अंतरराष्ट्रीय
एक समाचार चैनल को लाइसेंस देने के मामले पर पोलैंड और अमेरिका के बीच ठन गई है. अमेरिका ने पोलैंड को चेतावनी भी दे डाली है.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट
डिस्कवरी कंपनी के समाचार चैनल का लाइसेंस रीन्यू करने को लेकर अमेरिका और पोलैंड आमने-सामने हैं. अमेरिका ने पोलैंड को चेतावनी दी है कि यदि चैनल का लाइसेंस रीन्यू नहीं किया गया तो भविष्य में देश में अमेरिकी निवेश रोका जा सकता है.
डिस्कवरी का न्यूज चैनल TVN24 दिनभर चलने वाला समाचार चैनल है. उसके लाइसेंस को रीन्यू करने की प्रक्रिया जारी है. यह लाइसेंस 26 सितंबर को खत्म हो रहा है. लेकिन पोलैंड का एक प्रस्तावित कानून इस चैनल के लाइसेंस के लिए खतरा बन गया है जिसकी वजह से अमेरिका ने तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की है.
अमेरिका के विदेश मंत्रालय के काउंसलर डेरेक शोलेट ने गुरुवार को कहा कि लाइसेंस रीन्यू नहीं किया गया तो अमेरिकी निवेश पर भी आंच आ सकती है. शोलेट ने कहा, "पोलैंड में यह एक बड़ा अमेरिकी निवेश है. और अगर लाइसेंस रीन्यू नहीं किया गया तो उसके भविष्य के निवेश पर बड़े असर होंगे.” उन्होंने कहा कि वह इस मुद्दे को पोलिश अधिकारियों के साथ बातचीत में भी उठा चुके हैं.
बाहरी कंपनियों को हटाने की कोशिश
पोलैंड की सत्ताधारी लॉ एंड जस्टिस पार्टी मौजूदा कानून में बदलाव की योजना बना रही है जिसके चलते डिस्कवरी को चैनल में अपनी हिस्सेदारी का अधिकतर भाग बेचना पड़ सकता है. गुरुवार को नेशनल ब्रॉडकास्टिंग काउंसिल (KRRiT) ने चैनल के लाइसेंस को लेकर वोटिंग भी की लेकिन निर्णायक नतीजे नहीं आए.
टीवीएन की अनुमानित कीमत एक अरब अमेरिकी डॉलर यानी लगभग 75 अरब रुपये है, जो पोलैंड में अमेरिका का सबसे बड़ा एकमुश्त निवेश है.
जुलाई में सत्ताधारी पार्टी के सांसदों ने ब्रॉडकास्टिंग एक्ट में संशोधन का प्रस्ताव संसद में पेश किया था. नए प्रस्तावों में यूरोपीय आर्थिक क्षेत्र से बाहर की कंपनियों को पोलैंड में रेडियो और टेलीविजन चैनलों के स्वामित्व का अधिकार न देने की बात है.
मीडिया की आजादी पर हमला
इस कानून को अमेरिका ने मीडिया की आजादी पर हमला बताया है. सत्ताधारी पोलिश पार्टी के विरोधियों ने भी इसे मीडिया की स्वतंत्रता को कुचलने की कोशिश बताया है. शालोट ने कहा, "मीडिया की आजादी बेहद महत्वपूर्ण है.
जबकि लॉ एंड जस्टिस पार्टी का तर्क है कि विदेशी कंपनियों का देश के मीडिया उद्योग में बहुत ज्यादा दखल है जिस कारण जनता के बीच चल रही बहस बिगड़ रही है.
इंटरनेशनल प्रेस इंस्टिट्यूट ने भी पोलैंड के इस कदम को गलत बताते हुए मीडिया अधिकारों पर चिंता जताई है. आईपीई ने पिछले हफ्ते जारी एक बयान में कहा कि प्रस्तावित मीडिया बिल सत्ताधारी पार्टी द्वारा आलोचनात्मक पत्रकारिता पर रोकने का व्यवस्थागत प्रयास है. (dw.com)
दुनिया भर में पुरुषों की तुलना में महिलाओं में कोविड टीका लगने के बाद अधिक दुष्प्रभावों की रिपोर्ट्स आ रही हैं. हालांकि कोई आधिकारिक आंकड़े नहीं हैं लेकिन जो भी अध्ययन हैं, उनमें भी लैंगिक आधार पर जांच की उपेक्षा है.
डॉयचे वैले पर चार्ली शील्ड की रिपोर्ट
कोविड टीकों के गंभीर दुष्प्रभाव की खबरें लगभग नहीं आ रही हैं. अधिकांश लोगों में हल्की-फुल्की दिक्कतें जरूर आती हैं जो कुछ दिनों के बाद गायब हो जाती हैं. मसलन, हल्का बुखार और मांसपेशियों में दर्द. स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि ये हमारे शरीर में एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया बढ़ने के संकेत हैं और यह संकेत देते हैं कि भविष्य में होने वाले संक्रमणों के खिलाफ टीके से हम सुरक्षित रहेंगे.
अमेरिका में, स्वास्थ्य अधिकारियों के मुताबिक, टीका ले चुके लोगों में 0.001% से भी कम में इसके गंभीर दुष्प्रभाव देखे गए हैं. यह बिल्कुल वैसे ही है जैसे कि कोविड वैक्सीन के लिए एलर्जी की प्रतिक्रिया होती है. लेकिन लोगों में इसके कुछ हद तक दुष्प्रभाव यानी साइड इफेक्ट्स देखे गए हैं. आंकड़े बताते हैं कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं को साइड इफेक्ट्स का अनुभव होने की अधिक संभावना है और यह टीकाकरण के पूरे इतिहास में एक प्रवृत्ति को दर्शाता है.
महिला प्रतिरक्षा उल्लेखनीय रूप से भिन्न
जून महीने में स्विट्जरलैंड सरकार ने आंकड़े जारी किए जिसमें दिखाया गया कि कोविड टीकों के 68.7 प्रतिशत दुष्प्रभाव के मामले महिलाओं में ही आए हैं. अमेरिका में लोगों को दी गई पहली 1.37 करोड़ खुराक के मामलों में यह प्रतिशत 79.1प्रतिशत था जिसमें 61.2 प्रतिशत महिलाओं का टीकाकरण किया गया था. और नॉर्वे में अप्रैल की शुरुआत तक टीकाकरण किए गए 7,22,000 लोगों में साइड इफेक्ट्स के 83 फीसदी मामले महिलाओं में थे. ये तो महज कुछ नमूने हैं. महिलाओं के दुष्प्रभावों पर आंकड़े बहुत कम हैं.
लेकिन मेडिकल यूनिवर्सिटी ऑफ वियना में एक न्यूरोइम्यूनोलॉजिस्ट मारिया टेरेसा फेरेटी का कहना है कि हमारे पास जो आंकड़े हैं, वो हैरान करने वाले हैं. फेरेटी, महिला मस्तिष्क परियोजना नामक एक गैर-लाभकारी संस्था की संस्थापक भी हैं. वो कहती हैं कि हमें पहले से ही पता था कि टीका लगाने पर पुरुष और महिलाएं अलग-अलग प्रतिक्रिया करते हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहती हैं, "अन्य विषाणुओं के टीकों के उदाहरण से, हम जानते थे कि टीका लगने पर महिलाएं अधिक एंटीबॉडी का उत्पादन करती हैं, जिसका अर्थ है कि उन पर दुष्प्रभाव भी अधिक होते हैं."
साल 1990 और साल 2016 के बीच 26 वर्षों के दौरान किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि टीकों के प्रति वयस्कों में 80 फीसद विपरीत प्रतिक्रियाएं महिलाओं की थीं. साल 2009 में स्वाइन फ्लू महामारी के दौरान इस्तेमाल किए गए H1N1 टीके से एलर्जी की प्रतिक्रिया की रिपोर्ट करने की संभावना से महिलाओं में चार गुना अधिक पाई गई थी. अन्य शोधों से पता चला है कि सेक्स हॉर्मोन मानव प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित कर सकते हैं. एक अधिक मजबूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया यह भी है कि पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाएं ऑटोइम्यून बीमारियों का विकास क्यों करती हैं, शरीर ओवरड्राइव में चला जाता है, जो वहां होने वाली चीजों पर हमला करता है.
जैविक लिंग और लैंगिक बहुलता
अमेरिका में जॉन्स हॉपकिन्स ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में स्वास्थ्य शोधकर्ता रोजमेरी मॉर्गन कहती हैं कि यह अंतर इस बात की एक बड़ी तस्वीर का हिस्सा है कि कैसे जैविक सेक्स और लिंग दोनों हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं. जबकि महिलाओं को टीकों से अधिक दुष्प्रभाव भुगतने की आशंका होती है, पुरुषों को कोविड के गंभीर मामलों के लिए अस्पताल में भर्ती होने की अधिक संभावना होती है, और पुरुषों में कोविड से मौत की आशंका भी ज्यादा होती है.
उदाहरण के लिए, पुरुष प्रतिरक्षा प्रणाली के अपने विशिष्ट मुद्दे हैं जो महिला शरीर पर कम लागू होते हैं. जैसे पुरुषों में पाया जाने वाला टेस्टोस्टेरोन हॉर्मोन प्रतिरक्षा को कमजोर करने वाला हो सकता है. लेकिन लिंगभेद एक सामाजिक मुद्दा है, जो हमारे दिमाग में विचार, लोगों के व्यवहार और स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच को भी प्रभावित कर सकता है.
उदाहरण के लिए, पुरुष अक्सर दर्द को दबा ले जाते हैं और यही वजह है कि प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं की रिपोर्ट करने की संभावना उनमें कम होती है. डीडब्ल्यू से बातचीत में मॉर्गन कहती हैं, "अध्ययन से पता चलता है कि पुरुषों में मास्क पहनने और हाथ धोने की संभावना कम होती है. यदि आप इसे उनके जैविक जोखिम के साथ जोड़ते हैं, तो यह जटिल मामला है."
कोविड के प्रति इंटरसेक्स, गैर-बाइनरी और ट्रांसजेंडर संवेदनशीलता पर डेटा काफी सीमित हैं, लेकिन कुछ शोध बताते हैं कि लिंग और यौन आधारित अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव का मतलब यह हो सकता है कि वे कोविड से असमान रूप से प्रभावित हैं. और यह पूरी दुनिया में संभव है. शोध से यह भी पता चलता है कि लोगों के कुछ समूहों को महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सुविधाओं से बाहर रखा जा रहा है.
महिलाएं, इंटरसेक्स, गैर-बाइनरी, ट्रांस लोग शोध से बाहर
फेरेटी का कहना है कि शोधकर्ताओं को बहिष्कार और भेदभाव के प्रभावों पर विचार करना चाहिए जब वे टीके और दवाएं विकसित करते हैं और उनका परीक्षण करते हैं. चाहे वह कोविड हो या फिर कोई अन्य बीमारी. वो कहती हैं, "आपको लगता होगा कि वे इन कारकों पर विचार करेंगे, लेकिन लगता नहीं कि ऐसा वो करेंगे." जुलाई महीने में नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि कोविड-19 के उपचार में लगभग 4500 नैदानिक अध्ययनों के एक सेट में से केवल चार फीसद ने सेक्स या लिंग की भूमिका पर विचार करने की योजना की सूचना दी थी.
अध्ययनों में टीकों और दवाओं के लिए नैदानिक परीक्षणों से लेकर मानसिक स्वास्थ्य पर लॉकडाउन के प्रभावों और स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच को देखते हुए शोध संबंधी अध्ययन शामिल हैं. ट्रांसजेंडर लोगों पर कोविड के प्रभाव को विशेष रूप से देखने के लिए केवल एक अध्ययन पाया गया. कुछ अध्ययनों में केवल महिलाओं को शामिल किया गया था, और वे मुख्य रूप से कोविड और गर्भावस्था के बारे में थे.
दिसंबर 2020 तक प्रकाशित 45 परीक्षणों में से केवल आठ को सेक्स या लिंग के संदर्भ में संदर्भित किया गया. नीदरलैंड में रैडबुड यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के शोधकर्ता सबाीने ओएर्टेल्ट प्रिजिओन कहती हैं कि जल्दी शोध परिणाम देने का वैज्ञानिकों के ऊपर काफी दबाव है. वो कहते हैं, "शोधकर्ता कभी-कभी चिंतित होते हैं कि अध्ययन में लिंग अंतर का विश्लेषण करने का मतलब उनके पास ज्यादा से ज्यादा लोगों के नमूने और उन्हें चुनने के लिए लगने वाला लंबा समय जरूरी है."
संक्रमण के मामलों और टीकाकरण की साधारण गिनती में भी लैंगिक आधार को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है. सेक्स, जेंडर और कोविड-19 प्रोजेक्ट नामक एक गैर-लाभकारी संस्था की ओर से किए गए अध्ययन के मुताबिक, केवल 37 फीसद देशों ने कोविड से होने वाली मृत्यु की सूचना दी जो लैंगिक आधार को निर्दिष्ट करता है और जून 2021 के अंत तक टीकाकरण के मामलों में तो सिर्फ 18 फीसद आंकड़ा ही लैंगिक आधार पर तैयार किया गया है.
पुरुष शरीर का 'डिफॉल्ट इंसान' के रूप में इस्तेमाल
मॉर्गन कहती हैं, "चिकित्सा और नैदानिक अनुसंधान और विश्लेषण में लैंगिक आधार का ऐतिहासिक अभाव रहा है. अमेरिका में साल 1993 तक ऐसा नहीं था कि महिलाओं को नैदानिक परीक्षणों यानी क्लिनिकल ट्रायल्स में शामिल किया जाना अनिवार्य हो." ऐसा कहा जाता है कि शोधकर्ता इस बात को लेकर चिंतित थे कि महिलाओं के हार्मोन शोध परिणामों को खराब कर देंगे. इसलिए, उन्होंने चिकित्सा अनुसंधान में पुरुष शरीर को "डिफॉल्ट इंसान" के रूप में इस्तेमाल किया.
मॉर्गन के मुताबिक, बहुत सारी दवाएं केवल पुरुषों को ध्यान में रखकर दी जाती हैं और इसका मतलब है कि डॉक्टर महिला रोगियों या अन्य गैर-पुरुष लिंगों के लिए दवाओं की सही खुराक को विश्वसनीय रूप से निर्धारित नहीं कर सकते हैं. इसका मतलब यह भी है कि हम निश्चित रूप से यह नहीं कह सकते हैं कि संभावित दुष्प्रभावों के कारण कोई महिला कोविड वैक्सीन लेने से हिचकिचा रही है या नहीं. हम निश्चित रूप से नहीं जानते हैं.
फेरेटी का कहना है कि यह "उथली दवा" है. यह मुहावरा अमेरिकी हृदय रोग विशेषज्ञ एरिक टोपोल ने गढ़ा है. और फेरेटी का कहना है कि इसे बदलने की जरूरत है और हमें गहराई तक जाने की जरूरत है, "हम मान रहे हैं कि सभी रोगी कमोबेश एक जैसे हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा है नहीं." (dw.com)
बाढ़ का पानी उतर गया है, लेकिन स्थानीय लोग चिंतित हैं कि जिस तेजी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है उससे आने वाले दिनों में और भी भीषण आपदाएं आ सकती हैं.
बारबरा अंगेरेअर पेशे से किसान हैं. वह अपने चारों ओर नजरें घुमाते हुए कहती हैं कि कुछ दिनों पहले तक यहां घास का हरा-भरा मैदान हुआ करता था जहां हमारे मवेशी चरते थे. "अब यह चांद की सतह जैसा दिख रहा है. यहां की स्थिति पूरी तरह बदल गई है. आप इसे कभी नहीं पहचान पाएंगे."
दक्षिणी बवेरिया के बिशोफश्वाइजेन गांव में बने फॉर्म हाउस से थोड़ी ऊंचाई पर स्थित इस जगह पर अब चारों ओर चट्टान, उखड़े हुए पेड़ और पहाड़ से टूट कर आए मलबे भरे पड़े हैं. यहां से नीचे खलिहान और खेत दिख रहे हैं जहां बाढ़ आने के तीन दिन बाद तक कीचड़ और पानी भरा हुआ था. इन्हें हाल ही में साफ किया गया है.
अंगेरेअर बताती हैं कि पानी कहां से आया. वह सामने की ओर इशारा करती हुई उस सुंदर से झरने को दिखाती हैं जो इस ढ़ालान से कुछ सौ मीटर ऊपर है. वह कहती हैं, "शनिवार को भारी बारिश शुरू हुई और उस झरने से तेजी से पानी नीचे आने लगा. इसकी धारा इस खेत के सबसे ऊपरी हिस्से की ओर बढ़ने लगी. फिर रात में जोरदार धमाका हुआ. एक बड़ी चट्टान लुढ़क कर नीचे आ गई."
उनका परिवार मूसलाधार बारिश में घर के बाहर रखे सामान को बचाने की कोशिश कर रहा था. जब उनके बेटे ने देखा कि पहाड़ से बड़े-बड़े पत्थर टूट कर आ रहे हैं, तो उन्होंने जोर से आवाज दी, ‘भागो! भागो! खुद को बचाओ'. इस समय में वे आपातकालीन नंबर पर कॉल करने और अपने घर में रहने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहे थे.
भयानक मंजर
गांव में रहने वाले लोगों को पहले ही चेतावनी दे दी गई थी कि शनिवार को भारी बारिश होने की संभावना है. इसके बावजूद, अंगेरेअर और उनके परिवार ने घर छोड़कर नहीं जाने का फैसला किया, क्योंकि उनका खेत ऊंची जमीन पर था.
संयोग अच्छा रहा कि उनके फॉर्महाउस को नुकसान नहीं हुआ. हालांकि, मछलियों से भरे तीन तालाब और उनके कई मुर्गे बाढ़ में बह गए. वहीं, खतरे का अंदेशा पाकर उनके मवेशी पहले से सुरक्षित चारागाह की ओर भाग गए थे.
