राष्ट्रीय
यूपी में गोमांस रखने के शक में हुई मॉब लिंचिंग के दस साल पुराने एक बहुचर्चित केस को यूपी सरकार ने वापस लेने का फैसला किया है. घटना में मारे गए अखलाक के परिजनों ने सरकार के फैसले पर हैरानी समेत दुख जाहिर किया है.
डॉयचे वैले पर समीरात्मज मिश्र की रिपोर्ट -
दिल्ली से लगे यूपी के ग्रेटर नोएडा इलाके के बिसाहड़ा गांव में 28 सितंबर 2015 को घर में गोमांस रखने की अफवाह पर एक उन्मादी उग्र भीड़ ने 52 वर्षीय अखलाक को उनके घर से बाहर निकालकर इतना मारा-पीटा कि उनकी मौत हो गई. अखलाक के बेटे दानिश को भी इस घटना में गंभीर चोटें आई थीं. अखलाक की पत्नी इकरामन ने उसी रात थाने में शिकायत दर्ज कराई थी जिसमें दस नामजद और चार-पांच अज्ञात लोगों पर हत्या में शामिल होने के आरोप लगाए गए थे.
घटना काफी सुर्खियों में रही और देश-विदेश की मीडिया में इसकी चर्चा होती रही. घटना के तीन महीने बाद यानी दिसंबर 2015 में पुलिस ने अपनी चार्जशीट दायर की जिसमें 15 लोगों को अभियुक्त बनाया गया था. बाद में इस मामले में अभियुक्तों की कुल संख्या 19 हो गई. साल 2016 में एक अभियुक्त की मौत हो गई और बाकी 18 अभियुक्त जमानत पर बाहर आ गए.
घटना के 10 साल बाद, अब उत्तर प्रदेश सरकार ने कोर्ट में एक आवेदन पत्र दाखिल किया है, जिसमें कहा गया है कि इस मामले में गवाहों के बयानों में विरोधाभास है और 'सामाजिक सद्भाव की बहाली' के लिए सरकार ने कोर्ट से केस को वापस लेने की अनुमति मांगी है. इस मामले की अगली सुनवाई 12 दिसंबर को होनी है.
लेकिन राज्य सरकार के इस फैसले से मुहम्मद अखलाक के परिजन गहरे सदमे में हैं. परिवार वालों ने इसे न्याय का अपमान बताते हुए कहा है कि यदि मुकदमा वापस लिया गया, तो वे सरकार के इस फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती देंगे.
अखलाक के परिवार का पलायन
इस घटना के बाद अखलाक का पूरा परिवार गांव छोड़कर चला गया था और उसके बाद कभी वापस नहीं लौटा. अखलाक की पत्नी इकरामन बेगम घटना के बाद से ही आगरा में बड़े बेटे के साथ एक छोटे से फ्लैट में रह रही हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहती हैं, "मेरा सब कुछ उजड़ गया. मेरा पति, मेरा घर, मेरे लोग. दुनिया ने मेरे पति को मरते देखा, हत्यारों को देखा लेकिन जांच करने वालों को कुछ नहीं दिख रहा है. यदि ऐसा ही है तो फिर इंसाफ कहां है.”
अखलाक की पत्नी इकरामन ने पुलिस को दी गई अपनी शिकायत में कहा था, "28 सितंबर, 2015 की रात घर पर उनका पूरा परिवार सो रहा था. करीब साढ़े दस बजे कुछ दक्षिणपंथी हिंदुओं का एक गुट लाठी, लोहे के रॉड, तलवार और तमंचा लिए उनके घर में घुस गया और उन पर गाय को मारने और उसका मांस खाने का आरोप लगाकर अखलाक और उनके बेटे को पीटने लगा. इस घटना में अखलाक की मौत हो गई और उनके 22 वर्षीय बेटे दानिश को गंभीर चोटें आईं."
क्या हुआ था?
