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दिल्ली सरकार के प्रचार और विज्ञापन विभाग ने अरविंद केजरीवाल से करोड़ों रुपये लौटाने को कहा है. इस मामले को लेकर आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच राजनैतिक रस्साकशी बढ़ गई है.
डॉयचे वैले पर स्वाति मिश्रा की रिपोर्ट-
दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल को विज्ञापनों में पब्लिक फंड के बेजा इस्तेमाल के मामले में 10 दिन के भीतर 163 करोड़ रुपये लौटाने का आदेश दिया गया है. ये निर्देश डायरेक्टरेट ऑफ इन्फॉर्मेशन एंड पब्लिसिटी (डीआईपी) ने दिया. डीआईपी, दिल्ली सरकार का प्रचार और विज्ञापन विभाग है. डीआईपी के मुताबिक, ये विज्ञापन और उनपर खर्च की गई राशि सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करती है.
इस संबंध में दिल्ली सरकार के सूचना विभाग की सचिव ऐलिस वाज ने केजरीवाल को एक नोटिस भेजा. इसमें चेतावनी देते हुए वाज ने लिखा, "रकम को वापस लौटाने का आखिरी मौका दिया जा रहा है. नोटिस जारी होने के 10 दिन के भीतर यह रकम रीएम्बर्स कर दी जानी चाहिए. ऐसा न होने पर, इस मामले में कानून के मुताबिक आगे की जरूरी कार्रवाई की जाएगी."
अरविंद केजरीवाल को 163 करोड़ रुपए चुकाने को कहा गया है. पहले आंकी गई रकम 97.14 करोड़ रुपये थी, लेकिन 2022-23 की समीक्षा में इसे 106.42 करोड़ रुपये बताया गया. इसमें 7.11 करोड़ रुपये अन्य विज्ञापन एजेंसियों के हैं. 106.42 करोड़ रुपये में से 7.11 करोड़ रुपये घटाने पर 99.31 करोड़ रुपये बनते हैं. इस राशि में 64.30 करोड़ रुपये जुर्माने के तौर पर लगाया गया ब्याज है, इस तरह कुल मिलाकर 163 करोड़ रुपए हुए.
कब का है मामला?
यह मामला मई 2015 के एक घटनाक्रम से जुड़ा है. दो संगठनों, कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन, ने 2015 में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. संविधान के आर्टिकल 32 के अंतर्गत, इन्होंने केंद्र और सभी राज्य सरकारों पर एक प्रतिबंध लगाने की अपील की, ताकि सरकारें पब्लिक फंड का इस्तेमाल ऐसे सरकारी विज्ञापनों पर ना करें, जिनका मकसद सरकार से जुड़े किसी व्यक्ति या मंत्री या किसी राजनैतिक दल का प्रचार करना हो.
इसपर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने केंद्र सरकार को एक विशेष समिति बनाने का निर्देश दिया. साथ ही, कोर्ट ने पब्लिक फंड का इस्तेमाल कर सरकारों द्वारा दिए जाने वाले विज्ञापनों के संबंध में कुछ दिशानिर्देश भी जारी किए. अदालत के निर्देश पर केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने अप्रैल 2016 में कमिटी ऑन कंटेंट रेग्यूलेशन इन गवर्नमेंट एडवरटाइजिंग (सीसीआरजीए) का गठन किया. इस समिति का काम केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा सभी मीडिया प्लेटफॉर्मों पर दिए गए सरकारी विज्ञापनों पर नजर रखना था.
आप पर आरोप
2016 में कांग्रेस नेता अजय माकन ने सीसीआरजीए में एक शिकायत दर्ज की. इसमें दिल्ली सरकार पर सरकारी विज्ञापनों से जुड़ी सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के उल्लंघन और विज्ञापनों पर पब्लिक फंड के व्यर्थ इस्तेमाल का आरोप लगाया गया था. इसके बाद कमिटी ने दिल्ली की केजरीवाल सरकार को निर्देश दिया कि वह संबंधित विज्ञापनों पर खर्च की गई समूची रकम आप से लेकर सरकारी खजाने में वापस लौटाए.
