राष्ट्रीय
तिरुवनंतपुरम, 31 जुलाई | सज्जाद थंगल 45 साल बाद शनिवार की शाम को अपने घर लौट आये। जहां उनका स्वागत करने के लिए उनकी 92 वर्षीय मां इंतजार कर रही थीं। थंगल ने कहा, "क्या अधिक खुशी इस तुलना में मेरे लिए है। यह भगवान की इच्छा है और ऐसा हुआ है और भगवान के पास सभी के लिए एक योजना है।" इसके बाद थंगल ने अपने वृद्ध मां को गले लगाया और वह कोल्लम के पास अपने घर पहुंच गये।
"मैंने हमेशा इस दिन के लिए प्रार्थना की है और अंत में मेरी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया गया है क्योंकि आप मेरे साथ वापस आ गए हैं। मेरी गहरी इच्छा थी कि मैं मरने से पहले, मैं आपको देखना चाहता हूं और यह हुआ है।" बेटे का इंतजार करने वाली मां ने कहा अपने बेटे को एक बार फिर देखने की उसकी जीवन भर की लालसा, उसे अपनी बांहों में पकड़ ले।
थंगल 19 साल के थे, जब उन्होंने 1972 में एक जहाज पर यूएई के लिए अपना घर छोड़ा और एक सांस्कृतिक संगठन में स्टोर कीपर के रूप में काम करना शुरू किया।
वह आखिरी बार 1976 में अपने घर आए थे, जब वे एक सांस्कृतिक मंडली के साथ गए थे, जिसमें तत्कालीन ग्लैमरस अभिनेत्री रानी चंद्रा भी शामिल थीं।
लेकिन थंगल के लिए चीजें खट्टी हो गईं क्योंकि कई लोगों ने सोचा कि अभिनेत्री के साथ उनकी भी मृत्यु हो गई, जब मुंबई से चेन्नई जाने वाली दुर्भाग्यपूर्ण इंडियन एयरलाइन की उड़ान टेकऑफ के तुरंत बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गई, जिसमें सभी की मौत हो गई थी।
कई लोगों को लगा कि थंगल भी फ्लाइट में हैं, लेकिन ऐसा नहीं था। दुर्घटना से बुरी तरह परेशान थंगल ने हर चीज से दूर रहने का फैसला किया।
पिछले हफ्ते ही एक टीवी कार्यक्रम के माध्यम से उनके रिश्तेदारों को पता चला कि वह जीवित है और मुंबई के पनवेल में एक वृद्धाश्रम में है। जल्द ही उनके रिश्तेदारों का एक समूह मुंबई में उतरा और उन्हें वापस ले आया।
इस मौके पर अपने खोए हुए बेटे को पाने के लिए 100 से अधिक लोग मौजूद थे, जिनमें उनके 2 साल के बच्चे से लेकर 92 साल की मां तक के रिश्तेदार शामिल थे।
उनके गांव ने उनके घर पर एक नागरिक रिसेप्शन का आयोजन किया और खुशी के अवसर को चिह्न्ति करने के लिए एक केक काटा गया और स्थानीय विधायक कोवूर कुंजुमन भी मौजूद थे।(आईएएनएस)
पटना, 31 जुलाई | नक्सलियों के एक समूह ने शनिवार सुबह पटना-कोलकाता मार्ग पर स्थित एक रेलवे स्टेशन पर हमला किया और स्टेशन मास्टर को करीब आधे घंटे तक बंधक बनाकर रखा। नक्सलियों ने स्टेशन की इमारत को भी बम से उड़ाने की धमकी दी। चौरा रेलवे स्टेशन की घेराबंदी के कारण मार्ग पर 4 घंटे से अधिक समय तक रेलवे संचालन बाधित रहा, यह नक्सल प्रभावित इलाका जमुई जिले में आता है।
पुलिस की वर्दी में नक्सली सुबह करीब छह बजे चौरा पहुंचे और स्टेशन मास्टर विनय कुमार के केबिन में घुस गए। उन्होंने कुमार को ऑपरेशन रोकने का आदेश दिया क्योंकि वे क्षेत्र में नक्सली सप्ताह मना रहे थे।
स्टेशन पर मौजूद एक और कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, जब स्टेशन मास्टर ने उनसे पूछा कि वह ऐसा क्यों कर रहे हैं, तो उन्होंने खुद को नक्सली बताया और अपने हथियार निकाल लिए।"
उन्होंने कहा, रेलवे स्टेशन पर मौजूद ज्यादातर अधिकारी हैरान रह गए। यह एक तनावपूर्ण क्षण था जब उन्होंने स्टेशन परिसर के अंदर सशस्त्र नक्सली को देखा। कुछ समय बाद, हालांकि स्टेशन मास्टर विनय कुमार सहित अधिकारी भागने में सफल रहे।
जमुई के अधीक्षक प्रमोद कुमार मंडल ने घटना की पुष्टि की है, मंडल ने कहा, "हमने रेलवे ट्रैक और रेलवे स्टेशन सहित पूरे इलाके में तलाशी अभियान शुरू किया है और फिर रेलवे अधिकारियों को इस मार्ग पर परिचालन फिर से शुरू करने के लिए हरी झंडी दे दी है।"
रास्ते में विभिन्न रेलवे स्टेशनों पर हिमगिरी एक्सप्रेस जैसी प्रमुख ट्रेनों को रोक दिया गया।
पुलिस और सीआरपीएफ के अधिकारियों ने पूरे इलाके की जांच की और हरी झंडी देने के बाद रेलवे को सुचारु रूप से फिर से शुरू किया गया है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 31 जुलाई | हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश के कारण अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन के बीच बचाव और राहत कार्यों के दौरान सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के दो अधिकारियों की जान चली गई है। राज्य में राहत एवं बचाव अभियान के दौरान बीआरओ ने एक इंजीनियर और एक परियोजना अधिकारी को खो दिया है।
लाहौल और स्पीति घाटी में, रणनीतिक मनाली-सरचू मार्ग कई स्थानों पर कई भूस्खलन के कारण यातायात के लिए बंद कर दिया गया था। बीआरओ ने एक बयान में कहा, "बचाव और सड़क साफ करने के अभियान के लिए कर्मियों और उपकरणों के साथ तुरंत अपने प्रशिक्षित इंजीनियरिंग टास्क फोर्स को भेजा है।"
29 जुलाई को मनाली लेह रोड पर बारालाचला र्दे से पहले सरचू के पास ऐसे ही एक हिस्से में महिलाओं और बच्चों सहित कई नागरिक फंसे हुए थे और ऊंचाई वाली परिस्थितियों में ऑक्सीजन की कमी के कारण समस्याओं का सामना करना पड़ा था।
बीआरओ टीम ने 14,480 फीट की ऊंचाई पर स्थित केनलुंग सराय के पास कई अन्य भूस्खलनों के बीच सड़क को साफ किया और लोगों को बचाया गया है।
हालांकि, बचाव प्रयासों में शामिल दीपक प्रोजेक्ट के नायक रीतेश कुमार पाल की जान चली गई। बाद में सड़क को यातायात के लिए खोल दिया गया।
27 जुलाई, 2021 को एक अन्य घटना में, भारी भूस्खलन के कारण अवरुद्ध किलर-टांडी सड़क की निकासी के लिए बीआरओ के एक अलग इंजीनियर टास्क फोर्स को तैनात किया गया है। क्षेत्र में दो यात्री वाहन फंसे हुए हैं।
टीम ने पहले ही रास्ते में दो भूस्खलन को साफ कर दिया था, टीम ने स्लाइड जोन में फंसे नागरिकों के जीवन को बचाने के लिए देर रात निकासी अभियान चलाया।
ऑपरेशन के दौरान, टीम के कुछ सदस्य, छह नागरिक और एक वाहन अचानक आई बाढ़ में बह गए। घटना में कनिष्ठ अभियंता राहुल कुमार की मौत हो गई, जबकि अन्य को बीआरओ कर्मियों ने बचा लिया।
बाद में बीआरओ कर्मियों ने भूस्खलन को साफ किया, फंसे हुए यात्रियों को बचाया और उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है। (आईएएनएस)
सोलापुर (महाराष्ट्र), 31 जुलाई | भारत के दूसरे सबसे लंबे समय तक विधायक रहे और पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी (पीडब्ल्यूपी) के वरिष्ठ नेता गणपतराव देशमुख का शुक्रवार देर रात यहां एक निजी अस्पताल में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। पारिवारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी है। वह 95 वर्ष के थे और उनका अंतिम संस्कार शनिवार दोपहर यहां सांगोले में किया जाएगा।
नम्रता और सरलता के प्रतीक देशमुख 1962 के बाद से सांगोले सीट से 11 बार महाराष्ट्र विधानसभा के लिए चुने गए थे।
वह भी केवल दो बार चुनाव हारे, पहली बार 1972 में और फिर 1995 में - दूसरी बार उन्हें अपने ही पोते ने हराया, लेकिन लगभग 190 वोटों के मामूली अंतर से।
देशमुख ने 1978 में कुछ समय के लिए मंत्री के रूप में कार्य किया, जब शरद पवार मुख्यमंत्री थे ।
2019 में, देशमुख ने सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने का फैसला किया।
तमिलनाडु के दिवंगत सीएम और डीएमके सुप्रीमो एम. करुणानिधि सबसे लंबे समय तक विधायक रहे थे।
महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस ने देशमुख के निधन पर शोक व्यक्त किया है। (आईएएनएस)
तिरुवनंतपुरम, 31 जुलाई | केरल में एक दुष्कर्म पीड़िता ने उसका यौन शोषण करने वाले एक कैथोलिक पादरी 53 वर्षीय रॉबिन वडक्कुमचेरी से शादी करने की अनुमति के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। पादरी रॉबिन को दुष्कर्म के लिए 20 साल जेल की सजा सुनाई गई है और उसे वेटिकन द्वारा पादरी के पद से भी बर्खास्त कर दिया गया है।
पीड़िता की ओर से दायर याचिका अब सोमवार को शीर्ष अदालत में आएगी और पीड़िता ने उसके साथ यौनाचार करने वाले रॉबिन के लिए जमानत भी मांगी है, ताकि उनकी शादी हो सके।
याचिकाकर्ता का कहना है कि यह याचिका उसकी इच्छा के अनुसार दायर की गई है।
इससे पहले, रॉबिन ने भी पीड़िता से शादी करने की मांग वाली एक याचिका के साथ केरल हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन अदालत ने तब इसे ठुकरा दिया था।
रॉबिन कन्नूर के पास एक पैरिश पादरी के रूप में सेवा कर रहा था और चर्च समर्थित स्कूल का प्रबंधक था, जहां पीड़िता 11वीं कक्षा की छात्रा थी।
स्कूल के बच्चों के बीच काम करने वाली चाइल्ड लाइन एजेंसी ने पुजारी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी।
प्रबंधन द्वारा चलाए जा रहे अस्पताल में 7 फरवरी, 2017 को पीड़िता के बच्चे को जन्म देने के बाद पुजारी पर दबाव बढ़ गया था।
पुजारी को 27 फरवरी, 2017 को कोच्चि अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास से गिरफ्तार किया गया था, जब वह देश से बाहर जाने की तैयारी कर रहा था।
यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉस्को) अधिनियम के तहत मुकदमा चलाने के बाद पुजारी को 17 फरवरी, 2019 को थालास्सेरी की एक अदालत ने 20 साल कैद की सजा सुनाई थी।
सुनवाई के दौरान पीड़िता और उसकी मां मुकर गई। मगर इसके बावजूद, अदालत पहले से एकत्र किए गए सबूतों के आधार पर आगे बढ़ी और फैसला सुनाया।
चार नन, एक अन्य पादरी और कॉन्वेंट से जुड़ी एक और महिला, जो पुलिस चार्जशीट में सह-आरोपी थे, को पर्याप्त सबूतों के अभाव में छोड़ दिया गया।
संयोग से पिछले साल मार्च में, मंथवाडी (वायनाड जिले में) सूबे के अधिकारियों ने मीडिया को सूचित किया कि वेटिकन ने सारी प्रक्रिया से गुजरने के बाद रॉबिन को उसके पद से बर्खास्त करने का फैसला किया। (आईएएनएस)
इंटरगवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज से जुड़े वैज्ञानिक अगस्त में जलवायु को लेकर किए गए अपने मूल्यांकन की प्रारंभिक रिपोर्ट जारी करने वाले हैं. आइए जानें कि आईपीसीसी है क्या और क्यों इस पर पूरे विश्व की नजरें लगी हैं.
डॉयचे वैले पर अजीत निरंजन की रिपोर्ट
आईपीसीसी जलवायु संकट के मुद्दे पर काम कर रही है. यह एक ऐसा मुद्दा है जो पूरी धरती के लिए चिंता का कारण बनता जा रहा है. आईपीसीसी की रिपोर्ट सरकार, कारोबारी नेताओं और यहां तक कि युवा प्रदर्शनकारियों को भी प्रभावित करती है. फिर भी, ऐसे कई लोग होंगे जिन्होंने आज तक इंटरगवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के बारे में शायद नहीं सुना होगा.
आईपीसीसी - संयुक्त राष्ट्र की एक इकाई है जो जलवायु विज्ञान और जलवायु परिवर्तन का मूल्यांकन करती है. इससे जुड़े वैज्ञानिक तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन के मौजूदा प्रभाव और इसकी वजह से भविष्य में आने वाले खतरों की समीक्षा करते हैं. साथ ही, इससे होने वाले नुकसान को कम करने और दुनिया के तापमान को स्थिर रखने के विकल्पों के बारे में बताते हैं.
विश्व मौसम विज्ञान संगठन और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने 1988 में आईपीसीसी को स्थापित किया था. यह संगठन जलवायु के बारे में मूल्यांकन करके कुछ सालों के अंतराल पर रिपोर्ट जारी करता है. इसे आसान भाषा में जारी किया जाता है, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसे पढ़ सकें.
आईपीसीसी दुनिया भर से सैकड़ों वैज्ञानिकों को चुनती है, ताकि वे साथी वैज्ञानिकों, सरकार, और उद्योग जगत से जुड़ी रिपोर्टों की समीक्षा करने के बाद मूल्यांकन रिपोर्ट जारी कर सकें. इस दौरान जलवायु परिवर्तन की स्थिति को जानने और उसके प्रभावों को बेहतर तरीके से समझने के लिए हजारों रिपोर्टों और शोध से जुड़े लेखों का अध्ययन किया जाता है.
हाल के वर्षों में संगठन की ओर से विशेष रिपोर्टों की एक सीरीज प्रकाशित की गई थी. इसमें 1.5 डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वार्मिंग वाले ग्रह पर रहने और जलवायु परिवर्तन की वजह से जमीन, महासागरों, और बर्फीली जगहों पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में जानकारी दी गई थी.
भविष्यवाणी नहीं, अनुमान
आईपीसीसी के जलवायु वैज्ञानिक इस बात पर जोर देते हैं कि वे सरकारों को यह नहीं बताते कि करना क्या है, बल्कि वे संभावित नीतिगत विकल्पों का आकलन करते हैं. वे कहते हैं कि उनका निष्कर्ष भविष्यवाणी नहीं है, बल्कि वार्मिंग की वजह से होने वाली अलग-अलग घटनाओं के आधार लगाया गया अनुमान है.
मूल्यांकन रिपोर्ट जारी करने से पहले, आईपीसीसी सरकार और नीति निर्माताओं के लिए खास जानकारी प्रकाशित करते हैं. यह जानकारी विशेषज्ञों द्वारा तैयार की जाती है और संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश इनकी पूरी तरह समीक्षा करते हैं. साथ ही, सर्वसम्मति से मंजूरी देते हैं. इस रिपोर्ट से नीति निर्माताओं को भविष्य की योजना बनाने में मदद मिलती है.
जलवायु परिवर्तन की स्थिति पर आईपीसीसी की तरफ से कुछ सालों के अंतराल पर प्रकाशित की जाने वाली मूल्यांकन रिपोर्ट इन समीक्षाओं के बिना प्रकाशित नहीं की जा सकती. पिछली रिपोर्ट 2014 में प्रकाशित की गई थी जो इस संगठन की पांचवी रिपोर्ट थी. इस रिपोर्ट के आधार पर ही जलवायु परिवर्तन पर 2015 के पेरिस समझौते में यह तय किया गया कि इस सदी के अंत तक ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर बनाए रखना है.
अगली मूल्यांकन रिपोर्ट
जुलाई 2021 के अंत में, लगभग 200 देशों ने जलवायु परिवर्तन पर आईपीसीसी की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट के पहले भाग की समीक्षा शुरू की है. अगस्त में प्रकाशित होने के बाद, संभवत: नवंबर में ग्लासगो में होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) में इससे जुड़े फैसलों की घोषणा की जाएगी. मूल्यांकन से जुड़ी पूरी रिपोर्ट 2022 में जारी होगी.
