राजस्थान के अलवर के रहने वाले 85 साल के शिवचरण यादव 10वीं पास होने के जुनून के लिए जाने जाते हैं. इस साल उनका ये जुनून पूरा भी हो गया. इन्होंने शपथ ली थी कि ये जब तक 10वीं पास नहीं करेंगे तब तक शादी नहीं करेंगे. इस बार कोरोना की वजह से बगैर परीक्षा दिए वह पास हो गए हैं. 48 बार फेल होने वाले शिवचरण इस साल 10वीं पास हो गए. अलवर जिले के रहने वाले शिवचरण राजस्थान बोर्ड ऑफ़ सेकंडरी एजुकेशन के लिए एक मिसाल हैं. (twitter and newspapers)
एक वरिष्ठ अधिकारी अनंत रूपनगुड़ी लगातार रेलवे से जुड़ी खूबसूरत तस्वीरें पोस्ट करते हैं। उन्होंने आज सुबह रामेश्वरम के पास की यह तस्वीर पोस्ट की है जिसमें सडक़ का पुल, रेल का पुल, और आसमान पर पंछी सारे के सारे इतने खूबसूरत लग रहे हैं। उन्होंने लिखा कि यह रामेश्वरम के पास समंदर पर बने हुए पुल हैं। इस पर एक दूसरे जानकार ने कमेंट किया है कि रामेश्वरम और धनुषकोडी के बीच रेल संपर्क फिर से शुरू करना चाहिए। ये रेल लाईनें 1964 के समुद्री तूफान में बह गई थीं। इस पर अनंत रूपनगुड़ी ने जानकारी जोड़ी है कि यह प्रोजेक्ट शुरू हो गया है, हालांकि शुरुआती दौर में है।
नक्सल प्रभावित बस्तर में सुरक्षा बल के जवानों ने एक-दूसरे को राखी बांधी। एक तो सबकी बहनें उनसे दूर थीं, और दूसरी बात यह कि नक्सल मोर्चे पर मुठभेड़ के दौरान ये जवान ही एक-दूसरे की रक्षा करते हैं। इसलिए यह रक्षाबंधन अधिक असली है। (तस्वीरें एक पत्रकार तन्मय ने दोरनापाल के शिवा के हवाले से ट्विटर पर पोस्ट की है)
छत्तीसगढ़ में कोई भी कोरोना पॉजिटिव मरीज अस्पताल में भर्ती होने की वजह से रक्षाबंधन के त्यौहार से वंचित न रह जाए इसलिए राज्य के हर कोरोना अस्पताल में स्वास्थ्य कर्मचारियों ने मरीजों को राखी बांधी।
अगर आप मुख्यमंत्री हैं तो अस्पताल में भर्ती कोरोना पॉजिटिव मरीज रहते हुए भी लोग आपसे मिलने आते-जाते रह सकते हैं। और अगर आप मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं तो आप कोरोना के इलाज के लिए निजी अस्पताल में भर्ती हो सकते हैं, तमाम सरकारी अस्पतालों को स्तरहीन साबित करते हुए। शिवराज सिंह चौहान से जाकर मिलने की यह तस्वीर टीकमगढ़ के विधायक राकेश गिरी ने पोस्ट की है। जाहिर है कि इन दो मुलाकातियों के अलावा कम से कम एक और व्यक्ति इस तस्वीर को खींचने के लिए वहां रहा होगा। जहां मरीजों को बिस्तर नहीं मिल रहे हैं वहां मुख्यमंत्री के पीछे का बिस्तर खाली दिख रहा है। अब स्वघोषित मामा शिवराज सिंह इस तरह निजी अस्पताल में मुलाकातों का दौर निपटा रहे हैं, और दूसरी जगहों पर कोरोना के नियमों के चलते मरीज के घरवालों को भी उन्हें देखना नसीब नहीं होता। आम और खास का फर्क खासा होता है।
