मनोरंजन
बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख ख़ान के बेटे पर ड्रग्स मामले में कोई भी आरोप सिद्ध नहीं हुआ है. ये आरोप ड्रग रोधी जांच एजेंसी नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने लगाए थे.
24 साल के आर्यन ख़ान को पिछले साल अक्टूबर में एक पार्टी में कथित तौर पर ड्रग्स लेने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ने आर्यन ख़ान पर अवैध पदार्थ मिलने, उसका इस्तेमाल करने और उसकी बिक्री से संबंधित क़ानूनों के तहत केस दर्ज किया था.
शुक्रवार को एनसीबी ने उन्हें यह कहते हुए मामले से बरी कर दिया कि "आर्यन ख़ान के पास से किसी तरह की ड्रग्स बरामद नहीं हुए हैं."
जब आर्यन ख़ान को गिरफ्तार किया गया था तब इस मामले ने मीडिया में खूब सुर्खियां बटोरी थी. कई दिनों तक न्यूज चैनलों ने आर्यन ख़ान पर कार्यक्रम किए थे क्योंकि एनसीबी ने दावा किया था कि आर्यन ख़ान आदतन ड्रग्स लेते हैं और नशीले पदार्थों की सप्लाई भी करते हैं.
लेकिन अब उन पर लगाए आरोप साबित नहीं हो सके हैं और इसे लेकर सोशल मीडिया पर कहा जा रहा है कि बिना किसी जुर्म के आर्यन ख़ान को 26 दिन जेल में रहना पड़ा.
सोशल मीडिया पर लोग इसे लेकर ये सवाल भी कर रहे हैं कि एनसीबी ने आर्यन ख़ान पर झूठा केस क्यों बनाया, आर्यन ख़ान को मीडिया ट्रायल का सामना क्यों करना पड़ा? सोशल मीडिया पर लोग मांग कर रहे हैं कि इसके लिए जो लोग ज़िम्मेदार हैं उन्हें माफी मांगनी चाहिए और उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जानी चाहिए.
आर्यन खान को गिरफ़्तार करने वाले एनसीबी अधिकारी समीर वानखेड़े कौन हैं?
एनडीटीवी से जुड़ी पत्रकार निधि राजदान ने ट्वीट कर लिखा, "रिया चक्रवर्ती की तरह कई टीवी चैनलों ने आर्यन ख़ान मामले की सनसनीखेज कवरेज से खुद को बदनाम किया है. जो लोग सोचते हैं कि ये एंकर माफी मांगेंगे वे मज़ाक कर रहे हैं. ये नया मीडिया है. निर्लज्ज और बेशर्म."
पत्रकार निखिल वागले ने इस मामले में एनसीबी के अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की है.
ट्वीट करते हुए उन्होंने लिखा, "क्लीन चिट काफी नहीं है. एनसीबी को आर्यन ख़ान से माफी मांगनी चाहिए और संबंधित अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करनी चाहिए."
इस मामले में लेखिका तवलीन सिंह ने लिखा, "आर्यन ख़ान का मीडिया ट्रायल नारकोटिक्स ब्यूरो के झूठे मामले की तरह की शर्मनाक और पक्षपातपूर्ण था. जिन पत्रकारों ने इसमें हिस्सा लिया उन्हें जवाब देना चाहिए."
आर्यन ख़ान को लेकर एनसीपी के नेता नवाब मलिक के ऑफिस ने भी ट्वीट किया है. उन्होंने लिखा, अब जबकि आर्यन ख़ान और पांच अन्य लोगों को क्लीन चिट मिल गई है तो क्या एनसीबी समीर वानखेड़े की टीम और उनकी निजी सेना के ख़िलाफ़ कार्रवाई करेगी? या फिर अपराधियों को बचाने का काम होगा."
मीडिया से बात करते हुए आर्यन ख़ान के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि शाहरुख़ ख़ान को राहत मिली है कि उनके बेटे का इससे कुछ लेना-देना नहीं है.
एनडीटीवी से बात करते हुए उन्होंने कहा, "आख़िरकार, सच्चाई की जीत हुई है."
2 अक्टूबर को आर्यन ख़ान मुंबई के बांद्रा में एक पार्टी में शामिल होने के लिए कॉर्डेलिया क्रूज़ेज़ एंप्रेस जहाज़ पर पहुंचे थे.
एनसीबी की मुंबई यूनिट को यहां नशीले पदार्थ होने का टिप मिला (जानकारी मिली) और यूनिट की एक टीम भी यात्रियों के भेष में इस जहाज़ पर चढ़ गई. अधिकारियों ने जाँच शुरू की और रिपोर्टों के मुताबिक़ उन्होंने कोकेन, चरस, एमडीएमए जैसे अवैध पदार्थों को जहाज़ से ज़ब्त किया.
मीडिया में ख़बर आई कि छापे में एक बॉलीवुड स्टार के एक बेटे सहित कुछ लोगों को हिरासत में लिया. फिर पता चला कि हिरासत में लिए जाने वाले व्यक्ति आर्यन ख़ान हैं.
तीन अक्तूबर को आर्यन को गिरफ़्तार कर लिया गया.
एनसीबी ने आर्यन पर अवैध पदार्थों के कथित तौर पर सेवन, ख़रीद-फरोख़्त का आरोप लगाया और उन पर नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंसेज़ एक्ट या एनडीपीएस क़ानून के तहत धाराएँ लगाईं.
एनसीबी ने दावा किया कि उसके छापे में 13 ग्राम कोकेन, पाँच ग्राम एमडीएमए, 21 ग्राम चरस और 22 एमडीएमए की गोलियों के अलावा 1.33 लाख रुपए नकद मिले.
इस केस में कई ट्विस्ट एंड टर्न्स देखने को मिले. एक प्रमुख गवाह ने आरोप लगाया कि मामले के सिलसिले में एनसीबी के कार्यालय में उन्हें "खाली कागजों" पर हस्ताक्षर करने के लिए "मजबूर" किया गया.
मामले का राजनीतिकरण भी हुआ. नवाब मलिक इस मामले को महाराष्ट्र सरकार और बॉलीवुड को बदनाम करने की कोशिश बताते रहे. कुछ समय बाद जांच के प्रभारी अधिकारी समीर वानखेड़े को ब्लैकमेल करने के आरोप सामने आने के बाद मामले से हटा दिया गया था.
शुक्रवार को दायर आरोपपत्र में एनसीबी ने 14 आरोपियों को नामजद किया लेकिन आर्यन खान समेत छह अन्य लोगों को सबूत की कमी के कारण छोड़ दिया गया है. (bbc.com)
फ़िल्म निर्माता करण जौहर की फ़िल्म 'जुग जुग जियो' विवादों में घिर गई है. रविवार को इसका ट्रेलर जारी हुआ था. विवाद का कनेक्शन पाकिस्तान से है और इसके केंद्र में है 'नच पंजाबन' गाना.
पाकिस्तान के सिंगर अबरार उल हक़ का आरोप है कि उन्होंने किसी भी भारतीय फ़िल्म को 'नच पंजाबन' गाने के इस्तेमाल की अनुमति नहीं दी है. उनका कहना है कि करण जौहर जैसे प्रोड्यूसर को किसी और के गाने कॉपी नहीं करने चाहिए. हालांकि, इस फ़िल्म के म्यूज़िक राइट्स रखने वाली कंपनी टी-सीरीज़ का कहना है कि उन्होंने कुछ भी ग़लत नहीं किया है.
ताजा विवाद पर अब तक करण जौहर की प्रतिक्रिया नहीं आई है. अबरार गायक होने के साथ ही राजनीति में भी हैं और पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के समर्थक हैं.
क्या है पूरा विवाद?
भारत और पाकिस्तान के बीच पिछले कुछ वर्षों से संबंध तनावपूर्ण चल रहे हैं और इसका असर बॉलीवुड पर भी दिखता है. दोनों ही देशों के कलाकार लगभग न के बराबर साथ काम कर रहे हैं.
एक दौर वह भी था जब बॉलीवुड में राहत फ़तेह अली ख़ान और आतिफ़ असलम की आवाज़ का जादू चलता था. वहीं फ़वाद ख़ान और अली जफ़र यहां लोकप्रिय थे. लेकिन हाल ही में पाकिस्तान की एक गायिका ने भारत की एक गायिका पर गाने की कॉपी करने का आरोप लगाया था. इसके बाद अब यह नया मामला आ गया.
रविवार को 'जुगजुग जियो' का ट्रेलर लॉन्च हुआ. इस फ़िल्म में वरुण धवन, कियारा आडवाणी, नीतू कपूर, अनिल कपूर समेत अन्य कलाकार हैं. इसके निर्देशक हैं राज मेहता और प्रोड्यूसर में करण जौहर हैं. यह फ़िल्म 24 जून को रिलीज होनी है.
फ़िल्म के ट्रेलर को इसके कलाकार शेयर ही कर रहे थे कि इस पर गाने की कॉपी करने के आरोप लग गए. करीब तीन मिनट के ट्रेलर में एक धुन बजती है, जिसके बारे में दावा किया जा रहा है कि यह पाकिस्तान के गायक अबरार उल हक़ के बेहद हिट गाने में से एक है. यह दावा खु़द अबरार ने ही किया है.
अबरार ने एक ट्वीट में कहा, "मैंने अपना गाना 'नच पंजाबन' किसी भी भारतीय फ़िल्म को नहीं बेचा और डैमेज क्लेम के लिए मेरे पास कोर्ट जाने के अधिकार है. करण जौहर जैसे प्रोड्यूसर को गाने को कॉपी करके फ़िल्म में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. यह मेरा छठा गाना है, जिसे कॉपी किया गया है और इसकी किसी भी तरह से अनुमति नहीं दी जाएगी."
इसके बाद उन्होने एक और ट्वीट किया और लिखा, "नच पंजाबन गाने का लाइसेंस किसी को नहीं दिया गया. अब कोई यह दावा कर रहा है तो तथ्य पेश करें. मैं इसे लेकर क़ानूनी कार्रवाई करूंगा."
वहीं, टी-सीरीज़ ने एक ट्वीट में गाने की चोरी के आरोपों से इनकार करते हुए कहा, "हमने क़ानूनी तौर पर 'नच पंजाबन' गाने का इस्तेमाल करने के राइट्स (अधिकार) ख़रीदे हैं, जो कि आई ट्यून पर एक जनवरी, 2002 को रिलीज हुई थी, और यह मूवी बॉक्स के मालिकाना हक वाले लॉलीवुड क्लासिक्स यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध है."
इस ट्वीट में टी-सीरीज़ ने मूवी बॉक्स को भी टैग किया है. मूवी बॉक्स ने एक ट्वीट में कहा है, "नच पंजाबन का लाइसेंस 'जुगजुग जियो' में शामिल करने के लिए लिया गया है. टी-सीरीज़, करण जौहर और धर्मा मूवीज़ के पास अपनी फ़िल्म में इस गाने का इस्तेमाल करने के क़ानूनी अधिकार हैं. ऐसे में अबरार उल हक का मानहानि वाला ट्वीट पूरी तरह से अस्वीकार्य है."
सोशल मीडिया पर यूजर्स की प्रतिक्रिया
एक यूज़र वकास पी के ने लिखा, "बॉलीवुड पिछले 40 साल से पाकिस्तान के गायकों के गाने कॉपी कर रहा है. भारतीय मनोरंजन उद्योग में मौलिकता की कमी है और बॉलीवुड के तेजी से पीछे होने की कई वजहों में से यह एक है."
वहीं, फिफी हारून ने लिखा है, "अबरार ने 'बिल्लो' के भी अधिकार बेचे थे और उसे कोक स्टूडियो पर गाया और इसी वजह से उनके यूट्यूब से यह गाना हटा लिया गया. गायक अगर कॉपी राइट बेच दें तो उनके पास उस गाने का हक़ नहीं रह जाता है."
वीणा बख्शी नाम के एक ट्विटर हैंडल से ट्वीट में कहा गया, "आप उन्हें क़ानूनी नोटिस क्यों नहीं भेज रहे?"
शोएब बशीर नाम ने लिखा, "कैसे यह 'आधिकारिक लाइसेंस' हो सकता है अगर गाना बनाने वाले को ही इसका पता न हो?"
हाल ही में पाकिस्तानी सिंगर हदिक़ा कियानी ने 'बूहे बारियां' गाने के लिए भारतीय सिंगर कनिका कपूर पर कॉपी करने का आरोप लगाया था.
हालांकि कनिका कपूर ने इन आरोपों को ख़ारिज कर कहा था, "इस गाने को सुनने वाला हर इंसान ये जान जाएगा कि ये ओरिजिनल गाना है. अंतरे से लेकर पूरे गाने तक. हमने बस हुक लाइन (बूहे बारिया) का इस्तेमाल किया है. हमने एक पुराने लोकगीत की हुक लाइन को उठाया. मेरे और कंपनी के मुताबिक़, ये एक लोकगीत है."
भारत बनाम पाकिस्तान: गानों की नकल का अतीत
भारत और पाकिस्तान के कलाकारों के बीच गाने की कॉपी को लेकर विवाद लंबा है. साथ ही एक मुल्क़ में गाए गाने का दूसरे मुल्क़ में दोबारा गाकर भी इस्तेमाल हुआ है. इसका सबसे ताज़ा उदाहरण मनोज मुंतशिर का लिखा हुआ हाल ही में रिलीज़ गाना 'दिल ग़लती कर बैठा है, ग़लती कर बैठा है दिल... बोल हमारा क्या होगा' है. इस गाने को गायक जुबिन नौटियाल ने गाया है.
पर असल में ये कव्वाली बरसों पहले नुसरत फतेह अली ख़ान समेत कई पाकिस्तानी सिंगर्स गा चुके हैं. इस कव्वाली के बोल थे, 'दिल ग़लती कर बैठा है, ग़लती कर बैठा है दिल... बोल कफारा क्या होगा?'
भारतीय फ़िल्मों के भी कुछ गाने कॉपी हुए
ऐसा नहीं है कि गाने चुराने या प्रेरित होने वालों की लिस्ट में केवल भारतीय ही शामिल हैं. भारतीय फ़िल्मों के भी कई गाने विदेशियों ने कॉपी किए हैं.
2012 में 'एक था टाइगर' फ़िल्म के गाने 'सैयारा' की धुन 2013 में माइल किटिक सिंगर ने रकीजा गाने में कॉपी की थी.
2011 में 'रा वन' फ़िल्म के गाने 'छमक्क छल्लो' की धुन 2013 में डारा बुबामारा में इस्तेमाल की गई थी. (bbc.com)
मुंबई, 23 मई। सिने अभिनेता कार्तिक आर्यन एवं अभिनेत्री कियारा आडवाणी अभिनीत हॉरर कमेडी ‘भूल भुलैया 2’ ने रिलीज के बाद, शुरुआती तीन दिन में 55.96 करोड़ रुपये की कमाई की है । फिल्म के निर्माताओं ने सोमवार को इसकी जानकारी दी ।
यह फिल्म शुक्रवार को सिनेमा घरों में प्रदर्शित की गयी थी । सिने अभिनेता अक्षय कुमार और अभिनेत्राी विद्या बालन की फिल्म ‘भूल भुलैया’ 2007 में प्रदर्शित हुयी थी जो हॉरर कॉमेडी थी। शुक्रवार को प्रदर्शित हुयी फिल्म उसी का सीक्वल है ।
निर्माताओं ने बताया कि ‘भूल भुलैया 2’ ने पहले दिन 14.11 करोड़ रुपये की कमाई की थी, इसके बाद शनिवार को फिल्म ने 18.34 करोड़ रुपये कमाये । रविवर को यह आय बढ़ कर 23.51 करोड़ रुपये हो गयी । इस तरह पहले तीन दिन में इस फिल्म ने 55.96 करोड़ रुपये की कमाई की है।
इस फिल्म का निर्माण भूषण कुमार और मुराद खेतानी ने किया और इसका निर्देशन अनीस बज्मी ने किया है। फिल्म में तब्बू भी हैं। (भाषा)
मुंबई, 22 मई । मशहूर अभिनेत्री नीतू कपूर ने रविवार को कहा कि उनकी आगामी फिल्म ‘जुग जुग जियो’ अभिनय से उनके नौ साल के विराम को तोड़ने के लिए बिल्कुल सही फिल्म है। अभिनेत्री ने कहा कि उनका मानना है कि इस फैसले से उनके दिवंगत पति और कई फिल्मों में साथ काम करने वाले ऋषि कपूर काफी खुश होते।
नीतू कपूर 1960 और 70 के दशक में कई हिट फिल्मों का हिस्सा रहीं। अंतिम बार वह 2013 में एक्शन कॉमेडी फिल्म ‘बेशर्म’ में नजर आई थीं। इस फिल्म में उनके बेटे रणबीर कपूर और पति ऋषि कपूर भी थे।
अभिनेत्री ने कहा कि राज मेहता के निर्देशन में बनी ‘जुग जुग जियो’ का उनके दिल में विशेष स्थान है क्योंकि इस फिल्म के जरिए उन्हें अपने पति के 2020 में निधन के बाद के हालात से उबरने में मदद मिली।
‘कभी कभी’, ‘अमर अकबर एंथोनी’, ‘काला पत्थर’ और ‘याराना’ जैसी चर्चित फिल्मों में भूमिका निभा चुकीं नीतू कपूर (63) ने कहा कि एक विराम के बाद काम पर लौटना उनका ‘सर्वश्रेष्ठ फैसला’ है।
‘जुग जुग जियो’ के ट्रेलर लांच पर अभिनेत्री ने कहा, ‘‘यह मेरे लिए सबसे अच्छा अनुभव रहा। मैं जिस भी परिस्थिति से गुजर रही थी, उससे मुझे मदद मिली। मेरा मार्गदर्शन करने के लिए मैं वास्तव में करण और राज को धन्यवाद देती हूं, सहयोग करने के लिए मैं कलाकारों का शुक्रिया कहती हूं। यह मेरे लिए एक नयी जगह थी। हर कोई अच्छा, खास था। मुझे फिल्म पर गर्व है।’’
नीतू कपूर ने फिर से अभिनय शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करने को लेकर करण जौहर को भी धन्यवाद दिया। अभिनेत्री ने कहा, ‘‘मैं करण से ज्यादा किसी का शुक्रगुजार नहीं हो सकती। उन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया, मुझसे कहा कि मुझे काम करना है। यह मेरे लिए सबसे अच्छा फैसला रहा। मुझे यकीन है कि वह (ऋषि) बेहद खुश होते। यह फिल्म हमेशा खास रहने वाली है क्योंकि मैं हिंदी फिल्मों में वापस आ रही हूं।’’
‘जुग जुग जियो’ में कियारा आडवाणी, वरुण धवन, अनिल कपूर भी दिखेंगे। अनिल कपूर फिल्म में नीतू कपूर के पति की भूमिका में होंगे।
धवन ने नीतू कपूर को बेहतरीन अदाकारा करार देते हुए कहा कि वह अपने काम से सबको ‘चौंकाएंगी।’ यह फिल्म 24 जून को प्रदर्शित होगी।(भाषा)
-प्रदीप सरदाना
फ़िल्मकार एन सी सिप्पी और हृषिकेश मुखर्जी की फ़िल्म 'आनंद' जब सन 1971 में प्रदर्शित हुई, तब ये संवाद फ़िल्म का महज़ एक संवाद था. लेकिन अब ये संवाद एक हक़ीक़त है, एक सच बन चुका है.