कई वैज्ञानिक और विशेषज्ञ आईपीसीसी की आलोचना भी करते हैं. उदाहरण के लिए, आईपीसीसी पर यह आरोप लगाया गया कि संगठन जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल करने वाली ऐसी कंपनियों पर कार्रवाई करने में असफल रहा, जो उत्सर्जन में कमी करने के प्रयासों में बाधक बनें.
हालांकि, वैज्ञानिक समुदाय और मीडिया में, आईपीसीसी की रिपोर्टों को जलवायु परिवर्तन से जुड़े विस्तृत और विश्वसनीय आकलन के तौर पर देखा जाता है. 2007 में, आईपीसीसी को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. (dw.com)
इस्लामाबाद में हाल ही में 27 साल की नूर मुकादम को पहले गोली मारी गई और इसके बाद उसके सिर को धड़ को अलग कर दिया गया. जानकार कहते हैं कि नूर की हत्या पाकिस्तानी समाज में महिलाओं के प्रति जहरीली मानसिकता को उजागर करती है.
डॉयचे वैले पर एस खान की रिपोर्ट
नूर मुकादम दक्षिण कोरिया में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत की बेटी थी. 20 जुलाई को इस्लामाबाद में नूर की बेरहमी से हत्या कर दी गई. इस हत्या का आरोप जहीर जमीर जाफर पर लगा जो नूर को पहले से जानता था. पुलिस की रिपोर्ट के मुताबिक, जहीर ने पहले नूर को गोली मारी और फिर उसके सिर को काटकर धड़ से अलग कर दिया.
पाकिस्तान में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएं बड़े पैमाने पर दर्ज की जाती हैं, लेकिन हाल ही में ऐसी हत्या की घटनाओं ने इस दक्षिण एशियाई देश को झकझोर कर रख दिया है. दक्षिणी सिंध प्रांत में पिछले रविवार को एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी को जलाकर मार डाला, जबकि शिकारपुर शहर में उसी दिन एक अन्य व्यक्ति ने अपनी पत्नी, अपनी चाची, और दो नाबालिग बेटियों की गोली मारकर हत्या कर दी. इससे एक दिन पहले रावलपिंडी में 30 साल की महिला के साथ बलात्कार किया गया और फिर छुरा घोंपकर बुरी तरह से घायल कर दिया गया. अगले दिन उस महिला की मौत हो गई.
सिंध प्रांत में 18 जुलाई को एक महिला को उसके पति ने पीट-पीटकर मार डाला. पिछले महीने पेशावर में एक शख्स ने 'इज्जत' के नाम पर अपनी पूर्व पत्नी समेत दो महिलाओं की हत्या कर दी थी.
हाल की घटनाओं ने एक नई बहस छेड़ दी है कि सरकार महिलाओं की सुरक्षा क्यों नहीं कर पा रही है? क्या लोगों के बीच कानून का डर समाप्त हो गया है? क्या समाज महिलाओं को आजादी से जीने नहीं देना चाहता या समाज में महिलाओं को प्रताड़ित करने की प्रवृति बढ़ रही है? आखिर इन सब की वजह क्या है?
दोषियों को सजा न देने संस्कृति
महिलाओं के लिए दुनिया के खतरनाक देशों के तौर पर पाकिस्तान का छठा स्थान है. देश में महिलाओं के प्रति तेजी से बढ़ रहे घरेलू और यौन हिंसा के मामले इसकी गवाही देते हैं. महिलाओं के अधिकार के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा में हालिया वृद्धि के लिए ‘सजा न देने की संस्कृति' जिम्मेदार है.
बलूचिस्तान प्रांत की पूर्व सांसद यास्मीन लहरी ने डॉयचे वेले को बताया, "एक युवा महिला वकील को 12 से अधिक बार चाकू मारने वाले व्यक्ति को हाल ही में अदालत ने रिहा कर दिया था. इससे महिलाओं के खिलाफ हिंसा को अंजाम देने वाले अपराधियों को क्या संदेश मिलता है?”
महिला अधिकार कार्यकर्ता मुख्तार माई का भी यही मानना है. वह डॉयचे वेले को बताती हैं, "महिलाओं के खिलाफ हिंसा करने वाले लोग कानून से नहीं डरते हैं. अधिकांश पाकिस्तानी किसी महिला की पिटाई को हिंसा नहीं मानते हैं. पाकिस्तानी समाज अभी भी सामंती और आदिवासी परंपराओं में उलझा हुआ है.” साल 2002 में मुख्तार माई के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था.
पितृसत्तात्मक समाज और धर्म
अन्य कार्यकर्ताओं का भी कहना है कि पितृसत्तात्मक समाज महिलाओं के खिलाफ हिंसा के पीछे की मुख्य वजह है. लाहौर की रहने वाली महिला आधिकार कार्यकर्ता महनाज रहमान कहती हैं, "महिलाओं को सिखाया जाता है कि वे पुरुषों की बात मानें, क्योंकि परिवार में उनकी स्थिति बेहतर होती है. जब कोई महिला अपने अधिकारों की मांग करती है, तो उसे अक्सर हिंसा का शिकार होना पड़ता है.”
लाहौर की रहने वाली कार्यकर्ता शाजिया खान का मानना है कि कुछ मामलों में, धार्मिक शिक्षाओं से पुरुषों को प्रोत्साहन मिलता है. वह कहती हैं, "इस्लामी मौलवी धर्म की व्याख्या इस तरह से करते हैं जिससे यह आभास होता है कि पुरुषों को महिलाओं को दबाकर रखना चाहिए. वे कम उम्र में शादियों का समर्थन भी करते हैं. साथ ही, महिलाओं से यह कहा जाता है कि वे अपने पति की हर बात मानें. अगर पति हिंसा करे, तो भी उसका विरोध न करें. दरअसल, ये मौलवी पुरुषों को महिलाओं के खिलाफ हिंसा करने के लिए उकसाते हैं.”
पीड़ित को ही दोषी ठहराना
पाकिस्तान में कई अधिकार कार्यकर्ता देश में महिलाओं के खिलाफ हिंसा में वृद्धि के लिए प्रधानमंत्री इमरान खान के "पीड़िता को दोषी ठहराने" की नीति को जिम्मेदार मानते हैं. पिछले महीने पीएम इमरान खान ने कहा था, "यदि एक महिला बहुत कम कपड़े पहनती है, तो किसी भी आदमी पर इसका असर होगा, अगर वे रोबोट नहीं हैं. अमेरिकी ब्रॉडकास्टर एचबीओ की तरफ से प्रसारित होने वाली डॉक्युमेंट्री-न्यूज सीरीज एक्सियोस के लिए साक्षात्कार के दौरान खान ने इसे "कॉमन सेन्स" वाली बात बताया था. इमरान खान की इस टिप्पणी की तीखी आलोचना हुई.
यह पहला मौका नहीं था जब इमरान खान ने महिलाओं को लेकर इस तरह की टिप्पणी की. इस साल की शुरुआत में, उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि पाकिस्तान में यौन हिंसा में वृद्धि देश में "पर्दा" की कमी के कारण हुई है.
महिला अधिकार कार्यकर्ता साजिया खान कहती हैं, "पीएम खान और उनके मंत्री अक्सर महिला विरोधी टिप्पणी करते हैं. इससे पाकिस्तान में महिलाओं के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा मिलता है.”
पूर्व सांसद यास्मीन लहरी का मानना है कि खान की सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए कुछ नहीं किया है. इसके बजाय, सरकार महिलाओं के खिलाफ अत्याचार रोकने के लिए एक विधेयक लाई गई जो अभी तक पास नहीं हुई है.
पश्चिमी संस्कृति को दोष देते हैं रूढ़िवादी
पीएम इमरान खान की तरह, देश के रूढ़िवादी वर्ग भी महिलाओं के खिलाफ यौन और शारीरिक हिंसा के लिए "पश्चिमी संस्कृति" को जिम्मेदार ठहराते हैं. पूर्व सांसद सामिया राहील काजी का कहना है कि हिंसा की हालिया घटनाओं में ऐसे लोग शामिल हैं जो इस्लामी शिक्षाओं से दूर हो गए हैं.
काजी ने डॉयचे वेले को बताया, "नूर मुकादम मामले में कथित अपराधी नास्तिक है. देश में पश्चिमी संस्कृति के बढ़ते प्रभावों के बीच पारिवारिक व्यवस्था कमजोर हो रही है और इस तरह के अपराध बढ़ रहे हैं.” सांसद किश्वर जेहरा भी काजी की बातों का समर्थन करती हैं और कहती हैं, "हमें इन अपराधों को रोकने के लिए अपने पारिवारिक मूल्यों को फिर से वापस पाना होगा.” (dw.com)
कोरोना की पहली लहर के दौरान भारत के शराब कारोबार को भारी घाटा हुआ था लेकिन इस साल कोरोना की दूसरी लहर में लगे लॉकडाउन के दौरान शराब कारोबार को खास नुकसान नहीं झेलना पड़ा. बल्कि बीयर समेत कई अन्य शराबों की बिक्री बढ़ी.
डॉयचे वैले पर अविनाश द्विवेदी की रिपोर्ट
साल 2020 में भारत के शराब निर्माताओं और दुकानदारों को करोड़ों लीटर शराब नाली में बहानी पड़ी थी. मार्च 2020 के अंत में लगे देशव्यापी लॉकडाउन के चलते ऐसा हुआ था. खासकर बीयर को लॉकडाउन की सबसे ज्यादा मार झेलनी पड़ी थी क्योंकि इसे लंबे समय तक स्टोर करके नहीं रखा जा सकता और इसकी सबसे ज्यादा बिक्री भी गर्मियों में ही होती है. एक अनुमान के मुताबिक भारत में साल भर में बिकने वाली कुल बीयर की 60 फीसदी सिर्फ मार्च से सितंबर के बीच बिकती है. लेकिन पिछले साल इनमें से कई महीनों में लॉकडाउन लगा हुआ था और शराब की दुकानें और बार बंद थे. लेकिन साल 2021 में कोरोना की दूसरी लहर में लगे लॉकडाउन के दौरान शराब कारोबार को खास नुकसान नहीं झेलना पड़ा और बीयर सहित अन्य शराब की बिक्री भी बढ़ती रही.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पिछले साल के अंत में त्योहारों के दौरान शराब की मांग में बढ़ोत्तरी हुई, जो उसके बाद से ही बनी हुई है. इससे लॉकडाउन का भारी नुकसान झेलने वाली शराब कंपनियों को उबरने में बहुत मदद मिली है. बीयर की बात करें तो इसे बनाने वाली कंपनियों - यूनाइटेड ब्रुअरीज, बीरा 91 और सिंबा क्राफ्ट बीयर - जैसी सभी कंपनियों को इस दौरान फायदा हुआ है. वित्त वर्ष 2021 की आखिरी दोनों तिमाहियों में सर्दियों के मौसम के बावजूद बीयर से कमाई पिछले साल के मुकाबले ज्यादा रही है. लेकिन यह हुआ कैसे? भारत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर के दौरान जब ज्यादातर उद्योग-धंधों को पहली लहर की ही तरह या उससे भी ज्यादा घाटा देखना पड़ा, शराब उद्योग कैसे इससे बचा रह गया?
दूसरी लहर में नहीं झेलना पड़ा नुकसान
पिछली लहर में बीयर निर्माताओं ने सबसे ज्यादा नुकसान झेला. जानकार बताते हैं गर्मियों में बढ़ने वाली मांग को पूरा करने के लिए बीयर निर्माता इससे पहले ही अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ा देते हैं. एक बार पैक करने के बाद बीयर की उम्र 6 महीने ही होती है. जबकि बार और रेस्तरां के टैंक में तो इसे सिर्फ 14 दिन ही रखा जा सकता है. गर्मियों से तुरंत पहले खुदरा विक्रेता भी आने वाले बड़े बिक्री सीजन को ध्यान में रखकर काफी बीयर जमा कर लेते हैं. पिछली गर्मियों में लॉकडाउन से इन सभी को झटका लगा. लॉकडाउन खुलने के बाद भी ज्यादातर जगहों पर सरकार ने शराब की होम डिलीवरी के लिए अनुमति नही दी. इसने भी शराब की बर्बादी को बढ़ाया था. लॉकडाउन के बाद जब शराब की दुकानें खुलीं भी, तो उन्हें सिर्फ कुछ घंटों के लिए ही खोला जाता था. जिससे ज्यादा लोग शराब नहीं खरीद पाते थे.
इसके अलावा कोरोना की पहली लहर के दौरान लोगों में शराब को लेकर कई अफवाहें भी थीं. कई लोगों को डर था कि वे शराब पीने पर कोरोना से संक्रमित हो जाएंगे. कोरोना की दूसरी लहर में यह समस्याएं नहीं रहीं. दूसरी लहर में भी कोरोना लगभग इन्हीं महीनों में चरम पर रहा लेकिन परिस्थितियां पहली बार की तरह खराब नहीं हुई. बीयर निर्माताओं ने पहली लहर से सबक लेते हुए प्रक्रियाओं में कई बदलाव किए, जिनसे उन्हें नुकसान से बचने में मदद मिली. साथ ही शराब की ऑनलाइन डिलीवरी ने भी इस उद्योग को बचाने में काफी मदद की. जानकार बताते हैं कि भले ही अब शराब कंपनियों का मुनाफा बढ़ रहा हो लेकिन उनकी बिक्री अब भी कोरोना से पहले के दौर के मुकाबले कम है. अन्य सेक्टरों की तरह शराब कंपनियों का कारोबार चलाने और ऑफिस से जुड़ा खर्च फिलहाल कम हुआ है, जिससे उनके प्रॉफिट में बढ़त दिख रही है.
फिर भी घाटे में रहे रेस्तरां और बार
शराब की खुदरा दुकानों पर बीयर का स्टॉक हफ्ते भर से ज्यादा नहीं चलता, ऐसे में पिछले साल भी उन्हें उतना बड़ा घाटा नहीं हुआ था लेकिन बीयर निर्माताओं और रेस्टोरेंट्स को काफी नुकसान झेलना पड़ा था. जैसा बताया गया कि निर्माता तो घाटे से उबर गए हैं लेकिन रेस्टोरेंट और बार अब भी मार झेल रहे हैं. जून 2021 तक रेस्तरां, पब और बार में होने वाली शराब की बिक्री घटकर सिर्फ 11 फीसदी रह गई, जो साल 2019 तक 27 फीसदी हुआ करती थी. इनका हिस्सा भी कटकर खुदरा व्यापारियों के पास चला गया है. जिससे शराब की सीधी खरीद साल 2019 के 73 फीसदी आंकड़े से बढ़कर अब 88 फीसदी से ज्यादा हो चुकी है. एल्कोहल प्रोडक्ट्स की कंपनी रेडिको खेतान लिमिटेड के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर अमर सिन्हा भी मानते हैं, "घरों में होने वाली शराब की खपत में बढ़ोत्तरी हुई है."
बार और रेस्तरां का बंद रहना बड़ी समस्या है. जानकार बताते हैं पिछले साल मार्च से सितंबर तक रेस्टोरेंट बंद रहे. साल के आखिरी में वहां थोड़ी बहुत मांग बढ़ी लेकिन अब वे फिर से अप्रैल से ही बंद हैं. बार और रेस्टोरेंट मालिकों की शिकायत है कि सरकार उन्हें ही सबसे पहले बंद करती है और सबसे आखिरी में खोले जाने की अनुमति देती है. ब्रुअर वर्ल्ड के टेक्निकल एंड कंसल्टेंसी हेड अमर श्रीवास्तव बताते हैं, "रेस्तरां और बार शराब के ब्रांड्स को नए प्रोडक्ट का प्रमोशन करने में मदद करते हैं. उनके बंद होने से एक पूरा सेगमेंट प्रभावित हुआ है. यहां कई नए ब्रांड भी प्रमोशन के लिए अपने प्रोडक्ट भेजते थे, अब ऐसा नहीं हो पा रहा है."
लोगों ने महंगी शराब पीनी शुरू की
इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स ने यह भी बताया कि कोरोना काल में लोगों ने महंगी शराब पीनी शुरू कर दी है. मसलन बीयर का उदाहरण लें तो लोग अब बड़े ग्रुप में बीयर नहीं पी रहे. या तो वे इसे अकेले पी रहे हैं या घर पर कुछ खास दोस्तों के साथ पी रहे हैं. ऐसे में वे ज्यादा पैसे खर्च कर प्रीमियम क्वालिटी की बीयर पी रहे हैं. यही वजह है कि बीयर निर्माता कंपनियां भी अपने प्रीमियम प्रोडक्ट का जोर-शोर से प्रचार कर रही हैं और अपने प्रीमियम प्रोडक्ट को ज्यादा से ज्यादा राज्यों में पहुंचाने की कोशिश कर रही हैं. यह बातें अन्य शराब पर भी लागू होती हैं. अमर सिन्हा ने भी डीडब्ल्यू को बताया, "कोरोना के दौरान महंगी शराब की खपत में बढ़ोतरी हुई है."
