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पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में भवानीपुर विधानसभा सीट पर होने वाला उपचुनाव सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के लिए नाक और साख का सवाल बन गया है. इस सीट पर मुख्यमंत्री और पार्टी अध्यक्ष ममता बनर्जी मैदान में हैं
डॉयचे वेले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट
ममता बनर्जी के मुकाबले बीजेपी ने कलकत्ता हाईकोर्ट में एडवोकेट प्रियंका टिबरेवाल को मैदान में उतारा है. यहां टीएमसी ममता की जीत को लेकर चिंतित नहीं है. उसकी चिंता जीत के अंतर को बढ़ाना है. ममता के भतीजे सांसद अभिषेक बनर्जी कहते हैं, "हम कम से कम एक लाख वोटों के अंतर से जीत सुनिश्चित करना चाहते हैं.”
मंगलवार से ही बंगाल की खाड़ी पर बने निम्न दबाव की वजह से कोलकाता और आसपास के इलाकों में लगातार भारी बारिश हो रही है. इससे महानगर के कई इलाकों में पानी भर गया है. इस बारिश ने टीएमसी की चिंता बढ़ा दी है. मौसम खराब होने की स्थिति में लोगों को घरों से निकाल कर मतदान केंद्रों तक पहुंचाना ही पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. इस विधानसभा क्षेत्र में मतदान का प्रतिशत करीब 50 फीसदी ही रहता है.
क्यों हो रहा उपचुनाव
राज्य में विधानसभा की सात सीटें खाली हैं. लेकिन 30 सितंबर को इनमें से तीन सीटों पर ही मतदान होगा. बाकी चार सीटों पर 30 अक्तूबर को मतदान होना है. भवानीपुर ममता बनर्जी की पारंपरिक सीट रही है. वह वर्ष 2011 और 2016 के विधानसभा चुनाव में यहां से जीती थीं. लेकिन बीजेपी की चुनौती स्वीकार करते हुए उन्होंने इस साल अप्रैल-मई में हुए चुनाव के दौरान पूर्व मेदिनीपुर के नंदीग्राम से मैदान में उतरी थीं.
वहां मतदान और मतगणना पर उभरे विवादों के बीच कभी बेहद करीबी रहे बीजेपी उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी ने ममता को दो हजार से भी कम वोटों के अंतर से पराजित कर दिया था. बीते विधानसभा चुनाव में भवानीपुर सीट से टीएमसी उम्मीदवार शोभनदेव चटर्जी मैदान में थे और उन्होंने करीब 29 हजार वोटों के अंतर से यहां जीत हासिल की थी. लेकिन ममता की हार के बाद शोभनदेव ने इस्तीफा देकर मुख्यमंत्री के लिए यह सीट खाली कर दी थी.
भवानीपुर के साथ ही मुर्शिदाबाद जिले की जंगीपुर और शमशेरगंज सीटों पर भी कल ही मतदान होगा. वहां अप्रैल-मई में हुए चुनाव के दौरान दो उम्मीदवारों के निधन की वजह से चुनाव स्थगित कर दिया गया था.
भवानीपुर के समीकरण
इस सीट पर जो 12 उम्मीदवार मैदान में हैं उनमें पांच महिलाएं हैं. कांग्रेस ने भवानीपुर सीट पर कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है जबकि सीपीएम ने श्रीजीव विश्वास को अपना उम्मीदवार बनाया है. इस साल अप्रैल में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस इस सीट पर तीसरे नंबर पर रही थी. ममता बनर्जी ने वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस-वाम गठजोड़ की उम्मीदवार दीपा दासमुंशी को करीब 25 हजार वोटों के अंतर से हराया था.
दक्षिण कोलकाता की इस विधानसभा सीट के जातीय समीकरण दिलचस्प हैं. इलाके के करीब 40 फीसदी वोटर गैर बंगाली हैं. इनमें गुजराती, मारवाड़ी, सिख और बिहारी तबके की तादाद सबसे ज्यादा है. इसके अलावा 20 फीसदी आबादी मुसलमानों की है जबकि बाकी 40 फीसदी बंगाली हैं.
