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रायपुर, 31 जनवरी। लिटरेचर फेस्टिवल जेएलएफ के मंच पर नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी की आत्मकथा दियासलाई का लोकार्पण हुआ। यह पुस्तक सत्यार्थी की जीवन यात्रा, उनके संघर्ष और दुनिया भर के बच्चों को शोषण से मुक्त करने की उनकी प्रेरक कहानी को दर्शाती है। लोकार्पण के दौरान कैलाश सत्यार्थी ने आत्मकथा के अध्यायों और उससे जुड़े अपने अनुभवों को साझा किया। सत्यार्थी की जीवनी किशोरावस्था में सामाजिक रूढिय़ों को चुनौती देने से लेकर बच्चों को शोषण मुक्त करने के संघर्ष की प्रेरक गाथा है।
चर्चा के दौरान उन्होंने बताया कि अछूत महिला के हाथों से खाना खाने पर उन्हें समाज ने बहिष्कृत कर दिया और उन्हें एक छोटे से कमरे में परिवार से अलग अकेले वक्त बिताना पड़ा।
आत्मकथा में सत्यार्थी लिखते हैं अंधेरे का अंत हमेशा किसी छोटी सी चिंगारी से होता है। जैसे माचिस की एक तीली सदियों के घने अंधेरे को चीरकर रोशनी फैला सकती है वैसे ही हर व्यक्ति के भीतर दुनिया को बेहतर बनाने की अपार संभावनाएं छुपी होती हैं। जरूरत है उन्हें पहचानने और रोशन करने की।
कैलाश सत्यार्थी ने आत्मकथा को अपने माता-पिता और उन तीन साथियों को समर्पित किया है, जिन्होंने बाल श्रम, शोषण और अन्याय से बच्चों को बचाने की लड़ाई में अपने प्राणों की आहुति दी।