रिलीज़ होने के क़रीब पांच दशक बाद जब हाल ही में एन सी सिप्पी के पोते समीर राज सिप्पी ने 'आनंद' का रीमेक बनाने की घोषणा की तो सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं का सैलाब आ गया.
बहुत लोग सोचते थे कि नई पीढ़ी के लोगों को अब भला 'आनंद' कहाँ पता होगी. लेकिन इंटरनेट पर सर्वाधिक देखी जाने वाली कालजयी हिंदी फिल्मों में 'आनंद' शीर्ष की 15 ख़ूबसूरत फ़िल्मों में आकर आज भी करोड़ों दर्शक बटोर रही है. इससे यह साफ़ होता है कि जिन लोगों का 'आनंद' के प्रदर्शन के समय जन्म भी नहीं हुआ था, ऐसे युवा भी 'आनंद' को देख, उसे पसंद कर रहे हैं.
इसलिए बहुत से दर्शक यह मान रहे हैं कि 'आनंद' का रीमेक बनाना आसान नहीं है.'आनंद' जैसी उत्कृष्ट फिल्म आज फिर कोई नहीं बना सकता. ये तय है कि समीर सिप्पी के लिए 'आनंद' का रीमेक बनाना एक बहुत बड़ी चुनौती रहेगी.
आनंद के बनने की कहानी
असल में 'आनंद' हिंदी सिनेमा की एक ऐसी शानदार फ़िल्म है, जो बनती नहीं, बन जाती हैं. इस फिल्म की जितनी प्रशंसा की जाए कम है.
एक ऐसी फ़िल्म जिसका निर्माण,निर्देशन,कहानी,पटकथा संवाद और संपादन सभी कुछ श्रेष्ठ है. वहां फिल्म के कलाकारों का अभिनय तो ऐसा गज़ब है कि सभी पात्र जीवंत हो उठते हैं.
'आनंद' के साथ यूँ तो कितनी ही अविस्मरणीय बातें जुड़ी हैं. लेकिन एक बात जो सबसे पहले आती है, वह यह कि यह राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन की साथ में पहली फ़िल्म थी.
जब 1970 में 'आनंद' का निर्माण शुरू हुआ तब तक राजेश खन्ना देश के पहले सुपर स्टार बनकर लोकप्रियता की बुलंदियां छू रहे थे.
सन 1969 में फिल्म 'आराधना' की अपार सफलता ने राजेश खन्ना की ऐसी धूम मचाई कि बड़े-बड़े सूरमा अभिनेता भी दंग रह गए.
'आनंद' से पहले ही राजेश खन्ना 'दो रास्ते, 'इत्तेफ़ाक़', 'सच्चा झूठा, 'आन मिलो सजना, 'सफ़र, 'ख़ामोशी' और 'कटी पतंग' जैसी सुपर हिट फ़िल्में अपने नाम दर्ज कर बॉक्स ऑफिस पर कामयाब हो चुके थे.
जब 12 मार्च 1971 को 'आनंद' प्रदर्शित हुई तब तक अमिताभ बच्चन की पहली फिल्म 'सात हिन्दुस्तानी' (1969) ही प्रदर्शित हुई थी. इसलिए 'आनंद' के समय वह नए से ही थे.
अमिताभ बच्चन ने 'आनंद' की रिलीज के दिन का किस्सा साझा करते हुए कुछ समय पहले कहा था- उस दिन उन्होंने स्वामी विवेकानंद मार्ग, मुंबई के इरला पेट्रोल पंप से जब सुबह अपनी कार में पेट्रोल भरवाया, तब उन्हें वहां कोई नहीं पहचानता था.
लेकिन जब वह देर शाम को फिर से उसी पेट्रोल पम्प पर पेट्रोल लेने के लिए रुके तो लोग उन्हें पहचान कर -'बाबू मोशाय, बाबू मोशाय' कहने लगे.
एन सी सिप्पी और हृषिकेश मुखर्जी की जोड़ी का कमाल
निर्माता एन सी सिप्पी और निर्देशक हृषि दा की फ़िल्मी जोड़ी ऐसी थी, जिसने मिलकर कई ऐसी फ़िल्में बनायीं, जिन पर भारतीय सिनेमा सदा गर्व करेगा.
इस जोड़ी की पहली फिल्म यूँ तो 1968 में ही आ गयी गई-'आशीर्वाद'.यह फिल्म काफी पसंद की गई. यहाँ तक कि बाद में राजेश खन्ना ने
'आनंद', सिप्पी-मुखर्जी की जोड़ी की दूसरी फिल्म थी. इसके बाद तो इन दोनों का साथ इतना मधुर और मज़बूत हुआ कि दोनों ने मिलकर कई शानदार फ़िल्में बनाईं. जैसे 'बावर्चीट, 'चुपके चुपके' 'मिली', 'गोलमालट और 'ख़ूबसूरत'.
'आनंद' फ़िल्म की कहानी
'आनंद' फ़िल्म में पांच मुख्य पात्र हैं.आनंद सहगल, डॉ. भास्कर बनर्जी उर्फ़ बाबू मोशाय, डॉ. प्रकाश कुलकर्णी, सुमन कुलकर्णी और रेणु. इन भूमिकाओं को क्रमश: राजेश खन्ना,अमिताभ बच्चन,रमेश देव,सीमा देव और सुमिता सान्याल ने बखूबी निभाया है.
फिल्म की कहानी फ्लैश बैक में उस समारोह से शुरू होती है जहाँ कैंसर विशेषज्ञ डॉक्टर भास्कर को उनकी पुस्तक 'आनंद' के लिए सरस्वती पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है.
तब भास्कर, दिल्ली से मुंबई आये अपने एक कैंसर रोगी आनंद की कथा बताते हैं. जिसकी आंत में लिम्फ़ोसरकोमा यानी कैंसर है. वह भी अंतिम चरण में जहाँ वह अधिकतम 6 महीने जी सकता है. चिकित्सा विज्ञान में इस रोग का कोई उपचार नहीं है.
कहानी का सबसे बड़ा पहलू यह है कि अपने इस रोग के भयानक सच को जानने के बावजूद आनंद अपनी ज़िन्दगी, इस बेबाकी और मस्त अंदाज़ में जीता है कि सभी हैरान हो जाते हैं. सभी उससे प्यार कर बैठते हैं.
अपनी बातों-हंसी मज़ाक से सभी के दिलों में घर कर लेना वाला आनंद दुनिया को जीने का सलीक़ा सिखाकर, आख़िर एक दिन दुनिया को अलविदा कह देता है.
अभिनय और संवाद से 'आनंद' बनी महान
'आनंद' की कथा बिमल दत्त, हृषि दा, गुलज़ार,डी एन मुखर्जी और बीरेन त्रिपाठी ने मिलकर तैयार की थी. लेकिन यह फिल्म अपनी पटकथा के साथ अपने संवाद और राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन के लाजवाब अभिनय के कारण भी महान बनी.
यूं राजेश खन्ना इससे ठीक पहले 'सफ़र' फिल्म में भी कैंसर रोगी अविनाश की भूमिका कर चुके थे. लेकिन 'आनंद' में आनंद बनकर उन्होंने अपने इस चरित्र को ही नहीं फिल्म को भी शिखर पर पहुंचा दिया.
गुलज़ार ने फिल्म के संवाद तो इतने बेहतरीन लिखे कि आज भी उन संवादों का कोई मुकाबला नहीं है.
''ज़िन्दगी बड़ी होनी चाहिए, लम्बी नहीं''.
''तुझे क्या आशीर्वाद दूँ बहन. यह भी तो नहीं कह सकता कि मेरी उम्र तुझे लग जाए.''
''अपने बंबई शहर का जवाब नहीं. पंजाब,सिंध,गुजरात,मराठा.द्राविड़,उत्कल,बंगा सभी तो यहाँ हैं. अब तो जीना भी बंबई में, मरना भी बंबई में''
'ज़िन्दगी और मौत ऊपर वाले के हाथ में'
'आनंद' फिल्म के अंत के एक संवाद को, अपने अभिनय से राजेश खन्ना ने और भी तो इतना मार्मिक कर दिया था कि पत्थर दिल भी पिघलकर रोने लगते हैं.
''बाबू मोशाय ....ज़िन्दगी और मौत ऊपर वाले के हाथ में हैं जहाँपनाह. उसे ना तो आप बदल सकते हैं ना मैं. हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं,जिनकी डोर ऊपर वाले के उँगलियों में बंधी है. कब कौन कैसे उठेगा यह कोई नहीं बता सकता है. हा हा हा हा.''
ज़िन्दगी और मौत का फ़लसफा समझाने वाले, इस लम्बे संवाद की गूँज, लम्बे अरसे बाद आज भी क़ायम है.
इन संवादों के साथ अभिनेता जॉनी वाकर का एक संवाद जो फ़िल्म के नाम का अर्थ समझाता है, वह है-''वाह-वाह मरते-मरते चेला गुरु को जीना सीखा गया. दुःख अपने लिए रख,आनंद सबके लिए.''
पुरस्कारों की लग गयी गई झड़ी
'आनंद' एक ऐसी फिल्म है. जिसमें जहाँ हास्य के ढेरों दृश्य हैं तो ऐसे दृश्यों की भी कमी नहीं, जहाँ दर्शक रह-रह कर जमकर रोते हैं.
यह फिल्म कुछ अन्य फिल्मों से काफी अलग है. इस बात का अंदाज़ राजेश खन्ना सहित हृषि दा को पहले ही लग गया था. फिल्म चाहे मार्च 1971 में प्रदर्शित हुई. हृषि दा ने फिल्म को 1970 में ही पूरा करके 30 दिसंबर 1970 को भाग दौड़ करके इसका सेंसर प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिया था. जिससे फिल्म को उसी वर्ष के 'राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों' की प्रतियोगिता में भेजा सके.
हृषि दा की सोच सही साबित हुई.'आनंद' को 1971 में सर्वश्रेष्ठ हिंदी फ़ीचर फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त हुआ.
इतना ही नहीं,1972 के 19 वें फ़िल्मफेयर पुरस्कारों में 'आनंद' को 7 नामांकन में से 6 पुरस्कार मिले. सर्वश्रेष्ठ फिल्म,सर्वश्रेष्ठ अभिनेता राजेश खन्ना,सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता अमिताभ बच्चन,सर्वश्रेष्ठ संवाद गुलज़ार,सर्वश्रेष्ठ कहानी और सम्पादन हृषिकेश मुखर्जी.
राजेश खन्ना ने मुफ्त में किया काम
राजेश खन्ना के इस राज़ को आज गिने चुने लोग ही जानते हैं कि राजेश खन्ना इस फिल्म में काम करने के लिए मुफ्त में तैयार हो गए थे.
हालांकि राजेश खन्ना से पहले धर्मेन्द्र और किशोर कुमार को आनंद की भूमिका देने की चर्चा चली थी. लेकिन जो एक और सच सामने नहीं आया वह ये है कि सिप्पी-मुखर्जी आनंद के लिए शशि कपूर के नाम पर अपनी सहमति बना चुके थे.
उसी दौरान काका राजेश खन्ना को 'आनंद' को लेकर ख़बर मिली कि हृषि दा एक कमाल की पटकथा पर फ़िल्म बना रहे हैं. काका उस समय ऐसे सुपर स्टार थे कि उनकी लगातार 12 फ़िल्में सुपर हिट हो चुकी थीं.
हर कोई उन्हें मुंह-मांगे दाम पर अपनी फ़िल्म में लेना चाहता था. लेकिन तभी काका, हृषि दा और सिप्पी के पास जाकर बोले-''आप 'आनंद' बना रहे हैं और आपने मुझसे पूछा तक नहीं ?''
इस पर एनसी सिप्पी ने कहा- ''आपकी फीस इतनी ज़्यादा है कि मैं आपको अफोर्ड नहीं कर सकता''. इस पर काका ने कहा- ''आपसे पैसे मांग कौन रहा है. मैं इस फ़िल्म में मुफ्त में काम करने को तैयार हूँ.''
एनसी सिप्पी के बेटे और जाने माने फ़िल्मकार राज एन सिप्पी से मैंने इस सम्बन्ध में बात की तो वह बोले, "बिल्कुल काका ने 'आनंद' में मुफ्त काम करना स्वीकार किया था. लेकिन हमारे डैडी उसूलों वाले व्यक्ति थे. उन्होंने काका से कहा, आपने हमारा मान रखा है. लेकिन हम भी आपका मान रखेंगे. 'आनंद' के लिए आप कोई पैसा नहीं ले रहे तो हम इसके बदले आपको मुंबई टेरेटरी ( मुंबई क्षेत्र में प्रदर्शन के अधिकार) मुफ्त में देंगे.''
सिप्पी ने काका को 'आनंद' का मुंबई वितरण क्षेत्र मुफ्त में दिया. फ़िल्म सफल होने से काका को इससे अच्छी कमाई हुई.
सिर्फ दो फिल्मों में रहा काका-अमिताभ का साथ
काका के बारे में अमिताभ बच्चन के साथ मनमुटाव की कई कहानियाँ हैं. 'आनंद' के बाद ये दोनों सिर्फ एक और फिल्म 'नमक हराम' में ही साथ काम कर सके. यह फिल्म भी हृषि दा की थी.उसके बाद बाद ये दो दिग्गज सितारे फिर कभी साथ काम नहीं कर सके.
यूँ 'आनंद' की सफलता से अमिताभ को फ़िल्में तो कई मिल गयीं. लेकिन 'आनंद' के दो बरस बाद तक अमिताभ की 7 फ़िल्में फ्लॉप होती गयीं. लेकिन 'आनंद' और 'बॉम्बे टू गोवा' में उनका काम प्राण साहब ने देखा तो वह अमिताभ से अच्छे खासे प्रभावित हुए.
प्राण के कहने पर प्रकाश मेहरा ने ये दोनों फ़िल्में देखकर अमिताभ को 'जंजीर' का नायक बना दिया. बस उसके बाद जो इतिहास बना, उसे सभी जानते ही हैं.
राजेश खन्ना-अमिताभ को लेकर बातें चाहे कुछ भी हों. लेकिन दोनों अभिनेताओं ने हर सार्वजनिक मंच पर एक दूसरे का भरपूर सम्मान किया है. लेकिन राजेश खन्ना कितने पारखी थे कि नए-नवेले अमिताभ की प्रतिभा को काका ने शुरू में ही पहचान लिया था.
राज सिप्पी बताते हैं- 'आनंद' की शूटिंग के दौरान काका ने अमिताभ के साथ काम करने के 7 वें दिन कह दिया था-''इस लंबू से बचकर रहना पड़ेगा. बहुत काबिल है यह लड़का.''
काका का यह अंदाज़ा सच निकला. जब अमिताभ सफल हुए तो काका करियर ढलान पर जाने लगा.
हालांकि 'आनंद' में राजेश खन्ना ने जो रोल किया वह अनुपम है. अपने मासूम चेहरे और भोली मुस्कान के साथ किये अभिनय और अंदाज़ से, वह हर दृश्य में दर्शकों के दिलों में घर करते चले जाते हैं.
'आनंद' फिल्म में नायक आनंद की कोई नायिका नहीं थी. फिल्म का नायक अंत में मर भी जाता है. फिर भी हृषि दा ने इस फिल्म को जिस साहस और आत्मविश्वास से बनाया, वैसी मिसाल कम ही मिलती हैं.
'आनंद' की ख़ास बात यह भी थी कि फिल्म में छोटी-छोटी भूमिकाओं में भी ललिता पवार, दुर्गा खोटे, जॉनी वाकर, दारा सिंह,असित सेन जैसे दिग्गज सितारों ने कमाल का काम किया. रमेश देव और सीमा देव दंपत्ति की तो यह यादगार फ़िल्म थी.
फिल्म में अमिताभ बच्चन के अपोजिट अभिनेत्री सुमिता सान्याल थीं. सुमिता बांग्ला सिनेमा की तो चर्चित अभिनेत्री रही हैं. लेकिन हिंदी में उन्होंने आशीर्वाद, गुड्डी और मेरे अपने जैसी कुछेक हिंदी फ़िल्में ही और की हैं.
इधर जब 50 साल बाद भी 'आनंद' को शिद्दत से याद किया जा रहा है तो यह देख कर दुःख होता है कि इस फिल्म से जुड़े सभी लोगों में अब सिर्फ अमिताभ बच्चन, गुलज़ार, सीमा देव जैसे कुछेक व्यक्ति ही हमारे बीच हैं.
अमिताभ के घर में भी हुई शूटिंग
'आनंद' फिल्म की शूटिंग सिर्फ 28 दिन में पूरी हो गई थी. फिल्म की ज्यादातर शूटिंग मुंबई के मोहन स्टूडियो में हुई थी.
दिलचस्प बात यह है कि इस फिल्म की शूटिंग अमिताभ बच्चन के घर 'जलसा' में भी हुई थी. हालांकि तब वह जलसा नहीं, एनसी सिप्पी का बँगला 'बिंदिया' था. अमिताभ ने बहुत बाद में इस बंगले को ख़रीदा था.
'आनंद' अपने दिलकश, मर्मस्पर्शी गीत-संगीत के लिए भी अमर है. यूँ तो सलील चौधरी के संगीत में चार गीत हैं. जिनमें दो गुलज़ार के हैं-''मैंने तेरे लिए'' और 'ना जिया लागे ना''.
हालांकि 'आनंद' के जो दो गीत सर्वाधिक लोकप्रिय हुए वे योगेश के हैं. एक मन्ना डे का गाया -ज़िन्दगी कैसी है पहेली. दूसरा मुकेश का गाया -कहीं दूर जब दिन ढल जाए.
योगेश के इन दोनों गीतों को अधिक लोकप्रियता मिलने से गुलज़ार सरीखे गीतकार योगेश से उन्नीस रह गए थे.
