बस्तर में यूं तो बहुत सी परमपराएं हैं, जिसमें यहां के स्थानीय लोग अपना मनोरंजन करते हैं, जैसे की इनमें से स्थानीय साप्ताहिक बाजार में सबसे आकर्षण का केंद्र यहां की मुर्गा लड़ाई रहता है, यहां यह परम्परा बरसों से चला आ रहा है, इस रोचक खेल को देखने के साथ-साथ मुर्गों की लड़ाई में लोग हार जीत का दांव भी लगाते हैं, दरअसल ये जो मुर्गा होता है जिसे आपस में लड़ाया जाता है वह असील प्रजाति का होता है। जिसका वैज्ञानिक नाम है गेलस डोमेस्टिकस है। यह बस्तर के अलावा पड़ोस के राज्य आंध्रप्रदेश, उत्तरी तेलंगाना में पाया जाता है इस मुर्गे की नजर तेज और टांगे लंबी होती हैं जो कि मुर्गों की लड़ाई में सहायक होती हैं, इनकी लड़ाई में सबसे पहले मुर्गों की जोड़ी बनाई जाती है और जोड़ी मिलने के बाद उनके पैरों में एक धारनुमा चाकू बांधा जाता है, और आपस में उन्हें लडऩे के लिए एक गोल घेरे में छोड़ दिया जाता है। और दोनों की लड़ाई में कोई एक घायल हो जाता है या अधिक रक्त बहने से उसकी मृत्यु हो जाती है तो जीतने वाले मुर्गे के मालिक उसे अपने साथ ले जाता है।
बस्तर में होने वाले साप्ताहिक बाजारों में मुर्गा लड़ाई के मनोरंजन के लिए भी जाना जाता है, बस्तर में घूमने आए पर्यटक इसे देखने घंटों इंतजार करते हैं। बस्तर में यूं तो बहुत सी परमपराएं हैं, जिसमें यहां के स्थानीय लोग अपना मनोरंजन करते हैं। पशु कू्ररता अधिनियम 1960 के अंतर्गत पशु प्रेमी इस आयोजन को बंद करने की लगातार मांग कर रहे हैं। तस्वीर / ‘छत्तीसगढ़’/ विमल मिंज