बेमेतरा
28 फरवरी तक जिले में एक दाना मक्का नहीं बिका
बेमेतरा,10 मार्च। सरकारी तौर पर धान के साथ मक्का खरीदी के लिए तीन साल पहले घोषणा किए जाने के बाद भी खरीदी को लेकर अब तक प्रक्रिया को बेहतर तरीके से अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है। धान की तरह खरीदी के लिए पंजीयन से लेकर परिवहन की स्थिति साफ नहीं होने की वजह से जिले में खरीफ सीजन के दौरान मक्का की खेती करने वाले किसानों की संख्या लगातार कम होती जा रही है।
किसानों के अनुसार प्रदेश भर में सरकार प्रति एकड़ 10 क्विंटल के मान से मक्का खरीदी करती है, जबकि प्रति एकड़ मक्का का उत्पादन 30 से 40 क्विंटल होता है। जानकारी हो कि सरकारी तौर पर धान के एवज में दीगर फसल लेने के लिए किसानों को प्रेरित करने के लिए प्रयास जारी है। दूसरी तरफ धान का बेहतर विकल्प होने के बाद भी जिले में मक्का की खेती को बढ़ावा नहीं मिल रहा है। हालांकि सरकार द्वारा खरीफ सीजन के दौरान मक्का खरीदी के लिए प्रति क्विंटल 2090 रुपए की दर से समर्थन मूल्य जारी किया गया था।
मक्का की खरीदी जिले में धान खरीदी पूर्ण होने के बाद 1 नवंबर से 28 फरवरी तक की जानी थी। इस अवधि के दौरान जिले में एक दाना मक्का की खरीदी नहीं हुई। जिले में बीते खरीफ सीजन के दौरान बेमेतरा ब्लॉक में 40 हेक्टेयर, साजा ब्लॉक में 3 हेक्टेयर, बेरला व साजा में 82 हेक्टेयर मिलाकर 125 हेक्टेयर में मक्का की पैदावारी हुई थी। इससे पूर्व जिले में मक्का का कुल रकबा 192 हेक्टेयर व 2021 के दौरान 266 हेक्टेयर में मक्का की खेती की जा रही थी। तीन साल बाद जिले में मक्का की खेती आधे से भी कम हो चुकी है। किसानों ने कहा कि यह कटु अनुभव है। मक्का की खेती से बचा हुआ मक्का कहां बेचें।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता से चर्चा करते हुए किसानों ने बताया कि मक्का की खेती में सबसे अधिक समस्या धान की तरह इसका समर्थन मूल्य व खरीदी का मात्रा को नहीं बढ़ाना है।
सावतपुर के किसान संदीप महेश्वरी ने बताया कि मक्का की पैदावारी प्रति एकड़ करीब 30 से 40 क्विंटल की होती है जबकि सरकार केवल 10 क्विंटल मक्का खरीदती है, वो भी बेहतर किस्म के होने पर। दूसरी तरफ किसानों के लिए बचे हुए व रिजेक्ट मक्का बेचने की चुनौती है। इस वजह से खरीफ सीजन में किसानों ने मक्का की खेती करना छोड़ दिया है।
मक्का की खेती को लेकर ग्राम जहाजपुर के किसान व्यासनारायण शर्मा ने बताया कि मक्का को समर्थन मूल्य पर बेचना भारी पड़ता है। बाजार नहीं होने की वजह से व्याप्त हो रही विपरीत स्थिति को देखते हुए उन्होंने भी मक्का की फसल लेना बंद कर दिया है।
मोहन वर्मा ने बताया पूर्व की अपेक्षा कई किसान मक्का की खेती करना छोड़ चुके हैं। किसान प्रदीप गुप्ता मानते हैं कि एक समय सोयाबीन की खेती धान से अधिक लाभ देने वाली थी पर किसानों ने अनुकूल माहौल नहीं मिलने की वजह से इसकी खेती करनी छोड़ दी है। उन्हें संदेह है कि जिले में सोयाबीन की तरह मक्का की खेती की हालत न हो जाए। जिले में अभी भी ग्राम बीजा, बहेरा, गांगुपर, संडी, सल्धा, डगनिया, सावतपुर व बैजी समेत कई गांव के किसान मक्का का उत्पादन कर रहे हैं। सभी केन्द्रों में बोर्ड लगाया गया था पर धान के बाद सन्नाटा पसरा रहा।
धान खरीदी के दौरान जिले के सभी धान खरीदी केन्द्रों में धान के अलावा मक्का का समर्थन मूल्य 2090 तय कर बकायदा बोर्ड लगाया गया था। 1 नंवबर से जारी प्रक्रिया के बाद से 20 फरवरी तक जिले के किसी भी किसान ने मक्का बेचने के लिए न पंजीयन कराया है न मक्का लेकर केन्द्र तक पहुंचे हैं। धान खरीदी के बाद समितियों में सन्नाटा पसरा रहा है। धान की तरह मक्का बेचने के लिए सरकारी तौर पर किसानों को प्रोत्साहित भी नहीं किया गया है। हालांकि कृषि विभाग ने मक्का का बीज किसानों को वितरित किया था।
मंडी वालों को खरीदी के बारे में पता नहीं
जिले की कृषि उपज मंडी व उपमंडियों में भी मक्का बेचे जाने को लेकर रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। कृषि उपज मंडी सचिव ब्रह्मराम मरावी ने बताया कि जिले में मंडी के माध्यम से मक्का खरीदी का रिकॉर्ड नहीं है। बहरहाल जिले में विपरीत हालत होने की वजह से जिले के किसान खरीफ सीजन के दौरान मक्का का उत्पादन करने से हाथ खींच रहे हैं।
किसी ने पंजीयन नहीं कराया
डीएम नागरिक आपूर्ति निगम अल्का शुक्ला ने बताया कि जिले में इस बार भी एक भी किसानों ने मक्का बेचने के लिए पंजीयन नहीं कराया है। बीते सत्र में भी यही स्थिति रही।
जिले में मक्का की खेती की स्थिति
--------------------------------------------------
2023 में -- 125 हेक्टेयर
2022 में -- 161 हेक्टेयर
2021 में -- 266 हेक्टेयर
-------------------------------------------------
मक्का का समर्थन मूल्य -- 2090


