अंतरराष्ट्रीय
"बुल्ली बाई" ऐप पर कई प्रभावशाली मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें पोस्ट की गई थीं. महिलाएं सवाल कर रही हैं कि ऐसे लोगों पर सरकार कार्रवाई क्यों नहीं करती है.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट-
मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें "नीलाम" करने वाले ऐप "बुल्ली बाई" को तो ब्लॉक कर दिया गया है लेकिन जिन महिलाओं की तस्वीरें इस ऐप पर डाली गईं थी वे इस बात से निराश हैं कि सरकार ऐसे लोगों पर सख्ती कब दिखाएगी. दिल्ली और मुंबई पुलिस ने इस ऐप के खिलाफ आईपीसी की कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है. डीडब्ल्यू ने दो प्रभावशाली महिलाओं से बात की जिनकी तस्वीरें इस ऐप पर डाली गईं थी. इनमें से द वॉयर की पत्रकार इस्मत आरा हैं और दूसरी जानी मानी रेडियो जॉकी सायमा हैं.
भारत की 100 मुस्लिम महिलाओं समेत इन दोनों की तस्वीरें भी "नीलामी" के लिए ऐप पर डाली गईं थीं. इनका कहना है कि दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की उम्मीद कम है. "बुल्ली बाई" ऐप पर जिनकी तस्वीरें डाली गईं उनमें प्रसिद्ध अभिनेत्री शबाना आजमी, दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की पत्नी, कई पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता और राजनेता शामिल हैं. पत्रकार इस्मत आरा उन महिलाओं में से एक हैं जिनकी तस्वीरें "बुल्ली बाई" पर पोस्ट की गई हैं. उन्होंने उसके खिलाफ दिल्ली पुलिस साइबर सेल में शिकायत दर्ज कराई है.
"सच की आवाज दबाने की कोशिश"
इस्मत आरा कहती हैं कि इस तरह की घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं लेकिन उनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई जिससे ऐसे लोगों का हौसला बढ़ा है. डीडब्ल्यू से बात करते हुए उन्होंने कहा, "ये मामला पहली बार नहीं हो रहा है. एक बार और हो चुका है, उस बार भी लोगों ने यह नहीं कहा था कि बहुत अच्छा हुआ है, लोगों ने इसकी निंदा की थी. सबने कहा था कि बहुत गलत हो रहा है. उस बार भी सभी जिम्मेदार लोगों ने इसकी निंदा की थी. महिला आयोग ने संज्ञान लिया था. संसद में बात उठाई गई थी. गृह मंत्री को खत लिखे गए थे. उसके बावजूद उस केस में निष्कर्ष नहीं दिखा, मामले में प्रगति होती नहीं दिखी."
इस्मत कहती हैं, "इस बार भी दो जगह मामला दर्ज कराया गया है. इस उम्मीद के साथ कि कोई कार्रवाई हो. इस बार भी पुलिस के लिए काफी चुनौती है कि वे लोग भी बार-बार अंगूठा दिखा रहे हैं और कह रहे हैं कि हम करेंगे, आप हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं. तो उनके भीतर डर तो पैदा हो, एक सजा तो मिले ताकि इस तरह की चीजें दोबारा ना हों."
ऐप पर तस्वीर डाले जाने को लेकर उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए किया गया ताकि सच्चाई की आवाज उठाने वालों को डरा-धमका कर चुप कराया जा सके. इस्मत आरा आगे कहती हैं, "हमारे माता-पिता भी चिंतित हैं, हमारी बहनें भी चिंतित हैं कि सोशल मीडिया तक सीमित यह खतरा वास्तविक खतरा न बन जाए और हम पर सीधा हमला हो सकता है." इस्मत चाहती हैं कि सरकार को इसे गंभीरता से लेना चाहिए. वे कहती हैं, "लेकिन अभी तक हमने ऐसी कोई प्रगति नहीं देखी है."
"यह बहुत दर्दनाक है"
इसी तरह की एक और घटना पिछले साल जुलाई में हुई थी. "सुल्ली डील्स" नाम के एक ऐप पर 80 से ज्यादा मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें डाली गई थीं. ऐप के खिलाफ दिल्ली और उत्तर प्रदेश में मामले दर्ज किए गए लेकिन अब तक उस मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है और ना ही कोई गिरफ्तारी. जानी मानी रेडियो जॉकी सायमा का नाम भी "बुल्ली बाई" की लिस्ट में शामिल है. उन्होंने डीडब्ल्यू से बात करते हुए कहा कि यह बहुत दर्दनाक है. उन्होंने कहा, "पिछले चार पांच साल से सोशल मीडिया पर आपके खिलाफ गाली गलौज, आपकी तस्वीरें बिगाड़ने की एक संस्कृति बनती जा रही है, जिसको आप साइबर बुलिंग कहते हैं, क्योंकि आप मुसलमान है और आज के हिंदुस्तान में ऐसा हो रहा है. मेरे लिए यह शॉकिंग नहीं था और मेरे ख्याल से यही सबसे ज्यादा शॉकिंग चीज है कि यह शॉकिंग नहीं है."
सायमा का कहना है, "सभी को ऐसे अपराधियों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए क्योंकि कोई भी इनका शिकार हो सकता है. नफरत करने वाले किसी का पीछा नहीं छोड़ते." वे कहती हैं, "ये जो चलन है कि आपकी आंख में आंख मिलाकर वो अपनी सारी हैवानियत दिखाएंगे, यह बहुत तकलीफदेह है. यह साफ साफ बताता है कि आपके देश का कानून मर चुका है. आपके समाज में कानून से चीजें चलती थीं, वह नहीं है." वे सवाल करती हैं, "इन्हें किनका समर्थन हासिल है, ये लोग क्यों नहीं पकड़े जाते हैं. यह खुलकर सामने आते हैं और बताते हैं कि हमने किया है और मुस्कुराते हैं और इनपर खबरें होती हैं लेकिन इनको पकड़ा नहीं जाता है."
"असली जिम्मेदारी सरकार की"
पीड़ितों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि महिलाओं, खासकर मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं क्योंकि उन्हें रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं. सायमा का कहना है, "सबसे बड़ी जिम्मेदारी सरकार और कानून प्रवर्तन एजेंसियों की है. अगर वे यह सुनिश्चित करते हैं कि गलत काम करने वालों के खिलाफ नरमी ना की जाए तो इस गंभीर समस्या को काफी हद तक हल किया जा सकता है."
