बलौदा बाजार

हार मानने की बजाय मां का हाथ थामा
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बलौदाबाजार, 23 मई। सुबह के 4 बजे जब शहर गहरी नींद में होता है, तब रायपुर के बस स्टैंड के पास एक चूल्हा जलता हैं। यह कोई आम किचन नहीं है, बल्कि पांच लोगों के सपनों और संघर्षों का केंद्र हैं।
चार महीने पहले 43 वर्षीय सधाराम साहू की अचानक हृदयाघात से मृत्यु हो गई। पीछे रह गई पत्नी जयंती साहू चार बेटियां खुशबू, गंगा, संजना, सरस्वती और 9 वर्षीय बेटा ईश्वर। पति की मौत के बाद घर की आर्थिक जिम्मेदारी जयंती पर आ गई, लेकिन उनकी बेटियों ने हार मानने की बजाय मां का हाथ थाम लिया। खुशबू ने स्टॉल की कमान संभाली, गंगा और संजना ग्राहक सेवा में जुड़ गई, सरस्वती पढ़ाई के साथ स्टॉल का काम भी करती हैं। मां जयंती रसोई में इडली सांभर और बड़े तैयार करती है, जबकि नन्हा ईश्वर छोटे छोटे कामों में मदद करता हैं। रोज सुबह 4 बजे से इनका दिन शुरू होता हैं। मेहनत और स्वाद का नतीजा यह है कि बस स्टैंड के पास उनके स्टाल पर सुबह 10 बजे से पहले ही इडली खत्म हो जाती हैं। ग्राहक न सिर्फ स्वाद की तारीफ करते हैं बल्कि उनके संघर्ष को भी सलाम करते हैं। खुशबू कहती हंै कि पापा चले गए, लेकिन उनके सपनों को हम जिंदा रखेंगे। मां अब हमारी जिम्मेदारी हैं। यह इटली स्टॉल अब सिर्फ एक व्यापार नहीं बल्कि आत्मनिर्भरता और हौसले का प्रतीक बन चुका हैं।
यह परिवार साबित करता है कि बेटियां भी अपने माता-पिता की सपनों की विरासत को सहेज सकती हैं। कठिनाई चाहे जैसी भी हो जब परिवार एकजुट हो तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती। यह कहानी आज के समाज में बेटियों की भूमिका को फिर से परिभाषित करती है वे सिर्फ घर नहीं संभालती बल्कि पूरे परिवार को खड़ा कर सकती हैं।