अंगेरेअर रविवार की सुबह दिन के उजाले में देखे गए उस भयानक मंजर को याद कर सिहर जाती हैं. उनके परिवार के सदस्य, पड़ोसी और बुंडेसवेयर के दर्जनों सैनिकों ने उनके खेत और खेत के बाहर के मलबे को साफ किया. उन्होंने जो स्थिति देखी उसे वह पूरी तरह स्वीकार नहीं कर पा रही थीं. उन्हें विश्वास ही नहीं हो पा रहा था कि ऐसा हो सकता है.
‘खतरा अभी टला नहीं है'
बाढ़ के महज कुछ दिनों बाद ही वह इस घटना से जुड़े कारणों पर विचार कर रही हैं. इस बाढ़ ने उनके जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया. अंगेरेअर कहती हैं, "हमने सिर्फ मकान का बीमा करवाया था. इस पूरे 20 हेक्टेयर जमीन का बीमा आप नहीं करवा सकते हैं. इतना खर्च कोई भी वहन नहीं कर सकता है."
खेती वाली ऊंची जमीन के लिए ज्यादातर लोग बाढ़ का बीमा नहीं करवाते हैं. ऐसे में अंगेरेअर जैसे लोगों को बवेरियन और देश की केंद्रीय सरकार की तरफ से किए गए आर्थिक सहायता के वादे पर भरोसा करना पड़ सकता है. बवेरिया प्रांत के मुख्यमंत्री मार्कुस जोएडर ने हर परिवार को 5,000 यूरो की प्रारंभिक सहायता राशि देने का वादा किया है. उन्होंने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि उस परिवार ने बीमा करवाया है या नहीं.
हालांकि, इस आर्थिक मदद से भविष्य की चिंताएं कम नहीं होंगी. अंगेरेअर कहती हैं, "यह बाढ़ निश्चित रूप से जलवायु परिवर्तन से जुड़ी है. अभी खतरा टला नहीं है. वह झरना अभी भी वहीं है. ऐसी आपदा दोबारा आ सकती है. ऐसा नहीं है कि जल्द ही ऐसी घटना होगी, लेकिन होगी."
तेजी से बदल रहा मौसम
पड़ोसी शहर शोनाऊ में रहने वाले 21 वर्षीय फ्लोरियान स्लामनिकू अपने माता-पिता के घर के तहखाने से मिट्टी निकालने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. वह कहते हैं कि गंदगी और पानी की वजह से सारी चीजें भारी हो गई हैं. उनके चारों ओर साइकिल और बगीचे में काम आने वाले उपकरण बिखरे पड़े हैं. सभी कीचड़ में सने हुए हैं और धूप की वजह से उनके ऊपर लगी मिट्टी कठोर हो गई है.
फ्लोरियान के बुजुर्ग पड़ोसी 70 साल पहले आई विनाशकारी बाढ़ के बारे में कहानी सुनाते हैं. इसके बाजवूद, पिछले सप्ताह जो हुआ वह हैरान करने वाला था. फ्लोरियान कहते हैं, "यहां इतनी बारिश कभी नहीं हुई." वे और उनके माता-पिता शहर के इस हिस्से के अधिकांश निवासियों के साथ घर छोड़कर दूसरी जगह चले गए थे. रविवार की सुबह ही उन्हें नुकसान का एहसास हुआ. मकान का पहला तल्ला पूरी तरह कीचड़ से भर गया था.
गांव में विशेष रूप से बुरी तरह प्रभावित चार घरों के आसपास सफाई अभियान जोरों पर है. जर्मनी की तकनीकी संघीय राहत एजेंसी के सैनिक और स्वयंसेवक रविवार से वहां मौजूद हैं. उनमें से कई लोग चौबीसों घंटे काम कर रहे हैं.
योसेफ वांकेर भी शोनाऊ के रहने वाले हैं. वह एक स्वंयसेवक हैं जो पिछले कुछ दिनों से बाढ़ प्रभावित लोगों की मदद कर रहे हैं. उनका मानना है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से यह विनाशकारी बाढ़ आई है. वह मिट्टी हटाने वाली मशीन पर काम करते हुए कहते हैं, "मौसम बहुत तेजी से बदल रहा है. यह पहले की अपेक्षा ज्यादा गर्म और ज्यादा ठंडा हो रहा है."
सामान्य हो रही स्थिति
प्रभावित क्षेत्र के दौरे पर पहुंचे बवेरिया के मुख्यमंत्री मार्कुस जोएडर ने जलवायु परिवर्तन को लेकर ज्यादा काम करने का वादा किया. बवेरिया ने 2040 तक क्लाइमेट न्यूट्रल होने का लक्ष्य रखा है जो पूरे जर्मनी से पांच साल आगे है. इसके लिए, हरियाली और पर्यावरण के क्षेत्र में भारी निवेश की योजना है. हालांकि, बवेरिया के सबसे बड़े विपक्षी दल ग्रीन पार्टी का कहना है कि फिलहाल जलवायु परिवर्तन को लेकर पर्याप्त कार्रवाई नहीं की जा रही है.
इन सब के बीच, फ्लोरियान को संदेह है कि हाल में आई बाढ़ का कारण जलवायु परिवर्तन है. वह कहते हैं, "यह स्पष्ट है कि मौसम हर साल खराब हो रहा है, लेकिन इससे आगे क्या होगा यह कहना मुश्किल है."
बेर्ष्टेडेन क्षेत्र में अगला कदम भूवैज्ञानिकों और वैज्ञानिकों के लिए यह पता करना है कि बाढ़ कहां से आई और इसे रोकने के लिए क्या किया जा सकता है. इस बीच, आपातकाल की स्थिति को हटा दिया गया है और कई लोगों के लिए चीजें सामान्य हो रही है.
जापान के टोक्यो में ओलंपिक खेल शुरू हो गए हैं लेकिन विवाम खत्म नहीं हो रहे हैं. कोविड और गर्मी तो थी ही, लोगों की हरकतों ने भी आग में घी डाला है.
डॉयचे वैले पर जुलियन रयाल की रिपोर्ट
जापान की सरकार, ओलंपिक कमेटी और स्थानीय आयोजक इन दिनों इसी उम्मीद में हैं कि अगले दो सप्ताह बस किसी तरह गुज़र जाएं, प्रचार अभियान में कोई और बड़ी गड़बड़ न होने पाए और एथलीटों में कोविड के नये मामले न आएं.
बृहस्पतिवार को टोक्यो के नये नेशनल स्टेडियम में उद्घाटन समारोह से कुछ ही घंटों पहले ओलंपिक खेल समिति एक नये स्कैंडल में उलझ गयी. इवेंट का एक सीनियर आयोजक होलोकॉस्ट को लेकर मजाक उड़ा चुका था. जिसका उसने फौरन खंडन तो कर दिया लेकिन ओलंपिक के ऐन मौके पर इतना शायद काफी नहीं था.
आयोजन की साख पर बट्टा
शुक्रवार की शाम के उद्घाटन समारोह के क्रिएटिव डायरेक्टरों में से एक, कॉम़ेडियन केन्टारो कोबायाशी को हटा दिया गया. बताया जाता है कि 1998 की अपनी एक हास्य प्रस्तुति में कोबायाशी ने यहूदियों का मजाक उड़ाते हुए एक शब्दावली इस्तेमाल की थी- "चलो होलोकॉस्ट होलोकोस्ट खेलें.”
अपने ताजा माफीनामे में कोबायाशी ने कहा, "मैं जानता हूं कि उस समय गलत शब्दों का बेवकूफी भरा चयन मेरी गलती थी और मुझे उसका अफसोस है. मेरी वजह से जिन्हें असुविधा हुई, मैं उनसे माफ़ी मांगता हूं.”
आयोजकों ने तत्काल ही मामले को रफादफा करने की कोशिश की लेकिन ये तो टोक्यो के ओलंपिक आयोजन की एक के बाद एक आती तमाम मुश्किलों में से सिर्फ सबसे नयी है.
कोरोना वायरस महामारी का अंदाजा लगा पाना बेशक असंभव था और उसका बचाव कोई करेगा भी क्यों लेकिन दूसरी और भी समस्याओं ने जापान के इतिहास में दुनिया के सबसे बड़े खेल आयोजन की साख पर बट्टा तो लगा ही दिया है. माना जा रहा है कि कुछ लोगों के कमजोर और गलत फैसलों की वजह से ऐसा हुआ है.
‘शापित हैं' टोक्यो ओलंपिक खेल
कुल मिलाकर खेल आयोजन में इधर आए दिन जो बखेड़ा हो जाता है, उससे पूर्व प्रधानमंत्री तारो आसो की पिछले साल कही एक बात सही लगने लगती है कि 2020 के ओलंपिक खेलों पर ‘शाप' लगा है.
टेंपल यूनिवर्सिटी के टोक्यो कैंपस में इन्स्टीट्यूट ऑफ कन्टम्पररी एशियन स्टडीज में सह निदेशक रॉबर्ट दुजारिख कहते हैं, "मुझे ये बात बड़ी अविश्वसनीय सी लगती है कि आयोजकों को भव्य उद्घाटन समारोह से बस एक दिन पहले ही ये पता चल पाया कि इस शख्स ने होलोकॉस्ट के बारे में क्या कहा था.” उन्होंने डीडब्लू को बताया कि "यूट्यूब सर्च में पता चल जाता, तो भी उनकी ठीक से जांच क्यों नहीं की गयी? जनसंपर्क के लिहाज से देखे तो ये कतई दुस्वप्न सरीखा है, लेकिन इसे और खराब बना दिया गया है क्योंकि ओलंपिक खेल आयोजन से जुड़े लोगों के साथ और भी ऐसी कई समस्याएं हैं.”
ओलंपिक और उसके बाद होने वाले पैरालम्पिक्स के उद्घाटन समारोह में कोबायाशी संगीत के क्रिएटिव डायरेक्टर बनाए गए थे. लेकिन सोमवार को उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. अपने माफीनामे के बावजूद वो तीखी सार्वजनिक आलोचना से नहीं बच पाए. कोबायाशी पर अपनी किशोरावस्था में मानसिक रूप से विकलांग बच्चों को तंग करने के आरोप भी हैं.
ओपनिंग सेरेमनी में जब दूसरा कॉमेडियन बुलाया गया तो उसे भी बाहर का रास्ता देखना पड़ा. वो ये कह गुजरा था कि प्लस साइज वाली मॉडल को किसी कार्यक्रम में सुअर जैसी पोशाक पहनानी चाहिए जिसे दुनिया भर में अरबों लोग देख रहे होंगे. स्थानीय आयोजन समिति के प्रमुख रह चुके पूर्व जापानी प्रधानमंत्री योशिरो मोरी को भी इस्तीफा देना पड़ा था. उनका कहना ये था कि जिन कमेटी बैठकों में महिलाएं होती हैं वे हमेशा बहुत लंबी चलती हैं.
दो एथलीट कोरोना पॉजिटिव
बृहस्पतिवार को ये बताया गया कि दो और एथलीट- नीदरलैंड्स की स्केटबॉर्डर कैंडी जैकब्स और चेक गणराज्य के टेबलटेनिस खिलाड़ी पावेल सिरुसेक और साथ में 10 सपोर्ट स्टाफ कोरोना से पीड़ित हैं. इस तरह अभी तक ओलंपिक खेलों से जुड़े 87 लोग कोरोना से पीड़ित पाए गए हैं. इनमें से कम से कम तीन मामले ओलंपिक विलेज के ही हैं.
वायरस जापानी लोगों में भी फैल रहा है. टोक्यों में वायरस के घातक डेल्टा वेरिएंट के नये मामले आ रहे हैं. बुधवार को स्वास्थ्य अधिकारियों ने राजधानी में 1832 नये मामलों की गिनती की थी. मध्य जनवरी से एक दिन का ये सबसे बड़ा आंकड़ा था. सात दिन में 683 केस बढ़ चुके थे.
जानकारों ने आगाह किया है कि कुछ ही समय में हालात और खराब होंगे. विशेषज्ञों के एक पैनल ने टोक्यो महानगर प्रशासन को भेजे अपने अनुमान में कहा है कि अगले सप्ताह के अंत तक "स्थिति तीसरी लहर की अपेक्षा और गंभीर हो जाएगी.” नये मामले हर रोज 2600 का आंकड़ा छू सकते हैं जिस समय खेल चल रहे होंगे और देश की चिकित्सा सुविधाओं पर बहुत भारी दबाव आ जाएगा.
औसत से ज्यादा गर्मी
स्वास्थ्य का गहराता संकट और प्रचार अभियानों की शर्मनाक नाकामी तो थी ही, ऊपर से तापमान और उमस में बढ़ोत्तरी की चिंताएं भी सर उठा रही हैं. जापान में साल के इन दिनों में आमतौर पर तापमान ऐसा नहीं होता था. एथलीटों, आयोजकों और वॉलन्टियरों के लिए ऐसा मौसम एक अलग मुसीबत बन सकता है.
इस सप्ताह के शुरू में बीच वॉलीबॉल के लिए ट्रेनिंग सत्र को आगे बढ़ाना पड़ा क्योंकि रेत बहुत गरम थी, खिलाड़ियों के पांव जल रहे थे. तापमान मंगलावर को राजधानी टोक्यो में 34 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था. बृहस्पतिवार दोपहर टोक्यो का तापमान 33 डिग्री सेल्सियस था. उमस 60 प्रतिशत थी और उस स्थिति में तापमान 39 डिग्री के करीब पहुंच गया लगता था.
दो साल पहले, मैराथन और पैदल दौड़ को टोक्यो से कोई 800 किलोमीटर दूर साप्पोरो शहर में आयोजित कराने का फैसला किया गया था. वहां मौसम थोड़ा ठंडा रहता था लेकिन 20 साल से भी ज्यादा समय में पहली बार शहर में इस सप्ताह भीषण गर्मी पड़ रही थी. होकाइडो की हेल्थ साइन्सेस यूनिवर्सिटी में इंफेक्शन कंट्रोल की प्रोफेसर योको सुकामोटो कहती हैं, "मैं कई साल साप्पोरो में रही हूं और मुझे याद नहीं पड़ता कि शुरुआती गर्मी में ही तापमान 35 के आसपास रहा हो.”
उन्होंने डीडब्लू को बताया, "शहर के अधिकारी हर रोज गर्मी की चेतावनी जारी कर रहे हैं और लोगों को खूब पानी पीते रहने की ताकीद भी कर रहे हैं, लेकिन मैराथन के धावकों के लिए इस गरमी में दौड़ना आसान नहीं.” वो कहती हैं, "मुझे नहीं लगता कि इस बार के ओलंपिक खेलों में बहुत सारे नये रिकॉर्ड बन पाएंगे.” (dw.com)
जेल में बंद जानेमाने एक्टिविस्टों की रिहाई के बावजूद मिस्र में विरोधियों की दुश्वारियां कम नहीं हुई हैं. ताजा गिरफ्तारियां बताती हैं कि मिस्र में सत्ता के आलोचकों का दमन जारी है.
डॉयचे वैले पर जेनिफर होलाइस की रिपोर्ट
इस सप्ताह ईद अल-अदहा का त्यौहार काहिरा की जेलों में बंद करीब 40 कैदियों के लिए अच्छी खबर लेकर आया. उन्हें रिहाई मिल गयी. इनमें से तीन मशहूर पत्रकार और तीन मानवाधिकार कार्यकर्ता थे. हालांकि इन रिहाइयों का मतलब ये नहीं है कि उन्हें बरी कर दिया गया है. चालीसों आरोपियों को इस साल के अंत में किसी समय अदालत में होने वाली सुनवाइयों के लिए हाजिर रहना होगा.
रिहाई का स्वागत लेकिन चिंताएं भी
ताजा रिहा हुए कार्यकर्ताओं में देश की जानीमानी फेसबुक गर्ल एसरा आब्देल-फतह भी हैं. 43 साल की ब्लॉगर और नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित एसरा ने विचाराधीन कैदी के रूप में करीब दो साल जेल में काटे. उन पर "फर्जी खबर फैलाने और राज्य विरोधी गतिविधियों” का आरोप था. सत्ता के तीखे आलोचक पत्रकार गमाल अल-गमाल भी रिहा कर दिए गए. वह चार साल तुर्की में रहकर एक टीवी शो को होस्ट करते थे, फेसबुक पर भी सक्रिय हैं. इस साल की शुरुआत में उन्हें काहिरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचते ही हिरासत में ले लिया गया था.
वॉशिंगटन डीसी में मिडल ईस्ट पॉलिसी के तहरीर इन्स्टीट्यूट में कार्यकारी निदेशक रामी याकूब ने डीडब्लू को फोन पर बताया, "मैं गर्मजोशी से इन रिहाइयों का स्वागत करता हूं. इनमें से दो लोगों को मैं एक दशक से भी अधिक समय से करीब से जानता हूं. मैं बता नहीं सकता कि कितना खुश हूं, लेकिन मैं ये भी मानता हूं कि ये कोई स्थायी समाधान नहीं है. मुझे खुशी है कि हम लोग इन्हें छुड़ा पाए लेकिन अब भी बहुत से लोग बंद हैं.”
एक ओर रिहाई दूसरी ओर कड़ी कार्रवाई
कार्यकर्ताओं और पत्रकारों की हालिया रिहाई के बीच मिस्र में विरोधियों का दमन भी जमकर हो रहा है. इस हफ्ते, मिस्र के अखबार अल-अहराम के पूर्व एडिटर इन चीफ अब्देल नासेर सलामा को आतंकवाद और फर्जी खबर चलाने के आरोपों में हिरासत में ले लिया गया. पिछले सप्ताह, मिस्र की सर्वोच्च आपराधिक अदालत में एक मुकदमा छह अन्य कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के खिलाफ जारी था. इनमें पूर्व सांसद जयाद अल-एलाइमी भी हैं.