उन्होंने कहा कि असली सवाल कानून के शासन का है. सायमा का कहना है, "हमारी सरकार, हमारी पुलिस इस तरह का काम क्यों नहीं करती कि वे लोग डरे. क्या है जो इतना वक्त लगता है कार्रवाई करने में. मुजरिम आपके सामने है. सवाल मेरा कानून से है. किस तरह का कानून हम दे रहे हैं कि हम किसी की सुरक्षा नहीं कर सकते हैं. तो हम जंगल में चले जाएंगे ना. या फिर हमें बता दें कि हम आपका ख्याल नहीं रखेंगे, आप अपनी हिफाजत खुद करें."
सायमा से जब पूछा गया कि मुस्लिम महिलाओं को इस तरह से क्यों निशाना बनाया जा रहा है तो वे कहती हैं कि "बुल्ली बाई"और "सुल्ली डील्स" की तरह काम करने वाले सोचते हैं कि कैसे एक मुस्लिम लड़की सच्चाई के लिए आवाज उठाने की हिम्मत कर सकती है. वह कैसे सफल हो सकती है? वह उदार कैसे हो सकती है?''
कई सामाजिक और राजनीतिक नेताओं ने भी "बुल्ली बाई" मुद्दे की निंदा की है और सरकार से कार्रवाई करने का आह्वान किया है. इस्मत कहती हैं इस तरह के हमले सोशल मीडिया तक सीमित नहीं रहते हैं और वह वास्तव में असली खतरा भी बनकर आ सकते हैं. इस बीच केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा है ऐप के होस्ट प्लेटफॉर्म गिटहब ने ऐप ब्लॉक कर दिया है. उन्होंने कहा है कि ऐप डेवलपर्स के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी. उनके मुताबिक कार्रवाई के लिए इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम और पुलिस समन्वय कर रही है. (dw.com)
शनिवार को हैती की आज़ादी की सालगिरह के मौके पर एक कार्यक्रम के दौरान बंदूकधारियों ने देश के प्रधानमंत्री एरियल हेनरी की हत्या करने की कोशिश की.
हैती के अधिकारियों ने ये जानकारी दी है.
यह घटना तब हुई जब हेनरी उत्तरी शहर गोनावेस में स्थित एक चर्च के समारोह में हिस्सा ले रहे थे.
सामने आए वीडियो में प्रधानमंत्री और उनके दल की कार तेज़ गोलीबारी के बीच बचकर निकलती नज़र आ रही है.
पिछले साल,जुलाई में राष्ट्रपति जोवेनेल मोसे की हत्या के बाद से देश में सुरक्षा की स्थिति बिगड़ती ही जा रही है.
हाल ही में प्रधानमंत्री हेनरी ने देश में अपहरण करने वाले और देश भर में गैस वितरण के अधिकांश हिस्से पर नियंत्रण करने वाले शक्तिशाली गिरोहों पर नकेल कसने का संकल्प लिया था. गैस वितरण के हिस्सों पर कब्ज़े के कारण हैती ईंधन की गंभीर कमी से जूझ रहा है.
प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा कि हत्या की कोशिश के पीछे "लुटेरे और आतंकवादी" थे,और संदिग्धों के लिए गिरफ़्तारी वारंट जारी किया जा चुका है.
समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस के अनुसार,प्रधानमंत्री पर हमला करने वा समूह परदे के पीछे छिप कर काम करता है और उन्होंने चर्च के पादरी को धमकाया और चर्च को चारो ओर से घेर लिया था.
स्थानीय मीडिया के हवाले से बताया गया है कि हमलावरों और सुरक्षा बलों के बीच हुई इस मुठभेड़ में एक व्यक्ति की मौत हो गई और दो लोग घायल हो गए. (bbc.com)
सुमी खान
ढाका, 4 जनवरी| बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने 'गोलियों और ग्रेनेड' के खतरे के बावजूद लोगों के लिए काम करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है।
बंगबंधु इंटरनेशनल में आयोजित एक समारोह में उन्होंने कहा, मुझे पता है कि कई गोलियां, बम और हथगोले मेरा इंतजार कर रहे हैं। मुझे उनकी कभी परवाह नहीं है। मैं लोगों के भाग्य को बदलने के लिए काम कर रही हूं और मैं निश्चित रूप से ऐसा करूंगी।
सम्मेलन का आयोजन केंद्र, संयुक्त राष्ट्र द्वारा एक विकासशील राष्ट्र के लिए बांग्लादेश के ग्रैजुएशन की औपचारिक मान्यता का जश्न मनाने के लिए किया गया।
हसीना ने कहा, "मेरे सामने चाहे जो भी बाधा आए .. मैं उन लोगों के रास्ते जानती हूं, जो अपने देश से प्यार करते हैं, और उन्हें कई बाधाओं से गुजरना होगा। उन्होंने कहा, उम्मीद है कि भविष्य की पीढ़ियों के हाथों में विकास जारी रहेगा।
उन्होंने कहा कि कोई भी हमेशा के लिए नहीं रहेगा। नई पीढ़ी को देश के विकास को समृद्धि की ओर ले जाने के लिए जिम्मेदारियां निभानी होंगी।
हसीना ने अपने आधिकारिक आवास गणभवन से वर्चुअल रूप से शामिल होते हुए कहा, "मैं नई पीढ़ी से देश से प्यार करने और यहां के लोगों के लिए काम करने का आह्वान करना चाहती हूं।"
उन्होंने कहा, हमें एक विकसित और समृद्ध देश के निर्माण के लिए राष्ट्रपिता के सपने को साकार करना होगा। हसीना ने अपने सपने को पूरा करने के लिए बंगबंधु के आदर्शो के साथ आगे बढ़ने का संकल्प लिया, चाहे रास्ता कितना भी अंधेरा क्यों न हो।
उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि उनकी सरकार 2041 तक बांग्लादेश को एक विकसित और समृद्ध राष्ट्र में बदलने के लिए चल रहे विकास की होड़ को जारी रखने के लिए एक चिकनी संक्रमण रणनीति (एसटीएस) बनाने के लिए तैयार है। (आईएएनएस)
दुनिया भर में लगभग 7,000 मान्यता प्राप्त भाषाएं हैं, लेकिन उनमें से कई जल्द ही हमेशा के लिए विलुप्त हो सकती हैं. ऑस्ट्रेलिया के एक अध्ययन के मुताबिक सभी भाषाओं में से लगभग आधी खतरे में हैं.