आप ने इस आदेश की पुनर्समीक्षा के लिए याचिका डाली, लेकिन इसे खारिज करते हुए डीआईपी ने एक डिमांड नोटिस जारी कर दी. इससे राहत पाने के लिए आप दिल्ली हाई कोर्ट पहुंची, लेकिन अदालत ने डीआईपी के डिमांड ऑर्डर पर रोक नहीं लगाई.
पिछले महीने भी एलजी ने दिया था आदेश
दिसंबर 2022 में इस मामले ने फिर जोर पकड़ा. दिल्ली के लेफ्टिनेंट गर्वनर वी के सक्सेना ने 20 दिसंबर को एक आदेश जारी कर दिल्ली के चीफ सेक्रेटरी को आप से 97 करोड़ रुपये रिकवर करने का निर्देश दिया. एलजी ने कहा कि ये राजनैतिक विज्ञापन थे, लेकिन दिल्ली सरकार ने इन्हें सरकारी विज्ञापनों की आड़ में छापा था.
साथ ही, एलजी ने यह भी निर्देश दिया कि चीफ सेक्रेटरी सितंबर 2016 से अबतक के दिल्ली सरकार द्वारा छापे और टेलिकास्ट किए गए सभी विज्ञापनों का ब्योरा इकट्ठा करे और इसे सीसीआरजीए को रेफर करे. सीसीआरजीए को इन विज्ञापनों की समीक्षा कर ये देखना था कि ये सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के मुताबिक हैं या नहीं. एलजी का कहना था कि रिकवरी के संबंध में उन्होंने जो निर्देश दिए हैं, वो सीसीआरजीए के 2016 के फैसले पर ही अमल हैं.
एलजी के आदेश का बीजेपी और कांग्रेस, दोनों ने स्वागत किया था. अजय माकन ने एलजी के फैसले की तारीफ करते हुए ये मांग की कि आप से केवल 97 करोड़ नहीं, बल्कि 675 करोड़ रुपये लिए जाने चाहिए. माकन का कहना था सरकार को बाजार की दर की एक तिहाई कीमत में विज्ञापन की जगह मिलती है. ऐसे में आप से विज्ञापन की लागत का तीन गुना और साथ में पांच साल की ब्याज दर वसूली जानी चाहिए. एलजी के दिसंबर 2022 में दिए गए निर्देश की ही कड़ी में अब डीआईपी ने केजरीवाल को रिकवरी का नोटिस जारी किया है.
आरोप-प्रत्यारोप
इस मुद्दे ने आप और बीजेपी के बीच राजनैतिक रस्साकशी का एक और मोर्चा खोल दिया है. दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने डीआईपी के निर्देश को पूरी तरह से अवैध बताया है. एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए उन्होंने आरोप लगाया, "दिल्ली सरकार में जो अफसर काम करते हैं, उनके ऊपर बीजेपी ने केंद्र सरकार के माध्यम से पिछले सात साल से अवैध और असंवैधानिक नियंत्रण कर रखा है. बीजेपी लगातार अफसरों के ऊपर इस असंवैधानिक कब्जे का दुरुपयोग करती रही है."
सिसोदिया ने इल्जाम लगाया कि बीजेपी ने दिल्ली सरकार की सूचना विभाग की सचिव ऐलिस वाज से आप को नोटिस दिलवाया है और कहा है कि दिल्ली से बाहर के राज्यों में दिए गए विज्ञापनों का खर्च अरविंद केजरीवाल से वसूला जाए. उन्होंने कहा, "दिल्ली के अखबारों में बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के विज्ञापन छपते हैं और सरकारी होर्डिंग लगते हैं. क्या इनका खर्च उन मुख्यमंत्रियों से वसूला जाएगा?"
आप पहले भी एलजी पर केंद्र की बीजेपी सरकार के अजेंडे पर काम करने का आरोप लगाती रही है. दिसंबर में एलजी द्वारा जारी निर्देश को भी आप ने गैरकानूनी बताया था. आप ने आरोप लगाया था कि बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने विज्ञापनों पर 22 हजार करोड़ रुपये खर्च किए हैं. (dw.com)