दरअसल, 28 सितंबर की रात को ग्रेटर नोएडा के बिसाहड़ा गांव में कथित तौर पर लाउडस्पीकर पर घोषणा की गई कि अखलाक ने गाय को मारकर उसका मांस फ्रिज में रखा हुआ है. यह खबर इलाके में तेजी से फैल गई और फिर तमाम लोगों ने लाठी-डंडे लेकर अखलाक के घर पर धावा बोल दिया.
इस मामले ने देशभर में आक्रोश पैदा किया. घटना के कुछ दिन बाद ही कुछ लोगों की गिरफ्तारियां हुईं. इस घटना के बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए थे. इस घटना के बाद ही 'मॉब लिंचिंग' शब्द व्यापक रूप से इस्तेमाल होने लगा.
केंद्र में करीब डेढ़ साल पहले ही नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी थी. लेकिन अखलाक की मौत के कई दिन बाद प्रधानमंत्री ने इस पर टिप्पणी की थी, जिसे लेकर उनकी काफी आलोचना भी हुई थी. उत्तर प्रदेश में उस वक्त अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी सत्ता में थी.
इस मामले में भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं पर ये आरोप भी लगे कि वे इस घटना से जुड़े हमलावरों का बचाव कर रहे हैं.
सभी अभियुक्त जमानत पर
दिसंबर 2015 में पुलिस ने अपनी चार्जशीट दायर की, जिसमें 15 लोगों को अभियुक्त बनाया गया था. इसमें एक नाबालिग और एक स्थानीय बीजेपी नेता के बेटे के नाम भी शामिल थे. बाद में इस मामले में चार नाम और जोड़े गए जिससे अभियुक्तों की कुल संख्या 19 हो गई. बाद में एक अभियुक्त की मौत हो गई.
अखलाक के परिवार के वकील मोहम्मद यूसुफ सैफी ने डीडब्ल्यू को बताया कि फिलहाल इस मामले में 18 अभियुक्त हैं और इस समय ये सभी जमानत पर बाहर हैं.
अब योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली यूपी की बीजेपी सरकार ने अखलाक की मॉब लिंचिंग के मामले में अभियुक्तों के खिलाफ सभी मामलों को वापस लेने की कार्रवाई शुरू कर दी है. नोएडा के अतिरिक्त जिला सरकारी वकील भाग सिंह भाटी के मुताबिक, राज्य सरकार ने अभियोजन वापस लेने के लिए औपचारिक अनुरोध भेजा है. मीडिया से बातचीत में उन्होंने बताया कि आवेदन सूरजपुर अदालत में प्रस्तुत किया गया और इस पर 12 दिसंबर को सुनवाई होगी.
सरकार क्यों वापस ले रही है केस?
सरकार ने केस वापसी के लिए कोर्ट में जो आवेदन दिया है उसमें दावा किया गया है कि गवाहों के बयानों में विरोधाभास हैं. अखलाक की पत्नी इकरामन ने दस अभियुक्तों के नाम बताए थे जबकि उनके बेटे दानिश ने 19 अभियुक्तों के नाम बताए थे. इसके अलावा जब्त हथियारों में तलवार या पिस्तौल नहीं बल्कि सिर्फ लाठियां, रॉड और ईंटें मिलीं थीं. आवेदन में गोमांस की बरामदगी और परिवार के खिलाफ लंबित गो-हत्या के केस का भी जिक्र है. अखलाक की पत्नी ने अपनी एफआईआर में दावा किया था कि हमलावरों के पास तमंचे और तलवारें भी थीं लेकिन पुलिस को घटनास्थल पर ये चीजें नहीं मिलीं.
सरकार के आवेदन में लिखा है, "उसी गांव का निवासी होने के बाद भी वादी और अन्य गवाहों ने अपने बयानों में अभियुक्तगणों की संख्या में बदलाव किया है.”
आवेदन में यह भी कहा गया है कि घटनास्थल से बरामद मांस को फोरेंसिक रिपोर्ट ने गोमांस बताया है.
