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चर्चा में कम, पर बड़ा विस्फोटक है
शराब घोटाले के हो-हल्ले, और कार्रवाई के बीच राजीव भवन के कर्मचारी देवेन्द्र डड़सेना की गिरफ्तारी पर ज्यादा कोई चर्चा नहीं हो रही है। देवेन्द्र पांच दिन की ईओडब्ल्यू-एसीबी के रिमांड पर हैं। चर्चा है कि देवेन्द्र ने पूछताछ में कई ऐसे राज उगले हैं जिससे आने वाले दिनों में कांग्रेस नेताओं की मुश्किलें बढ़ सकती है।
चर्चा है कि देवेन्द्र से पूछताछ के बाद कुछ और लोगों के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। देवेन्द्र को कांग्रेस के प्रदेश कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल का राजदार माना जाता है। वो रामगोपाल के सहयोगी के रूप में राजीव भवन में बतौर एकाऊंटेंट के तौर पर काम करते रहे हैं। जिस दिन रामगोपाल के यहां कार्रवाई हुई, तब देवेन्द्र भी गायब हो गए।
ईओडब्ल्यूृ-एसीबी ने उन्हें ढूंढ निकाला। बताते हैं कि देवेन्द्र के पास चुनावी चंदे से लेकर राजीव भवन के निर्माण के खर्चों की बारीक जानकारी है। देवेन्द्र न सिर्फ राजीव भवन बल्कि रामगोपाल के कारोबार का भी लेखा-जोखा रखते हैं। सुकमा में राजीव भवन के निर्माण में शराब घोटाले का पैसा लगने की बात पहले ही सामने आ चुकी है, और ईडी ने भवन को अटैच कर दिया है। न सिर्फ सुकमा बल्कि प्रदेश के ज्यादातर जिलों में रामगोपाल की निगरानी में राजीव भवन का निर्माण हुआ था। ईडी और ईओडब्ल्यू-एसीबी, दोनों जांच एजेंसी की नजर रामगोपाल के मार्फत हुए निर्माण कार्यों-खर्चों और जुटाए गए चंदों पर है। हल्ला तो यह भी है कि देवेन्द्र के रूप में जांच एजेंसी को एक ‘मास्टर की’ मिल गई है। देखना है घोटाले की जांच में जुटी एजेंसियों के लिए कितने मददगार साबित होते हैं।
प्रकृति की गोद में रोमांच और सुकून
अगर आप प्रकृति की शांति में कुछ पल बिताने और रोमांच से भरपूर यात्रा का अनुभव लेना चाहते हैं, तो रायपुर से लगभग 89 किलोमीटर दूर, महासमुंद जिले का धसकुड़ जलप्रपात एक बेहतरीन विकल्प है। सिरपुर से सिर्फ 7 किलोमीटर दूर ग्राम बोरिद में स्थित यह झरना, पहाड़ की ऊंचाई से गिरती सफेद जलधारा और चारों ओर फैली घनी हरियाली के साथ एक जीवंत चित्र की तरह प्रतीत होता है।
इन दिनों यह पर्यटकों को खूब लुभा रहा है। कैमरों में इसकी खूबसूरती को कैद करने लोग दूर-दूर से पहुंच रहे हैं। सिरपुर-कसडोल मार्ग से एक मोड़ पर दाईं ओर मुडऩे के बाद मुख्य सडक़ खत्म हो जाती है और रोमांच की असली शुरुआत होती है।
पथरीले पहाड़ी रास्ते किसी ट्रैकिंग ट्रेल जैसे लगते हैं। झरने के निचले हिस्से तक पहुंचने के लिए साहसिक चढ़ाई करनी होती है। यह जगह साहसिक यात्राओं के शौकीनों के लिए तो स्वर्ग है, लेकिन बच्चों और बुज़ुर्गों के लिए यह ट्रैक थोड़ा कठिन और जोखिम भरा हो सकता है। (फोटो-विवरण/गोकुल सोनी)
13,000 को मिलने जा रहा बड़ा लाभ