योगेश को जब गीत के लिए मिले 2500 रुपये
दिलचस्प बात यह है कि हाल कुछ ऐसे बन गए थे कि योगेश के गीत इस फिल्म में होते ही नहीं. असल में जिस धुन पर 'ना जिया लागे ना' गीत है, उस धुन पर गीत लिखने का जिम्मा सलिल दा ने गुलज़ार और योगेश दोनों को दिया था.लेकिन सलिल चौधरी ने गुलज़ार के 'ना जिया लागे ना' को ज्यादा पसंद कर, उसे रख लिया.
लेकिन योगेश ने भी इस धुन पर कोई और गीत लिखा था.इसलिए सिप्पी ने योगेश को उसके पारिश्रामिक के रूप में 2500 रूपये का चेक थमा दिया.
इस पर योगेश ने कहा-''जब मेरा गीत आपने लिया ही नहीं तो मैं इसके पैसे नहीं लूँगा.''
यह देख सिप्पी को दुःख हुआ. उन्होंने सलिल दा को कहा,''योगेश एक ईमानदार और मेहनतकश लड़का है. उसे कोई और धुन दो, उसे भी एक गीत तो हमने देना ही है.''
इसके बाद एक और धुन पर योगेश ने 'ज़िन्दगी कैसी है पहेली' गीत लिखा तो वह सभी को बहुत पसंद आया. राजेश खन्ना ने कहा यह गीत तो मुझ पर ही फ़िल्माना चाहिए.
इस एक अच्छे गीत को देख सभी की सलाह पर, सलिल दा ने योगेश को एक और गीत लिखने के लिए, अपने एक बांग्ला गीत की धुन दी.
वह बांग्ला गीत था-''अमांए प्रश्नो करे नील ध्रुब तारा''. इस गीत की धुन पर योगेश ने 'कहीं दूर जब दिन ढल जाए' गीत लिखा तो उसे सुन सभी ने योगेश की प्रतिभा का लोहा मान लिया.
योगेश के साथ बरसों समर्पित रहे गायक सत्येंद्र त्रिपाठी, इस गीत को लेकर एक बेहद ख़ास बात बताते हैं-''इस गीत में 'कहीं तो ये दिल कभी मिल नहीं पाते,कहीं से निकल आये जन्मों के नाते', एक मर्मस्पर्शी अंतरा योगेश जी ने एक दिन तब और जोड़ दिया जब उनके परम मित्र सत्य प्रकाश तिवारी उनके सामने बैठे थे.
त्रिपाठी बताते हैं, ''योगेश जी अपने मित्र सत्य प्रकाश को सत्तू कहते थे. योगेश ने जब तक सत्तू के लिए ये पंक्तियां समर्पित कीं तो तब तक सत्तू घर की सीढ़ियां उतर काम के लिए निकल पड़े थे.''
योगेश जी ने तुरंत उनके पीछे पहुँच सीढ़ियों में ये पंक्तियाँ सुनायीं. तो सत्तू भावुक हो गए. वह योगेश जी को गले लगाकर बोले ,''लल्ला तेरा ये गीत कभी भुलाए नहीं भूलेगा.''
सिर्फ चार घंटे में हुआ पहेली गीत का फिल्मांकन
योगेश के ये दोनों गीत भारतीय फ़िल्म संगीत इतिहास में मील का पत्थर बन चुके हैं. 'ज़िन्दगी कैसी है पहेली' तो काका के व्यक्तिगत जीवन की व्यथा कथा भी दर्शाता है. इस फ़िल्म के क़रीब 40 साल बाद काका ने स्वयं कैंसर से दम तोडा.
उधर इस गीत के फिल्मांकन का भी दिलचस्प क़िस्सा है. 'ज़िन्दगी कैसी है पहेली' की शूटिंग के लिए काका जब सवेरे मुंबई के मड आइलैंड समुद्र किनारे पहुंचे तो उन्होंने हृषि दा से कहा,''दादा आज मुझे 4 घंटे बाद ही जाना पड़ेगा.''
हृषि दा काका की बात सुन चुप हो गए. काका तब हैरान रह गए जब हृषि दा ने काका के साथ इस गीत की शूटिंग सिर्फ 4 घंटे में पूरी कर दी. सिर्फ 4 घंटे में फिल्मांकित वह गीत 5 दशक बाद भी उतना ही लोकप्रिय है जितना पहले था.
चलते चलते 'आनंद' की एक ख़ास बात और. यह फिल्म राज कपूर और बॉम्बे शहर को समर्पित है. मुंबई शहर इसलिए कि यहाँ दूर-दूर से अंजान लोग आकर जन्मों के नातों में बंध जाते हैं.
राज कपूर को इसलिए क्योंकि ऋषिदा के साथ 'अनाड़ी' फिल्म करते हुए, राज कपूर ऋषिदा को 'बाबू मोशाय' कहकर बुलाने लगे थे. हृषि दा को राज कपूर का बाबू मोशाय कहना इतना पसंद आया कि जब वह 'आनंद' की कहानी लिखने बैठे तो उन्होंने अमिताभ बच्चन को बाबू मोशाय बना दिया.
यह संयोग है कि 'आनंद' के दो बरस बाद अमिताभ बच्चन जया भादुड़ी से शादी करके स्वयं बंगाली परिवार से जुड़ 'बाबू मोशाय' ही बन गए.
अमिताभ चाहे फिल्मों में जय और विजय जैसे अपने चरित्रों से भी जाने जाते हैं. लेकिन वह आज भी सर्वाधिक लोकप्रिय 'बाबू मोशाय' के रूप में ही हैं. बाबू मोशाय भी मरा नहीं, बाबू मोशाय मरते नहीं. (bbc.com)
मुंबई, 19 मई। विख्यात निर्देशक हृषिकेश मुखर्जी की फिल्म “आनंद” का रीमेक बनाया जाएगा। पचास साल से ज्यादा समय पहले रिलीज हुई इस फिल्म ने भारतीय जनमानस पर अमिट छाप छोड़ी है।
वर्ष 1971 में एन. सी. सिप्पी ने ‘‘आनंद’’ फिल्म का निर्माण किया था और अब उनके पोते समीर राज सिप्पी, निर्माता विक्रम खाखर के साथ मिलकर “आनंद” के नए संस्करण पर काम कर रहे हैं।
हिंदी सिनेमा की बेहतरीन फिल्मों में से एक मानी जाने वाली मुखर्जी की “आनंद” में दिवंगत अभिनेता राजेश खन्ना ने मुख्य भूमिका निभाई थी। खन्ना एक मरणासन्न कैंसर रोगी की भूमिका में थे और अमिताभ बच्चन ने डॉ भास्कर का रोल निभाया था। फिल्म में खन्ना का किरदार डॉ भास्कर को ‘बाबू मोशाय’ कहकर संबोधित करता है और यह जुमला आज भी लोकप्रिय है।
निर्माताओं के अनुसार, फिल्म के नए संस्करण की पटकथा लिखी जा रही है और निर्देशक का नाम तय होना बाकी है। समीर राज सिप्पी ने कहा कि “आनंद” की कहानी ऐसी है कि उसे आज की पीढ़ी को भी सुनाया जाना चाहिए।
निर्माता ने बृहस्पतिवार को जारी एक बयान में कहा, “मूल फिल्म की संवेदनशीलता और भावनाओं को ध्यान में रखते हुए, मुझे लगता है कि वर्तमान पीढ़ी को बहुत सी ऐसी कहानियां सुनाई जानी चाहिए जो आज भी प्रासंगिक हैं, वह भी तब, जबकि लोग अच्छी सामग्री पसंद करते हैं।”
खाखर “मैं और चार्ल्स” जैसी फिल्मों का निर्माण कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी ने लोगों का, जीवन की क्षणभंगुरता से परिचय कराया है और “आनंद” की कहानी से वे जुड़ाव महसूस करेंगे। (भाषा)
-इमरान क़ुरैशी
कन्नड़ टेलीविज़न अभिनेत्री चेतना राज की बेंगलुरु के एक प्राइवेट अस्पताल में मृत्यु हो गई. उन्होंने वज़न कम करने के लिए एक सर्जरी करवाई थी जिसके बाद से ही उनकी स्थिति बिगड़ गई थी.
सोमवार को उनका ऑपरेशन हुआ था जिसके बाद से उनके फेफड़े में पानी भर गया था और उनकी तकलीफ़ बढ़ गई थी.
बेंगलुरु पुलिस (नॉर्थ) के उपायुक्त अविनाश पाटिल ने बीबीसी हिंदी को बताया, "तकलीफ़ बढ़ने के बाद उन्हें एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल ले जाया गया. उनके परिवार ने शिकायत दर्ज कराई और हम इसकी जांच कर रहे हैं."
"शिकायत के अनुसार, ये मेडिकल लापरवाही का मामला है. इसलिए हम दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 174 के तहत इस मामले पर कार्रवाई कर रहे है."
वीडियो कैप्शन,
ये पांच वजहें हैं जिनसे बढ़ता है मोटापा
पुलिस को शिकायत
चेतना राज कन्नड़ टेलीविज़न के 'गीता' और 'दोरस्वामी' जैसे लोकप्रिय धारावाहिकों में काम कर चुकी थीं.
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पुलिस को चेतना राज की स्थिति के बारे में एक डॉक्टर ने पहली बार जानकारी दी.
इन डॉक्टर ने अपनी शिकायत में पुलिस को बताया कि उनके अस्पताल में किसी अन्य हॉस्पिटल के एक अनीस्थीसिया स्पेशलिस्ट चेतना राज को 'अचेत हालत में' लेकर आए थे.
इस शिकायत के मुताबिक़, ऐनीस्थीसिया स्पेशलिस्ट ने हॉस्पिटल में पहुंचने के बाद केवल इतना ही बताया था कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा है.
"हमने निर्धारित प्रक्रिया के तहत कार्रवाई की क्योंकि उनकी हालत में कोई सुधार नहीं दिख रहा था. ऐसा लग रहा था कि जब उन्हें लाया गया था, तब वे मर चुकी थीं."
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, चेतना ने सोमवार को लिपोसक्शन का ऑपरेशन एक कॉस्मेटिक सर्जरी हॉस्पिटल में कराया था.
मोटापा कम करने या दूसरे शब्दों में कहें तो शरीर से चर्बी घटाने के लिए की जाने वाली सर्जरी को लिपोसक्शन कहा जाता है.
डॉक्टरों ने लिपोसक्शन को लेकर कुछ गंभीर चिंताएं ज़ाहिर की हैं.
डॉक्टरों का कहना है कि लिपोसक्शन की वजह से मोटापे वाले ग्लोब्यूल्स फेफड़ों में दाखिल हो सकते हैं.
दरअसल लिपोसक्शन एक ऐसा मेडिकल तरीका है जिसके ज़रिए डॉक्टर शरीर के उन हिस्सों से मोटापा कम कर देते हैं, जहां इन्हें शिफ्ट नहीं किया जा सकता.
जैसे जांघ, नितंब और पेट. ये तरीका उन लोगों के लिए सबसे बेहतर है जिनकी त्वचा बहुत टाइट और वज़न सामान्य होता है.
इसके नतीजे काफ़ी वक्त तक रहते हैं. लेकिन अब इसके साइड इफ़ेक्ट्स को देखते हुए ये कहा जा रहा है कि लिपोसक्शन के कई बार ग़लत परिणाम भी होते हैं. (bbc.com)
पिछले कई सप्ताह से भारतीय सिनेमा जगत में हिंदी फ़िल्म बनाम साउथ फ़िल्म इंडस्ट्री, फिल्मों में हिंदी भाषा के इस्तेमाल, पैन इंडिया जैसी शब्दावली हावी है. इस मामले पर उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत के कलाकार उलझते आ रहे हैं.
अब इस मुद्दे पर अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने भी अपनी राय रखी है.
दीपिका ने फ्ऱांस में 'कान फ़िल्म महोत्सव' में शामिल होने से पहले 'द टाइम्स ऑफ इंडिया' से बातचीत में कहा कि भारतीय सिनेमा बड़े बदलाव से गुजर रहा है और अब इसमें 'क्रॉस कल्चर एक्सेप्टेंस' यानी विभिन्न संस्कृतियों की स्वीकार्यता बढ़ी है.
इस इंटरव्यू में दीपिका अलग-अलग भाषाओं की फ़िल्मों के बीच के फ़ासले के ख़त्म होने की बात कह रही हैं.
दीपिका कान महोत्सव में इस बार जूरी सदस्य के तौर पर भारत का प्रतिनिधित्व कर रही हैं. वह फ्रांस पहुंच चुकी हैं और जूरी डिनर में शामिल भी हुई हैं.
उन्होंने 'द टाइम्स ऑफ इंडिया' से बातचीत में कहा, ''मेरा मानना है कि पहले हम अलग-थलग काम करते थे और हिंदी फ़िल्म उद्योग, तेलुगू फ़िल्म उद्योग, तमिल फ़िल्म उद्योग और मलयालम फिल्म उद्योग थे...और अब ये रेलिंग टूट रही है.''
दीपिका का कहना है कि अब 'अलग-अलग संस्कृतियों की स्वीकार्यता' बढ़ी है.
इसी बीच, तमिल, तेलुगू समेत हिंदी फ़िल्मों में काम करनेवाले सिद्धार्थ ने भाषा को लेकर जारी विवाद में द इंडियन एक्सप्रेस को एक इंटरव्यू में कहा, ''अगर कोई पात्र गैर हिंदी बेल्ट से हो तो हमारी एक आदत है कि उसे हम हंसोड़ के रूप में पेश करेंगे.''
पिछले कुछ समय में दक्षिण भारत की फ़िल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छी कमाई की है. चाहे वह 'पुष्पा द राइज' हो, 'आरआरआर' हो या फिर 'केजीएफ चैप्टर 2' हो. निर्देशक राम गोपाल वर्मा ने 'सरकारु वारी पाटा' और 'जयेशभाई जोरदार' की कमाई की तुलना करते हुए ट्वीट किया.
'सरकारु वारी पाटा' में महेश बाबू मुख्य भूमिका में हैं, जो हाल ही में एक बयान से विवाद में आ गए थे.
महेश बाबू ने एक सवाल के जवाब में कहा था कि उन्हें लगता है कि बॉलीवुड उन्हें 'अफ़ोर्ड' नहीं कर सकता, इसलिये वो वहां जा कर अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहते. उन्हें पैन इंडिया स्टार नहीं बनना है. वो तेलुगू में ही खुश हैं.
हालांकि, बाद में उन्होंने इस पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा था कि उन्हें सिनेमा से प्यार है और वह सभी भाषाओं का सम्मान करते हैं.
क्या है पूरा विवाद?
महेश बाबू से पहले कन्नड़ स्टार किच्चा सुदीप किच्चा सुदीप और बॉलीवुड स्टार अजय देवगन के बीच हिंदी भाषा को ट्विटर पर काफी बहस हुई और इस मुद्दे पर नेताओं ने भी बयान दिए.
किच्चा सुदीप ने एक निजी चैनल 'कर्नाटक तक' को दिए इंटरव्यू में कहा था, ''हिंदी अब कोई राष्ट्र भाषा नहीं है तो अब राष्ट्र भाषा कौन सी है? पैन इंडिया क्या है. क्योंकि हम साउथ से आते हैं तो हमें पैन इंडिया कह दिया जाता है. हिंदी को पैन इंडिया क्यों नहीं कहा जाता है? ये हमारी तमिल, तेलुगू, मलयालम फ़िल्में डब करते हैं. दक्षिण भारत की फ़िल्में वहाँ अच्छा कर रही हैं.''
इस पर अजय देवगन ने ट्वीट में कहा था ''किच्चा सुदीप मेरे भाई, आपके अनुसार अगर हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा नहीं है तो आप अपनी मातृभाषा की फ़िल्मों को हिंदी में डब करके क्यों रिलीज़ करते हैं? हिंदी हमारी मातृभाषा और राष्ट्र भाषा थी, है और हमेशा रहेगी. जन गण मन.''
इसके बाद भी दोनों ही कलाकारों के बीच ट्विटर पर काफी बहस हुई.
उनसे पहले नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी ने एक इंटरव्यू में कहा था, ''अगर मैं तीन चीज़ें बदल सकता तो मैं सबसे पहले बॉलीवुड का नाम बदलकर हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री रखूंगा. दूसरा- हमारे पास जो स्क्रिप्ट आती है वो रोमन में आती है, उसको याद करना मुश्किल हो जाता है. मैं उसे देवनागरी में मांगता हूँ. तीसरा- आप हिंदी में फ़िल्म बना रहे हो लेकिन सब डायरेक्टर असिस्टेंट इंग्लिश में बात कर रहे हैं.''
अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने भले ही कल्चरल एक्सेप्टेंस की बात की हो लेकिन भाषा, कमाई और पैन इंडिया की बहस अब भी जारी है. (bbc.com)
-सौतिक विस्वास
आलम आरा के बारे में कहा जाता है कि उसमें 'लड़ने वाली रानियों, महल की साज़िशों, ईर्ष्या और रोमांस की शानदार कहानी' फ़िल्माई गई थी.
मई की शुरुआत में मुंबई में फ़िल्म संरक्षकों के एक समूह ने एक ऐसी खोज की, जिसे भारत की पहली बोलती (टॉकी) फ़िल्म से जुड़ी एकमात्र जीवित कड़ी माना जा रहा है.
शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर एक फ़िल्म निर्माता और संरक्षक हैं. उनकी टीम को एक ऐसी पुरानी मशीन का पता चला जिसका भारत की पहली टॉकी फ़िल्म 'आलम आरा' (1931) का प्रिंट बनाने में इस्तेमाल किया गया था.
शिकागो में बनी बेल एंड हॉवेल की फ़िल्म प्रिंटिंग मशीन, साड़ी बेचने वाली एक किराए की दुकान में पड़ी हुई थी. इस मशीन का मालिकाना फ़िल्म प्रोड्यूसर और डायरेक्टर आर्देशिर ईरानी के पास था, जिसे बाद में नलिन संपत नाम के शख़्स ने ख़रीद लिया था. मुंबई में नलिन संपत का एक फ़िल्म स्टूडियो और प्रोसेसिंग लेबोरेटरी भी हुआ करती थी.
डूंगरपुर कहते हैं, ''आलम आरा से जुड़ी ये अकेली ऐसी चीज़ है, जो वजूद में है. इसके अलावा फ़िल्म से जुड़ी और कोई भी चीज़ अस्तित्व में नहीं है.''
जब 50 साल पहले पहली बार पर्दे पर दिखे अमिताभ
संपत परिवार ने 1962 में यह मशीन ख़रीदने के लिए 2,500 रुपए दिए थे. उनके लैब में साल 2000 तक फ़िल्मों की प्रिंटिंग होती रही. इनमें मुख्य रूप से सरकार के स्वामित्व वाली फ़िल्म्स डिविज़न की फ़िल्में शामिल थीं.