पिछले डेढ़ सालों में शराब से जुड़ी लोगों की आदतों में कुछ और बदलाव भी देखने को मिले हैं. अब लोग एक बार में ज्यादा से ज्यादा शराब खरीद रहे हैं ताकि उन्हें बार-बार भीड़ के बीच ठेके पर न जाना पड़े. यह बात बीयर निर्माताओं और बीयर विक्रेताओं के लिए यह समस्या बन गई है क्योंकि अन्य एल्कोहल पेय के मुकाबले इसकी खपत ज्यादा होती है और लोगों के ऐसा करने से बीयर दुकानों पर तेजी से खत्म हो रही है. बीयर उपभोक्ताओं में एक और बदलाव देखने को मिला है. चूंकि वे घर पर ही इसे पी रहे हैं इसलिए वे कांच की बोतलों के बजाए कैन को ज्यादा वरीयता दे रहे हैं. कैन ज्यादा हल्के होते हैं, इन्हें कहीं ले जाना और स्टोर करना आसान होता है और इन्हें आसानी से फेंका जा सकता है. इन्हीं बदलावों को ध्यान में रखते हुए बीरा बीयर बनाने वाली बी9 बेवरेजेस ने ऐसा मल्टीपैक लॉन्च किया है जिसे लोग आसानी से घरों में इसे स्टोर कर सकें.
भविष्य का रास्ता ऑनलाइन
पिछले साल निर्माता, रेस्तरां मालिक और उपभोक्ता तीनों ही सरकार से एल्कोहल बिक्री को ऑनलाइन करने की मांग करते रहे थे लेकिन इसे बहुत देर से और बहुत कम राज्यों में शुरू किया जा सका था. अब न सिर्फ इसके लिए कई ऐप आ गई हैं बल्कि कई खुदरा विक्रेता भी इनकी होम डिलीवरी करने लगे हैं. रेडिको के अमर सिन्हा कहते हैं, "ऑनलाइन डिलीवरी बढ़ी है और आगे भी इसके बढ़ते रहने का अनुमान है. यह आगे चलकर गेमचेंजर साबित हो सकती है क्योंकि इससे महिला ग्राहक भी आसानी से शराब खरीद सकती हैं, जबकि भारत में भीड़भाड़ वाली शराब दुकानों और ठेकों से वे खरीददारी नहीं कर सकतीं."
शराब में सरकार को प्रभावित करने की ताकत
भारत में शराब पर कानून बनाने का अधिकार राज्यों को है. ऐसे में पिछले साल राज्य सरकारों ने इन पर कोविड-19 सेस भी लगाया, जबकि पहले ही शराब पर कई टैक्स लगते हैं. कई राज्यों में तो यह कोविड-19 सेस 70 फीसदी तक रहा. जिससे इनके दामों में तेज बढ़ोतरी हुई और पहले से ही महामारी से जूझ रही शराब की खपत और घटी. हालांकि अब ज्यादातर राज्यों में इसे खत्म किया जा चुका है. बीयर की बात करें तो एल्कोहल की मात्रा कम होने के बावजूद इस पर अन्य शराब के मुकाबले 2.5 गुना ज्यादा टैक्स वसूला जाता है.
फिर भी अमर श्रीवास्तव भविष्य को लेकर आश्वस्त हैं. वे कहते हैं, 'भारत एक बड़ी युवा आबादी वाला देश है और यहां पर धीरे-धीरे शराब से जुड़े पूर्वाग्रह खत्म हो रहे हैं. आज से पंद्रह साल पहले इसकी सालाना प्रति व्यक्ति खपत 0.75 लीटर हुआ करती थी जो अब करीब 3 लीटर हो चुकी है.' शराब की खपत के मामले में भारत अब दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश बन चुका है. रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2020 में भारत की सरकारों को शराब पर टैक्स से 17 खरब रुपये का राजस्व मिला था, जो सेल्स टैक्स और जीएसटी से मिले टैक्स के बाद सबसे ज्यादा था. ये आंकड़े बताते हैं कि भले ही भारतीय समाज में आज भी शराब को नीची नजरों से देखा जाता हो लेकिन इसमें सरकारों पर भी बड़े दबाव बनाने की ताकत है.
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प्राथमिक स्कूलों में नामांकन के सरकारी आंकड़ों में जातिगत विभाजन के आंकड़े सामने आए हैं. इसे 2021 की जनगणना में जातिगत जनगणना ना करने के केंद्र सरकार के फैसले के बाद सामने आई एक महत्वपूर्ण जानकारी माना जा रहा है.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट
जिला स्तर पर देश के सभी स्कूलों का डाटा इकट्ठा करने वाली प्रणाली यूडीआईएसईप्लस के तहत एक दशक से भी ज्यादा से स्कूलों में भर्ती होने वाले बच्चों की जाति की जानकारी की जा रही है. टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार ने इन सरकारी आंकड़ों को छापा है. अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में प्राथमिक स्तर पर भर्ती होने वाले बच्चों में 45 प्रतिशत ओबीसी, 19 प्रतिशत अनुसूचित जाति (एससी) और 11 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति (एसटी) के थे.
रिपोर्ट के अनुसार बाकी लगभग 25 प्रतिशत हिन्दू सवर्ण और बौद्ध धर्म को छोड़ कर बाकी सभी धर्मों के अधिकतर बच्चे आते हैं. अखबार का मानना है कि चूंकि पहली कक्षा से लेकर पांचवी कक्षा तक नामांकन दर 100 प्रतिशत है, इस जातिगत तस्वीर को देश की आबादी में अलग अलग जातियों के हिस्सों का संकेत माना जा सकता है.
2011 की जनगणना
भारत की जनगणना में एससी और एसटी वर्गों की अलग से गिनती होती है, लेकिन बाकी जातियों की आबादी की गिनती नहीं होती है. 2011 की जनगणना की साथ साथ सामाजिक-आर्थिक जनगणना भी हुई थी, जिसके तहत जातिगत जनगणना भी की गई थी. हालांकि उस जनगणना में हासिल हुआ अलग अलग जातियों का आंकड़ा आज तक सार्वजनिक नहीं किया गया है.
इसी वजह से पिछले कुछ दिनों से कई पार्टियां 2021 की जनगणना के लिए जातिगत जनगणना कराने की मांग कर रही हैं, लेकिन केंद्र सरकार इसके खिलाफ है. केंद्रीय गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लोक सभा में एक प्रश्न के जवाब में कहा, "भारत सरकार ने नीतिगत निर्णय लिया है कि जनगणना में एससी और एसटी के अलावा जाती के आधार पर जनगणना नहीं की जाएगी."
इसे लेकर विशेष रूप से तथाकथित पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टियों में नाराजगी है. ऐसे समय में यूडीआईएसईप्लस का यह डाटा काफी महत्वपूर्ण है. दूसरी जातियों की गिनती को तो कोई सरकारी आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन 1980 में मंडल आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि उस समय देश की आबादी में पिछड़े वर्गों की 52 प्रतिशत हिस्सेदारी थी, जिन्हें ओबीसी कहा गया.
आबादी के हिसाब से आरक्षण
स्कूल नामांकन के आंकड़े इस संख्या से कुछ नीचे हैं, लेकिन सांकेतिक जरूर हैं. राज्यवार आंकड़े भी उपलब्ध हैं. रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा ओबीसी (71 प्रतिशत) तमिलनाडु में हैं. राज्य में एससी 23 प्रतिशत, एसटी दो प्रतिशत और सामान्य श्रेणी चार प्रतिशत हैं. केरल में ओबीसी 69 प्रतिशत, कर्नाटक में 62 प्रतिशत और बिहार में 61 प्रतिशत हैं.
सबसे कम ओबीसी पश्चिम बंगाल (13 प्रतिशत) और पंजाब में (15 प्रतिशत) हैं. पंजाब में एससी सबसे ज्यादा (37 प्रतिशत) हैं. एसटी सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ (32 प्रतिशत) हैं. पिछड़े वर्गों में लोकप्रिय पार्टियां लंबे समय से मांग करती आई हैं कि शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण आबादी में हिस्सेदारी के हिसाब से मिलना चाहिए. (dw.com)
सीमा विवाद पर असम और मिजोरम के बीच हुई हिंसा के बाद दोनों राज्यों में तनाव लगातार बढ़ रहा है. इस बीच, असम सरकार ने अपने नागरिकों को मिजोरम की यात्रा से बचने की सलाह दी है.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट
दोनों राज्यों के बीच आरोप-प्रत्यारोप के तेज होते दौर के बीच असम सरकार ने मिजोरम से राज्य में आने वाले सभी वाहनों की मादक वस्तुओं की तस्करी के सिलसिले में जांच का निर्देश दिया है. बराक घाटी के लोगों की ओर से नेशनल हाइवे की आर्थिक नाकेबंदी के कारण तीन दिनों से असम से कोई वाहन मिजोरम नहीं गया है. दूसरी ओर, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस सीमा पर सीआरपीएफ जवानों को तैनात करने का फैसला किया है.
हिंसा और तनाव
असम-मिजोरम सीमा पर सोमवार को तनाव बढ़ने के बाद मिजोरम पुलिस के जवानो की कथित फायरिंग में असम पुलिस के छह जवानों की मौत हो गई थी. उसके बाद भी दोनों ओर से भड़काऊ बयानों का सिलसिला जारी है. असम सरकार ने जहां मिजोरम सीमा में बंकर बनाने का आरोप लगाया है वहीं मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथांगा ने कहा है कि हमारे पास सबूत है कि असम ने पहले गोली चलाई. उनका कहना था, "असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा मेरे मित्र हैं और मैंने निजी तौर उनसे इस मुद्दे पर बात की है. मुझे लगता है कि कुछ तत्व हैं जिन्होंने असम सरकार को गुमराह करने कि कोशिश की."
इस बीच, सीमा पर हिंसक झड़प के बाद असम सरकार ने राज्य के लोगों से मिजोरम नहीं जाने की सलाह दी है. राज्य के गृह सचिव एमएस मणिवन्नन की ओर से जारी इस एडवाइजरी में कहा गया है कि मौजूदा परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए असम के लोगों को सलाह दी जाती है कि वे मिजोरम की यात्रा न करें. इससे उनको खतरा हो सकता है. सरकार का दावा है कि सोमवार की हिंसा के बाद भी कई मिजो संगठन असम और उसके लोगों के खिलाफ लगातार भड़काऊ बयान जारी कर रहे हैं. असम पुलिस के पास उपलब्ध वीडियो फुटेज से यह पता चला है कि कई नागरिक भारी हथियारों से लैस हैं.
हालांकि इससे पहले मिजोरम सरकार ने कहा था कि राज्य में रहने वाले असमिया लोगों को कोई खतरा नहीं है और उनकी सुरक्षा की पर्याप्त व्यवस्था की गई है. मिजोरम के विभिन्न इलाकों में असम के करीब तीन हजार लोग रहते हैं. इनमें से ज्यादातर दैनिक मजदूरी के काम से जुड़े हैं.
मिजोरम ने गुरुवार को केंद्र को एक लंबा पत्र लिख कर मौजूदा हालात में असम के साथ दोबारा अशांति भड़कने का अंदेशा जताया है. गृह सचिव की ओर से भेजे इस पत्र में कहा गया है कि असम सरकार जिस तरह सीमा पर सुरक्षाबलों के जवानों की भारी तैनाती कर रही है उससे हिंसा भड़कने का खतरा है.
आर्थिक नाकेबंदी
उधर, हिंसक झड़पों के बाद बराक घाटी के लोगों ने मिजोरम को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाले नेशनल हाइवे 306 की नाकेबंदी कर दी है जिससे जरूरी सामान और खाद्यान्नों से लदे ट्रक मिजोरम नहीं जा पा रहे हैं. यही नहीं, मिजोरम के वैरांग्टी तक जाने वाली एकमात्र रेलवे लाइन पर भी तोड़-फोड़ की गई है जिससे ट्रेनों की आवाजाही भी ठप है. मिजोरम सरकार ने बुधवार को केंद्रीयय गृह सचिव को पत्र भेज कर इस नाकेबंदी को फौरन खत्म करने की मांग की थी. लेकिन असम सरकार ने ऐसी किसी नाकेबंदी से इंकार किया है. कछार की एसपी रमनदीप कौर ने कहा कि ट्रक वालों और खाद्यान्न व्यापारियों ने सोमवार की झड़प के बाद मिजोरम को सप्लाई स्वेच्छा से बंद कर दी है.
मिजोरम के खाद्य, नागरिक आपूर्ति व उपभोक्ता मामलों के मंत्री के. लालरिनलियाना ने कहा है कि असम की बराक घाटी के लोगों की ओर से की गई आर्थिक नाकेबंदी से राज्य में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति पहले की तरह प्रभावित नहीं होगी. राज्य में खाद्यान्नों की कमी नहीं है और इसके वैकल्पिक इंतजाम किए जा रहे हैं.
लेकिन बढ़ती तनातनी के बीच ही असम सरकार ने गुरुवार को एक अधिसूचना में कहा है कि मिजोरम से असम में प्रवेश करने वाले सभी वाहनों की प्रतिबंधित मादक पदार्थों के लिए जांच की जाएगी. मिजोरम ने इसे उकसाने वाली कार्रवाई बताया है. लेकिन असम सरकार ने यह कहते हुए इसे सही ठहराया है कि दो महीने के भीतर ऐसे 912 मामले दर्ज हुए हैं और 15 सौ से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है. इसके साथ ही सीमा पार से पहुंचने वाली प्रतिबंधित नशीली दवाएं भी भारी मात्रा में जब्त की गई है.
कानूनी लड़ाई
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि उनकी सरकार सीमा पर हिंसा को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी. उधर, मिजोरम ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए कहा कि वह किसी भी मुकदमे का सामना करने के लिए तैयार है. मिजोरम के उपमुख्यमंत्री पी तानलुइया ने कहा कि वे केवल अपनी क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "हम तैयार हैं और अदालत में मुकदमा लड़ने के लिए भी तैयार हैं. हमारे पास अपना पक्ष साबित करने के लिए वैध दस्तावेज हैं."
इस बीच, कांग्रेस ने असम सरकार की ओर से जारी एडवाइजरी के मुद्दे पर बीजेपी और केंद्र सरकार पर हमला किया है. कांग्रेस महासचिव और पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला हिंदी में एक ट्वीट में कहा, "देश के इतिहास में सबसे शर्मसार करने वाला दिन. जब देशवासी एक प्रांत से दूसरे प्रांत में न जा पाएं तो क्या मुख्यमंत्री और गृहमंत्री को अपने पद पर बने रहने का अधिकार है? मोदी है तो यही मुमकिन है.” (dw.com)
सब जानते हैं कि नेपाल के पहाड़ों से आने वाली नदियां बिहार में तबाही मचाती हैं. तो क्या भारत और नेपाल, दोनों ही इसके समाधान के प्रति उदासीन हैं? शायद, हां.
डॉयचे वैले पर मनीष कुमार की रिपोर्ट
तभी तो नेपाल के बराह क्षेत्र में बांध निर्माण के लिए सर्वे का काम आज भी दोनों ही देशों की सरकारों के उदासीन रवैये के कारण अटका पड़ा है. नेपाल के साथ साथ भारत की केन्द्र सरकार भी इसके निर्माण में दिलचस्पी नहीं दिखा रही. एक तरफ बाढ़ की परियोजनाएं अधूरी पड़ी हुईं हैं तो नदियों को जोड़ने की योजनाएं भी धरातल पर नहीं उतर सकीं हैं. कइयों को तो अभी केंद्र सरकार की मंजूरी का इंतजार है. आजादी के बाद से ही हर साल बिहार बाढ़ की विभीषिका से जूझता रहा है. इस बार भी एनडीआरएफ की सात और एसडीआरएफ की नौ टीमें 11 लाख लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा चुकी है. करीब 15 लाख की आबादी बाढ़ से प्रभावित है.