दरअसल, साल 2016 में अखलाक के परिवार के खिलाफ गोवध कानून के तहत एक मामला दर्ज किया गया था, जो अब भी अदालत में लंबित है. हालांकि अखलाक के परिवार वालों ने इस बात का कई बार खंडन किया है कि उनके यहां फ्रिज में जो मांस मिला था वो गाय का नहीं बल्कि बकरे का था.
भारत में गाय की हत्या एक बेहद संवेदनशील मुद्दा है. हिंदू समुदाय गाय को पवित्र मानता है और उत्तर प्रदेश देश के उन 20 राज्यों में से है एक है जहां गोहत्या पर प्रतिबंध लागू है.
केस वापसी के यूपी सरकार के फैसले पर हैरानी जताते हुए अखलाक के परिवार के वकील यूसुफ सैफी कहते हैं कि सरकार का ये फैसला कानूनी रूप से गलत है. डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहते हैं, "यह भीड़ हिंसा का मामला है. गवाह बयान दे चुके हैं. यहां सामान्य टेम्पलेट लागू नहीं हो सकते. यदि केस वापसी की इजाजत मिली तो दस साल की अदालती लड़ाई एक आदेश से मिट जाएगी. लेकिन यदि ट्रायल कोर्ट ने मुकदमा वापस लेने की मंजूरी दे दी तो हम लोग इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील करेंगे.”
गौहत्या पर हत्या कितनी जायज?
दादरी में गोमांस रखने की अफवाह के बाद भीड़ ने एक व्यक्ति का कत्ल कर डाला. इस घटना पर हमने लोगों से पूछी उनकी राय. जवाब परेशान करने वाले हैं.
50 साल के मोहम्मद अखलाक की जान एक अफवाह के कारण गयी, जो वॉट्सऐप के जरिए फैली. वॉट्सऐप संदेशों में लिखा गया कि उसने गाय को काटा है. फेसबुक पर कई लोगों ने इस हत्या को जायज बताया है. हालांकि कुछ ऐसे समझदार भी मिले जो मिलजुलकर रहने का आग्रह कर रहे हैं.
योगेंद्र पांडेय ने लिखा है, "दादरी मे जो कुछ हुआ, वह किसी भी सभ्य समाज मे स्वीकार्य नहीं है, पर क्या यह सच्चाई नहीं है कि इसी तरह ईशनिंदा की अफवाह उड़ाकर हर साल सैकड़ों निर्दोष पाकिस्तान, अफगानिस्तान और अरब मुल्कों में मौत के घाट उतार दिए जाते हैं? क्रिया के बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती ही है."
फरीद खान ने लिखा है, "इन कट्टरवादी ताकतों का मुकाबला मिलजुल कर और आपसी ऐतेमाद कायम करके ही किया जा सकता है. आजकल जिस तरह उकसावे की राजनीति करके मुसलमानों के साथ व्यवहार किया जा रहा है, वह ना तो किसी प्रकार उचित है, न ही इस देश की एकता व अखंडता के लिए शुभ संकेत है. कल को अगर यही मजलूम मुसलमान मजबूर होकर हथियार उठा ले, तो उसका जिम्मेदार कौन होगा?"
कुलदीप कुमार मिश्र ने बीफ के निर्यात की ओर ध्यान दिलाते हुए सवाल किया है, "गोमांस के निर्यात में भारत ने विश्व रिकार्ड बना डाला! ब्राजील को पीछे छोड़ कर पहले स्थान पर कब्जा! (2015 का आंकड़ा दिया जा रहा है!) और देश में गाय का मांस खाने पर प्रतिबंध लगता है."
अजय राज सिंह ठाकुर की टिप्पणी, "भीड़ ने जो किया, वह निश्चित ही बहुत गलत और असभ्य था. कुछ भी करने से पहले उस बात कि सच्चाई को जानना चाहिए था. गौ माता और नारियां, दोनों का समान रूप से सम्मान होना चाहिए. ऐसा व्यवहार बहुत ही खेदजनक और शर्मनाक है!!"
