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अराजकता के बीच शांति, कीचड़ में खिले कमल की तरह बनो-गुरु श्री श्री रविशंकर
19-Sep-2025 2:53 PM
अराजकता के बीच शांति, कीचड़ में खिले कमल की तरह बनो-गुरु श्री श्री रविशंकर

अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस पर विशेष

गुरुदेव श्री श्री रविशंकर ने बताया कि मरुस्थल में पानी की बोतल का मूल्य एक झरने के पास से कहीं अधिक होता है। जब चारों ओर शांति हो और आप शांत हों, तो उसका कोई विशेष अर्थ नहीं है। परंतु जब चारों ओर सब बिखर रहा हो और तब भी आप अपनी मुस्कान बनाए रखें, तभी शांति का असली मूल्य है। जब लोग आपको दोष दें, जब वे आपको समझ न पाएँ - तब मुस्कुराते रहने की आंतरिक शक्ति चाहिए।

गुरुदेव ने बताया कि जब आप अराजकता और भ्रम से घिरे हों, तभी सबसे अधिक शांति की आवश्यकता होती है। आनंद अराजकता से ही निकलता है, और अराजकता का आनंद लेने की क्षमता ही आत्मज्ञान है। जब परिस्थितियाँ आपके अनुकूल न हों, तभी धैर्य, शक्ति और साहस की आवश्यकता होती है ताकि आप विचलित न हों। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है , समत्वं योग उच्यते  अर्थात समभाव ही योग की कसौटी है।

गुरुदेव ने बताया कि महात्मा गांधी की जीवनसंगिनी कस्तूरबा गांधी अपने जीवन के अंतिम क्षणों में थीं। डॉक्टरों ने उम्मीद छोड़ दी थी। उन्होंने कहा, बस कुछ ही घंटे या मिनट बाकी हैं। उसी क्षण गांधीजी अपने कुटीर से बाहर आए और पंडित सुधाकर चतुर्वेदी से कहा, गीता का वह श्लोक मुझे सुनाओ। जब उन्होंने गीता का पाठ किया तो गांधीजी बोले, आज मेरी परीक्षा है। आत्मज्ञान का अर्थ है जीवन को  गहराई से जीना। जब आपकी जड़ें गहरी हों, जब आप अपने अस्तित्व की गहराई से जीते हों, तब संसार हिल सकता है पर आप अडिग रहते हैं। आप तूफान का अनुभव करते हैं, परंतु तूफान आपको निगल नहीं पाता।

गुरुदेव ने बताया कि कीचड़ में खिलने वाले कमल की तरह बनो, जो कीचड़ से अछूता रहता है। कमल का पत्ता पानी में रहता है, परंतु यदि उस पर पानी की एक बूँद डाली जाए तो वह मोती की तरह उस पर टिकती है, पर चिपकती नहीं। वैसे ही इस संसार में रहो, पर किसी से चिपको मत।

गुरुदेव ने बताया कि जब आप संघर्ष और अराजकता के साथ रहना स्वीकार कर लेते हैं, तो वे मिट जाते हैं। आप केंद्रित कैसे रह सकते हैं? अपने अनुभव से ध्यान हटाकर अनुभव करने वाले की ओर ले जाएँ। यदि आप निराश हैं, तो निराशा के अनुभव में खोने के बजाय पूछें,कौन निराश है? यदि आप दुखी हैं, तो पूछें, कौन दुखी है? यदि आप अज्ञानी लगते हैं, तो पूछें, कौन अज्ञानी है? यदि आप सोचते हैं मैं तो बेचारा हूँ, तो पूछें, यह ‘बेचारा मैं’ कौन है? अपने सारे मुखौटे उतार दो और ‘मैं’ का सामना करो।


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