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देश में सडक़ हादसों में हो रही मौतें दुनिया में एक रिकॉर्ड हैं। अभी इस बारे में एक जानकार ने एक इंटरव्यू में बताया कि गाडिय़ों की अधिक रफ्तार मौतों के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार है। हम दुनिया के कुछ देशों के साथ भारत की सडक़ मौतों की तुलना करके देख रहे हैं, तो भारत वैश्विक स्तर से जरा सा ऊपर है, प्रति दस लाख आबादी पर दुनिया में 150 लोग सडक़ हादसों में मर रहे हैं, भारत में 154। लेकिन दुनिया के संपन्न देशों में यह आंकड़ा 92 है, और भारत उससे दुगुना अधिक है। योरप में यह आंकड़ा 48-49 है, और भारत उससे तीन गुना है। अमरीका में जरूर सब कुछ सडक़ यातायात होने की वजह से प्रति मिलियन 130 मौतें हैं, लेकिन भारत उससे भी खासा अधिक है। दुनिया में होने वाली कुल सडक़ मौतों में भारत की हिस्सेदारी बढ़ती जा रही है।
अब ऐसे में यह खबर आई है कि केन्द्र सरकार मोटर व्हिकल एक्ट को और सख्त बनाने जा रही है, और अगर नियम तोडऩे वाली गाडिय़ों में बच्चे भी बैठे हैं, तो उन पर आम जुर्माने के मुकाबले दो गुना जुर्माना लगाने का प्रस्ताव रखा गया है। यह निजी गाडिय़ों, किराए की गाडिय़ों, या स्कूलों की गाडिय़ों सब पर लागू होगा। इसके अलावा गलती या गलत काम करने वाले ड्राइवरों के ड्राइविंग लाईसेंस भी कुछ गलतियों के बाद निलंबित या रद्द करने का प्रस्ताव रखा गया है। गलतियों या लापरवाहियों पर किस तरह जुर्माने के अंक जुड़ते जाएंगे, और लोगों को फिर से ड्राइविंग टेस्ट देना होगा, ऐसी कई बातें नए नियम-कानून में जोड़ी जा रही हैं।
कानून को और कड़ा करना आसान है, लेकिन जो मौजूदा कानून है उनको कड़ाई से लागू करना बड़ा मुश्किल है। आज देश के कुछ विकसित राज्यों को छोड़ दें, जहां पर कि ट्रैफिक नियम ठीक से लागू होते हैं, तो फिर छत्तीसगढ़ जैसे बहुत सारे राज्य हैं जहां पर सडक़ों पर पूरी अराजकता है, और किसी सुधार की सरकार की नीयत ही नहीं है। इस प्रदेश का हाईकोर्ट बिलासपुर शहर में है, वहीं सारे जज रहते हैं, और वे सडक़ सुरक्षा को लेकर मुख्य सचिव और डीजीपी से, दूसरे सरकारी विभाग प्रमुखों से हलफनामा लेने का रिकॉर्ड बना चुके हैं। लेकिन हाईवे पर बैठे हुए जानवर एक बार अपनी जगह से हट जाएं, तो हट जाएं, सरकार के माथे पर हाईकोर्ट के नोटिसों से शिकन भी नहीं पड़ती। इसी से गुंडागर्दी का बढ़ता हुआ हौसला यहां तक पहुंचा है कि दो दिन पहले हाईकोर्ट शहर वाले बिलासपुर में किसी छोटे-मोटे नेता के करीबी की बिगड़ैल औलाद ने दो बड़ी-बड़ी कारें खरीदीं, और फिर आधा दर्जन कारों से हाईवे को रोककर वीडियो शूटिंग की, और खुद ही उसे भारी अहंकार के साथ चारों तरफ फैलाया भी। पुलिस से उम्मीद की जाती थी कि जिस तरह गरीब मुजरिमों के साथ बर्ताव होता है, इन गुंडों का भी वह जुलूस निकालती, लेकिन इन पर दो-दो हजार रूपए जुर्माना लगाकर छोड़ दिया गया, और पुलिस ने इनके नाम तक जारी नहीं किए। दूसरी तरफ किसी एक पत्रकार ने इसे लेकर सोशल मीडिया पर लिखा- चूंकि ये कारें अमीर लोगों की थीं, और उन्होंने वीडियो पर अपनी शेखी भी बघारी, कंधे पर भारत का राष्ट्रीय चिन्ह पहनने वाले आईपीएस अधिकारियों में दम नहीं था कि उनकी सडक़ पर उठक-बैठक करवाते हुए वीडियो बनवाते। इस पर पहले तो बिलासपुर पुलिस ने यह टिप्पणी की कि आपने आईपीएस अधिकारियों के लिए प्रयुक्त कंधे पर भारत का राष्ट्रीय चिन्ह पहनने वालों में दम नहीं जैसे अपमानजनक शब्द लिखे जो कि मानहानि का मामला बन सकते हैं, और साथ ही राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान भी दंडनीय है। अपमान की यह व्याख्या किसी कॉमेडी शो सरीखी है जहां डरे-सहमे अफसरों को राजचिन्ह के लायक नहीं कहा गया है, अपमान अफसरों का किया गया है, और वे इसे राजचिन्ह का अपमान करार देना चाहते हैं!
