ताजा खबर

कांग्रेस का चक्का जाम, भाजपा का रिवर्स गियर
कांग्रेस आज जनता के बीच सडक़ों पर उतरी है, मगर भाजपा ने एक दिन पहले पूरे विमर्श को ही पलट देने की जबरदस्त कोशिश की। उसने हर जिले में अपने मंत्रियों, विधायकों और प्रवक्ताओं को प्रेस के सामने उतार दिया। कांग्रेस ने चैतन्य बघेल की गिरफ्तारी को इस बात से जोड़ा है कि भूपेश बघेल विधानसभा में तमनार में कोयला खनन के लिए पेड़ों की कटाई का मुद्दा उठाने वाले थे, इसलिए ऐसा किया गया। भाजपा ने अपनी पत्रकार वार्ता में ईडी की कार्रवाई से अधिक तूल इस बात को उजागर करने पर दिया कि अपने कार्यकाल में भूपेश सरकार ने अडाणी के प्रति कितना प्रेम प्रदर्शित किया था। हसदेव में पेड़ों की कटाई और कोल ब्लॉक की मंजूरी में भूपेश बघेल सरकार की भूमिका को भाजपा ने दस्तावेजों के साथ सामने रखा। उस बयान को खूब उछाला, जब सीएम रहते हुए उन्होंने कहा था कि बिजली चाहिए तो कोयले का खनन करना ही पड़ेगा, जो चाहते हैं कि कोयले के लिए पेड़ न कटे उन्हें अपने घरों की बिजली बंद कर देनी चाहिए।
कांग्रेस ने चैतन्य बघेल की गिरफ्तारी को केवल ईडी की मनमानी कहने के बजाय, तमनार में हो रही पेड़ों की कटाई और अडाणी के कोयला ब्लॉक से जोड़ा। ऐसा करके चैतन्य की गिरफ्तारी को जनसरोकार और पर्यावरण की लड़ाई में बदलने का उद्देश्य रहा होगा। पर भाजपा ने एक दिन पहले पलटवार कर दिया। भाजपा ने बघेल को उसके ही पुराने रुख से घेरने की कोशिश की। हसदेव आंदोलन के दौरान बघेल सरकार की चुप्पी, विरोध करने वालों को अनदेखा करना और खनन परियोजनाओं को मंजूरी देना, ये सब एक बार फिर चर्चा में आ गए हैं, कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच और उस वक्त के आंदोलनकारियों के बीच भी। भाजपा यह बताने में कामयाब दिख रही है कि जब सरकार थी, तब उनका यह विरोध कहां था? क्या केवल ईडी के विरोध में चक्का जाम किया जाता तो भाजपा को ऐसा मौका मिलता?
भारतमाला जांच और केस
रायपुर-विशाखापटनम भारतमाला प्रोजेक्ट की जांच ईओडब्ल्यू-एसीबी कर रही है। नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने विधानसभा प्रकरण को पुरजोर तरीके से उठाया था। सरकार ने भी माना था कि अपात्र लोगों को मुआवजा मिल गया, और अधिक भुगतान भी हुआ। जांच का हाल यह है कि प्रकरण टांय-टांय फिस्स होता दिख
रहा है।
जांच एजेंसी ने जिस जमीन कारोबारी हरमीत खनुजा को मुख्य आरोपी बताया है, उसे हाईकोर्ट से जमानत मिल गई है। यही नहीं, उमा, और केदार तिवारी, जिन पर धोखाधड़ी कर मुआवजा लेने का आरोप है, वो भी जमानत पर रिहा हो गए। बाकी बचे प्रशासनिक अफसर, वो फरार हैं।
यानी छह महीने की कसरत के बाद भी जांच एजेंसी के हाथ खाली हैं। जो सफलता एजेंसी को शराब, और कोयला घोटाले में मिली थी। वैसा कुछ एजेंसी के अब तक हाथ नहीं लग पाया है। हालांकि रायपुर कमिश्नर ने एक और जांच बिठाई है। यह जांच चल रही है। जांच रिपोर्ट के आधार पर ईओडब्ल्यू-एसीबी एक और प्रकरण दर्ज कर सकती है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
पार्टी ने वाड्रा को मुद्दा नहीं बनाया था
शराब घोटाला केस में पूर्व सीएम भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य की गिरफ्तारी के विरोध में कांग्रेस प्रदर्शन कर रही है। मगर हाईकमान का रुख इस मामले में ठंडा दिख रहा है। अलबत्ता, पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने ट्वीट कर भूपेश परिवार के प्रति समर्थन जरूर जताया है, लेकिन बाकी बड़े नेता खामोश हैं।
पूर्व सीएम भूपेश बघेल सोमवार को दिल्ली में थे, और उनकी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े से मुलाकात हुई थी। खडग़े का कल जन्मदिन था, और पूर्व सीएम ने उन्हें जन्मदिन की बधाई दी। कहा जा रहा है कि चैतन्य की गिरफ्तारी के मसले पर कोई बात नहीं हुई। प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट चुप हैं। राहुल गांधी ने गिरफ्तारी के बाद पूर्व सीएम से फोन पर बात की थी, लेकिन सार्वजनिक तौर पर वो भी कुछ नहीं कह रहे हैं। उम्मीद थी कि एआईसीसी में कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस होगा, लेकिन वैसा कुछ नहीं हुआ।
पार्टी के कुछ नेताओं का कहना है कि खुद राहुल गांधी के बहनोई रॉबर्ट वाड्रा पिछले 10 साल से ईडी, और इनकम टैक्स के चक्कर लगा रहे हैं। मगर पार्टी इसको राजनीतिक मुद्दा बनाने से परहेज किया। पार्टी के कई लोगों का मानना है कि चैतन्य के मामले को ज्यादा तूल देने से भ्रष्टाचार के खिलाफ पार्टी की लड़ाई कमजोर पड़ सकती है। ऐसे में रोजमर्रा के धरना-प्रदर्शन के बजाए कानूनी लड़ाई लडऩा ही उचित होगा। देर सबेर पार्टी इससे दूरी बना सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
अमित का हाथ, चैतन्य के साथ !!
