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'छत्तीसगढ़'
बिलासपुर, 13 सितंबर। मेडिकल, डेंटल और नर्सिंग कॉलेजों में प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर पदों पर संविदा शिक्षकों को आयु सीमा में छूट और बोनस अंक देने संबंधी राज्य शासन की अधिसूचना को हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया है। यह अधिसूचना नियमित सहायक प्राध्यापकों ने चुनौती दी थी, जिन्हें प्रमोशन का हकदार बताया गया।
प्रदेश के मेडिकल, डेंटल और नर्सिंग कॉलेजों में प्रोफेसर व एसोसिएट प्रोफेसर पदों पर रिक्तियां भरी जानी हैं। राज्य शासन ने मेडिकल एजुकेशन सर्विस रिक्रूटमेंट रूल्स, 2013 के तहत अधिसूचना जारी कर कहा था कि संविदा प्राध्यापकों को सीधी भर्ती में आयु सीमा में छूट और चयन प्रक्रिया में बोनस अंक दिए जाएंगे। इससे उन्हें प्राथमिकता मिलती। लोक सेवा आयोग के जरिए होने वाली भर्ती का विरोध नियमित प्राध्यापकों ने किया और मामला हाईकोर्ट पहुंचा।
याचिकाकर्ताओं में डॉ. नरेंद्र प्रसाद, डॉ. ओंकार, डॉ. आशीष सिंह, डॉ. समीर, डॉ. केशव, डॉ. स्मिता, डॉ. अर्नब, डॉ. रजत और डॉ. ममता शशि शामिल थे। इनके पक्ष में सीनियर एडवोकेट मनोज परांजपे, हिमांशु पांडेय, घनश्याम कश्यप और विकास दुबे ने दलीलें रखीं। अलग-अलग याचिकाओं की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविन्द्र अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने की।
याचिकाओं में कहा गया कि रिक्त पदों को पहले पदोन्नति के जरिए नियमित सहायक प्राध्यापकों से भरा जाना चाहिए, लेकिन अधिसूचना में सीधी भर्ती को प्राथमिकता दी गई है। कोर्ट ने इस तर्क से सहमति जताई और अधिसूचना को रद्द कर दिया।
निर्णय देते हुए कोर्ट ने कहा कि छत्तीसगढ़ चिकित्सा शिक्षा (राजपत्रित) सेवा भर्ती नियम, 2013 के तहत छूट की शक्ति केवल सेवा नियमों तक सीमित है। कोई कार्यकारी अधिसूचना 100 प्रतिशत पदोन्नति की आवश्यकता वाले वैधानिक आदेश को रद्द या संशोधित नहीं कर सकती।