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मध्यस्थ बदलने से मंजिल तक पहुंचेगी नागा शांति प्रक्रिया?
29-Sep-2021 4:31 PM
मध्यस्थ बदलने से मंजिल तक पहुंचेगी नागा शांति प्रक्रिया?

नागा संगठनों के साथ 24 साल से जारी शांति प्रक्रिया में मध्यस्थ आर.एन. रवि के हटने के बाद अब असम और नागालैंड के मुख्यमंत्री को भी इस कवायद में शामिल किया गया है ताकि इस जटिल समस्या पर जारी गतिरोध को दूर किया जा सके.

   डॉयचे वेले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट 

रवि ने औपचारिक तौर पर हाल ही में मध्यस्थ पद से इस्तीफा दे दिया. उनको तमिलनाडु का राज्यपाल नियुक्त किया गया है. इस बीच, हिमंत बिस्वा सरमा ने भरोसा जताया है कि नागा समस्या का समाधान शीघ्र हो जाएगा. दूसरी ओर, असम कांग्रेस ने इस पूरी कवायद पर सवाल उठाते हुए केंद्र से वर्ष 2015 के समझौते के प्रावधानों का खुलासा करने को कहा है.

अलग संविधान और झंडे की मांग पर बीते करीब एक साल से नागा शांति प्रक्रिया में गतिरोध पैदा हो गया था. इस प्रक्रिया में मध्यस्थ रहे राज्य के पूर्व राज्यपाल आर.एन. रवि से नागा संगठनों में भारी नाराजगी थी. हालांकि रवि बार-बार इस गतिरोध के शीघ्र सुलझाने का दावा कर रहे थे. नागा संगठनों ने अब इस मुद्दे पर रवि के साथ बातचीत जारी रखने से इंकार कर दिया था. उसके बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एनएससीएन(आईएम) के साथ बातचीत जारी रखने के लिए खुफिया ब्यूरो(आईबी) के अधिकारियों की एक टीम बनाई थी. फिलहाल खुफिया ब्यूरो के पूर्व विशेष निदेशक ए.के. मिश्र ने नागा संगठन से बातचीत शुरू की है. उनको रवि की जगह औपचारिक तौर पर मध्यस्थ नियुक्त किए जाने की संभावना है. लेकिन अब केंद्र ने इस मामले में राजनेताओं को भी शामिल करने की पहल की है. इसी कवायद के तहत हिमंत और नेफ्यू रियो ने मुइवा के साथ बैठक की है.

सूत्रों का कहना है कि आर.एन.रवि ने राज्यपाल रहते बीते साल अगस्त में उस समझौते के कथित संशोधित संस्करण को सार्वजनिक कर दिया था. उससे नागा संगठनों में भारी नाराजगी फैल गई थी. नागा संगठनों की नाराजगी को ध्यान में रखते हुए अब रवि को तमिलनाडु का राज्यपाल बना दिया गया है. रवि के तबादले पर नागा संगठनों ने प्रसन्नता जताई है. इसके साथ ही असम के मुख्यमंत्री और बीजेपी के नेतृत्व वाले नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (नेडा) के संयोजक हिमंत को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया गया है.

शांति प्रक्रिया में राजनेता भी

हिमंत और नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने बीते सप्ताह दीमापुर में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल आफ नागालैंड (एनएससीएन) के सबसे बड़े नेता टी.मुइवा के साथ मुलाकात की थी. केंद्र के साथ बातचीत शुरू करने के बाद से ऐसा पहली बार हुआ है जब एनएससीएन (आईएम) ने राजनीतिक नेताओं के साथ बातचीत की है. हालांकि यह बातचीत अनौपचारिक थी. लेकिन माना जा रहा है कि शांति प्रक्रिया को पटरी पर लाने के लिए एक राजनीतिक चैनल की शुरुआत है.