मुस्लिम ब्रदरहुड संगठन के सदस्यों के खिलाफ भी मिस्र कोई नरमी नहीं दिखाता. उसे 2013 में आतंकवादी गुट करार दिया गया था. इसी जून में उसके 12 सदस्यों की मौत की सजा बहाल रखने का फैसला सुनाया गया. उनके परिवारों ने फैसले के खिलाफ विरोध जताने और लोगों का ध्यान खींचने के लिए सोशल मीडिया पर #StopEgyExecutions हैशटैग के साथ अभियान छेड़ दिया है.
इनमें से एक सजायाफ्ता मुजरिम मोहम्मद अल-बेलतगी भी हैं जो 2011 की मिस्र की क्रांति के प्रमुख किरदार रहे हैं. उनकी पत्नी सना अब्द अल-गवाद ने एक चिट्ठी लिखी है, जिसकी प्रति डीडब्लू को भी हासिल हुई है. उसमें उन्होंने मिस्र की हुकूमत पर हिरासती के बुनियादी मानवाधिकारों को खारिज करने का आरोप लगाया है.
चिट्ठी में लिखा है, "हाल में सैन्य हुकूमत ने मेरे पति को मौत की सजा सुनाई है, जबकि मेरे पति दर्जनों दूसरे नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ सालों से धीमी और व्यवस्थागत मौत की ओर धकेले जाते रहे हैं. उनसे जिंदगी के सबसे बुनियादी हक और जीवित रहने के तमाम जरिए भी छीन लिए गए हैं.”
ह्यूमन राइट्स वॉच का अनुमान है कि मिस्र की जेलों में इस समय करीब 60 हजार लोग राजनीतिक मामलों में बंद हैं. सबसे ज्यादा मौत की सजा और फांसी देने वाले देशों की, एमनेस्टी इंटरनेशनल की 2020 की सूची में भी मिस्र का नंबर पहला है. मिस्र में, 2019 में 32 लोगों को फांसी दी गई थी लेकिन 2020 में तीन गुना यानी 107 लोग फांसी पर लटका दिए गए.
मिस्र के दोस्त अमेरिका ने भी जतायी चिंता
हिरासत में लेने और अभियोग लगाने की हाल की घटनाओं ने ध्यान भी खींचा है. मिस्र के सबसे शक्तिशाली दोस्त अमेरिका का ध्यान भी गया है. पिछले सप्ताह, अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने मिस्र के जानेमाने खोजी पत्रकार और ईजिप्शियन इनीशिएटिव फॉर पर्सनल राइट्स (ईआईपीआर) के महानिदेशक, होसाम बाहगत की राजनीति से प्रेरित गिरफ्तारी पर चिंता जताई थी.
एक प्रेस ब्रीफिंग में प्राइस ने कहा, "हम मानते हैं कि सभी लोगों को अपने राजनीतिक विचार जाहिर करने और शांतिपूर्वक मिलने-जुलने और परस्पर संगठित होने की इजाजत मिलनी चाहिए. एक सामरिक भागीदार के रूप में हमने अपनी चिंताओं से मिस्र की सरकार को अवगत करा दिया है और आगे भी हम ऐसा करते रहेंगे.” प्राइस ने ये भी स्पष्ट किया कि "अमेरिका सुरक्षा, स्थिरता और जो भी हमारे दूसरे हित हों- उनके नाम पर मानवाधिकारों को नजरअंदाज नहीं करेगा. अपने मूल्यों और अपने हितों की हमारे लिए बहुत बड़ी अहमियत है और ये सरकार एक की खातिर दूसरे का बलिदान नहीं कर सकती है.”
प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब ये पूछा गया कि क्या ये मुद्दा मिस्र को मिलने वाली हथियारों की खेप को भी प्रभावित कर सकता है तो इस पर प्राइस का कहना था, "ऐसे फैसले करते हुए हम हर स्थिति में मानवाधिकारों की हिफाजत के मामलों को भी बहुत करीब से देखते हैं.”
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने उम्मीदवार के रूप में भी कमोबेश यही बात, अपने पूर्ववर्ती डॉनल्ड ट्रंप के खास करीबी बन चुके मिस्र के राष्ट्रपति के बारे में कही थी कि उन्हें अब और "ब्लैंक चेक” नहीं मिलेंगे.
मिस्र के पास हैं तुरुप के पत्ते
चाथम हाउस मिडल ईस्ट ऐंड नॉर्थ अफ्रीका प्रोग्राम में एसोसिएट फैलो मोहम्मद अल दहशान ने डीडब्लू को फोन पर बताया, "अंतरराष्ट्रीय दबाव पड़ेगा तो मिस्र के राष्ट्रपति अल-सिसी और सरकार को अपना व्यवहार बदलने पर मजबूर होना पड़ेगा. लेकिन सच्चाई ये है कि इस मामले में कोई गंभीर कोशिश दिखती नहीं है.”
वह कहते हैं, "पिछली दफा मिस्र की सरकार को अपने मानवाधिकारों पर खाता दुरुस्त करने को लेकर आधी-अधूरी कोशिश तो हुई लेकिन उसे आगे जारी नहीं रखा गया. मिस्र को भी पता चल गया कि वो महज दिखावा था.”
अमेरिका से आने वाले किसी दबाव के खिलाफ खुद को तैयार रखने के लिए मिस्र के पास तुरूप के पत्ते हैं. आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में मिस्र को भरोसेमंद सहयोगी माना जाता है, अमेरिका के जंगी जहाजों और सैन्य पोतों को स्वेज नहर से गुजरते हुए तवज्जो मिलती है, अमेरिकी सैन्य विमान मिस्र की हवाई सीमा में बेरोकटोक आ जा सकते हैं. इसके अलावा मध्य-पूर्व (पश्चिम एशिया) संघर्ष में मिस्र एक अहम मध्यस्थ की भूमिका भी निभाता है. हाल में अमेरिकी विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकेन ने फलस्तीनी इस्लामी ग्रुप हमास और इस्राएल के बीच शांति समझौता कराने के लिए मिस्र की तारीफ भी की थी.
नयी संभावित दोस्तियां
और भी देखें तो मिस्र के पास शक्तिशाली सहयोगियों की कमी नहीं है. जैसा कि तहरीर इन्स्टीट्यूट के रामी याकूब इशारा करते हैं, "अमेरिका का मिस्र के साथ रिश्ता, दोतरफा और बहुआयामी है. अमेरिकी हित इसी में हैं कि मिस्र कहीं रूस, फ्रांस या चीन से हथियार न खरीदने लगे.”
याकूब के मुताबिक अमेरिका से नज़रें न फेर लेने के लिए मिस्र को बाध्य करने वाले और भी तरीके हैं. वह बताते हैं, "मिस्र को मदद की सख्त दरकार है- मिसाल के लिए इथोपिया के साथ द ग्रांड इथोपियन रेनेसां डैम, गेर्ड के मुद्दे को लेकर या शैक्षणिक ग्रांटों और कार्यक्रमों का आवंटन और शायद ऐसी ही और सॉफ्ट पावर अप्रोचों को बढ़ावा दिया जा सकता है.” याकूब कहते हैं, "इस तरह और भी दूसरी सॉफ्ट पावर के तरीके काम आ सकते हैं. मैं यह नहीं कहता कि वे उतने असरदार होंगे लेकिन ये सहयोग बनाए रखने वाले तमाम औजारों के पैकेज का हिस्सा बनेंगे. किसी एक चीज या कोई एक डर दिखाने से काम नहीं चलेगा.”
कुछ भी हो, ये देखने लायक होगा कि काहिरा मानवाधिकार को एक नये ट्रेडमार्क में बदल पाता है या नहीं. या नयी रिहाइयां त्योहारी अवसरों की किसी छूट की तरह ही रह जाएंगी. (dw.com)
यूरोपीय संघ का कहना है कि "विदेशी एजेंट" वाले कानून की आड़ में स्वतंत्र मीडिया और गैर सरकारी संगठनों पर नकेल कसने के रूस के प्रयास विशेष रूप से अगले चुनाव से पहले चिंताजनक हैं.
यूरोपीय संघ के एक प्रवक्ता ने गुरुवार देर रात एक बयान में कहा कि क्रेमलिन "विपक्ष को चुप कराने की कोशिश कर रहा है." बयान में कहा गया, "सितंबर में रूसी संसद के निचले सदन डूमा के लिए होने वाले चुनाव से पहले इस तरह की हरकतें चिंताजनक हैं."
यूरोपीय संघ के विदेश मामलों के प्रतिनिधि योसेप बोरेल की प्रवक्ता नबीला मसराली के मुताबिक, "यूरोपीय संघ रूसी नागरिक समाज, मानवाधिकार रक्षकों और स्वतंत्र पत्रकारों के साथ खड़ा है और उनके महत्वपूर्ण कार्यों में उनका समर्थन करना जारी रखेगा."
विपक्ष का दमन
मसराली ने विपक्ष के खिलाफ रूस के "जारी अभियान" पर एक बयान में कहा कि रूस ने कई गैर सरकारी संगठनों और मीडिया कंपनियों पर "अनुपयुक्त संगठन" और "विदेशी एजेंट" होने का आरोप लगाया था और उन्हें काम करने से रोका.
यूरोपीय संघ ने रूसी थिंक टैंक इंस्टीट्यूट ऑफ लॉ ऐंड पब्लिक पॉलिसी (आईएलपीपी) को गैरकानूनी घोषित करने और प्रोजेक्ट मीडिया कंपनी समेत कई पत्रकारों को गैरकानूनी घोषित करने के रूस के फैसले की आलोचना की है.
रूस का 'विदेशी एजेंट' कानून क्या है?
पिछले साल दिसंबर में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 2012 के कानून के विस्तार को मंजूरी दी थी. कानून के तहत सरकारी अधिकारी विदेशी वित्त पोषित एनजीओ या मीडिया कंपनियों को विदेशी एजेंट के रूप में नामित कर सकते हैं. कानून के तहत अधिकारियों के पास किसी भी व्यक्ति को विदेशी एजेंट घोषित करने की शक्ति है और ऐसे व्यक्तियों को जेल हो सकती है अगर वे सरकारी अधिकारियों को अपनी गतिविधियों का पूरा विवरण मुहैया नहीं कराते हैं.
रूस की राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ इस्तेमाल की जा सकने वाली जानकारी एकत्र करने वाला व्यक्ति भी विदेशी एजेंट कानून के तहत आ सकता है और उसे सजा हो सकती है. पूर्व-सोवियत रूस में "विदेशी एजेंट" शब्द का प्रयोग नकारात्मक अर्थों में किया जाता था. रूसी अधिकारियों ने सरकार विरोधी समूहों, नागरिक समाज समूहों, पत्रकारों और ब्लॉगर्स के लिए इस कानून का इस्तेमाल किया है.
क्रेमलिन आलोचक और रूसी विपक्षी नेता अलेक्सी नावाल्नी की गिरफ्तारी और उन्हें जेल में डालने को लेकर ईयू पहले ही कई बार आलोचना कर चुका है. नावाल्नी को बार बार गिरफ्तार करके और कैद में रखकर विरोध की उस आवाज को दबाने की कोशिश हो रही है.
पिछले साल उन्हें मारने की भी कोशिश हुई. जर्मनी में इलाज के बाद जब वो वापस लौटे तो उन्हें 2014 के एक मुकदमे में सजा के नियमों के उल्लंघन के आरोप में गिरफ्तार कर फिर से जेल में डाल दिया गया था.
एए/वीके (डीपीए, रॉयटर्स)
अफगानिस्तान में तालिबान अपना दायरा बढ़ा रहा है और देश की महिला कारोबारियों की चिंताएं बढ़ गई हैं. महिलाओं ने जो सालों की प्रगति हासिल की है वह तालिबान के आने से धूमिल हो सकती है.
डिजाइनर मर्जिया हफीजी अपने फैशन कारोबार के अस्तित्व के बारे और पिछले 20 सालों में महिलाओं ने जो प्रगति हासिल की है उसको लेकर चिंतित हैं. 29 साल की हफीजी ने राजधानी में अपना कपड़े का स्टोर साल 2018 में खोला था. अपने रूढ़िवादी पुरुष-प्रधान देश में व्यवसायी महिला बनने का सपना उनका वर्षों पुराना था. 1996-2001 तक तालिबान के शासन के दौरान ऐसा सोच पाना भी नामुमकिन था.
हफीजी कहती हैं, "अगर तालिबान सत्ता में वापस आते हैं और अपने पुराने कानून को लागू करते हैं तो मुझे इस कारोबार को छोड़ने के लिए मजबूर किया जा सकता है." हफीजी के यहां मर्द और औरतें कपड़े काटने और उन्हे सिलने का काम करते हैं.
हफीजी कहती हैं, "मेरे सभी दोस्त और परिवार मुझे कारोबार छोड़ने की सलाह दे रहे हैं और देश छोड़ने को कह रहे हैं (लेकिन) महिलाओं को बढ़ावा देने का मेरा संकल्प, उन्हें व्यवसाय का मौका देने और उनके लिए रोजगार सृजित करने के लिए मैं यहां रह रही हूं. मैं अस्तित्व के लिए लड़ रही हूं."
20 साल की तरक्की
तालिबान ने अपने दौर में इस्लामी कानून की सख्त व्याख्या लागू की थी, जिसमें सार्वजनिक रूप से कोड़े मारना और पत्थर मारना जैसी सजाएं देना भी शामिल था. 2001 में अमेरिका के हमले के बाद वहां महिलाओं पर अत्याचार बंद हो पाया था.
जैसे-जैसे अमेरिकी नेतृत्व वाली विदेशी सेना ने अपनी वापसी पूरी की, तालिबान ने तेजी से क्षेत्रीय बढ़त हासिल की है, जिससे लोगों में डर पैदा हो गया है. महिलाओं को शिक्षा और काम को लेकर मिले अधिकारों के वापस चले जाने का खतरा पैदा हो गया है.
तालिबान शासन के दौरान महिलाओं को शरीर और चेहरे को बुर्के से ढकने पड़ते थे. उन्हें शिक्षा से वंचित किया गया और काम नहीं करने दिया जाता था. महिलाएं बिना किसी पुरुष रिश्तेदार के घर से बाहर नहीं जा सकती थीं.
तालिबान के वादों में कितना दम
तालिबान ने वादा किया कि महिलाएं ''शिक्षा के क्षेत्र में सेवा दे सकती हैं, व्यापार, स्वास्थ्य और सामाजिक क्षेत्र में काम कर सकती हैं. इसके लिए उन्हें इस्लामी हिजाब का सही ढंग से इस्तेमाल करना होगा.'' साथ ही उसने वादा किया कि लड़कियों को अपनी पसंद का पति चुनने का विकल्प होगा, अफगानिस्तान के रूढ़िवादी और कबीलों वाले समाज में इसे अस्वीकार्य माना जाता है.
सरकार ने महिलाओं के अधिकारों से समझौता नहीं करने की प्रतिबद्धता जाहिर की है. महिला अधिकारों के बदले शांति बहाली को लेकर तालिबान और अफगान सरकार के बीच बातचीत विफल रही है.
खुफिया एजेंसी, नेशनल इंटेलिजेंस काउंसिल का आकलन है कि अगर तालिबान देश का नियंत्रण वापस ले लेता है, तो पिछले दो दशकों में जो तरक्की महिला अधिकारों में हासिल हुई वह वापस धकेल देगा.
दोहा में शांति वार्ता में कुछ महिला वार्ताकारों में से एक फौजिया कूफी कहती हैं वे महिला अधिकारों पर कोई समझौता नहीं करने वाली हैं. हत्या की दो कोशिश झेल चुकी कूफी कहती हैं, "अफगानिस्तान की महिलाओं का जो प्रतिरोध है वह प्रगति को दोबारा शून्य पर नहीं जाने देगा."
कूफी का कहना है, "हम समाज में महिलाओं की उपस्थिति बनाए रखने के लिए सब कुछ करेंगे. राजनीतिक और सामाजिक जीवन में उपस्थिति बनाए रखने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे. हम काले अतीत में वापस नहीं लौटेंगे."
मार डालो या काम करने दो
देश में उन महिलाओं की संख्या भी बढ़ी है जिन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की और वे पुरुष के काम वाले क्षेत्रों में काम भी कर रही हैं. महिलाएं अब राजनीति, मीडिया, न्यायपालिका और आईटी जैसे क्षेत्रों में बढ़ चढ़कर अपनी भूमिका निभा रही हैं.
काबुल, हेरात और मजार-ए-शरीफ जैसे शहरों में युवतियां अपने स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हुए और पश्चिमी कपड़े पहने आजादी के साथ चलते देखी जा सकती हैं.
अफगानिस्तान महिला चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के मुताबिक काबुल में महिलाएं लगभग 60 हजार व्यवसायों की मालिक हैं जिनमें रेस्तरां, ब्यूटी पार्लर और हस्तशिल्प की दुकानें शामिल हैं.
28 साल की निलोफर अयूबी जो इंटीरियर डिजाइनिंग कंपनी चलाती हैं, कहती हैं कि हालात जो भी हों वह अपना काम नहीं छोड़ेंगी. निलोफर के मुताबिक, "अगर तालिबान (सत्ता में) आते हैं, तो उन्हें या तो मुझे काम करने देना पड़ेगा या मारना पड़ेगा."
काबुल में जेवर और मेकअप का सामान बेचने वालीं 23 साल की मासूमा जाफरी कहती हैं कि उन्हें पता है कि अगर आतंकवादी सत्ता पर काबिज हो जाएंगे तो महिलाओं को क्या कीमत चुकानी होगी. मासूमा कहती हैं, "मैं घोर से आती हूं जहां पूर्व में तालिबान ने कई महिलाओं को पत्थर मारकर मार डाला है. मुझे देखिए मैं प्रतिरोध का प्रतीक हूं."
एए/वीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने अपना फोन और नंबर बदल लिया है. एक अखबार ने खबर दी थी कि माक्रों का फोन भी पेगासस कांड में निशाने पर था.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट
पेगासस सूची में नाम आने के बाद फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने अपना फोन और फोन नंबर दोनों बदल लिए हैं. गुरुवार को उनके दफ्तर ने यह जानकारी दी. पेगासस कांड में यह पहली ठोस कार्रवाई है.
