महासमुन्द

केंद्र से छग में डीएपी की सप्लाई ही नहीं हो रही तो खुले बाजार में कैसे-चंद्राकर
23-Jun-2025 3:45 PM
केंद्र से छग में डीएपी की सप्लाई ही नहीं हो रही तो खुले बाजार में कैसे-चंद्राकर

डीएपी खाद को समितियों तक न पहुंचाकर खुले बाजार में बेचा जा रहा

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

महासमुंद, 23 जून। पूर्व संसदीय सचिव छ.ग. शासन व महासमुंद के पूर्व विधायक विनोद सेवनलाल चंद्राकर ने कहा कि प्रदेश में कथित डबल इंजन की सरकार किसानों के लिए बड़ी परेशानी का सबब बन गया है। पूरे प्रदेश में किसानों को भाजपा निर्मित कृत्रिम खाद संकट का सामना करना पड़ रहा है। सहकारी समितियों को डीएपी खाद की सप्लाई ना कर सरकार द्वारा खुले बाजार में अधिक दाम पर बेचने उपलब्ध करा दिया गया है। सरकार के दोहरे चरित्र के चलते उनके किसान विरोधी चेहरा उजागर हो गया है। डीएपी संकट को लेकर आए दिन प्रशासनिक अमले यह कह रहे हैं, कि केंद्र द्वारा प्रदेश को डीएपी की सप्लाई नहीं होने के कारण यह संकट उत्पन्न हुई है। यदि ऐसा है तो निजी दुकानों में डीएपी का स्टाक कहां से किया जा रहा है। यदि केंद्र से प्रदेश में डीएपी ही नहीं आता तो खुले बाजार में भी डीएपी संकट की स्थिति दिखाई देती। लेकिन, प्रदेश में केवल शासकीय दुकानों में ही किसानों को डीएपी उपलब्ध नहीं कराया जा रहा, जबकि खुले बाजार में भारी मात्रा में डीएपी उपलब्ध है। जिसे किसानों की विवशता का लाभ उठाकर ऊंचे दरों पर बेचा जा रहा है।

श्री चंद्राकर ने कहा कि शासन-प्रशासन केंद्र से पूरे प्रदेशभर में डीएपी खाद की सप्लाई नहीं होने की जानकारी दे रहा, ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि जब जिला सहित पूरे प्रदेश में केंद्र से डीएपी खाद की सप्लाई नहीं होने की बात कही जा रही है, तो निजी दुकान संचालकों के पास कहां से उपलब्ध हो रहा है। इसके अलावा जिला प्रशासन व कृषि विभाग द्वारा किसानों को डीएपी खाद के विकल्प के रूप में अन्य खाद को थमाया जा रहा है। चंद्राकर ने कहा कि सोसायटी में नहीं मिलने वाले डीएपी खाद कृषि केंद्रों में महंगे दाम पर बिक रही है। कई दुकानों में किसानों को लादन थमाया जा रहा है। सोसाइटियों में डीएपी के विकल्प के रूप में एनपीके खाद उपलब्ध है, लेकिन यह खाद डीएपी की तुलना में काफी महंगी है। सवाल यह उठता है कि जब सहकारी समितियों में डीएपी खाद नहीं पहुँच रही तो निजी कृषि केंद्रों में डीएपी का भरपूर स्टाक कैसे पहुंच रहा है। समितियों में डीएपी का मूल्य 1350 रुपए निर्धारित है। यह खाद कृषि केंद्रों में 1700 से 1800 रूपए तक बिक रही है। इसके अलावा डीएपी लेने वाले किसानों को लादन थमाया जा रहा है। लादन नहीं लेने पर उन्हें डीएपी भी नहीं दिया जा रहा।

श्री चंद्राकर ने कहा कि खाद की कालाबाजारी कर किसानों को परेशान करने काम भाजपा की साय सरकार कर रही है। कमीशन का खेल प्रदेश भर में चल रहा है। शुरूआती दौर में धान के पौधों को बढऩे और मजबूती के लिए नाइट्रोजन और फास्फोरस की जरूरत होती है। डीएपी में 18 प्रतिशत नाइट्रोजन और 46 प्रतिशत फास्फोरस होता है। इस कारण किसान इस खाद को प्राथमिकता देते हैं। इसके विपरीत एनपीके में नाइट्रोजन और फास्फोरस की मात्रा कम होती है। उपर से दाम भी डीएपी की तुलना में अधिक होती है। डीएपी नहीं मिलने से किसान खुले बाजार में अतिरिक्त राशि देकर डीएपी खरीद रहे हैं।


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