अंतरराष्ट्रीय

-ज़ुबैर आज़म
पाकिस्तान, 5 नवंबर । पाकिस्तान की सेना ने पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के उन आरोपों को ख़ारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने ख़ुद पर हुए हमले के लिए प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ और गृह मंत्री राणा सनाउल्लाह के अलावा आईएसआई के काउंटर-इंटेलिजेंस विभाग के प्रमुख मेजर जनरल फ़ैसल नसीर को ज़िम्मेदार ठहराया है.
सेना के जनसंपर्क विभाग (आईएसपीआर) ने शुक्रवार की रात एक बयान में कहा, "इमरान ख़ान की तरफ़ से एजेंसी और एक ख़ास अधिकारी के ख़िलाफ़ लगाये गए बेबुनियाद आरोप अस्वीकार्य हैं... अगर कोई वर्दीधारी कर्मी ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि में शामिल होता है तो उसके लिए एक जवाबदेही सिस्टम मौजूद है."
आईएसपीआर के मुताबिक़, सेना ने शहबाज़ शरीफ़ सरकार से मांग की है कि इस मामले की जांच कराई जाए और साथ ही साथ एजेंसी और सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी की मानहानि करने के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई की जाये.
दूसरी तरफ़ लॉन्ग मार्च के दौरान वज़ीराबाद में हुई फ़ायरिंग में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान घायल हो गए थे, जिनका लाहौर के एक हॉस्पिटल में इलाज चल रहा है.
उन्होंने शुक्रवार रात एक वीडियो संदेश में कहा कि जब तक ये तीनों लोग इस्तीफ़ा नहीं देते हैं तब तक धरना जारी रहेगा. उन्होंने सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा से मांग की है कि सेना में मौजूद अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करें जो इस तरह के ग़लत काम कर रहे हैं.
ग़ौरतलब है कि गुरुवार की शाम तहरीक-ए-इंसाफ़ के लॉन्ग मार्च का क़ाफ़िला अल्लाहवाला चौक इलाक़े से गुज़र रहा था तभी सेंट्रल कंटेनर पर गोलियां चलाई गईं. इस घटना में एक व्यक्ति की मौत हो गई जबकि तहरीक-ए-इंसाफ़ के प्रमुख समेत कम से कम 14 लोग घायल हो गए हैं.
पंजाब में, जहां तहरीक-ए-इंसाफ़ और उसके सहयोगियों की सरकार है, इस घटना की एफ़आईआर दर्ज करने में देरी की गई, जिसके बाद इमरान ख़ान ने कहा कि "हमने एफ़आईआर दर्ज कराने की कोशिश की लेकिन हर कोई डरा हुआ है. मैं जनरल बाजवा से पूछता हूं, क्या आप मेजर जनरल फ़ैसल की जांच होने देंगे?"
उन्होंने इस संबंध में पाकिस्तान के चीफ़ जस्टिस से भी न्याय सुनिश्चित करने की मांग की है.
ऐसे में बीबीसी ने यह जानने की कोशिश की है कि किसी गंभीर प्रक्रति के मामले में एक सेवारत सैन्य अधिकारी के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई करने के लिए पुलिस के पास कौन से अधिकार हैं और आर्मी एक्ट क्या कहता है?
'सैन्य अधिकारी जांच में सहयोग करने के लिए बाध्य होता है'
पाकिस्तानी सेना आर्मी एक्ट 1952 के तहत काम करती है जो ड्यूटी के दौरान सैन्य कर्मियों को सुरक्षा प्रदान करता है. हालांकि, अगर सेना का कोई जवान या अधिकारी व्यक्तिगत तौर पर कोई ऐसा अपराध करता है, जिसका उसकी ड्यूटी से कोई संबंध नहीं है, तो पुलिस उनके ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कर सकती है.
कर्नल सेवानिवृत्त इनामुल रहीम पाकिस्तान सेना की लीगल ब्रांच, (जिसे 'जज एडवोकेट जनरल ब्रांच' या जेग ब्रांच कहते हैं) से जुड़े रहे हैं.