ऑस्ट्रेलिया में हुए शोध में कहा गया है कि इस सदी के अंत तक 1,500 भाषाएं विलुप्त हो सकती हैं. शोधकर्ताओं ने अपने शोध में लिखा, "हस्तक्षेप के बिना 40 वर्षों के भीतर भाषा की हानि तिगुनी हो सकती है, जिसमें एक भाषा मासिक आधार पर विलुप्त हो सकती है."
शोधकर्ताओं का सुझाव है कि बच्चों के पाठ्यक्रम को द्विभाषी के रूप में विकसित किया जाए और क्षेत्रीय रूप से मजबूत भाषाओं के साथ-साथ प्राचीन भाषाओं के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाए. शिक्षा, नीति, सामाजिक-आर्थिक संकेतकों और समग्र परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न भाषाओं के इस अध्ययन के लिए कई पैमानों को अपनाया गया.
ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रीय विश्वविद्यालय (एएनयू) के नेतृत्व में यह अध्ययन किया गया और यह शोध नेचर इकोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. यह अध्ययन भाषाओं के सामने आने वाले अप्रत्याशित और आश्चर्यजनक खतरों की पड़ताल करता है.
इस अध्ययन रिपोर्ट के सह-लेखक लिंडेल ब्रोमहैम के मुताबिक, "किसी क्षेत्र में बेहतर सड़क अवसंरचना भाषाओं के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है. उदाहरण के लिए इनमें एक अच्छी तरह से विकसित सड़क नेटवर्क शामिल है." वे आगे कहते हैं, "हमने देखा कि जितनी अच्छी सड़कें हैं, उतना ही बेहतर क्षेत्र बाकी हिस्सों से जुड़े हैं. सड़कों पर प्रमुख भाषाओं का बोलबाला लगता है. वे मदद करती हैं उन्हें स्थानीय भाषा सीखने के लिए."
अध्ययन में यह भी पाया गया कि विभिन्न भाषाओं के परस्पर संपर्क से स्वदेशी भाषाओं को खतरा नहीं है, बल्कि यह तथ्य है कि अन्य भाषाओं के संपर्क में आने वाली भाषाएं कम खतरे में हैं. अध्ययन रिपोर्ट ऑस्ट्रेलिया की लुप्तप्राय स्वदेशी भाषाओं को कैसे बचाया जाए, इस पर भी सिफारिशें करती है. रिपोर्ट के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया में स्वदेशी और प्राचीन भाषाओं के विलुप्त होने की दर दुनिया में सबसे अधिक है. इस महाद्वीप पर 250 भाषाएं बोली जाती थीं, लेकिन अब केवल 40 हैं.
ब्रोमहैम के मुताबिक, "जब कोई भाषा विलुप्त हो जाती है, या 'सो रही होती है' जैसा कि हम उन भाषाओं के लिए कहते हैं जो अब बोली नहीं जाती हैं, तो हम अपनी मानव सांस्कृतिक विविधता को खो देते हैं."
एए/सीके (डीपीए, एपी)
चीन की साख को देश के भीतर और विदेश में भी भारी धक्का लगा है. रोडिओन एबिगहाउजेन कहते हैं कि यह वैश्विक नेता बनने की चीन की महत्वाकांक्षाओं पर भारी पड़ रहा है.
डॉयचे वैले पर रोडिओन एबिगहाउजेन की रिपोर्ट-
पिछले साल नवंबर में पूर्व उप प्रधानमंत्री झांग गाओली पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वालीं चीनी टेनिस खिलाड़ी पेंग शुआई ने अपने नवीनतम इंटरव्यू में इस मामले पर बहुत कम प्रकाश डाला है. इस वीडियो में वो बहुत ही दिग्भ्रमित और विचलित नजर आ रही हैं.
यह मामला सिर्फ एक उदाहरण है जो दिखाता है कि पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) की साख कितनी खराब है. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के लिए, यह एक ऐसी समस्या है जो खेल से कहीं आगे तक फैली हुई है.
पीआरसी ने 21वीं सदी के लोकतंत्र का निर्माण करने का दावा किया है. चीन के प्रोपेगेंडा के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में उदार लोकतंत्र, जिसे लोकलुभावनवाद और अस्थिरता से खतरा है, को एक तकनीकी, सत्तावादी लोकतंत्र से प्रतिस्थापित किया जा रहा है.
"लोगों के लोकतंत्र" को प्राप्त करने के लिए, जैसा कि इसे आधिकारिक शब्दजाल में कहा जाता है, सीसीपी ने लेनिन को समर्पित उद्धरण "विश्वास अच्छा है, नियंत्रण बेहतर है" को आगे बढ़ाया है.
उन्माद को नियंत्रित करें
कठोर सेंसरशिप के माध्यम से सीसीपी मीडिया को नियंत्रित करता है. सीसीपी की ओर से पोस्ट, लाइक, शेयर करने वाले सिविल सेवकों की एक सेना और सोशल मीडिया जैसे वीबो, वीचैट और अन्य आउटलेट्स के माध्यम से जो विशेष रूप से घरेलू बाजार के लिए बनाए गए थे, उन्हें और कड़ाई से नियंत्रित किया जा रहा है.
इस जबरदस्त नियंत्रण के परिणामस्वरूप, पेंग शुआई की पोस्टिंग कुछ ही समय में गायब हो गई. ऐसा नहीं है कि सेंसरशिप ने बहुत हंगामा किया, बल्कि चीन में, यह MeToo मामला कोई खास मुद्दा नहीं बन पाया.
पार्टी अर्थव्यवस्था को भी नियंत्रित करती है. यह अदालतों को नियंत्रित करती है, यह विज्ञान और शिक्षा को नियंत्रित करती है और आखिरकार, जीवन के सभी क्षेत्रों की निगरानी अंतिम स्तर तक की जाती है.
नतीजतन, सीसीपी चीनी नागरिकों के खिलाफ कार्रवाई करता है. यह सैकड़ों हजारों मुस्लिम उइगरों को शिविरों में पुनर्शिक्षा के अधीन करता है, यह हांगकांग में लोकतंत्र आंदोलन को शांत करने के लिए पुलिस बल और कानूनी साधनों का उपयोग करता है और फिर नकली चुनाव कराता है.