गुरुवार को उनके दफ्तर ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "उनके पास कई फोन नंबर हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि उनकी जासूसी हो रही थी. ऐसा बस अतिरिक्त सुरक्षा के लिए है.”
उधर फ्रांस सरकार के प्रवक्ता गाब्रिएल अटाल ने कहा कि इस घटना के मद्देनजर राष्ट्रपति की सुरक्षा के लिए जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं. उन्होंने कहा, "बेशक, हम इसे बहुत गंभीरता से ले रहे हैं.”
फ्रांस आरोपों पर गंभीर
रविवार को दुनिया के 17 मीडिया संस्थानों ने एक विस्तृत जांच के बाद दावा किया था कि कई राष्ट्राध्यक्षों, मंत्रियों, पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की जासूसी के लिए इस्राएली कंपनी के स्पाईवेयर पेगासस का इस्तेमाल किया गया. इस सूची में इमानुएल माक्रों का भी नाम था.
ला मोंड अखबार और रेडियो फ्रांस ने मंगलवार को खबर दी थी कि मोरक्को ने माक्रों के फोन को निशाना बनाया था. दोनों मीडिया संस्थानों ने कहा कि उन्हें माक्रों का फोन मिला नहीं इसलिए वे इस बात की पुष्टि नहीं कर सकते कि जासूसी वाकई हुई या नहीं. माक्रों ने इन आरोपों को गलत बताया है.
मोरक्को के एक फ्रांसीसी वकील ओलिविएर बाराटेली ने कहा है कि मोरक्को सरकार खुलासे करने वाली गैरसरकारी संस्थाओं एमनेस्टी इंटरनेशनल और फॉरबिडन स्टोरीज के खिलाफ मानहानि का मुकदमा कर दिया है. इन्हीं दोनों संस्थानों ने मीडिया को वह डेटा दिया था, जिसकी जांच के बाद पेगासस के हमले की खबरें सामने आईं.
उधर बाकी यूरोपीय देशों में भी पेगासस को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने बर्लिन में पत्रकारों को बताया कि ऐसे देशों को स्पाईवेयर नहीं दिया जाना चाहिए, जहां न्यायिक समझदारी नहीं है.
हंगरी में अधिकारियों ने गुरुवार को जासूसी की कई शिकायतों के मद्देनजर एक जांच शुरू कर दी है.
इस्राएल भी करेगा जांच
इस्राएल में भी एक मंत्री-स्तरीय दल का गठन किया गया है जो 17 मीडिया संस्थानों की खबरों का आकलन करेगा.
जासूसी के आरोपों को खारिज करते हुए पेगासस सॉफ्टवेयर बनाने वाली कंपनी एनएसओ का कहना है कि उसका प्रोग्राम सिर्फ अपराध और आतंकवाद से लड़ने के लिए है. एनएसओ ने इन खबरों को "पूरी तरह गलत अवधारणाएं और आधारहीन सिद्धांत” बताते हुए खारिज कर दिया है.
लेकिन इस्राएल में एक वरिष्ठ सांसद ने कहा है कि स्पाईवेयर के निर्यात की शर्तों की जांच एक संसदीय पैनल द्वारा कराई जा सकती है. इस्राएली संसद कनेसेट की विदेश और रक्षा मामलों की समिति के प्रमुख राम बेन-बराक ने डिफेंस एक्सपोर्ट कंट्रोल्स एजेंसी (DECA) का जिक्र करते हुए आर्मी रेडियो से कहा, "निश्चित तौर पर, डेका द्वारा लाइसेंस दिए जान के इस पूरे विषय को हमें नए तरीके से देखना होगा.”
इस्राएल की जासूसी एजेंसी मोसाद के उप प्रमुख रह चुके बेन-बराक ने कहा कि इस्राएली सरकार की टीम "प्रतिबंधों की जांच करेगी और हम निश्चित ही देखेंगे कि कहीं चीजों को ठीक करने की जरूरत है.” उन्होंने कहा कि पेगासस के सही इस्तेमाल ने बहुत लोगों की मदद की है.
एनएसओ का कहना है कि वह उन लोगों के बारे में नहीं जानती जिनके खिलाफ पेगासस का इस्तेमाल किया जाता है. कंपनी का कहना है कि यदि किसी ग्राहक द्वारा पेगासस के गलत इस्तेमाल की शिकायत मिलती है तो एनएसओ निशाना बनाए गए लोगों की सूची निकाल सकती है और शिकायत सही पाए जाने पर ग्राहक से सॉफ्टवेयर वापस भी ले सकती है.
भारत में बवाल जारी
भारत में पेगासस प्रोजेक्ट का हिस्सा रही समाचार वेबसाइट द वायर ने अब तक 115 नाम उजागर किए हैं जिनमें 40 से ज्यादा पत्रकारों के अलावा कांग्रेस नेता राहुल गांधी, विभिन्न दलों के साथ काम कर चुके प्रशांत किशोर और दो केंद्रीय मंत्रियों प्रह्लाद पटेल व अश्विनी वैष्णव का नाम शामिल है.
इसके अलावा विश्व हिंदू परिषद के पूर्व अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया और तृणमूल कांग्रेस के नेता अभिषेक बनर्जी का फोन भी पेगासस के निशाने पर होने का दावा किया गया है. उद्योगपति अनिल अंबानी और उनकी कंपनी के एक अधिकारी द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे फोन भी इस सूची में शामिल हैं. रिलायंस ग्रुप ने इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं की है.
पेगासस कांड को अमेरिका के वॉटरगेट कांड से भी बड़ा बताते हुए विपक्षी दल संसद में और बाहर सरकार की आलोचना कर रहे हैं. हालांकि भारत सरकार का कहना है कि जासूसी के आरोप निराधार हैं. (dw.com)
-ज़ुबैर अहमद
चौथी पीढ़ी के दक्षिण अफ़्रीकी भारतीय खैरात दीमा का कहना है कि हाल की हिंसा में डरबन शहर के सिटी सेंटर में उनकी किराना दुकान पूरी तरह से लूट ली गई.
उन्होंने बीबीसी अफ़्रीका को बताया, "लुटेरों ने मेरे स्टोर को ख़ाली कर दिया और जाने से पहले तोड़फोड़ की".
खैरात ने अफ़सोस जताया कि "बहुत से लोगों ने अपनी दुकानों से अपना माल खो दिया."
जिन लोगों की दुकानों को लूटा गया या आग लगा दी गई या जिनके घरों में आग लगा दी गई उनमें से कई भारतीय मूल के संपन्न लोग थे जिससे समुदाय को ऐसा लगा कि हिंसा का निशाना वही हैं.
पिछले दिनों सोशल मीडिया दक्षिण अफ़्रीका में हुई हिंसा के वीडियो और तस्वीरों से भरा पड़ा था जिनमें लोग दुकानों, मॉल, घर और ट्रकों को या तो लूट रहे हैं या उन्हें जलाते दिख रहे हैं.
अब हिंसा का दौर थम-सा गया है क्योंकि लगभग 25,000 सैनिक प्रभावित इलाक़ों में तैनात किए जा चुके हैं जिन्होंने हिंसा पर क़ाबू पा लिया है, लेकिन भारतीय मूल के लोगों में अब भी डर है.
माइनॉरिटी फ़्रंट पार्टी की शमीन ठाकुर-राजबंसी दक्षिण अफ़्रीका के क्वाज़ुलु-नटाल प्रांत के विधानसभा की एक निर्वाचित सदस्य हैं. उन्होंने डरबन से बीबीसी हिंदी से बात करते हुए कहा, "मैं आपको बता सकती हूँ कि अभी हर समुदाय डर में जी रहा है. ज़ाहिर है, जब हिंसा अपने चरम पर थी तो भारतीय समुदाय में काफ़ी ख़ौफ़ था क्योंकि यह एक स्वाभाविक बात है."
इस हिंसा का केंद्र क्वाज़ूलू-नटाल का तटीय शहर डरबन था. यह डरबन शहर ही है जहां महात्मा गांधी 1893 में भारत से आकर रहे थे. बाद में गांधी जी ने पास के शहर फ़ीनिक्स में अपना आश्रम बनाया था, जो हाल की हिंसा में बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. भारत के बाहर भारतीय मूल के सबसे अधिक लोग किसी शहर में रहते हैं तो वह डरबन ही है.
पूर्व राष्ट्रपति जैकब ज़ूमा की गिरफ़्तारी के बाद दक्षिण अफ्रीका के कई शहरों में भड़की हिंसा में 117 लोग मारे भी गए.
भारतीय मूल के लोग देश की आबादी का केवल ढाई प्रतिशत हैं, लेकिन इनमें से अधिकतर व्यापार से जुड़े हैं और धनी हैं.
उन्हें हुए नुक़सान का अंदाज़ा अभी पूरी तरह से नहीं लगाया जा सका है, लेकिन लूट-खसोट और तोड़-फोड़ ने समुदाय की आर्थिक कमर तोड़ दी है.
डरबन में शैक्षिक और राजनीतिक विश्लेषक लुबना नदवी ने बीबीसी हिंदी को बताया, "रंगभेद के ज़माने में कुछ ख़ास भारतीय टाउनशिप को बसाया गया था. फ़ीनिक्स जैसे कुछ भारतीय टाउनशिप में जो नुक़सान हुआ है वो भारतीय लोगों का ही हुआ है क्योंकि वहां ज़्यादातर भारतीय ही रहते हैं, लेकिन जो बड़े औद्योगिक और आर्थिक क्षेत्र हैं वहां सबका नुक़सान हुआ है."
पंजीयन ब्रदर्स नाम की एक भारतीय कंपनी की पांच शाखाएं हैं जिनमें से चार लूट ली गईं. इसके मालिक ने मीडिया वालों को बताया कि उन्होंने अपनी एक दुकान को लुटते हुए और पूरी तरह से गिरते हुए लाइव टीवी पर देखा. इसके बाद उनके रिश्तेदारों की बग़ल वाली दुकानें को लूटा गया और जला दिया गया.
भारतीय मूल की विधायक शमीन ठाकुर-राजबंसी कहती हैं, "तस्वीर यह है कि व्यवसायों पर अंधाधुंध हमला किया गया और पूर्व भारतीय क्षेत्रों में कई व्यवसाय तबाह हो गए और घरों पर हमला किया गया".
लुबना नदवी के मुताबिक़ कुछ दिनों तक घर में खाना उपलब्ध नहीं था क्योंकि फ़ूड सप्लाई करने वाले ट्रकों को आग लगा दी गई और ब्रेड-दूध वाली छोटी दुकानों को भी तबाह कर दिया गया.
भारतीयों को निशाना बनाया गया?
आम राय ये है कि शुरू के दिनों में हिंसा की चपेट में सभी समुदाय आए, लेकिन बाद में हुए हमलों में भारतीयों की संपत्तियों को निशाना बनाया गया. शमीन ठाकुर-राजबंसी इससे सहमत नज़र आती हैं, "शुरुआत में भारतीय समुदाय पर सीधे हमले नहीं किए गए. लेकिन अराजकता का माहौल रिहाइशी इलाकों में फैलने लगा और इस तरह नस्लीय तनाव पैदा होना शुरू हो गया, हालांकि पहले कोई नस्लीय तनाव नहीं था."
लुबना नदवी का मानना है कि भारतीय समुदाय को जानबूझ कर निशाना नहीं बनाया गया. "ये हमला यहाँ की अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस (एएनसी) की सरकार के ख़िलाफ़ था, ये राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा के विरोध में हिंसा की गई थी."
दक्षिण अफ़्रीका को एक रेनबो नेशन कहा जाता है जहाँ कई समुदाय और नस्ल के लोग आबाद हैं. जेल से रिहा होने के बाद नेल्सन मंडेला ने शांति और सुलह से रहने पर ज़ोर दिया. साल 1994 में दक्षिण अफ्रीका पहली बार लोकतंत्र बना और तब से कोशिश इस बात की की जा रही है कि सभी समुदाय मिली-जुली आबादी और मिले-जुले मोहल्लों में आबाद हों. इसमें काफ़ी कामयाबी मिली है, लेकिन अब भी राष्ट्रीय एकीकरण का मिशन पूरा नहीं हुआ है.
भारतीय मूल के लोग आबादी का केवल ढाई प्रतिशत हैं. गोरी नस्ल के लोगों की संख्या नौ प्रतिशत है. इसी नस्ल के नेताओं ने दक्षिण अफ़्रीका पर दशकों तक राज किया. 80 प्रतिशत स्थानीय काली नस्ल के लोग इस देश में रहते हैं. लेकिन दक्षिण अफ़्रीका के काले लोगों का इल्ज़ाम है कि भारतीय मूल के लोग उनके ख़िलाफ़ नस्ली भेदभाव कर रहे हैं.
भारतीयों के ख़िलाफ़ गंभीर आरोप
काली नस्ल के लोगों के साथ भारतीय समुदाय के रिश्ते आम तौर पर अच्छे हैं, लेकिन अंदर ही अंदर दोनों समुदायों के बीच सालों से सामाजिक तनाव जारी है जिसका इज़हार एक बार 1949 की हिंसा में हुआ था और दूसरी बार 1985 में हुई हिंसा के दौरान. लेकिन तब दक्षिण अफ़्रीका रंगभेद करने वाली गोरी नस्ल के नेताओं की सरकारों के अधीन था.
1994 से दक्षिण अफ़्रीका नेल्सन मंडेला के नेतृत्व में एक लोकतांत्रिक देश बना जिन्होंने सभी समुदायों के साथ मेल-जोल बढ़ाने पर ज़ोर दिया. लेकन आज जो हिंसा हो रही है वो पिछले 25 सालों में कभी नहीं हुई.
काले लोगों में आम धारणा ये है कि भारतीय नस्लवादी हैं. जोहान्सबर्ग के निकट स्वेटो शहर के एक पत्रकार सीज़वे बीको कहते हैं कि नस्ली तनाव एक टिकिंग टाइम बम है. स्वेटो से बीबीसी से एक बातचीत में उन्होंने कहा, "वो (भारतीय मूल के लोग) कहते हैं वो काले हैं जब उन्हें राजनीतिक फ़ायदा होता है और जब उन्हें गोरी नस्ल के साथ गिने जाने की ज़रुरत होती है तो वो आसानी से हमारे ख़िलाफ़ हो जाते हैं.".
बीको के कई भारतीय मूल के दोस्त हैं और वो इस बात पर ज़ोर देते हैं कि वो भारतीय समुदाय के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन उनके अनुसार हक़ीक़त ये है कि "वो ख़ुद को हमसे कुछ हद तक श्रेष्ठ और गोरों के बराबर मानते हैं".
बीको को भारतीय मूल के लोगों के इस व्यवहार पर आश्चर्य नहीं हैं क्योंकि वो कहते हैं, "वो बंद दरवाजों के पीछे एक-दूसरे के साथ कास्ट सिस्टम की वजह से जिस तरह से पेश आते हैं वो और भी बुरा है. इसलिए हमारे प्रति उनके इस रवैये से हम आश्चर्य नहीं है."
शमीन ठाकुर-राजबंसी कहती हैं कि भेदभाव करने वाले हर समुदाय में हैं. "हमें सच को मानना चाहिए कि भारतीयों के बारे में काली नस्ल के बीच ये एक वास्तविक धारणा है, लेकिन भारतीय समुदाय में भी ये धारणा है कि काले लोग नस्लवादी होते हैं. लेकिन मैं आपको बता दूं कि नस्लवाद सभी समूहों में है."
वो आगे कहती हैं, "ऐतिहासिक रूप से यहाँ समुदायों के बीच तनाव रहा है जिसकी झलक 1949 और 1985 में देखने को मिली, लेकिन याद रखें कि ये घटनाएं दमनकारी शासन के तहत हुई थीं. हम अब लोकतंत्र हैं. लोकतंत्र के बाद पिछले 27 वर्षों से भारतीय समुदाय और अफ़्रीकी समुदाय साथ-साथ रह रहे हैं और वो शांति से सौहार्दपूर्वक रह रहे हैं."
लुबना नदवी कहती हैं कि भारतीय समुदाय के थोड़े लोग ही नस्लवादी हैं. "भारतीय समुदाय में अल्पसंख्यक लोग हैं जो नस्लवादी होंगे, जैसे कि हर समुदाय में कुछ लोग होते हैं जो अपने को दूसरों से ऊँचा समझते हैं और दूसरों को नीचे दिखाने की कोशिश करते हैं, लेकिन यहाँ रहने वाले अधिकतर भारतीय दक्षिण अफ़्रीकी दूसरे समुदायों के साथ मिलकर रहते हैं."
उन्होंने रंगभेद वाली सरकार को दोषी ठहराया. "मुश्किल ये है कि नस्लवाद की वजह से अलग-अलग समुदाय को अलग बसाया गया. नस्लवादी सरकार ने अलग-अलग समुदायों के बीच तनाव पैदा करने की कोशिश की थी."
ताज़ा हिंसा के दौरान सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो पोस्ट किए गए जिनमें भारतीय मूल के लोगों को लुटेरों पर गोलियां चलाते दिखाया गया था, ज़्यादातर लुटेरे काले थे. दक्षिण अफ़्रीका के अख़बारों में भी भारतीय लोगों पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने गोलियाँ चलाईं.
इन हमलों पर दक्षिण अफ्रीका के काली नस्ल के नेताओं के बयान अब भी आ रहे हैं. जूलियस सेलो मालेमा एक प्रसिद्ध युवा नेता और सांसद हैं, जिन्होंने 2013 में राजनीतिक दल, इकनोमिक फ़्रीडम फ़ाइटर्स की स्थापना की थी. अपने एक ट्वीट में उन्होंने कहा, "मैं फ़ीनिक्स के केवल एक मामले पर बोलना चाहता हूँ जहां भारतीय हमारे लोगों को मार रहे थे. पुलिस को उन लोगों को ढूंढना होगा क्योंकि हमारे पास उन्हें खोजने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. जितनी जल्दी वे ऐसा करें, उतना ही बेहतर होगा."
