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-इमरान क़ुरैशी
कर्नाटक में सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक सर्वेक्षण में यूनिक हाउसहोल्ड आइडेंटिटी (यूएचआईडी) और जियो-टैगिंग तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है.
इस सर्वेक्षण के तहत राज्य की सात करोड़ आबादी को कवर किया जा रहा है. मोटे तौर पर इसे 'जाति जनगणना' कहा जा रहा है.
राज्य में जिन घरों में बिजली है, उनके डेटाबेस से यूएचआईडी लिया जा रहा है और उसी के आधार पर घरों को जियो-टैग किया जाएगा.
इन घरों की गणना सरकारी स्कूल के टीचर्स मोबाइल ऐप का इस्तेमाल कर करेंगे.
कर्नाटक में 98 फ़ीसदी घरों को बिजली मुहैया कराई गई है.
गणना प्रक्रिया 22 सितंबर से 7 अक्टूबर के बीच चलेगी. सरकारी स्कूलों के 1.75 लाख टीचर्स इसे अंज़ाम देंगे.
टीचर्स को इस काम में लगाने से पहले राज्य के निवासियों को उन 60 सवालों के बारे में जानकारी दी जाएगी, जो उनसे पूछे जाएंगे. यह रिपोर्ट इस साल दिसंबर तक तैयार होने की उम्मीद है.
जिन घरों में अभी तक बिजली उपलब्ध नहीं कराई गई है, उनकी गणना आधार कार्ड को मोबाइल नंबर से जोड़कर की जाएगी.
सीएम सिद्धारमैया ने क्या कहा
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने पत्रकारों से कहा, "इस सर्वेक्षण का मक़सद समाज के सभी वर्गों को समान लाभ मुहैया कराने का है. सरकार की 24 योजनाओं में से किस योजना का लाभ निवासियों को मिला है, यह सवाल पूछने की वजह संविधान में निहित समानता की अवधारणा है."
जनगणना में 1600 जातियों को सूचीबद्ध किया गया है, जिनमें कुरुबा क्रिश्चियन, दलित क्रिश्चियन जैसी जातियां शामिल हैं.
सिद्धारमैया ने कहा, "क्योंकि इन्होंने धर्म परिवर्तन कर लिया है, इसलिए इनके ओबीसी स्टेटस का निर्धारण पिछड़ा वर्ग आयोग करेगा. यह धर्म तय करने का सर्वेक्षण नहीं है. यह केवल एक सामाजिक-आर्थिक शैक्षिक सर्वेक्षण है."
कर्नाटक 2015 में जाति जनगणना शुरू करने वाला देश का पहला राज्य है. लेकिन 2018 में तकनीकी कारणों से इसकी पहली रिपोर्ट अटक गई थी. जब तकनीकी गड़बड़ी दूर हुई, तो वोक्कालिगा और लिंगायत जाति समूहों ने आंकड़ों पर आपत्ति जताई, जिसके चलते सरकार को दूसरी जनगणना करनी पड़ी.
इस बीच, बिहार और तेलंगाना ने सर्वेक्षण किया और उसे लागू भी किया. (bbc.com/hindi)