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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : क्या नेपाल की क्रांति के पीछे सोशल मीडिया को हथियार बनाकर विदेशी साजिश थी?
सुनील कुमार ने लिखा है
10-Sep-2025 5:11 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : क्या नेपाल की क्रांति के पीछे सोशल मीडिया को हथियार बनाकर विदेशी साजिश थी?

cartoonist alok nirantar


दुनिया में कई बड़ी घटनाओं के पीछे साजिश होने की सोच भी बहुत से लोगों की रहती है। कोरोना का वायरस कहां से निकला, कैसे फैला, इसे लेकर भी लोगों की तरह-तरह की साजिश की कल्पनाएं थी। इसके बाद अमरीका के आज के स्वास्थ्य मंत्री ने भी कोरोना के उस दौर में वैक्सीन का विरोध किया था कि उससे कई दूसरी बीमारियां फैल रही हैं। इस बार रॉबर्ट कैनेडी (जूनियर) को स्वास्थ्य मंत्री बनते हुए संसदीय कमेटी की सुनवाई में मुश्किल सवालों का सामना करना पड़ा था। खैर, वह तो पुरानी बात हो गई, पूरी दुनिया में लोग तरह-तरह की साजिशों की कल्पना के साथ जीते हैं क्योंकि वह बहुत सनसनीखेज रहती हैं। दूसरी तरफ कई साजिशें सच भी साबित होती हैं। अब पिछले दो दिनों में नेपाल में जो हुआ है, वह दुनिया के इतिहास में एक बिल्कुल ही अलग किस्म की घटना है, और कुल दो-चार दिनों के आंदोलन में जिस तरह पूरी सरकार को उखाड़ फेंका है, देश के बड़े-बड़े नेताओं, कई मंत्रियों, और भूतपूर्व प्रधानमंत्रियों के घरों को जला डाला गया, एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी को घर में ही जिंदा जला दिया गया, संसद को आग लगा दी गई, वह सब कुछ हैराने करने वाला था। कल ही हमने इसी जगह पर कल दोपहर तक की घटनाओं को लेकर लिखा था, और अपने यूट्यूब चैनल इंडिया-आजकल पर उसके कुछ घंटे बाद कहा भी था। अब आज सुबह एक बिल्कुल ही नई साजिश की थ्योरी सामने आई है, जो कि अधिक लोगों के दिमाग में नहीं रही होगी। अभी हमारे बहुत ढूंढने पर भी इस लेख का कोई स्रोत हमें नहीं मिला है, इसलिए हम बिना किसी नाम के इस साजिश की कल्पना को यहां सामने रख रहे हैं।

सोशल मीडिया के पीछे उनकी कंपनियों के जो एल्गोरिदम काम करते हैं, उसके जानकार एक व्यक्ति ने लिखा है कि पिछले तीन सालों में भारत के तीन पड़ोसी देशों, श्रीलंका (2022), बांग्लादेश (2024), और अब नेपाल (सितंबर 2025) में यह बात सामने आई है कि सोशल मीडिया किस तेजी से गुस्से को सडक़ की ताकत में बदल सकता है, और किसी देश की सुरक्षा व्यवस्था न उसे काबू कर सकती, न उसे जवाब दे सकती। इस लेख में आगे लिखा गया है कि नेपाल में नेताओं के परिवारों की ऐशोआराम की जिंदगी को लेकर सोशल मीडिया पर जो पोस्ट चल रही थी, उन्होंने नौजवानों में, खासकर बेरोजगार नौजवानों में बड़ा गुस्सा भरा था, और सोशल मीडिया के एल्गोरिदम में ऐसी पोस्ट को, और कुल मिलाकर उससे उपजे गुस्से को अंधाधुंध बढ़ाया। लेख में यह सवाल उठाया गया है कि क्या इन तीन देशों के सोशल मीडिया से उपजे असंतोष को किसी प्रयोगशाला की तरह इस्तेमाल किया गया है? लेख में बड़ी बारीकी से बयान किया गया है कि जब किसी आंदोलन को भडक़ाने का फैसला सोशल मीडिया के कम्प्यूटरों के एल्गोरिदम करते हैं, तो लाखों उंगलियां हजारों लाठियों से ज्यादा ताकतवर साबित होती हैं। बांग्लादेश में जुलाई 2024 में शेख हसीना के खिलाफ जो बगावत हुई, उसमें भी सोशल मीडिया ने ही आंदोलन को हवा दी, छात्रों के पेज, और दूसरे देशों में बसे हुए बांग्लादेशियों के यूट्यूब चैनलों को खूब बढ़ाया गया, और आंदोलन में सत्ता पलट कर दी। इसके पहले 2022 में श्रीलंका में भी सोशल मीडिया ने यही किया था, और सत्ता पलट के जरा पहले सरकार ने इसे भांपकर सोशल मीडिया पर बैन लगाया था, लेकिन वहां से भी राष्ट्रपति को देश छोडक़र भागना पड़ा था। इस लेख में इन तीनों देशों, और खासकर नेपाल का बारीकी से विश्लेषण हुआ है कि घंटे-घंटे में वहां क्या-क्या हुआ, किस तरह 36 घंटे में पूरी सरकार गिर गई। इस लेख में बाकी देशों को नसीहत दी गई है कि लाठी तो सरकार की है, लेकिन सोशल मीडिया पर रफ्तार किसी और की है।