अबेदनेगो नाम के एक युवक ने अपने एक ट्वीट में कहा, "उन बंदूकधारी भारतीयों और गोरे लोगों से नफ़रत मत करो, बल्कि हमें यह पूछने की जरूरत है कि काले लोगों के पास बड़ी बंदूकें क्यों नहीं हैं."
सामाजिक एकता के टूटने का खतरा
कई विश्लेषकों के विचार में दक्षिण अफ़्रीका की बड़ी समस्याएं भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी और आर्थिक रूप से एक असमान समाज है. जब से दक्षिण अफ़्रीका एक लोकतंत्र बना है अफ़्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस (एएनसी) सत्ता में है जिसकी आर्थिक नीतियां नाकाम रही हैं और पार्टी गुटबंदी का शिकार हो गई है.
'डेली मेवेरिक' के सहयोगी संपादक फ़ेरियल हफ़ाजी ने अपने एक लेख में सुझाव दिया है कि हिंसा का उद्देश्य पहले से ही कमज़ोर अर्थव्यवस्था को और भी कमज़ोर करना था, जिससे राष्ट्रपति रामफोसा की सरकार और भी कमज़ोर होगी. विशेषज्ञ कहते हैं कि गुटबाज़ी से परेशान एएनसी मोटे तौर पर दो मुख्य समूहों में विभाजित है.
एक का नेतृत्व राष्ट्रपति रामफोसा कर रहे हैं, जो उनके समर्थकों के अनुसार जैकब ज़ूमा प्रशासन के दौरान कथित भ्रष्टाचार और लूटपाट के एक दशक के बाद धीरे-धीरे सरकारी संस्थानों और जवाबदेही का पुनर्निर्माण कर रहा है. दूसरा गुट पूर्व राष्ट्रपति ज़ूमा के प्रति सहानुभूतिपूर्ण और कट्टर वफ़ादार है.
भ्रष्टाचार और भारत के गुप्ता बंधुओं की भूमिका
पूर्व राष्ट्रपति जैकब ज़ूमा भ्रष्टाचार के इल्ज़ाम में 15 महीने की जेल की सजा काट रहे हैं. वो भारत से दक्षिण अफ़्रीका जाकर व्यापार करने वाले भारतीय गुप्ता भाइयों के काफ़ी क़रीब थे.
उनके ख़िलाफ़ जारी एक जांच में इस बात का भी पता लगाया जा रहा है कि क्या उन्होंने भारत के तीन गुप्ता भाइयों को उनके व्यापार में फ़ायदा पहुँचाया.
इन भाइयों के नाम हैं अतुल गुप्ता, अजय गुप्ता और राजेश गुप्ता. ज़ूमा के ख़िलाफ़ इल्ज़ाम ये है कि उन्होंने इन तीनों भाइयों को राज्य के संसाधनों को लूटने और सरकारी नीतियों को प्रभावित करने की अनुमति दी. ज़ूमा और गुप्ता भाइयों ने इन इल्ज़ामों को ग़लत बताया है.
जैकब ज़ूमा को 2018 में इस्तीफा देना पड़ा जिसके बाद उनके ख़िलाफ़ जांच शुरू हो गई. इस बीच गुप्ता भाइयों ने दक्षिण अफ़्रीका छोड़ दिया. देश की अदालत में चल रहे कई मुक़दमों में उनके नाम हैं और दक्षिण अफ़्रीका की पुलिस उन्हें तलाश कर रही है.
कई लोग मानते हैं कि गुप्ता ब्रदर्स के ख़िलाफ़ आम जनता का ग़ुस्सा भारतीय पर निकाला गया है. गुप्ता ब्रदर्स 1990 के दशक में उत्तर प्रदेश के शहर सहारनपुर से दक्षिण अफ़्रीका गए थे. (bbc.com)
शी जिनपिंग भारतीय सीमा से लगे तिब्बत के इलाक़े में पहुंचे हैं
चीन की सरकारी समाचार सेवा शिन्हुआ के मुताबिक चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने तिब्बत का दौरा किया है. राष्ट्रपति के तौर पर जिनपिंग का ये पहला तिब्बत दौरा है.
जिनपिंग बुधवार को दक्षिण-पश्चिमी तिब्बत के न्यींगशी शहर पहुंचे जहां स्थानीय लोगों ने उनका स्वागत किया. शिन्हुआ के मुताबिक जिनपिंग ने न्यांग नदी पर बने पुल का भी मुआयना किया. गुरुवार को उन्होंने न्यींगशी से लेकर ल्हासा तक रेल यात्रा की.
न्यींगशी और ल्हासा के बीच पिछले महीने ही रेल सेवा शुरू हुई है. ये तिब्बत का पहला इलेक्ट्रिक रेलवे सिस्टम है. तिब्बत चीन का स्वशासित क्षेत्र है. तिब्बत का न्यींगशी शहर भारत की अरुणांचल सीमा के पास स्थित है. इसके आसपास का इलाक़ा हाल के सालों में भारत और चीन के बीच सीमा विवाद का केंद्र भी रहा है.
रेडियो फ्री एशिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक शी जिनपिंग की यात्रा के दौरान सुरक्षा के भारी इंतेज़ाम किए गए थे. ड्रोन और पतंग उड़ाने पर रोक थी और फैक्ट्रियों और निर्माण स्थलों पर काम बंद था.
चीन ने 70 साल पहले तिब्बत को अपने नियंत्रण में ले लिया था. तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा अपने अनुयायियों के साथ भारत के धर्मशाला में रहते हैं. (bbc.com)
अमेरिका में वॉशिंगटन डीसी में एक रेस्टोरेंट के बाहर एक बंदूकधारी ने फ़ायरिंग कर दी. ये जगह व्हाइट हाउस से करीब डेढ़ किलोमीटर ही दूर है.
ये एक मैक्सिन रेस्टोरेंट हैं जो लोगन सर्कल एरिया में मौजूद है. गुरुवार रात (भारतीय समयानुसार 23 जुलाई सुबह) को हुई इस फ़ायरिंग के दौरान कई लोग रेस्टोरेंट के बाहर भी बैठे थे. बंदूकधारी ने उन पर 20 से ज़्यादा बार गोलियां चलाईं.
चश्मदीदों ने बताया कि फ़ायरिंग करने वाला शख़्स इसके बाद कार से भाग निकला.
अमेरिका में हिंसक अपराध के मामले भले ही कम हो रहे हों लेकिन अमेरिका के कई शहरों में इस तरह के फ़ायरिंग के मामले बढ़ रहे हैं.
वॉशिंगटन डीसी के अपराध के आंकड़ों के मुताबिक एक बंदूक से फ़ायरिंग के मामले साल 2018 के बाद से हर साल बढ़ रहे हैं. 2021 में ऐसे 471 मामले दर्ज किए गए हैं. पिछले साल ऐसे 434 मामले आए थे.
वॉशिंगटन डीसी में हुए फ़ायरिंग के मामले अधिकतर शहर के गरीब इलाक़ों में ही सामने आए हैं. जैसे दक्षिण पूर्वी और उत्तर पूर्वी ज़िलों में.
इस फ़ायरिंग के दौरान सीएनएन की एक प्रेजेंटर जिम अकोस्टा भी मौजूद थीं.
उन्होंने ट्वीट किया, “मैंने 14 स्ट्रीट उत्तर पश्चिम वॉशिंगटन डीसी में गोलियां चलने की आवाज़ सुनी. लोग ले डिपलोमेट रेस्टोरेंट से भाग रहे थे जो कुछ दूरी पर है.”
27 साल की जैस डेविडसन भी उस रेस्टोरेंट में मौजूद थीं. उन्होंने बीबीसी को बातया,“वो बहुत भयानक था. मुझे लगा कि मैं मर ही जाऊंगी..”
“अमेरिका में रहते हुए आपको हमेशा इसका डर बना रहता है लेकिन आप ऐसी स्थितियों को लेकर कुछ नहीं कर सकते. यह पर बहुत गुस्सा आता है.”
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने फ़ायरिंग के ऐसे अपराधों को लेकर कदम उठाने का वादा किया था. जिसमें कुछ खास तरह की बंदूकों को लेकर सख़्त नियम बनाना और लोगों की पृष्ठभूमिक की जांच करना शामिल है.
हालांकि, ऐसा करना उनके लिए आसान नहीं है. हथियार रखने का अधिकार अमेरिकी संविधान के दूसरे संशोधन द्वारा संरक्षित है और कई लोग बंदूक नियंत्रण क़ानूनों को इस संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन मानते हैं.
मृत्युंजय कुमार झा
नई दिल्ली, 22 जुलाई : तालिबान के अल्टीमेटम के बावजूद बेफिक्र तुर्की अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद काबुल अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे की सुरक्षा अपने हाथ में लेने जा रहा है। नाटो के नेतृत्व वाले रेसोल्यूट सपोर्ट मिशन के हिस्से के रूप में अंकारा छह साल से काबुल हवाईअड्डे के सैन्य और रसद संचालन चला रहा है।
तालिबान ने तुर्की को हवाईअड्डे को चलाने के लिए अफगानिस्तान में कुछ सैनिकों को रखने की योजना के खिलाफ चेतावनी दी है, अगर अन्य विदेशी बलों के हटने पर उसके सैनिक अफगानिस्तान में रहते हैं तो गंभीर परिणाम की चेतावनी दी है।
लेकिन तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन ने चेतावनी को खारिज करते हुए तालिबान से कहा कि उन्हें अपने भाइयों की धरती पर कब्जा खत्म करना चाहिए और दुनिया को दिखाना चाहिए कि अफगानिस्तान में अभी शांति है।
एर्दोगन ने तालिबान को तुर्की के साथ एक समझौते में प्रवेश करने के लिए कहा, जैसा कि उसने 2019 में अमेरिका के साथ किया था।
तुर्की दैनिक डेली न्यूज ने एर्दोगन के हवाले से कहा, "कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जिनसे तालिबान असहज हैं। तालिबान के साथ इस प्रक्रिया पर बातचीत करके, जैसे तालिबान ने संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ कुछ बातचीत की, तालिबान को तुर्की के साथ और नरमी से वार्ता करनी चाहिए।"
उन्होंने कहा कि चाहे विदेश मंत्रालय के स्तर पर हो या अपने स्तर पर, तुर्की यह देखने की कोशिश कर रहा है कि वह तालिबान के साथ किस तरह की बातचीत कर सकता है और ये वार्ता उन्हें कहां ले जा सकती है।
क्या तुर्की तालिबान के साथ आमने-सामने आकर आग लगाता है या एक नाटककार के रूप में तुर्की अपनी शाही विरासत की बदौलत अफगानिस्तान में राजनीतिक स्थिरता को मजबूत करने में सहायता कर सकता है?
एर्दोगन को भरोसा है कि नाटो का एकमात्र मुख्य रूप से मुस्लिम सदस्य और अफगानिस्तान के साथ अंकारा के ऐतिहासिक संबंध होने के कारण, तालिबान और अफगान सरकार के बीच शांति समझौता करने में मदद मिल सकती है।
लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि एर्दोगन विद्रोही समूह पर अपने प्रभाव का अधिक आकलन कर रहे हैं। समूह के विरोध को दूर करने के लिए तुर्की अपने करीबी सहयोगियों, पाकिस्तान और कतर की ओर देख रहा है, जिनके तालिबान के साथ घनिष्ठ संबंध हैं।
लेकिन पिछले कुछ महीनों में तालिबान तुर्की की अनदेखी कर रहा है और समर्थन के लिए ईरान, रूस और चीन तक पहुंच गया है।
जबकि अमेरिका और उसके सहयोगी अपने सैनिकों को वापस ले रहे हैं, तुर्की अभी भी अफगानिस्तान में 500 से अधिक सैनिकों को रखे हुए है।
एर्दोगन ने कहा कि अमेरिका चाहता है कि काबुल हवाईअड्डा तुर्की द्वारा संचालित किया जाए, क्योंकि वह कई सालों से ऐसा कर रहा था और अब नाटो सहयोगियों के बीच संवाद भविष्य के तुर्की मिशन के विवरण को मजबूत करना जारी रखता है। पश्चिमी राजनयिकों और सहायता कर्मियों के लिए काबुल हवाईअड्डा मुख्य निकास मार्ग है।
एर्दोगन ने कहा, "अब एक नया युग है।" "तीन मुख्य प्राधिकरण यहां देखे जाते हैं : नाटो, अमेरिका और तुर्की।"
(यह आलेख इंडिया नैरेटिव के साथ एक व्यवस्था के तहत प्रस्तुत है)
नई दिल्ली, 22 जुलाई| मेडिकल प्रवेश परीक्षा 'नीट-यूजी' पहली बार दुबई में भी आयोजित की जाएगी। यह परीक्षा कुवैत में भी आयोजित करवाई जा रही है। यह पहला अवसर है जब यह परीक्षा 11 अन्य भाषाओं के साथ पंजाबी और मलयालम में भी आयोजित की जाएगी। गुरुवार देर रात शिक्षा मंत्रालय में यह जानकारी साझा की है। नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) ने पिछले हफ्ते नीट एग्जाम की तारीखों के जारी होने के साथ ही कुवैत परीक्षा केंद्र खोलने की घोषणा की थी। नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने गुरुवार रात जानकारी देते हुए कहा कि अब दुबई में एक और परीक्षा केंद्र खोलने का फैसला किया गया है।
शिक्षा मंत्रालय के उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे ने एक पत्र के जरिए भारतीय विदेश सचिव को दुबई को परीक्षा केंद्र के रूप में शामिल करने के बारे में सूचित किया है। अमित खरे ने अपने पत्र में कहा कि खाड़ी देशों में भारतीय समुदाय को इस विषय में उचित तरीके से सूचित किया जा सकता है। शिक्षा मंत्रालय ने उम्मीद जताई है कि कुवैत और दुबई में भारतीय दूतावासों के सहयोग से निष्पक्ष और सुरक्षित तरीके से एनीट (यूजी) 2021 परीक्षा आयोजन हो सकेगा। (आईएएनएस)
दुनिया की सबसे मूल्यवान तेल उत्पादक कंपनी सऊदी अरामको ने बीबीसी से पुष्टि की है कि उनके किसी एक ठेकेदार के ज़रिए कंपनी का डेटा लीक हुआ है.
बताया गया है कि कथित तौर पर इन फ़ाइलों (डेटा) का इस्तेमाल अब कंपनी से पाँच करोड़ डॉलर यानी लगभग 372 करोड़ रुपये की जबरन वसूली के लिए किया जा रहा है.
साइबर सुरक्षा में निवेश ना करने को लेकर तेल और गैस उद्योग से जुड़ी कंपनियों की वैश्विक स्तर पर आलोचना होती रही है.
इसी साल मई में, अमेरिका की नामी कंपनी 'कोलोनियल पाइपलाइन' पर भी साइबर हमला हुआ था, जिसकी काफ़ी चर्चा रही थी.
ईमेल पर भेजे गये एक बयान में, तेल उत्पादक कंपनी आरामको ने बीबीसी को बताया कि हमें हाल ही में इस डेटा-चोरी का पता लगा. एक थर्ड-पार्टी ठेकेदार के ज़रिये हमारे डेटा की चोरी की गई.
हालांकि, कंपनी ने ये नहीं बताया कि किस ठेकेदार के ज़रिये कंपनी का डेटा चोरी हुआ, और ना ही कंपनी ने इस बारे में कोई जानकारी दी कि डेटा आख़िर चोरी हुआ कैसे? क्या सिस्टम हैक किये गए या फ़ाइलें चोरी करने के लिए कोई और तरीक़ा अपनाया गया?
कंपनी का कहना है कि "हम इस बात की पुष्टि कर सकते हैं कि डेटा हमारे सिस्टम से चोरी नहीं हुआ. हमारे संचालन पर भी इस डेटा लीक का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है, क्योंकि हमने साइबर सिक्योरिटी के लिए एक बड़ी व्यवस्था बनाई हुई है."
अमेरिकी समाचार एजेंसी 'असोसिएटिड प्रेस' (एपी) के अनुसार, सऊदी अरामको कंपनी का एक टेराबाइट यानी एक हज़ार गीगाबाइट साइज़ का डेटा ज़बरन वसूली करने वालों के हाथ लगा है. डार्कनेट पर उन्होंने इसकी जानकारी दी है.
एपी की रिपोर्ट के अनुसार, जबरन वसूली करने वालों ने अरामको को ऑफ़र दिया है कि वो पाँच करोड़ डॉलर के बदले में ये डेटा डिलीट कर देंगे. वसूली करने वालों ने ये रकम क्रिप्टोकरेंसी के रूप में माँगी है. हालांकि, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि फ़िरौती की साज़िश के पीछे किन लोगों का हाथ है.
अमेरिका में साइबर हमले के पीछे रूस पर संदेह क्यों
तेल कंपनी अरामको ने सीधे तौर पर बीबीसी के सवालों का जवाब नहीं दिया, बल्कि उसने एपी की रिपोर्ट पर अपने स्पष्टीकरण के रूप में बीबीसी को यह जवाब दिया.
विशेषज्ञों की मानें, तो तेल और गैस उत्पादन के क्षेत्र की कंपनियाँ साइबर सिक्योरिटी पर पर्याप्त पैसा ख़र्च नहीं करती हैं जबकि वर्षों से इस बारे में चर्चा होती रही है और कहा जाता रहा है कि इन कंपनियों को साइबर हमलों से बचने के लिए बेस्ट साइबर सिक्योरिटी के बारे में विचार करना चाहिए.
ये पहली बार नहीं है, जब अरामको को साइबर हमले का निशाना बनाया गया है.
2012 में भी कंपनी का कंप्यूटर नेटवर्क तथाकथित शूमन वायरस की चपेट में आया था.
इस साल भी जब अमेरिकी कंपनी 'कोलोनियल पाइपलाइन' पर साइबर हमला हुआ, तो ऊर्जा उद्योग की कंपनियों के कंप्यूटर सिस्टमों की कमज़ोरियाँ दुनिया के सामने आ गईं.
