विचार / लेख
- प्रकाश दुबे
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने सउदी अरब पहुंचकर सामरिक- संधि पर हस्ताक्षर किए। सउदी अरब की तरफ से वचन मिला। पाकिस्तान पर किसी भी हमले को धार्मिक और आर्थिक प्रभुत्व रखने वाले मध्य पूर्व के देश सउदी पर हमला माना जाएगा। अपने अपने चश्मे के नंबर के हिसाब से विशेषज्ञ बताने में जुट गए कि इजराइल के हमले के खिलाफ पाकिस्तान-अरब देशों की एकजुटता है, या इसका कोई धार्मिक कोण है? भारत को छकाने और सताने की अमेरिकी रणनीति का हिस्सा है या कुछ और? पाकिस्तान ने प्रचार माध्यमों का भरपूर सहारा लेकर बताया कि प्रधानमंत्री शाहबाज खान का विमान अरब हवाई सीमा में दाखिल हुआ तभी रायल शाही नभ सेना के एफ-15 जहाज उनकी अगवानी करते हुए राजधानी रियाद के हवाई अड्?डे तक ले गए। प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन सलमान बिन अब्दुल अज़ीज़ अल सउद ने अल यम्मा राजमहल में स्वागत किया। घुड़सवारों का दस्ता तैनात था। 21 तोपों की सलामी दी गई, आदि आदि। भारत में ट्रकों, मकानों आदि पर लिखा रहता है-मां का आर्शीवाद। अरबी भाषा में अल यम्मा का मतलब यही होता है।
सामरिक संधि का निर्णय लेते समय महत्वपूर्ण बैठक के दौरान प्रधानमंत्री के साथ पाकिस्तान के करीब आधा दर्जन मंत्री मौजूद थे। सिंदूर आपरेशन के दौरान चर्चित पाकिस्तान के फील्ड मार्शल सैयद असीम मुनीर विशेष रूप से शामिल थे। अमेरिकी राष्ट्रपति की दावत का असर अवश्य उनकी जुबान और दिमाग में छाया रहा होगा। सैयद तारिक फातमी बैठक में मौजूद थे। बात को हवा में उड़ाते हुए मत कहना कि यूं तो जलवायु परिवर्तन महकमे के मंत्री डा मुसादिक मलिक भी हाजिर थे। बहस-मुबाहिसे में अपनी रुचि नहीं है। दि फ्यूचर आफ पाकिस्तान पुस्तक लिखने मात्र से तारिक फातमी को लेखक बताकर नजऱअंदाज़ नहीं कर सकते। फातमी साहब पैदाइशी बंगाली हैं। पैदा हुए बांग्लादेश में। ताजि़ंदगी पाकिस्तानी बंगाली की छवि के बावजूद विदेश नीतियों की बारीकियों को घोंट कर पी चुके हैं। अमेरिका के सिवा योरोपियन यूनियन में भी तैनात रहे। बीजिंग में पदस्थ रहे और रूस में काम करने के साथ धारा प्रवाह रूसी बोलते हैं। मस्कवा और वाशिंगटन में दो दो बार पाकिस्तान के कूटनीतिक हितों को साधने के लिए बतौर राजदूत ही उन्होंने अपनी सेवाएं नहीं दी।
परमाणु ऊर्जा के अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ हैं। बीस बरस पहले विदेश सेवा से निवृत्त होकर पाकिस्तान मुस्लिम लीग के सदस्य बने। फातमी को जयशंकर की पाकिस्तानी काट कहा जा सकता है। उनमें और भारत के विदेश मंत्री सुब्रमण्यम जयशंकर में बुनियादी अंतर है। जयशंकर मंत्री बने। राज्यसभा के पिछले दरवाजे से संसद में आए। सत्ता की परदे के सामने वाली राजनीति से फातमी बचते रहे। उनकी पत्नी पाकिस्तान की सत्तारूढ़ पार्टी की लोकसभा सदस्य हैं। अनुभव और हुनर में दोनों की तुलना करने की जरूरत नहीं है। दुनिया के चार प्रमुख धर्मों में से एक के सबसे बड़े तीर्थ वाले देश में पहुंचकर सामरिक शतरंज पर गोटियां बिठाने में पाकिस्तान की ललक समझ में आती है। पाकिस्तान यह डींग हांकने नहीं गया कि हमारी तिजोरी में एटम बम है। तेल बादशाह सउदी अरब अमेरिका की नज़दीकी के बावजूद धार्मिक मसलों तक में पचड़े में पडऩे से बचता है। कहने को 22 अरब देशों की अरब लीग का रहनुमा है। फिलस्तीनी विवाद में शाह बयानबाजी से आगे नहीं बढ़ते। गाजा पर इजराइली हमलों को लेकर पहले भी बयान देते थे। गौर करना चाहिए कि पाकिस्तान के साथ संयुक्त वक्तव्य में भी इजराइल को विरोध करने की रस्म अदायगी कर ली। सउदी अरब की राजधानी रियाद से मात्र साठ किलोमीटर की दूरी पर अमेरिकी फौजी ठिकाना है। बड़ी संख्या में अमेरिकी वायुसेना के विमान तैनात हैं। कहा जा सकता है कि अमेरिका सउदी अरब का संरक्षक या रक्षा प्रहरी है। अमेरिका ने अपने तेल कूप बचाकर रखे हैं। खाड़ी देशों का तेल चूसता है। बदले में विलासी जीवन और सैनिक सुरक्षा की गारंटी देता है। अमेरिका के तेवर पर तय होता है कि इजराइल जैसे शत्रु पर कितनी शाब्दिक मिसाइलें दागना है? इजराइल से भारत की मित्रता संयुक्त राष्ट्रसंघ तक जगजाहिर है।
भारत में जासूसी उपकरण पेगासस इजराइल सरकार से आया था। अब तो मतदाता सूचियों में गड़बड़ी का संदेह मशीनों तक जा पहुंचा है। इसके बावजूद रक्षा मंत्री समेत कुछ भारतीय नेताओं के बयान से आम जनता को तसल्ली होगी कि इस तरह की सामरिक संधियां या भारत के खिलाफ नहीं हैं, या फिर भारत का इससे कुछ नहीं बिगड़ता। बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार, मालदिव, चीन वगैरह से रिश्तों के उतार चढ़ाव के बाद संधि के संकेत और दूरगामी लक्ष्य की पहचान जरूरी है। गुरखा की जागते रहो वाली पुकार गली-मुहल्लों में आधी रात को सुनाई न दे तो गहरी नींद में सोने वालों तक की नींद उचट जाती है। रामधारी सिंह दिनकर ने बरसों पहले चेताया था- समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध। जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी इतिहास।। तटस्थता के स्थान पर उदासीनता, निश्चिंतता या चुप्पी जैसा मनपसंद शब्द रखने भर से समस्या हल नहीं होगी।
(लेखक दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक हैं)


