विचार / लेख

सिंघम क्यों चाहिए ?
22-Sep-2025 10:03 PM
सिंघम क्यों चाहिए ?

-अपूर्व गर्ग

जैसा समाज है वैसी ही पुलिस रहेगी। वे अंतरिक्ष से नहीं उतरते बल्कि आपके हमारे और हम सबके घरों से निकलकर पुलिस वाले बनते हैं। एक सीधा सवाल सबको बहुत ईमानदार, अनुशासित, शिष्ट और विद्वान पुलिस की अपेक्षा है। बिलकुल सही अपेक्षा है पर ये समाज ऐसी खरी अपेक्षा के लिए खुद ऐसा कौन सा आदर्श सामने रख पा रहा?

इस बात को यहीं छोड़ते हैं दूसरा सीधा सवाल आम जनता ने ये ‘सिंघम -सिंघम’ क्या रट लगा रखी है और क्यों ?

‘सिंघम’ एक फि़ल्मी चरित्र है जो बुनियादी तौर पर गैर-लोकतांत्रिक है, हिंसक है। धरातल पर खड़े होकर बात करें तो ये चरित्र देश के मूल स्वभाव और संविधान से कितना ज़्यादा उलट है!

जिस तरह गब्बर सिंह की दरिंदगी , हैवानियत ,हिंसक चरित्र के बावजूद समाज ने उसे हीरो बना दिया वैसा ही काम कई दशकों से कई चरित्रों को लेकर जनता ने ये काम किया।

आपको सिंघम क्यों चाहिए?

कानून-संविधान के तहत जान की बाजी लगाकर काम करने वाले जीते जागते ईमानदार पुलिस वाले सिपाही से लेकर आईपीएस तक हमारे बीच हैं ,वो क्यों नहीं चाहिए ?

सुनिए, किसी एक नहीं सभी प्रदेशों में पूरे देश में जब -जब पुलिस वाले सोशल मीडिया में अपनी तस्वीर डालते हैं ..सिंघम ..सिंघम कमेंट्स की बौछार शुरू हो जाती है।

जनता उस पुलिस वाले को ‘सिंघम’ के रूप में देखना ही नहीं चाहती, सोशल मीडिया में ऐसे पोस्ट खंगालती है और उकसाती है।

नतीजा कई पुलिस वालों की रील पर रील और तस्वीरों पर तस्वीरें। इसके बाद लोगों की शिकायत भी कि ये तो बस रील बनाते हैं और सोशल मीडिया में रहते हैं। ऐसी शिकायतों से भी अखबार में खबरें भरी हैं।

हमारा ध्यान कभी इस बारे में जाता है कि इसी पुलिस विभाग में ढेर विद्वान वक्ता, साहित्यकार, कवि, समाज विज्ञानी, डॉक्टर, इंजीनियर, लेखक भरे हैं।

सिंघम जैसों की बजाये ये आदर्श क्यों नहीं हैं?

क्यों पुलिस वालों से फि़ल्मी प्रतिगामी चरित्र की जगह ऐसे विद्वानों की अपेक्षा नहीं करते ?

आप जानते हैं छत्तीसगढ़ के पूर्व डीजीपी विश्वरंजन साहित्यकार फिराक गोरखपुरी के नाती ही नहीं खुद बड़े कवि और साहित्यकार हैं. बताते हैं राजधानी रायपुर से रवाना होने से पहले विश्वरंजन ने अपनी लाइब्रेरी से लगभग दो हजार किताबें लाइब्रेरी को दान में दी थी।

पूर्व पुलिस महानिदेशक विभूति नारायण राय शहर में कर्फ्यू, किस्सा लोकतंत्र, तबादला, प्रेम की भूतकथा और रामगढ़ में हत्या जैसे कई उपन्यासों के लेखक हैं। नौकरी में रहते हुए ही ज़्यादातर उपन्यास लिखे . इसमें खासतौर पर शहर में कर्फ्यू, साम्प्रदायिक दंगे और भारतीय पुलिस सर्वाधिक पठित और चर्चित है। पुलिस महानिदेशक पद से अवकाश प्राप्त विभूति नारायण राय को सराहनीय सेवाओं के लिए इंडियन पुलिस मैडल और उत्कृष्ट सेवाओं के लिए राष्ट्रपति का पुलिस मैडल भी मिला। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति रहे।

कर्नाटक के पूर्व पुलिस महानिरीक्षक खलील उर रहमान उर्दू के विख्यात साहित्यकार रहे जिन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला था।

कैसर खालिद महाराष्ट्र के वरिष्ठ आईपीएस अच्छे शायर और कवि हैं।

पूर्व आईपीएस विकास नारायण राय कवि और प्रगतिशील लेखक जिनकी किताबें ‘भगत सिंह से दोस्ती’, ‘आरक्षण बनाम रोजग़ार’ , ‘दंगे में प्रशासन’ ‘लड़कियों का इंकलाब जि़न्दाबाद’और कविता संग्रह ‘मेरा बयान’ जरूर पढि़ए और सोचिये फिल्मी हिंसक चरित्र चाहिए या समझदार विद्वान अफसर।

बरसों पहले जब मेरी आँख खुली ही थी तो सबसे अच्छी किताबों की चर्चा और जानकारी पूर्व आईपीएस दिलीप आर्य जी ने दी थी। सिर्फ इतना ही नहीं जिंदगी की सबसे अच्छी चुनिंदा अंग्रेजी क्लासिकल फिल्में भी उन्होंने उस ज़माने में वीसीआर से दिखाईं।

छत्तीसगढ़ के पूर्व स्पेशल डीजीपी आर.के.विज साहब का नाम उल्लेखनीय है। अपने चुटीले संवादों से देश की इंटरनेट दुनिया में छाए हुए हैं। ‘द हिन्दू’, ‘द वायर’ से लेकर राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में विज साहब जिन गंभीर बातों को अपने लेखों से उठाते हैं उनसे हलचल होती है।

‘छत्तीसगढ़ अख़बार’ में आपने वरिष्ठ आईपीएस बिलासपुर आई जी संजीव शुक्ल जी के कई लेख पढ़े होंगे। संजीव शुक्ला स्कूल-कॉलेज के जमाने से ही रायपुर ही नहीं मध्यप्रदेश के श्रेष्ठ वक्ताओं में रहे हैं। पूरे प्रदेश में इनके लेख, लघु कथाएं, संवाद चर्चित हुए।

अखबारों के साथ वेबपोर्टल्स ने भी साझा किया। एक पिता की समस्या कि ‘बेटा नियंत्रण में नहीं बाइक लेकर उडऩा चाहता है’  या अधीनस्थ कर्मचारी हो या अपराधी कैसे संवाद हो इसे उन्होंने अपने अनुभव, कोट्स, पंचतंत्र की कहानियों से समझाया। एक आईपीएस अपने लेखों से साहित्यिक-सांस्कृतिक धरोहर का प्रसार कर लोगों को उजाला दिखाने का प्रयास कर रहा ये कितना महत्वपूर्ण है, सोचिये !

हमारे सामने साहित्य, कविता, उपन्यास, ज्ञान-विज्ञान से नाता रखने वाले और समस्याओं की मानवीय ‘संजीव...नी’ हैं, वहीं काल्पनिक विध्वंसक फिल्मी जहर..भी..

संजीवनी चाहिए या फि़ल्मी नशा ?

सिंघम चाहिए या ज्ञान, विवेक का संगम !


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