बिहार भारत का सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित राज्य है. देश की कुल बाढ़ प्रभावित आबादी में 22.1 प्रतिशत हिस्सा बिहार का ही है. बिहार के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 73.06 फीसदी इलाका बाढ़ की मार झेलने को विवश है. बिहार में देश के अन्य बाढ़ प्रभावित राज्यों की तुलना में नुकसान ज्यादा होता है. राष्ट्रीय बाढ़ आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक देश के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का 16.5 प्रतिशत बिहार में है लेकिन इससे नुकसान 22.8 प्रतिशत का है. वहीं यूपी में 25 फीसदी बाढ़ प्रभावित इलाके हैं लेकिन नुकसान सिर्फ 14.4 प्रतिशत का है. बिहार सरकार 1979 से बाढ़ के आंकड़े प्रकाशित करती आई है और तबसे अब तक बाढ़ से लगभग 10 हजार लोगों की मौत हो चुकी है. पिछले पांच साल से हर साल औसतन राज्य के 19 जिलों में बाढ़ आती है और इस दौरान करीब 130 करोड़ की निजी संपत्ति का नुकसान हुआ है.
उत्तर बिहार में मुख्य तौर से गंगा, कोसी, महानंदा, बागमती, गंडक, बूढ़ी गंडक, कमला, अधवारा समूह और कनकई नदियां कहर ढाती हैं, वहीं दक्षिण बिहार में सोन, पुनपुन और फल्गु नदियों से बाढ़ आती है. बिहार में जो नदियां बहती हैं, उसका उद्गम स्थल ज्यादातर नेपाल में ही है. नेपाल से नदियां बहती हुई बिहार में आती है. नेपाल में जब बारिश अधिक होती है तो नदियों का जलस्तर बढ़ने लगता है और फिर बिहार में भी नदियां रौद्र रूप दिखाना शुरु कर देती है. करीब 50 छोटी बड़ी नदियां नेपाल से आए पानी से बाढ़ लाती हैं.
पानी के बदलते रंग से मिलती है बाढ़ की आहट
नेपाल से सटे बिहार के सात जिलों में इसका ज्यादा प्रभाव देखने को मिलता है. कोसी नदी को तो बिहार का शोक ही कहा जाता है. कोसी नदी भारत और नेपाल के बड़े इलाके में फैली हुई है. इसका जलग्रहण क्षेत्र 95,656 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है. 2008 में कोसी नदी के कारण ही कुसहा के पास बांध टूटा था जिससे बहुत बड़ी आबादी प्रभावित हुई थी और करोड़ों का नुकसान हुआ था. जिसके निशान अब तक सुपौल, सहरसा, मधेपुरा और अररिया जैसे जिलों में देखने को मिल रहे हैं.
कोसी इलाके में लोग नदी में पानी के बदलते रंग को देख कर बाढ़ का अनुमान लगा लेते हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि जब नदी के पानी का रंग लाल होने लगता है तब लोग यह समझ लेते हैं कि नदी में हिमालय से पानी आने लगा है और लोग बाढ़ से बचाव की तैयारी शुरु कर देते हैं. अकसर मई के आखिरी हफ्ते और जून के पहले हफ्ते के बीच पानी का रंग लाल होने लगता है. जल विशेषज्ञ भगवानजी पाठक के मुताबिक, "कोसी रंग से ही पहचानी जाती है कि उसका रूप कैसा होगा. प्रारंभिक दौर में ललपनिया, रौद्र रूप में मटमैला जो उसके गुस्सा को दर्शाता है और सौम्य रूप में शांत, निर्मल और स्वच्छ दिखती है कोसी."
नदी जोड़ परियोजनाओं की हकीकत
बिहार समेत देश में नदियों को जोड़ने की परियोजना का शोर बहुत रहा है लेकिन जमीनी सच्चाई इससे कोसों दूर है. धरातल पर काम होता दिख नहीं रहा है. नदी जोड़ परियोजना का मुख्य मकसद था कि जिस नदी में पानी ज्यादा है उसे वैसी नदी से जोड़ना जिसमें पानी कम हो. इससे दो फायदे थे, पहला बाढ़ से बचाव होता और दूसरा सिंचाई की सुविधा भी मिलती. बिहार सरकार ने पहले बाढ़ के लिए जिम्मेदार दो मुख्य नदियों, बागमती और बूढ़ी गंडक को जोड़ने की योजना बनाई थी लेकिन इस पर केंद्र की मंजूरी नहीं मिली. केंद्र सरकार ने इसे व्यावहारिक नहीं माना.
बिहार में ऐसी आठ नदी परियोजनाएं प्रस्तावित हैं. कोसी मेची परियोजना को केंद्र सरकार की अनुमति मिल गयी है. बिहार सरकार की कोशिश है कि केंद्र इसे राष्ट्रीय योजना घोषित कर दे ताकि 4,900 करोड़ रुपये की इस परियोजना का 90 प्रतिशत खर्च केंद्र उठाए. इस योजना के तहत 76.20 किलोमीटर लंबी नहर बना कर कोसी के अतिरिक्त पानी को महानंदा बेसिन में ले जाया जाएगा. बिहार सरकार के अवकाश प्राप्त मुख्य अभियंता इंदुभूषण कुमार का कहना है कि "कोसी-मेची नदी जोड़ योजना बाढ़ की समस्या को कुछ हद तक कम करेगी. नदियों का अधिक पानी जब दूसरी कम पानी वाली नदी में जाएगा तो बाढ़ का कहर कम होगा." वहीं बिहार के जल संसाधन मंत्री संजय झा के अनुसार, "बिहार सरकार जल्द अपने दम पर छोटी नदियों को जोड़ने का काम शुरु करेगी." बिहार के प्रसिद्ध भूगर्भ शास्त्री प्रो आरबी सिंह भी कहते हैं, "इससे बरसाती नदियों का कहर कम हो सकता है जो कम समय में ज्यादा तबाही मचा कर निकल जाती है. वैसी नदियों को जोड़ने पर बाढ़ से काफी राहत मिल सकती है."
कई परियोजनाएं पड़ी हैं अधूरी
सरकार ने बाढ़ से बचाव और सिंचाई की व्यवस्था को देखते हुई कई नदी परियोजना की शुरुआत की लेकिन इसका भी फायदा मिलता दिख नहीं रहा है. जमीन की कमी, स्थानीय लोगों का विरोध, लालफीताशाही और राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव के कारण योजनाएं मूर्त रुप नहीं ले पायी हैं. चाहे गंडक या महानंदा नदी परियोजना हो या फिर बागमती या कोसी नहर परियोजना हो, सभी अपने लक्ष्य से कोसों दूर है.
महानंदा नदी परियोजना से पूर्णिया, कटिहार,अररिया, किशनगंज की करीब पचास लाख की आबादी को बाढ़ से राहत मिलती, लेकिन यह योजना पूरी नहीं हो पायी है. बागमती परियोजना से सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, शिवहर जिले में बाढ़ से राहत मिलती. किंतु अधूरी परियोजना के कारण बाढ़ का पानी नए इलाके में फैल रहा है. मुजफ्फरपुर के औराई, कटरा और गायघाट ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं. सीतामढ़ी के पुपरी में पिछले दो साल से बांध टूट रहा है. स्थायी तौर पर मरम्मत नहीं होने से बाढ़ का खतरा बढ़ता ही जा रहा है. पूर्वी चंपारण में बूढ़ी गंडक को सिकरहना नदी के नाम से जाना जाता है. वहां पर 93 किलोमीटर लंबा बांध बनना है लेकिन काम शुरु नहीं हो पाया है. गंडक नहर परियोजना के तहत 1,200 किलोमीटर लंबा बांध बनना है, लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध के कारण योजना अधर में लटक गयी है. कोसी नहर योजना के तहत पश्चिमी कोसी नहर प्रणाली जमीन के अभाव में हाल तक अटकी पड़ी थी.
कब पूरी होगी कोसी हाई डैम परियोजना
बिहार के जलसंसाधन मंत्री संजय झा का साफ मानना है, "जब तक नेपाल में कोसी नदी पर हाई डैम नहीं बनाया जाता तब तक बिहार में बाढ़ की समस्या से निजात नहीं मिल सकेगी." नेपाल और भारत के बीच कई दौर की बातचीत के बावजूद कोसी हाई डैम परियोजना की शुरुआत तक नहीं हो पायी है. नेपाल में कोसी नदी पर बांध बनाने से कोसी के प्रवाह को नियंत्रित करने में सहायता मिलेगी क्योंकि कोसी का उद्गम स्थल नेपाल में ही है. इस परियोजना के पूरा होने से दक्षिण पूर्व नेपाल और उत्तर बिहार को बाढ़ से राहत मिलती वहीं जल विद्युत का भी उत्पादन होता. साथ ही दोनों देशों को सिंचाई और नौ-परिवहन की भी सुविधा मिलती. लेकिन नेपाल में स्थानीय लोगों के विरोध के कारण आज तक सर्वे तक का काम नहीं हो पाया है.
बिहार सरकार के प्रयास से 2004 में नेपाल के काठमांडू, लहान व विराट नगर में सर्वे के लिए कार्यालय खोले गए, किंतु स्थानीय लोगों के भारी विरोध के कारण काम नहीं हो सका. नेपाल के लोगों का मानना है कि कोसी पर हाई डैम बनने से पर्यावरण पर बुरा असर पड़ेगा और बहुत बड़ा भू-भाग डूब जाएगा. भारत और नेपाल के बीच हाईडैम को लेकर पिछले बीस साल में कई बार बातचीत हो चुकी है लेकिन नतीजा अब तक शून्य ही है. नेपाल सरकार हर बार आश्वासन देती है कि काम जल्द शुरु हो जाएगा लेकिन आश्वासन हकीकत में परिणत होता नहीं दिख रहा है.
जल्द उफान मारने लगीं हैं नदियां
नदियों में जमा होता गाद भी बिहार में बाढ़ का एक अन्य कारण है. नदियों की तलहटी की सफाई नहीं होने के कारण गाद जमा होता जाता है. गंगा के साथ ही कोसी और गंडक नदी में गाद की समस्या बढ़ती जा रही है. सरकार का ध्यान सिर्फ गंगा में गाद की समस्या पर ही है. फिर भी गंगा में गाद की समस्या का निराकरण नहीं हो रहा है. विशेषज्ञों के मुताबिक गंगा में गाद होने का बड़ा कारण फरक्का बराज है. अन्य नदियों से भी गाद गंगा में बाढ़ के पानी से आता है लेकिन वह बंगाल की खाड़ी में नहीं जा पाता है. क्योंकि फरक्का में बांध बन जाने के कारण गाद बांध पर रुक जाता है.
केन्द्रीय जल आयोग के अनुसार फरक्का में गंगा में गाद जमा होने की दर 218 मिलियन टन प्रति वर्ष है. गाद के कारण नदी की गहराई कम हो जाती है नतीजतन बारिश के कारण जलस्तर बढ़ने से नदी का पानी आसपास फैलने लगता है और वह बाढ़ प्रभावित क्षेत्र बन जाता है. गाद के कारण नदी की अविरलता प्रभावित होती है. बिहार के मुख्यमत्री नीतीश कुमार कई बार गंगा की अविरलता बनाए रखने की मांग उठाते रहे हैं. बाढ़ विशेषज्ञ दिनेश कुमार मिश्र भी मानते हैं कि "बिहार में बाढ़ की समस्या की मूल वजह पानी की निकासी न होना और उसके साथ आने वाला गाद है."
विशेषज्ञों के अनुसार बिहार की भौगोलिक स्थिति ही ऐसी है कि यहां बाढ़ को टाला नहीं जा सकता है लेकिन सही प्रयास किया जाए तो उसके दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है. तभी तो बाढ़ विशेषज्ञ दिनेश कुमार मिश्र कहते हैं "बिहार में बाढ़ के आने को रोका जाना संभव नहीं है, लेकिन बेहतर प्रबंधन से आम जनजीवन को होने वाले नुकसान को अवश्य ही कम किया जा सकता है." इसलिए जरूरी है कि भारत और नेपाल सरकार के बीच बिना समय गवाएं सकारात्मक बातचीत हो, ताकि नेपाल के बराह क्षेत्र में बहुद्देशीय बांध निर्माण की बहुप्रतीक्षित योजना मूर्त रूप ले सके. (dw.com)
विशेषज्ञ कहते हैं कि भारतीय सेना का ढांचा पिछड़ा हुआ है और वह भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार नहीं है. उसे बड़े पैमाने पर सुधारों की जरूरत है.
डॉयचे वैले पर धारवी वैद की रिपोर्ट
पिछले हफ्ते भारतीय सेनाओं के उच्च अधिकारियों की एक बैठक हुई. इस बैठक का एजेंडा था ऐसे बड़े बदलाव जिनके जरिए थल, जल और वायु सेना की क्षमताओं को मिलाकर बेहतर प्रयोग किया जा सके.
भारत सरकार की योजना है कि 17 अलग-अलग यूनिट पांच ‘थिएटर कमांड' के तहत लाई जाएं ताकि भविष्य में किसी भी तरह के विवादों से निपटने के लिए एक साझी रणनीति तैयार हो. हालांकि ऐसी खबरें हैं कि नई कमांड के स्वरूप और रूप-रेखाओं को लेकर विभिन्न सेनाओं के अधिकारी एकमत नहीं हैं.
पिछले महीने भी ऐसी खबरें आई थीं कि भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत और वायु सेना अध्यक्ष राकेश कुमार सिंह भदौरिया के बीच प्रस्तावित सुधारों को लेकर तनातनी हो गई थी. मीडिया में आ रही खबरें कहती हैं कि वायु सेना इन सुधारों से सहमत नहीं है.
‘थिएटर कमांड' बनाने का काम जनरल रावत को सौंपा गया है. 2 जुलाई को उन्होंने कहा था कि भारतीय वायु सेना सेनाओं की ‘सहायक शाखा' है.
जरूरी हैं सुधार
भारतीय सेनाओं के ढांचे में आमूल-चूल सुधारों की जरूरत बहुत लंबे समय से महसूस की जा रही है. पाकिस्तान और चीन से मौजूद खतरे के चलते अब इन सुधारों का महत्व और बढ़ गया है. स्टैन्फर्ड यूनिवर्सिटी में दक्षिण एशिया पर शोध करने वाले अरजान तारापोर कहते हैं, "ये सुधार लंबे समय से बाकी है. भारतीय सेना पुराने ढांचे और पुरानी सोच पर ही चल रही है. अगर कोई नया विवाद होता है तो यह ढांचा काम प्रभावशाली नहीं होगा.”
अमित कौशिश रक्षा मंत्रालय में वित्तीय सलाहकार रह चुके हैं. वह कहते हैं कि भारत की सुरक्षा को खतरे लगातार अपना स्वरूप बदल रहे हैं. वह बताते हैं, "जैसे कि हमने लद्दाख में पिछले साल देखा, चीन के साथ सीमा विवाद नए आयाम में पहुंच गए हैं. चीन हिंद महासागर में भी अपनी पहुंच बढ़ा रहा है और भारत के पड़ोसियों में भी उसकी पैठ तेजी से बढ़ी है.”
आधुनिक होती तकनीक के खतरे
मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान में शोधकर्ता और रिटार्यड कर्नल विवेक चड्ढा के मुताबिक भारतीय सेना के सामने एक बड़ी चुनौती लगातार आधुनिक होती तकनीक है. वह कहते हैं कि ड्रोन को तो अब सस्ता विकल्प समझा जा रहा है.
कर्नल चड्ढा ने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा, "इसी तरह साइबर हमले करने के लिए जितना निवेश चाहिए, वह पारंपरिक हथियारों के मुकाबले तो बहुत मामूली है.”
और तारापोर कहते हैं कि ड्रोन तो बस शुरुआत भर हैं. वह बताते हैं, "आने वाले दशकों में जो खतरे आने वाले हैं वे सूचना प्रौद्योगिकी में बहुत आधुनिक विकास के साथ आएंगे, जो युद्ध से जुड़े होंगे. हर चीज जिसमें आर्टिफिशल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग से सुधार किया जा सकता है, वे सारी चीजें प्रभावित की जा सकती हैं.”
क्षेत्रीय सुरक्षा में भारत की भूमिका
आने वाले सालों में क्षेत्रीय सुरक्षा में भारत की भूमिका बढ़ेगी और उसकी सेना को भी अलग-अलग तरह की भूमिकाएं निभानी पड़ सकती हैं. तारापोर कहते हैं, "भारत इस क्षेत्र में एक सुरक्षा प्रदाता की भूमिका में है. मुख्यतया गैर-युद्धक भूमिका में जैसे कि मानवीय सहायता, आपदा प्रभंधन और इलाके में शांति बनाने रखने के लिए.”
तारापोर मानते हैं कि भारत की सेना अब भी ऐसी भूमिकाएं निभाती है लेकिन ऐसी जरूरतें और मांग बढ़ने वाली है, खासकर अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे सहयोगियों की तरफ से. दादागीरी रोकने के लिए भी भारत का इस्तेमाल किया जा सकता है.