मुम्बई में भारतीय जैन संघटना नामक संस्था के स्वास्थ्य स्वंयसेवक एक सुरक्षा हेलमेट लगाए हुए। यह स्मार्ट हेलमेट थर्मोस्कैन सेंसर से लैस है, और यह सामने वाले व्यक्ति के शरीर का टेम्प्रेचर अपने आप लेते चलता है। मुम्बई और हिन्दुस्तान में कोरोना के मामलों में कमी कोई आसार नहीं है, और ऐसे में सावधानी बरतना ही अकेला तरीका है इसकी सबसे अधिक जरूरत स्वास्थ्य कर्मचारियों को है। ये स्वयंसेवक घर-घर जाकर लोगों का तापमान जांच रहे हैं, और ऐसे में यह हेलमेट बहुत मददगार साबित हो रहा है।
राखी के लिए अलग लैटरबॉक्स तो डाक विभाग ने लगा दिए हैं, लेकिन वे इतने लबालब भर गए हैं कि आज जब यह आदमी लिफाफा डालने पहुंचा, तो उसे लिफाफा भीतर ठूंसने के लिए खासी मेहनत करनी पड़ी। मेहनत तो ठीक है, लेकिन डिब्बे में हर किसी के हाथ ऐसे लगते रहे, तो राखी बाद में सजेगी, कोरोना पहले सज जाएगा। तस्वीर / छत्तीसगढ़
महाराष्ट्र की एक छोटी सी नगर पंचायत ने यह कल्पनाशील होर्डिंग बनाया है लोगों को कोरोना के खतरे से जागरूक करने के लिए। उस पर लिखा है- जिसे 11 मुल्कों की पुलिस न पकड़ सकी उस डॉन को कोरोना ने पकड़ लिया है, इसलिए अधिक होशियार न बनें...
प्रधानमंत्री के चुनाव क्षेत्र बनारस की नालियों से निकलकर सडक़ों पर फैलते पानी की ऐसी तस्वीर पोस्ट करते हुए एक पत्रकार दीपक शर्मा ने ट्विटर पर पीएम को याद दिलाया है कि पांच साल में जापान के क्योटो की तरह जिस काशी को जगमगाना था, उसका आज क्या हाल है। उन्होंने नरेन्द्र मोदी से पूछा है कि क्या जापान के किसी कस्बे में भी गटर ऐसा ओवरफ्लो होता है जैसा काशी में शहर के बीच दो दिन से हो रहा है?
वैसे तो एक सामान्य लाइन लग रही होगी। लेकिन तब आप खौफ से भर जाएंगे,जब ये पता चलेगा कि ये सभी कोरोना मरीज है। लखनऊ के सरकारी अस्पताल मे भर्ती होने के लिए लाइन में लगे हैं। सभी अस्पतालों में बेड फुल हैं। मरीजों के लिए जगह नहीं। तय आपको करना है कि घर पर रहना है या इसका हिस्सा बनना है। (टीवी पत्रकार बृजेश मिश्रा ने ट्विटर पर पोस्ट किया)
ओडिशा के विश्वविख्यात रेत-कलाकार सुदर्शन पटनायक ताजा घटनाओं से प्रभावित होकर या किसी सालगिरह के मौके पर कलाकृतियां बनाते हैं। लेकिन आज उन्होंने लीक से हटकर जगन्नाथपुरी के समुद्र तट पर यह कलाकृति बनाई है जो कहती है कि छत्तीसगढ़ की गोधन न्याय योजना गाय पर जननीति है। किसी राज्य के ऐसे किसी कार्यक्रम पर शायद ही कभी सुदर्शन पटनायक ने कलाकृति बनाई हो।
