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वैश्विक अनुभव को स्थानीय स्वास्थ्य जरूरतों से जोडऩे की हमारी दृृष्टि को बालको कर रहा साकार-जायसवाल
22-Sep-2025 2:33 PM
वैश्विक अनुभव को स्थानीय स्वास्थ्य जरूरतों से जोडऩे की हमारी दृृष्टि को बालको कर रहा साकार-जायसवाल

बीएमसी छत्तीसगढ़ कैंसर कॉन्क्लेव 2025

रायपुर, 22 सितम्बर। मध्य भारत में कैंसर उपचार के क्षेत्र में अग्रणी बालको मेडिकल सेंटर (बीएमसी) ने बताया कि श्याम बिहारी जायसवाल, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री, छत्तीसगढ़ शासन की उपस्थिति में तीसरे वार्षिक छत्तीसगढ़ कैंसर कॉन्क्लेव का शुभारंभ किया। उद्घाटन के अवसर पर सिर एवं गर्दन के जटिल कैंसर की लाइव सर्जिकल डेमोन्स्ट्रेशन आयोजित की गई, जिसमें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कैंसर विशेषज्ञों ने हिस्सा लेकर प्रतिभागियों के ज्ञान और तकनीकी समझ को मजबूत किया।

मंत्री श्री जायसवाल ने बताया कि यह छत्तीसगढ़ के लिए गर्व की बात है कि बीएमसी कैंसर कॉन्क्लेव 2025 में सात देशों और पूरे भारत से आए शिक्षकों, ऑन्कोलॉजिस्ट्स, शोधकर्ताओं और प्रैक्टिशनर्स की मेजबानी कर रहा है। उनकी उपस्थिति न केवल हमारे राज्य के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि छत्तीसगढ़ उन्नत स्वास्थ्य चर्चाओं और नवाचारों का केंद्र बन रहा है। यह कॉन्क्लेव वैश्विक अनुभव को स्थानीय स्वास्थ्य जरूरतों से जोडऩे की हमारी दृष्टि को साकार करता है।

बीएमसी ने बताया कि इस कार्यशाला का नेतृत्व अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त कैंसर विशेषज्ञ डॉ. अनिल डी’क्रूज़, निदेशक ऑन्कोलॉजी, अपोलो हॉस्पिटल्स (दिल्ली, मुंबई, चेन्नई) और डॉ. गौरी पंतवैद्य, प्रोफेसर एवं प्रमुख, सिर एवं गर्दन ऑन्कोसर्जरी विभाग, टाटा मेमोरियल सेंटर, मुंबई ने किया। देशभर के अग्रणी कैंसर संस्थानों से जुड़े कैंसर सर्जन ने सत्र को और भी समृद्ध बनाया तथा प्रतिभागियों को जटिल सर्जिकल निर्णयों की बारीकियों से अवगत कराया।

सिर एवं गर्दन के कैंसर की बढ़ती संख्या पर चर्चा करते हुए डॉ. अनिल डी’क्रूज़ ने बताया कि पिछले तीन दशकों के दौरान कैंसर की घटनाओं, खासकर थायरॉइड कैंसर में तीन गुना वृद्धि हुई है।  यह मुख्यत: सर्जरी से ठीक होने वाला कैंसर है और सही इलाज मिलने पर 99 प्रतिशत मरीज पूरी तरह स्वस्थ हो सकते हैं। लेकिन यदि यह सर्जरी प्रशिक्षित सर्जनों द्वारा न की जाए तो रोगियों की आवाज़, कैल्शियम संतुलन, पैराथायरॉयड कार्यप्रणाली और दीर्घकालिक नियंत्रण पर गंभीर दुष्प्रभाव हो सकते हैं। इसलिए सर्जन को हर साल कम से कम 50-60 ऐसी सर्जरी का अनुभव होना चाहिए।


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