तारापोर कहते हैं, "भारत ने अब तक अपने सेना को विभिन्न कारणों से अपनी जमीन की रक्षा के लिए तैयार किया है. अब उन कारणों की बारंबारता घटने वाली है. और जिन कारणों की बारंबारता बढ़ने वाली है, वो है भारत और क्षेत्र में मौजूद तीसरे पक्ष के खिलाफ दादागीरी.”
जैसे कि पड़ोसी अफगानिस्तान में एक संभावित गृह युद्ध की स्थिति में भारत की सुरक्षा पर, खासकर कश्मीर की सुरक्षा पर असर पड़ सकता है. कौशिश कहते हैं, "पाकिस्तान अपने हिसाब से तालिबान के साथ किसी तरह का समीकरण बिठा पाता है या नहीं, इससे भारत पर होने वाले प्रभाव पर फर्क नहीं पड़ता क्योंकि भारत की तालिबान के करीब आने की संभावना कम ही है.”
कौशिश कहते हैं कि किसी तरह का समझौता भले ही हो जाए पर तालिबान के विचारों से भारत का सहमत होना मुश्किल ही है, लिहाजा कभी ना कभी यह एक खतरा बन सकता है.
सैन्य हथियारों में सुधार
विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि भारत का पुराने ढर्रे का सैन्य ढांचा भविष्य के युद्धों के लिए कारगर नहीं होगा. चड्ढा कहते हैं, "भारत की सेना पारंपरिक युद्ध और आतंकवाद आदि के खिलाफ लड़ने के लिए तो पूरी तरह से तैयार है, जो कि वह 70 साल से करती रही है. लेकिन क्या वह क्षितिज पर उभर रहे नए खतरों के लिए भी तैयार है?”
कौशिश कहते हैं बेहतर हथियारों से लेकर सुरक्षा रणनीति तक, भारत की सेना को सुधारों की जरूरत है. वह बताते हैं, "भारत की सेना के ज्यादातर हथियार और प्लैटफॉर्म पुराने पड़ चुके हैं. सेनाओं के आधुनिकीकरण की जरूरत है. सबसे बड़ी चुनौती है वित्तीय रूप से साध्य एक साझी योजना की, जिसके जरिए सेना की क्षमताएं बढ़ाई जा सकें.”
इस मामले में चीन पहले ही भारत से खासा आगे निकल चुका है. चड्ढा कहते हैं, ”वे पहले ही मैरिटाइम डोमेन, सेनाओं का एकीकरण और साइबर सुरक्षा जैसे मुद्दों पर बात कर रहे हैं.”
चड्डा के मुताबिक चीन पहले ही ड्रोन तकनीक में महारत हासिल कर चुका है और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस या ब्लॉकचेन जैसी तकनीकों में भी अहम कदम उठा चुका है, जो आने वाले समय के विवादों में अहम साबित होंगे, जबकि भारत अभी काफी पीछे है. (dw.com)
मोहम्मद सरताज आलम
झारखंड से,
झारखंड के धनबाद में एक जज की मौत का मामला सुर्ख़ियाँ बटोर रहा है. धनबाद के अपर ज़िला सत्र न्यायाधीश उत्तम आनंद की बुधवार को एक ऑटो की टक्कर से मौत हो गई थी.
लेकिन इस घटना का सीसीटीवी फुटेज सामने आने के बाद परिजन इसे हत्या बता रहे हैं और राज्य के एडवोकेट जनरल ने भी कहा है कि लगता है उन्हें जान-बूझकर मारा गया है.
बुधवार की सुबह पाँच बजे धनबाद के रंधीर वर्मा चौक से एक ऑटो तेज़ रफ़्तार से गुज़रता हुआ मॉर्निंग वॉक पर निकले अपर ज़िला सत्र न्यायाधीश उत्तम आनंद को टक्कर मार कर निकल गया.
जिसके बाद ख़ून में लथपथ 49 वर्षीय न्यायाधीश को कुछ स्थानीय युवकों ने अस्पताल पहुँचाया. लेकिन चंद घंटे बाद उनकी मौत हो गई.
महत्वपूर्ण बात यह है कि धनबाद के एसपी का बंगला घटनास्थल से मात्र 150 मीटर की दूरी पर है. धनबाद सदर थाना उस स्थान से लगभग 200 मीटर की दूरी पर स्थित है. ख़ुद न्यायाधीश उत्तम आनंद का आवास भी घटना स्थल से कुछ ही क़दमों की दूरी पर है.
इस घटना का एक सीसीटीवी फुटेज भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. इस सीसीटीवी फ़ुटेज में साफ़ दिखाई दे रहा है कि न्यायाधीश हल्के-हल्के क़दमों से सड़क की बाईं तरफ़ बिल्कुल किनारे जॉगिंग कर रहे हैं. तभी एक ऑटो न्यायाधीश के पीछे से आता दिखाई देता है. ऑटो उनके क़रीब पहुँचते ही बाईं तरफ़ अचानक मुड़ जाता है और न्यायाधीश को टक्कर मारते हुआ आगे निकल जाता है.
सीसीटीवी फ़ुटेज को लेकर न्यायाधीश के बहनोई प्रभात कुमार सिन्हा ने बीबीसी से कहा, "ये साफ़-साफ़ कोल्ड ब्लडेड मर्डर है. आप वीडियो को स्लो मोशन में देखिए तो साफ़ पता चलता है कि ऑटो जज साहब से टकराया ही नहीं है. दरअसल ऑटो में बैठे युवक ने किसी चीज़ से जज साहब पर प्रहार किया है. जिसने भी प्रहार किया है, वह बहुत ही सधा हुआ आदमी था, उसे पता था कि किस इम्पैक्ट से ये करना है. साथ ही एक मोटर साइकिल सड़क के डिवाइडर के दाहिने तरफ़ से आती दिखाई देती है. बाइक चलाने वाला उस ओर देखता हुआ आगे बढ़ जाता है. जो कुछ मिनट के बाद घूम कर हादसे की ओर आता है. गाड़ी चलाने वाला ज़मीन पर गिरे हुए न्यायाधीश की तरफ़ देखते हुए आगे बढ़ जाता है. अगर वह इस मामले में शामिल नहीं होता, तो 100 नंबर डायल करके प्रशासन को ज़रूर ख़बर करता, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया."
क़ानूनी प्रक्रिया को लेकर न्यायाधीश के बहनोई प्रभात कुमार सिन्हा ने कहा, "हमने इस मामले की एफ़आईआर तो करवा दी है. अब पुलिस और एडमिनिस्ट्रेशन (प्रशासन) का काम है कि कैसे मामले की सही जाँच हो, कैसे दोषी को सज़ा मिल सकती है. रही बात जज साहब द्वारा संगीन मामलों की सुनवाई की, तो घर के लोग उनके ऑफ़िशियल कामों में इन्वॉल्व (शामिल) नहीं होते थे. इसलिए उनके कामों के बारे में किसी को कुछ नहीं पता है. लेकिन जो ख़बर सामने आ रही है, इसे रूल आउट नहीं किया जा सकता है."
उन्होंने कहा, "मामले का हाईकोर्ट ने संज्ञान में लिया है इसलिए हाईकोर्ट को चाहिए कि अपनी निगरानी में इस पूरे मामले की जाँच करवाए. क्योंकि ये एक न्यायिक पदाधिकारी की हत्या का मामला है, इसकी जाँच नहीं होगी और दोषी को सज़ा नहीं मिलेगी तो भविष्य में न्यायिक अधिकारी कार्य करने में डरेंगे."
न्यायधीश कर रहे थे धनबाद के कई संगीन मामलों की सुनवाई
न्यायाधीश उत्तम आनंद कई संगीन मामलों की सुनवाई कर रहे थे. इनमें झरिया के रंजय सिंह की हत्या का मामला भी था.
अदालत में यह मामला अभियोजन पक्ष की गवाही के लिए चल रहा है. जबकि दो दिन पहले नीरज सिंह हत्याकांड के कथित शूटर की ज़मानत अर्ज़ी भी ख़ारिज हुई थी.
यही नहीं कांग्रेस के नगर अध्यक्ष वैभव सिन्हा के मामले का ट्रायल भी इसी कोर्ट में लंबित है. इन मामलों के अलावा जज उत्तम आनंद ने दो मामलों में तीन लोगों को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थी.
हाईकोर्ट ने धनबाद के एसएसपी को न्यायाधीश की मौत के मामले में पूरी रिपोर्ट के साथ तलब किया है. जबकि एसएसपी संजीव कुमार ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "हम जाँच कर रहे हैं इसलिए फ़िलहाल कुछ कहने की स्थिति में नहीं हैं."
जब बीबीसी ने एसएसपी से पूछा कि प्रथम दृष्टि में यह हत्या का मामला है या फिर हादसा?
इस सवाल पर भी वह जवाब देने से बचते नज़र आए और कहा कि 'शाम तक इंतज़ार कीजिए, जाँच पूरी होने के बाद ही आपके सवालों का जवाब देंगे.'
जबकि बोकारो रेंज के डीआईजी मयूर पटेल कन्हैया लाल ने कुछ भी कहने से इनकार करते हुए कहा कि एसएसपी धनबाद से बात कीजिए.
झारखंड के एडवोकेट जनरल राजीव रंजन ने बताया, "देखने से लगता है कि जानबूझकर मारा गया है. प्रशासन ने त्वरित कार्रवाई करते हुए ऑटो में सवार दोनों लोगों को गिरफ़्तार कर लिया है. उनसे पूछताछ हो रही है. इस मामले की जाँच के लिए पुलिस के एडीजी लेवल के अधिकारी की अध्यक्षता में 14 लोगों की एसआईटी का भी गठन कर लिया गया है."
राजीव रंजन ने कहा, "यह अदालत का विशेषाधिकार है कि वो सीबीआई से जाँच कराना चाहती है या नहीं लेकिन मुझे अपने पुलिस फ़ोर्स पर पूरा विश्वास है. एक जज का मारा जाना बहुत ही संवेदनशील मामला है. हमलोग सच जानने के लिए पूरी कोशिश करेंगे और जो भी इसके लिए ज़िम्मेदार हैं वो बचेंगे नहीं. त्वरित ट्रायल करके हमलोग अपराधियों को सज़ा दिलवाएँगे."
असमय मौत के कारण दुनिया को अलविदा कह देने वाले न्यायाधीश उत्तम आनंद के परिवार में उनकी पत्नी, बुज़ुर्ग माता-पिता, छोटे भाई के अलावा 16 और 13 वर्ष की दो बेटियाँ और 11 वर्षीय पुत्र हैं. (bbc.com/hindi)
नई दिल्ली, 29 जुलाई | ग्रामीण क्षेत्रों स्कूली शिक्षा को मजबूत बनाने के लिए शिक्षा मंत्रालय ने क्या उपाय किए हैं, इसका खुलासा शिक्षा मंत्रालय ने राज्यसभा को दिए गए एक लिखित जवाब में किया। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि भारत सरकार ने स्कूली शिक्षा के लिए समग्र शिक्षा-एक एकीकृत योजना शुरू की है। यह स्कूली शिक्षा क्षेत्र के लिए एक व्यापक कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों सहित देश भर में स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों पर समावेशी और समान गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित करना है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री के मुताबिक यह योजना राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को स्कूलों में बुनियादी ढांचे को मजबूत करने, सार्वभौमिक पहुंच, लैंगिक समानता लाने, समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देने, शिक्षा की गुणवत्ता, शिक्षकों के वेतन के लिए वित्तीय सहायता, डिजिटल पहल, मुफ्त और अनिवार्य बच्चों के अधिकार के तहत सहायता प्रदान करती है।
उन्होने कहा कि शिक्षा (आरटीई) अधिनियम, 2009 जिसमें वर्दी और पाठ्यपुस्तकें, पूर्व-विद्यालय शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा, खेल और शारीरिक शिक्षा, कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों की स्थापना और संचालन और शिक्षक शिक्षा संस्थानों को मजबूत करना शामिल है। साथ ही प्राथमिक स्तर की शिक्षा के लिए छात्रों को मिड-डे-मील प्रदान किया जाता है।
इसके अलावा, राष्ट्रीय साधन-सह-मेरिट छात्रवृत्ति योजना के तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के मेधावी छात्रों को आठवीं कक्षा में ड्रॉप आउट को रोकने और उन्हें माध्यमिक स्तर पर अध्ययन जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है। इससे भी ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा को बढ़ावा देने में मदद मिलती है। (आईएएनएस)
कुछ शब्दों में अपनी बात कहने का प्लैटफॉर्म ट्विटर भारत सरकार की नजरों से उतरता दिख रहा है और इसकी जगह भारत में बनाया गया ऐसा ही मंच कू लेता दिखाई दे रहा है.
भारत में ही बनाए गए सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म "कू" को सरकारी मान्यता का एक बड़ा संकेत देते हुए केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णन ने वहां अपना अकाउंट शुरू कर लिया है. इसी महीने पद संभालने वाले वैष्णव का ट्विटर पर भी अकाउंट है जहां उनके दो लाख 58 हजार से ज्यादा फॉलोअर्स हैं.
लेकिन कू पर अपने एक संदेश में वैष्णव ने अंतरराष्ट्रीय सोशल मीडिया कंपनियों पर सख्त रवैया अपनाने का संकेत दिया और कहा कि इस बात की समीक्षा की जाएगी कि सोशल मीडिया कंपनियां नए सख्त नियमों का पालन कर रही हैं या नहीं.
"कू" का मकसद
सरकार के मीडिया रिलेशन विभाग से जुड़े एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "कोशिश ये है कि ट्विटर का एक विकल्प खड़ा किया जाए." बीजेपी के आईटी सेल से जुड़े एक व्यक्ति के मुताबिक ऐसे जज्बात मोदी सरकार के कई मंत्रियों के हैं जो ट्विटर की उनकी टिप्पणियों पर हालिया सख्तियों और कार्रवाइयों से चिढ़े हुए हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राष्ट्रवादी सरकार के अमेरिकी सोशल मीडिया कंपनी ट्विटर से संबंध अच्छे नहीं रहे हैं. बीते कुछ महीनों में एक के बाद एक ऐसी कई बातें हुई हैं जिनसे दोनों के रिश्तों में खटास आई है. फरवरी में भारत सरकार ने ट्विटर को किसान आंदोले के दौरान मोदी सरकार की तीखी आलोचना करने वाले कुछ अकाउंट्स और ट्वीट्स को हटाने को कहा था.
ट्विटर ने कहा कि भारत के कुछ आग्रह भारतीय कानून के ही खिलाफ हैं और मानने से इनकार कर दिया. सरकार को यह नागवार गुजरा. उसके बाद भारत ने सोशल मीडिया कंपनियों के खिलाफ और कड़े नियम लागू करने का आदेश दिया जिस पर ट्विटर पूरी तरह सहमत नहीं था.
अब स्थिति यह है कि ट्विटर के खिलाफ अलग-अलग राज्यों में पांच मामलों में पुलिस की जांच चल रही है. कई वीडियो पोस्ट किए जाने को लेकर दर्ज हुए मुकदमों में भी ट्वटिर को पक्ष बनाया गया है.
ट्विटर से सरकार के रिश्ते बिगड़ने का फायदा घेरलू कंपनी कू को हुआ, जो आठ भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है. सरकार और ट्विटर के विवाद के दौरान सिर्फ दो दिन में कू को डाउनलोड करने वालों की संख्या 10 गुना बढ़कर 30 लाख हो गई.
सिर्फ 16 महीने इस प्लैटफॉर्म पर अब उपयोग करने वालों की संख्या 70 लाख तक पहुंच गई है.
ट्विटर का रुख
ट्विटर के भारत में एक करोड़ 75 लाख से ज्यादा उपभोक्ता हैं. भारतीय मंत्रियों द्वारा कू के समर्थन पर ट्विटर ने कोई टिप्पणी नहीं की है लेकिन उसका कहना है कि वह कई मंत्रियों और अधिकारियों के साथ सीधे काम करता है और आपदा प्रबंधन में भी अहम भूमिका निभा रहा है.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ट्विटर पर दुनिया के कुछ सबसे ज्यादा फॉलो किए जाने वाले व्यक्तियों में से हैं. उनके लगभग सात करोड़ फॉलोअर्स हैं. हालांकि अभी तक उन्होंने कू पर अपना अकाउंट नहीं बनाया है.
सरकार के कई मंत्री और विभाग ट्विटर के साथ-साथ कू का भी इस्तेमाल कर रहे हैं. हालांकि, कू को लेकर पूछे गए सवालों के जवाब ना भारत सरकार ने दिए हैं और ना ही भारतीय जनता पार्टी के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने.