छत्तीसगढ़ में आम जनता के बीच मलेरिया की जांच का काम जोरों पर चल रहा है। कोरोना की इस दहशत के बीच भी स्वास्थ्यकर्मी पैदल गांव-गांव जाकर लोगों की मलेरिया जांच कर रही हैं। इसके साथ-साथ वे परिवार नियोजन के तरीके समझाकर इसके लिए गर्भनिरोधक भी दे रही हैं। यह तस्वीर आदिवासी बस्तर के कांकेर जिले में दुर्गुकोंदल ब्लॉक के एक गांव की है।
लॉकडाऊन चाहे एक महीने का हो, या एक दिन का, उसके पहले जो भगदड़ मचती है, उसमें सारी सावधानी धरी रह जाती है। बाजारों को बंद करने का इतना फायदा हो सकता है, उससे कहीं अधिक नुकसान बंद के ठीक पहले की भीड़ में धक्का-मुक्की से हो जाता है। कोरोना से बचने के लिए तमिलनाडू की राजधानी चेन्नई में इतवार को पूरा लॉकडाऊन है, तो आज शनिवार को वहां के मछली बाजार में इस तरह की धक्का-मुक्की चल रही है। तस्वीर एक पत्रकार जनार्दन कौशिक ने ट्विटर पर डाली है।
भोपाल की लेखिका और मजदूर-वापिसी में जुटी हुईं तेजी ग्रोवर ने आज दोपहर फेसबुक पर पोस्ट किया है- हमारी गाजियाबाद टीम ने एक बार फिर अपनी संवेदनशीलता का परिचय देते हुए छत्तीसगढ़ की देवन्तीन कुर्रे को टैक्सी से नई दिल्ली स्टेशन पहुंचाया, जहाँ विकास उन्हें गाड़ी में बिठाकर ही घर लौटेंगे। वे अकेली छूट गई थीं क्योंकि टिकट बुक करते वक्त वे पुष्पा रावत की टीम को बता नहीं पायीं। राजधानी एक्सप्रेस या कोविड स्पेशल एक्सप्रेस उन्हें कल बिलासपुर छोड़ेगी। मुझे लगता है कि यह एसी गाड़ी चलाकर सरकार मजदूरों से पैसा ऐंठना चाहती रही होगी। मुसीबत में गांव से पैसा उधार मंगवाकर दिल्ली से बहुत से मजदूर इस स्पेशल गाड़ी से घर लौटे हैं। पहले ही जिन परिवारों की लॉकडाउन के चलते रोजी-रोटी छिन चुकी थी, उन्हें कर्जा उठाकर यात्रा करनी पड़ रही है।
जशपुर जिले के 1700 किसान नाशपाती की खेती से लाभान्वित हो रहे हैं। उघान विभाग की फल क्षेत्र विस्तार योजना का लाभ लेकर किसान रकबा 750 हेक्टेयर में 660 टन नाशपाती का उत्पादन कर रहे हैं। कलेक्टर महादेव कावरे आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रहे हैं। (जशपुर प्रशासन का ट्वीट)
ये शोर, ये नारे इनके लिए नहीं है। सपेरों की बस्ती में कुछ गलियों से गुजरती गलियाँ आज भी दिन के उजालों में अँधेरे की दस्तक दिए बैठी हैं। (तस्वीर और टिप्पणी सत्यप्रकाश पाण्डेय ने की)
तमिलनाडु में एक पोस्टमैन डी सिवन पिछले हफ्ते रिटायर हुए वे कुनूर की नीलगिरी की कठिन पहाडिय़ों में जंगल के रास्ते रोज 15 किलोमीटर जाकर चिट्ठियां और पेंशन पहुंचाते थे। रोज के इस सफर में उन्हें अंधेरी रेलवे सुरंग भी पार करनी पड़ती थी। अभी 65 बरस की उम्र में वे रिटायर हुए तब भी उन्होंने 12 हजार रुपये महीने के वेतन को लेकर कोई शिकायत नहीं की। जंगल जानवरों के बीच का यह कठिन सफर 30 बरस तक रोज का काम रहा।