विचार / लेख

भाजपा और किसान: खून-खराबा
07-Oct-2021 12:21 PM
भाजपा और किसान: खून-खराबा

 बेबाक विचार : डॉ. वेदप्रताप वैदिक

लखीमपुर-खीरी में जो कुछ हुआ, वह दर्दनाक तो है ही, शर्मनाक भी है। शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे किसानों पर कोई मोटर गाडिय़ाँ चढ़ा दे, उनकी जान ले ले और उन्हें घायल कर दे, ऐसा जघन्य कुकर्म तो कोई डाकू या आतंकवादी भी नहीं करना चाहेगा। लेकिन यह एक केंद्रीय गृह राज्यमंत्री के काफिले ने किया। वह हत्यारी कार तो उस गृहमंत्री की ही थी। गृहमंत्री का कहना है कि उन कारों में न तो वे खुद थे और न ही उनका बेटा था लेकिन प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि मंत्री का बेटा ही वह कार चला रहा था और लोगों पर कार चढ़ाने के बाद वह वहां से भाग निकला।

यह तो जांच से पता चलेगा कि किसानों पर कारों से जानलेवा हमला किन्होंने किया या किनके इशारों पर किया गया लेकिन यह भी सत्य है कि कोई मामूली ड्राइवर इस तरह का भीषण हमला क्यों करेगा? उसकी हिम्मत कैसी पड़ेगी? लेकिन देखिए, किस्मत का खेल कि उन कारों के दो ड्राइवर तो तत्काल मारे गए और किसानों की भीड़ ने भाजपा के दो अन्य कार्यकर्ताओं को भी तत्काल मौत के घाट उतार दिया। इसे यों भी कहा जा रहा है कि जैसे को तैसा हो गया। चार लोग मंत्री के मारे गए, क्योंकि मंत्री के लोगों ने किसानों के चार लोग मार दिए थे।

लेकिन दोनों पक्षों ने खून-खराबे का यह रास्ता चुना, यह दोनों पक्षों की निकृष्टता का सूचक है। यह थोड़े संतोष का विषय है कि किसान नेता राकेश टिकैत की मध्यस्थता के कारण हताहत किसानों और मंत्रिपक्ष के लोगों को उ.प्र. की सरकार मोटा मुआवजा और नौकरी देने पर राजी हो गई है लेकिन आश्चर्य है कि स्थानीय पुलिस हत्याकांड को होते हुए देखती रही और वह कुछ न कर सकी। जाहिर है कि इस हत्याकांड से सिर्फ उत्तरप्रदेश में ही नहीं, सारे देश में लोगों ने गहरा धक्का महसूस किया है।

कृषि-कानूनों को डेढ़ साल तक ताक पर रखे जाने के बावजूद किसान नेता रास्ते रोक रहे हैं और हिंसा-प्रतिहिंसा पर उतारु हो रहे हैं। जाहिर है कि बड़े किसानों के इस आंदोलन को आम जनता और औसत किसानों का जैसा समर्थन मिलना चाहिए था, नहीं मिल रहा है। फिर भी उनके साहस की दाद देनी पड़ेगी कि वे इतने लंबे समय से अपनी टेक पर डटे हुए हैं। यह उनका लोकतांत्रिक अधिकार जरुर है लेकिन रास्ते रोकने से आम लोगों को जो असुविधाएं हो रही हैं, उनके कारण इस आंदोलन की छवि पर आंच आ रही है और सर्वोच्च न्यायालय को इस पर अप्रिय टिप्पणी भी करनी पड़ी हैं।

उधर उप्र सरकार के आचरण पर भी सवाल उठ रहे हैं। उसने कई विपक्षी नेताओं को भी लखीमपुर जाने से रोका है और कुछ को गिरफ्तार कर लिया है। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी को अपने केंद्रीय मंत्री और पार्टी-कार्यकर्त्ताओं के साथ भी निर्भीकतापूर्वक पेश आना चाहिए। उन्हें कुछ माह बाद ही वोट मांगने के लिए जनता के सामने अपनी झोली पसारनी है।
(नया इंडिया की अनुमति से)

 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news