कू का उभार
नई सोशल मीडिया साइट कू ने पिछले कुछ दिनों में ही कई लंबी छलांगें लगाई हैं. पिछले महीने नाईजीरिया की सरकार ने कू पर अपना अकाउंट बनाया था. भारत में व्यापार मंत्रालय ने भी कू पर अपना खाता खोल दिया है जिसके 12 लाख फॉलोअर्स हैं. ट्विटर पर इस मंत्रालय के 13 लाख फॉलोअर्स हैं.
कई राज्य सरकारें और अन्य विभाग भी इस वेबसाइट की ओर आकर्षित हो रहे हैं. उत्तर प्रदेश के आपदा प्रबंधन विभाग ने ट्विटर पर अपने 21 हजार फॉलोअर्स को कू पर आने को कहा है, जहां फिलहाल इसके 962 फॉलोअर्स हैं.
कू ने भरोसा जताया है कि जल्दी ही सभी उसके प्लैटफॉर्म का इस्तेमाल करेंगे. कंपनी के सह-संस्थापक मयंक बिड़वाटका ने कहा, "अब तो बस कुछ महीनों की बात है और आप देखेंगे कि लगभग सभी कू पर होंगे.”
वीके/एए (रॉयटर्स)
सीरो सर्वे में मध्य प्रदेश 79 प्रतिशत "सीरोप्रीवैलेंस" के साथ सूची में सबसे ऊपर है, जबकि केरल 44 प्रतिशत के साथ सबसे नीचे है.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट
पिछले दो दिनों से केरल ने 22,000 से अधिक संक्रमणों की सूचना दी है, जो राष्ट्रीय स्तर पर 50 प्रतिशत से अधिक है. राज्य कई हफ्तों से देश में सबसे अधिक मामले दर्ज कर रहा है.
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने देश के 11 राज्यों में 14 जून से लेकर 6 जुलाई के बीच सीरो सर्वे किया था. इस सर्वे में मध्य प्रदेश 79 प्रतिशत "सीरोप्रीवैलेंस" के साथ सूची में सबसे ऊपर है, जबकि केरल 44.4 प्रतिशत के साथ सबसे नीचे है. असम में "सीरोप्रीवैलेंस" 50.3 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 58 प्रतिशत है.
आईसीएमआर द्वारा किए गए सीरो सर्वे के निष्कर्षों के मुताबिक 11 राज्यों में सर्वेक्षण की गई कम से कम दो-तिहाई आबादी में कोरोना वायरस एंटीबॉडीज विकसित पाई गईं.
सीरोप्रीवैलेंस सर्वेक्षण का चौथा दौर
आईसीएमआर ने हाल ही में भारत के 70 जिलों में राष्ट्रीय सीरो सर्वेक्षण किया. सर्वेक्षित जनसंख्या में राजस्थान में 76.2 प्रतिशत, बिहार में 75.9 प्रतिशत, गुजरात में 75.3 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 74.6 प्रतिशत, उत्तराखंड में 73.1 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 70.2 प्रतिशत सीरोप्रीवैलेंस पाया गया. वहीं आंध्र प्रदेश में 70.2, कर्नाटक में 69.8 फीसदी, तमिलनाडु में 69.2 फीसदी और ओडिशा में 68.1 फीसदी सर्वेक्षित आबादी में कोविड एंटीबॉडीज पाई गईं.
केंद्र सरकार ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सलाह दी है कि वे सीरोप्रीवैलेंस के बारे में जिला स्तर पर डेटा इकट्ठा करने के लिए आईसीएमआर के साथ विचार-विमर्श कर सीरोप्रीवैलेंस सर्वेक्षण करें, जो स्थानीय स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिहाज से जरूरी है. केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव ने सभी राज्यों को लिखे गए पत्र में यह बात कही है.
केरल में कोरोना
केरल में कोरोना का कहर थमता नहीं दिख रहा है. राज्य में दैनिक कोविड-19 मामलों की संख्या में कोई कमी नहीं दिख रही है. बुधवार को लगातार दूसरे दिन यह आंकड़ा 22,000 के पार चला गया. केरल में अब तक 33 लाख से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं. 16 हजार से अधिक लोगों की मौत कोरोना के कारण हुई है. केरल में एक्टिव केसों की संख्या भी 1,45,876 है.
इस बीच देश में पिछले 24 घंटे में 43,509 नए कोविड-19 केस दर्ज किए गए. इस दौरान 38,525 लोग ठीक हुए और 640 मरीजों की मौत हुई. भारत में ठीक होने की दर अब 97.38 फीसदी हो गई है. (dw.com)
इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बैटरी में इस्तेमाल होने वाले खनिजों के दामों में बढ़ोतरी से यह बैटरियां भारत में भी महंगी हुई हैं. लेकिन जानकार इससे भी बड़ी समस्या इनके निर्माण के लिए भारत की चीन पर निर्भरता को मानते हैं.
डॉयचे वैले पर अविनाश द्विवेदी की रिपोर्ट
दुनियाभर में इलेक्ट्रिक गाड़ियों में इस्तेमाल होने वाली लीथियम आयन बैटरी के दाम बढ़ रहे हैं. इसकी वजह इसमें इस्तेमाल होने वाले खनिजों के दाम बढ़ना है. लीथियम और कोबाल्ट जैसे इन खनिजों के दाम इसलिए बढ़ रहे हैं क्योंकि कोरोना के बाद इनकी मांग तेजी से बढ़ी है लेकिन पर्याप्त आपूर्ति नहीं हो पा रही है. हालांकि इस परेशानी के लिए कोरोना कुछ हद तक ही जिम्मेदार है क्योंकि लीथियम की आपूर्ति में पिछले कई सालों से गड़बड़ी आ रही थी.
जानकार कहते हैं कि पिछले एक दशक से लीथियम आयन बैटरी के दामों में गिरावट आ रही थी. साल 2018 से 2020 के बीच लीथियम की आपूर्ति, मांग से ज्यादा रही, जिससे इस दौरान बैटरी के दाम तेजी से गिरे.
ऐसा होने से नए प्रोजेक्ट लगने की दर तेज हुई और सरकारों की ओर से इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बढ़ावा देने का काम किया जाने लगा. इससे लीथियम की मांग और ज्यादा बढ़ी. इसने भी आपूर्ति में कमी को बढ़ाने में योगदान दिया. अब मीडिया रिपोर्ट्स में डर जताया जा रहा है कि एक दशक तक लीथियम आपूर्ति में दिक्कत बनी रह सकती है.
बैटरी के लिए चीन पर निर्भर भारत
इन खनिजों के दामों में बढ़ोतरी से भारत में भी बैटरी महंगी हुई है. लेकिन जानकार इससे बड़ी समस्या इस तथ्य को बताते हैं कि ईवी की बैटरी के मामले में भारत अब भी लगभग पूरी तरह चीन पर निर्भर है.
एक बड़ी बैटरी निर्माता कंपनी एक्सिकॉम में काम करने वाले सलाहुद्दीन अहमद बताते हैं, "अभी भारत इस सेक्टर में तीसरे खरीददार जैसा है. यानी चीन पहले ज्यादातर कच्चे खनिजों की खरीद कर उनकी प्रॉसेसिंग करता है और फिर इसे भारत जैसे देशों को बेचता है. जब तक भारत इस निर्भरता को कम करने पर काम नहीं करता, ईवी बैटरी के मामले में आत्मनिर्भरता सपना ही रहेगी."
निवेश और मैनेजमेंट कंपनी गोल्डमैन सैश के आंकड़े भी यही कहते हैं. इसकी एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन बैटरी में इस्तेमाल होने वाले खनिजों की प्रॉसेसिंग में दुनिया में सबसे आगे है, जबकि वह इसके लिए जरूरी ज्यादातर खनिजों को विदेशों से मंगाता है.
एनोड पदार्थों और इलेक्ट्रोलेट्स के 65% का और कैथोड पदार्थों के 42% का उत्पादन चीन अकेले करता है. भारत भी बैटरी के लिए यह चीजें चीन से ही मंगाता है. यही वजह है कि भारत में अभी इलेक्ट्रिक बैटरी के दाम अपेक्षाकृत ज्यादा हैं. इसके चलते इलेक्ट्रिक गाड़ियां ज्यादातर जनसंख्या के लिए अफोर्डेबल नहीं हैं.
भारत को तलाशना होगा अलग रास्ता
इलेक्ट्रिक गाड़ियों के दाम में बैटरी का दाम अहम होता है. इस मसले पर इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बैटरी के रिसर्च एंड डेवलपमेंट (आरएंडडी) से जुड़े सलाहुद्दीन अहमद कहते हैं, "भारत को सोडियम आयन बैटरियों के आरएंडडी के काम को तेज कर देना चाहिए.
वहीं कोबाल्ट की जगह एल्युमिनियम, मैंगनीज या निकल के इस्तेमाल को बढ़ावा देने की कोशिश करनी चाहिए. ये सारे ही खनिज भारत में पर्याप्त मात्रा में मौजूद हैं. इनकी मदद से न सिर्फ बड़ी मात्रा में इलेक्ट्रिक बैटरी का उत्पादन किया जा सकता है बल्कि उनके दाम भी कम किए जा सकते हैं."
वह कहते हैं, "एक लाख रुपये या उससे ज्यादा की दोपहिया गाड़ियां भारत में हर कोई नहीं खरीद सकता ऐसे में आरएंडडी के जरिए इनके दाम कम करना जरूरी है." दाम के बारे में जानकार यह भी कहते हैं कि भारत अगर ऐसे ही विदेशों से ईवी के लिए जरूरी खनिजों का आयात करता रहा, तो उसके लिए निकट भविष्य में बैटरी के दाम नियंत्रित करना संभव नहीं होगा.
उनके मुताबिक भारत ईवी के लिए बैटरियां बनाने की दौड़ में पहले ही चीन से 20-30 साल पीछे है, ऐसे में अगर भारत ऐसे खनिजों पर निर्भर रहा, जिनकी आपूर्ति भी उसके लिए आसान नहीं है तो वह इस दौड़ में और पिछड़ेगा. (dw.com)
अपने पहले दौरे पर भारत पहुंचे अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने मानवाधिकारों के हनन का मुद्दा उठाया और इशारों में भारत को नसीहतें दीं. हालांकि भारतीय विदेश मंत्री ने जवाब देने में देर नहीं लगाई.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट
एंटनी ब्लिंकेन ने भारत दौरे की शुरुआत मानवाधिकारों का मुद्दा उठाकर की. उन्होंने भारत में मानवाधिकारों के लिए काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं से मुलाकात की और उनकी चिंताएं सुनीं. उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका कानून के राज और और धार्मिक स्वतंत्रता जैसे साझे मूल्यों से जुड़े हैं.
ब्लिंकेन ने कहा, "ये दोनों ही लोकतंत्र अभी सीख रहे हैं. जैसा कि मैंने पहले कहा, कई बार यह प्रक्रिया दर्दनाक होती है. कई बार यह भद्दी होती है. लेकिन लोकतंत्र की ताकत इसे समाहित करने में ही है.”
इशारों में ही ब्लिंकेन ने भारत सरकार को नसीहत भी दी. उन्होंने कहा कि भारतीय लोकतंत्र की ताकत उसके आजाद नागरिक हैं. सामाजिक कार्यकर्ताओं को संबोधन में उन्होंने कहा कि सामाजिक कार्यकर्ता किसी भी सफल लोकतंत्र का हिस्सा होते हैं.
ब्लिंकेन की नसीहतें
ब्लिंकेन ने कहा,"इसी तरह नागरिक अपने समुदायों की जिंदगियों में हिस्सेदार बनते हैं. इसी तरह आपदाएं आने पर हम एकजुट होते हैं और संसाधन उपलब्ध कराते हैं. जीवंत सामाजिक कार्यकर्ता ही लोकतंत्रों को ज्यादा खुला, ज्यादा समावेशी, ज्यादा निष्पक्ष और लचीला बनाते हैं.”
लोकतांत्रिक गिरावट का जिक्र करते हे उन्होंने कहा, "जब दुनियाभर में लोकतंत्र और अंतरराष्ट्रीय स्वतंत्रता के खिलाफ खतरे बढ़ रहे हैं, ऐसे में यह जरूरी है कि भारत और अमेरिका, बतौर अगुआ इन आदर्शों के समर्थन में साथ खड़े रहें.”
ब्लिंकेन ने कहा कि लोकतंत्र होने का हा अर्थ "एक ज्यादा संपूर्ण लोकतंत्र” बनाना है. उन्होंने कहा, "दुनिया के दो बड़े लोकतंत्र होन के नाते हम सभी के लिए स्वतंत्रता, समानता और अवसर उपलब्ध कराने की अपनी जिम्मेदारियों के प्रति गंभीर हैं. और हम जानते हैं कि इन मोर्चों पर हमें लगातार और ज्यादा बेहतर प्रदर्शन करने की जरूरत है. और यह भी कि हम दोनों ने ही अब तक अपने लक्षित मूल्यों को हासिल नहीं किया है. लोकतंत्र होने का एक वादा यह है कि हमेशा एक बेहतर, और जैसा कि अमेरिका का संस्थापकों ने कहा था, ज्यादा संपूर्ण संघ के लिए प्रयासरत रहना.”
जयशंकर के जवाब
ब्लिंकेन की नसीहतों पर भारतीय विदेश मंत्री ने जवाब देने में देर नहीं लगाई. अमेरिकी विदेश मंत्री के बयानों के कुछ ही देर बाद डॉ. एस जयशंकर ने कहा कि मानवाधिकारों की बात सभी पर एकसमान रूप से लागू होती है.
डॉ. जयशंकर ने जवाब में कहा, "मैंने तीन मुख्य बातें कही हैं. पहली तो ये कि ज्यादा संपूर्ण संघ बनाने का जिम्मा भारत पर भी उतना ही लागू होता है जितना अमेरिका पर. बल्कि यह सभी लोकतंत्रों पर लागू होता है.”
बिना कश्मीर या नए नागरिक कानूनों का जिक्र किए डॉ. जयशंकर ने अपनी सरकार के विवाद में रहे हालिया कदमों का भी बचाव किया. उन्होंन कहा, "सभी राजनीतिक तंत्रों की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि इतिहास में जो गलत हुआ है उसे सही करे. कई फैसले और नीतियां जो आपने पिछले कुछ सालों में देखे हैं वे उसी श्रेणी में आते हैं.”
भारतीय विदेश मंत्री ने कहा, "स्वतंत्रताएं जरूरी हैं, हम उनका सम्मान करते हैं लेकिन लेकिन आजादी की तुलना खराब प्रशासन से कम प्रशासन से नहीं की जानी चाहिए. ये दोनों पूरी तरह अलग अलग बातें हैं.”
प्रधानमंत्री से मुलाकात
भारत और अमेरिका के विदेश मंत्रियों ने विस्तृत मुद्दों पर विचार-विमर्श किया जिनमें अफगानिस्तान, प्रशांत क्षेत्र में भागीदारी और कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई जैसे मुद्दे शामिल थे. डॉ. जयशंकर से मिलने से पहले ब्लिंकेन भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से भी मिले थे. दोनों ने अफगानिस्तान में सुरक्षा स्थिति पर बातचीत की.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने ट्विटर पर लिखा, "मुझे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर बहुत खुशी हुई. उनसे अंतरराष्ट्रीय रणनीतिक सहयोग बढ़ाने के लिए अमेरिका और भारत के प्रयासों को बारे में और कोविड-19 के खिलाफ कोशिशों, क्षेत्रीय सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर सहयोग के बारे में बातचीत हुई.”
अपनी एक दिन की यात्रा के दौरान ब्लिंकेन ने भारत के कोविड-19 संबंधी कार्यक्रम के लिए संस्था यूएसएड के जरिए ढाई करोड़ डॉलर की अतिरिक्त वित्तीय सहायता का भी ऐलान किया. (dw.com)
किसान आंदोलन और पश्चिम बंगाल चुनावों के नतीजों के बाद अब पेगासस मामले ने विपक्ष को नई ऊर्जा दे दी है. लेकिन पुराना सवाल अभी भी बना हुआ है कि आखिर विपक्ष का नेता कौन होगा.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
जैसा कि संसद के मौजूदा सत्र में दिखाई दे रहा है, विपक्ष किसान आंदोलन और पेगासस मामलों को लेकर काफी आक्रामक हो चुका है. विशेष रूप से पेगासस मामले पर चर्चा कराने से सरकार के इंकार कर देने पर विपक्ष के सांसदों दोनों सदनों में और संसद के बाहर भी पुरजोर विरोध कर रहे हैं.