संपत कहते हैं, ''ये एक प्रिंटिंग मशीन ही थी, लेकिन इसका काफ़ी भावनात्मक महत्व है. सिनेमा के डिजिटल होने के बाद हमने इस मशीन का इस्तेमाल बंद कर दिया.''
डूंगरपुर मुंबई में फ़िल्मों को आर्काइव करने का काम करने वाले ग़ैर लाभकारी 'फ़िल्म हेरिटेज फ़ाउंडेशन' चलाते हैं. वो बीते एक दशक से फ़िल्म आलम आरा की कॉपी ढ़ूंढ़ने की कोशिश कर रहे थे.
इसके लिए उन्होंने सोशल मीडिया का भी सहारा लिया. एक सूत्र मिलने पर वो अल्जीरिया के एक फ़िल्म आर्काइव तक भी पहुंचे. उस आर्काइव ने दावा किया था कि उसके पास कई पुरानी भारतीय फ़िल्में हैं. आर्काइव ने डूंगरपुर से ये भी कहा कि वो वहां आकर जांच कर लें. लेकिन डूंगरपुर अब तक वहां नहीं जा सके हैं.
एक और दिलचस्प सुराग ईरान के फ़िल्म आर्काइव से सामने आया. ईरानी जिस वक़्त मुंबई में आलम आरा की शूटिंग कर रहे थे, उनका स्टूडियो उसी दौरान फारसी भाषा की पहली टॉकी फ़िल्म 'लोर गर्ल' बना रहा था.
डूंगरपुर बताते हैं, ''ईरानी ने एक जैसे कॉस्ट्यूम में वही बैकग्राउंड ऐक्टर 'आलम आरा' और 'लोर गर्ल' में इस्तेमाल किए थे.'' आलम आरा तो कहीं गुम हो गई, लेकिन 'लोर गर्ल' ईरान के आर्काइव में उपलब्ध है.
भारत के सबसे मशहूर फ़िल्म विद्वान और संरक्षक पीके नायर ने एक बार कहा था कि वो नहीं मानते कि आलम आरा 'हमेशा के लिए खो' चुकी है. 2016 में मरने के पहले नायर ने भी इस फ़िल्म की तलाश की थी और इस सिलसिले में आर्देशिर ईरानी के परिवार के जीवित सदस्यों से मुलाक़ात की थी.
ईरानी के परिवार के एक सदस्य ने उन्हें बताया था कि 'उस फ़िल्म के दो रील्स कहीं न कहीं ज़रूरी पड़े होंगे.' वहीं दूसरे सदस्य ने उन्हें बताया था कि 'चांदी निकालने के बाद उन्होंने तीन रील्स को ख़त्म कर दिया था.'
आलम आरा को नाइट्रेट फ़िल्म पर फ़िल्माया गया था, जिसमें दूसरे रील्स की तुलना में बहुत चांदी पाई जाती है. डूंगरपुर कहते हैं, ये संभव है कि तंगहाली से परिवार के घिर जाने पर पैसों के लिए फ़िल्म में से चांदी निकालकर उसे नष्ट कर दिया गया हो. वो बताते हैं कि कई दूसरी फ़िल्मों के मामले में भी ऐसा हो चुका है.
फ़िल्मों संरक्षण के मामले में भारत का रिकॉर्ड काफ़ी ख़राब रहा है. 1912 से 1931 के बीच बनी 1,138 मूक फ़िल्मों में से ज़्यादातर का अब अस्तित्व नहीं हैं.
पुणे के सरकारी भारतीय फ़िल्म और टीवी संस्थान ने इनमें से 29 फिल्मों को संरक्षित करने में सफलता हासिल कर ली है. उन फ़िल्मों के प्रिंट और निगेटिव दुकानों, घरों, बेसमेंट, गोदामों और यहां तक कि थाईलैंड के एक सिनेमाघर में भी पाए गए.
फ़िल्म निर्माता मृणाल सेन 1980 में जब कहीं शूटिंग कर रहे थे, तब उन्हें एक पुराने घर में किसी पुरानी बंगाली टॉकी के प्रिंट मिले थे.
हालांकि आलम आरा अब खो चुकी फ़िल्मों में सबसे अहम फ़िल्म हो सकती है. यह फ़िल्म 1929 के हॉलीवुड रोमांटिक ड्रामा 'शो बोट' से प्रेरित थी. उस पर उस दौर की दूसरी फ़िल्मों की ही तरह थिएटर का गहरा असर था.
आलम आरा के बारे में कहा जाता है कि उसमें किसी काल्पनिक साम्राज्य की 'लड़ने वाली रानियों, महल की साज़िशों, ईर्ष्या और रोमांस की रोमांचक कहानी' को फ़िल्माया गया था. ब्रिटिश फ़िल्म इंस्टीट्यूट के अनुसार वह फ़िल्म 'एक राजकुमार और एक बंजारा लड़की के प्यार के इर्द-गिर्द बुनी एक रोमांटिक ड्रामा' थी.
124 मिनट लंबी इस फ़िल्म की इनडोर शूटिंग हुई थी, ताकि आवाज़ में शोर शामिल न हो. हालांकि मुंबई के जिस स्टूडियो में इसे फ़िल्माया गया, उसके पास से ही रेलवे ट्रैक था. ऐसे में इसकी शूटिंग रात में की गई, क्योंकि उस दौरान ट्रेन नहीं चलती थी.
साउंड रिकॉर्ड करने के लिए चूंकि कोई बूम माइक नहीं था, इसलिए माइक्रोफोन को कैमरे से बचाकर कलाकारों के क़रीब छिपाया गया था.
वहीं म्यूज़िक रिकॉर्ड करने के लिए फ़िल्म के संगीतकार पेड़ों पर चढ़कर या छिपकर अपने वाद्ययंत्र बजाए थे. सबसे अहम बात कि इस फ़िल्म में बूढ़े भिखारी का किरदार निभाने वाले वज़ीर मोहम्मद ख़ान ने भारतीय फ़िल्मों का पहला गीत गाया था.
इस फ़िल्म के प्रोड्यूसर और डायरेक्टर आर्देशिर ईरानी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि साउंड रिकॉर्डिंग की मुख्य बातें उन्होंने एक विदेशी एक्सपर्ट डेमिंग से सीखी थीं. डेमिंग तब इसी फ़िल्म के लिए मशीनों को एसेंबल करने के लिए बॉम्बे आए थे.
डेमिंग उन दिनों फ़िल्म रिकॉर्ड करने के लिए निर्माताओं से हर दिन 100 रुपए की फ़ीस लेते थे. ईरानी ने बताया था, "उन दिनों यह रकम बहुत बड़ी थी, जिसे वहन करना हमारे लिए संभव न था. इसलिए इसे रिकॉर्ड करने का ज़िम्मा ख़ुद उठा लिया."
यह फ़िल्म 14 मार्च, 1931 को रिलीज़ हुई और हफ़्तों तक चली. फ़िल्म देखने सिनेमाघर पहुंचने वाले दर्शकों को नियंत्रित करने के लिए पुलिस का सहारा लेना पड़ा था. उस फ़िल्म की नायिका ज़ुबैदा थीं, जिन्होंने 'कामुकता और मासूमियत' को मिला दिया, जो लोगों को बहुत पसंद आई थीं.
भारत की मशहूर नृत्यांगना सितारा देवी ने आलम आरा देखी थी. वे बताती हैं कि वो फ़िल्म 'बहुत बड़ी सनसनी' थी, क्योंकि लोग सब टाइटल पढ़ते हुए मूक फ़िल्में देखने के आदी थे. लेकिन अब किरदार बोल रहे थे. डूंगरपुर को सितारा देवी ने बताया कि लोग थिएटर में पूछ रहे थे कि आवाज़ कहां से आ रही है?
फ़िलहाल आलम आरा के अवशेष के रूप में बस कुछ तस्वीरें, उसके पोस्टर और एक बुकलेट बचे रह गए हैं. वह बुकलेट मुंबई में फ़िल्म के सामान बेचने वाले दुकानदार शाहिद हुसैन मंसूरी के पास मौजूद है.
वो कहते हैं, "पिछले क़रीब 60 सालों से वह बुकलेट उनके पास ही है. मैंने सुना है कि यह बची हुई अकेली बुकलेट है. वास्तव में आज कोई भी इन सामानों का दाम नहीं जानता."(bbc.com)
मुंबई, 12 मई (भाषा)। अभिनेता सुनील शेट्टी ने कहा है कि उनकी बेटी और अभिनेत्री अथिया और उनके क्रिकेटर बॉयफ्रेंड के. एल. राहुल को उनका “आशीर्वाद” प्राप्त है, लेकिन उन्हें ही यह तय करना होगा कि वे शादी कब करेंगे। अथिया और राहुल ने कभी आधिकारिक रूप से इसकी पुष्टि नहीं की कि वे डेटिंग कर रहे हैं, लेकिन ऐसी खबरें आई थीं कि दोनों इस साल शादी करने वाले हैं।
बुधवार शाम को एक कार्यक्रम के दौरान सुनील शेट्टी ने कहा कि वह राहुल को “पसंद” करते हैं, लेकिन उन्होंने शादी की अटकलों पर कुछ नहीं कहा।
शेट्टी ने संवाददाताओं से कहा, “वह एक बेटी है और कभी न कभी उसकी शादी होगी। मैं अपने बेटे की भी शादी करना चाहता हूं। जितनी जल्दी हो जाए उतना अच्छा। लेकिन यह उनकी इच्छा पर निर्भर करता है। जहां तक राहुल का सवाल है, मैं उसे पसंद करता हूं। वे क्या करना चाहते हैं यह इसका निर्णय उन्हें करना है क्योंकि समय बदल गया है। मैं चाहता हूं कि वे अपना फैसला खुद करें। मेरा आशीर्वाद हमेशा उनके साथ रहेगा।”
राहुल (30) और अथिया (29) सोशल मीडिया पर अपनी तस्वीरें साझा करते रहते हैं और अक्सर एक साथ दिखाई भी देते हैं।
-पराग छापेकर
मुंबई. साउथ की क़ॉफी के प्याले से एक बार फिर तूफान उठा है. वर्चस्व की लड़ाई अब गुरूर और गर्व तक पहुंच गई है.
ताज़ा वाक़या है महेश बाबू का बयान जो साफ संकेत देता है कि वो बॉलीवुड की 'महानता' को अपने आगे कुछ नहीं समझते.
दरअसल, विवाद तेलुगू सुपरस्टार महेश घट्टामनेनी यानी महेश बाबू के हालिया बयान को लेकर शुरू हो गया है जो उन्होंने अपनी आने वाली फ़िल्म 'मेज़र' के ट्रेलर लॉन्च के दौरान दिया है.
महेश बाबू ने एक सवाल के जवाब में कहा कि उन्हें लगता है कि बॉलीवुड उन्हें 'अफ़ोर्ड' नहीं कर सकता, इसलिये वो वहाँ जा कर अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहते.
महेश बाबू को पैन इंडिया स्टार नहीं बनना है. वो तेलुगू में ही खुश हैं. महेश बाबू ने ये भी बताया कि उन्हें कई बॉलीवुड फिल्मों के ऑफ़र मिले हैं लेकिन वो तेलुगू के लिए ही सिनेमा बनाएंगे क्योंकि वो इससे ज़्यादा खुश नहीं होना चाहते.
अब 'अफोर्ड' के आप कई सारे मतलब बता सकते हैं लेकिन इसका सीधा साधा अर्थ तो यही लगता है कि बॉलीवुड वालों के पास इतना पैसा नहीं है कि वो महेश बाबू को अपनी फिल्म में कास्ट कर सकें.
यानी बाबू महेश इतने महँगे हो गए हैं!
वैसे महेश बाबू हिंदी पट्टी के लोगों के लिये भी कोई नया नाम नहीं है. कोल्ड ड्रिंक और एक विवादित टोबैको प्रोडक्ट की ऐड के जरिए देश-दुनिया में फेमस होने से पहले भी नॉन-दक्षिण भारतीय दर्शक साउथ की हिंदी डब फिल्मों के ज़रिये इनके चार्मिंग लुक को बहुत पसंद करते रहे हैं.
'प्रिंस ऑफ टॉलीवुड' के नाम से फेमस महेश बाबू को गैर विवादित फैमिली मैन भी कहा जाता रहा है .
करीब 47 साल के महेश बाबू का एक्टिंग करियर बचपन में ही शुरू हो गया था. तेलुगू के जाने-माने अभिनेता कृष्णा के छोटे बेटे महेश ने फिल्म नीडा से शुरुआत कर बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट आठ फिल्में की और 'राजाकुमारुडू' के लिये उन्हें उनका पहला अवॉर्ड भी मिला.
महेश बाबू ने 2003 में आई सुपरहिट फिल्म 'ओक्काडू' में कबड्डी प्लेयर की भूमिका निभाई थी जिसे तेलुगू की सबसे हिट फिल्मों में गिना जाता है.
उसके दो साल बाद आई 'अथाडु' ने भी कमाई के सारे रिकॉर्ड तोड़े थे. 'मुरारी', 'पोकिरी', 'ननेक्कोडाइन', 'सरिमंथुडू', 'व्यापारी', 'सीथम्मा वकितलो सरिमल्ले चेट्टू' जैसी फिल्मों के बाद महेश बाबू न सिर्फ इंटरनेशनल फेम सुपरस्टार बन गए बल्कि उन्हें फिल्मफेयर का बेस्ट एक्टर सहित कई पुरस्कार भी मिले.
अक्सर सोशल मीडिया पर अपनी फैमिली फोटोज के साथ एक्टिव रहने वाले महेश बाबू की शानोशौकत किसी से छिपी नही है.
महेश बाबू का नेटवर्थ
साल 2012 में फोर्ब्स की सेलिब्रिटी 100 लिस्ट में शामिल महेश बाबू का हैदराबाद स्थित घर वहां के सबसे महंगे घरों में एक है, जहां जिम, स्विमिंग पूल, मिनी थिएटर सहित काफी कुछ है.
हैदराबाद की जुबिली हिल्स में 30 करोड़ रुपये की कीमत के दो बड़े बंगले हैं. बेंगलुरु में भी कई प्रॉपर्टीज हैं.
एक डॉटकॉम कंपनी की रिपोर्ट के मुताबिक महेश बाबू का नेटवर्थ करीब 135 करोड़ रुपये हैं और वो एक फिल्म के लिये 55 करोड़ रुपये चार्ज करते हैं और प्रॉफिट में कमीशन भी लेते हैं.
ब्रांड्स एंडोर्समेंट से कमाई 15 करोड़ रुपये से अधिक है. एक करोड़ रुपये से महंगी कई गाड़ियां हैं, 7 करोड़ की वैनिटी वैन है.
पिछले 20 साल में 40 से अधिक फिल्में करने वाले महेश बाबू का अपना एक प्रोडक्शन हाउस भी है.
नम्रता शिरोडकर से शादी
साल 2005 में महेश बाबू ने बॉलीवुड एक्ट्रेस और शिल्पा शिरोडकर की बहन नम्रता शिरोडकर से शादी कर ली. महेश बाबू के दो बच्चे गौतम और सितारा हैं.
सितारों के मोम के पुतले दुनिया भर में वैक्स म्यूज़ियम में रखे जाते हैं लेकिन महेश बाबू एकमात्र ऐसे भारतीय एक्टर हैं जिनके मोम के पुतले को एक दिन में हैदराबाद में ला कर उस पर से पर्दा उठाया गया था.
हाल के वर्षों में महेश बाबू की लोकप्रियता सचमुच लोगों के सिर चढ़ बोली है.
महेश बाबू ने 'सीरीमंथुडू', 'ब्रम्होत्सवम', 'स्पाइडर', 'भरत अने नेनु', 'महर्षि', 'सरिलेरू निकेवारू' और 'सरकारू वारी पाटा' जैसी सुपरहिट फिल्में दे कर निर्माताओं की झोली भर दी है.
फिल्म ट्रेड एक्सपर्ट अतुल मोहन कहते हैं, "आप आज 100-150 करोड़ रुपये मांग रहे होंगे. 10 साल पहले आपकी डिमांड क्या थी? सलमान खान जैसे सितारे ने तो 10 साल पहले ही 50 करोड़ प्रति फिल्म की डील की थी. अजय देवगन और सलमान जैसों को 10 फिल्मों की डील के लिए 400 करोड़ तक मिले हैं. अब आज की जेनरेशन को रजनीकांत के साथ कम्पेयर नहीं कर सकते जिनका पूरी दुनिया में फैन बेस ही अलग है और कमाई भी."
"अब आज की जेनरेशन में हमारे यहां ऑफ द रिकॉर्ड अक्षय और ऋतिक 120 करोड़ तक ले रहे हैं. साउथ वालों को इतना कौन देगा? असल में ये स्टेटमेंट वायरल करवाने के लिये दिया गया बयान लगता है. अभी सुदीप को इतनी चर्चा मिली तो चलो हमारी भी हो जाए. ये बचकाना बयान है और इसके पीछे ये लगता है कि आपको बॉलीवुड में काम करना है."
साउथ की फिल्मों और वहां के सितारों के स्टारडम को करीब से जानने वाले फिल्म पत्रकार ज्योति वेंकटेश भी इस बयान को बचकाना मानते हैं. वो कहते हैं, "मुझे तो लगता है कि उन्हें बॉलीवुड से किसी ने अप्रोच ही नहीं किया. वो तो सिर्फ तेलुगू में चलता है, तमिल में भी नहीं. और उनका स्टारडम भी अब कम होते जा रहा है."
इस बीच बॉलीवुड को लेकर साउथ के सितारों की अचानक बयानबाज़ी के बीच ऐसी भी अटकलें हैं कि कहीं ये पब्लिसिटी के बहाने पैन-इंडिया मार्केट पर कब्ज़ा करने के मक़सद से वायरल बयानों की सोची समझी मार्केटिंग स्ट्रैटेजी तो नहीं? (bbc.com)
मशहूर संगीतकार शिव कुमार शर्मा का निधन हो गया है. वे चर्चित संतूर वादक थे. हरि प्रसाद चौरसिया के साथ उनकी जोड़ी थी और शिव-हरि की जोड़ी ने कई फ़िल्मों में संगीत दिया था. शिव कुमार शर्मा 84 वर्ष के थे और कई बीमारियों से पीड़ित थे.