इसी वजह से इस इलाके को ‘मिनी इंडिया' भी कहा जाता है. गुजराती और मारवाड़ी तबके के लोगों को पारंपरिक तौर पर बीजेपी का समर्थक माना जाता है. शायद इसी वजह से बीजेपी ने यहां एक हिंदीभाषी प्रियंका टिबरेवाल को मैदान में उतारा है. केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी, स्मृति ईरानी और सांसद मनोज तिवारी जैसे लोग यहां पार्टी का प्रचार कर चुके हैं.
इलाके के जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए यहां बीजेपी की जमीन मजबूत नजर आती है. लेकिन सीट का चुनावी इतिहास टीएमसी के पक्ष में है. बीते एक दशक में होने वाले छह चुनावों में से पार्टी महज एक बार यहां पराजित हुई है. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान इस विधानसभा सीट पर बीजेपी को उसके मुकाबले बढ़त मिली थी.
शोभनदेव बताते हैं, "जिन इलाकों में गुजराती और मारवाड़ी तबके की आबादी ज्यादा है वहां भी हमें काफी वोट मिलते रहे हैं. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में हम इलाके के महज दो वॉर्डों में बीजेपी से पीछे थे. लेकिन अबकी ममता के मैदान में होने की वजह से इस बार हमें गैर-बंगाली तबके के वोटरों का भी पूरा समर्थन मिल रहा है.” उनका कहना है कि हम जीत के लिए नहीं बल्कि जीत का अंतर बढ़ाने के लिए मेहनत कर रहे हैं.
जोरदार अभियान
भवानीपुर में ममता बनर्जी की जीत लगभग पक्की होने के बावजूद पार्टी या खुद ममता ने चुनाव अभियान में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. ममता अपने चुनाव अभियान के दौरान केंद्र सरकार और बीजेपी के केंद्रीय नेताओं के प्रति हमलावर रही हैं.
उसके बाद बीजेपी को ममता के खिलाफ मुद्दा मिल गया है. बीजेपी नेताओं का दावा है कि ममता बनर्जी को अब इस बात का अहसास हो गया है कि भवानीपुर सीट पर जीत की राह आसान नहीं है. यही वजह है कि उनको पहले दिन से ही पसीना बहाना पड़ रहा है.”
लेकिन टीएमसी नेता सौगत राय दलील देते हैं, "किसी भी उपचुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी का पलड़ा हमेशा भारी रहता है. लोग उसी का समर्थन करते हैं. जहां तक ममता के प्रचार की बात है वह हर चुनाव को युद्ध के तौर पर लेती हैं.”
उधर, बीजेपी ने अपने अभियान के दौरान टीएमसी के कथित भ्रष्टाचार और चुनाव बाद हुई हिंसा को ही मुद्दा बनाया है. बीजेपी उम्मीदवार और कलकत्ता हाईकोर्ट की एडवोकेट प्रियंका टिबरेवाल कहती हैं, "यह धारणा गलत है कि हम सिर्फ गैर बंगाली वोटरों पर ही ध्यान दे रहे हैं. हम सबके पास पहुंच रहे हैं.”
बीजेपी ने चुनाव आयोग से मतदान के दिन इलाके में धारा 144 लागू करने की मांग उठाई है ताकि मुक्त व निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित किया जा सके. इस चुनाव को चुनौती देते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की गई थीं. लेकिन अदालत ने राज्य सरकार और चुनाव आयोग की खिंचाई के बावजूद चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि भवानीपुर सीट से ममता की जीत पर कोई संदेह नहीं है. बीजेपी खुद को मुकाबले में जरूर बता रही है. लेकिन नतीजों से तस्वीर साफ हो जाएगी. राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर समीरन पाल कहते हैं, "ममता इस सीट पर भारी अंतर से जीत कर बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए एक कड़ा संदेश देना चाहती हैं. उन्होंने कहा भी है कि यह खेल भवानीपुर से शुरू होकर केंद्र की जीत पर ही खत्म होगा. यही वजह है कि मुख्यमंत्री और उनकी पार्टी ने इस उपचुनाव में पूरी ताकत झोंक दी है."
(dw.com)