कम्युनिस्ट पार्टी पर कोई नियंत्रण नहीं है
नियंत्रण पर पूरी पकड़ होने के बावजूद, इस तथ्य से नज़र हटाना आसान है कि आखिरकार कोई वास्तविक नियंत्रण नहीं है, क्योंकि कोई भी नियंत्रण करने वालों को नियंत्रित नहीं करता है. सीसीपी और शी जिनपिंग अछूत हैं.
एक सच्चे लोकतंत्र के विपरीत, जिसमें शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत सुनिश्चित करता है कि विभिन्न राज्य अंग एक-दूसरे की जांच और संतुलन करते हैं और जिसमें चुनाव एक वास्तविक विकल्प प्रदान करते हैं, चीन में केवल एक सर्वोच्च अधिकार है. और वह है 25-सदस्यीय पोलित ब्यूरो, जो शी के नेतृत्व में 1.4 अरब लोगों के भाग्य को निर्धारित करता है.
बढ़ता अविश्वास पार्टी की शक्ति की प्रचुरता और वास्तविक नियंत्रण की कमी का परिणाम है. मी टू मामला तो इसका एक उदाहरण है. पीईडब्ल्यू शोध केंद्र के एक अध्ययन के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन की प्रणाली 17 बड़े औद्योगिक देशों की तुलना में कम आकर्षक है. रिपोर्ट के मुताबिक, "ज्यादातर प्रमुख औद्योगिक देशों में चीन को बड़े पैमाने पर नकारात्मक रूप से देखा जाता है."
बड़ी आर्थिक सफलताओं के आधार पर दुनिया को अपनी व्यवस्था की श्रेष्ठता के बारे में समझाने की चीन की उम्मीदें विफल हो गई हैं.
चीन इसे बहुत ही सफाई से करता है
अमेरिका के राजनीति वैज्ञानिक जोसेफ नी ने "सॉफ्ट पावर" शब्द को वैश्विक प्रतिष्ठा और नेतृत्व प्राप्त करने के लिए एक प्रभावी उपकरण के रूप में गढ़ा है. दूसरे शब्दों में, सांस्कृतिक और सामाजिक कौशल के आधार पर अन्य देशों को अपनी स्थिति के बारे में समझाने की क्षमता प्राप्त करना. सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, इसके लिए विश्वसनीयता की आवश्यकता होती है लेकिन विश्वसनीयता को मजबूर नहीं किया जा सकता है और निश्चित रूप से नियंत्रण द्वारा प्रतिस्थापित भी नहीं किया जा सकता है.
खेल दूसरों पर जीत हासिल करने का एक तरीका हो सकता है. चीन के अधिकारी जिन्होंने साल 2022 शीतकालीन ओलंपिक को सफलतापूर्वक हासिल किया, वे इस बात को जानते हैं. लेकिन यह पूरी तरह से दिखाने के लिए पर्याप्त नहीं है. एक विश्वसनीय छवि पेश करने के लिए एथलीटों, दर्शकों और अन्य लोगों को अपनी मर्जी से ऐसा करना चाहिए. कामवासना को जबरदस्ती किया जा सकता है, प्रेम को नहीं. (dw.com)
दक्षिणपंथियों की आलोचना के बाद फ्रांस सरकार ने पेरिस स्थित आर्क दे ट्रायंफ पर लगा यूरोपीय संघ का झंडा उतार लिया. फ्रांस छह महीने के लिए यूरोपीय संघ का अध्यक्ष बना है.
यूरोपीय संघ की अध्यक्षता शुरू करने के मौके को मनाने के लिए आर्क दे ट्रायंफ पर लगाया गया यूरोपीय संघ का झंडा उतार लिया गया. देश के दक्षिणपंथियों ने इस झंडे को फहराने पर आपत्ति जताई थी जिसके बाद सरकार ने अस्थायी तौर पर लगाया गया यह ध्वज उतारने का फैसला किया.
पेरिस स्थित आर्क दे ट्रायंफ फ्रांस का एक ऐतिहासिक स्मारक है, जहां यह ध्वज अस्थायी तौर पर लगाया गया था. लेकिन देश के दक्षिणपंथियों ने ऐसा करने के लिए राष्ट्रपति माक्रों की आलोचना करते हुए कहा कि वह फ्रांसीसी पहचान को नष्ट कर रहे हैं.
फ्रांस में जल्द ही राष्ट्रपति चुनाव होने हैं जिनमें माक्रों दोबारा किस्मत आजमा सकते हैं. उनके सामने दक्षिणपंथी नेता वैलरी पिक्रेज रिपब्लिकन उम्मीदवार हैं. पिक्रेज ने शुक्रवार को माक्रों से ऐतिहासिक युद्ध स्मारक पर फ्रांसीसी ध्वज वापस लगाने की मांग की थी. उन्होंने कहा, "जिन सैनिकों ने इसके लिए खून बहाया है, उनकी खातिर हमें ऐसा करना चाहिए.”
खुश हुए दक्षिणपंथी
यह ध्वज नव वर्ष की पूर्व संध्या पर वहां लगाया गया था. इस बारे में पिक्रेज ने ट्विटर पर लिखा, "यूरोप की अध्यक्षता, हां. फ्रांसीसी पहचान का क्षरण, नहीं.”
रविवार को यूरोपीय संघ का ध्वज हटाए जाने के बाद अन्य दक्षिणपंथी नेता मरीन ला पेन ने इसे धुर-दक्षिणपंथ की जीत बताया. एक दिन पहले ही ला पेन ने धमकी दी थी कि यदि ध्वज नहीं हटाया गया तो वह फ्रांस की काउंसिल ऑफ स्टेट में शिकायत करेंगी.
ला पेन ने रविवार को कहा, "सरकार को आर्क दे ट्रायंफ से यूरोपीय संघ का ध्वज हटाने के लिए मजबूर कर दिया गया. 2022 की शुरुआत के लिए एक सुंदर देशभक्तिपूर्ण जीत.” उन्होंने ट्विटर पर दावा किया कि लोगों के विशाल लामबंदी ने सरकार को ऐसा करने पर मजबूर किया.
‘हम झुके नहीं'
फ्रांसीसी सरकार ने हालांकि इस बात से इनकार किया है कि किसी मजबूरी में ध्वज उतारने का फैसला लिया गया. पहले शुक्रवार को कहा गया था कि यह ध्वज ‘कई दिन तक' लगा रहेगा. फ्रांस के यूरोपीय मामलों के मंत्री क्लेमां बूने ने कहा कि ध्वज को तयशुदा योजना के तहत ही उतारा गया है.