पिछले कुछ महीनों से वे डायलिसिस पर थे. रिपोर्ट्स के मुताबिक़ उनकी मौत कार्डियक अरेस्ट के कारण हुई. शिव-हरि की जोड़ी ने कई चर्चित फ़िल्मों में संगीत दिया था, जिनमें प्रमुख फ़िल्में थी- सिलसिला, लम्हे और चांदनी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शिव कुमार शर्मा के निधन पर दुख व्यक्त किया है. (bbc.com)
करण जौहर ने अपने इंस्टाग्राम पर एक तस्वीर शेयर करके इशारा दिया है कि वे अपने चैट शो 'कॉफी विद करण' के अगले सीजन की शूटिंग में बिजी हैं. दर्शक जानने के लिए बेताब हो गए हैं कि इस बार उनके शो में कौन-कौन से सेलेब्स हिस्सा लेंगे. तो आइए, मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर आपको बताते हैं उन सितारों के बारे में जो करण जौहर के शो का हिस्सा बन सकते हैं.
आलिया भट्ट: अगर आलिया शो का हिस्सा बनती हैं, तो वे रणबीर कपूर से शादी के बाद पहली बार करण के शो में नजर आएंगी. मीडिया रिपोर्ट की मानें तो शो में उनके साथ रणबीर नहीं होंगे.
रणवीर सिंह: ऐसी चर्चा है कि रणवीर सिंह चैट शो में आलिया भट्ट के साथ नजर आएंगे. दोनों सितारे अपनी अपकमिंग फिल्म 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' पर बात करेंगे, जिसे करण जौहर ने डायरेक्टर किया है.
अल्लू अर्जुन: एक्टर के करण के चैट शो में आने की काफी संभावना है. वे फिल्म 'पुष्पा' से देशभर में लोकप्रिय हुए हैं.
यश: दर्शक कन्नड़ सिनेमा के सुपरस्टार यश को करण जौहर के चैट शो में देखने के लिए बेताब हैं. शो मेकर्स इस सिलसिले में एक्टर से बातचीत कर रहे हैं.
रश्मिका मंदाना: फिल्म 'पुष्पा' में रश्मिका के कैरेक्टर को हर किसी ने पसंद किया था. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मेकर्स ने उनसे शो को लेकर बातचीत की है.
कैटरीना कैफ और विक्की कौशल: करण के चैट शो में कैटरीना और विक्की शिरकत कर सकते हैं. दर्शक उन्हें एक-साथ बातचीत करते हुए देखना चाहते हैं.
अर्जुन कपूर और मलाइका अरोड़ा: चैट शो में शामिल होने वाले अर्जुन और मलाइका दूसरे बॉलीवुड कपल हो सकते हैं. कपल के फैंस उन्हें शो में देखने के लिए बेताब हैं.
-वंदना
बात 90 के दशक की है. अफ़ग़ानिस्तान में मुजाहिदीन के साथ लड़ाई जारी थी.
ऐसे में तत्कालीन अफ़ग़ान राष्ट्रपति नजीबुल्लाह की बेटी ने अपने पिता से गुज़ारिश करते हुए कहा कि वे मुजाहिदीनों से कहें कि सब एक दिन के लिए लड़ाई बंद कर दें.
ये बच्ची चाहती थी कि जब हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री का इतना बड़ा स्टार भारत से अफ़ग़ानिस्तान आया हुआ है, ऐसे में अगर लड़ाई बंद रहेगी तो वो सितारा काबुल में घूम पाएगा और लोग भी उन्हें देख पाएँगे.
इस सितारे का नाम था अमिताभ बच्चन और वो फ़िल्म ख़ुदा गवाह की शूटिंग के लिए अफ़ग़ानिस्तान आए हुए थे.
ये किस्सा अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व राजदूत ने मुझे तब सुनाया जब मैं कुछ साल पहले लद्दाख में उनसे मिली थी. 8 मई 1992 को रिलीज़ हुई हिंदी फ़िल्म ख़ुदा गवाह काबुल और मज़ार शरीफ़ में शूट हुई थी. मुजाहिद्दीन के दौर के बाद से 30 साल गुज़र चुके हैं.
अफ़ग़ानिस्तान की सबसे मशहूर हिंदी फ़िल्म
आज से 30 साल पहले रिलीज़ हुई फ़िल्म ख़ुदा गवाह की ही बात करें तो ये वहाँ की सबसे मशहूर हिंदी फ़िल्मों में से एक है और इसके बनने की कहानी और किस्से बेहद दिलचस्प हैं.
फ़िल्म के प्रोड्यूसर मनोज देसाई ने पूर्व में हुई बीबीसी से बातचीत में बताया था, उस वक़्त अफ़ग़ानिस्तान में गृह युद्ध चल रहा था.
"ख़ुदा गवाह की फ़िल्म यूनिट की सुरक्षा के लिए पाँच टैंकों का काफ़िला आगे चलता था और पाँच टैंको का काफ़िला पीछे. लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में अमिताभ बच्चन की लोकप्रियता का आलम ये था कि सुरक्षा इंतज़ाम की ज़रूरत महसूस नहीं होती थी."
"एक बार शूटिंग के दौरान हमें उस वक्त के विरोधी नेता बुरहानुद्दीन रब्बानी का संदेश मिला कि वो बच्चन के बहुत बड़े फ़ैन हैं और फ़िल्म यूनिट को विद्रोही गुटों की ओर से कोई ख़तरा नहीं है. बड़े ही नाटकीय अंदाज़ में वो अमिताभ बच्चन को ग़ुलाब का फूल देने आए थे.
यानी गृह युद्ध से जूझ रहा एक देश जहाँ सत्ता, मुजाहिदीन और विद्रोही सब एक भारतीय सितारे के लिए एक हो गए.
ये बात तब की है जब अमिताभ बच्चन और भारत के उस वक़्त के प्रधानमंत्री राजीव गांधी की गहरी दोस्ती थी.
मनोज देसाई ने बताया था कि राजीव गांधी की वजह से अफ़ग़ानिस्तान की नजीबुल्लाह सरकार ने यूनिट का बहुत ध्यान रखा.
साल 1991 में राजीव गांधी की हत्या कर दी गई और 1992 में फ़िल्म रिलीज़ हुई थी.
लेखक रशीद किदवई ने अपनी किताब नेता अभिनेता- बॉलीवुड स्टार पावर इन इंडियन पॉलिटिक्स में लिखा है, "दिल्ली में ख़ुदा गवाह की लॉन्च पार्टी थी. वहाँ अमिताभ बच्चन अपने दोस्त राजीव गांधी को याद कर फफक-फफक कर रोने लगे थे कि कैसे राजीव गांधी ने सुनिश्चित किया था कि अफ़ग़ानिस्तान में ख़ुदा गवाह की शूटिंग हो जाए और वहाँ के राष्ट्रपति नजीबुल्लाह से निजी तौर पर सुरक्षा की गारंटी माँगी थी."
जब अमिताभ को गोद में उठा लिया...
ख़ैर अफ़ग़ानिस्तान के अपने दिनों को याद करते हुए अमिताभ बच्चन ख़ुद भी लिख चुके हैं, "राष्ट्रपति नजीबुल्लाह हिंदी फिल्मों के बहुत बड़े फ़ैन थे. वो मुझसे मिलना चाहते थे और हमें वहाँ शाही तरीके से रखा गया. हमें होटल में नहीं रहने दिया जाता था. एक परिवार ने अपना घर हमारे लिए खाली कर दिया और ख़ुद एक छोटे घर में रहने चले गए. हमारी फ़िल्म यूनिट को एक कबीले के नेता ने आमंत्रित किया था. मैं डैनी के साथ चॉपर से गया था, आगे पीछे पाँच हेलीकॉप्टर. ऊपर से पहाड़ों का नज़ारा गज़ब था."
"जब हम वहाँ पहुँचे तो कबीले के नेता हमें गोद में उठाकर अंदर लेकर गए क्योंकि परंपरा ये थी कि मेहमान के पैर ज़मीन पर नहीं पड़ने चाहिए. काबुल में हमें बहुत तोहफ़े मिले. राष्ट्रपति नजीब ने हमें ऑर्डर ऑफ अफ़गानिस्तान से नवाज़ा. उस रात राष्ट्रपति के अंकल ने हमारे लिए भारतीय राग गाया."
ख़ुदा गवाह के रिलीज़ होने के बाद के 30 सालों की बात करें तो अफ़ग़ानिस्तान ने बहुत कुछ देखा है.
इतने सालों बाद वो फिर उसी मुहाने पर आ खड़ा हुआ है जहाँ कई साल पहले था. तालिबान ने अभिनेत्रियों के टीवी सीरियलों में दिखने पर रोक लगा दी है.
जहाँ तक भारतीय फ़िल्मों और सीरियलों की बात है तो ये अफ़ग़ानिस्तान में हमेशा से मशहूर रहे हैं.
चुनिंदा ही सही लेकिन हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री अफ़ग़ानिस्तान की बदलती हकूमतों और हालात का गवाह रही है- चाहे वो ख़ुदा गवाह हो या धर्मात्मा
ख़ुदा गवाह से पहले 1975 में फ़िरोज़ ख़ान अपनी फ़िल्म धर्मात्मा की शूटिंग डैनी और हेमा मालिनी के साथ अफ़ग़ानिस्तान में कर चुके हैं.
एक पुराने इंटरव्यू में फ़िरोज़ ख़ान ने बीबीसी को बताया था, "मैं अफ़ग़ानिस्तान में फ़िल्म की शूटिंग के लिए लोकेशन देखने गया था. तब ज़हीर शाह वहाँ का राजा थे. उन्होंने अनुमति दी थी. जब हम वहाँ शूट करने पहुँचे तो उनका तख़्तापलट हो चुका था. लेकिन अफ़गानिस्तान की नई सरकार ने भी हमें बहुत इज़्ज़त दी और हमें कोई परेशानी नहीं होने दी."
धर्मात्मा की शूटिंग के लिए फ़िरोज़ ख़ान कुंदुज़ गए और बामियान बुद्धा को भी शूट किया. क्या ख़ूब लगती हो, बड़ी सुंदर दिखती हो ..इस गाने में अफ़ग़ानिस्तान के ख़ूबसूरत नज़ारे क़ैद हैं. बाद में उनका नामो निशान ही मिट गया.
शेर ख़ान का किरदार भी काफ़ी फेमस
सोशल मीडिया पर वायरल एक पुराने ब्लैक और व्हाइट वीडियो में आप फ़िरोज़ ख़ान और हेमा मालिनी का अफ़ग़ानिस्तान में स्वागत होते हुए देख सकते हैं.
फ़िल्म ज़ंजीर का किरदार शेर ख़ान जिसे प्राण ने निभाया था, अफ़ग़ानिस्तान में काफ़ी मशहूर था. इससे पहले 1965 में भारत और काबुल के दिल के तार जोड़ने का काम किया था फ़िल्म काबुलीवाले ने.
90 में तालिबान के आने के बाद एक दौर ऐसा आया जब फ़िल्में तो क्या फ़ोटोगाफ़्री तक बैन हो गई थी.
बरसों बाद निर्देशक कबीर खान ने अफ़ग़ानिस्तान में फ़िल्म काबुल एक्सप्रेस शूट की और 2006 में रिलीज़ की. काबुलीवाले और काबुल एक्सप्रेस के बीच अफ़ग़ानिस्तान में बहुत कुछ बदल चुका था.
जब कबीर खान फ़िल्म शूट कर रहे थे तो तालिबान सत्ता से तो जा चुका था लेकिन तालिबान का ख़ौफ़ अब भी मौजूद था.
जब धीमे-धीमे हालात बेहतर हुए तो फिर से अफ़ग़ान फ़िल्में बनने लगीं, पहली बार औरतें फ़िल्म निर्देशन मे उतरीं. हालांकि इसके लिए उन्हें बड़ी कीमत चुकानी पड़ी.
सबा सहर अफ़ग़ानिस्तान की पहली महिला निर्देशकों में हैं, वो एक अभिनेत्री हैं और एक पुलिस अधिकारी भी थीं.
2020 में उन पर तालिबान ने जानलेवा हमला किया था, उन्हें चार बार गोलियाँ मारी गईं थी.
उस दिन वो अपनी बच्ची को अपने साथ लेकर काम पर गई थीं और इसलिए उन्हें यकीन था कि ऐसे में उन पर हमला नहीं होगा. हमले में वो किसी तरह बच पाई थीं.
पिछले साल 2021 में तालिबान की वापसी के बाद फिर से वहाँ की फ़िल्म इंडस्ट्री और कलाकारों पर जैसे ग्रहण लग गया है.
2003 में फ़िल्म बनाने वाली रोया सदत भी अफ़ग़ानिस्तान की पहली महिला फ़िल्म निर्देशकों में से एक है.
तालिबान की वापसी
वो उन अफ़ग़ान महिलाओं पर फ़िल्म बना रही थीं जो तालिबान के साथ बतौर वार्ताकार काम करती थीं. लेकिन 2021 में तालिबान की वापसी के बाद उन्हें फ़िल्म रोक देनी पड़ी. वो अपने देश वापस नहीं लौट सकती हैं.
वो कहती हैं, हम जंग से थक चुके हैं. लेकिन हम कलाकार भी लड़ रहे हैं. हम अपनी कला के ज़रिए, कागज़ पर लिखे लफ़्ज़ों के ज़रिए लड़ रहे हैं.
पिछले साल फ़िल्म निर्देशक सहरा करीमी की मदद की गुहार वाली पोस्ट वायरल हुई थी. वो अफ़ग़ान फ़िल्म एसोसिएशन की पहली महिला चेयरपर्सन हैं. या थीं.. कहना मुश्किल है क्योंकि अफ़ग़ान फ़िल्म एसोसिएशन का फ़िलहाल कोई अस्तित्व नहीं है.
इस सब के बीच धर्मात्मा या ख़ुदा गवाह जैसी अफ़ग़ानिस्तान में शूट हुई हिंदी फ़िल्में किसी सपने जैसी लगती हैं.
जितनी बार भी धर्मात्मा में हेमा मालिनी और फ़िरोज़ ख़ान पर फ़िल्माए गए गाने 'क्या ख़ूब लगती हो बड़ी सुंदर दिखती हो' देखती हूँ तो वीडियो पॉज़ कर अफ़ग़ानिस्तान के सुंदर नज़ारे देख-देख कर मन नहीं भरता.
ख़ुदा गवाह के बुज़कशी वाले सीन भी क्या ज़बरदस्त फ़िल्माए गए हैं वहाँ.
ये एक अजीब इत्तेफ़ाक था कि फ़िल्म में जिस जगह हबीबउल्लाह नाम के किरदार को फाँसी देने का सीन फ़िल्माया गया था, वहीं पर चार साल बाद अफ़ग़ान राष्ट्रपति नजीबुल्लाह को फाँसी दे दी गई थी.
शोले में अमिताभ बच्चन के साथ काम चुके भारतीय अभिनेता एके हंगल भी नजीबुल्लाह के अच्छे दोस्त थे और उनसे ख़तो-किताबत करते रहते थे.
अपनी आख़िरी मुलाक़ात में अफ़ग़ान राष्ट्रपति ने तोहफ़े में एके हंगल साहब को ख़ूबसूरत अफ़ग़ान कालीन और जर्दा दिया था.
फ़िल्म ख़ुदा गवाह को तीस बरस बीत चुके हैं.. अमिताभ बच्चन के फ़ैन्स अफ़ग़ानिस्तान में अब भी मौजूद हैं.
विरासत की तरह अफ़ग़ान घरों में ये फ़िल्म पीढ़ी दर पीढ़ी यादों का हिस्सा रही है. पर आज ये सब कुछ पीछे छूटता नज़र आ रहा है और ज़िंदगी किन्हीं दूसरी ही दुश्वारियों और जद्दोजहद का नाम बन चुकी है. (bbc.com)
-विकास त्रिवेदी
स्टैंडअप कॉमेडियन मुन्नवर फ़ारूकी रियलटी शो लॉकअप के विजेता बन गए हैं. कंगना रनौट के इस शो में मुन्नवर को पहले से ही मज़बूत दावेदार माना जा रहा था.
शनिवार देर रात हुए ग्रैंड फ़िनाले में कंगना रनौट ने विजेता के नाम का एलान किया. मुन्नवर के अलावा अंजलि अरोड़ा, पायल रोहतगी, शिवम फ़िनाले तक पहुंचे थे. हालांकि, मुनव्वर फ़ारूकी का ये सफ़र उतना सीधा नहीं रहा है. लॉकअप शो में भी उन्होंने अपने जीवन के कई भावुक कर देने वाले राज़ सबके सामने रखे.
एक जनवरी, 2021 को जब दुनिया नया साल मना रही थी, तब लाखों लोगों को हँसाने वाला एक गुजराती कॉमेडियन लॉक अप यानी जेल भेजा जा रहा था.
ये साल 2022 है और एक बार फिर यही कॉमेडियन मुनव्वर फ़ारूक़ी 'लॉक अप' के पीछे भेजा गया लेकिन ये 'लॉक अप' साल 2021 वाला नहीं, बल्कि एक रिएलिटी शो है, जिसकी होस्ट एक्ट्रेस कंगना रनौट हैं.
'लॉकअप', 'बिग बॉस' जैसा रिएलिटी शो है, जिसमें कुछ मेहमान कुछ वक़्त के लिए शो में आते हैं और धीरे-धीरे शो से बाहर होते जाते हैं.
लॉक अप शो में एंट्री के बाद मुनव्वर फ़ारूक़ी लगातार चर्चा में रहते हैं. कभी अपनी मां की कहानी सुनाकर तो कभी बचपन में हुए यौन शोषण की कहानी बताकर. सोशल मीडिया पर कई लोगों का अनुमान है कि लॉकअप शो मुनव्वर फ़ारूक़ी जीत सकते हैं.
इस शो के ख़त्म होने से पहले कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में ये दावा भी किया जा रहा है कि मुनव्वर फ़ारूक़ी 'ख़तरों के खिलाड़ी' शो में भी नज़र आ सकते हैं.
आइए आपको मुनव्वर फ़ारूक़ी की कहानी बताते हैं कि कैसे यू-ट्यूब वीडियो और स्टेज शो के ज़रिए कॉमेडी करने वाले मुनव्वर बीते डेढ़ साल में चर्चा में हैं और लॉकअप, कॉमेडी से पहले मुनव्वर की क्या कहानी थी? बचपन से जवानी तक.
लॉकअप शो में मुनव्वर अपने बचपन के बारे में कई बातें बताते नज़र आए थे. हालांकि ये बात फ़ारूक़ी ने तब बताई, जब शो के फॉरमेट के हिसाब से अपनी ज़िंदगी से जुड़ा कोई राज़ बताना होता है.
