेड और वैल्यू एडेड टैक्सों (वैट) के आधार पर तय किया जाएगा।

अमेरिका वस्तुओं पर वैट नहीं वसूलता है, लेकिन ब्रिटेन समेत बाकी देश ऐसा करते हैं।

इससे टैरिफ तय करने की प्रक्रिया और जटिल हो सकती है।

हालांकि अर्थशास्त्री इस बात पर सहमत हैं कि व्यापार में घरेलू नियम और सब्सिडी एक अहम गैर टैरिफ बाधा (ट्रेड बैरियर) में योगदान देते हैं।

उनका कहना है कि इस हिसाब से वैट इस श्रेणी में नहीं आता है क्योंकि घरेलू स्तर पर बिक्री वाली सभी चीजों पर यह लागू होता है और इसलिए अमेरिका से आयातित होने वाली वस्तुओं के मामले में उसे कोई नुकसान नहीं होता।

डब्ल्यूटीओ वैट को ट्रेड बैरियर नहीं मानता।

क्या अमेरिकी टैरिफ भी कम करना पड़ सकता है?

अगर ट्रंप रेसिप्रोकल टैरिफ़ लगाने पर दृढ़ रहते हैं, तो सैद्धांतिक रूप से अमेरिका को भी टैरिफ़ बढ़ाने की बजाय कम करना पड़ सकता है।

कुछ विशेष कृषि उत्पादों के मामले में अपने व्यापारिक साझेदारों के मुकाबले अमेरिका ने ऊंचे टैरिफ़ लगा रखे हैं।

उदारहण के लिए मौजूदा समय में अमेरिका ने दुग्ध उत्पादों के आयात पर 10त्न से अधिक का प्रभावी टैरिफ लगाया हुआ है। लेकिन एक दुनिया एक बड़े दुग्ध उत्पादक देश न्यूजीलैंड ने अपने डेयरी आयात को टैरिफ़ मुक्त (0त्न) रखा है।

अमेरिकी मिल्क टैरिफ़, अमेरिकी डेयरी किसानों को बचाने के लिए बनाया गया है और स्विंग स्टेट विस्कांसिन में ऐसे किसानों की संख्या अच्छी खासी है।

और अगर न्यूजीलैंड से आने वाले दुग्ध उत्पादों पर टैरिफ कम होता है तो इससे इस राज्य में राजनीतिक विरोध पैदा हो सकता है।

इसी तरह अलग-अलग सामान के लिए अलग-अलग अमेरिकी टैरिफ से अमेरिकी ऑटो उद्योग को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

अमेरिका यूरोपीय संघ समेत सभी देशों से आयातित ट्रकों पर 25त्न टैरिफ़ लगाता है।

जबकि यूरोपीय संघ में अमेरिका समेत बाकी देशों से आने वाले ट्रकों पर सिर्फ 10त्न टैरिफ है।

इसका मतलब है कि अगर यूरोपीय संघ के साथ रेसिप्रोकल टैरफ लगाया जाता है तो सिद्धांत के रूप में अमेरिका को इन पर अपना टैरिफ करना होगा।

इसलिए यूरीपीय संघ की कारों पर रेसिप्रोकल टैरिफ का अमेरिकी ऑटो निर्माता स्वागत करेंगे लेकिन यूरोपीय संघ के ट्रकों पर रेसिप्रोकल टैरिफ का विरोध करेंगे।

हालांकि, बीते गुरुवार को ट्रंप ने स्पष्ट किया कि स्टील और एल्यूमीनियम जैसे कुछ उत्पादों पर लगाए गए टैरिफ, उनके रेसिप्रोकल टैरिफ के अतिरिक्त होंगे।

इससे यह संकेत मिलता है कि दरअसल व्यापार में असली बराबरी उनका मूल उद्देश्य नहीं है। (bbc.com/hindi)

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