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(गोकुल सोनी)
साथियों, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर न केवल अपनी ऐतिहासिक विरासत और सांस्कृतिक विविधता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां के पर्व-त्योहार भी जन-जन के दिलों में बसे हैं। इन्हीं में से एक है गणेश विसर्जन, जिसकी परंपरा रायपुर में वर्षों पुरानी है। एक ऐसी परंपरा जिसमें आस्था, उल्लास, सजावट और सम्मान का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। हम छत्तीसगढ़ के लोग इसे झांकी कहते हैं वहीं महाराष्ट में चल-समारोह भी कहते हैं।
जब बैलगाड़ियाँ बनती थीं बप्पा की सवारी...
कहा जाता है कि पुराने समय में रायपुर में गणेश विसर्जन बेहद सरल, परंतु अत्यंत भव्य और भावनात्मक ढंग से किया जाता था। विसर्जन के लिए बैलगाड़ियाँ सजाई जाती थीं। उन पर केले और आम के पत्तों की सजावट की जाती, फूलों की मालाओं से उन्हें श्रृंगारित किया जाता था। सजीव झांकियों जैसी लगने वाली इन बैलगाड़ियों में बप्पा विराजते थे, और उनके साथ निकलती थी एक भावनाओं से भरी श्रद्धालुओं की टोली। गैसबत्तियों और मशालों की रोशनी के साथ गांड़ाबाजा में जब यह शोभायात्रा शहर की गलियों से होती हुई खो-खो तालाब या बंधवा तालाब की ओर बढ़ती, तो पूरा रायपुर उस भक्ति और उल्लास में डूब जाता था। विसर्जन के समय, तालाब के किनारे ढोल-नगाड़ों की गूंज, "गणपति बप्पा मोरया" के नारों के साथ गूंज उठती थी। कभी- कभी बस्तर से आदिवासियों की नृत्यदल टोलियां भी इस वसर्जन झांकी में अपनी नृत्यकला का प्रदर्शन करने आती थी।
बदलते समय के साथ बढ़ा स्वरूप...
समय के साथ बप्पा की मूर्तियों का आकार भी बड़ा होने लगा। पहले जहां छोटे-छोटे पारंपरिक आकार की मूर्तियां बनाई जाती थीं, वहीं अब विशाल मूर्तियों का निर्माण शुरू हो गया। इन बड़ी मूर्तियों के विसर्जन से धीरे-धीरे तालाबों में प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होने लगी। मूर्तियों में प्रयुक्त रंग, प्लास्टर और अन्य रसायनों से तालाबों का जल दूषित होने लगा। शायद यही कारण है कि खो-खो तालबा और बंधवा तालाब के बाद बूढ़ातालाब में होने वाला मूर्ति विसर्जन को भी प्रशासन ने बंद करवा दिया। हालांकि बूढ़ातालाब में गणेश मूर्ति विसर्जन का सिलसिला कई वर्षों तक चला। प्रशासन ने जब इसपर संज्ञान लिया, तो सभी तालाबों में विसर्जन पर रोक लगा दी गई। इसके बाद मूर्तियों का विसर्जन खारून नदी के महादेवघाट में होने लगा। लेकिन समस्या यहीं समाप्त नहीं हुई। खारून नदी भी प्रदूषण के चपेट में आने लगी। नदी के पानी में केमिकल और मूर्तियों के अवशेष घुलने से जल की गुणवत्ता पर असर पड़ने लगा।
खारून नदी में विसर्जन की चुनौती और सम्मानजनक समाधान..
एक समय ऐसा भी आया जब रायपुर की खारून नदी में गणेश मूर्तियों के विसर्जन का तरीका समाज की उस भावना के अनुरूप नहीं रहा, जिसकी अपेक्षा बप्पा के प्रति रहती है। विसर्जन के लिए जब मूर्तियाँ खारून नदी के पुल से नीचे गिराई जाने लगीं, तो कई बार वे सीधे पानी में नहीं गिरतीं। कभी पुल से टकराकर खंडित हो जातीं, तो कभी किनारे की दीवारों से टकरा जातीं। यह दृश्य श्रद्धालुओं की भावनाओं को आहत करता था। एक ओर जहाँ भक्त गणेश जी को पूरे सम्मान और भक्ति भाव से विदा करने आते थे, वहीं इस तरह का अनगढ़ विसर्जन कई लोगों को व्यथित करता था। समाज के जागरूक नागरिकों और श्रद्धालुओं ने इस पर अपनी आपत्ति जताई। उनकी आवाज़ को सुनते हुए प्रशासन ने एक सराहनीय कदम उठाया । एक विशेष ट्रॉली प्रणाली विकसित की गई, जिसमें रोलर्स लगे होते थे, ताकि मूर्तियों को सम्मानपूर्वक और सुरक्षित तरीके से जल में प्रवाहित किया जा सके। अब मूर्तियाँ ट्रॉली के ऊपर रखी जातीं, और रोलर्स की मदद से धीरे-धीरे सरकती हुई जल में उतरतीं। बिना टूटे, बिना टकराए, पूरे सम्मान के साथ।
समाज की जागरूकता और प्रशासन की पहल...
समाज के जागरूक नागरिकों और पर्यावरण प्रेमियों ने खारून में मूर्ति विसर्जन के कारण पानी पर हो रहे दुष्प्रभाव पर आवाज़ उठाई। उनकी आपत्ति पर प्रशासन ने सकारात्मक कदम उठाते हुए खारून नदी के किनारे एक विशाल कृत्रिम विसर्जन कुण्ड का निर्माण करवाया। आज इसी कुण्ड में शहर भर की गणेश मूर्तियाँ सम्मान के साथ विसर्जित की जाती हैं, जिससे आस्था भी बनी रहती है और पर्यावरण भी सुरक्षित रहता है।
संस्कृति का संरक्षण, पर्यावरण का सम्मान...
रायपुर के गणेश विसर्जन की यह यात्रा केवल धार्मिक परंपरा की कहानी नहीं है, यह समाज के बदलाव, जागरूकता और विकासशील सोच का प्रतीक है। यह बताती है कि कैसे एक समाज अपनी संस्कृति को जीवित रखते हुए आधुनिक समय की चुनौतियों का सामना कर सकता है।
रायपुर के गणेश विसर्जन की यह यात्रा केवल धार्मिक परंपरा की कहानी नहीं है, यह समाज के बदलाव, जागरूकता और विकासशील सोच का प्रतीक है। यह बताती है कि कैसे एक समाज अपनी संस्कृति को जीवित रखते हुए आधुनिक समय की चुनौतियों का सामना कर सकता है। गणेश विसर्जन सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह हमारी जिम्मेदारी का प्रतीक है।
प्रदेश के सबसे वरिष्ठ प्रेस फोटोग्राफर गोकुल सोनी ने दर्शकों से राजधानी रायपुर में काम किया है. वे फेसबुक पर लगातार बड़ी दिलचस्प पुरानी बातें लिखते भी हैं. उनके संस्मरण हमारे पाठक बीच-बीच में हमारे अखबार में देखते हैं. गणेश विसर्जन पर उनका ताजा संस्मरण यहां प्रस्तुत है, तस्वीरें भी उन्हीं की खींची हुई हैं. -संपादक