मुनव्वर ने शो में कहा था, "मैं छह या सात साल का था, जब क़रीब चार या पांच साल तक लगातार मेरा यौन शोषण हुआ. कोई क़रीबी रिश्तेदार था और आप कुछ बोल नहीं पाते हैं. आपको कुछ समझ नहीं आता है. चौथे साल उनको शायद महसूस हुआ कि बहुत ज़्यादा हो गया और अब उन्हें रुक जाना चाहिए. तब वो चीज़ बंद हुई. इस बारे में मैंने कभी किसी को नहीं बताया. एक बार मुझे महसूस हुआ कि मेरे पिता को इस बारे में पता चल गया है, तब उन्होंने मुझे डांटा."
मुनव्वर के इस राज़ को बताने के बाद कंगना रनौट ने भी अपने साथ बचपन में हुए यौन शोषण के बारे में बताया था. इसी शो में मुनव्वर ने अपनी मां की मौत से जुड़ा वाकया भी साझा किया था.
मुनव्वर ने कहा था, "एक दिन मुझे पता चला कि मेरी मां की तबीयत ख़राब है. मैं भागकर अस्पताल पहुंचा. मैं जैसे ही अस्पताल पहुंचा तो देखा मां चिल्ला रही थीं. मैंने परिवार के लोगों से पूछा कि मां को क्या हुआ? दवाएं दीं पर फ़र्क़ नहीं पड़ा. तब मेरी एक बड़ी अम्मी ने आकर कहा- तेरी मां ने तेज़ाब पी लिया है. मैंने ये बात अपनी एक रिश्तेदार नर्स को बताई. डॉक्टर आए. मुझे लगा सब ठीक हो जाएगा. फिर एक पल आया कि डॉक्टर बोले- हाथ छोड़ दे. मेरा हाथ छुड़वाया गया तब मुझे पता चला कि अम्मी की मौत हो चुकी है."
मां की मौत पर मुनव्वर अफ़सोस ज़ाहिर करते हैं, "मुझे हमेशा लगता रहा कि अगर उस रात मैं अम्मी के साथ सोया होता तो शायद वो बच जातीं. डॉक्टर्स ने पोस्टमॉर्टम किया तो पता चला कि अम्मी ने सात आठ दिन से कुछ खाया नहीं था. तब जाकर महसूस हुआ कि 22 साल की शादी की ज़िंदग़ी कितनी बुरी थी. मैंने पूरा बचपन अपनी मां को या तो मार खाते हुए देखा या झगड़े देखे."
कई मौक़ों पर मुनव्वर अपने पिता से दूरियों के बारे में बता चुके हैं. इसके साथ ही मुनव्वर अपना बचपन क़र्ज़ की चुनौतियों के बीच गुज़रने की बात भी बताते रहे हैं.
मुनव्वर ने कहा था, "मेरी बहन ने जब शादी की तो उसका सारा कसूर परिवारवालों ने अम्मी पर डाला था. साल 2007 मेरे परिवार के लिए बहुत बुरा था. घर के बर्तन बेचकर खाना आ रहा था. मां पर जो कई बोझ थे, उनमें 3500 रुपये का क़र्ज़ भी था. ये क़र्ज़ भी अम्मी ने घर चलाने के लिए लिया था. आज भी वो चीज़ मुझे छोड़ नहीं पा रही है."
गुजरात के जूनागढ़ से मुंबई के डोंगरी तक
30 साल के मुनव्वर फ़ारूक़ी का जन्म 1992 में गुजरात के जूनागढ़ में हुआ.
मुनव्वर कई वीडियो में ये बताते हैं कि 2002 के गुजरात दंगों में जिन लोगों को घर तबाह हुआ, उनमें उनका घर भी शामिल था.
मुनव्वर 2002 दंगों के बाद मुंबई के डोंगरी आकर अपने परिवार के साथ रहने लगे. ये वही डोंगरी है, जहां का दाऊद इब्राहिम भी था और इस बात पर लोगों के सवाल और शक भरी निगाहों का मुनव्वर भी अपने कई वीडियो में मज़ाक उड़ाते दिखते हैं.
गुजरात से डोंगरी आने के कुछ वक़्त बाद मुनव्वर की मां ने दुनिया को अलविदा कहा था.
कई मीडिया रिपोर्ट्स में मुनव्वर फ़ारूक़ी के बचपन में बर्तन बेचने और ग्राफिक आर्टिस्ट का काम करने जैसी बातें कही गईं हैं.
द प्रिंट में छपी एक रिपोर्ट में मुनव्वर के दोस्त और कॉमेडी शो करवाने वाले 'द हेरीटेज' के फाउंडर बलराज सिंह घई ने इस बारे में बताया था.
बलराज सिंह घई ने कहा था, "एक बार मुनव्वर ने मुझे बताया था कि वो किसी एड की शूटिंग के पास था. वहां किसी स्टैंडअप कॉमेडी के सीन को फिल्माना था. प्रोड्यूसर्स के पास कोई अलग से था नहीं जो जाकर मंच पर कॉमेडी स्टैंडअप करता हुआ दिख सके. तब प्रोड्यूसर्स ने मुनव्वर से कहा कि स्टेज पर जाकर दो लाइनें बोल दे. वो लाइनें बहुत पावरफुल लगीं. ऐसा लगा कि मुनव्वर को ये सब असल में करना चाहिए. इसके बाद वो हमारे कई शो के लिए आया और अचानक हिट हो गया."
इसी रिपोर्ट में मुनव्वर के रिश्तेदार ये बताते हैं कि शुरू में परिवार ने स्टैंडअप कॉमेडी को ख़ारिज करते हुए टाइमपास बताया था. पर जब मुनव्वर की लोकप्रियता बढ़ती गई और लोग आकर मुनव्वर के साथ सेल्फी लेने लगे तब समझ आया कि ये कुछ गंभीर बात है.
मुनव्वर की प्रशंसकों में लड़कियां भी शामिल हैं. सोशल मीडिया पर मुनव्वर के लिए स्नेह का इज़हार देखा जा सकता है. लॉकअप शो में भी मुनव्वर 'कच्चा बादाम' पर डांस करके हिट हुईं अंजलि अरोड़ा के साथ दिखते हैं. इन दोनों की कैमिस्ट्री भी लोगों को भा रही है.
लेकिन इसी शो में एक ऐसा पल भी आया, तब मुनव्वर फ़ारूक़ी के शादीशुदा होने की बात भी पता चली.
शो में ट्विटर पर मुनव्वर की शेयर की जा रही एक तस्वीर को दिखाया गया. इस तस्वीर में मुनव्वर एक महिला और बच्चे के साथ दिख रहे हैं. इस ब्लर तस्वीर के शो में दिखने पर मुनव्वर ने अपने शादीशुदा होने की बात स्वीकार की. साथ ही मुनव्वर ने ये भी बताया, "हम क़रीब डेढ़ साल से अलग रह रहे हैं. कोर्ट की चीज़ें चल रही हैं. ये मेरी एक ऐसी प्राइवेट चीज़ है, जिसके बारे में मैं शो पर बात नहीं करना चाहता हूं."
मुनव्वर के शादी की बात को खुलकर ना बताने को लेकर कंगना रनौट भी सवाल उठा चुकी हैं. साथ ही सोशल मीडिया पर कुछ लोग इसे ग़लत बताते हैं.
मुनव्वर की कमाई और चुटकुलों में ऐसा क्या होता है?
5 मई 2022 तक मुनव्वर फ़ारूक़ी के यू-ट्यूब पर क़रीब 26 लाख फॉलोअर्स हैं और 16 करोड़ से ज़्यादा व्यूज़ हैं.
एक कॉमेडियन ने बीबीसी हिंदी से अनुमान लगाकर बताया, "यू-ट्यूब से होने वाली कमाई से इतर मुनव्वर भारत में एक शो के लगभग एक से डेढ़ लाख रुपये लेते हैं."
कई मीडिया रिपोर्ट्स में भी मुनव्वर की लगभग इतनी ही कमाई का दावा किया गया है. ज़ाहिर है कि मुनव्वर की ओर से इस बारे में कोई जानकारी कभी साझा नहीं की गई है.
मुनव्वर कॉमेडी के अलावा रैप सॉन्गस भी गाते हैं.
अब संभव है कि आप सोच रहे होंगे कि मुनव्वर के चुटकुलों में ऐसा क्या होता है और विवाद क्यों हो जाता है?
यही समझने के लिए आइए आपको मुनव्वर के कुछ चुटकुलों के बारे में बताते हैं. मुनव्वर के यू-ट्यूब पर अपलोड दिख रहे पहले वीडियो की पहली लाइन कुछ यूं है:
"मुझे लगता है कि 'बोलो जुबां केसरी' बीजेपी का इलेक्शन स्लोगन होना चाहिए. क्योंकि विमल हो या बीजेपी... देश के लिए दोनों ही कैंसर हैं."
"आपने देखा होगा कि पैड अखबारों में लपेटकर दिए जाते हैं. क्योंकि भारत में अखबार यही करते हैं- सच्चाई को छिपाते हैं."
"हम आपके हैं कौन फ़िल्म में रेणुका शहाणे सीढ़ियों से होरिजोनटल द्रौपदी बनकर गिरीं. अपने घर की सीढ़ियों से कौन गिरता है?"
"मेरा एक दोस्त है. उसे लगता है कि मदरसे में इस्लामी तालीम में सिखाते होंगे कि गाओ बच्चों, इस्लाम का हीरो- ओसामा बिन लादेन."
"आपमें से किसी का नाम सीता है? किसी का नाम सीता नहीं है. क्योंकि एक समाज के तौर पर हम नहीं चाहते कि औरतें लाइन पार करें."
"विज्ञापन आकर ये कहते हैं कि कपड़े धोने का काम सिर्फ़ औरतों का है. हेमा, रेखा, जया और सुषमा. कभी सुना है कि किसी सौरभ नाम के आदमी को कपड़े धोने के लिए कहा गया हो?"
"मेरी पंजाबी लोगों से गुज़ारिश है कि आपकी गर्लफ्रेंड आपसे कुछ मांगे तो उसे लाकर दे दो. गाना मत बना दो. पंजाबी गानों को सुनो- हर गाने में कोई कुछ मांग रहा है."
"हम मुस्लिम लोग हैं. हम शादी में सेल्फी लेते हैं तो चीज़ की जगह बीफ बोलते हैं. हम मुस्लिमों की सेल्फ़ी में सब बच्चे नहीं आ पाते हैं तो इतने बच्चे पैदा क्यों किए?"
मुनव्वर से जुड़े विवाद और आलोचना
आपने ऊपर मुनव्वर फ़ारूक़ी के जो चुटकुले पढ़े, वो कई वीडियोज़ में सुने जा सकते हैं. मुनव्वर के आलोचक ये कहते हैं कि अपने वीडियोज़ में मुनव्वर क्यों धर्म से जुड़े मज़ाक करते हैं और ज़ाकिर ख़ान भी तो कॉमेडी करते हैं पर वो कभी धर्म या राजनीति पर चुटकुले नहीं बनाते.
'द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज' से लोगों की नज़र में आए कॉमेडियन सुनील पाल भी मुनव्वर की आलोचना कर चुके हैं.
लॉकअप शो के लॉन्च होने पर सुनील पाल ने कहा था, "फ्रीडम ऑफ स्पीच का मतलब ये नहीं है कि आप कुछ भी कहने के लिए आज़ाद हैं. आपके कहे हुए से समाज को अच्छा मैसेज जाना चाहिए. आज लोग इन लोगों की वजह से डरे हुए हैं. ये लोग जनता के सामने जाते हैं तो उनका भी अपमान करते हैं. वल्गर कंटेंट देते हैं ये लोग."
हालांकि मुनव्वर इसका जवाब देते हैं, "जो लोग शो में आते हैं वो ये सब नियम शर्तें पढ़कर अपनी मर्ज़ी से आते हैं, ये कॉमेडी का फॉरमेट है- क्राउड वर्क. जिसमें जनता को ही शामिल करते हैं."
ऐसे ही कॉमेडी वीडियोज़ में हिंदू देवी देवताओं और गृह मंत्री अमित शाह पर कथित अभद्र टिप्पणी करने का मुनव्वर पर आरोप लगा था. इसी आरोप के चलते एक जनवरी 2021 को इंदौर पुलिस ने मुनव्वर समेत चार लोगों को गिरफ़्तार किया था.
क़रीब एक महीने तक मुनव्वर को जेल में रहना पड़ा था. इस दौरान ज़मानत याचिका ख़ारिज करते हुए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर बैंच ने कहा था, "ऐसे लोगों को बख़्शा नहीं जाना चाहिए."
मुनव्वर को फरवरी 2021 में सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत मिली थी.
इस रिहाई के बाद मुनव्वर ने मीडिया से दूरी बनाई रखी थी और एक यू-ट्यूब वीडियो 'लीवींग कॉमेडी' अपने चैनल पर पब्लिश किया था.
इस वीडियो में मुनव्वर ने कहा था, "ये जो भेड़ चाल या सियासत है, इसका कोई भी शिकार हो सकता है. मैं इसका शिकार नहीं हुआ, मुझ पर तो बस खरोंच आई और वो भी उस चीज़ की वजह से जो मैंने की तक नहीं. किसी की सियासत के चक्कर में किसी की ज़िंदगी बर्बाद हो सकती है. मैंने कभी नहीं चाहा कि मैं किसी का दिल दुखाऊं और कभी मशहूर होना भी नहीं चाहा. हमने बस लोगों को हँसाना चुना. किसी का पैशन है कि वो गाड़ी में बैठकर गाली दे. हमारा पैशन है कि हम लोगों को हँसाएं. किसी को तकलीफ़ हो, ये मैं कभी नहीं चाहूंगा."
मुनव्वर वीडियो के अंत में कहते हैं, "कॉमेडी तो मैं छोड़ नहीं सकता. क्योंकि कॉमेडी छोड़ने की कई वजह हैं मेरे पास. पर कॉमेडी करने की एक वजह है... वो आवाज़ जो मंच पर बुलाती है."
मुनव्वर के रद्द शो और आगे क्या...
इस वीडियो के सामने आने के बाद मुनव्वर ने कई और वीडियो और कॉमेडी स्टैंडअप किए. लेकिन इसी साल 2021 के अंत आते-आते मुनव्वर के कई कॉमेडी शो रद्द हुए. पुलिस और स्थानीय प्रशासन ने सुरक्षा कारणों को ध्यान में रखते हुए इन शो की इजाज़त नहीं दी थी.
इसके बाद मुनव्वर ने सोशल मीडिया पर लिखा था- '...अब बस्स हो गया.' बीबीसी ने तब दिसंबर 2021 में मुनव्वर से बात की थी और इसका मतलब पूछा था.
मुनव्वर ने बीबीसी से कहा था, "मुझे मेरी बात कहने को नहीं मिल रही थी. पिछले कुछ दिनों में कुल 15 शो रद्द हुए हैं. मैं सोचता था, चलो ठीक है. लेकिन लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि मैं किस दौर से गुजर रहा हूं. मैं कोई ख़तरा नहीं हूं. मेरा शो देखे बिना कैसे कोई कह सकता है कि ये ग़लत है? इसलिए तब ऐसे लगा कि अब बस्स हो गया."
हालांकि इस वाकये के बाद मुनव्वर के कई वीडियो यू-ट्यूब पर अपलोड हुए. इन वीडियोज़ में मुनव्वर कॉमेडी या रैप सॉन्ग गाते हुए दिखते हैं और हर वीडियो के शुरुआत में ये डिस्क्लेमर दिखता है- इस वीडियो का मकसद किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है, ये सिर्फ़ चुटकुले हैं. इन्हें देखिए और आनंद लीजिए.
बीबीसी को दिए इंटरव्यू में अपनी आलोचना और समर्थन पर मुनव्वर एक बात कहते हैं, जो रुकावटों के बाद भी जारी मुनव्वर के सफ़र को बयां करता है.
"जब तक देश में प्यार, शांति और कॉमेडी पसंद करनेवाले समझदार लोग तुम्हारी तरफ़ हैं, तुम्हें सपोर्ट कर रहे हैं तो नफ़रत ज़्यादा दिन जीत नहीं सकती." (bbc.com)
नयी दिल्ली, 6 मई। फिल्म निर्माता विवेक अग्निहोत्री ने बृहस्पतिवार को कहा कि विदेशी मीडिया संस्थानों द्वारा उनके और उनकी फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' के खिलाफ एक अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक अभियान चलाया गया था, जिसके कारण विदेशी संवाददाता क्लब और प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (पीसीआई) ने उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस रद्द कर दी थी।
इसके बजाय, निर्देशक अग्निहोत्री (48) ने पीसीआई से एक किलोमीटर से भी कम दूरी पर स्थित एक पांच सितारा होटल में अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस की।
अग्निहोत्री के अनुसार, प्रेस कॉन्फ्रेंस के पीछे उनका उद्देश्य 'द कश्मीर फाइल्स' के मिथकों, आरोपों और प्रभाव को खत्म करना था।
उन्होंने कहा, “यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है कि यह स्वतंत्र अभिव्यक्ति व सच्चाई के खिलाफ यह गतिविधि एक भव्य सरकारी बंगले या जो भी यह जगह है, वहां हुई। यह संपत्ति उच्चतम न्यायालय के ठीक सामने है, जो न्याय का सर्वोच्च मंदिर है...मेरी फिल्म को संवाददाता सम्मेलन करने से रोका गया जिसकी शुरुआत फॉरेन कॉरेस्पॉन्डेंट्स क्लब द्वारा की गई, वह भी विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर हुआ।”
अग्निहोत्री ने कहा, ' उसी दिन उन्होंने भारत का प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक कैसे नीचे जा रहा है, इस पर बहुत सारी रिपोर्टें प्रकाशित कीं। इससे मुझे यह मानने का कारण मिला कि यह एक प्रचार है। वास्तव में, प्रेस की स्वतंत्रता पर अंतरराष्ट्रीय प्रेस द्वारा अंकुश लगाया जाता है, कम से कम मेरे मामले में।”
अग्निहोत्री ने कहा कि उनके पास यह मानने के कारण हैं कि 'कुछ एजेंडा संचालित अंतरराष्ट्रीय मीडिया घराने, जो वास्तव में राजनीतिक कार्यकर्ता हैं' भारत की राजनीति में हस्तक्षेप करने और इसकी संप्रभुता को खतरे में डालने की कोशिश कर रहे हैं।
फिल्मकार ने दावा किया कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने शुरू में फिल्म से किनारा कर लिया था, लेकिन जब यह हिट हो गई तो वे इसके बारे में बात करने के लिए उनसे संपर्क करने लगे हैं।'
उन्होंने कहा, उनके (विदेशी मीडिया) पास केवल दो शब्द थे- मुस्लिम और (प्रधानमंत्री नरेंद्र) मोदी। और, जो मुझे यह मानने का कारण देता है कि वे एजेंडा संचालित हैं।' (भाषा)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद, 5 मई। स्थानीय महासमुंद निवासी पूर्वा तिवारी द्वारा डिजाइन किए हुए कपड़ों को टाइम्स फैशन वीक में स्थान मिला। उन डिजाइनों को दर्शकों व आयोजकों की खूब सराहना मिली। जानकारी के मुताबिक मुंबई में माडलों ने महासमुंद की बेटी के डिजाइन किए कपड़े पहने थे। पूर्वा इन दिनों मुंबई में फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर रही है। बाम्बे टाइम्स फैशन शो वीक मुंबई में उनके बनाए ड्रेस डिजाइन का चयन हुआ है। यह शो 28 अप्रैल से एक मई तक होटल सेंनट्रेगिंस मुंबई में हुआ।
पूर्वा तिवारी नवी मुंबई के आइएनआई एफडी कालेज में फैशन डिजाइनिंग की सेकेंड ईयर की छात्रा है। इस शो में दो ड्रेस का चयन हुआ। वह पढाई के साथ साथ द आर्ट वील के नाम से स्वयं का ब्रांड चला रही है।
पूर्वा डाक्टर मालती भुवनेश्वर तिवारी की पुत्री है। पूर्वा की उपलब्धि पर डाक्टर जया ठाकुर, डाक्टर रीता पांडेय, सरस्वती सेठ, राशि महिंलांग, तारिणी चंद्राकार, उत्तरा विधानी, रेणुका चंद्रकारए, शीतल देवदास, सविता चंद्राकर, उमा शर्मा, नंदा साहूए, सीमा खुटेल ने बधाई दी है।
'बूहे बारियां... ' यानी 'दरवाज़े, खिड़कियाँ और दीवारें लाँघ कर...आऊंगी हवा बनकर'
पाकिस्तानी सिंगर हदिक़ा कियानी का ये गाना साल 1999 के बाद से काफी लोगों ने सुना. इस 'बूहे बारियां' गाने की लय से मिलते-जुलते कुछ गाने भारत की हिंदी फ़िल्मों में भी सुनाई दिए.