अभी हम इसकी सच्चाई पर नहीं जाते, लेकिन हम इसे एक अटकल या एक कल्पना मानते हुए यह जरूर देखते हैं कि जो सोशल मीडिया अमरीकी राष्ट्रपतियों के चुनाव के वक्त रूस के असर में काम करने की तोहमत झेलता है, जो फेसबुक भारत के चुनावों में किसी एक पार्टी या नेता, या विचारधारा के इश्तहार सोची-समझी रणनीति से अधिक दिखाता है, वह सोशल मीडिया क्या अब कुछ ताकतों के हाथों में हथियार बनकर किसी कमजोर लोकतंत्र में सत्तापलट करवाने जितना मजबूत हो चुका है? वैसे भी आज आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को लोकतंत्र को प्रभावित करने, लोगों के चुनावी रूझान को पलट देने की ताकत वाला बताया जाता है। यह बात भी बार-बार आती है कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस अपने मालिकों के हाथ में एक हथियार अधिक रहेगा, और औजार कम। नेपाल में सोशल मीडिया पर बैन को लेकर जिस तरह वहां नौजवान पीढ़ी में बेचैनी भडक़ी, उसकी दुनिया में कोई दूसरी मिसाल नहीं है। इसलिए आज ऐसी किसी आशंका को, ऐसे खतरे को बारीकी से देखने-समझने की जरूरत है कि दुनिया के किसी कोने में बैठे हुए कुछ लोग सोशल मीडिया कारोबारियों के साथ मिलकर, एआई का इस्तेमाल करके किसी देश में नफरत, हिंसा, बेचैनी को क्या इस हद तक बढ़ा सकते हंैं कि वहां गृहयुद्ध छिड़ जाए, या वहां सत्ता पलट जाए?

नेपाल की इस पूरी तरह से अप्रत्याशित घटना को जब साजिश की ऐसी थ्योरी के साथ जोडक़र देखें, तो लगता है कि सोशल मीडिया पर अधिक लोकप्रिय नफरत और हिंसा, अराजकता, और बेचैनी को अगर नदी के पानी से जोड़ी गई पाईपलाइन की तरह किसी एक दिशा में मोड़ा जा सकता है, तो क्या सचमुच ही उससे इतना बड़ा विस्फोट किया जा सकता है? यह सवाल पूरी तरह नाजायज इसलिए नहीं है कि जो देश अपनी सरहदों की हिफाजत की सोचते हैं, अपनी जमीन पर हिफाजत की फिक्र करते हैं, उन्हें सरहदों के आरपार काम करने वाले सोशल मीडिया और एआई की घातक ताकत के बारे में भी जरूर सोचना चाहिए। दुनिया की बड़ी-बड़ी ताकतें आज श्रीलंका, बांग्लादेश, और नेपाल की बेचैनी के पीछे हो सकती हैं, कुछ ताकतें इनके बीच बसे भारत के विरोध के लिए ऐसा कर सकती हैं, और कुछ ताकतें इनमें से किसी जगह पर अपना फौजी अड्डा बनाने, या वहां के किसी नाजुक कारोबार पर कब्जा करने के लिए भी ऐसा कर सकती हैं। दुनिया की बड़ी ताकतों को आज बिना हथियारों के इस्तेमाल के भी इंटरनेट, सोशल मीडिया, और एआई से ऐसा करने की ताकत हासिल हो चुकी दिखती है। जानकार लोगों को इस बारे में अधिक सोचना चाहिए। इसके साथ-साथ जरूरत यह भी है कि दुनिया के सारे देश अपनी-अपनी जमीन पर नौजवानों, और बाकी तबकों की बेचैनी को भी समझें, क्योंकि अगर लोगों के बीच सत्ता के खिलाफ नफरत रहेगी, तो हो सकता है कि वह बिना किसी विदेशी साजिश के भी किसी दूसरी तरह से निकलेगी। भारत के पड़ोस के ये तीन देश अब एक साथ देखने और सोचने पर बहुत कुछ सीखने और संभलने का मौका दे रहे हैं।

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