कंपनी ने इसी साल मार्च में अपने एक बयान में कहा था कि हाल के इतिहास में ये कंपनी के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण सालों में से एक था.
कंपनी के अनुसार, साल 2019 में अरामको को जितनी कमाई हुई थी, उसकी तुलना में पिछले साल यानी 2020 में 45 फ़ीसदी का नुक़सान हुआ.
पिछले साल कोरोना महामारी को रोकने के लिए दुनिया भर में जिस तरह पाबंदियाँ लगाई गईं, उसकी वजह से उद्योग बंद हो गए थे, लोगों की यात्राएं स्थगित हो गई थीं और रोज़मर्रा की ज़िंदगी की कई गतिविधियों में ठहराव आ गया था.
इन सब का असर तेल और ऊर्जा की माँग पर पड़ा और तेल की क़ीमतों में पाँच गुना तक की गिरावट देखी गई.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.) (bbc.com)
ब्रिटेन ने एशियाई समुद्र में दो युद्धपोत स्थायी रूप से तैनात करने का ऐलान किया है. जापान ने चीन के मंसूबों को लेकर चिंता जताई थी, जिसके बाद ब्रिटेन ने यह फैसला किया है.
ब्रिटेन का विमानवाहक युद्धतपोत क्वीन एलिजाबेथ और उसके सहयोगी जहाज सितंबर में जापान पहुंच रहे हैं. जापान के टोक्यो में एक उच्च स्तरीय बैठक के बाद ब्रिटेन ने ऐलान किया है कि उसके दो पोत स्थायी तौर पर एशिया में तैनात रहेंगे. टोक्यो और लंदन के बीच मजबूत होते रणनीतिक संबंधों के बीच यह ऐलान हुआ है. हाल ही में जापान ने चीन के अपनी सीमाओं के प्रसार के मंसूबों को लेकर चिंता जताई थी. इसमें ताईवान को लेकर चीन के इरादों की ओर भी इशारा किया गया था.
जहाजों की स्थायी तैनाती
ब्रिटेन के रक्षा मंत्री बेन वॉलेस ने टोक्यो में अपने समकक्षण नोबुओ किशी से मुलाकात की. वॉलेस के जापान दौरे को ब्रिटेन की एशिया में बढ़ती गतिविधियों का ही एक संकेत माना जा रहा है मुलाकात के बाद जारी एक साझा बयान में दोनों नेताओं ने कहा, "जहाजी बेड़े की पहली तैनाती के बाद साल के आखिर में ब्रिटेन दो जहाजों को इस इलाके में स्थायी रूप से तैनात करेगा.” किशी ने बताया कि सितंबर में जापान पहुंचने के बाद क्वीन एलिजाबेथ जहाज और उसके साथ आए सहयोगी पोत अलग-अलग बंदरगाहों पर रहेंगे. बेड़े का एक हिस्सा अमेरिकी बेड़े के साथ रहेगा जबकि दूसरा जापानी नौसेना के साथ.
जापान और अमेरिका पुराने सैन्य सहयोगी हैं. जापान में ही अमेरिका का सबसे बड़ा सैनिक ठिकाना है, जहां युद्धपोत, विमान और हजारों सैनिक तैनात हैं. एफ-35बी विमानों से लैस ब्रिटिश जहाज अपने पहले सफर पर योकोशुका स्थित सैन्य अड्डे पर रहेगा. टोक्यो के नजदीक स्थित इस शहर में जापान के जहाजी बेडे के अलावा अमेरिका का विदेश में मोर्चे पर तैनात एकमात्र विमानवाहक पोत यूएसएस रॉनल्ड रीगन भी है.
दक्षिणी चीन सागर से सफर
टोक्यो में ब्रिटिश दूतावास ने एक बयान में बताया है कि ब्रिटेन के युद्धपोत स्थायी बेस नहीं बनाएंगे. क्वीन एलिजाबेथ पोत के साथ अमेरिका और नीदरलैंड्स से दो डिस्ट्रॉयर, दो फ्राईगेट और दो सहायक नौकाएं व पोत भी होंगे. यह बेड़ा भारत, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया में रुकता हुआ दक्षिणी चीन सागर होते हुए जापान पहुंचेगा. दक्षिणी चीन सागर के कुछ हिस्सों को चीन और अन्य दक्षिण-एशियाई देश अपना-अपना बताते हैं.
वॉलेस ने कहा कि आने वाले समय में ब्रिटेन आतंक-रोधी और बचाव अभियानों में विशेष प्रशिक्षण पाए सैनिकों का समूह लिटोरल रिस्पॉन्स ग्रूप भी इलाके में तैनात करेगा. उन्होंने कहा कि उनके जहाजों को जापान आने की आजादी है और इस आजादी को जताना उनका फर्ज है. ब्रिटेन एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए कई तरह के कदम उठा रहा है. जापान के दौरे पर ब्रिटिश विदेश मंत्री अपने साथ कई सैन्य कमांडरों को प्रतिनिधिमंडल लेकर आए थे.
चीन का दावा
चीन दक्षिणी चीन सागर के बड़े हिस्से पर अपने अधिकार का दावा करता है. यह दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में तनाव और विवाद की बड़ी वजह है क्योंकि कई अन्य देश भी इन इलाकों पर दावा करते हैं, जिन्हें अमेरिका और यूरोप का भी समर्थन मिलता है. कथित ‘नाईन डैश लाइन' पर उसके अधिकार का दावा द हेग स्थित परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन में भी खारिज हो चुका है.
वॉलेस ने एक जापानी अखबार द टाइम्स को दिए इंटरव्यू में कहा, "यह कोई छिपी बात नहीं है कि चीन एक बहुत ही वैध रास्ते पर जहाजों की आवाजाही को चुनौती देता है. हम चीन का सम्मान करेंगे और उम्मीद करते हैं कि चीन भी हमारा सम्मान करेगा.” पिछले महीने ब्रिटेन का एक जहाज काला सागर से गुजरा था, तब रूस ने उसे अपनी सीमाओं का उल्लंघ बताया था.
वीके/सीके (रॉयटर्स)
ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में एक व्यक्ति और उसकी पत्नी को एक भारतीय महिला को गुलाम बनाकर रखने के आरोप में जेल की सजा सुनाई गई है. ऑस्ट्रेलिया के इतिहास में दासता का यह पहला कानूनी मुकदमा था.
विक्टोरिया राज्य की सर्वोच्च अदालत ने मेलबर्न में रहने वाले एक पति-पत्नी को एक भारतीय महिला को आठ साल तक गुलाम बनाकर रखने के आरोप में जेल की सजा सुनाई है. सजा सुनाते वक्त जज ने कहा कि यह "मानवता के खिलाफ अपराध” था.
मेलबर्न के कांडासामी और कुमुथिनी कानन को विक्टोरिया की सुप्रीम कोर्ट ने जेल साल की सजा सुनाई है. 53 वर्षीय कुमुथिनी कानन को आठ साल जेल में बिताने होंगे और वह चार साल बाद परोल के लिए आवेदन कर पाएंगी.
57 वर्षीय कांडासामी कानन को छह साल की सजा हुई है और उन्हें तीन साल बाद ही परोल मिल सकेगी. यह पहली बार है जब ऑस्ट्रेलिया की अदालत में सिर्फ घरेलू दासता से संबंधित कोई मामला आया था. इस दंपति ने भारत की एक तमिल महिला को 2007 से 2017 के बीच आठ साल तक गुलाम बनाकर घर में रखा.
मुकदमे की सुनवाई के दौरान पति-पत्नी ने बार-बार अपने बेगुनाह होने की बात कही. उनके वकील ने संकेत दिया है कि वे इस फैसले के खिलाफ अपील कर सकते हैं. पति-पत्नी को अप्रैल में सुनवाई के बाद एक जूरी ने दोषी करार दिया था.
‘घिनौनी मिसाल'
बुधवार को फैसला सुनाने की कार्रवाई लगभग तीन घंटे तक चली, जिसे देखने के लिए 200 से ज्यादा लोग मौजूद थे. फैसला सुनाते वक्त सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस जॉन चैंपियन ने कहा, "गुलामी को इंसानियत के खिलाफ अपराध माना जाता है. आपने जो किया है वह आपके बच्चों की मौजूदगी और समझ के दौरान रोज हुआ. आपने दूसरे लोगों के साथ कैसे बर्ताव किया जाना चाहिए, इसकी आपने उन लोगों के सामने एक बहुत घिनौनी मिसाल पेश की है.
आठ साल तक गुलाम बनाकर रखी गई महिला को कड़ा दुर्व्यवहार सहना पड़ा. उसे शारीरिक और मानसिक यातनाएं झेलनी पड़ीं और जब यह मामला सामने आया तब उसका वजन सिर्फ 40 किलो रह गया था.
जस्टिस चैंपियन ने कहा, ”उसकी जिंदगी आपके घर तक ही सीमित थी और आप लोगों ने इस बात का ख्याल रखा कि उसकी हालत का समुदाय में बाकी लोगों को पता ना चले. यह आपका गंदा राज था. इस घिनौने व्यवहार के लिए अदालत आपकी सार्वजनिक तौर पर भर्त्सना करती है.”
क्या है पूरी कहानी?
पीड़ित महिला अलग-अलग वक्त पर इस दंपती के लिए काम करने के वास्ते तीन बार भारत से ऑस्ट्रेलिया आई थी. दो बार वह भारत लौट गई थी. तीसरी बार 2007 में वह ऑस्ट्रेलिया आई और उसे गुलाम बना लिया गया.
उसे खाना बनाने, घर की सफाई करने और बच्चों के काम करने के लिए मजबूर किया गया. उसे सिर्फ 3.39 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर यानी लगभग 185 रुपये रोजाना का मेहनताना दिया गया. ऑस्ट्रेलिया में मौजूदा न्यूनतम मजदूरी 20 डॉलर प्रतिघंटा यानी लगभग 1200 रुपये रोजाना है.
उम्र के छठे दशक में पहुंच चुकी वह महिला वापस नहीं आई तो भारत में उसके परिवार को चिंता होने लगी. वे उससे संपर्क भी नहीं कर पा रहे थे तो 2015 में उन्होंने विक्टोरिया पुलिस से महिला की खबर लेने का आग्रह किया.
जब अधिकारी पूछताछ करने कानन दंपती के घर पहुंचे तो उन्होंने कहा कि उन्होंने तो महिला को 2007 से देखा ही नहीं है. जबकि तब महिला को एक फर्जी नाम से अस्पताल में भर्ती कराया गया था क्योंकि वह बेहोश होकर गिर पड़ी थी.
गुलामी की परिभाषा
बाद में महिला ने अधिकारियों को बताया कि उसे जमे हुए चिकन से पीटा गया था और उबलते पानी से जलाया गया था. जस्टिस चैंपियन ने फैसला सुनाते वक्त कहा, "वह एकदम कृशकाय हो गई थी और उसका वजन 40 किलो था.”
कानन दंपती के वकीलों ने दलील दी कि महिला की शारीरिक प्रताड़ना के आरोपों को साबित नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि कानन दंपती ने उस महिला को परिवार के सदस्य की तरह रखा और उसे कभी बेड़ियों में नहीं जकड़ा.
जस्टिस चैंपियन ने कहा कि गुलामी की परिभाषा बदले जाने की जरूरत है. उन्होंने कहा, "हमें गुलामों की उस छवि को अपने मन से निकालने की जरूरत है जिसमें वे बेड़ियों में जकड़े या खेतों में बंधुआ काम करते नजर आते हैं. गुलामी उससे ज्यादा भी बहुत कुछ हो सकती है और हो सकता है कि उसमें शारीरिक बंधन न हों.”
जर्मन चांसलर के पद से अपनी विदाई से ठीक पहले अंगेला मैर्केल ने अपना एक और बड़ा मकसद भी हासिल कर लिया. नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन के विरोधी रहे अमेरिका के साथ जर्मनी का समझौता हो गया है.
अमेरिका और जर्मनी के बीच विवादास्पद नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन को लेकर समझौता हो गया है. बुधवार को इस संबंध में दोनों पक्षों ने एक साझा बयान जारी किया. हाल ही में मैर्केल ने अमेरिका की यात्रा की थी और वॉशिंगटन में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से मुलाकात की थी.
उस दौरे पर बाइडेन और मैर्केल ने रूस से जर्मनी को आने वाली इस पाइपलाइन पर बातचीत की थी और बाद में मीडिया के सामने सहमत ना होने की बात भी कही थी. हालांकि दोनों पक्षों ने सौहार्दपूर्ण तरीके से अपनी असहमति दर्ज कराई थी.
क्या समझौता हुआ?
नॉर्ड स्ट्रीम 2 रूस से जर्मनी को आने वाली गैस पाइपलाइन है. अमेरिका रूस की यूक्रेन को लेकर मंशाओं पर संदेह करता रहा है इसलिए इस पाइपलाइन के पक्ष में नहीं था. लेकिन जर्मनी के साथ हुए समझौते में दोनों देश इस बात पर सहमत हुए हैं कि यूक्रेन को मदद दी जाएगी और यदि रूस भू-राजनीतिक दृष्टि से ऊर्जा सप्लाई का फायदा उठाने की कोशिश करता है तो उस पर प्रतिबंध लगा दिए जाएंगे.
साझा बयान कहता है, "अमेरिका और जर्मनी अपनी इस प्रतिबद्धता पर एक हैं कि रूस यदि आक्रामक रवैया अपनाता है या प्रतिबंध आदि के रूप में शुल्क लगाने की कोशिश करता है तो उसे जवाबदेह ठहराया जाएगा. रूस यदि ऊर्जा को यूक्रेन के खिलाफ एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करता है तो जर्मनी
उसे रोकने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कार्रवाई करेगा और यूरोप के स्तर पर प्रभावशाली उपाय करेगा. इन उपायों में प्रतिबंधों से लेकर यूरोप में गैस आदि के निर्यात की उसकी क्षमताओं को सीमित करना शामिल होगा.”
समझौते के तहत जर्मनी यूक्रेन में निवेश करने पर भी सहमत हुआ है. साथ ही वह यह भी सुनिश्चित करेगा कि रूस और यूक्रेन के बीच एक गैस परिवहन समझौता हो. साथ ही, जर्मनी और अमेरिका एक ‘ग्रीन फंड' स्थापित करेंगे जिसमें एक अरब अमेरिकी डॉलर यानी लगभग 75 अरब रुपये का निवेश करेंगे. इस धन का इस्तेमाल यूक्रेन में पर्यावरण के अनुकूल तकनीकी ढांचे और अक्षय ऊर्जा के उत्पादन से जुड़े उद्योग स्थापित करने में किया जाएगा, ताकि यूक्रेन ऊर्जा की जरूरतें खुद पूरी कर सके.
साझा बयान कहता है, "जर्मनी फंड के लिए शुरुआत में कम से कम 17.5 करोड़ डॉलर उपलब्ध कराएगा और अपने वायदों को आने वालों सालों के बजट में पूरा करने के लिए प्रयास करेगा.”
समझौते पर प्रतिक्रियाएं
जर्मनी के विदेश मंत्री हाइको मास ने इस समझौते को रचनात्मक बताया है. उन्होंने कहा कि जर्मनी "रूस के बारे में नीति और ऊर्जा नीति को लेकर अमेरिका के साथ अपने साझे लक्ष्यों और अवधाराणाओं को पूरा करने की ओर लौट आया है.”
मास ने एक ट्वीट में कहा, "मुझे तसल्ली हुई है कि हमने अमेरिका के साथ नॉर्ड स्ट्रीम 2 पर एक रचनात्मक हल खोज लिया है. हम अगले एक दशक में यूक्रेन की ग्रीन एनर्जी सेक्टर बनाने में करेंगे और वहां से होते हुए गैस के सुरक्षित परिवहन पर काम करेंगे.”
जर्मनी के साथ हुआ यह समझौता अमेरिका के रुख में बदलाव का संकेत है, जो अब तक इस पाइपलाइन का विरोध करता रहा है. अमेरिका की चिंता थी कि रूस यूक्रेन और अन्य देशों की ऊर्जा सप्लाई रोक सकता है ताकि उन पर दबाव बनाया जा सके.
डॉयचे वेले की राजनीतिक संवाददाता सिमोन यंग कहती हैं, "वॉशिंगटन से हमें यह संदेश मिल रहा है कि जो बाइडेन सोचते हैं कि इस मुद्दे पर जर्मनी पर दबाव बनाना यूरोप में अमेरिका के विस्तृत रणनीतिक हितों के हित में नहीं होगा.”
यूक्रेन की चिंता
यूक्रेन और पोलैंड दोनों ही इस पाइपलाइन के खिलाफ रहे हैं. उन्हें डर है कि इस योजना से यूरोप की ऊर्जा सुरक्षा खतरे में पड़ेगी और रास्ते में पड़ने वाले देशों को मिलने वाले शुल्क का भी नुकसान होगा.
ऐसी खबरें थीं कि अमेरिका ने यूक्रेन को जर्मनी के साथ उसके समझौते की आलोचना न करने की हिदायत दी थी. हालांकि अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने ऐसी खबरों का खंडन किया है. अमेरिका का एक दूत इसी हफ्ते यूक्रेन और पोलैंड जाकर दोनों को समझौते की जानकारी देगा.
व्हाइट हाउस ने यह भी ऐलान किया है कि 31 अगस्त को राष्ट्रपति जो बाइडेन यूक्रेन के राष्ट्रपति वोल्दीमीर जेलेन्स्की के मुलाकात करेंगे.
वीके/एए (एपी, रॉयटर्स)
अफ़ग़ानिस्तान के पहले उप-राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने '1971 के युद्ध में भारत के सामने पाकिस्तान के आत्म-समर्पण की यह तस्वीर' शेयर कर माहौल गर्म कर दिया है.
पिछले कुछ दिनों से पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच तालिबान को लेकर ज़ुबानी जंग चल रही है.
अफ़ग़ानिस्तान पाकिस्तान पर तालिबान का समर्थन करने और उन्हें प्रशिक्षण और हथियार मुहैया कराने के आरोप लगाता रहा है.