शराब घोटाला केस में चैतन्य की गिरफ्तारी का जनता कांग्रेस के मुखिया अमित जोगी ने भी विरोध किया है। उन्होंने चैतन्य की गिरफ्तारी को राजनीति से प्रेरित करार दिया है। अमित, पूर्व सीएम भूपेश बघेल के धुर विरोधी माने जाते हैं। ऐसे में उनके चैतन्य के समर्थन में आने पर राजनीतिक हलकों में काफी चर्चा हो रही है।
यह बात किसी से छिपी नहीं है, कि जोगी कांग्रेस में आना चाहते हैं। उन्होंने तो पार्टी का कांग्रेस में विलय की भी घोषणा कर दी थी, लेकिन चर्चा है कि पूर्व सीएम के विरोध के चलते जोगी परिवार की कांग्रेस में वापसी नहीं हो पाई। अब जब अमित जोगी, बघेल परिवार के समर्थन में आगे आए हैं, तो पूर्व सीएम का जोगी परिवार के प्रति रुख बरकरार रहता है या फिर कोई परिवर्तन आएगा, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
हमारी जमीन, तुम्हारा दफ्तर! अब बर्दाश्त नहीं..
1978 में जब कोल इंडिया ने एसईसीएल का गठन किया, तब यह तय हुआ था कि जिनकी जमीन जाएगी, उन्हें मुआवजा और नौकरी दोनों मिलेंगे। लेकिन यह व्यवस्था कागजों तक ही सीमित रही। कोरबा की कुसमुंडा और गेवरा जैसी खदानों के लिए जब जमीन का अधिग्रहण शुरू हुआ, तो सैकड़ों बाहरी लोग रहस्यमयी तरीके से जमीन के मालिक या मालिकों के रिश्तेदार बन बैठे और नौकरियों पर कब्जा कर लिया। असली जमीन मालिक,स्थानीय आदिवासी, किसान और गरीब परिवार- कागज, पटवारी और दलालों के खेल में पछाड़ खा गए।
उस वक्त भू-अर्जन अधिकारी कलेक्टर होते थे और पूरे खेल की चाभी तहसीलदार और पटवारी के हाथ में होती थी। नीति यह थी कि तीन एकड़ जमीन पर एक नौकरी, और जिनके पास इससे कम जमीन हो, उन्हें भी नौकरी के साथ मुआवजा मिलेगा। मगर वही हुआ था जो आज रायगढ़, बिलासपुर और अभनपुर की भारतमाला परियोजनाओं में हो रहा है। उस वक्त के एसईसीएल और कोल इंडिया के अफसरों ने फर्जी रिश्तेदार पैदा करने और नौकरियां दिलाने में खुद मदद की और अपने-अपने इलाके के लोगों को भर लिया।
सैकड़ों विस्थापितों ने अदालती लड़ाई लड़ी, कुछ को राहत मिली, पर एसईसीएल ने आनाकानी की। तीन दिन पहले कुसमुंडा खदान के बाहर विस्थापित महिलाओं का प्रदर्शन इसी लंबी लूट के विरोध में था। थकी-हारी महिलाएं कंपनी दफ्तर के मेन गेट पर पहुंचीं, अपनी पीड़ा को सामने लाने के लिए उन्होंने लाज के आखिरी छोर पर साडिय़ां तक उतार दीं। न तो प्रशासन शर्मिंदा हुआ, न एसईसीएल का प्रबंधन। जो सफाई बार-बार दी जाती थी, वही दी गई- जो फाइल राजस्व विभाग ने दी, हमने उसी के आधार पर नौकरी और मुआवजा दिया। लेकिन महिलाएं कह रही थीं, हमारी ज़मीन पर दूसरों को नौकरी मिल गई, और हमारा परिवार आज तक ठोकरें खा रहा है।
इस प्रदर्शन का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वर्दीधारी सुरक्षाकर्मी महिलाओं से कह रहे थे- यह कंपनी का दफ्तर है, तुम्हारा घर नहीं कि ऐसे घुसकर हंगामा करो!
महिलाएं आगबबूला हो गईं। ये जमीन हमारा है, तुम हटो यहाँ से! हमने जमीन दी, तुमने दफ्तर बना लिया और अब हमें ही हटने के लिए कह रहे हो?
जवाब किसी के पास नहीं था। अफसर चुप रहे, कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला। महिलाएं लौट गईं। पर सवाल वहीं छोड़ गईं कि वे अपने हक के लिए कब तक लड़ पाएंगीं?