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पहले जेल, फिर बातचीत: कई रहस्य हैं कश्मीर में भारत सरकार की नई पहल के पीछे
23-Jun-2021 10:00 PM
पहले जेल, फिर बातचीत: कई रहस्य हैं कश्मीर में भारत सरकार की नई पहल के पीछे

गुपकार गठबंधन के हां कह देने के बाद केंद्र और कश्मीरी पार्टियों के बीच बातचीत तय है. हाल तक केंद्र ने जिन पार्टियों को "गैंग" की संज्ञा दे उनके नेताओं को जेल में बंद कर दिया था उनसे अचानक बातचीत की रणनीति कैसे अपना ली?

    डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय का लिखा- 

अगस्त 2019 में जम्मू और कश्मीर का राज्य का दर्जा खत्म करने के लगभग दो साल बाद केंद्र सरकार ने कश्मीर के राजनीतिक दलों के नेताओं को बातचीत के लिए बुलाया है. सभी पार्टियों ने इस निमंत्रण को स्वीकार भी कर लिया है, लेकिन बातचीत का एजेंडा क्या है यह कोई नहीं जानता. आधिकारिक जानकारी के अभाव में अटकलें लग रही हैं कि केंद्र शायद कश्मीर को फिर से राज्य बनाने की प्रक्रिया की शुरुआत करना चाहता है.

इसकी पुष्टि अभी तक ना केंद्र सरकार ने की है ना ही कश्मीर की पार्टियों ने, लेकिन सरकारी सूत्रों के हवाले से मीडिया में आई कई खबरों में दावा किया गया है कि कश्मीर के राज्य के दर्जे को बहाल करने का वादा केंद्र ने पहले से ही किया हुआ था. मार्च 2020 में परिसीमन आयोग के गठन के बाद से कश्मीर में परिसीमन की कार्रवाई भी चल रही है, जिसका उद्देश्य राज्य में विधान सभा चुनाव कराना ही है.

इसलिए इतना तो तय माना जा रहा था कि कश्मीर में आज नहीं तो कल विधान सभा चुनाव होंगे ही. इसके बावजूद संतोषजनक जवाब इस सवाल का नहीं मिल पा रहा है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और पीडीपी जैसी पार्टियों को "गैंग" कहकर और उनके नेताओं को जेल में बंद कर उनके प्रति जिस कटुता का परिचय केंद्र ने दिया था, उसके बाद केंद्र ने क्या सोच कर उनसे बात करने का प्रस्ताव रखा?

पुरानी रणनीति विफल
कश्मीर के मामलों के अधिकांश जानकारों के बीच इस बात को लेकर सहमति है कि केंद्र ने कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा हटाने का मुश्किल लक्ष्य तो हासिल कर लिया लेकिन कुल मिला कर पूर्ववर्ती कश्मीर राज्य को लेकर केंद्र की रणनीति विफल हो चुकी है. इलाके को जानने वाले लोग मानते हैं कि जम्मू, कश्मीर और लद्दाख तीनों इलाकों में असंतोष है. कश्मीर के लोग विशेष राज्य का दर्जा छीने जाने से दुखी हैं, जम्मू के लोग अलग राज्य बनने के इंतजार में परेशान हैं और लद्दाख के लोगों की तो अलग केंद्र शासित प्रदेश बनने की मांग भी पूरी नहीं हो सकी.

कुल मिला कर कश्मीर का एजेंडा अभी अधूरा है और इसे पूरा करने में स्थानीय दलों के प्रति वैमनस्य दिखाने की पुरानी रणनीति बड़ी बाधा है. इसलिए संभव है कि केंद्र अब इन दलों को साथ लेकर आगे चलने की नई रणनीति पर विचार कर रहा हो. श्रीनगर के वरिष्ठ पत्रकार जफर इकबाल मानते हैं कि स्थानीय पार्टियों की तरफ हाथ परिसीमन की प्रक्रिया को वैधता दिलाने के लिए बढ़ाया जा रहा है.