इसी बीच, अमरुल्लाह सालेह ने बुधवार को ट्विटर पर यह तस्वीर शेयर की और लिखा, "हमारे इतिहास में ऐसी कोई तस्वीर नहीं है और ना ही कभी होगी. हाँ, कल मैं एक बार को हिल गया था क्योंकि एक रॉकेट मेरे ऊपर से उड़कर गया और कुछ मीटर की दूरी पर गिरा. लेकिन पाकिस्तान के प्रिय ट्विटर हमलावरों, तालिबान और आतंकवाद इस तस्वीर के आघात को ठीक नहीं कर सकते. कोई और तरीक़े खोजिए."
उनके द्वारा शेयर की गई इस तस्वीर को पहले तीन घंटे में ही दस हज़ार से ज़्यादा लोगों ने पसंद किया और सैकड़ों लोगों ने उनके ट्वीट पर अपने जवाब लिखे हैं.
कुछ लोगों ने जहाँ उनके ट्वीट पर 'भारतीय सेना के सामने पाकिस्तान द्वारा आत्म-समर्पण करने का वीडियो' पोस्ट किया है, वहीं कुछ लोगों ने 'अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति के घर के पास रॉकेट गिरते समय, उनके (अमरुल्लाह सालेह के) लड़खड़ा जाने का वीडियो' शेयर किया है.
सोशल मीडिया पर अमरुल्लाह सालेह द्वारा ट्वीट की गई तस्वीर को लेकर गर्मागर्म बहस हो रही है.
सोशल मीडिया पर क्या लिख रहे लोग
पाकिस्तान की टीवी होस्ट और अदाकारा सेहर शिनवारी ने लिखा, "हमने भी इतिहास में ऐसी वीडियो क्लिप नहीं देखी, जिसमें धमाके की आवाज़ सुनकर एक 'बहादुर' उप-राष्ट्रपति की पतलून गीली हो जाती है और वो शर्म के मारे नमाज़ जारी रखता है."
एक ट्विटर यूज़र ने लिखा कि "ये कुछ सेकेंड का वीडियो क्लिप काफ़ी है, यह समझने के लिए कि आईएसआईएस और तालिबानियों ने तुम लोगों का नर्वस सिस्टम कितना कमज़ोर कर दिया है."
अब्दुल्ला नाम के एक पाकिस्तानी ट्विटर यूज़र ने लिखा, "तालिबान अफ़ग़ानिस्तान के 60 प्रतिशत से ज़्यादा इलाक़े पर कब्ज़ा कर चुका है और उनका उपराष्ट्रपति ट्विटर पर जंग लड़ रहा है."
पाकिस्तान की पूर्व सांसद बुशरा गौहर लिखती हैं, "किसी धमाके की आवाज़ पर आपका रिएक्शन बिल्कुल सहज था. जो इसका मज़ाक बना रहे हैं, उनका दिमाग़ ख़राब है. मज़बूत बने रहिए और हिम्मत रखिये. चरमपंथ के ख़िलाफ़ मज़बूती से खड़े रहना ही विकल्प है."
विपुल गुप्ता नाम के एक भारतीय ट्विटर यूज़र ने लिखा है कि अब अफ़ग़ानिस्तान ने भी 'ट्रोल पाकिस्तान' अभियान में भारत का साथ देना शुरू कर दिया है.
भारतीय पत्रकार कादम्बिनी शर्मा लिखती हैं, "युद्ध क्षेत्र में गये पत्रकार जानते हैं कि जब कोई विस्फोट सुनाई देता है या कोई धमाका सुनाई देता है तो आदमी झुकता है. ये सहज है. लेकिन अफ़ग़ानिस्तान के उपराष्ट्रपति को इसके लिए पाकिस्तान के सोशल मीडिया यूज़र्स द्वारा ट्रोल किया गया. आज उन्होंने उसका करारा जवाब दिया."
दक्षिणपंथी विचारधारा का समर्थन करने वाले ट्विटर यूज़र्स ने सालेह के इस ट्वीट को काफ़ी शेयर किया है और इसके हवाले से पाकिस्तान का काफ़ी मज़ाक़ उड़ाया है.
इमेज स्रोत,SONAM KALARA
कब की है तस्वीर?
सालेह ने ट्विटर पर जो तस्वीर शेयर की है, वो वर्ष 1971 की एक ऐतिहासिक तस्वीर है जिसे पाकिस्तानी सेना के भारतीय फ़ौज के सामने सरेंडर करते समय खींचा गया था. 1971 की जंग में भारत ने पाकिस्तान को बुरी तरह हराया था.
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में 'पूर्वी-पाकिस्तान' में पाकिस्तानी जनरल अमीर अब्दुल्ला ख़ाँ नियाज़ी को क़रीब 90 हज़ार सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण करना पड़ा था. इस आत्मसमर्पण के बाद 'पूर्वी पाकिस्तान' का हिस्सा पाकिस्तान से आज़ाद हो गया था और आज उसे ही बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है.
उस समय भारतीय सेना के कमांडर लेफ़्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा थे जो इस तस्वीर में समझौते पर हस्ताक्षर कर रहे जनरल नियाज़ी के साथ मेज़ पर बैठे दिखते हैं.
इमेज स्रोत,BHARAT RAKSHAK
पाकिस्तानी जनरल अमीर अब्दुल्ला ख़ाँ नियाज़ी को क़रीब 90 हज़ार सैनिकों के साथ भारत के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा था
जानकारों कहते हैं कि भारतीय सेना और बंगाली लोगों के हाथों पाकिस्तानी सेना की शिकस्त और जनरल नियाज़ी का हथियार डाल देना पाकिस्तानी इतिहास में एक काला अध्याय है.
इस घटना के बारे में नौसेना की पूर्व कमान के प्रमुख रहे एडमिरल एन कृष्णन ने अपनी आत्मकथा 'ए सेलर्स स्टोरी' में लिखा है कि ''ढाका के रेसकोर्स मैदान में एक छोटी सी मेज़ और दो कुर्सियाँ रखी गई थीं, जिन पर जनरल अरोड़ा और जनरल नियाज़ी बैठे थे. मैं, एयर मार्शल देवान जनरल सगत सिंह और जनरल जैकब पीछे खड़े थे. आत्मसमर्पण के दस्तावेज़ की छह प्रतियाँ थीं जिन्हें मोटे सफ़ेद कागज़ पर टाइप किया गया था.''
"पहले नियाज़ी ने दस्तख़त किए और फिर जनरल अरोड़ा ने. पता नहीं जानबूझ कर या बेख़्याली में नियाज़ी ने अपना पूरा हस्ताक्षर नहीं किया और सिर्फ़ एएके निया लिखा. मैंने जनरल अरोड़ा का ध्यान इस तरफ़ दिलाया. अरोड़ा ने नियाज़ी से कहा कि वो पूरे दस्तख़त करें. जैसे ही नियाज़ी ने दस्तख़त किये बांग्लादेश आज़ाद हो गया."
"तब नियाज़ी की आँखों में आँसू भर आये. उन्होंने अपने बिल्ले उतारे, रिवॉल्वर से गोलियाँ निकालीं और उसे जनरल अरोड़ा को थमा दिया. फिर उन्होंने अपना सिर झुकाया और जनरल अरोड़ा के माथे को अपने माथे से छुआ, मानो वो उनकी अधीनता स्वीकार कर रहे हों.''
अमरुल्लाह सालेह ने कहा था कि पाकिस्तानी वायु सेना ने अफ़ग़ान नेशनल आर्मी (एएनए) और अफ़ग़ान वायु सेना को चेतावनी दी है कि स्पिन बोल्डक क्षेत्र से तालिबान को हटाने की किसी भी कोशिश का जवाब पाकिस्तान देगा और जो भी ऐसी कोशिश करेगा उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई होगी.
सालेह ने इस संबंध में एक ट्वीट किया था, जिसमें उन्होंने लिखा था, "ब्रेकिंग: पाकिस्तान वायु सेना ने अफ़ग़ान सेना और वायु सेना को आधिकारिक रूप से चेतावनी दी है कि अगर किसी ने भी स्पिन बोल्डक क्षेत्र से तालिबान को हटाने की कोशिश की तो पाकिस्तान वायु सेना उसका जवाब देगी. पाकिस्तानी वायु सेना अब तालिबान को कुछ क्षेत्रों में हवाई सहायता प्रदान कर रही है."
उन्होंने इस संबंध में कुछ प्रमाण पेश करने की भी बात कही थी.
मगर सालेह के आरोपों के बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा था कि वो अमरुल्लाह सालेह के 'आरोपों' को सिरे से ख़ारिज करता है. विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया था कि उसने अपने अधिकार क्षेत्र में अपने सैनिकों और लोगों की हिफ़ाज़त के लिए आवश्यक उपाय किये हैं.
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की ओर से ये भी कहा गया कि अफ़ग़ानिस्तान ने पाकिस्तान को पाकिस्तान के चमन सेक्टर के सामने अपने क्षेत्र के अंदर हवाई अभियान चलाने के अपने इरादे से अवगत कराया था, जिसपर पाकिस्तान ने अपने क्षेत्र में कार्रवाई करने के अफ़ग़ान सरकार के अधिकार पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी थी.
हालांकि, सालेह को पाकिस्तान की दलीलों पर विश्वास नहीं हुआ.
उन्होंने पाकिस्तान की ओर से प्रतिक्रिया आने पर एक और ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने लिखा, ''पाकिस्तान के इनक़ार पर: बीस सालों से अधिक समय तक पाकिस्तान ने अपनी धरती पर क्वेटा शूरा के या तालिबानी चरमपंथी नेताओं की मौजूदगी से इनक़ार किया. जो लोग इस पैटर्न से परिचित होंगे, चाहे अफ़ग़ानिस्तान के हों या विदेशी, वो अच्छी तरह से जानते होंगे कि यह पहले से लिखा एक ख़ारिजनामा है.''
तालिबान लड़ाकों द्वारा अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान क्षेत्र के बीच स्थित स्पिन बोल्डक क्रॉसिंग पर नियंत्रण का दावा किये जाने के बाद उप-राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने पाकिस्तान पर आरोप लगाया था.
स्पिन बोल्डक क्रॉसिंग कंधार के प्रमुख रणनीतिक स्थानों में से एक है जो पाकिस्तान सीमा से लगा हुआ क्षेत्र है.
अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तानी सांसद मोहसीन डावर की हुई तारीफ़
इसी दौरान, पश्तून तहफ़्फ़ुज़ मूवमेंट के नेता और पाकिस्तान के सांसद मोहसीन डावर ने कहा कि उन्होंने पाकिस्तान की संसद में क्वेटा और पेशावर में तालिबान की रैलियों का मुद्दा उठाने की कोशिश की तो उन्हें बोलने से रोक दिया गया.
पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में बोलते हुए डावर ने कहा था कि 'अफ़ग़ानिस्तान में हालात इंतेहाई ख़तरनाक हैं, वहाँ पर जो हो रहा है, ज़ाहिर तौर पर उसका यहाँ भी असर है. पिछले चंद दिनों से हम देख रहे हैं कि तहरीके तालिबान की क्वेटा और पेशावर में रैलियाँ हुई हैं. अफ़ग़ानिस्तान ने पाकिस्तानी एयरफ़ोर्स पर संगीन आरोप लगाये हैं...'
और जब डावर ने ट्विटर पर नेशनल असेंबली का वीडियो पोस्ट किया, तो उसके जवाब में अफ़ग़ानिस्तान के पहले उप-राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने कहा, 'भाई डावर, हम आपकी बात सुन रहे हैं. अमुस से लेकर अब्बासिन तक दसियों लाख लोग आपकी बात साफ़-साफ़ सुन रहे हैं. आतंकवादी तालिबों ने जीएचक्यू (पाकिस्तान का सेना मुख्यालय) से मिल रहे सहयोग की वजह से ज़मीन पर कुछ बदलाव किया है, लेकिन अफ़ग़ानिस्तान के लोगों के इरादे और हिम्मत वैसे ही हैं.'
इससे पहले मोहसीन डावर ने भी पाकिस्तान पर तालिबान लड़ाकों को अफ़ग़ानिस्तान भेजने के आरोप लगाए थे.
अफ़ग़ान राजदूत की बेटी का मामला
पाकिस्तान में अफ़ग़ान राजदूत नजिबुल्लाह अलीखेल की बेटी सिलसिला अलीखेल को अगवा कर पीटे जाने के बाद, रविवार को अफ़ग़ानिस्तान प्रशासन ने अपने राजदूत और सभी वरिष्ठ राजनयिकों को वापस बुला लिया था.
अफ़ग़ान प्रशासन का कहना है कि जब तक सुरक्षा से जुड़ी सारी चिंताएं दूर नहीं हो जातीं और अफ़ग़ान राजदूत की बेटी के साथ हुई हिंसा के मामले की जाँच पूरी नहीं हो जाती, तब तक उनके राजदूत और सभी वरिष्ठ राजनयिक अफ़ग़ानिस्तान में ही रहेंगे.
इस घटना के बाद भी अफ़ग़ानिस्तान के पहले उप-राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने ट्विटर पर लिखा था कि अफ़ग़ान राजदूत की बेटी के अपहरण और उसके बाद की यातना ने हमारे देश के मानस को ठेस पहुँचाई है. हमारे राष्ट्रीय मानस को प्रताड़ित किया गया है.
ये घटना भी ऐसे समय में हुई जब पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के नेताओं के बीच अलग-अलग वजहों से तनाव बढ़ रहा है.
अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सैन्य बलों के वापस लौटने के बाद सुरक्षा हालात अस्थिर हुए हैं. तालिबान हर बीतते दिन के साथ नए इलाक़ों पर क़ब्ज़ा कर रहा है.
पिछले सप्ताह ही, मध्य और दक्षिण एशिया संपर्क सम्मेलन में अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी ने, जो कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान से महज़ कुछ फ़ीट की दूरी पर ही बैठे थे, पाकिस्तान पर निशाना साधते हुए कहा था कि पाकिस्तान ने चरमपंथी समूहों से अपने संबंध नहीं तोड़े हैं.
