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राजपथ-जनपथ : पगड़ी उतारी और छूटा शेखावत...
20-Nov-2025 7:06 PM
राजपथ-जनपथ : पगड़ी उतारी और छूटा शेखावत...

पगड़ी उतारी और छूटा शेखावत...

सोशल मीडिया पर रायपुर के मौदहापारा थाने के भीतर का एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें करणी सेना का राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. राज शेखावत पल भर के लिए पुलिस के सामने अपनी पगड़ी उतार रहा है। पगड़ी उतारते हुए उसके वकील उसे हाथ से इशारा कर मानो मना कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में सूदखोर वीरेंद्र तोमर की गिरफ्तारी के बाद जुलूस निकालने को राजपूत समाज की साख के खिलाफ बताते हुए बीते कुछ दिनों से शेखावत लगातार अपने सोशल मीडिया पर वीडियो बना रहा है। उसने रायपुर पुलिस को घर में घुसकर मारने की धमकी तक दी, इतना ही नहीं जब डिप्टी सीएम और सूबे के गृहमंत्री विजय शर्मा ने ऐसे लोगों पर सख्त कार्रवाई की बात कही तो राजपूत ने उनका फोन नंबर सोशल मीडिया पर साझा कर अनर्गल बातें कहीं।

वीरेंद्र तोमर केस रफा-दफा करने के बदले छत्तीसगढ़ के एक सांसद पर पैसे लेने के बाद काम नहीं करने का आरोप भी लगाया। अब बुधवार को मानो किसी तय करार के मुताबिक जब वो खुद गिरफ्तारी देने रायपुर पहुंचा तब थाने में कुछ ही घंटों में उसे मुचलके पर छोड़ दिया गया। अब शेखावत, रायपुर में 7 दिसंबर को क्षत्रिय समाज की महापंचायत की तैयारी में लग गया है।

इस पूरे वाकये पर सोशल मीडिया पर एक समय छत्तीसगढ़ के एक चर्चित नेता से जुड़े रहे, और लगातार आलोचनात्मक टिप्पणियां करने वाले एक चर्चित व्यक्ति ने खुद को क्षत्रिय बताते हुए शेखावत को आड़े हाथों लिया है। उनकी सोशल मीडिया पोस्ट, सांसद से डील वाले आरोप पर एक तरह से पलटवार भी है।

पहले राष्ट्रपति की घोषणाएं अधूरी

1952 में इन्हीं दिनों, 22 नवंबर को जब देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद सरगुजा दौरे पर आए थे तो वे पंडो जनजाति से मिले। तब यह आदिवासी समाज जंगल में रहता था। छोटे कपड़ों से शरीर को ढंके हुए रहते थे। आज डॉ. राजेंद्र प्रसाद के निर्देश पर बसाई गई 13 कॉलोनियों में रहने वाले लोग सलीके से कपड़े ही नहीं पहनते, लोगों के पास मोबाइल फोन, गाडिय़ां, घरों में बिजली के आधुनिक उपकरण हैं। कई लोग सरकारी नौकरी में पहुंच चुके हैं। कुछ साल बाद पंडो समाज से एक डॉक्टर भी निकलेगा। एक युवा छात्र मेकहारा (रायपुर) में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा है। कुछ बच्चे पीएससी की तैयारी कर रहे हैं।सरगुजा जिला मुख्यालय अंबिकापुर से सिर्फ 12 किलोमीटर दूर पंडोनगर तक पहुंचने के लिए पक्की सडक़ भी बन चुकी है। सैलानियों के लिए यहां का राष्ट्रपति भवन कौतूहल बना हुआ है।

पंडो जनजाति के साथ-साथ विशेष संरक्षित अति पिछड़ी जनजातियों को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपना दत्तक पुत्र घोषित किया था।

मगर, कुछ तथ्य आपको हैरान कर सकते हैं। जैसे- केंद्र की पीवीटीजी सूची में विशेष संरक्षित पंडो जनजाति को शामिल नहीं किया जा सका है। इसके पीछे अफसरों की उदासीनता बताई जाती है, वे दस्तावेजी प्रक्रिया पूरी नहीं कर पाए। हालांकि राज्य सरकार ने अपनी पीवीटीजी सूची में शामिल कर लिया है और उन्हें योजनाओं का लाभ दे रही है।

यह बात भी गौर करने की है कि प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा की गई एक बड़ी घोषणा पर अब तक अमल नहीं हुआ। इस घोषणा के मुताबिक प्रत्येक परिवार को 10-10 एकड़ जमीन दिया जाना था। यहां के निवासी बताते हैं कि कुछ लोगों को 4-5 एकड़ जमीन तो मिली, कई लोगों को नहीं मिली। 10 एकड़ जमीन तो किसी को मिली ही नहीं। वन अधिकार अधिनियम लागू होने के बाद उन्हें विधिवत पट्टा दिया गया। इसके पहले उनके पास कोई रिकॉर्ड भी नहीं था कि जमीन उनकी है। जब भी दत्तक पुत्रों की बात होती है, ध्यान सरगुजा की ओर ही जाता है, मगर ये जनजाति बलरामपुर, सूरजपुर, कोरिया, एमसीबी, कोरबा, रायगढ़ और जीपीएम जिलों में भी मौजूद है। पंडो के साथ-साथ पहाड़ी कोरवा, बिरहोर और कामर जातियों को भी डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने दत्तक पुत्र माना था। इन समुदायों को लुप्त होने से बचाने के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने, कुपोषण दूर करने के कई काम हुए हैं- मगर प्रशासन तक पहुंच अब भी आसान नहीं है। पिछली सरकार के दौरान बलरामपुर जिले की घटना सामने आई थी जहां करीब 15 लोगों की कुपोषण, रक्ताल्पता के कारण मौत हो गई थी। पंडो जनजाति पिछली जनगणना में 31 हजार 800 के करीब थी। 2011 के बाद से जनगणना हुई नहीं है। समाज के लोगों का कहना है कि हम दत्तक पुत्रों की आबादी छत्तीसगढ़ में अब 70 हजार के आसपास है। पंडो समाज के प्रमुखों से बात करने से यह भी पता चलता है कि पढ़ाई का अवसर मिला तो बहुत से युवा पढ़ लिख लिए लेकिन वे बेरोजगार हैं। बहरहाल, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के सरगुजा प्रवास से उन्हें बेहद खुशी है। इसे वे 73 साल पहले जैसा ही ऐतिहासिक मौका मानते हैं और बड़ी घोषणाओं की उम्मीद भी कर रहे हैं।