दरअसल नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी का यही कहना रहा है कि चूंकि वो 2019 के जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन कानून को ही अवैध मानते हैं, ऐसे में उसी कानून के तहत शुरू की गई परिसीमन प्रक्रिया को मानने का सवाल ही नहीं उठता. इकबाल ने डीडब्ल्यू को बताया कि अगर एनसी के तीनों सांसद परिसीमन की प्रक्रिया से जुड़ जाते हैं तो पार्टी की तरफ से उस प्रक्रिया को और उसके साथ जम्मू और कश्मीर के पुनर्गठन को मान्यता मिल जाएगी.

कई जानकारों का यह भी मानना है कि इस पूरी कवायद से सिर्फ एनडीए सरकार की कश्मीर के प्रति नीति में असंगति ही दिखाई देती है. वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश मानते हैं कि शुरू से ही कश्मीर के प्रति एनडीए सरकार की नीति गलत सोच और वैचारिकी से निर्देशित रही हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि इस असंगति का कारण है सरकार का आरएसएस की विचारधारा के हिसाब से कदम उठाना और फिर यह पाना कि जमीनी हकीकत कुछ और ही है.

अंतरराष्ट्रीय दबाव
वहीं केंद्र सरकार के इस फैसले के पीछे अमेरिका का दबाव होने की बात भी की जा रही है. केंद्र द्वारा कश्मीर के नेताओं को बातचीत का निमंत्रण भेजे जाने से पहले वरिष्ठ पत्रकार भारत भूषण ने कारवां पत्रिका में छपे एक लेख में लिखा था कि ऐसा होने जा रहा है और इसके लिए अमेरिकी सरकार का भारत पर दबाव जिम्मेदार है. भारत भूषण कहते हैं कि अफगान शांति वार्ता के सफल होने के लिए और अमेरिका के अफगानिस्तान से निकलने के बाद वहां के अमेरिकी हितों की सुरक्षा के लिए अमेरिका को पाकिस्तान की मदद चाहिए.

इसी मदद की उम्मीद में अमेरिका को पाकिस्तान को यह संकेत देना था कि नई दिल्ली और वॉशिंगटन के करीबी रिश्तों के बावजूद, अमेरिका पाकिस्तान के हितों के प्रति सजग है. इसलिए कश्मीर को लेकर पाकिस्तान की चिंताओं को स्वीकार करते हुए अमेरिका भारत पर कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल करने की एक कार्य योजना देने और उसके बाद पाकिस्तान से फिर से बातचीत शुरू करने के लिए दबाव डाल रहा है.

12 जून को अमेरिकी सरकार में दक्षिण और मध्य एशिया के लिए एक्टिंग असिस्टेंट सेक्रेटरी डीन थॉम्पसन ने संसद की एक सुनवाई के दौरान माना कि अमेरिकी सरकार ने भारत सरकार को कश्मीर में जल्द से जल्द सामान्य हालात बहाल करने के लिए कहा है. उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका ने भारत को कुछ चुनावी कदम भी उठाने को प्रोत्साहित किया है. इसके पहले चार जून को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने रुख में बदलाव लाते हुए कहा था कि अगर भारत कश्मीर पर एक कार्य योजना देता है तो पाकिस्तान बातचीत फिर से शुरू करने को तैयार है.

इसके पहले इमरान खान यह कह रहे थे कि बातचीत फिर से तभी शुरू होगी जब भारत सरकार पांच अगस्त 2019 को लिए गए कदमों को वापस लेगी. श्रीनगर के वरिष्ठ पत्रकार रियाज वानी भी मानते हैं कि यह संभव है कि यह कदम पाकिस्तान से बातचीत फिर से शुरू करने के लिए उठाया गया हो. वानी कहते हैं कि पिछले कुछ महीनों में पाकिस्तान ने भारत की तरफ हाथ बढ़ाने के कई संकेत दिए हैं और मुमकिन है कि यह भारत की तरफ से पाकिस्तान को पहला संकेत हो. (dw.com)

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