हिमंत ने बैठक के बाद सोशल मीडिया पर अपनी एक पोस्ट में कहा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह पूर्वोत्तर में शांति सुनिश्चित करने के लिए कृतसंकल्प हैं. इसी सिलसिले में हमने भारत सरकार के साथ चल रही शांति वार्ता के बारे में नागालैंड के माननीय मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो की उपस्थिति में दीमापुर में एनएससीएन(आईएम) के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा की.”

दूसरी ओर, एनएससीएन (आईएम) के नेता के नेता आरएच राइजिंग ने बैठक के बाद कहा, "सभी चीजों को फ्रेमवर्क समझौते के आधार पर शुरू किया जाना चाहिए. हम उस पर अमल के लिए वचनबद्ध हैं. कोविड-19 महामारी के बाद हमारी बातचीत दोबारा शुरू हो गई है.” उनका कहना था कि भारत सरकार ने हमें एक पत्र भेजा है जिसमें कहा गया है कि मिश्र हमारे नेताओं के साथ बातचीत करेंगे. लेकिन नागा समस्या का समाधान हर पक्ष को स्वीकार्य होना चाहिए. हम अपने काडरों की भावनाओं की अनदेखी कर किसी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं कर सकते.

कांग्रेस ने उठाया सवाल

इस बीच, असम प्रदेश कांग्रेस ने नागा शांति प्रक्रिया में हिमंत बिस्वा सरमा को शामिल करने के फैसले पर सवाल उठाते हुए पूछा है कि आखिर विधानसभा को भरोसे में लिए बिना मुख्यमंत्री किसी ऐसे संगठन से बातचीत किस हैसियत से कर रहे हैं जो अपनी ग्रेटर नागालिम में असम के कुछ इलाकों को भी शामिल करने की मांग कर रहा है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेन कुमार बोरा सवाल करते हैं, "असम के मुख्यमंत्री किस हैसियत से नागा संगठन से बात कर रहे हैं? क्या वे मंत्रिमंडल और विधानसभा को भरोसे में लिए बिना ऐसा कर सकते हैं?”

यहां इस बात का जिक्र जरूरी है कि एनएससीएन शुरू से ही असम, मणिपुर, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश के नागा बहुल इलाकों को मिला कर ग्रेटर नागालिम नाम से अलग राज्य के गठन की मांग करता रहा है. वर्ष 2015 में एनएससीएन, केंद्र और नागालैंड सरकार के बीच इस मुद्दे पर एक फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे. हालांकि उसके प्रावधानों का अब तक खुलासा नहीं किया गया है. उस समझौते के छह साल बाद भी यह शांति प्रक्रिया परवान नहीं चढ़ सकी है.

असम कांग्रेस प्रमुख बोरा कहते हैं, "नागा शांति प्रक्रिया में हिमंत की भागीदारी से पूरी कवायद संदेह के घेरे में आ गई है. इसलिए केंद्र को वर्ष 2015 के फ्रेमवर्क समझौते के प्रावधानों को तुरंत सार्वजनिक करना चाहिए.”

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि आर.एन.रवि ने शुरुआती दौर में मध्यस्थ के तौर पर बेहतर काम किया था. नागालैंड का राज्यपाल बनने के बाद उनकी भूमिका कुछ बदल गई थी. उन्होंने नागा शांति प्रक्रिया पर कई अटपटे बयान देकर तमाम संगठनों को नाराज कर दिया था. वरिष्ठ पत्रकार पी.सी. बरुआ कहते हैं, "नागालैंड में शांति बहाल होना फिलहाल दूर की ही कौड़ी है. नागा संगठन अलग झंडे और संविधान की मांग पर अड़े हैं. लेकिन केंद्र इसके लिए तैयार नहीं है. शायद इसीलिए अब राजनेताओं को भी इस कवायद में शामिल किया जा रहा है. लेकिन इससे यह प्रक्रिया और लंबी खिंचने के आसार बढ़ गए हैं.” (dw.com)


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