जैसे साल 2002 में प्रीति जिंटा, जिम्मी शेरगिल और अर्जुन रामपाल की फ़िल्म 'दिल है तुम्हारा' का गाना- दिल लगा लिया मैंने तुमसे प्यार करके... या फिर 2002 में ही शाहरुख, सलमान और माधुरी दीक्षित की फ़िल्म 'हम तुम्हारे हैं... तुम्हारे सनम' का टाइटल ट्रैक.
लेकिन अब यही गाना लय और अपने शुरुआती कुछ शब्दों के साथ एक नए रिलीज़ गाने में सुनाई दिया है. इस गाने को भारतीय सिंगर कनिका कपूर की आवाज़ में 'सारेगामा म्यूज़िक' कंपनी ने 'ओरिजिनल' बताकर पेश किया है. गाने के बोल हैं, ''बूहे बारिया ते नाले कंदा टप्प के...आवांगी हवा बनके बूहे बारिया.''
गाने में सुनाई दिए बाक़ी बोल अलग हैं लेकिन लय और बूहे बारियां वाली लाइन के इस्तेमाल पर पाकिस्तानी सिंगर हदिक़ा कियानी ने इंस्टाग्राम स्टोरीज़ में अपनी बात लिखकर आपत्ति जताई है. इस आपत्ति पर कनिका कपूर की भी प्रतिक्रिया आई है. साथ ही जानिए अतीत के वो कुछ मौक़े जब भारत और पाकिस्तान के सिंगर्स के गानों के चोरी या प्रेरित होने के चर्चे हुए.
हदिक़ा ने क्या लिखा?
हदिक़ा ने लिखा, ''बूहे बारियां और मेरी अलबम रौशनी के सारे गानों के कॉपीराइट्स मेरे पास हैं. बूहे बारियां कविता मेरी मां ने लिखी थी. अगर कोई ये कह रहा है कि मेरे पास इसके अधिकार हैं तो ये ग़ैर-क़ानूनी है और मेरी टीम एक्शन ले रही है. हमारे पास रौशनी एलबम आने से पहले के कॉपीराइट्स के दस्तावेज हैं. किसी कंपनी को इसके अधिकार नहीं दिए गए हैं. किसी कंपनी के पास मेरे साइन वाले या गाने का अधिकार देते दस्तावेज़ नहीं हैं. मैं लंबे वक़्त तक इस मसले पर चुप रही.''
हदिक़ा जिस रौशनी अलबम की बात कर रही हैं, वो साल 1999 में आई थी. इस अलबम में 14 गाने थे. अलबम की रिलीज़ के बाद हदिक़ा को काफ़ी लोकप्रियता नसीब हुई थी.
एआरवाई न्यूज़ की ख़बर में इस्तेमाल हुए इंस्टाग्राम स्टोरीज़ के स्क्रीनशॉट में हदिक़ा की प्रतिक्रिया विस्तार से पढ़ने को मिलती है.
हदिक़ा के मुताबिक़, ''एक और दिन और एक और बार मां के लिखे गाने की बेशर्मी से नकल. ना किसी ने राइट्स मांगे, न ही किसी ने रॉयल्टी दी. उन्होंने बस मेरी मां के लिखे गाने को दोबारा रिकॉर्ड किया ताकि आसानी से पैसे कमा सकें. शाहरुख़, प्रीति ज़िंटा जैसे सितारों की कई बॉलीवुड फ़िल्मों में ये कई बार चोरी हुआ है. ये गाना लगभग हर दूसरे सिंगर ने स्टेज पर पैसा कमाने के लिए गाया है. कई वीडियो के यू-ट्यूब व्यूज़ 20 करोड़ से ज़्यादा होते हैं. मुझे बस 'ओरिजनल सॉन्ग- बूहे बारियां हदीक़ा क़यानी' लिखकर क्रेडिट दे देते हैं.''
हदिक़ा लिखती हैं, ''मैं अभी ज़िंदा हूं और अगर आप मेरे गाने इस्तेमाल करना चाहते हैं तो मुझसे इजाज़त लीजिए. किसी और के गाए गाने से पैसे कमाना अच्छी बात नहीं. मैं ये साफ़ कर देना चाहती हूं कि मैं किसी सिंगर के ख़िलाफ़ नहीं हूं. मैं बस इस पूरी प्रक्रिया से निराश हूं. ख़ैर पाकिस्तानी संगीत की चोरी जारी है.''
बीबीसी हिंदी ने इस मसले पर हदिक़ा से बात करने की कोशिश की लेकिन ख़बर लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं आया है.
हदिक़ा के इन आरोपों पर कनिका कपूर की भी प्रतिक्रिया आई है.
कनिका ने कहा, ''इस गाने को सुनने वाला हर इंसान ये जान जाएगा कि ये ओरिजिनल गाना है. अंतरे से लेकर पूरे गाने तक. हमने बस हुक लाइन (बूहे बारिया) का इस्तेमाल किया है. हमने एक पुराने लोकगीत की हुक लाइन को उठाया. मेरे और कंपनी के मुताबिक़, ये एक लोकगीत है.''
कनिका कहती हैं, ''हमने इस गाने के कई वर्जन सुने हैं और कभी किसी ने इस बारे में कुछ नहीं कहा है. हमने लोकगीत को कॉपी पेस्ट नहीं किया है. हमने बस दो पंक्तियों से प्रेरणा ली. गाने लिखने और कंपोज़ करने वाले कुंवर जुनेजा और श्रुति राणे के साथ ये नाइंसाफ़ी है. अगर कोई ये कहे कि मैं किसी का काम चुरा रही हूं तो ये ग़लत बात है.''
हिंदुस्तान टाइम्स से कनिका ने कहा, ''ये बात मुझे निराश करती हैं कि मैंने उनका गाना चुराया या हम उन्हें क्रेडिट नहीं दे रहे हैं. मुझे लगता है कि इस मामले पर नकरात्मक होने की बजाय हमें एक दूसरे का साथ देना चाहिए. मुझे काफ़ी नफरती मैसेज मिल रहे हैं. ये बात निराश करती है कि लोग कितनी जल्दी निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं.''
2020 में लॉकडाउन के दौर में कोरोना पॉजिटिव होने के बाद लखनऊ की एक पार्टी में जाने और संक्रमण फैलाने के आरोपों को लेकर कनिका कपूर चर्चा में रही थीं.
कनिका के गानों की लिस्ट में बेबी डॉल, देसी लुक, सुपर गर्ल, पुष्पा फ़िल्म का- ओ बोलेगा या ओ ओ बोलेगा, चिट्टियां कलाइयां वे जैसे कई गाने शामिल हैं. कनिका मूल रूप से लखनऊ की हैं.
बीबीसी को 2014 में दिए इंटरव्यू में कनिका ने बताया था, ''मैं लखनऊ में पैदा हुई, वहीं स्कूल गई. पंडित गणेश प्रसाद मिश्रा जी से 12 साल तक शास्त्रीय संगीत सीखा है, मैंने संगीत में मास्टर्स किया है. 17 साल की उम्र में मैं लंदन आ गई. पूरी तरह से गाना नहीं छोड़ा कभी. लेकिन ये सोचा नहीं था कि संगीत इस तरह मेरी ज़िंदगी में वापस आ जाएगा. ''
वहीं, हदिक़ा कियानी पाकिस्तान की सिंगर हैं. हदिक़ा कोक स्टूडियो के कई सीज़न में गाने गा चुकी हैं.
हदिक़ा का आतिफ असलम के साथ गाया एक गाना 'होना था प्यार, हुआ मेरे यार' भारत में भी काफी सुना जाता रहा है. इसके अलावा भारत में भी फवाद ख़ान के मशहूर सीरियल रहे 'ज़िंदगी गुलज़ार है' में भी हदिक़ा ने एक गाना गाया था.
'द न्यूज़ डॉट कॉम' को एक इंटरव्यू में हदिक़ा ने बताया था, ''आमिर ख़ान की 'थ्री इडियट्स' फ़िल्म मेरी पसंदीदा है और साथ ही टॉम हैंक्स की 'कास्ट अवे' फ़िल्म मुझे पसंद है. '' हदिका के पसंदीदा पाकिस्तानी सिंगर नुसरत फतेह अली खां हैं. बूहे बारियां के अलावा मन दी मौज और जानां जैसे गाने हदिक़ा के हिट गाने रहे हैं.
हदिक़ा पाकिस्तान के रावलपिंडी की रहने वाली हैं. कुछ बरस पहले ही हदिक़ा का अपने पति से तलाक हुआ था.
भारत बनाम पाकिस्तान: गानों की नकल का अतीत
ये पहला मौक़ा नहीं है, जब भारत और पाकिस्तान के सिंगर्स गाने या लय चोरी के आरोपों को लेकर आमने-सामने हैं.
साथ ही एक मुल्क़ में गाए गाने का दूसरे मुल्क़ में दोबारा गाकर भी इस्तेमाल हुआ है. इसका सबसे ताज़ा उदाहरण मनोज मुंतशिर का 'लिखा' हुआ हाल ही में रिलीज़ गाना 'दिल ग़लती कर बैठा है, ग़लती कर बैठा है दिल...बोल हमारा क्या होगा' है. इस गाने को जुबिन नौटियाल ने गाया है.
पर असल में ये कव्वाली बरसों पहले नुसरत फतेह अली ख़ान समेत कई पाकिस्तानी सिंगर्स गा चुके हैं. इस कव्वाली के बोल थे, 'दिल ग़लती कर बैठा है, ग़लती कर बैठा है दिल... बोल कफारा क्या होगा?'
आइए आपको ऐसे ही गानों की लंबी लिस्ट में से 5 गानों के बारे में बताते हैं.
1. साल 1991 की फ़िल्म- सड़क. गाना- तुम्हें अपना बनाने की कसम खाई है...
इस गाने की लय मुस्तफ़ा ज़ैदी की ग़ज़ल और सिंगर मुसर्रत नज़ीर के गाए 'चले तो कट ही जाएगा सफ़र आहिस्ता..' से उठाई हुई मालूम होती है.
2. साल 1994 की फ़िल्म- इंसाफ़ अपने लहू से. गाना- हवा हवा ये हवा और 2017 में मुबारक़ां फ़िल्म का गाना- हवा हवा
इन दोनों गानों की लय और शब्द असल में 80 के दशक में पाकिस्तानी सिंगर हसन जहांगीर के गाए गाने से मिलती जुलती है.
3.साल 2010 की फ़िल्म दबंग. गाना- मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए...
ऐसा ही एक गाना 1993 में उमर शरीफ़ की आई फ़िल्म मिस्टर चार्ली में भी था. गाने के बोल थे- ''लड़का बदनाम हुआ..हसीना तेरे लिए.'' इसी शैली और शब्द का एक गाना बप्पी लाहिड़ी ने भी गाया था.
4. साल 1995 में आई फ़िल्म बेवफा सनम. गाना- अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का...
साल 1970 में आई पाकिस्तानी विछोरा फ़िल्म में नूरजहां का गाया गीत- कोई नवा लारा लाके मैनू बोल जा, झूठयां वे एक और झूठ बोल जा... इस गाने की लय सुनने पर समझ आता है कि बेवफाई को बयां करता और भारत के कस्बों में चलते ऑटो में सुनाई देता ये गाना मूल रूप से कहां से आया है.
5. साल 1996 की फ़िल्म- राजा हिंदुस्तानी. गाना- कितना प्यारा तुझे रब ने बनाया...
1997 में दुनिया छोड़ चुके नुसरत फतेह अली ख़ान ने भी मौत से काफी साल पहले तक एक कव्वाली गाई- किन्ना सोहणा तेनू रब ने बनाया, दिल करे देखता रहूं.
नुसरत फतेह अली के गाने और बॉलीवुड
सोशल मीडिया पर एक ऐसा भी वीडियो देखा जा सकता है, जिसमें एक एंकर नुसरत साहेब से पूछती हैं कि आपको सबसे अच्छा कॉपी किसने किया? इस पर नुसरत जवाब देते हैं- विजु शाह और अनु मलिक ने भी अच्छा कॉपी किया.
म्यूज़िक डायरेक्टर विजु शाह ने मोहरा फ़िल्म में संगीत दिया था. इस फ़िल्म का एक मशहूर गाना है- तू चीज़ बड़ी है मस्त मस्त...
साल 1994 में आई फ़िल्म से कुछ साल पहले नुसरत भी एक कव्वाली गा चुके थे. जिसके बोल थे- दम मस्त कलंदर मस्त, मस्त....सखी लाल कलंदर मस्त मस्त.
ऐसा ही एक गाना साल 1995 में आई फ़िल्म याराना का है. गाने का नाम था- मेरा पिया घर आया...
इस फ़िल्म की रिलीज़ से पहले नुसरत फतेह अली ख़ान की गाई एक कव्वाली आज भी यू-ट्यूब पर सुनी जा सकती है. इस कव्वाली के बोल हैं- मेरा पिया घर आया...
भारतीय फ़िल्मों के भी कई गाने विदेशियों ने कॉपी किए हैं.
2012 में 'एक था टाइगर' फ़िल्म के गाने 'सैयारा' की लय 2013 में माइल किटिक सिंगर ने रकीजा गाने में कॉपी की थी.
2011 में 'रा वन' फ़िल्म के गाने छमक्कछल्लो की लय 2013 में डारा बुबामारा में इस्तेमाल की गई थी.
अब अगर आप कहानी पढ़ते पढ़ते यहां तक आ गए हैं तो आप भी बताइए कोई गाना, जिसकी लय या बोल किसी दूसरे सिंगर ने कॉपी की या यूं कहें कि प्रेरित हुए. (bbc.com)
शाहरुख खान और काजोल की ऑनस्क्रीन जोड़ी बॉलीवुड की सबसे फेवरेट जोड़ियों में से एक है, जिसका क्रेज दर्शकों के दिलो-दिमाग से उतरा नहीं है. दोनों की ही फिल्मों पर फैंस की कड़ी नजर रहती है. सालों तक अपना जलवा बिखेरने वाली इस जोड़ी को सिल्वर स्क्रीन पर देखे हुए कई साल बीत चुके हैं. इस बीच खबर है कि शाहरुख-काजोल की ये ऑल-टाइम फेवरेट जोड़ी एक बार फिर बड़े पर्दे पर नजर आने वाली है. और दोनों को साथ फिर साथ लाने का काम कोई और नहीं, करण जौहर ही करने वाले हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो करण जौहर की अगली फिल्म ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ में शाहरुख खान और काजोल एक छोटी सी भूमिका में साथ नजर आ सकते हैं. फिल्म में दोनों का कोई स्पेशल गाना हो सकता है या फिर कोई खास सीन. इस फिल्म में आलिया भट्ट और रणवीर सिंह मुख्य भूमिकाओं में हैं. फिल्म में धर्मेंद्र, शबाना आजमी और जया बच्चन भी हैं. कहा जा रहा है कि अब शाहरुख-काजोल को भी लाइन-अप में जोड़ा जाएगा.
आखिरी बार ‘दिलवाले’ में आए थे नजर
फिल्म की शूटिंग अभी जारी है. कहा जा रहा है कि काजोल और शाहरुख फिल्म में कैमियो करते नजर आ सकते हैं. दोनों जल्द मुंबई में ही फिल्म में अपने हिस्से की शूटिंग करेंगे. यह फिल्म फरवरी 2023 में सिनेमाघरों में दस्तक देगी. फिलहाल शाहरुख खान और काजोल में से किसी ने भी इस खबर की पुष्टि नहीं की है, लेकिन अगर यह खबर सच है, तो ये दोनों कलाकार 7 साल बाद बड़े पर्दे पर फिर साथ नजर आएंगे. इससे पहले दोनों को आखिरी बार ‘दिलवाले’ में देखा गया था.
शाहरुख और काजोल की आने वाली फिल्में
शाहरुख खान अपनी आने वाली फिल्म ‘पठान में दीपिका पादुकोण और जॉन अब्राहम के साथ नजर आने वाले हैं. इसी के साथ वह ‘3 इडियट्स’ के डायरेक्टर राजकुमार हिरानी की ‘डंकी में तापसी पन्नू के साथ भी जुड़े हुए हैं. शाहरुख इस साल अप्रैल में फिल्म सिटी में बनाए गए सेट पर इस प्रोजेक्ट की शूटिंग भी शुरू कर चुके हैं. शाहरुख ने हाल में तमिल एक्ट्रेस नयनतारा के साथ एटली की फिल्म के लिए शूटिंग की. इस बीच, काजोल रेवती द्वारा निर्देशित ‘द लास्ट हुर्रे’ में दिखाई देंगी.