इस बीच विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने की कई महीनों से चल रही कोशिशें भी संसद सत्र के मद्देनजर तेज हो गई हैं. विपक्ष के कई सांसदों ने कहा है कि इस सत्र में विपक्षी पार्टियों के बीच बेहतर तालमेल देखने को मिल रहा है. हालांकि इन कोशिशों के बावजूद विपक्ष अभी तक मूल मसले का हल नहीं निकाल पाया है.
कौन होगा नेता
बीते सात सालों में बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा बनाने की कई कोशिशें हो चुकी हैं, लेकिन हर बार नेतृत्व के सवाल पर विपक्ष की सुई अटक जाती है. कौन बनेगा विपक्ष का चेहरा और कौन देगा सीधे मोदी को टक्कर, इन्हीं सवालों पर एकजुटता की सारी कोशिशें बेकार हो जाती हैं.
इस बार भी विपक्ष की एकजुटता पर यही सवाल हावी नजर आ रहा है. विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते कांग्रेस अभी भी अपने आप को इस नेतृत्व का स्वाभाविक दावेदार मानती है. अन्य विपक्षी पार्टियां भी यह तो मानती हैं कि कांग्रेस के बिना व्यापक विपक्ष बन नहीं पाएगा, लेकिन उस विपक्षी समूह का नेतृत्व कांग्रेस करेगी इस बात पर सहमति नहीं बन पा रही है.
अव्वल तो कांग्रेस खुद अपने संगठन के अंदर नेतृत्व के संकट से गुजर रही है. सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष जरूर हैं लेकिन वो कब तक इस पद पर रहेंगी यह स्पष्ट नहीं है. उनके दोनों बच्चों राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को इस पद का दावेदार माना जाता है.
कांग्रेस का अपना संकट
राहुल को तो पद मिला भी था लेकिन 2019 के लोक सभा चुनावों में हारने के बाद उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया और तब से सार्वजनिक तौर पर बस वो एक कांग्रेस सांसद के रूप में काम कर रहे हैं. हालांकि अब धीरे धीरे पार्टी से जुड़े सभी बड़े फैसलों के पीछे उनके हाथ नजर आ रहा है.
हाल ही में पंजाब कांग्रेस में मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच चल रहे झगड़े का समाधान राहुल और प्रियंका के निर्णायक हस्तक्षेप के बाद ही हुआ. सिद्धू और सिंह दोनों दिल्ली गए, लेकिन राहुल और प्रियंका सिर्फ सिद्धू से मिले और उसके बाद सिंह के विरोध के बावजूद सिद्धू को पंजाब में कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया.
राहुल अब यही महत्वाकांक्षा वृहत विपक्ष को लेकर भी दिखा रहे हैं. 27 जुलाई को संसद में विपक्षी पार्टियों के फ्लोर नेताओं की बैठक पहली बार राहुल की अध्यक्षता में हुई. इसमें कांग्रेस के अलावा डीएमके, एनसीपी, शिव सेना, सीपीएम, आरजेडी, आप, केरल कांग्रेस, एनसी, आरएसपी और मुस्लिम लीग जैसी पार्टियां शामिल थीं.
बैठक के बाद राहुल के साथ मिल कर इन सभी पार्टियों के नेताओं ने मीडिया को संबोधित भी किया. बैठक की तस्वीरें ट्वीट करते हुए राहुल ने वहां मौजूद सभी नेताओं के तजुर्बे और समझ को सलाम किया और उसे एक विनम्र करने वाला अनुभव बताया.
और भी हैं दावेदार
हालांकि विपक्ष का चेहरा बनने का दावेदार और भी नेताओं को माना जा रहा है. इनमें शरद पवार सबसे वरिष्ठ हैं लेकिन सबसे ज्यादा सक्रिय नजर आ रही हैं ममता बनर्जी. पश्चिम बंगाल के विधान सभा चुनावों में बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने की जंग जीतने के बाद बनर्जी का आत्मविश्वास देखते ही बन रहा है.
वो इस समय दिल्ली की पांच दिनों की यात्रा पर हैं. इस दौरान वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मिलीं और सोनिया गांधी से भी. इसके अलावा और भी कई पार्टियों के नेताओं से मिलने की उनकी योजना है. इस पूरी कवायद को उनकी विपक्ष का नेता बनने की चाह से जोड़ कर देखा जा रहा है.
लेकिन यहीं पर पेंच फंसा हुआ है. पिछले कई महीनों से शरद पवार और यशवंत सिन्हा जैसे नेता विपक्ष को एकजुट करने के लिए जिस फॉर्मूले पर काम कर रहे हैं, उसके तहत 200 ऐसी लोक सभा सीटें पहचानी गई हैं जिन पर सीधे बीजेपी और कांग्रेस के बीच में टक्कर है.
प्रस्ताव यह है कि इन सीटों पर कांग्रेस को अपने प्रत्याशी उतारने दिए जाएं, लेकिन इनके अलावा बाकी सीटों पर जहां जो विपक्षी पार्टी मजबूत है उसी को लड़ने दिया जाए. समस्या यह है कि फार्मूला तो अपनी जगह है, लेकिन मतभेद तो इस बात पर है कि विपक्ष का चेहरा कौन बनेगा. अब देखना यह है कि बनर्जी की दिल्ली यात्रा और कांग्रेस नेताओं के साथ बैठकों से क्या निकल कर आता है. (dw.com)
नई दिल्ली: जासूसी कांड को लेकर विपक्ष संसद के अंदर और दोनों जगह सरकार पर हमलावर है. आज पहले विपक्ष ने सरकार को सदन के अंदर घेरने की रणनीति बनायी. उसके बाद सभी विपक्षी दलों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सरकार पर निशाना साधा. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि संसद में गतिरोध के लिए विपक्ष दोषी नहीं है. उन्होंने कहा कि जासूस कांड के लिए जरिए भारत के लोकतंत्र पर हमला हुआ है. विपक्ष का हर दल जासूसी कांड की चर्चा चाहता है.
संसद में हमारी आवाज को दबाया जा रहा है- राहुल गांधी
संसद भवन के पास विजय चौक पर राहुल गांधी समेत पूरे विपक्ष ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. राहुल गांधी ने कहा, ''.यहां पर आज हिंदुस्तान का पूरा विपक्ष खड़ा हुआ है, हर पार्टी के नेता हैं और हमें यहां आज क्यों आना पड़ा. क्योंकि हमारी जो आवाज है उसे संसद में दबाया जा रहा है. हमारा सिर्फ एक सवाल है क्या हिंदुस्तान की सरकार ने पेगासस को खरीदा ? हां या ना. क्या हिंदुस्तान की सरकार ने अपने लोगों पर पेगासस हथियार का इस्तेमाल किया ? हां या ना. हम सिर्फ यह जानना चाहते हैं?''
राहुल गांधी ने आगे कहा, ''हमें साफ तौर पर सरकार ने बताया कि सदन में पेगासस पर कोई चर्चा नहीं होगी. मैं हिंदुस्तान के युवाओं से पूछना चाहता हूं कि आप के फोन के अंदर नरेंद्र मोदी जी ने हथियार डाला है. मेरे खिलाफ उस हथियार का प्रयोग किया गया. सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ उस हथियार का प्रयोग किया गया. बाकी नेताओं के खिलाफ, प्रेस के लोगों के खिलाफ इस हथियार का इस्तेमाल हुआ. तो फिर क्या कारण है कि इस पर सदन के अंदर बात नहीं हो रही है ?
उन्होंने कहा, "हमारे लिए कहा जाता है कि हम लोग गतिरोध पैदा कर रहे हैं. हम लोग गतिरोध पैदा नहीं कर रहे, हम सिर्फ हमारी जो जिम्मेदारी है उसे पूरा करना चाहता हैं. यह बात सिर्फ मैं नहीं बोल रहा बल्कि हर एक पार्टी का नेता आपको यही बात बताएगा.''
''पेगासस हथियार को लोकतंत्र के खिलाफ इस्तेमाल किया गया''
उन्होंने कहा, ''पेगासस हथियार को हिंदुस्तान के खिलाफ इस्तेमाल किया गया है. इस हथियार को आतंकवादियों के खिलाफ, देशद्रोहियों के खिलाफ करना चाहिए. हम नरेंद्र मोदी जी और अमित शाह जी से पूछ रहे हैं कि आपने इस हथियार का प्रयोग हिंदुस्तान की संवैधानिक संस्थाओं के खिलाफ क्यों किया ? हिंदुस्तान के लोकतंत्र ने ऐसा क्या किया है जो आपने इस हथियार को लोकतंत्र के खिलाफ इस्तेमाल किया. यही हमारे सवाल हैं.''
संसद में गतिरोध: राहुल बोले- यह विपक्ष को बदनाम करने की साजिश
संसद की कार्यवाही में गतिरोध को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सरकार पर पलटवार किया है. विपक्षी सांसदों की बैठक के दौरान राहुल गांधी ने कहा कि सरकार ये कहकर विपक्ष को बदनाम कर रही है कि विपक्ष संसद नहीं चलने दे रहा . जबकि हम देश और देश की सुरक्षा से जुड़े मामले उठा रहे हैं. कल प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्ष पर सदन में हंगामा करने के आरोप लगाए हैं.
कोविड महामारी में बच्चे स्कूल नहीं जा पाए तो पढ़ाई का नुकसान कम करने की चुनौती से शिक्षक, सरकारें और माता पिता सभी जूझते नजर आए. इन चुनौतियों ने कई नई राहें भी खोलीं.
डॉयचे वैले पर विवेक शर्मा की रिपोर्ट
पिछले साल मार्च (2020) से बंद पड़े स्कूलों की वजह से जो सबसे बड़ी चिंता जताई जा रही है वो ये है कि पहली से आठवीं तक के छोटे बच्चे इस दौरान वो सब कुछ भूल सकते हैं जो उन्होंने लॉकडाऊन शुरू होने से पहले सीखा था.
खास तौर पर अंकों को जोड़ने-घटाने की क्षमता और भाषा पढ़ने की योग्यता जैसी आधारभूत बातें. इस नुकसान का असर मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे पहली से आठवीं तक के 50 लाख से अधिक विद्यार्थियों पर भी पड़ा है.
ऐसे में मध्य प्रदेश में कुछ अनूठी पहलें भी देखने को मिलीं. मसलन 'हमारा घर-हमारा विद्यालय' नाम से एक योजना को जुलाई 2020 से शुरू किया गया जिसमें शिक्षक पहली से आठवीं तक के छात्रों के मोहल्लों में पहुंचे, आस-पास के बच्चों को इकठ्ठा किया और पढ़ाई शुरू करवाई. इसे मोहल्ला क्लास और ओटला क्लास का नाम दिया गया.
कैसे चली ओटला क्लास
इंदौर के शासकीय मिडिल स्कूल नंबर 6 के प्राचार्य संजय महाजन बताते हैं कि कोविड काल के दौरान सबसे बड़ी चुनौती बच्चों से संपर्क बनाकर रखने की रही. चुनौती उन बच्चों को लेकर थी जिनके पास स्मार्ट फोन नहीं था. 96 विद्यार्थियों वाले इस स्कूल में 20 प्रतिशत ऐसे बच्चे थे जिनके पास एंड्रॉयड मोबाइल नहीं था. ऐसे बच्चों पर ज्यादा ध्यान दिया गया.
संजय बताते हैं कि जो बच्चे जुलाई 2020 में पहली कक्षा में भर्ती हुए, उन्होंने अभी तक स्कूल का मुंह नहीं देखा है. उनके घर जाकर ही दाखिला दिया गया और उनकी पढ़ाई भी घर पर हुई है. जिन बच्चों के पास मोबाइल फोन नहीं था, उनके घर जाकर शिक्षकों ने अपने मोबाइल के जरिए बच्चों को साप्ताहिक टेस्ट में शामिल किया.
जिन बच्चों के परिवार में स्मार्टफोन था उनके लिए हर क्लास का वॉट्सऐप ग्रुप बनाया गया और साथ में बच्चों के पैरेंट्स को भी उस ग्रुप में जोड़ा गया. साथ ही बच्चों को दूरदर्शन पर कार्यक्रम देखकर शिक्षकों को जानकारी देने का काम भी सौंपा गया. इस दौरान रेडियो के कार्यक्रमों में भाषा और गणित पर केन्द्रित कार्यक्रम भी प्रसारित किए गए. जिन बच्चों के पास मोबाइल फोन, टीवी या रेडियो नहीं था उनके घर पर वर्क बुक और टेक्स्ट बुक टीचर के माध्यम से पहुंचाई गई.
334 छात्राओं वाले शारदा कन्या माध्यमिक विद्यालय क्रमांक एक की प्रिंसिपल सरला नाईक बताती हैं कि छोटे बच्चों की समस्या ज्यादा रही. वह कहती हैं, "पहली, दूसरी और तीसरी के बच्चे भूल जाते हैं और ज्यादातर ये शिक्षकों पर ही निर्भर रहते हैं. उनका मन खेलने में ज्यादा रहता है. इसलिए इस दौरान बच्चों से ड्रॉइंग बनवाना, कहानी सुनाना और गेम्स खिलवाने जैसे रोचक चीजें करवाई गईं ताकि स्कूल बंद होने के बावजूद वे शैक्षणिक गतिविधियों से जुड़े रहें.”
मिड-डे मील और टेस्ट भी
लॉकडाउन के दौरान बच्चों के माता-पिताओं को दो-तीन महीने का राशन हर बच्चे के हिस्से के मुताबिक एक साथ दिया गया जिसमें गेहूं, दाल, चावल और तेल शामिल थे.
स्कूल बंद होने के बावजूद इस दौरान साप्ताहिक और मासिक टेस्ट भी बच्चों के घर पहुंचकर ही लिए गए. प्रश्नपत्र में भाषा और गणित के विषयों के बहुविकल्पीय सवाल थे. बच्चे टीचर के मोबाइल फोन पर ही किसी एक जवाब को चुनते और हाथों-हाथ नतीजा भी उन्हें बता दिया जाता. वार्षिक परीक्षा के लिए सभी विषयों की वर्कशीट बच्चों के घर जाकर वितरित की गई और पांच दिन के बाद बच्चों से वापस ली गई, जिसके बाद मूल्यांकन किया गया.
334 छात्राओं वाले शारदा कन्या माध्यमिक विद्यालय क्रमांक एक की प्रिंसिपल सरला नाईक बताती हैं कि छोटे बच्चों की समस्या ज्यादा रही. वह कहती हैं, "पहली, दूसरी और तीसरी के बच्चे भूल जाते हैं और ज्यादातर ये शिक्षकों पर ही निर्भर रहते हैं. उनका मन खेलने में ज्यादा रहता है. इसलिए इस दौरान बच्चों से ड्रॉइंग बनवाना, कहानी सुनाना और गेम्स खिलवाने जैसे रोचक चीजें करवाई गईं ताकि स्कूल बंद होने के बावजूद वे शैक्षणिक गतिविधियों से जुड़े रहें.”
मिड-डे मील और टेस्ट भी
लॉकडाउन के दौरान बच्चों के माता-पिताओं को दो-तीन महीने का राशन हर बच्चे के हिस्से के मुताबिक एक साथ दिया गया जिसमें गेहूं, दाल, चावल और तेल शामिल थे.
स्कूल बंद होने के बावजूद इस दौरान साप्ताहिक और मासिक टेस्ट भी बच्चों के घर पहुंचकर ही लिए गए. प्रश्नपत्र में भाषा और गणित के विषयों के बहुविकल्पीय सवाल थे. बच्चे टीचर के मोबाइल फोन पर ही किसी एक जवाब को चुनते और हाथों-हाथ नतीजा भी उन्हें बता दिया जाता. वार्षिक परीक्षा के लिए सभी विषयों की वर्कशीट बच्चों के घर जाकर वितरित की गई और पांच दिन के बाद बच्चों से वापस ली गई, जिसके बाद मूल्यांकन किया गया.
हालांकि 'हमारा घर-हमारा विद्यालय' योजना पर तब विराम लग गया जब अप्रैल 2021 में दूसरी लहर के बाद लॉकडाउन लगा. इस दौरान वायरस का प्रकोप गंभीर था इसलिए इन मोहल्ला और ओटला क्लासेस को स्थगित रखा गया.
मोबाइल फोन बना माता-पिता की चिंता
बच्चों के माता-पिता भी पढ़ाई को लेकर चिंतित हैं. कपड़े सिलने का काम करने वाले और तीन लड़कियों के पिता घनश्याम बताते हैं कि उनके स्मार्टफोन नहीं है इसलिए घर पर पढ़ाई के लिए पास ही रहने वाले बच्चों के मामा के स्मार्ट फोन की मदद लेते हैं.
