बेमेतरा

121 बटुकों का उपनयन संस्कार
11-May-2023 3:18 PM
121 बटुकों का उपनयन संस्कार

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बेमेतरा, 11 मई। 
सपाद लक्षेश्वर धाम सलधा में बुधवार को 121 बटुकों का उपनयन संस्कार किया गया इसमें 3 वर्ष से लेकर 53 वर्ष के बटुक का उपनयन संस्कार किया गया। ब्रह्मचारी ज्योर्तिमयानंद की उपस्थिति में स्थानीय पुरोहित रवि शास्त्री, प्रवीण शर्मा ने मंत्रोच्चार के साथ मुख्य यजमान नरेन्द्र पाण्डेय, सुनिल मिश्रा सपत्नीक से पूजा अर्चना कराया।
छत्तीसगढ़ के 11 जिलों से बटुक अपने अभिभावकों के साथ उपनयन संस्कार में शामिल हुए यह आयोजन सपाद लक्षेश्वर धाम-सलधा में प्रतिवर्ष निशुल्क आयोजित किया जाता है। इस आयोजन में भोजन भंडारा का भी आयोजन निशुल्क किया जाता है। उपनयन संस्कार की इस वृहद आयोजन में मुख्य रूप से सर्व ब्राह्मण समाज के उपप्रांताध्यक्ष लेखमणी पाण्डेय, सर्व ब्राह्मण समाज के जिलाध्यक्ष जितेन्द्र शुक्ला, राजेश तिवारी, अश्वनी तिवारी ,ब्यास नारायण शर्मा, प्रणीश चौबे अधिवक्ता, सुजीत शर्मा पत्रकार, सनत तिवारी, लाला तिवारी, संजय शर्मा , विनोद दुबे, ललित विश्वकर्मा, राजेश वैष्णव,पुरूषोत्तम पटेल, महेन्द्र चौहान के साथ बड़ी संख्या में सभी समाज के सम्माननीय गण शामिल हुए।

उपनयन संस्कार कब और क्यों ?
ब्रह्मचारी जी नें बच्चे का उपनयन संस्कार कब और क्यों किया जाता है उसके ऊपर प्रकाश डाला गया। इसमें बताया कि हिंदू परंपरा के लिए 16 संस्कारों को अपने जीवन में अपनाना जरूरी है इन्हीं संस्कार में दसवां संस्कार उपनयन संस्कार है जिसे जनेऊ संस्कार और यज्ञोपवित के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस संस्कार को करने से बच्चों की ना केवल भौतिक बल्कि आध्यात्मिक प्रगति भी अच्छी तरह से होती है इस संस्कार में शिष्यों को गायत्री मंत्र की दीक्षा मिलती है। इसके बाद उसे यज्ञोपवीत धारण करना होता है पश्चात अपनी अपनी शाखा के मुताबिक वह वेदों का अध्ययन भी करते हैं। जनेऊ धारण करने के पश्चात ही द्वीज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है द्विज का अर्थ दूसरा जन्म है मतलब सीधा है गुरुकुल में जनेऊ संस्कार के बाद ही शिक्षा का अधिकार मिलता था जनेऊ संस्कार के बाद ही यज्ञ आदि का अधिकार मिलता है।
 


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