केंद्रीय सुरक्षा बलों में आईपीएस अफसरों की प्रतिनियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट के पिछले निर्देश पर गृह मंत्रालय ने अपना जवाब दाखिल कर दिया है। इसमें उसने कहा है कि वह ऐसी प्रतिनियुक्तियों में क्रमिक रूप से कमी करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने अधिकतम दो वर्ष के भीतर आईपीएस अफसरों की इन बलों में घुसपैठ कम करने कहा है। खासकर आईजी स्तर पर। इस कमी के बाद इस फैसले से केंद्रीय बलों के मूल 13,000 अधिकारियों को लाभ मिलने की संभावना है, जो अपने कैडर के भीतर एक संरचित पदोन्नति मार्ग की उनकी मांग को प्रभावी मान्यता देगा है।
बता दें कि गृह मंत्रालय आईपीएस और सीएपीएफ दोनों अधिकारियों के लिए कैडर-नियंत्रण प्राधिकरण है। वैसे यह केस बीते 10 वर्ष से चल रहा है। यह मामला 2015 का है, जब सीएपीएफ के ग्रुप ए अधिकारियों ने गैर-कार्यात्मक वित्तीय उन्नयन (एनएफएफयू), कैडर समीक्षा, पुनर्गठन और आईपीएस प्रतिनियुक्ति को समाप्त करने और एसएजी में आंतरिक पदोन्नति को सक्षम करने के लिए भर्ती नियमों में बदलाव की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
वर्तमान में, सीएपीएफ में डीआईजी के 20 प्रतिशत और आईजी के 50 प्रतिशत पद आईपीएस के लिए आरक्षित हैं। यदि लागू किया जाता है, तो 23 मई के फैसले से सीएपीएफ में आईपीएस का प्रभुत्व काफी कम हो जाएगा, जिसमें सीमा सुरक्षा बल, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, सशस्त्र सीमा बल और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस शामिल हैं।
जवानों के सोशल मीडिया पेज डिलीट
बस्तर जैसे संवेदनशील क्षेत्र में नक्सल विरोधी अभियानों की सफलता के लिए रणनीतिक गोपनीयता आवश्यक है। यही कारण बताते हुए सुरक्षाबलों को सोशल मीडिया और इंटरनेट से पूरी तरह दूर रहने को कह दिया गया है। यदि कोई एकाउंट है तो उसे डिलीट कर दें। अफसरों के मुताबिक इससे संवेदनशील सूचनाओं के लीक होने और जवानों की सुरक्षा पर खतरे की आशंका को टालने में मदद मिलेगी।
बस्तर के बीहड़ और दूरदराज जंगलों में तैनात जवान कठिन परिस्थितियों में काम करते हैं। इलाका भौगोलिक और जलवायु चुनौतियों से भरा है, वहीं दूसरी ओर अब मोबाइल और इंटरनेट जैसी सुविधाएं हाल के वर्षों में वहां पहुंचनी शुरू हुई हैं। इन तकनीकी माध्यमों के जरिए जवान अपनी ड्यूटी के दौरान थोड़े खाली समय में अपने परिवारों से जुड़ पाते थे, दोस्तों से संवाद कर पाते थे, और थोड़ी मानसिक राहत के लिए संगीत, समाचार या मनोरंजन के ज़रिए खुद को तनाव से दूर रख पाते थे। बस्तर में तनाव के कारण कई बार जवानों ने आत्मघाती कदम उठाए हैं। हालांकि ऐसा कोई रिसर्च नहीं है कि सोशल मीडिया संवाद से जुड़े रहने के बाद उनके तनाव में कोई कमी आई है, पर अपने परिवार-दोस्तों से सैकड़ों मील दूर रहने वाले जवानों के लिए यह मन बहलाव का जरिया तो है ही। जवान तो आदेश का पालन करेंगे, उनकी ट्रेनिंग भी ऐसी ही होती है। पर सभी तरह के सोशल मीडिया एकाउंट बंद करा देने का निर्देश क्या व्यावहारिक है? क्या तकनीकी जानकारों से मदद लेकर उनके लिए सेफ सर्फिंग की कोशिश नहीं हो सकती। अब तो लगभग सभी सोशल मीडिया एकाउंट्स एक्स (ट्विटर), फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि पर ऐसे फीचर आ गए हैं कि आपकी एक्टिविटी को सिर्फ वे ही देख सकते हैं, जिन्हें आप चाहें। कुछ शर्तें भी तय की जा सकती हैं कि जवान क्या पोस्ट करें, क्या नहीं। कौन सी सूचना सोशल मीडिया पर साझा करें, कौन सी नहीं।