बूने ने फ्रेंच इंटर रेडियो को बताया, "यह तय था कि ध्वज रविवार को उतारा जाएगा. हमने इसके लिए कोई समय तय नहीं किया था.” बूने ने हालांकि कहा कि सरकार पीछे नहीं हटी है. उन्होंने दक्षिणपंथियों पर बेबुनियाद विवादों के पीछे भागने का आरोप लगाया.
बूने ने कहा, "हम पीछे नहीं हटे हैं. योजना में कोई बदलाव नहीं किया गया. मैं पूरी तरह से मानता हूं कि फ्रांस का भविष्य यूरोप के साथ है.” उन्होंने स्पष्ट किया कि यूरोपीय ध्वज हटाकर फ्रांसीसी ध्वज नहीं लगाया गया है क्योंकि यह कोई स्थायी प्रदर्शन नहीं है.
इमानुएल माक्रों ने 2017 में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव में ला पेन को 34 प्रतिशत के मुकाबले 64 प्रतिशत मतों से हराया था. हालांकि दोबारा चुनाव लड़ने का ऐलान माक्रों ने अब तक नहीं किया है लेकिन इस साल अप्रैल में होने वाले चुनावों में उनकी उम्मीदवारी संभावित है. ला पेन पहले ही अपना अभियान शुरू कर चुकी हैं.
वीके/एए (एएफपी, रॉयटर्स)
यरुशलम, 2 जनवरी | इजराइल ने कथित तौर पर 'फ्लोरोना' के पहले मामले की पुष्टि की है, जो कि कोविड-19 और इन्फ्लूएंजा के साथ-साथ होने वाला संक्रमण है। न्यूज वेबसाइट यनेटन्यूज के मुताबिक, डबल संक्रमण की पहचान सबसे पहले पेटाह टिकवा के राबिन मेडिकल सेंटर में प्रसव पीड़ा के दौरान हुई एक महिला में हुई है।
अस्पताल के अनुसार, महिला को कोई भी टीका नहीं लगाया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वास्थ्य मंत्रालय अभी भी मामले की जांच कर रहा है और अभी तक यह निर्धारित नहीं किया गया है कि दोनों वायरस के एक साथ होने से अधिक गंभीर बीमारी होती है या नहीं।
स्वास्थ्य अधिकारियों का अनुमान है कि कई अन्य रोगियों में भी दोनों वायरस पाए गए हैं, लेकिन उनका निदान नहीं किया गया है।
एक प्रसूति और स्त्री रोग विशेषज्ञ और अस्पतालों के स्त्री रोग विभाग के निदेशक अर्नोन विजनित्सर के हवाले से कहा गया था, "पिछले साल, हमने गर्भवती या जन्म देने वाली महिलाओं में फ्लू के मामले नहीं देखे।"
"आज, हम कोरोनोवायरस और फ्लू दोनों के मामले देख रहे हैं। हम फ्लू वायरस की चपेट में आने वाली अधिक से अधिक गर्भवती महिलाओं को देख रहे हैं।"
विजनित्सर के अनुसार, "एक ऐसी महिला का इलाज करना एक बड़ी चुनौती है, जिसे बच्चे के जन्म के समय बुखार आता है और आप नहीं जानते कि यह कोरोनावायरस है या फ्लू। ज्यादातर बीमारी सांस की होती है।"
(आईएएनएस)
-अबुल कलाम आज़ाद
लोकतंत्र और मानवाधिकार जैसे मूल्यों को लेकर बांग्लादेश पर प्रतिबंध लगाने के अमेरिका के फ़ैसले को अमेरिकी विदेश नीति में बड़ा बदलाव माना जा रहा है.
बाइडन प्रशासन के इस क़दम को भू-राजनीतिक हितों के चलते रणनीतिक स्थिति में हुए परिवर्तन के तौर पर भी देखा जा रहा है.
इससे पहले अमेरिका ने 2021 के 'लोकतंत्र सम्मेलन' से बांग्लादेश को दूर रखा. उसके विशेष बलों ने मानवाधिकार दिवस (10 दिसंबर) के दिन बांग्लादेश के रैपिड एक्शन बटालियान (RAB) और कई अधिकारियों पर प्रतिबंध लगा दिया.
इसके अलावा, छह साल पहले बांग्लादेश के लेखक अभिजीत रॉय को मारने वाले भगोड़े हत्यारों को पकड़ने के लिए सूचना देने वालों को 50 लाख डॉलर (क़रीब 37 करोड़ रुपये) का इनाम देने का एलान किया.
इस तरह कई वजहों से इन दिनों अमेरिका और बांग्लादेश के संबंधों पर काफ़ी विचार-विमर्श होने लगा है. जानकारों में इस बात को लेकर काफ़ी उत्सुकता है कि बांग्लादेश में लोकतंत्र, मानवाधिकार और क़ानून का शासन जैसे मुद्दों को लेकर अमेरिका आख़िर अब क्यों मुखर हुआ है.
कई लोग अमेरिका के हाल में उठाए गए क़दमों को बांग्लादेश के साथ उसके संबंधों में पैदा हुए तनाव के तौर पर देख रहे हैं.
अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार प्रोफ़ेसर रुख़साना किबरिया के अनुसार, "दोनों देशों के रिश्तों ने जटिल मोड़ ले लिया है. अमेरिका एक महाशक्ति है, इसलिए जब यह मामला सामने आया तो सरकार बहुत कुछ कर रही है. ज़ाहिर है, अमेरिकी सरकार बांग्लादेश से कई मसलों पर काफ़ी नाराज़ है."
वो कहती हैं कि अमेरिका के उठाए गए क़दम काफ़ी अहम और फ़ैसले राजनीतिक हैं.
किबरिया बताती हैं, "बाइडन प्रशासन के ताज़ा फ़ैसले को देखकर हम कह सकते हैं कि उसकी नीति साफ़ तौर पर बदल रही है. हम देख रहे हैं कि अमेरिका बांग्लादेश में हो रही कई चीज़ों से नाख़ुश है."
हालांकि अमेरिका के ताज़ा फ़ैसलों को बांग्लादेश के साथ उसके संबंधों में आई कमज़ोरी के तौर पर नहीं देखा रहा है, बल्कि इसे उसके रवैये में बदलाव के रूप में देखा जा रहा है.
