राष्ट्रीय

तेजस्वी यादव के चुनावी कैंपेन की बहुमत नहीं हासिल करने के बावजूद तारीफ़ हो रही है. कहा जा रहा है कि तेजस्वी मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए. लेकिन राष्ट्रीय जनता दल के भीतर भी कई नेताओं का मानना है कि तेजस्वी ने कांग्रेस को 70 सीटें देकर सबसे बड़ी ग़लती की थी.
कांग्रेस को 70 में से महज़ 19 सीटों पर ही जीत मिली है और बहुमत से पीछे रह जाने में यह अहम कारण बना. दूसरी तरफ़ महागठबंधन की एक और सहयोगी सीपीआईएमएल ने 19 में से 12 सीटें जीत शानदार प्रदर्शन किया. आरजेडी नेता शिवानंद तिवारी कहते हैं कि पार्टी को को कांग्रेस के सामने इतना नहीं झुकना चाहिए था.
यहां तक कि कांग्रेस 2015 के विधानसभा चुनाव परिणाम को भी नहीं दोहरा पाई. तब कांग्रेस 41 सीटों पर लड़ी थी और उसने 27 सीटों पर जीत हासिल की थी. कांग्रेस के लिए बुरी ख़बर केवल बिहार से ही नहीं बल्कि मध्य प्रदेश से भी आई. मध्य प्रदेश में चंबल के इलाक़े में 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव था लेकिन यहां भी कांग्रेस 9 सीटों पर सीमित रह गई.
अगर कांग्रेस यहां 25 सीटें जीत जाती तो शिवराज सिंह चौहान की सरकार गिर जाती. कांग्रेस का कहना है कि सीटों के बँटवारे में देरी, कमज़ोर उम्मीदवारों का चयन, कमज़ोर संगठन और प्रदेश स्तर के अप्रभावी नेतृत्व के कारण हार मिली है. इसके साथ ही चुनावी अभियान में गठबंधन के साथियों में कोई समन्वय का नहीं होना भी कारण बताया जा रहा है.
बिहार के पूरे चुनावी कैंपेन में राहुल और तेजस्वी की कोई एक साथ रैली नहीं हुई. प्रियंका गांधी भी कैंपेन में नहीं आईं. आरजेडी, लेफ़्ट और कांग्रेस के बीच सीटों का बँटवारा मतदान के ठीक 25 दिन पहले हो पाया था. ये भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस को आरजेडी ने वो सीटें दीं जहां उसके लिए जीतना आसान नहीं था.
कांग्रेस के एक पूर्व अध्यक्ष ने कहा कि 70 सीटें भले मिलीं लेकिन जो सीटें मिलनी चाहिए थीं वो पार्टी ले नहीं पाई. उनका कहना है कि आरजेडी ने वही सीट दी जहां उसके लिए जीत हासिल करना मुमकिन नहीं था. कांग्रेस का कहना है कि उसे वही सीट मिली जहां एनडीए बहुत मज़बूत था.(bbc)