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नयी दिल्ली, 7 सितंबर नयी दिल्ली में इस सप्ताहांत होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए विश्व के कई नेताओं के आने का क्रम शुरू होने के बीच विशेषज्ञों ने बृहस्पतिवार को कहा कि बहुपक्षीय विकास बैंक (एमडीबी) सुधारों पर आम सहमति बनने और जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से कम करने को लेकर कठोर भाषा में प्रस्ताव अंगीकार करने से भारत की नेतृत्व भूमिका बढ़ सकती है।
जी-20 सदस्य देशों का दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी)में 85 प्रतिशत, ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में 80 प्रतिशत योगदान है। जी-20 देशों ऊर्जा मंत्रियों की जुलाई में हुई बैठक में जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने, नवीकरणीय ऊर्जा को तीन गुना करने पर आम सहमति नहीं बन सकी थी।
उल्लेखनीय है कि 2030 तक अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता तीन गुना बढ़ाकर 11 टेरावाट करना और विकासशील देशों को कम ब्याज दर पर वित्तपोषण करना वैश्विक औसत तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
ऊर्जा स्रोतों में बदलाव और एमडीबी सुधारों को लेकर चर्चाओं की जटिलता और अनिश्चितताओं के बावजूद उम्मीद है कि शिखर सम्मेलन के दौरान नेता एकता प्रदर्शित करने के लिए न्यूनतम सहमति पर पहुंच सकते हैं।
भारत को उम्मीद है कि सरकारें जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से कम करने पर सहमत हो जाएंगी। परंतु इस विषय को शिखर सम्मेलन के अंतिम दस्तावेज में जगह नहीं मिलने की स्थिति में पिछले वर्ष बाली शिखर सम्मेलन में कोयला के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से कम करने पर बनी सहमति से देशों के पीछे हटने का जोखिम है।
जी-20 के ऊर्जा मंत्रियों की हुई बैठक में सऊदी अरब ने जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से बंद करने के प्रयासों का विरोध किया था जबकि जी-7 देश पहले ही जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से बंद करने के प्रयासों में तेजी लाने की प्रतिबद्धता जता चुके थे।
अगली संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता के अध्यक्ष सुल्तान अल जाबेर ने जोर दिया है कि जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से कम करना ‘अपरिहार्य’ है, लेकिन यह दुनिया भर में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में पर्याप्त वृद्धि पर निर्भर है।
हालांकि, विशेषज्ञ जी-20 में जीवाश्म ईंधन चर्चा पर सीमित प्रगति की उम्मीद करते हैं।
‘द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट’ की प्रतिष्ठित अनुसंधानकर्ता और कार्यक्रम निदेशक आरआर रश्मि ने कहा, ‘‘जीवाश्म ईंधन के मुद्दे पर वैश्विक प्रगति और ठोस कार्रवाई की कमी के कारण बाली में बनी सहमति के अलावा कोई व्यवस्था की उम्मीद शायद की ही की जा सकती है। यह स्थिति भारत द्वारा प्रौद्योगिकी, हाइड्रोजन, नीली अर्थव्यवस्था और सर्कुलर इकोनॉमी पर लेकर बनाए जा रहे दबाव के बावजूद हो सकती है। ’’
सरकारी और गैर-सरकारी पर्यावरण संगठनों के वैश्विक नेटवर्क, ‘क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क’ (सीएएन) इंटरनेशनल के वैश्विक नीति प्रमुख इंद्रजीत बोस ने सभी जीवाश्म ईंधनों को एक समान चरणबद्ध तरीके से बंद करने की वकालत करते हुए कहा कि इसमें विकसित देशों को अधिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
बेंगलुरु स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज (एनआईएएस) में एसोसिएट प्रोफेसर तेजल कानितकर ने इस बात पर जोर दिया कि जब वैश्विक लक्ष्यों को बिना किसी भेदभाव के समान रूप से लागू किया जाता है, तो विकासशील देशों पर, खासातौर पर उन देशों पर जो ऊर्जा की भारी मांग का सामना कर रहे हैं, अधिक बोझ पड़ता है
उन्होंने कहा कि विकासशील देशों को किसी भी वैश्विक लक्ष्य को तब तक आसानी से स्वीकार नहीं करना चाहिए जब तक कि उसके साथ स्वभाविक न्याय और सामनता के सिद्धांत के साथ विभिन्न जिम्मेदारियां और संबंधित क्षमताओं (सीबीडीआर-आरसी) के आधार पर इन लक्ष्यों को प्राप्त करने की स्पष्ट प्रतिबद्धता न जताई जाए।
स्वतंत्र थिंक टैंक ‘काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवॉयरमेंट एंड वॉटर’ (सीईईडब्ल्यू) के अनुसंधानकर्ता वैभव चतुर्वेदी ने कहा, ‘‘बहस (वित्त पर) किसी दिशा में जा रही है... जी20 स्तर पर, यह पहली बार है कि देश जलवायु वित्त के संचालन के बारे में इतने विस्तृत और गहन तरीके से एमडीबी सुधारों के बारे में बात कर रहे हैं। ’’
हालांकि, उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि अगर जी-20 में वित्त पर सार्थक प्रगति नहीं हुई तो यह चिंताजनक होगा, क्योंकि जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए बाजार को सही दिशा में आगे बढ़ने के लिए मजबूत संकेत आवश्यक हैं।
‘इंटरनेशनल फोरम फॉर एनवायरनमेंट, सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी’ (आईफॉरेस्ट) के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी चंद्रभूषण ने कहा, ‘‘विकासशील देशों के लिए अधिक वित्त, नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को तीन गुना करना और जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना सभी परस्पर एक दूसरे से जुड़े हुए मुद्दे हैं और इन पर एक महत्वाकांक्षी घोषणा भारत की जी-20 की अध्यक्षता के लिए लाभदायक होगी।’’ (भाषा)