अमेरिका की इलिनोइस स्टेट यूनिवर्सिटी में 'शासन और राजनीति' के जाने-माने प्रोफ़ेसर अली रियाज़ का मानना है कि बाइडन प्रशासन ने विदेश नीति के केंद्र में मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों को रखा है. हालांकि, इस नीति का इस्तेमाल राष्ट्रीय हित और सुरक्षा के लिए रणनीतिक रूप से किया जा रहा है.
वो कहते हैं, "बाइडन प्रशासन का कहना है कि वह मानवाधिकारों के लोकतांत्रिक मूल्यों को महत्व देता रहेगा. अमेरिका को विदेश नीति के कुछ मसलों से समस्या है. अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रीय हित उसकी रणनीति है. अमेरिका दो चीज़ें करने की कोशिश कर रहा है- पहला, मानवाधिकार या लोकतंत्र का सवाल है और दूसरा बाइडन प्रशासन शुरू से ही एशिया-प्रशांत क्षेत्र पर फ़ोकस बनाए हुए है."
डॉ. रियाज़ कहते हैं, "इस तरह वो चीन को प्रमुख प्रतिद्वंद्वी बनने और चीन के बढ़ रहे प्रभाव क्षेत्र को रोकने की कोशिश कर रहा है. इसी वजह से अमेरिका कई देशों की सरकारों पर अपना दबाव बना रहा है."
उनके मुताबिक़, ''चीन बांग्लादेश पर एक तरह का प्रभाव डाल रहा है. इसमें कोई शक़ नहीं है कि अमेरिका ने इसे ध्यान में रखा है. हालांकि वो बांग्लादेश को अलग-थलग नहीं करना चाहता. कम से कम मुझे तो ऐसा नहीं लगता. मुझे लगता है कि अमेरिका स्पष्ट संकेत दे रहा है कि बांग्लादेश को कुछ चीज़ें सुधारने की ज़रूरत है. असल में वो चाहता है कि बांग्लादेश उसके साथ काम करे."
अमेरिका के थिंक टैंक 'रैंड कॉर्पोरेशन' में सेंटर फ़ॉर एशिया-पैसिफ़िक पॉलिसी के निदेशक रफ़ीक़ दोसानी का मानना है कि बांग्लादेश पर अमेरिका का यह क़दम भू-राजनीतिक लिहाज़ से अहम है.
दोसानी कहते हैं कि विकास के लिहाज़ से चीन के लिए बांग्लादेश का चटगांव बंदरगाह और उसके पास का सितवे बंदरगाह अहम हैं.
उनके अनुसार, अमेरिका की नीति और बांग्लादेश के प्रति उसके रवैये में हुए ताज़ा बदलाव का मुख्य लक्ष्य चीन को रोकना है. इस मामले में बाइडन प्रशासन ने विदेश नीति के तरीक़े को बदला है.
रफ़ीक़ दोसानी कहते हैं, "बांग्लादेश शायद दो शक्तियों के बीच चुनाव करने को तैयार नहीं है. लेकिन अमेरिका चाहता है कि बांग्लादेश तुरंत फ़ैसला करे. मुझे लगता है कि बांग्लादेश इस जगह पर आकर फंस गया है."
उन्होंने कहा, "यह सिर्फ़ बांग्लादेश का संकट नहीं है. पूरा एशिया इस समस्या का सामना कर रहा है. अमेरिका इस समय वो तरीक़ा अपना रहा है कि आप या तो मेरे साथ हैं या मेरे ख़िलाफ़. मुझे लगता है कि वहां यही हो रहा है."
बांग्लादेश को भारत पर निर्भर नहीं देखना चाहता अमेरिका
जियोपोलिटिकल लिहाज़ से बांग्लादेश को दक्षिण एशिया में काफ़ी अहम माना जाता है. हालांकि वहां लोकतंत्र सवालों के घेरे में है, लेकिन अमेरिका लंबे समय से इस मसले पर ख़ामोश रहा है.
उसे इस क्षेत्र में अमेरिका के सहयोगी भारत का भी समर्थन मिलता रहा है. हालांकि डॉ. अली रियाज़ बांग्लादेश के प्रति अमेरिकी नज़रिए में हुए ताज़ा बदलाव को भारत के प्रति अमेरिका की नीति में हुए बदलाव के रूप में भी देखते हैं.
वो कहते हैं, "मैं मानता हूं कि बांग्लादेश का सवाल अब भारत केंद्रित हो गया है. अब यह केवल बांग्लादेश का मामला नहीं रह गया है. मेरा अनुमान है कि भारत और पाकिस्तान को छोड़कर दक्षिण एशिया के देशों जैसे श्रीलंका, मालदीव, नेपाल को लेकर अमेरिका वाक़ई पुनर्विचार कर रहा है.''
दोसानी कहते हैं, "मुझे लगता है कि ट्रेंड बिल्कुल साफ़ है कि अमेरिका, भारत पर बांग्लादेश की निर्भरता घटाना चाहता है. और वो ये भी चाहता है कि इस क्षेत्र पर भारत का प्रभुत्व न रहे."