खुफ़िया रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी ने अपने संबोधन में कठोर शब्दों में कहा था कि पिछले महीने 10,000 से अधिक 'जिहादी' लड़ाके अफ़ग़ानिस्तान आये हैं, जबकि पाकिस्तान सरकार तालिबान को शांति वार्ता में गंभीरता से भाग लेने के लिए मनाने में असफल रही है. (bbc.com)
जकार्ता, 22 जुलाई| मध्य इंडोनेशिया के पश्चिम कालीमंतन प्रांत में कुछ दिनों पहले तूफान की चपेट में आने के बाद बचाव दल को 24 शव मिले हैं और 31 अन्य लापता लोगों की तलाश जारी है। प्रांत के शीर्ष बचाव दल ने बुधवार को यह जानकारी दी। प्रांतीय खोज एवं बचाव कार्यालय के प्रमुख योपी हरयादी ने कहा कि घटना सांबास जिले में हुई जब दो टग बोट और मछली पकड़ने वाले जहाजों ने पहले ही तट के पास पोजीशन ले ली थी, और कुछ अन्य चरम मौसम की स्थिति की संभावना की मौसम एजेंसी की चेतावनी पर क्षेत्र की ओर जा रहे थे।
उन्होंने कहा, मृतकों की संख्या बढ़कर 24 हो गई है और 31 अभी भी खोज और बचाव अभियान में हमारा लक्ष्य है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, हरयादी ने कहा कि सप्ताह में दो दिन पहले इस क्षेत्र में तूफान आया था।
उन्होंने कहा कि खोज और बचाव अभियान के दौरान जहाजों में सवार कुल 83 लोगों को सुरक्षित बचा लिया गया है।
प्रांतीय खोज एवं बचाव कार्यालय की संचालन इकाई के प्रमुख एरिक सुबेरियंतो ने कहा कि प्रक्रियाओं के अनुसार, ऑपरेशन तीन और दिनों में किया जाएगा। (आईएएनएस)
लंदन, 22 जुलाई | हाउस ऑफ लॉर्डस का एक सदस्य उन 400 से अधिक लोगों में शामिल है, जिनके यूके मोबाइल फोन नंबर 2017 और 2019 के बीच एनएसओ ग्रुप क्लाइंट सरकारों द्वारा पहचाने गए नंबरों की लीक सूची में दिखाई देते हैं। द गार्जियन ने कहा कि डेटा के विश्लेषण के अनुसार, यूके के नंबरों के चयन के लिए संयुक्त अरब अमीरात की प्रमुख सरकार जिम्मेदार प्रतीत होती है। संयुक्त अरब अमीरात उन 40 देशों में से एक है जिनके पास एनएसओ स्पाइवेयर तक पहुंच है जो हैक करने में सक्षम है और गुप्त रूप से एक मोबाइल फोन को नियंत्रित कर सकता है।
दुबई, शेख मोहम्मद बिन राशिद अल-मकतूम द्वारा शासित अमीरात शहर को भी एनएसओ क्लाइंट माना जाता है।
शेख मोहम्मद की बेटी राजकुमारी लतीफा, जिन्होंने 2018 में दुबई से बचने के लिए एक असफल बोली शुरू की, और उनकी पूर्व पत्नी राजकुमारी हया, जो देश छोड़कर 2019 में यूके आईं, दोनों के फोन डेटा में दिखाई देते हैं।
इसी तरह दोनों महिलाओं के कई सहयोगियों के फोन भी - जिनमें हया के मामले में, ज्यादातर यूके स्थित नंबर शामिल हैं।
द गार्जियन के अनुसार, सूची में यूके नंबर वाले लोगों में शामिल हैं :
लेडी उद्दीन, हाउस ऑफ लॉर्डस की एक स्वतंत्र सदस्य, जिनकी संख्या 2017 और 2018 दोनों में डेटा पर दिखाई दी। उन्होंने कहा कि अगर संसद के सदस्यों की जासूसी होती है तो यह विश्वास का एक बड़ा उल्लंघन होगा जो हमारी संप्रभुता का उल्लंघन करता है।
राजकुमारी हया को सलाह देने वाली लंदन की एक कानूनी फर्म के लिए काम करने वाला एक वकील। हया उच्च न्यायालय के न्याय के पारिवारिक प्रभाग में शेख मोहम्मद के साथ कस्टडी हिरासत की लड़ाई में उलझा हुआ है।
जॉन गोस्डेन, न्यूमार्केट में स्थित एक प्रमुख हॉर्स ट्रेनर, जो राजकुमारी हया का दोस्त भी है, जो खुद एक अंतरराष्ट्रीय घुड़सवारी सवार है। हया की सुरक्षा और पीआर टीम के लिए काम करने वाले अन्य लोगों के नंबर भी डेटा में दिखाई देते हैं।
द गार्डियन ने कहा कि रक्षा थिंकटैंक इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज के मुख्य कार्यकारी जॉन चिपमैन, जो बहरीन में एक वार्षिक सम्मेलन चलाता है, संयुक्त अरब अमीरात के सहयोगियों में से एक है।
सूची में दिखाई देने वाले अन्य हाई-प्रोफाइल यूके के नाम पहले ही नामित किए जा चुके हैं, जैसे कि फाइनेंशियल टाइम्स की संपादक राउला खलाफ, जो 2018 में डेटा में दिखाई देने पर डिप्टी एडिटर थीं। एनएसओ ने बाद में कहा कि कोई प्रयास नहीं किया गया था।(आईएएनएस)
पेरिस, 22 जुलाई | फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने अपने फोन नंबर के साथ-साथ उनके पूर्व प्रधानमंत्री और उनके 20 मंत्रियों वाले मंत्रिमंडल के बहुमत के लीक डेटाबेस में आने के बाद पेगासस प्रोजेक्ट के केंद्र की सिलसिलेवार जांच करने का आदेश दिया है। यह खबर द गार्जियन को दी गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि फ्रांसीसी प्रधानमंत्री जीन कास्टेक्स ने बुधवार को कहा कि एलिसी (फ्रांसीसी राष्ट्रपति का आधिकारिक निवास) ने खुलासाओं पर रोशनी डालने की कसम खाने के बाद सिलसिलेवार जांच का आदेश दिया।
लेकिन कास्टेक्स ने कहा कि वास्तव में क्या हुआ, यह जाने बिना किसी भी नए सुरक्षा उपायों या अन्य कार्रवाई की टिप्पणी या घोषणा करना जल्दबाजी होगी। उन्होंने कहा, हम इसे बहुत करीब से देखने जा रहे हैं।
फ्रांस के राजनेताओं ने मैक्रों, पूर्व प्रधानमंत्री एडौर्ड फिलिप और 14 सेवारत मंत्रियों के मोबाइल नंबरों के लीक होने पर आश्चर्य व्यक्त किया, जिनमें न्याय और विदेश मामलों के मंत्री भी शामिल थे।
पेगासस प्रोजेक्ट की जांच द्वारा किए गए फोरेंसिक विश्लेषण के अनुसार, पूर्व पर्यावरण मंत्री फ्रेंकोइस डी रूगी के मोबाइल फोन में एनएसओ ग्रुप के स्पाइवेयर से जुड़ी गतिविधि के डिजिटल निशान दिखाई दिए।
द गार्जियन ने कहा कि पेगासस प्रोजेक्ट के शोध से पता चलता है कि मोरक्को वह देश था जो मैक्रोन और उनकी वरिष्ठ टीम में दिलचस्पी ले सकता था, जिससे यह आशंका बढ़ गई कि उनके फोन फ्रांस के करीबी राजनयिक सहयोगियों में से एक द्वारा चुने गए थे।
डी रूगी ने बुधवार को दोहराया कि फ्रांस और मोरक्को के बीच बेहद करीबी राजनयिक संबंध हैं और स्पष्टीकरण की जरूरत है। उन्होंने कहा कि वह बहुत हैरान हैं कि यह मित्र राज्यों के बीच हो सकता है।
उन्होंने कहा कि उन्होंने मोरक्को के राजदूत के साथ एक श्रोता के लिए कहा था और इस मुद्दे को फ्रांसीसी राज्य अभियोजक के पास भेज दिया था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि मोरक्को ने कहा है कि वह इन निराधार और झूठे आरोपों को स्पष्ट रूप से खारिज और निंदा करता है, यह कहते हुए कि यह गलत और झूठा था कि देश ने राष्ट्रीय या विदेशी सार्वजनिक हस्तियों के फोन में घुसपैठ की थी।
द गार्जियन ने कहा कि एक विवादास्पद पत्रकार और टीवी डिबेट-शो स्टार एरिक जेमोर, जिन्हें फ्रांस का सबसे प्रसिद्ध दूर-दराज विचारक करार दिया गया है, भी डेटा में दिखाई देते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में अगले वसंत में राष्ट्रपति चुनाव में भाग लेने पर विचार करते हुए, उन्होंने अपने संभावित लक्ष्यीकरण के बारे में ट्वीट किया : अगर सरकार को पता था लेकिन कुछ नहीं किया, तो यह एक घोटाला है। अगर उन्हें नहीं पता था, तो यह चिंताजनक है।(आईएएनएस)
इस्लामाबाद, 22 जुलाई| पाकिस्तान के एक पूर्व राजनयिक की बेटी का सिर काट दिया गया, क्योंकि युवती ने रिश्ता जोड़ने से इनकार कर दिया। बोल न्यूज ने बताया कि पीड़ित की पहचान 27 वर्षीय नूर मुकादम के रूप में हुई, जो शौकत मुकाकम की बेटी थी। शौकत दक्षिण कोरिया और कजाकिस्तान में पाकिस्तान के राजदूत थे।
पुलिस ने कहा कि गोलीबारी के बाद उसे चाकू मार दिया गया और एक धारदार हथियार से उसका सिर काट दिया गया, जबकि घटना में एक अन्य व्यक्ति घायल हो गया।
उन्होंने कहा कि घटना में कथित संलिप्तता के लिए लड़की के एक दोस्त को गिरफ्तार किया गया है।
पुलिस ने कहा कि कथित हत्यारा जहीर जाफर इस्लामाबाद की एक प्रमुख निर्माण कंपनी के सीईओ का बेटा है।
सूत्रों के मुताबिक, नूर की हत्या आरोपी से ब्रेकअप को लेकर हुई थी, जो रिश्ता जोड़ने से इनकार को बर्दाश्त नहीं कर सका और उसकी हत्या कर दी।
शुरुआती खबरों की मानें तो नूर मंगलवार को जफर के घर आई थी। वह सुबह से अपने पिता के संपर्क में नहीं थी। पुलिस का कहना है कि कथित हत्यारा ड्रग एडिक्ट है और उसे मानसिक परेशानी है।
पाकिस्तान विदेश कार्यालय के प्रवक्ता जाहिद हफीज चौधरी ने घटना की निंदा की और संवेदना व्यक्त की।
प्रवक्ता ने ट्विटर पर हैशटैग जस्टिस फॉर नूर जोड़ते हुए लिखा, एक वरिष्ठ सहयोगी और पाकिस्तान के पूर्व राजदूत की बेटी की हत्या से गहरा दुख हुआ। शोक संतप्त परिवार के प्रति हार्दिक संवेदना और मुझे उम्मीद है कि इस जघन्य अपराध के अपराधी को न्याय के कटघरे में लाया जाएगा। (आईएएनएस)
काठमांडू, 21 जुलाई| शेर बहादुर देउबा नेपाल के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने के एक सप्ताह बाद भी अपने मंत्रिमंडल को पूर्ण आकार देने में विफल रहे हैं। देउबा, जिन्हें उनकी अपनी पार्टी नेपाली कांग्रेस, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी केंद्र), जनता समाजवादी पार्टी, जनमोर्चा नेपाल, विपक्ष के 22 सांसदों और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी-यूएमएल का समर्थन प्राप्त था, अपने पांच सदस्यीय मंत्रिमंडल का विस्तार करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
13 जुलाई को देउबा ने प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद पांच सदस्यीय मंत्रिमंडल का गठन किया था। अब उन पर इसका विस्तार करने का दबाव है, लेकिन बड़ी संख्या में मंत्री पद के आकांक्षी होने के कारण, वह गर्मी महसूस कर रहे हैं और यह तय करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं कि किसे समायोजित किया जाए और किसे नहीं।
संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, वह 25 सदस्यों से अधिक मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं कर सकते।
नेपाली कांग्रेस के प्रमुख गठबंधन माओवादी केंद्र ने बुधवार को सरकार को सफलतापूर्वक चलाने के लिए गठबंधन सहयोगियों के बीच एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम और नीति तैयार करने का फैसला किया।
पार्टी प्रवक्ता नारायण काजी श्रेष्ठ ने कहा कि गठबंधन सहयोगियों की एक टास्क फोर्स ऐसे न्यूनतम साझा कार्यक्रमों और नीतियों का खाका तैयार करेगी।
श्रेष्ठ ने कहा, पार्टी की स्थायी समिति की बैठक में देउबा सरकार में शामिल होने पर चर्चा नहीं हुई। हम सरकार में शामिल होने से पहले अन्य गठबंधन सहयोगियों के साथ चर्चा करेंगे।
एक और गठबंधन, जनता समाजवादी पार्टी दो गुटों में विभाजित है, एक उपेंद्र यादव के नेतृत्व में और दूसरा महंत ठाकुर द्वारा। मधेसी पार्टी के नाम से मशहूर जेएसपी के 275 सदस्यीय सदन में 32 विधायक हैं।
इससे पहले ठाकुर गुट ने बहुमत हासिल किया था और केपी शर्मा ओली सरकार में शामिल हो गया था जबकि यादव गुट विपक्ष में रहा था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा ओली की सरकार गिराए जाने और देउबा के प्रधान मंत्री बनने के बाद अदालत ने 21 मई को सदन को भंग करने के ओली के फैसले को पलट दिया, यादव गुट मजबूत हो गया और कई सांसदों के पक्ष बदलने के बाद पार्टी के अंदर बहुमत हासिल कर लिया।
ठाकुर गुट के पिछली ओली सरकार में शामिल होने के बाद, पार्टी के युद्धरत गुटों ने प्रामाणिकता का दावा करते हुए चुनाव आयोग से संपर्क किया था। मामला चुनाव आयोग के विचाराधीन है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 21 जुलाई| दुबई की राजकुमारी हया बिंत अल-हुसैन, उनके करीबी सहयोगियों, सलाहकारों और दोस्तों के मोबाइल फोन नंबर दुबई अमीरात के एजेंटों द्वारा संचालित एक कंप्यूटर सिस्टम में दर्ज किए जा रहे थे, जो स्पाइवेयर निर्माता एनएसओ ग्रुप के ग्राहकों में से एक था। यह बात द गार्जियन की रिपोर्ट में सामने आई है। अमीर की पूर्व पत्नी के करीबी सहयोगी और दोस्त भी डेटाबेस में दिखाई देने लगे, क्योंकि वह यूके चली गई थीं।
अप्रैल 2019 में जैसे ही उसका विमान नीचे उतरा, राजकुमारी हया, जो अपने दो बच्चों के साथ थीं, उन्हें उम्मीद थी कि वह अपने पूर्व पति, दुबई के अमीर, शेख मोहम्मद बिन राशिद अल-मकतूम की पहुंच से बाहर हैं।
हया और उसके आठ करीबी सहयोगियों के फोन नंबर एक डेटासेट में दिखाई देते हैं, जिसके बारे में माना जाता है कि यह एनएसओ के एक सरकारी ग्राहक के लिए लोगों की रुचि को दशार्ता है। वह डेटा फॉरबिडन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा प्राप्त किया गया है, और गार्जियन सहित दुनिया भर के मीडिया संगठनों द्वारा विश्लेषण किया गया है।
लीक किए गए रिकॉर्ड में हया के निजी सहायक, उनकी निजी सुरक्षा फर्म के वरिष्ठ कर्मचारी और यहां तक कि शेख मोहम्मद के साथ उनके हिरासत विवाद में सलाह देने वाले वकीलों में से एक है।
द गार्जियन ने शेख मोहम्मद के साथ उसके संबंधों की सूचना दी, जो सौहार्दपूर्ण था, उनके एक अन्य बच्चे, राजकुमारी लतीफा द्वारा अत्यधिक सार्वजनिक और असफल भागने के प्रयास के बाद बिगड़ना शुरू हो गया।
फैसले के अनुसार, हया ने लतीफा के कल्याण के बारे में पूछताछ करना शुरू कर दिया, लेकिन बाद में शेख और उनके सलाहकारों से अधिक शत्रुतापूर्ण माहौल का अनुभव करने लगीं।
कहा गया है कि भरोसेमंद स्टाफ सदस्यों को उसकी मंजूरी के बिना बर्खास्त कर दिया गया था और हया और उनके प्रतिनिधि को शासक के दरबार से निकाल दिया गया था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह भी पाया गया कि शेख मोहम्मद ने उनके पिता की मृत्यु की बरसी पर 7 फरवरी, 2019 को शरिया कानून के तहत हया को तलाक दे दिया था।
कुछ हफ्ते बाद, फैसले में बताया गया कि कैसे उन्होंने दावा किया कि शेख मोहम्मद ने उन्हें सीधे फोन किया था।
फोन पर कहा गया, "मुझे आपके एक अंगरक्षक के साथ संबंधों का अस्पष्ट संदर्भ देते हुए मुझे आप पर संदेह होने लगा है।"
हया ने अदालत को बताया कि इस कॉल ने उन्हें भयभीत कर दिया। (आईएएनएस)
सऊदी अरब ने हर उम्र की महिलाओं को हज करने के लिए किसी मर्द को साथ रखने की अनिवार्यता खत्म कर दी है. हां, इतनी शर्त जरूर रखी है कि महिलाएं एक समूह में हों.
पाकिस्तानी मूल की 35 वर्षीय बुशरा शाह का कहना है कि हज पर मक्का जाने से उनके बचपन का एक सपना पूरा हो गया. नए नियमों के तहत वो हज बिना किसी पुरुष "अभिभावक" के कर रही हैं, जिन्हें "महरम' भी कहा जाता है. सऊदी अरब के हज मंत्रालय द्वारा लिया गया यह फैसला उन सामाजिक सुधारों का हिस्सा है जिन्हें रियासत के वास्तविक शासक क्राउन प्रिंस सलमान के आदेश पर लागू किया गया है.
सलमान सऊदी अरब की कट्टर इस्लामी छवि को बदलना चाह रहे हैं और तेल पर निर्भर अर्थव्यवस्था को भी खोलना चाह रहे हैं. उनके सत्ता में आने के बाद महिलाओं को गाड़ियां चलाने की और बिना किसी महरम के विदेश जाने की इजाजत दी गई है. हालांकि साथ ही देश में सलमान के आलोचकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी चल रही है. इन आलोचकों में महिला अधिकार कार्यकर्ता भी शामिल हैं.
'बचपन का सपना'
जेद्दाह स्थित अपने घर से हज के लिए निकलने से पहले बुशरा शाह ने बताया, "ये एक सपने के सच होने जैसा है. हज करना मेरे बचपन का सपना था." अपने पति और बच्चे के साथ हज करने से उनका ध्यान भटक जाता और "पूरी तरह से हज की रीतियों पर ध्यान देने में" बाधा होती. शाह उन 60,000 लोगों में शामिल हैं जिन्हें इस साल हज करने के लिए चुना गया है. कोरोना वायरस महामारी की वजह से लगातार दूसरे साल हज को नाटकीय ढंग से छोटा कर दिया गया है.
सिर्फ सऊदी अरब के नागरिक ही इसमें हिस्सा ले रहे हैं और उन्हें भी एक लॉटरी के जरिये चुना गया है. अधिकारियों ने कहा है कि इस साल श्रद्धालुओं में 40 प्रतिशत महिलाएं हैं. शाह कहती हैं, "मेरे साथ और भी कई महिलाएं आएंगी. मुझे बहुत गर्व है कि अब हम स्वतंत्र हैं और हमें किसी अभिभावक की जरूरत नहीं है." उनके पति अली मुर्तदा कहते हैं कि उन्होंने इस यात्रा को अकेले करने के लिए अपनी पत्नी को "पुरजोर प्रोत्साहन" दिया था.
सरकार ने इस साल हज में बच्चों के शामिल होने पर प्रतिबंध लगा दिया है. 38 साल के मुर्तदा अपने बच्चे की देखभाल करने के लिए जेद्दाह में ही रहेंगे. वो कहते हैं, "हमने फैसला किया था कि हममें से किसी एक को जाना चाहिए. हो सकता है वो अगले साल गर्भवती हों या हो सकता है बच्चों को अगले साल भी शामिल ना होने दिया जाए." यह साफ नहीं हो पाया है कि महरम वाला प्रतिबंध मंत्रालय ने कब हटाया.
विरोध के संकेत
कुछ महिलाओं ने बताया है कि यात्रा एजेंसियां अभी भी हज के लिए बिना पुरुष साथी के महिलाओं के आवेदन मंजूर करने में हिचक रही हैं. कुछ ने तो अकेली महिलाओं के समूहों को मना करते हुए विज्ञापन भी निकाले. ये इस बात का संकेत है कि सऊदी अरब के अति रूढ़िवादी समाज में आ रहे सामाजिक बदलावों को कहीं कहीं विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है.
सऊदी राजधानी रियाध में रहने वाली मिस्री मूल की मारवा शकर कहती हैं, "बिना महरम के हज करना एक चमत्कार है." 42 वर्षीय मारवा तीन बच्चों की मां हैं और उन्होंने महामारी के पहले कई बार हज पर जाने की कोशिश की थी लेकिन वो असफल रही थीं. उनके पति पहले ही हज करके आ चुके थे और इतनी जल्दी दोबारा जाने की उन्हें अनुमति नहीं थी. एक नागरिक समाज संगठन के लिए काम करने वाली मारवा अब अपनी तीन दोस्तों के साथ मक्का जा रही हैं.
सीके/एमजे (एएफपी) (dw.com)