विचार / लेख

अभी बहुत लिखना है विनोदजी को
04-Nov-2025 5:06 PM
अभी बहुत लिखना है विनोदजी को

-पंकज कुमार झा

कल विनोदजी को देखने अस्पताल जाना हुआ। छत्तीसगढ़ साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष शशांक शर्माजी के साथ। मुख्यमंत्रीजी का संदेश उन्हें दिया, स्वास्थ्य के बारे में पूछा। उन्होंने बस यही कहा कि मुझे घर जाना है। लगा जैसे कोई बच्चा स्कूल की घंटी बजने की प्रतीक्षा में हो।

थोड़ा तेज सुनते हैं। जिस व्यक्ति की आवाज कभी ऊंची नहीं हुई हो, उनसे ऊंची आवाज में बात करना साहस का काम है। अधिक बातों का भावानुवाद पुत्र शास्वतजी ही कर रहे थे। प्रधानमंत्रीजी के फोन करने की बात आयी तो प्रसन्न दिखे। बताया भी कि क्या-कहा मोदीजी ने।

बात वापस फिर से घर वापसी कर लिखना प्रारंभ करने की हुई। शशांक जी ने कहा कि हर वाक्य में अर्ध और पूर्णविराम आता है न, इसे यही समझिए। ‘अगला वाक्य’ फिर घर जा कर लिख लीजिएगा। मुस्कुराने लगे, लगा अपनी कविता में ही कह बैठेंगे कि मैं विराम को नहीं जानता, लिखने को जानता हूं। या कि इलाज को नहीं जानता, घर जाने को जानता हूं। या कि लिखेंगे तो देखेंगे।

पिछले दिन से थोड़े अधिक बेहतर दिखे। फिजियो वाले आए, फेफड़े का एक्सरसाइज कराया। उपकरण में फूक मारते हुए ऐसा लग रहे थे मानों कोई बालक गुब्बारा फुला रहा हो। टहलने भी ले जाया गया परिसर में। घूमकर आए। पिछले दिन जैसी न थकान हुई टहलने में, न ही ऑक्सीजन स्तर आदि उतना असामान्य हुआ, अर्थात् बेहतर हुए हैं पहले से।

 

साथ फोटो लेने का साहस नहीं हुआ। शाश्वतजी से बाद में निवेदन किया कि सर का कोई एक फोटो बाद में भेज देंगे। वे अच्छे फोटोग्राफर हैं और सेवा-सुश्रुषा के बीच-बीच में तस्वीर लेते रहते हैं। अनेक वायरल चित्र उनके लिए हुए ही हैं। तन्मयता से पिताजी की सेवा में लगे देखना सुखकर है। इस पोस्ट के साथ पोस्ट हुआ फोटो उन्होंने ही भेजा है।

अस्पताल में भी लिखने या लिखाने बैठ जाते हैं इस हाल में भी विनोदजी। एक बड़ी पत्रिका के लिए तो इस हाल में भी लंबा साक्षात्कार उन्होंने देर रात तक लिखबा दिया है। वे शीघ्र स्वस्थ होकर घर वापस जायेंगे और लिखने का सिलसिला चलता रहेगा। अब तो विनोदजी बाल साहित्य लिखने लगे हैं, स्वयं बच्चे सा होकर। इतना बड़ा कवि जब बच्चों की साहित्य लिखेगा तो बाल साहित्य की विधा ही कितना बड़ा आसमान पायेगा, कल्पना कीजिए।

अभी बहुत लिखना है विनोदजी को। उन्हें जीने के लिए लिखना ही होगा क्योंकि लिखने को ही तो जीया है उन्होंने जीवन भर।

बकौल आलोक पुतुलजी, विनोदजी अपनी कविताओं में विराम चिह्न का उपयोग करते भी नहीं है।


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