बलौदा बाजार

बंद खदान में मछली पालन कर महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर
14-Jun-2025 3:39 PM
बंद खदान में मछली पालन कर महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

बलौदाबाजार, 14 जून। बलौदाबाजार की एक बंद खदान अब महिला सशक्तिकरण और नीली क्रांति (मछली पालन) का प्रतीक बन गई है। जहां पहले सिर्फ पत्थर निकलते थे, वहां महिलाएं मछली पालकर आत्मनिर्भरता की मिसाल गढ़ रही हैं। यह जिले का पहला प्रोजेक्ट है, जिसमें केज कल्चर तकनीक से महिलाएं बंद खदान में भरे पानी में मछली उत्पादन कर रही हैं।

बलौदाबाजार जिले को उद्योगों की नगरी के नाम से भी जाना जाता हैं क्योंकि छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय सीमेंट प्लान्ट्स बलौदाबाजार में स्थापित हंै। इसके अलावा कई खदानें क्रेसर प्लांट भी मौजूद हैं। खदानों से पत्थर, चूना पत्थर और अन्य रॉ मटेरियल भारी मात्रा में निकाला जाता हैं और कई फीट गहरा खोदते हैं। काम पूरा होने पर खदानों को छोड़ दिया जाता है, ऐसे में एक बंद पड़े खदान का उपयोग कर केज कल्चर तकनीक के जरिए देवरीकला की महिला समूह की महिलाओं ने मछली पालन करके आमदनी का रास्ता खोल दिया है।

यह देवरीकला की महिलाओं की अनोखी पहल है। केज कल्चर को नेट पेन कल्चर (मछली पालन) के नाम से भी जाना जाता है, इसके लिए बंद पड़ी खदान का चयन करके पानी पर तैरता हुआ 36 यूनिट का केज लगाया गया है, जहां केज कल्चर तकनीक से मछली पालन किया जा रहा है।

केज कल्चर (या नेट पेन कल्चर) एक अत्याधुनिक मछली पालन तकनीक है, जिसमें जलाशयों के भीतर फ्लोटिंग केज बनाए जाते हैं. हर केज यूनिट लगभग 6&4&4 मीटर का होता है और मजबूत प्लास्टिक व स्टील जाल से सुरक्षित रहता है ताकि मछलियों को कोई नुकसान न हो. पानी में तैरते इन केज में मछलियों का पालन किया जाता है।

जिले के ग्राम पंचायत देवरीकला खदान 50 से 60 फीट नीचे गहरा हैं, जिसका कोई उपयोग नहीं था।

 इस खदान से पत्थर निकाले जाते थे. लेकिन साल 2014 में खदान बंद हो गई, जिसके बाद अब इसका उपयोग केज कल्चर के माध्यम से मछली पालन के लिए किया जा रहा है।

पानी के ऊपर बनाए गए केज तक पहुंचने के लिए लोगों को नाव का सहारा लेना पड़ता है। नाव भी लोगों ने मिलकर जुगाड़ से बनाया है. नाव ड्रम, और लकडिय़ों से तैयार किया गया है और इससे रस्सी खींचकर आगे ले जाया जाता है।

 

मछली पालन के लिए मिला अनुदान

खदान में जमे पानी में केज कल्चर के आइडिया के बारे में समिति अध्यक्ष रामाधार कैवरत से सवाल किया तो उन्होंने बताया कि एक दूसरे से उन्हें जानकारी मिली कि केज कल्चर से भी मछली पालन किया जा सकता है. उसके बाद अधिकारियों से बात करने के बाद इसका काम शुरू किया गया।

समिति अध्यक्ष रामाधार कैवर्त का कहना है कि हम लोगों को समिति के 2 महिलाओं के नाम से 18-18 केज करके कुल 36 केज मिला हुआ है. शासन से हमें 1 करोड़ 8 लाख रुपए का अनुदान भी मिला है. जिसमें 60 फीसदी केंद्रीय सरकार और 40 फीसदी राज्य सरकार के तरफ से मिला।

केज समिति के सचिव शिव शर्मा ने बताया कि प्रथम कार्यकाल में 15,35,950 रुपए की बिक्री, खर्चा 12,98,753 हुआ. जिसमें टीम को 2,37,195 रुपए फायदा हुआ, जो हमारे समिति के लिए बहुत अच्छा था।

 उन्होंने बताया कि शुरुआत में थोड़ी दिक्कत हुई लेकिन बाद में ज्यादा से ज्यादा मछली उत्पादन कर समिति को लगातार फायदा हुआ. नुकसान के बारे में पूछने पर समिति सचिव ने बताया कि पानी की कमी अगर होती है तो थोड़ा दिक्कत होती है. ऑक्सीजन की कमी होने पर नर्सरी में मछली के बच्चे मर जाते है. इसके लिए पंप के माध्यम से हमारी समिति ऑक्सीजन भी प्रोवाइड करती हैं जिससे नुकसान की संभावना बहुत कम होती है।

शिव शर्मा,समिति सचिव का कहना है कि जनवरी 2022 में केज कल्चर का निर्माण किया गया. 2022 में पहली बार मछली डाला गया. पहला साल था इसलिए हम लोग को कम लाभ मिला।

महिला समिति सदस्य हरिमति केंवट का कहना है कि सब लोग मिलकर काम करते हैं. टीम में कुल 11 लोग हैं और सारे लोग मिलकर मछलियों का रखरखाव और देखरेख करते हैं. छोटी मछलियों को बड़ा कर उन्हें बेचा जाता है।

समिति सचिव शिव शर्मा ने बताया कि मछली आस पास के जिलों के साथ ही कोलकाता से भी मंगाते हैं। मछली चारा राजनांदगांव से मंगाते हैं. इसके अलावा इस बार आंध्रप्रदेश से मछली चारा मंगाया गया है. वर्तमान में 14 केज की मछलियां बेची जा चुकी है.13 केज की मछलियां बची है. मछली बड़ी होने में कम से कम 8 महीने लगते हैं।

सविता बाई, महिला समिति सदस्य का कहना है कि मछली 1 किलो से ज्यादा वजन का हो गया है, व्यापारी गाड़ी से आते हैं और मछलियां लेकर जाते हैं। हमें मछलियां लेकर बाजार नहीं जाना पड़ता।

महिला आत्मनिर्भरता की मिसाल

बंद पड़े खदान को इस तरीके से उपयोग कर एक नया इतिहास महिलाएं ने रचा है, जो सहारनीय और प्रेरणा दायक हैं. इसके साथ-साथ महिलाओं ने यह भी संदेश दिया कि अगर महिला ठान ले तो कुछ भी कर सकती हैं. देवरीकला की महिलाएं अब न सिर्फ मछली पालन में दक्ष हो चुकी हैं, बल्कि पूरे बलौदाबाजार जिले के लिए प्रेरणा भी बन गई हैं. यह कहानी बताती है कि अगर नीति, नीयत और तकनीक मिल जाए तो बंद खदानें भी सपनों की खान बन सकती है।


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