कमलकिशोर गोस्वामी लिखते हैं, "हजारों बार देखा है मैंने भारतीय लोकतंत्र को तार तार होते. सत्तर बरस की आजादी लाखों बरस की सभ्यता और ऐसा जंगलीपन. सौ लोगों की भीड़ जो अब कई गांवों में तब्दील हो गई है. सोशल मिडिया पर लोग इतना गंद लिख रहे हैं एक दूसरे के खिलाफ पर कुछ नहीं हो रहा. क्या कहें ऐसे लोकतंत्र पर और क्या कहें उन महानुभवों को जिन्होंने हमें ऐसे लोकतंत्र का तोहफा दिया."
हरिओम कुमार का कहना है, "जिन देशों की आबादी ज्यादा होती है उन देशो में लोकतंत्र काम नहीं करता. खासकर जिन देशों की एक बहुत बड़ी आबादी अनपढ़ हो." इसी तरह रली रली ने लिखा है, "लगाया था जो उसने पेड़ कभी, अब वह फल देने लगा; मुबारक हो हिन्दुस्तान में, अफवाहों पे कत्ल होने लगा." गोपाल पंचोली ने एक अहम बात कही, "गाय और सूअर, फिर आ गई अंग्रेजों वाली राजनीति!"
भारत में खानपान की आदतें केवल व्यक्तिगत पसंद नहीं बल्कि धर्म, जाति, क्षेत्र और आय पर आधारित एक जटिल समीकरण से जुड़ी हैं. देखिए सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में कौन लोग गाय या भैंस का मांस खाते हैं.
राष्ट्रीय सैंपल सर्वे ऑफिस एनएसएसओ के 2011-12 के आंकड़ें दिखाते हैं कि भारत में करीब 8 करोड़ लोग बीफ या भैंस का मीट खाता है.
आंकड़ों के अनुसार बीफ यानि गौमांस और भैंस का मीट खाने वाले ये लोग सभी धर्मों और राज्यों में पाये जाते हैं. इन 8 करोड़ लोगों में करीब सवा करोड़ हिन्दू हैं.
एनएसएसओ के आंकड़ों से हाल के सालों में मीट की खपत बढ़ने का पता चलता है. इस सर्वे में करीब एक लाख लोगों से आंकड़ें इकट्ठे किए गए. देखा गया कि हफ्ते और महीने की औसत अवधि में एक परिवार खाने की किन चीजों पर कितना खर्च करता है.
विश्व में मांस की खपत का लेखाजोखा करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था एफएओ की 2007 में जारी 177 देशों की सूची में भारत को अंतिम स्थान मिला. 43 किलो के विश्व औसत के मुकाबले भारत में प्रति व्यक्ति सालाना मांस की खपत मात्र 3.2 किलो दर्ज हुई.
एफएओ बताता है कि दुनिया भर में लोगों की क्रय क्षमता बढ़ने, शहरीकरण और खानपान की आदतें बदलने के कारण मांस की खपत बढ़ी है. भारत में खपत विश्व औसत से काफी कम है लेकिन वह बीफ, भैंस के मांस और काराबीफ का सबसे बड़ा निर्यातक है.
भारत में धर्म के आधार पर गाय या भैंस का मांस खाने वाला सबसे बड़ा समुदाय 6 करोड़ से अधिक मुसलमानों का है. संख्या के मामले में इसके बाद सबसे अधिक हिन्दू समुदाय आता है. जबकि प्रतिशत के अनुसार मुसलमानों के बाद ईसाई आते हैं.
मुसलमानों के अलावा अनुसूचित जाति और जनजाति (एससी/एसटी) गाय या भैंसों का मीट खाने वाला सबसे बड़ा तबका है. हिन्दुओं में इसे खाने वाले 70 फीसदी से अधिक लोग एससी/एसटी, 21 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग और करीब 7 फीसदी उच्च जातियों से आते हैं.
