बेमेतरा

आवारा पशुओं से फसल बचाने किसान कर रहे चंदा
27-Aug-2024 4:34 PM
आवारा पशुओं से फसल बचाने किसान कर रहे चंदा

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बेमेतरा, 27 अगस्त।
जिला मुख्यालय से 15 किमी की दूर के दर्जन भर गांव के किसान बदेलिन गायों से खेतों रेकी फसल बचाने के लिए समूह बनाकर रतजगा कर रहे है। मवेशियों द्वारा रातों रात फसल चौपट करने की समस्या से किसान करीब दो दशक से इस स्थिति का सामना कर रहे हैं। बंदेलिन गायों को रखने के लिए 2015 के दौरान ग्राम झालम में प्रारंभ किया अभ्यारण कारगर साबित नहीं हुआ है।

जानकारी हो कि बालसमुन्द, झिरिया, चंदनु, तुमा, करंजिया, नवागांव, उसलापुर, आंदू, घठोली, रवेंली, बिरमपुर, बिटकुली समेत अनेक गांव के किसान जंगली अवारा गौवंशी मवेशियों से परेशान है। किसानों की माने तो करीब 700 से 800 की संख्या में खेत में घुसने के बाद चंद घंटे में ही बंदेलीन गाय फसल को सफाचट कर देती है। इसलिए गांवों के सरहद को बेरिकेडिंग कर घेराबंदी किया जा रहा है। बेरिकेडिंग के लिए गांव वाले चंदा कर इस तरह का व्यवस्था कर रहे है। इसके साथ ही अलग-अलग गांव के किसान रात में समूह बनाकर खेतों की चौकीदारी करते हैं तब जाकर फसल सुरक्षित हो रहा है। झिरिया के किसानों ने बताया कि दो दशक से क्षेत्र के किसान इस तरह की स्थिति का सामना करते आ रहे हैं।

55 एकड़ भूखंड आरक्षित किया था झालम में, फिर भी काबू नहीं 
झालम में करीब 55 एकड़ भूमि में वर्ष 2007 से बंदेलीन गायों के व्यवस्थापन के लिए चयन कर उपचार, चारा व सुरक्षा के साथ रखा गया है। इसके बाद वर्ष-2010 में वन विभाग ने गायों के रखरखाव की जिमेदारी एनजीओ को सौंपी थी। इसके बाद प्रशासनिक प्रस्ताव पर शासन से मुहर लगने के बाद राजस्व विभाग ने गौ अभ्यारण्य के संचालन की जिमेदारी जमीन सहित पशुधन विकास विभाग को सौंप दी थी। अभ्यारण्य के लिए 6 करोड़ 57 लाख का बजट जारी किया गया था। इस लागत से आवारा व पालतू गायों के अनुकूल जहां पर हरे-भरे पेड़ों के नीचे गायों के खुला रखने की योजना थी। किसान प्रमील तिवारी ने बताया कि बंदेलीन मवेशियों की संया करीब 700 से 800 के बीच होंगी। चारों तरफ किसानों के फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। इस संबंध में कई बार जिलाधीश से जनप्रतिनिधियों ने आग्रह किया कि उचित स्थान पर स्थानांतरित किया जाए लेकिन इस विषय पर शासन ने ध्यान नहीं दिया। झिरिया के विनोद तिवारी, जानू साहू, प्रवीण साहू, सुरेश साहू, तुगन ध्रुव, समेत अनेक किसानों ने बताया कि फसल नुकसान से बचाने के लिए बंदेलीन गायों की रखने के लिए अलग व्यवस्था करने का पक्ष रखा है।

कई साल तक किसी ने नाम तक नहीं लिया 
बीते कई साल के दौरान झालम के इस अभ्यारण का नाम तक नहीं लिया गया था। गौ सुरक्षा संवर्धन के लिए किए गए प्रयास की पूरी योजना मटियामेट हो चुका है। जिसे एक बार फिर पुर्नजीवित करने का प्रयास होते नजर आ रहा है पर इस बीच एक सवाल भी किसानों के जहन में है कि बंदेलीन गायों को रखा जायेगा कि सडक़ व अन्य स्थानों से लाये गये गायों को रखा जायेगा।

बंदेलीन गायों के लिए हो अलग व्यवस्था  
आमतौर पर घर व सडक़ पर घूमने वाले गाय, बैल व सांड की अपेक्षा बंदेलीन गायो का बर्ताव जंगली जानवरों की तरह होता है जो अपने कुनबा के बाहर से आने-वाले जानवरों को बर्दाश्त नहीं करते हैं। ग्रामीण बातते हैं कि उनके झुंड के पास अगर इंसान भी पहुंच जाये तो उनकों नहीं छोड़ते हैं। इस स्थिति में अभ्यारण में रखा जाता है तो उनके लिए अलग व्यवस्था करने की जरूरत होगी। फिलहाल झिरिया के आसपास बने नर्सरी में सैकड़ों की संख्या में बंदेलिन गायों का जमावड़ा लगा रहता है। दूसरी तरफ देखा जाए तो बंदेलिन गायों के लिए चारा पानी की भी समस्या है। पर्याप्त चारा पानी की कमी की वजह से बंदेलीन गाय पूर्व की अपेक्षा कमजोर होने लगी है।
 


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