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प्रभुशंकर और मनीष ध्रुव
यूं ही जेल में सड़ते रहे, अब मुकदमा करेंगे
राजेश अग्रवाल
बिलासपुर, 19 जून ('छत्तीसगढ़' संवाददाता)। हाईकोर्ट से रिहाई का आदेश जारी होने के बाद भी हत्या के आरोप में बरी दो युवकों को सात माह जेल में बिताना पड़ा। इसके पहले निचली अदालत की सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में लड़ाई लडऩे के दौरान वे लगभग 6 साल और जेल में काट चुके हैं। कोरोना संकट के चलते जब उन्हें पैरोल पर छोड़ा गया तो हाईकोर्ट का आदेश उन्हें मिला। वे देखकर सन्न रह गये कि जिस आरोप में वे जेल में बंद हैं, उसमें तो वे बरी हो चुके हैं। अभी भी रिहाई पैरोल पर हुई है।
छह साल पहले 23-24 दिसम्बर को भाटापारा जिले के कोसमन्दा गांव के एक व्यक्ति की, जिसे लोग गुरुजी के नाम से जानते थे हत्या हो गई। लोरमी तहसील के ग्राम पथर्रा निवासी मजदूर कृषक प्रभुशंकर उर्फ लारा कौशिक और उसका साथी चित्रांग उर्फ मनीष ध्रुव इस दिन एक रिश्तेदार से मिलने कुसमुन्दा गये थे। रात को घर वापस लौटते समय बस स्टैंड में पुलिस ने उससे पूछताछ की और नाम-पता दर्ज किया। इसके बाद दोनों युवक कमाने-खाने के लिये पुणे चले गये।
एक दिन अचानक भाटापारा से क्राइम ब्रांच पुलिस पुणे में उनके पते पर पहुंची और उन दोनों को गुरुजी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया तथा भाटापारा लेकर आ गई। दोनों गिड़गिड़ाते रहे कि उन्हें हत्या के बारे में कुछ नहीं पता, वे किसकी हत्या हुई है ये भी नहीं जानते लेकिन उन्हें पहले तीन दिन तक रिमाण्ड पर रखा गया फिर सेशन कोर्ट में आरोपी के तौर पर पेश करते हुए जेल भिजवा दिया गया।
डेढ़ साल तक मुकदमा चला, तब तक उन्हें जमानत नहीं मिली और जेल में ही रहे। 30 अप्रैल 2015 को उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई। वे बलौदा उप-जेल में सजा काटने लगे। युवकों के परिजन हाईकोर्ट गये। चार साल बाद 4 अप्रैल 2019 को फैसला आया जिसमें उन्हें दोषमुक्त कर दिया गया। कोर्ट ने पाया कि मृतक की पत्नी ने इन दोनों को पहचानने और मृतक के साथ किसी तरह का परिचय या सम्बन्ध होने से इंकार किया है। गुरुजी की हत्या जमीन विवाद को लेकर हुई थी, जिससे भी इनका कोई लेना-देना नहीं। हाईकोर्ट का आदेश होने के बावजूद उन्हें रिहा नहीं किया गया। उन्हें हाईकोर्ट के आदेश का पता तब चला जब वे कोरोना संकट के कारण पैरोल पर छूटे। बाहर आने पर वे हाईकोर्ट के फैसले को जानकर दंग रह गये। अब वे हाईकोर्ट के इसी आदेश के आधार पर पैरोल पर छूटने के बावजूद दुबारा जेल जाने से बच गये हैं।
हाईकोर्ट अधिवक्ता अख़्तर हुसैन के अनुसार अब ये दोनों पीडि़त न केवल मुआवजे के लिए बल्कि मानहानि को लेकर भी कोर्ट की शरण में जायेंगे।