क्या है राज्यों में "गाय" की स्थिति
भारत में गौहत्या को लेकर विवाद बढ़ता ही जा रहा है. हाल में राजस्थान में तथाकथित गौरक्षकों द्वारा एक व्यक्ति को इतना पीटा गया कि उपचार के दौरान उसकी मौत हो गई. डालते हैं एक नजर इसके संवैधानिक प्रावधान पर.
राज्यों का अधिकार
हिंदू धर्म में गाय का वध एक वर्जित विषय है. गाय को पारंपरिक रूप से पवित्र माना जाता है. गाय का वध भारत के अधिकांश राज्यों में प्रतिबंधित है उसके मांस के सेवन की भी मनाही है लेकिन यह राज्य सूची का विषय है और पशुधन पर नियम-कानून बनाने का अधिकार राज्यों के पास है.
गौहत्या पर नहीं प्रतिबंध
केरल, पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम जैसे राज्यों में गौहत्या पर कोई प्रतिबंध नहीं है. हालांकि संविधान के अनुच्छेद 48 में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत गौहत्या को निषेध कहा गया है.
आंध्रप्रदेश और तेलंगाना
इन दोनों राज्यों में गाय और बछड़ों का वध करना गैरकानूनी है. लेकिन ऐसे बैल और सांड जिनमें न तो प्रजनन शक्ति बची हो और न ही उनका इस्तेमाल कृषि के लिये किया जा सकता हो और उनके लिये "फिट फॉर स्लॉटर" प्रमाणपत्र प्राप्त हो, उन्हें मारा जा सकता है.
राज्य में गाय, बैल और सांड का वध निषेध है. गोमांस को खाना और उसे स्टोर करना मना है. कानून तोड़ने वाले को 7 साल की जेल या 10 हजार रुपये जुर्माना, या दोनों हो सकता है. लेकिन विदेशियों को परोसने के लिये इसे सील कंटेनर में आयात किया सकता है. भैंसों को मारा जा सकता है.
असम और बिहार
असम में गायों को मारने पर प्रतिबंध है लेकिन जिन गायों को फिट-फॉर-स्लॉटर प्रमाणपत्र मिल गया है उन्हें मारा जा सकता है. बिहार में गाय और बछड़ों को मारने पर प्रतिबंध है लेकिन वे बैल और सांड जिनकी उम्र 15 वर्ष से अधिक है उन्हें मारा जा सकता है. कानून तोड़ने वाले के 6 महीने की जेल या जुर्माना हो सकता है.
हरियाणा
राज्य में साल 2015 में बने कानून मुताबिक, गाय शब्द के तहत, बैल, सांड, बछड़े और कमजोर बीमार, अपाहिज और बांझ गायों को शामिल किया गया है और इनको मारने पर प्रतिबंध हैं. सजा का प्रावधान 3-10 साल या एक लाख का जुर्माना या दोनों हो सकता है. गौमांस और इससे बने उत्पाद की बिक्री भी यहां वर्जित है.
गुजरात
गाय, बछड़े, बैल और सांड का वध करना गैर कानूनी है. इनके मांस को बेचने पर भी प्रतिबंध है. सजा का प्रावधान 7 साल कैद या 50 हजार रुपये जुर्माना तक है. हालांकि यह प्रतिबंध भैंसों पर लागू नहीं है.
दिल्ली
कृषि में इस्तेमाल होने वाले जानवर मसलन गाय, बछड़े, बैल, सांड को मारना या उनका मांस रखना भी गैर कानूनी है. अगर इन्हें दिल्ली के बाहर भी मारा गया हो तब भी इनका मांस साथ नहीं रखा जा सकता, भैंस इस कानून के दायरे में नहीं आती.
महाराष्ट्र
राज्य में साल 2015 के संशोधित कानून के मुताबिक गाय, बैल, सांड का वध करना और इनके मांस का सेवन करना प्रतिबंधित है. सजा का प्रावधान 5 साल की कैद और 10 हजार रुपये का जुर्माना है. हालांकि भैंसों को मारा जा सकता है.


