चर्चित सोशल एक्टिविस्ट फ़ादर स्टेन स्वामी राँची में गिरफ़्तार कर लिए गए हैं. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की मुंबई से आई एक टीम ने गुरुवार की देर शाम उन्हें गिरफ़्तार किया.
उनकी गिरफ्तारी 'बगईचा' स्थित उनके दफ्तर से की गई. 83 साल के स्टेन स्वामी अपने दफ्तर के ही एक कमरे में अकेले रहते हैं.
उन पर भीमा कोरेगांव मामले में संलिप्तता का आरोप है. एनआईए ने उन पर आतंकवाद निरोधक क़ानून (यूएपीए) की धाराएं भी लगाई हैं.
केंद्र की मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार ने साल 1967 में बने इस क़ानून (यूएपीए) में पिछले साल संशोधन किया था.
तब विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों ने इसका कड़ा विरोध किया था क्योंकि, इस संशोधन के जरिये न केवल संस्थाओं बल्कि व्यक्तियों को भी आतंकवादी घोषित किया जा सकता है.
आदिवासियों के अधिकारों के लिए मुखर रहे स्टेन स्वामी पर यूएपीए के साथ भारतीय दंड विधान (आइपीसी) की कई और संगीन धाराएं लगाई गई हैं.
एनआईए ने इस गिरफ़्तारी को मीडिया के लिए सार्वजनिक नहीं किया है लेकिन बीबीसी के पास वह आधिकारिक पत्र (मेमो) है, जिसमें एनआईए के इंस्पेक्टर अजय कुमार कदम ने स्टेन स्वामी को गिरफ़्तार किए जाने की पुष्टि की है. इसकी एक प्रति स्टेन स्वामी को भी दी गई है.
उनके सहयोगी पीटर मार्टिन ने बीबीसी से इसकी पुष्टि की.
पीटर मार्टिन ने कहा, "एनआईए के अधिकारियों ने हमें उनके कपड़े और सामान लाने का निर्देश दिया है. हमें ये सारा सामान रात में ही पहुंचा देने की सलाह दी गई है."
"अभी यह नहीं बताया गया है कि एनआईए की टीम उन्हें रांची कोर्ट में हाज़िर कराएगी या वे सीधे मुंबई ले जाए जाएंगे. हम लोग इसे लेकर चिंतित हैं. क्योंकि, फादर स्टेन स्वामी की उम्र काफी अधिक है और वो बीमार भी रहते हैं."
कैसे हुई गिरफ़्तारी?
झारखंड जनाधिकार महासभा से जुड़े सिराज दत्ता ने बीबीसी को बताया कि गुरुवार की देर शाम स्टेन स्वामी के दफ्तर पहुंची एनआईए की टीम ने उनसे करीब आधे घंटे तक पूछताछ की.
टीम में शामिल लोगों ने इस दौरान सामान्य शिष्टाचार भी नहीं बरता. उन लोगों ने गिरफ़्तारी या सर्च करने का कोई वारंट भी नहीं दिखाया.
बातचीत के दौरान और उसके बाद की कार्रवाईयों को लेकर पारदर्शिता भी नहीं बरती गई.
वे स्टेन स्वामी को लेकर एनआईए के कैंप कार्यालय चले गए और कई घंटे बाद उनकी गिरफ़्तारी का आधिकारिक पत्र सौंपा.
जबकि उन्होंने (स्टेन स्वामी) दो दिन पहले ही एक बयान जारी कर कहा था कि एनआईए उन पर झूठे आरोप लगा रही है.
स्टेन स्वामी का बयान
स्टेन स्वामी ने छह अक्टूबर को कहा था कि एनआईए ने 27-30 जुलाई और 6 अगस्त को उनसे करीब 15 घंटे तक पूछताछ की थी. इसके बाद भी वे मुझे मुंबई बुलाना चाहते थे.
यूट्यूब पर झारखंड जनाधिकार महासभा द्वारा जारी किए गए इस वीडियो में स्टेन स्वामी ने कहा था, "एनआईए के अधिकारियों ने पूछताछ के दौरान मेरे सामने कई वैसे दस्तावेज रखे, जो कथित तौर पर मेरे संबंध माओवादियों से होने का खुलासा करते हैं."
