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दस साल पुरानी घटना, आरोपियों को जेल से रिहा करने का आदेश
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 8 सितंबर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक हत्या के मामले में निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए तीन लोगों को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि गवाहों के बयान अविश्वसनीय हैं। जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की बेंच ने निचली अदालत के फैसले को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि जब गवाहों का व्यवहार संदिग्ध हो और उन पर भरोसा न हो, तो उनके बयानों के आधार पर दोषसिद्धि नहीं की जा सकती।
हाई कोर्ट ने कोरिया जिले के बैकुंठपुर सत्र न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ दायर दो अपीलों को स्वीकार किया। निचली अदालत ने तीनों आरोपियों को हत्या (आईपीसी की धारा 302 और 120-बी) के लिए उम्रकैद और सबूत नष्ट करने (धारा 201) के लिए सात साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, 2 मार्च 2015 को कोरिया जिले के अमरपुर गांव से एक महिला लापता हो गई। 7 मार्च 2015 को घुटरी पहाड़ी पर एक गड्ढे में उसका शव मिला, जहां एक कुत्ता लगातार भौंक रहा था। शव आंशिक रूप से दबा हुआ था और जानवरों द्वारा खाया गया था। पोस्टमार्टम में मौत का कारण गला दबाने से दम घुटना बताया गया।
महिला उस दिन दोपहर में शराब पीकर घर लौटी थी। शाम 6 बजे के करीब, उसके देवर रामदेवन सिंह ने बताया कि वह शराब की तलाश में घर से निकली थी और जल्दी लौटने की बात कहकर गई थी, लेकिन वह रात तक नहीं लौटी। परिवार वालों ने पड़ोसियों और रिश्तेदारों से पूछताछ की, लेकिन उसका कोई पता नहीं चला।
पुलिस ने जांच के दौरान तीनों आरोपियों को गिरफ्तार किया। अभियोजन पक्ष ने दो गवाहों, अमर सिंह और रघुवीर, के बयानों पर भरोसा किया, जिन्होंने दावा किया कि उन्होंने आरोपियों को महिला को पकड़कर ले जाते देखा।
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि गवाहों की सात दिन की चुप्पी उनकी विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठाती है। दोनों गवाहों ने क्रॉस-एग्जामिनेशन में स्वीकार किया कि उन्होंने पोस्टमार्टम, अंतिम संस्कार और जांच के दौरान आरोपियों के खिलाफ कुछ नहीं कहा। कोर्ट ने इसे अस्वाभाविक बताया और कहा कि ये गवाह जबरदस्ती पेश किए गए लगते हैं ताकि कमजोर केस को मजबूत किया जाए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि शुरुआती एफआईआर और अन्य दस्तावेजों में आरोपियों के नाम नहीं थे, और मामला अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज किया गया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि देरी से दिए गए गवाहों के बयानों पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
हाई कोर्ट ने कहा कि संदिग्ध और अविश्वसनीय साक्ष्यों के आधार पर दोषसिद्धि बरकरार नहीं रखी जा सकती। कोर्ट ने तीनों आरोपियों को जेल से रिहा करने का आदेश दिया। साथ ही, प्रत्येक आरोपी को 25,000 रुपये का निजी मुचलका जमा करने का निर्देश दिया गया।