केन्द्र सरकार चाहे कितने ही कड़े नियम बना ले, उससे क्या फर्क पड़ता है? जिन राज्यों को न हेलमेट लागू करवाना है, न सीट बेल्ट लगवाना है, न ही मोबाइल पर बात करते चलते लोगों को रोकना है, न एक दर्जन सवारियां ले जाते ऑटोरिक्शा को रोकना है, न दुपहिए दौड़ाते नाबालिगों को रोकना है, न साइलेंसर फाडक़र दौड़ाती मोटरसाइकिलें रोकना है, और न ही अंधाधुंध रफ्तार से, दारू पिए हुए चलाती गाडिय़ों का कुछ करना है, तो क्या केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी छत्तीसगढ़ की सडक़ों पर खड़े होकर नया कानून लागू करवाएंगे? मामूली से ट्रैफिक नियम लागू करवाने के लिए कोई इसरो की रॉकेट टेक्नॉलॉजी नहीं लगती है, लेकिन पुलिस को इसके लिए कुछ काम तो करना होगा। आज यह लगता है कि पुलिस कारोबारी गाडिय़ों से बहुत संगठित उगाही में ही पूरी ताकत झोंक देती है, और उसमें से कोई हिस्सा वह आम लोगों पर बर्बाद करना नहीं चाहती। यह सिलसिला बहुत खतरनाक इसलिए है कि इससे पीढ़ी-दर-पीढ़ी लापरवाह और अराजक ड्राइवर तैयार हो रहे हैं। फिर ऐसी अराजकता के साथ जब बड़ी-बड़ी महंगी गाडिय़ों का हॉर्सपावर भी जुड़ जाता है, जब यह तैश भी जुड़ जाता है कि जानता नहीं मेरा बाप कौन है, तब फिर एक-दूसरे के मुकाबले हर किसी को सडक़ों के नियम तोडऩे में अपनी शान दिखती है।
छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में यह देखना हैरान करता है कि सरकार किस तरह अपनी एक बुनियादी जिम्मेदारी को ताक पर धरकर चैन से जी रही है, और हर दिन प्रदेश में आधा-एक दर्जन लोग सडक़ों पर मारे जा रहे हैं, जिन मौतों को कम करने की पूरी संभावना मौजूद है। जब मौजूदा कानून पर अमल का यह हाल है, तो नितिन गडकरी को फालतू की मशक्कत नहीं करनी चाहिए। आज के नियमों में जो हजार रूपए जुर्माना होना है, जब वही नहीं हो रहा, तो उसे दो हजार रूपए करने से तो सरकार की शर्मिंदगी दो गुना होनी चाहिए? हम गडकरी जैसे मंत्री से कुछ कल्पनाशीलता की उम्मीद कर रहे थे। उन्हें पूरे देश के लिए यह योजना लागू करनी चाहिए कि सडक़ नियम तोडऩे के फोटो-वीडियो, और जानकारी, जीपीएस लोकेशन भेजने वाले लोगों को जुर्माने की आधी रकम दी जाए। इससे भ्रष्ट और निकम्मे पुलिसवालों का एक विकल्प तैयार होगा, और कुछ बेरोजगार लोग हर दिन कुछ सौ रूपए कमा सकेंगे। शुरू में कम से कम कुछ साल तक तो यह सिलसिला जारी रहेगा, जब तक गाडिय़ां न सुधर जाएं, और लोग न सुधर जाएं। जब आम जनता किसी एप्लीकेशन के मार्फत ऐसी जानकारी भेज सकेगी, और उसका नाम गोपनीय रखकर उसके मोबाइल फोन पर ही ईनाम की रकम आ सकेगी, तो लोग बढ़-चढक़र उत्साह से ऐसी शिकायतें भेजेंगे। अकेले सरकारी अमले के भरोसे सडक़ों पर मरने वाले लोगों की लाशों पर अगरबत्ती भी नहीं जलेगी, असल और असरदार सुधार सिर्फ जनभागीदारी से हो सकेगा, या कि मशीनों की भागीदारी से। पता नहीं क्यों सरकारें सुधार की किसी भी बात से इस तेजी से डर जाती हैं कि मानो चालान का नोटिस पाने वाले लोग अगला चुनाव आने के पहले भी कहीं सरकार न पलट दें। भारत में आज ऐसी कोई संभावना या आशंका नहीं है, और राज्य सरकारों को अपनी जिम्मेदारी पूरी करनी चाहिए। अब गडक़री की अपनी पार्टी की सरकारें जिन राज्यों में हैं, वहीं पर उनके नियमों की ऐसी बदहाली है, तो यह खुद गडकरी के लिए शर्मिंदगी की बात है। ऐसे में उन्हें सरकारों को किनारे करके जनता को सडक़ सुरक्षा से जोडऩा चाहिए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)