नई दिल्ली: प्रवर्तन निदेशालय ने जेल में बंद अपराधी सुकेश चंद्रशेखर से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में बॉलीवुड अभिनेत्री जैकलिन फर्नांडिस की 7.27 करोड़ रुपये की संपत्ति अटैच की है. यह संपत्ति एक फिक्स्ड डिपॉजिट है. आपको बता दें कि करीब 200 करोड़ रुपए की मनी लॉन्ड्रिंग केस में प्रवर्तन निदेशालय ने एक्ट्रेस जैकलिन फर्नांडिस के खिलाफ इस कार्रवाई को अंजाम दिया है.
इससे पहले 5 दिसंबर 2021 को देश से बाहर जाने का प्रयास कर रही एक्ट्रेस को मुंबई एयरपोर्ट पर रोक लिया गया था. उनके खिलाफ ED ने लुकआउट नोटिस भी जारी कर रखा है. एक्ट्रेस से ईडी की टीम इस केस में 3 बार पूछताछ कर चुकी है. तिहाड़ जेल में बंद ठग सुकेश चंद्रशेखर के साथ संबंधों को लेकर भी जैकलिन फर्नांडिस से प्रवर्तन निदेशालय ने पूछताछ की है.
प्रवर्तन निदेशालय से जुड़े करीबी सूत्रों की मानें तो एक्ट्रेस जैकलिन और कॉनमैन सुकेश चंद्रशेखर के बीच करीबी रिश्ते थे और वह एक्ट्रेस पर पानी की तरह पैसे लुटाता था. सुकेश चंद्रशेखर ने एक्ट्रेस को गोल्ड और डायमंड जूलरी, इंपोर्टेड क्रॉकरी खरीदकर दी थीं. इनके अलावा 52 लाख रुपए का एक घोड़ा और 9-9 लाख की 4 पर्शियन बिल्लियां भी गिफ्ट की थीं. जैकलिन के लिए सुकेश ने कई चार्टर्ड फ्लाइट्स बुक की थीं. ईडी सूत्रों के मुताबिक सुकेश ने अभिनेत्री पर करीब 10 करोड़ रुपए खर्च किए थे.
सुकेश जमानत पर जेल से बाहर आया, जैकलिन 3 बार मिली थीं
ईडी की जांच में यह भी सामने आया है कि सुकेश ने जैकलिन के लिए दिल्ली से मुंबई और फिर यहां से चेन्नई जाने की चार्टर्ड फ्लाइट बुक की थी. इसके अलावा एक्ट्रेस के फाइव स्टार होटल्स में रुकने का खर्च भी सुकेश चंक्रशेखर ने ही उठाया था. ईडी के पास दोनों के बीच 3 बार हुई मुलाकात की पुख्ता जानकारी है, जिसको लेकर अभिनेत्री से पूछताछ हो चुकी है. दोनों की यह मुलाकात सुकेश के अंतरिम जमानत पर जेल से रिहा होने के बाद हुई थी. वह अभी तिहाड़ जेल में बंद है.
सुकेश ने किया था जैकलिन के साथ रिलेशनशिप में होने का दावा
प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ में सुकेश चंद्रशेखर ने दावा किया था कि वह जैकलिन फर्नांडिस के साथ रिलेशनशिप में रहा है. उसके इस दावे की पुष्टि दोनों की कुछ तस्वीरें करती हैं, जो इंटरनेट पर मौजूद हैं. इनमें एक्ट्रेस और चंद्रशेखर बेहद करीब नजर आ रहे हैं. ईडी के मुताबिक, ये तस्वीरें एक फाइव स्टार होटल की हैं. दूसरी ओर जैकलिन ने सुकेश के साथ किसी तरह के संबंध से इनकार किया है. ईडी की जांच में यह भी सामने आया है कि एक्ट्रेस से सुकेश ने तिहाड़ जेल में रहने के दौरान कई बार फोन पर बात की. (bbc.com)
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मनी लॉन्ड्रिंग केस में बॉलीवुड अभिनेत्री जैकलीन फर्नांडिस के ख़िलाफ़ कार्रवाई की है. ईडी ने जैकलीन की 7.27 करोड़ की संपत्ति को ज़ब्त कर लिया है.
बता दें कि सुकेश चंद्रशेखर और अन्य के ख़िलाफ़ चल रहे आपराधिक मामलों में जैकलीन फर्नांडिस का नाम भी सामने आया था. न्यूज़ एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, श्रीलंकाई नागरिक जैकलीन फर्नांडिस से इस मामले में कई बार प्रवर्तन निदेशालय पूछताछ कर चुका है.
ऐसा आरोप है कि चंद्रशेखर ने जैकलीन फर्नांडिस को उपहार देने के लिए धोखाधड़ी से जुटाए गए अवैध धन का इस्तेमाल किया था.
सुकेश चंद्रशेखर पर फोर्टिस हेल्थकेयर के पूर्व प्रमोटर शिविंदर मोहन सिंह की पत्नी अदिति सिंह समेत कई हाई प्रोफाइल लोगों से धोखाधड़ी का आरोप है.
जैकलीन फर्नांडीस ने पिछले साल अगस्त और अक्टूबर में ईडी को दिए गए अपने बयान में माना था कि उन्हें महंगे बैग्स, ईयर रिंग्स, जूते, ब्रेसलेट समेत कई गिफ्ट सुकेश चंद्रशेखर से मिले थे.
ईडी ने पाया था कि जैकलीन पिछले साल फरवरी से अगस्त में सुकेश की गिरफ्तारी तक उनसे लगातार संपर्क में थीं. (bbc.com)
मुंबई, 22 अप्रैल । सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारतीय सिनेमा देश की सॉफ्ट पावर है जो दुनियाभर में लाखों लोगों के दिलों पर राज करता है।
उन्होंने यहां फिल्म डिवीजन कॉम्प्लैक्स में भारतीय सिनेमा के राष्ट्रीय संग्रहालय (एनएमआईसी) का दौरा करने के बाद यह बात कही।
उन्होंने कहा कि भारतीय सिनेमा ने मनोरंजन के माध्यम से दुनियाभर में भारत की पहचान बनाई है। ठाकुर ने कहा कि दुनिया में सबसे ज्यादा फिल्में भारत में बनती हैं।(भाषा)
मुंबई, 21 अप्रैल। बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार ने एक पान मसाला ब्रांड का विज्ञापन करने के लिए बृहस्पतिवार को अपने प्रशंसकों से माफी मांगी। उन्होंने कहा कि वह इस ब्रांड के प्रचार से खुद को अलग कर रहे हैं।
अक्षय, पान मसाला ब्रांड के प्रचार को लेकर सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं के निशाने पर आ गए थे। उपयोगकर्ताओं ने अभिनेता का एक पुराना वीडियो साझा किया था, जिसमें वह जीवन में कभी भी तंबाकू का प्रचार न करने की बात कहते नजर आ रहे थे।
अभिनेता (54) ने ट्वीट किया, ‘‘ मैं माफी चाहता हूं।’’ उन्होंने बताया कि वह पान मसाला ब्रांड से खुद को अलग कर रहे हैं और इससे अर्जित पूरी राशि किसी ‘‘नेक कार्य’’ के लिए दान करेंगे।
अक्षय ने ट्वीट किया, ‘‘ मैं अपने सभी प्रशंसकों और शुभचिंतकों से माफी मांगना चाहता हूं। पिछले कुछ दिनों में आपकी प्रतिक्रिया ने मुझे बहुत प्रभावित किया है। मैंने तंबाकू का प्रचार न तो किया है और न ही करूंगा, मैं इस संबंध में आपकी प्रतिक्रिया का सम्मान करता हूं...’’
उन्होंने कहा, ‘‘ मैं पूरी विनम्रता के साथ इस ब्रांड से अलग होता हूं। मैंने इससे अर्जित पूरी रकम को किसी नेक कार्य के लिए दान करने का फैसला किया है।’’
अक्षय ने कहा कि संबंधित ब्रांड ‘‘मेरे लिए बाध्यकारी अनुबंध की कानूनी अवधि’’ तक विज्ञापन का प्रसारण जारी रख सकता है।
उन्होंने कहा, ‘‘ हालांकि, मैं भविष्य में विज्ञापनों के चयन में बेहद सावधानी बरतने का वादा करता हूं। इसके बदले में, मैं आपका प्यार और शुभकामनाएं चाहूंगा।’’
इससे पहले, मेगास्टार अमिताभ बच्चन ने भी खुद को एक पान मसाला ब्रांड के विज्ञापन से अलग कर लिया था। उन्होंने इसके प्रचार से अर्जित धनराशि को वापस करने की जानकारी भी दी थी। (भाषा)
-सुशीला सिंह
''मैं सोशल मीडिया पर अपनी क्लीवेज को दिखाकर फ़ोटो पोस्ट करती हूं. मैं राजनीति पर भी अपनी राय खुलकर रखती हूं. कॉमेंट में मुझे लोगों की परेशानी साफ़ दिखाई देती है कि ये लड़की ऐसे कैसे कर सकती है.''
ये हैं ख़्याति श्री के शब्द जो दिल्ली में रहती हैं.
ख़्याति कहती हैं, ''जो मुझे ट्रोल करते हैं मैं उनका वहीं पर कसकर जवाब देती हूं. जब मैं अपने माता पिता को जवाब देती हूं तो जब मुझे कोई ट्रोल करेगा तो उसे मैं क्यों नहीं जवाब दूंगी. इन सब चीजों को भावनात्मक, मानसिक असर पड़ता है लेकिन जब क़ानून व्यवस्था है तो मुझे शर्माने या डरने की क्या ज़रूरत है.''
हाल ही में अभिनेत्री निमरत कौर भी इन ट्रोलर का निशाना बनीं. निमरत कौर को डीप नेकलाइन यानी गहरे गले की ड्रेस पहनने के लिए सोशल मीडिया पर काफ़ी ट्रोल किया गया.
ट्रोल हुईं निमरत
निमरत 'दि कपिल शर्मा शो' में मेहमान के तौर पर आई थीं. अभिनेता अभिषेक बच्चन और निमरत कौर की फ़िल्म दसवीं हाल ही रिलीज़ हुई है.
ट्वविटर पर Dewang@RetardedHurt लिखते हैं, "लेडिज़, मैं वाकई ये जानना चाहता हूं कि इस तरह के आउटफिट को पहनने का क्या मक़सद है, अगर मर्दों को आकर्षित करना है तो क्यों? अगर मर्दों को आकर्षित करना नहीं है तो क्यों?"
सोशल मीडिया पर राय
सोशल मीडिया एक ऐसा ज़रिया है जहां कोई भी अपनी राय रख सकता है लेकिन अपनी राय रखते हुए क्या कोई सीमा होनी चाहिए, वो कैसे और कौन तय करेगा?
पंजाब यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ़ विमेन स्टडीज़ में प्राध्यापिका डॉक्टर अमीर सुल्ताना इस मुद्दे पर कहती हैं, ''हमारा संविधान हमें पूरी आज़ादी देता कि हम स्वतंत्र देश में पूरी आज़ादी और समानता के साथ रहें. अगर निमरत को ड्रेस पसंद है तो किसी को कोई अधिकार नहीं है कि वो इसे लेकर टिप्पणी करे या रोक लगाए.''
उनका कहना हैं, ''जो लोग निमरत को ट्रोल कर रहे हैं उन्हें इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि भारत में कई रीति-रिवाज ऐसे हैं जहां विधवा महिलाओं को ब्लाउज़ पहनने की आज़ादी नहीं है और उसे सारी जिंदगी सफे़द साड़ी में काट देनी होती है, तब इस संस्कृति को क्यों भुला दिया जाता है और तब कोई कॉमेंट क्यों नहीं करता? कभी उनके लिए आवाज़ क्यों नहीं उठाई जाती कि इन महिलाओं को भी पूरे कपड़े , ब्रा या ब्लाउज़ पहनने का अधिकार होना चाहिए और ये ग़लत है?''
हिंदी और मराठी अभिनेत्री प्रिया बापट बीबीसी के साथ अपनी कहानी बयान करते हुए कहती हैं कि उन्होंने इंस्टाग्राम पर छह किलोमीटर भागने के बाद एक तस्वीर डाली थी लेकिन वो इस तस्वीर पर ट्रोल हो जाएंगी उन्हें इसका ज़रा सा भी अंदाज़ा नहीं था.
वे बताती हैं, ''छह किलोमीटर भागने के बाद मेरे चेहरे पर छाया गुलाबी रंग मुझे बहुत अच्छा लगा. वो बड़ा ही प्राकृतिक था क्योंकि भागने के बाद ख़ून सर्कूलेट होता है. वो मुझे अच्छा लगा तो मैंने उसे पोस्ट कर दिया. मुझे लोगों ने ये कह कर ट्रोल करना शुरू कर दिया कि तुम कितनी बुढ़ी लग रही हो, तुम्हें बोटोक्स करा लेना चाहिए, फ़ेस अपलिफ्टमेंट कराना चाहिए.''
वो आगे बताती हैं , ''इस घटना ने मुझे बहुत प्रभावित किया लेकिन फिर मैंने इसे दरकिनार कर केवल अपने काम पर फोकस किया. जब मेरा परिवार मुझ से सवाल पूछेगा कि मैं ये क्या कर रही हूं उस दिन मैं सोचूगीं कि शायद मैं कहीं ग़लत कर रही हूं.''
प्रिया सिटी ऑफ़ ड्रीम्स, वज़नदार, टाइम प्लीज़, आणि काय हवं? जैसी फिल्मों और सीरिज़ में काम कर चुकी हैं. सीटी ऑफ़ ड्रीम्स में उन्होंने समलैंगिक का किरदार निभाया था. जहां एक शॉट की सीन लीक हो गया था जिसके बाद उन्हें काफ़ी ट्रोल किया गया था.
महिलाएं ही क्यों निशाना
प्रिया बापट मानती हैं कि सोशल मीडिया पर महिलाओं को ज्यादा ट्रोल किया जाता है और ये पता होता कि लोग कॉमेंट करेंगें, जिसमें मिलीजुली प्रतिक्रियाएं होंगी और लोग ट्रोल भी करेंगे.
वे सलाह देती हैं कि अगर प्रतिक्रियाएं बुरी मिलती हैं तो अपना ध्यान वहां से हटा लेना चाहिए.
डॉ अमीर सुल्ताना मानती हैं कि ऐसे ट्रोल को दरकिनार करना चाहिए लेकिन वे ये सवाल भी उठाती हैं कि वेशभूषा को लेकर महिलाओं पर ही क्यों निशाना साधा जाता है?
वे कहती हैं ,''अगर कोई पुरुष पारदर्शी कपड़े पहने ,अंडरवियर में दिखे या शरीर के ऊपरी हिस्से पर कुछ ना पहने दिखे तो वहां ये कहा जाता है कि वो सिक्स-पैक ऐब, मैस्कुलैनिटी या मसल पावर दिखा रहा है वहां कोई उसे ट्रोल नहीं करेगा. वहां केवल तारीफ़ होगी कि वाह क्या बॉडी है, सिक्स-पैक ऐब हैं आदि. लेकिन ये कोई नहीं कहता कि आप क्यों एक्सपोज़ कर रहे हैं? जो कि एक ग़लत नज़रिया है.''
लेकिन अगर किसी महिला पर जबरन किसी वेशभूषा को पहनने का दबाव डाला जाता है तो उसकी निंदा ज़रूर की जानी चाहिए.
अक्षय कुमार से प्रेरणा लेती हूं: निमरत कौर
कुछ साल पहले अंग्रेजी के अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने अभिनेत्री दीपिका पादुकोण की एक तस्वीर प्रकाशित की थी और उनके क्लीवेज पर ट्वीट किया था. हालांकि इस ट्वीट को बाद में हटा दिया और अख़बार ने सफ़ाई भी दी थी.
मानसिकता बदलने की ज़रूरत
इस ट्वीट पर दीपिका पादुकोण ने नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए गुस्से में जवाब दिया था और उनके ट्वीट को सात हज़ार से अधिक बार रिट्वीट किया गया था और '#IStandWithDeepikaPadukone' का हैशटैग घंटों तक भारत में ट्रेंड करता रहा था.
एक महिला को उसके स्किल,या विशेषताओं के साथ देखने की बजाए उसके परिधान से जोड़ कर देखा जाना कहीं ना कहीं एक मानसिकता को दर्शाता है.
फेमिनिस्ट फ़िल्म मेकर और लेखिका पारोमिता वोहरा कहती हैं कि जब महिलाएं पब्लिक में होती हैं तो हमेशा उन्हें दबाया जाता है और उसका एक ज़रिया होता है उन पर सेक्शुअली हमला करो. एक महिला की स्वतंत्रता को सेक्शूएल कमेंट और हमला करके नियंत्रित करने की कोशिश होती है.
उनके अनुसार, ''महिला का आदर करना है तो ये मायने नहीं रखता वो क्या पहन रही है. उसके लिए कोई शर्त नहीं रखी जा सकती कि आप ये कपड़े पहनेंगी तो हम आपका आदर करेंगे, वो पहनेंगी तो नहीं करेंगे. आपको एक महिला की निजी पसंद का भी आदर करना होगा.''
हालांकि वे मानती हैं कि समय बदल रहा है और औरतें भी खुलकर सोशल मीडिया पर अपनी राय रख रही हैं लेकिन समाज को भी इस बदलाव को स्वीकार करने के लिए बदलना होगा.(bbc.com)
नयी दिल्ली, 19 अप्रैल। दिल्ली उच्च न्यायालय ने बॉलीवुड के कई निर्माताओं की ओर से एक मीडिया हाउस के खिलाफ दर्ज कराए गए मामले को बंद कर दिया है। दोनों पक्षों के बीच समझौता होने के कारण ऐसे किया गया।
मीडिया हाउस ने लिखित में दिया कि वह किसी भी ऐसे समाचार को प्रकाशित या प्रसारित नहीं करेगा जो सामूहिक रूप से बॉलीवुड उद्योग के लिए अपमानजनक हो और वह विषय वस्तु नियमों का पालन करेगा।
चार बॉलीवुड उद्योग संघों और 34 प्रमुख निर्माताओं ने कई समाचार चैनलों और मीडिया घरानों को फिल्म उद्योग के खिलाफ कथित रूप से गैर-जिम्मेदार, अपमानजनक टिप्पणी करने और विभिन्न मुद्दों पर अपने सदस्यों के खिलाफ मीडिया ट्रायल करने से रोकने के लिए 2020 में मामला दायर किया था।
न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा ने एक प्रतिवादी मीडिया हाउस द्वारा दिए गए हलफनामे को स्वीकार कर लिया। (भाषा)