उनके मुताबिक़, ''भारत जिस तरह चीन से निपट रहा है, उसे लेकर अमेरिका हताश है.'' (bbc.com)
नई दिल्ली, 1 जनवरी| तालिबानी लड़ाके युद्ध के दौरान मारे गए अफगानी सैनिकों व पुलिस कमांडरों की कब्रों को बर्बाद कर रहे हैं। तालिबान ने अपने पिछले कार्यकाल के दौरान समूह के खिलाफ लड़ने वाले योद्धाओं के स्मारकों को भी नुकसान पहुंचाया है।
आरएफई/आरएल की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल अगस्त में सत्ता पर कब्जा करने के बाद से, अफगानिस्तान में तालिबान आतंकवादियों पर अफगान सेना और पुलिस कमांडरों की कब्रों को तोड़ने या नष्ट करने का आरोप लगाया गया है।
तालिबान ने कथित तौर पर 1990 के दशक में सत्ता में अपने पहले कार्यकाल के दौरान समूह से लड़ने वाले लोगों को समर्पित स्मारकों को भी अपवित्र किया है।
जहां कट्टर समूह के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं, वहीं तालिबान ने ऐसी कई घटनाओं के लिए जिम्मेदारी से इनकार किया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ताजा घटनाक्रम में तालिबान लड़ाकों पर 26 दिसंबर को दक्षिणपूर्वी प्रांत पक्तिका में पूर्व पुलिस कमांडर दरया खान तलाश की कब्र पर बमबारी करने का आरोप लगाया गया है।
खान 2020 में पक्तिका के सरोबी जिले में तालिबान द्वारा सड़क किनारे लगाए गए बम विस्फोट से मारा गया था। उसने कथित तौर पर तालिबान के खिलाफ युद्ध में अपने चार भाइयों को खो दिया था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबान लड़ाकों पर 17 दिसंबर को तखर प्रांत में उत्तरी अफगानिस्तान के पूर्व गवर्नर और पूर्व पुलिस प्रमुख मोहम्मद दाऊद की कब्र को अपवित्र करने का भी आरोप लगाया गया है।
दाऊद 2011 में तखर की राजधानी तालोकान में तालिबान के आत्मघाती हमले में मारा गया था। 2001 में अमेरिका के नेतृत्व वाले आक्रमण के बाद, दाऊद ने उत्तरी शहर कुंदुज में हजारों तालिबान लड़ाकों के आत्मसमर्पण प्रक्रिया में अपनी भूमिका निभाई थी। वह जमीयत-ए इस्लामी में एक कमांडर था - एक राजनीतिक-सैन्य इस्लामी समूह - जिसने 1996 से 2001 तक तालिबान शासन का विरोध किया था।
निर्वासित अफगान पत्रकार बिलाल सरवरी ने कहा कि दाऊद के परिवार ने पुष्टि की है कि उसकी कब्र को तोड़ा गया है, लेकिन तालिबान ने इस दावे को खारिज कर दिया।
इस बीच, तालिबान पर 31 अक्टूबर को दक्षिणपूर्वी प्रांत पक्तिका में एक बम विस्फोट में कर्नल अजीजुल्लाह कारवां की कब्र को नष्ट करने का आरोप लगाया गया है।
तालिबान ने जून 2018 में कारवां की हत्या कर दी थी। वह अफगान नेशनल पुलिस की विशेष बल इकाई में कर्नल थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि वह उससे पहले तालिबान की हत्या के दर्जनों प्रयासों से बच गए थे।
सितंबर में ऐसा वीडियो भी सामना आया था, जिसमें तालिबानी लड़ाकों को काबुल के उत्तर में पंजशीर घाटी में प्रतिरोधी नेता अहमद शाह मसूद के मकबरे को नुकसान पहुंचाते हुए दिखा गया था।
सितंबर की शुरूआत में तालिबान द्वारा पहाड़ी घाटी पर कब्जा करने के तुरंत बाद फुटेज सामने आया था, जो आतंकवादियों के लिए एक अल्पकालिक प्रतिरोध का केंद्र बना हुआ था।
यह बर्बरता मसूद की मौत की 20वीं वर्षगांठ पर हुई। मसूद ने 1990 के दशक में तालिबान के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। अमेरिका पर 11 सितंबर के हमले से कुछ दिनों पहले ही अलकायदा ने उनकी हत्या कर दी थी। तालिबान ने हालांकि सार्वजनिक हंगामे के बाद मसूद के मकबरे की मरम्मत भी करानी पड़ी।
तालिबान के आंतरिक मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी के छोटे भाई अनस हक्कानी ने तालिबान लड़ाकों से अपने व्यक्तिगत बदला और ईष्र्या से छुटकारा पाने का आग्रह किया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 27 दिसंबर को अफगानिस्तान पर सोवियत आक्रमण की 42वीं वर्षगांठ के अवसर पर, हक्कानी ने चेतावनी दी थी कि अगर तालिबान शासन क्रूर बल के माध्यम से शासन करने की कोशिश करता है तो वह ध्वस्त हो जाएगा।
उन्होंने कहा था, एक काफिर सरकार के टिकने की संभावना है, लेकिन एक दमनकारी शासन नहीं टिकेगा। (आईएएनएस)
अमेरिका में बिना लक्षण वाले कोरोना पॉजिटिव लोगों को आइसोलेशन में रखने की समयसीमा आधी कर दी गई है. साथ ही, उन्हें इसके बाद जांच कराने की भी जरूरत नहीं है. वैज्ञानिकों को चिंता है कि कहीं इससे महामारी और ना फैले.
डॉयचे वैले पर लुइजा राइट की रिपोर्ट-
अमेरिकी स्वास्थ्य एजेंसी ने बिना लक्षण वाले कोरोना पॉजिटिव लोगों को आइसोलेशन में रखने की समयसीमा को कम कर दिया है. स्वास्थ्य एजेंसी के इस फैसले ने वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस फैसले से कोरोना वायरस महामारी तेजी से फैलेगी और अस्पतालों पर बोझ बढ़ेगा.
हाल ही में अमेरिकी एजेंसी 'सेंटर फॉर डिजीज ऐंड प्रिवेंशन' (सीडीसी) ने कहा था कि बिना लक्षण वाले कोविड-19 पॉजिटिव लोगों को सिर्फ पांच दिन आइसोलेशन में रहना होगा. इसके बाद, उन्हें पीसीआर या रैपिड एंटीजन की नेगेटिव रिपोर्ट की भी जरूरत नहीं होगी. पांच दिन आइसोलेशन के बाद, उन्हें अगले पांच दिनों तक मास्क पहनना अनिवार्य है.
यह नियम उन लोगों पर भी लागू होगा जिनकी स्थिति आइसोलेशन में पांच दिन रहने के दौरान पहले से बेहतर होती है. सरकार का यह फैसला ऐसी स्थिति में आया है जब स्वास्थ्य और पर्यटन से जुड़े क्षेत्रों में कर्मचारियों की कमी की आशंका जताई जा रही है. देश को हाल के हफ्तों में रैपिड-एंटीजन टेस्ट की कमी का सामना भी करना पड़ा है.
हालांकि सीडीसी का कहना है कि आइसोलेशन से जुड़ा यह फैसला वैज्ञानिक डेटा पर आधारित है. वैज्ञानिक डाटा से पता चलता है कि किसी व्यक्ति में लक्षण दिखने के एक से दो दिन पहले या लक्षण दिखने के एक से दो दिन बाद तक ही वह कोरोना वायरस का प्रसार कर सकता है.