 

मंत्रालय, छत्तीसगढिय़ा मूल वालों का

छत्तीसगढ़ अपना रजत जयंती वर्ष मना रहा है। सभी सरकारी दफ्तरों में इन 25 वर्षों की निहितार्थ और हासिल उपलब्धियों पर आयोजन या चर्चाएं हो रही हैं। ऐसी ही चर्चा मंत्रालय (सचिवालय) में भी कर्मचारियों के बीच हुई और सुनी गई। कहा गया कि राज्य मंत्रालय छत्तीसगढिय़ा मूल के अधिकारी कर्मचारियों के कामकाज से लगभग संचालित होने लगा है। विभाजन में मप्र से आए अधिकारी कर्मचारी बहुत थोड़े ही शेष हैं जो 2027 और कुछ 2030 में रिटायर हो जाएंगे। उसके बाद भृत्य से लेकर मंत्रालय संवर्ग में शीर्ष पद संयुक्त सचिव तक छत्तीसगढिय़ा मूल के हो जाएंगे। इसके लिए अगले 4-5 साल लगातार पदोन्नतियां होती रहेंगी। पद कम न पड़े इसके लिए उप सचिव के 6-9 पद मंजूर करने की भी कवायद होने लगी है। ताकि एसओ से अंडर सेक्रेटरी पदोन्नति में दिक्कत न हो।

यह भी उतना ही उल्लेखनीय है कि सहायक ग्रेड तीन से ऊपर तक इन पदों के अधिकारियों की न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता स्नातक हैं। मप्र से आए अधिकांश लोग पुराने मैट्रिक या 12 वीं वाले थे। इसे लेकर उलाहना होते रहता था कि उच्च शिक्षित आईएएस को मैट्रिकुलेट बाबू चला रहे हैं। तब बघेल शासन में पदोन्नति के लिए न्यूनतम योग्यता को स्नातक करना पड़ा। इसका इतना असर हुआ कि मैट्रिकुलेट बाबू, निजी विश्वविद्यालयों से झट से तीन वर्ष की डिग्री एक साल में लेने लगे। अब ऐसी जरूरत नहीं होगी। 2007 से 2016 तक हुई नियुक्ति वाले सभी बाबू बीए, बीएससी, बीकाम, एमए वाले हैं। और उन्हें सरकारी नियम, उप नियम, उपबंधों की अच्छी समझ है।  यह अवश्य है कि कुछ लोग काम नहीं करना पड़े, इसलिए अपनी काबिलियत उजागर नहीं करते ।

सत्य साईं अस्पताल का योगदान

आंध्र प्रदेश के पुट्टपर्थी में आध्यात्मिक गुरु श्री सत्य साईं बाबा का जन्म शताब्दी समारोह चल रहा है। दो दिन पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने भी पुट्टपर्थी में समारोह में शिरकत की। छत्तीसगढ़ में भी सत्य साईं बाबा के अनुयायियों की संख्या अच्छी खासी है। यहां सत्य साई संस्थान ने नवा रायपुर में अस्पताल स्थापित किया है, जहां निशुल्क उपचार होता है।

मोदी राज्य स्थापना दिवस पर रायपुर आए थे, तो वो श्री सत्य साई संजीवनी हॉस्पिटल भी गए थे। उन्होंने हृदय रोग पीडि़त बच्चों से भी मुलाकात की थी। अस्पताल की खासियत ये है कि यहां बाल चिकित्सा हृदय केन्द्र में करीब 18 हजार से अधिक बच्चों के हृदय का ऑपरेशन हो चुका है। इनमें से चार हजार से अधिक बच्चे रायपुर के ही हैं। अस्पताल में कैश काउंटर तक नहीं है। यानी सबकुछ मुफ्त है। पिछले 10 साल से यह अस्पताल बेहतर ढंग से चल रहा है। यहां न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि अन्य राज्यों, और विदेशों से आए बच्चों के हृदय का ऑपरेशन हो रहा है।  संस्थान से नामी हस्तियां जुड़ी हुई हैं। अस्पताल का उद्घाटन हुआ तब उस वक्त भारतीय टीम के कप्तान राहुल द्रविड़ रायपुर आए थे। सचिन तेंदुलकर सहित अन्य क्रिकेटर भी संस्थान से जुड़े हुए हैं, और संस्थान को अपना सहयोग देते हैं। पीएम अस्पताल आए थे, तो पूर्व क्रिकेटर सुनील गावस्कर भी वहां मौजूद थे। गावस्कर तीन दिन अस्पताल के गेस्ट हाउस में ही रुके थे। मगर वो मीडिया से दूर रहे। कुल मिलाकर अस्पताल में उपचार, और प्रबंधन की जितनी तारीफ की जाए, कम है।


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