रायगढ़

रायगढ़ से ओपी चौधरी का नाम लगभग तय बहुत जल्द हो सकती है घोषणा
01-Sep-2023 4:40 PM
रायगढ़ से ओपी चौधरी का नाम लगभग तय  बहुत जल्द हो सकती है घोषणा

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

रायगढ़, 1 सितंबर। छत्तीसगढ़ चुनाव को लेकर गहमागहमी शुरू है और भाजपा ने 21 प्रत्याशियों की लिस्ट जारी कर दिया है और लगभग 42 सीटों की घोषणा बहुत जल्द होनी है। बताया जाता है कि इसमें रायगढ़ का भी नाम शामिल है, और यहां से पूर्व आईएएस व भाजपा के महामंत्री ओपी चौधरी का चुनाव लडऩा तय माना जा रहा है। उनके समर्थकों ने इसकी बकायदा तैयारी भी शुरू कर दी है। 

2018 के विधान सभा चुनाव से पहले कलेक्टरी छोडक़र सबको चौंंकाते हुए ओपी चौधरी ने भाजपा ज्वाइन किया था और कांग्रेस का अजेय गढ़ माना जाने वाला विधानसभा क्षेत्र खरसिया से मैदान में उतरे थे।

इस सीट पर हार जीत के लिए दांव खेले जाने लगे और सट्टा बाजार ने भी इस स्थिति का भरपूर फायदा उठाया। इस सीट पर मतदाता बुरी तरह बंट गए थे। इसे पहले 32 हजार वोटों से चुनाव जीतने वाले उमेश पटेल हारने की कगार पर पहुंच गए थे।  

रायगढ़ सीट कितनी सुरक्षित

वैसे रायगढ़ सीट 2003 से चेहरे बदलने के लिए जाना जाता है। 2003 के बाद कोई भी विधायक दुबारा नहीं चुना जा सका। 2018 के चुनाव में प्रकाश नायक यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार बने और त्रिकोणीय संघर्ष में उन्होंने लगभग 16 हजार मतों के अंतर से जीत हासिल की थी। इसके बाद लोकसभा चुनाव में रायगढ़ विधानसभा क्षेत्र से भाजपा ने भारी अंतर से लीड लिया था।

हालांकि बाद में हुए नगर निगम चुनाव और जिला पंचायत चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा। कांग्रेस में बिखराव की बात कही जा रही है, लेकिन यदि ओपी चौधरी चुनाव लड़ते हैं तब परिस्थितियां बदल सकती हैं। हालांकि अभी कांग्रेस ने यहां की टिकट फाइनल नहीं की है लेकिन कांग्रेस ओपी चौधरी के नाम से न सिर्फ  एकजुट होने लगी है बल्कि आक्रामक तेवर दिखाने को भी तैयार है, ओपी चौधरी के चुनाव लडऩे से यह सीट हॉट सीट बन जायेगी और कांग्रेस आलाकमान के अनुशासन का डंडा भी चलेगा ताकि पार्टी एकजुट दिखे। कांग्रेस भी ओपी चौधरी के खिलाफ अलग से रणनीति बनाएगी। हालांकि बातचीत में कोई कांग्रेसी ओपी चौधरी को पार्टी के लिए बड़ा थ्रेट अभी मानने को तैयार नहीं है। 

रायगढ़ के राजनीति में बड़ा बदलाव

भाजपा ने अब तक रायगढ़ में अग्रवाल समाज को ही नेतृत्व करने दिया है। 2008 से पहले कांग्रेस ने भी कुछेक अपवादों को छोडक़र इन्हें नेतृत्व के लिए आगे बढ़ाया था लेकिन 2008 में कांग्रेस में यह परंपरा टूट गई तो यह समाज लगभग पूरी तरह भाजपा की ओर चला गया। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में ओपी चौधरी के आने के बाद इस समाज के हाथ से इस पार्टी का भी ताना बाना निकल जायेगा।

भाजपा में दो फाड़

भाजपा में एक कुनबा ओपी चौधरी को आगे लाना चाहता है और वह इस राजनीतिक परिदृश्य के बड़े बदलाव का साक्षी बनना चाहता है, लेकिन एक बड़ा धड़ा इसके लिए तैयार नहीं है। पार्टी के रूप में बाहर से जितनी एकजुटता दिखती हो लेकिन इस मामले पर पार्टी बुरी तरह बंटी हुई है। कुछ दिन पहले आए पर्यवेक्षक के सामने भी कुछ लोगों ने यह बोलकर विरोध किया कि यहां बड़े नेता को टिकट नहीं दिया जाए, हालांकि उसका असर होता नहीं दिख रहा है। 

अधिकारी वर्सेस नेता

ओपी चौधरी को नेता के बजाय अधिकारी के तौर पर इमेज बनाने की कोशिशें शुरू हो गई है। लोग अजीत जोगी के साथ इनकी तुलना कर रहे हैं, ऐसे में अभी से ओपी चौधरी को इनका काट ढूंढना होगा अन्यथा बहुत कठिन है डगर पनघट की। अभी तक कांग्रेस ने कोई पत्ते नहीं खोले हैं। कई लोगों का मानना है कि भाजपा के टिकट की घोषणा के बाद कांग्रेस भी अपनी रणनीति बदल सकती है। हालांकि टिकट की घोषणा के बाद समीकरण का बनना बिगडऩा लगा रहेगा।


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