खेल

कई प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को खेल करियर परवान नहीं चढ़ पाता क्योंकि परिवार वालों का जोड़ पढ़ाई लिखाई पर होता है. लेकिन युवा बैडमिंटन खिलाड़ी मालविका बंसोड़ की कहानी इन सबसे अलग है.
मालविका के माता-पिता डेंटिस्ट हैं. उनकी मां ने स्पोर्ट्स साइंस में मास्टर की डिग्री महज इसलिए हासिल की है, वे अपनी बेटी के खेल करियर को बेहतर करने में मदद कर सकें.
नागपुर की मालविका बंसोड़ की विभिन्न खेलों में बचपन से ही दिलचस्पी थी. उनके माता-पिता ने फ़िटनेस और खेल में विकास की संभावना को देखते हुए उन्हें गंभीरता से कोई एक खेल चुनने की सलाह दी. आठ साल की उम्र में मालविका ने बैडमिंटन को चुना.
उनके इस फ़ैसले को माता-पिता का पूरा साथ मिला. उन्होंने अपनी बेटी के लिए ट्रेनिंग की व्यवस्था की और ज़रूरी मानसिक सपोर्ट मुहैया कराया.
मालविका ने शुरुआत से तय कर रखा था कि खेल का असर वह अपनी पढ़ाई पर नहीं पड़ने देंगी. इसके चलते उन्हें ज़्यादा मेहनत करनी पड़ी लेकिन इसका फल भी बेहतर मिला.
मालविका ने दसवीं और बारहवीं की परीक्षा में 90 प्रतिशत से ज़्यादा अंक हासिल किए हैं. इन दोनों परीक्षाओं के बीच में मालविका ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सात मेडल जीतने का करिश्मा कर दिखाया.
मालविका बंसोड़
दोहरी चुनौती का सामना
कामयाबी हासिल कर चुके पेशेवरों के परिवार की मालविका को संसाधन और आधारभूत ढांचे के स्तर पर चुनौतियों का सामना करना पड़ा. अभ्यास के लिए बहुत ज़्यादा सिंथेटिक बैडमिंटन कोर्ट उपलब्ध नहीं थे और जो उपलब्ध भी थे, वहां पर्याप्त रोशनी का अभाव था. इसके अलावा ट्रेनिंग देने वाले कोचों की संख्या भी बेहद कम थी और ट्रेनिंग लेने वाले खिलाड़ियों की संख्या बहुत ज़्यादा. ऐसे में कोच उन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे पाते थे.
जब मालविका ने सब जूनियर और जूनियर लेवल के टूर्नामेंटों में हिस्सा लेना शुरू किया तब जाकर परिवार को अंदाज़ा हुआ कि टूर्नामेंट में हिस्सा लेने के लिए अंतरराष्ट्रीय यात्राओं का ख़र्च बहुत ज़्यादा होने वाला है और स्पॉन्सरशिप तलाश पाना बेहद मुश्किल है.
कामयाबी की राह पर मालविका
मालविका ने राज्य स्तर पर पहले अंडर-13 वर्ग का खिताब जीता फिर अंडर-17 में भी चैंपियन बनीं. भारतीय स्कूल गेम्स फेडरेशन की प्रतियोगिताओं में मालविका ने तीन गोल्ड मेडल जीते. वहीं राष्ट्रीय स्तर की जूनियर और सीनियर वर्ग के टूर्नामेंट में मालविका नौ गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं.
मालदीव में खेले गए इंटरनेशनल फ्यूचर सिरीज़ बैडमिंटन टूर्नामेंट का खिताब जीतकर उन्होंने 2019 में सीनियर इंटरनेशनल लेवल पर शानदार डेब्यू किया. बाएं हाथ की मालविका ने एक सप्ताह के अंदर ही नेपाल में अन्नपूर्णा पोस्ट इंटरनेशनल सिरीज़ का खिताब जीतकर ये साबित कर दिया कि मालदीव की कामयाबी कोई तुक्के में नहीं मिली थी.
मालविका बंसोड़
सीनियर लेवल की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कामयाबी हासिल करने से पहले मालविका जूनियर और युवा वर्ग में भी कामयाबी हासिल कर चुकी थीं.
वह एशियन स्कूल बैडमिंटन चैंपयनशिप और साउथ एशियन अंडर-21 रीजनल बैडमिंटन चैंपियनशिप में भी गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं.
मालविका ने अपने शानदार प्रदर्शन से भारत सरकार और विभिन खेल संगठनों का ध्यान अपनी तरफ़ खींचा है. अब तक उन्हें कई खेल सम्मान भी मिल चुके हैं. इनमें नाग भूषण सम्मान, खेलो इंडिया प्रतिभा पहचान विकास योजना के अलावा टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम का सम्मान मिल चुका है.
खेल के साथ पढ़ाई से तालमेल बिठाने के अपने अनुभव के आधार पर मालविका ने बताया कि खेल और पढ़ाई को आपस में जोड़ने के लिए कुछ बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है.
उनके मुताबिक अकादमिक व्यवस्था को महिला खिलाड़ियों की ज़रूरत के हिसाब से रिस्पांसिव बनाने की ज़रूरत है क्योंकि महिला खिलाड़ी भी देश के लिए मेडल जीतने के साथ साथ अपनी पढ़ाई का नुकसान नहीं चाहती हैं. वह यह भी बताती हैं कि ऐसा होने से महिलाओं के सामने खेल और पढ़ाई में किसी एक को चुनने की ज़रूरत नहीं रहेगी. (bbc.com)