गरियाबंद
'छत्तीसगढ़' संवाददाता
नवापारा राजिम, 8 अगस्त। संत निरंकारी मिशन के तत्वावधान में गत दिवस कृषि उपज मंडी प्रांगण में संत समागम का आयोजन किया गया। मिशन के राजपिता रमित ने अपने संबोधन में कहा कि प्रेमा भक्ति में प्रेम का जिक्र शब्दों तक सीमित न होकर भक्तों के जीवन से प्रकट होता है।
निरंकारी माता सविन्दर के जीवन का उदाहरण देते हुए कहा कि भक्ति का ये उसूल है के तू कुबूल सेतो तेरा किया सब कुबूल है। ईश्वरीय प्रेम केवल एक क्रिया न होकर को प्रेम रूप में ढालना होता है। जहां स्वयं प्रेम है वहां केवल प्रीतम की ही बात होती है ये सौदा अक्ल का नहीं, अक्ल को तो ये प्रेम समझ ही नहीं आता। मीरा, शबरी और कबीर जैसे अनेक भक्तों का जिक्र किया जाता है ये भक्ति के उत्तम उदाहरण हैं। गुरसीख का रिश्ता गुरु से केवल प्रेम वाला ही होता है वहाँ प्रेम के सिवा कुछ बचता ही नहीं।
जैसे मजनू लैला का नाम लेता हुआ उसे सेहराओं मे ढूंढता रहता है और दीवानों कि तरह उसे पुकारता रहता है ये देखकर वहाँ के राजा ने मजनू को बुलाया और कहा तू जिस किसी भी सुंदर स्त्री से कहेगा हम तेरा विवाह उस स्त्री से करवा देंगे तो मजनू कहता है कि वो स्त्री लैला तो नहीं होगी। ये निगाह केवल लैला के लिए है। इसी प्रकार जिस भक्त की अवस्था ऐसी होती है उसका प्रेम अपने गुरु से ऐसा ही होता है।
भक्त का हृदय तो परहित सरस धरम नहीं भाई वाली अवस्था का होता है और यदि अवस्था पर पीड़ा सम नहीं अधमाई वाली है तो फिर जीवन मे भक्ति की अवस्था प्रेमा भक्ति वाली नहीं हो सकती। आज संसार मे ईश्वर का नाम केवल सांसरिक सुखों की प्राप्ति के लिए लिया जा रहा है प्रभु की प्राप्ति के लिए नहीं लिया जा रहा तो जीवन का जो मुख्य उद्देश्य है उसे प्राप्त करने से मनुष्य वंचित ही रह जाएगा। सतगुरु अपनी लीला से अपने भक्तों को निहाल करते रहते हैं। आज इस संत समागम में दुबई, बैंगलुरु जैसे दूर स्थानों के भी भक्तों सहित हजारों की संख्या में भक्तगण निरंकारी संत समागम में शामिल हुए,क्षेत्र के जोनल इंचार्ज गुरबक्श सिंह कालरा ने सभी प्रभु प्रेमियों का धन्यवाद किया।