बीबीसी संवाददाता शहज़ाद मलिक से बात करते हुए उन्होंने कहा, "क़ानून के मुताबिक़ किसी सैन्य अधिकारी के ख़िलाफ़ उसी तरह मुक़दमा दर्ज किया जा सकता है, जिस तरह एक आम नागरिक के ख़िलाफ़ होता है."
उन्होंने कहा, "अगर सेना के किसी सैन्य अधिकारी के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया जाता है तो आर्मी एक्ट के तहत सेना के अधिकारी मामले की जांच में पुलिस का सहयोग करने के लिए बाध्य होते हैं."
हालांकि, उनके अनुसार, सैन्य अधिकारी के ख़िलाफ़ पुलिस की जांच समाप्त हो जाने के बाद, संस्था (यानी सेना) ज़िला पुलिस अधिकारी से कह सकती है कि इस अधिकारी का ट्रायल वह ख़ुद करेंगे. ऐसी स्थिति में सेना की तरफ़ से इस मुक़दमे का रिकॉर्ड अपने क़ब्ज़े में ले लिया जाता है और अधिकारी के ख़िलाफ़ सेना के नियमों के अनुसार कार्रवाई की जाती है.
सेना के नियमों और निर्देशों के अनुसार, पुलिस द्वारा किसी मामले की जांच के दौरान किसी अभियुक्त को हिरासत में लिए जाने की कार्रवाई में किसी भी सैन्य अधिकारी को बाधा डालने का अधिकार नहीं है.
इसके अनुसार, हत्या के प्रयास के एक मामले में किसी सैनिक को हिरासत में लेने के 24 घंटे के अंदर-अंदर पुलिस को इस सैनिक के कमांडिंग ऑफ़िसर को सूचित करना ज़रुरी है. हालांकि, अगर मामला किसी अन्य प्रकृति का है, तो हिरासत में लेने से पहले कमांडिंग ऑफ़िसर को सूचित करने का प्रयास किया जाना चाहिए.
इन नियमों में यह भी कहा गया है कि मुक़दमे का जांच अधिकारी अपने क्षेत्र की सीमा के अंदर किसी सैनिक को बुला सकता है, लेकिन सैनिक को जांच के लिए किसी दूर दराज़ इलाक़े में बुलाने की अनुमति नहीं है.
ऐसे मामले में जांच करने वाले पुलिस अधिकारी को ख़ुद उस सैनिक के पास जाना होगा या फिर संबंधित क्षेत्र की पुलिस के ज़रिये संपर्क करना होगा.
क़ानून और परंपरा
बीबीसी ने एक पूर्व पुलिस आईजी और एक वकील से भी बात की ताकि यह पता लगाया जा सके कि क़ानून में जो कुछ दर्ज है क्या उसका पालन भी उसी तरह से किया जाता है या क़ानून और परंपरा के बीच अंतर है.
शाह ख़ावर पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट के वकील हैं और जज भी रह चुके हैं.
बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा कि इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि कौन किस पद पर है... अगर सेना का कोई अधिकारी अभियुक्त है तो एफ़आईआर दर्ज की जा सकती है.
वो आगे कहते हैं, "लेकिन इसके तुरंत बाद सैन्य पुलिस के कमांडर को सूचित किया जाता है कि आपके अधिकारी के ख़िलाफ़ एफ़आईआर हुई है."
"आर्मी एक्ट के अनुसार, ऐसे अधिकारी के ख़िलाफ़ आर्म्ड फ़ोर्स यह भी कह सकती है कि हम ख़ुद ट्रायल करेंगे."
हालांकि, उन्होंने कहा कि "सैन्य कमांडर के पास यह विकल्प होता है कि वह इस अधिकार का इस्तेमाल न करे और पुलिस को कह सकता है कि आप ख़ुद ट्रायल करें. इसके बाद पुलिस ट्रायल चला सकती है."
