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कोरोना के गंभीर मरीजों के इलाज में अब डॉक्टरों के लिए सही वक्त पर सही निर्णय लेना हुआ आसान: रिसर्च
29-Oct-2021 4:07 PM
कोरोना के गंभीर मरीजों के इलाज में अब डॉक्टरों के लिए सही वक्त पर सही निर्णय लेना हुआ आसान: रिसर्च

रांची, 29 अक्टूबर | कोरोना के गंभीर मरीजों के इलाज के दौरान डॉक्टरों के लिए सही वक्त पर सही निर्णय लेना अब ज्यादा आसान होगा। रांची स्थित राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (रिम्स) में हुए एक रिसर्च के निष्कर्ष से देश-दुनिया केडॉक्टरों को कोरोना मरीजों के इलाज में बड़ी मदद मिलेगी। इस रिसर्च के दौरान रिम्स में भर्ती कराये गये कुल 1301 गंभीर मरीजों पर अध्ययन किया गया और इसके आधार परजो नतीजे आए, उससे संबंधित पेपर अमेरिका के जर्नल ऑफ क्रिटिकल केयर में प्रकाशित हुआ है। यह रिसर्च रिम्स के डायरेक्टर डॉ कामेश्वर प्रसाद की अगुवाई में छह डॉक्टरों की टीम ने किया। बता दें कि डॉ कामेश्वर प्रसाद को मेडिकल फील्ड में महत्वपूर्ण योगदान के लिए पद्मश्री सम्मान प्राप्त हो चुका है।रिसर्च टीम के प्रमुख सदस्य रिम्स के क्रिटिकल केयर डिपार्टमेंट के डॉ जयप्रकाश ने को बताया कि यह रिसर्च उन मरीजों पर था, जिन्हें इलाज के दौरान या तो हाईफ्लो ऑक्सीजन देना पड़ा या फिर जिन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया। भारत में कोरोना के पहली और दूसरी लहर के दौरान गंभीर मरीजों का इलाज करते हुए डॉक्टरों में इस बिंदु पर दुविधा रही कि उन्हें वेंटिलेटर पर शिफ्ट करने का निर्णय कब लिया जाना चाहिए? रिम्स का रिसर्च डॉक्टरों की इसी दुविधा को दूर करने में मददगार होगा।

डॉ जयप्रकाश के अनुसार, इस रिसर्च का सबसे प्रमुख निष्कर्ष यही है कि मरीज को एचएफएनसी यानी हाई फ्लो ऑक्सीजन देने के बावजूद अगर ऑक्सीजन सैचुरेशन लेवल न्यूनतम 90 तक नहीं पहुंचे तो मरीज के रॉक्स इंडेक्स के आधार पर उसे वेंटिलेटर पर शिफ्ट करने का निर्णय लिया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि रॉक्स इंडेक्स वह पैमाना है, जिसके जरिए हाई फ्लो ऑक्सीजन थेरेपी के इस्तेमाल के दौरान मरीज की सांस लेने की क्षमता का आकलन किया जाता है।

रिम्स झारखंड का सबसे बड़ा मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल है, जहां कोरोना की पहली और दूसरी लहर के दौरान हजारों मरीजों का इलाज किया गया था। रिम्स क्रिटिकल केयर डिपार्टमेंट और ट्रॉमा सेंटर के हेड डॉ प्रदीप भट्टाचार्य ने बताया कि इस रिसर्च में टीम ने आठ महीने लगाये। 1301 गंभीर मरीजों के लक्षणों, इलाज के दौरान इस्तेमाल थेरेपी के दौरान उनके व्यवहार सहित विभिन्न डेटा के गहन अध्ययन के बाद सामने आये निष्कर्ष अत्यंत महत्वपूर्ण रहे हैं। अमेरिकी जर्नल ने इस रिसर्च को मान्यता दी है। रिसर्च करने वाली टीम में डॉ कामेश्वर प्रसाद के अलावा डॉ जयप्रकाश, डॉ प्रदीप भट्टाचार्य, डॉ लाल चंद टुडू, डॉ अमित कुमार और डॉ अरुण कुमार शामिल थे। (आईएएनएस)


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