उन्होंने कहा था, "उन लोगों ने दावा किया कि ये दस्तावेज और जानकारियां एनआईए को मेरे कंप्यूटर से मिली हैं. तब मैंने उन्हें कहा कि यह साजिश है और ऐसे दस्तावेज चोरी से मेरे कंप्यूटर में डाले गए हैं. इसलिए मैं इन्हें खारिज करता हूं."
"एनआईए की ताज़ा जांच का उस भीमा कोरेगांव मामले से कोई संबंध नहीं है, जिसमें मुझे आरोपी माना गया है. एनआईए मेरा संबंध माओवादियों से होने का झूठा आरोप साबित करना चाहती है. मैंने इसका खंडन भी किया है."
"मेरा सिर्फ इतना कहना है कि जो आज मेरे साथ हो रहा है वैसा कई और लोगों के साथ भी हो रहा है. सामाजिक कार्यकर्ता, वकील, लेखक, पत्रकार, छात्र नेता, कवि, बुद्धिजीवी और अन्य अनेक लोग, जो आदिवासियों, दलितों और वंचितों के लिए आवाज उठाते हैं और देश की वर्तमान सत्तारुढ़ ताकतों की विचारधाराओं से असहमति जताते हैं, उन्हें विभिन्न तरीकों से परेशान किया जा रहा है."
रांची पुलिस को जानकारी नहीं
एनआईए ने अपनी कार्रवाई के बाबत झारखंड पुलिस को कोई जानकारी नहीं दी थी. लोगों से मिली जानकारी के बाद रांची पुलिस की एक टीम स्टेन स्वामी के दफ्तर पहुंची.
तब तक एनआईए अधिकारी स्टेन स्वामी को लेकर वहां से निकल चुके थे.
रांची के एसएसपी सुरेंद्र कुमार झा ने गुरुवार रात पौने दस बजे बीबीसी को बताया कि स्टेन स्वामी को ले जाए जाने की जानकारी उन्हें उनके अधिकारियों ने दी है. उन्होंने कहा, "एनआईए ने इससे संबंधित कोई आधिकारिक सूचना हमसे साझा नहीं की है. हमें इसकी पूर्व सूचना भी नहीं दी गई थी."
कौन हैं स्टेन स्वामी?
पिछले तीन दशक से झारखंड में काम कर रहे फादर स्टेन स्वामी की पहचान देश के जाने-माने सोशल एक्टिविस्ट के तौर पर है.
मूल रूप से तमिलनाडु के रहने वाले स्टेन स्वामी ने शादी नहीं की है.
भारत और फिलीपींस के कुछ नामी संस्थानों में समाज शास्त्र की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने बंगलुरू स्थित इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट के साथ काम किया.
इस दौरान उन्हें आदिवासियों के बारे में जानने-समझने का मौका मिला. फिर वो झारखंड (तब बिहार) आ गए और यहीं रहने लगे.
शुरुआती दिनों में उन्होंने यहां के सिंहभूम इलाक़े में बतौर पादरी काम किया. इसके साथ ही वो आदिवासी अधिकारों की लड़ाई लड़ने लगे और पादरी का काम छोड़ दिया.
उन्होंने विस्थापन के ख़िलाफ़ बड़ी लड़ाई लड़ी और झारखंड की जेलों में बंद उन हजारों आदिवासियों का मामला कोर्ट में उठाया, जिन्हें विचाराधीन कैदियों तौर पर बंद रखा गया है.
वो मौजूदा केंद्र सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण क़ानून में संशोधन, वनाधिकार क़ानून लागू करने को लेकर कथित सरकारी उदासीनता, झारखंड की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार द्वारा लैंड बैंक के निर्माण, आदिवासियों को नक्सल बताकर उनके ख़िलाफ़ लगाए जा रहे देशद्रोह के आरोपों के ख़िलाफ़ मुखर रहे हैं.
उन्होंने संविधान की पांचवी अनुसूची के तहत आदिवासियों को मिले विशेषाधिकार की रक्षा, समता जजमेंट, पेसा कानून आदि को लेकर कई लड़ाइयां लड़ी हैं.
साल 2018 में बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि सरकार मुझे देशद्रोही कहती है क्योंकि मैं वंचितों के अधिकारों की बात करता हूं.
उन्होंने अपने ताज़ा बयान में भी खलिल जिब्रान की इन पंक्तियों का उल्लेख किया है-
'जीवन और मृत्यु एक है,
जैसे नदी और समुन्दर एक है.'(bbc)