शाह ख़ावर ने एक मुक़दमे का उदाहरण देते हुए कहा, "मैंने एक केस लिया था, जिसमें वायु सेना के एक जेसीओ पर हत्या का आरोप था. वायुसेना ने कहा कि पहले हम ख़ुद कोर्ट ऑफ़ इंक्वायरी बनायेंगे. उन्होंने नौ महीने तक अभियुक्त को पुलिस के हवाले नहीं किया था. अपनी जांच पूरी करने के बाद उन्होंने कहा कि हमारे हिसाब से जिस समय हत्या हुई उस वक़्त अभियुक्त उस जगह पर था ही नहीं. फिर उन्होंने पुलिस को अपनी जांच सौंपी कि अब आप अपना ट्रायल चलाइए."
जब उनसे पूछा गया कि क्या उनके सामने ऐसा कोई मुक़दमा आया है जिसमें किसी जनरल रैंक के सेवारत सैन्य अधिकारी पर हत्या के प्रयास का मुक़दमा दर्ज किया गया हो, तो उन्होंने जवाब दिया, नहीं.
पाकिस्तान में पुलिस की सामान्य प्रेक्टिस क्या होती है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमने पूर्व आईजी पुलिस सरमद सईद से संपर्क किया.
पूर्व आईजी पुलिस सरमद सईद के मुताबिक़ ऐसे मामलों में मुक़दमा दर्ज करने के बाद सैन्य अधिकारियों को सूचित किया जाता है. "हम मुक़दमा दर्ज कर लेते थे और मिलट्री पुलिस को सूचित कर देते थे. आम तौर पर सेवारत अधिकारी के मुक़दमे का ट्रायल सेना ख़ुद ही चलाती है."
एक मामले का उदाहरण देते हुए सरमद सईद ने कहा, कि अपनी सर्विस के दौरान, "मैंने एक बार एक मेजर रैंक के एक अधिकारी के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया था, जिस पर एक पुलिस हेड कांस्टेबल के साथ मारपीट करने का आरोप था."
जिस अधिकारी पर केस हुआ, उसने हमसे कहा कि मेरा सेटलमेंट करा दो, मेरी सर्विस का सवाल है.
सरमद सईद के मुताबिक़ सेना में जिन अधिकारियों ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज हो जाता है उनका प्रोमोशन नहीं होता. कुछ भी न हो, तो उनके रिकॉर्ड पर चीज़ आ जाती है, यह सबसे बड़ी सज़ा होती है.
हालांकि, उनके पास भी ऐसा कोई उदाहरण नहीं था जहां पुलिस ने किसी जनरल रैंक के अधिकारी के ख़िलाफ़ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया हो.
"मेरे नोटिस में ऐसा कोई केस नहीं है जहां सेवारत टू या थ्री स्टार अधिकारी के ख़िलाफ़ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया गया हो."
माई जंदू के परिवार के नौ सदस्यों की हत्या के मामले में सज़ा
पाकिस्तानी सेना में किसी सेवारत अधिकारी के ख़िलाफ़ हत्या के मामले में होने वाली सज़ा का एक प्रमुख उदाहरण साल 1992 का है, जब सिंध में माई जंदू के परिवार के नौ सदस्यों की हत्या में शामिल एक मेजर को सज़ा मिली थी.
साल 1992 में सिंध में डकैतों के ख़िलाफ़ एक ऑपरेशन के दौरान, मेजर अरशद जमील अवान के नेतृत्व में सेना की एक यूनिट ने दावा किया था कि सेना के साथ मुठभेड़ में नौ डकैत मारे गए हैं.
हालांकि, बाद में यह खेती की ज़मीन का एक व्यक्तिगत विवाद निकला, जिसके लिए मेजर अरशद जमील अवान को सेना से बर्ख़ास्त कर दिया गया और उनके यूनिट के सदस्यों समेत उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया.
फिर उनका फील्ड जनरल कोर्ट-मार्शल शुरू हुआ.
'टांडो बहावल की घटना' को तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ और उस समय के सेनाध्यक्ष जनरल आसिफ़ नवाज़ ने भी स्वीकार किया था, जिसमें हैदराबाद के जीओसी मेजर जनरल सलीम उल हक़ और उनके डिप्टी ब्रिगेडियर को उनके पदों से हटा दिया गया था.
28 अक्टूबर 1996 को मेजर अरशद को हैदराबाद की सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी. (bbc.com/hindi)