मजदूरी करके अपनी आजीविका चलाने वाली शारदा का बेटा सचिन छठी क्लास में है. वह बताती हैं एक ही मोबाइल फोन पर तीन बच्चों की पढ़ाई होती है. वह कहती हैं, "स्कूल बंद होने के बाद बच्चों का पढ़ाई में कम ही मन लगता है. स्कूल में अच्छी पढ़ाई होती है जो घर में नहीं हो पाती. बच्चा छठी क्लास का लगता ही नहीं है.”
एनसीईआरटी की प्रोफेसर ऊषा बताती हैं कि डिजिटल डिवाइड का मसला गंभीर है. वह कहती हैं, "जिन बच्चों के पास कोई डिवाइस नहीं है, उनके लिए रेडियो के कार्यक्रम सहायक हो सकते हैं. एनसीईआरटी की ओर से टीवी पर ई-विद्या चैनल शुरु हुए हैं जो कक्षा एक से 12वीं क्लास के लिए है. पैरेंट्स और कम्युनिटी के सदस्यों को भी पढ़ाने का काम दिया जा सकता है. इस दौरान मूल्यांकन के लिए फोन पर मौखिक परीक्षण भी सहायक हो सकता है.”
नई रणनीति की जरूरत
इन 17 महीनों के दौरान बच्चों के नुकसान की भरपाई के लिए अब नई रणनीति बनाने की जरूरत महसूस की जा रही है. अगर अगले कुछ और महीनों में भी छोटे बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं तो इस समस्या से निपटने के लिए मेंटॉर बनाना शुरू किया गया है.
इंदौर के जिला परियोजना समन्वयक अक्षय राठौर बताते हैं, ”जिन बच्चों के पास स्मार्टफोन नहीं है उनके आस-पड़ोस के ऐसे 10वीं या 12वीं पास युवाओं को खोजा जाएगा जिनके पास स्मार्टफोन हों ताकि उन्हें मेंटॉर बनाया जा सके और वो पहली से आठवीं तक के बच्चों को पढ़ा सकें.”
इस चुनौती के बीच डिस्टेंस और आनलाइन शिक्षा ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा है. नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग (एनईओएस) जैसे संस्थान की अहमियत और जरूरत बढ़ी है. संस्थान की चेयरपर्सन प्रोफेसर सरोज बताती हैं, ”सिर्फ किताबी ज्ञान ही नहीं बल्कि पेंटिंग-ड्रॉईंग जैसे कौशल की सीख भी शिक्षा का हिस्सा है और ये बातें एनआईओएस के पाठ्यक्रम में शामिल हैं.” (dw.com)
कोविड वैक्सीन के उत्पादन को पेटेंट की पाबंदियों से मुक्त करने के मुद्दे पर विश्व व्यापार संगठन में कोई सहमित नहीं बन पाई है. इसका अर्थ है कि विकासशील देशों का खुद ही वैक्सीन बनाने को कोशिश कामयाब नहीं हो पाएगी.
विश्व व्यापार संगठन की मंगलवार को हुई बैठक में भी कोविड-19 वैक्सीन के उत्पादन को पेटेंट मुक्त करने की भारत और उसके सहयोगी देशों की कोशिशें नाकाम रहीं. जेनेवा में संगठन के मुख्यालय में हुई बैठक में विभिन्न देशों के बीच कोई सहमति नहीं बन पाई.
विश्व व्यापार संगठन के प्रवक्ता कीथ रॉकवेल ने पत्रकारों को बताया कि इस ‘बेहद जज्बाती मुद्दे पर' नौ महीने के विचार-विमर्श का कोई नतीजा नहीं निकला है. अब सदस्य देश सितंबर की शुरुआत में एक अनौपचारिक बैठक करेंगे जिसके बाद 13-14 अक्टूबर को औपचारिक बैठक होगी.
मंगलवार को कई घंटे तक चली बातचीत के बाद रॉकवेल ने कहा, "हम इस बातचीत को किसी सूरत में नहीं रोकने वाले हैं. यह बहुत जरूरी मुद्दा है. यह बहुत जज्बाती मुद्दा है और इस पर बातचीत जारी रहेगी.” डब्ल्यूटीओ के 164 सदस्य हैं और वहां सारे निर्णय सहमति से ही लिए जाते हैं.
यूरोपीय देश साथ नहीं
भारत और दक्षिण अफ्रीका ने पिछले साल अक्टूबर में डबल्यूटीओ के समक्ष यह प्रस्ताव रखा था कि कोविड वैक्सीन के उत्पादन को बौद्धिक संपदा अधिकार से मुक्त कर दिया जाए ताकि गरीब देश भी अपने यहां अपनी जरूरत की वैक्सीन का उत्पादन कर सकें.
इस प्रस्ताव के समर्थक देशों का कहना है कि पेटेंट मुक्त होने से विकासशील देशों में उत्पादन बढ़ेगा और ज्यादा से ज्यादा लोगों को जल्द से जल्द वैक्सीन लगाई जा सकेगी जो कोरोनोवायरस को रोकने के लिए जरूरी है.
दुनिया की बड़ी दवा कंपनियां और उनके देश इस प्रस्ताव का तीखा विरोध कर रहे हैं. उनका तर्क है कि उत्पादन बढ़ाने में पेटेंट अधिकार कोई बाधा नहीं हैं. इन कंपनियों का विचार है कि पेटेंट अधिकार से मुक्ति का नई खोजें करने की कोशिशों पर बुरा असर पड़ेगा.
भारत और दक्षिण अफ्रीका के प्रस्ताव को अमेरिका और चीन समेत कई दर्जन देशों का समर्थन मिला है. लेकिन यूरोपीय देश और जापान व कोरिया इस प्रस्ताव के तगड़े विरोधी हैं. रॉकवेल ने कहा कि देशों का एक समूह ऐसा भी है जो इस समस्या का व्यवहारिक हल चाहता है.
कैसे बढ़ेगा उत्पादन?
रॉकवेल ने पत्रकारों को बताया कि सदस्य देश तेजी से उत्पादन बढ़ाने पर तो सहमत हुए हैं लेकिन यह लक्ष्य हासिल कैसे किया जाए, इसे लेकर कोई सहमति नहीं बन पाई है. उन्होंने कहा कि सेनेगल, बांग्लादेश, भारत, दक्षिण अफ्रीका, थाईलैंड, मोरक्को और मिस्र में जरूरत से ज्यादा उत्पादन की क्षमता तो है लेकिन उन्हें वैक्सीन के उत्पादन के लिए जरूरी तकनीक और व्यवहारिक ज्ञान की जरूरत है. रॉकवेल ने कहा, "उनमें क्षमता तो है. तो सवाल ये है कि उस क्षमता का इस्तेमाल किया कैसे जाए.”
जिन मुद्दों पर पेटेंट अधिकारों से मुक्ति का यह मामला अटका हुआ है, उनमें तकनीकी बातें ज्यादा हावी हैं. मसलन, मुक्ति कितने समय के लिए होगी और किन शर्तों पर होगी. इसके अलावा, बकौल रॉकवेल, यह भी बड़ा सवाल है कि पेटेंट अधिकारों की मुक्ति को लागू कैसे किया जाएगा और गोपनीय सूचनाओं को सुरक्षित कैसे रखा जाएगा.
समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक दुनियाभर में कोविड वैक्सीन की 3.93 अरब खुराकें लग चुकी हैं. लेकिन उनमें से सिर्फ 0.3 प्रतिशत ही गरीब देशों में दी गई हैं, जहां दुनिया की 9 फीसदी आबादी रहती है.
रॉकवेल ने कहा, "विकासशील देशों में उत्पादन बढ़ाना यहां मौजूदा सभी के लिए अहम है ताकि अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और एशिया में ज्यादा से ज्यादा बाजुओं तक टीके पहुंच सकें.”
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
उत्तराखंड के बाद अब कर्नाटक में बीजेपी को अपना मुख्यमंत्री बदलना पड़ा है. आखिर क्यों पार्टी एक के बाद एक मुख्यमंत्री बदल कर राज्य स्तर पर नेतृत्व में बदलाव ला रही है?
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट
बी एस येदियुरप्पा के लिए यह प्रकरण इतिहास के दोहराए जाने जैसा है. 2011 में जब उन्हें भ्रष्टाचार का दोषी पाया गया था तब पार्टी के आदेश पर उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था. इस बार अंतर यह है कि उन्होंने पार्टी आला कमान से मिल रहे संकेत को स्वीकार कर लिया और बिना आदेश मिले खुद इस्तीफा दे दिया.
अंतर जो भी हो, इस पूरे प्रकरण की वजह से पूरे दक्षिण भारत में बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री के रूप में जाने जाने वाले येदियुरप्पा चौथी बार मुख्यमंत्री का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. उन्हें पद से हटाए जाने के पार्टी के फैसले के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं.
अलिखित नियम
सबसे ज्यादा चर्चा उनकी उम्र को लेकर है. वह 78 वर्ष के हो गए हैं और बीजेपी के नेता पार्टी में पदों की जिम्मेदारी सौंपने के लिए 75 वर्ष की आयु सीमा को एक अलिखित नियम बताते रहे हैं. येदियुरप्पा ने खुद भी अपने एक संबोधन में इसकी चर्चा की.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का धन्यवाद करते हुए उन्होंने कहा, "पार्टी ने 75 वर्ष से ज्यादा आयु वाले किसी भी नेता को कोई पद नहीं दिया लेकिन मेरी इज्जत करते हुए उन्होंने मुझे दो साल तक मुख्यमंत्री रहने दिया."
हालांकि सवाल यह उठता है कि अगर येदियुरप्पा 2019 में 76 वर्ष की उम्र में मुख्यमंत्री पद सौंपे जाने के योग्य थे, तो फिर अचानक 78 वर्ष की आयु में अयोग्य कैसे हो गए. और वह भी कार्यकाल के बीच में. कर्नाटक की राजनीति पर नजर बनाए रखने वालों का मानना है कि असली कारण कुछ और है.
भ्रष्टाचार का बोझ
असली कारण को लेकर भी कई अटकलें हैं. मीडिया में आई कुछ खबरों में येदियुरप्पा के खिलाफ एक बार फिर भ्रष्टाचार के कई आरोप सामने आने की बात की गई है. कुछ ही सप्ताह पहले भ्रष्टाचार के एक पुराने मामले में कर्नाटक के लोकायुक्त द्वारा दायर समापन रिपोर्ट को एक विशेष अदालत ने खारिज कर दिया था.
इस विशेष अदालत में सिर्फ विधायकों और सांसदों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की सुनवाई होती है. इस मामले में येदियुरप्पा के खिलाफ मूल शिकायत 2013 में दर्ज की गई थी और कर्नाटक हाई कोर्ट ने दिसंबर 2020 में इस मामले में जांच के आदेश दिए थे.
विशेष अदालत ने अब लोकायुक्त के साथ जुड़े पुलिस विभाग को मामले में आगे जांच कर 21 अगस्त को रिपोर्ट पेश करने को कहा है. दिसंबर 2020 के बाद से येदियुरप्पा के खिलाफ भ्रष्टाचार के और भी पुराने मामलों ने तूल पकड़ ली है. इनमें से एक मामला 2011 का है, एक 2015 का और एक 2020 का.
पार्टी के लिए संकट
2011 वाला मामला तो सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया था, लेकिन येदियुरप्पा सर्वोच्च अदालत से स्थगन आदेश लेने में सफल हुए थे. जानकारों का मानना है कि संभव है कि पार्टी ने भ्रष्टाचार के इतने सारे आरोपों का बोझ ढोने से बेहतर यही समझा कि मुख्यमंत्री से इस्तीफा ले लिया जाए.
हालांकि पार्टी के लिए कर्नाटक में येदियुरप्पा को हटा कर दूसरा मुख्यमंत्री नियुक्त करना आसान नहीं है. येदियुरप्पा राज्य की राजनीति पर बड़ा असर डालने वाले लिंगायत समाज से आते हैं. राज्य में करीब 17 प्रतिशत लोग लिंगायत समाज के माने जाते हैं और यह आबादी के हिसाब से राज्य में सबसे बड़ा समुदाय है.
इस समाज के राज्य में कई बड़े मठ हैं जिनका राजनीति पर बड़ा असर है. लगभग सभी मठ येदियुरप्पा का समर्थन करते हैं. कुछ ही दिन पहले इन सभी के मठाधीश येदियुरप्पा को समर्थन का प्रदर्शन करने के लिए उनके घर पर इकट्ठा भी हुए थे. (dw.com)
नई दिल्ली, 27 जुलाई | केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने मंगलवार को कहा कि उसने मध्य प्रदेश में भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) के लेखा अधिकारी सुबोध मेहरा को भ्रष्टाचार के एक मामले में गिरफ्तार किया है। सीबीआई के एक अधिकारी ने यहां बताया कि मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में एक शिकायत पर तैनात मेहरा के खिलाफ मामला दर्ज होने के बाद गिरफ्तारी की गई। अधिकारी ने कहा कि शिकायत में यह आरोप लगाया गया था कि मेहरा ने शिकायतकर्ता द्वारा इटारसी में बीएसएनएल कार्यालय को मुहैया किए गए वाहनों के एवज में भुगतान के लिए 5.50 लाख रुपये के अपने लंबित बिलों को संसाधित करने और अग्रेषित करने के लिए शिकायतकर्ता से 25,000 रुपये की रिश्वत की मांग की थी।
अधिकारी ने आगे कहा कि आरोप लगाया गया कि बातचीत के बाद आरोपी ने 20,000 रुपये की रिश्वत के लिए समझौता किया और शिकायतकर्ता को एक निजी व्यक्ति के बैंक खाते में रकम ट्रांसफर करने को कहा। वह निजी व्यक्ति पहले इटारसी में केनरा बैंक के पास वाले बीएसएनएल कार्यालय में दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम कर रहा था।
उन्होंने कहा, शिकायतकर्ता द्वारा मंगलवार को कथित रूप से उक्त बैंक खाते में 20,000 रुपये की राशि हस्तांतरित की गई और इसकी सूचना आरोपी को दी गई।
उन्होंने कहा, "ट्रैप की कार्यवाही और आगे की जांच के दौरान मेहरा को गिरफ्तार कर लिया गया।"
अधिकारी की गिरफ्तारी के बाद सीबीआई ने मप्र के विदिशा जिले के इटारसी में मेहरा और सिरोंज के परिसरों की तलाशी ली।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 27 जुलाई | इंफार्मेशन एंड टेक्नोलॉजी की पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी की बैठक का भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) के सांसदों ने मंगलवार को बहिष्कार कर दिया। संबंधित कमेटी में शामिल भाजपा सांसदों ने चेयरमैन शशि थरूर पर मनमानी करने का आरोप लगाया। भाजपा सदस्यों का आरोप है कि शशि थरूर बैठक में अपना एजेंडा चलाने की कोशिश करते हैं। समिति के सदस्यों की सहमति से एजेंडा तय किया जाना चाहिए, लेकिन वह खुद एजेंडा तय करते हैं। भाजपा सांसदों ने चेयरमैन शशि थरूर पर गोपनीयता भी भंग करने का आरोप लगाते हुए कहा कि सदस्यों की सूचना के बगैर वह एजेंडे को सार्वजनिक कर देते हैं। भाजपा के लोकसभा सांसद निशिकांत दुबे के नेतृत्व में पार्टी सांसदों ने मंगलवार को आईटी की संसदीय स्टैंडिंग कमेटी की बैठक का बहिष्कार किया। भाजपा सांसदों ने कमेटी के चेयरमैन शशि थरूर के खिलाफ लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से भी शिकायत करने की बात कही। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने मीडिया से कहा कि मीटिंग का एजेंडा सदस्यों को एडवांस में मिलना चाहिए, लेकिन नहीं दिया गया। बैठक ऐसे समय में रखी गई, जब दोनों सदन चल रहे हैं।
इंफार्मेशन एंड टेक्नोलॉजी की संसदीय स्टैंडिंग कमेटी में कुल 32 सदस्य हैं। इस कमेटी की अध्यक्षता कांग्रेस के लोकसभा सांसद शशि थरूर करते हैं। भाजपा के निशिकांत दुबे, राज्यवर्धन सिंह राठौर, सैय्यद जफर इस्लामम, तेजस्वी सूर्या, प्रवेश वर्मा, लॉकेट चटर्जी आदि ने बैठक का बहिष्कार किया।
बता दें कि आज चेयरमैन शशि थरूर ने आईटी पर संसदीय स्थाई समिति की बैठक बुलाई थी, जिसका एजेंडा सिनेमैटोग्राफी संशोधन विधेयक 2021 पर चर्चा करने से जुड़ा रहा। इस विधेयक को लोकसभा में पास करने की तैयारी है। (आईएएनएस)