डाटा देखना चाहते हैं वैज्ञानिक
सीडीएस जिस आंकड़े के आधार पर अपने फैसले को सही साबित करना चाहती है वह सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं है. अगस्त महीने में जेएएमए (जामा) इंटरनल मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, किसी व्यक्ति में कोरोना का लक्षण दिखने की शुरुआत से, एक से दो दिन पहले और तीन दिन बाद तक वायरस का प्रसार करने की क्षमता सबसे अधिक थी. हालांकि, इसके बाद भी वह व्यक्ति वायरस का प्रसार कर सकता है.
स्विट्जरलैंड स्थित बर्न विश्वविद्यालय में आण्विक महामारी विशेषज्ञ एमा होडक्रॉफ्ट ने डीडब्ल्यू को बताया, "क्वॉरन्टीन की अवधि इस आधार पर तय होनी चाहिए कि हमारे शरीर में कितने समय तक वायरस जीवित रहता है. दूसरे शब्दों में, संक्रमित व्यक्ति संभावित तौर पर कितने दिनों तक किसी दूसरे व्यक्ति को संक्रमित कर सकता है.
वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया विश्वविद्यालय में महामारी विशेषज्ञ जोई हाइड ने डीडब्ल्यू को बताया, "लक्षण दिखने के शुरुआती कुछ दिनों में संक्रमित लोग तेजी से दूसरे लोगों के बीच वायरस का प्रसार कर सकते हैं. हालांकि, बाद में यह क्षमता कम हो जाती है. इसके बावजूद, आइसोलेशन की अवधि तभी कम करनी चाहिए, जब संक्रमित व्यक्ति की जांच रिपोर्ट नेगेटिव हो."
हाइड ने कहा, "नेगेटिव रिपोर्ट की जरूरत को खत्म करना सही फैसला नहीं है. ऐसा करने पर वायरस का प्रसार तेज हो सकता है. साथ ही बिना लक्षण वाले व्यक्ति के संपर्क में आने से दूसरे लोग भी संक्रमित और बीमार हो सकते हैं. उनकी जान खतरे में पड़ सकती है."
राजनीतिक फैसला
वैज्ञानिकों को आशंका है कि बिना लक्षण वाले और तेजी से ठीक होने वाले रोगियों के लिए आइसोलेशन के समय को आधा करने का फैसला सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं से जुड़ा हुआ नहीं है. जर्मनी की राजधानी बर्लिन स्थित शारिटे अस्पताल में सार्वजनिक स्वास्थ्य और महामारी विज्ञान के प्रोफेसर टोबियास कुर्थ ने कहा, "यह निश्चित तौर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य दिशानिर्देश नहीं है. यह पक्का करने के लिए कि हम कई चीजों को संभाल सकते हैं, इसलिए यह आर्थिक दिशानिर्देश है. कुछ क्षेत्रों में नियमों में थोड़ी छूट दी जा सकती है, लेकिन इसे सामान्य नियम के तौर पर लागू नहीं किया जाना चाहिए."
हाइड भी कुर्थ की चिंताओं का समर्थन करती हैं. वह कहती हैं, "यह फैसला वैज्ञानिक आधार पर नहीं, बल्कि राजनीतिक आधार पर लिया गया है. यह पूरी तरह राजनीतिक फैसला है." वहीं, एमा होडक्रॉफ्ट का कहना है कि कार्यस्थल पर कर्मचारियों की कमी को दूर करने के लिए कोरोना के प्रसार को रोकना होगा, ताकि कम के कम लोग इसकी चपेट में आएं. उन्होंने कहा, "जो लोग कोरोना वायरस का प्रसार कर सकते हैं उन्हें काम करने की अनुमति देने से ज्यादा लोग संक्रमित हो सकते हैं."
अस्पतालों पर दबाव
अगर बिना लक्षण वाले कोरोना पॉजिटिव लोग लंबे समय तक आइसोलेशन में नहीं रहते हैं और उनकी जांच नहीं होने की वजह से तेजी से संक्रमण फैलता है, तो अस्पताल इस स्थिति को कैसे संभालेंगे? कुर्थ चेतावनी भरे लहजे में कहते हैं कि ब्रिटेन, फ्रांस, अमेरिका और जर्मनी जैसे देशों में अगर ओमिक्रॉन तेजी से फैलता है तो स्वास्थ्य से जुड़ी सभी व्यवस्थाएं ध्वस्त हो जाएंगी. हाइड का कहना है ,"यह वाकई डरावना है कि एक ओर ओमिक्रॉन वैरिएंट फैल रहा है और दूसरी ओर पाबंदियों में छूट दी जा रही है."
सीडीसी का यह फैसला तब आया है जब कई देश टीकाकरण की स्थिति के मुताबिक, आइसोलेशन के नियम बदलने पर चर्चा कर रहे हैं. जर्मनी में बिना लक्षण वाले उन लोगों के लिए आइसोलेशन के नियमों में बदलाव पर विचार किया जा रहा है जो किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए हैं. हालांकि, अमेरिका के विपरीत यहां आइसोलेशन में रहने वाले लोगों की जांच होगी और निगेटिव रिपोर्ट आने के बाद ही वे सामान्य रूप से जीवन जी सकते हैं. (dw.com)
यूरोपीय केंद्रीय बैंक की एक गुप्त प्रयोगशाला है, जिसका काम नकली यूरो मुद्रा नोटों को जब्त करना है. यहां काम करने वाले विशेषज्ञ जालसाजों से एक कदम हमेशा आगे रहते हैं.
यूरोपीय केंद्रीय बैंक में बेहतरीन यूरो मुद्राओं में बने नकली नोटों का पता लगाने के लिए एक गुप्त प्रयोगशाला बनाई गई है. इस केंद्र में विशेषज्ञों की टीम है. यूरोपीय केंद्रीय बैंक के विशाल फ्रैंकफर्ट मुख्यालय की 23वीं मंजिल पर सुरक्षा द्वार के दूसरी तरफ, जालसाजी-विरोधी विशेषज्ञ यूरोजोन के कुछ बेहतरीन नकली नोटों की जांच कर रहे हैं.
इस लैब में 3डी माइक्रोस्कोप, अति-संवेदनशील माप और विशेष उपकरण हैं जो वास्तविक यूरो बैंकनोटों में एम्बेडेड लगभग एक दर्जन सुरक्षा विशेषताओं के परीक्षण में प्रभावी हैं, और ये नकली नोटों की पहचान करते हैं. हालांकि लैब में गिनती के विशेषज्ञ हैं, लेकिन उनका काम जालसाजों से एक कदम आगे रहना और यूरोपीय केंद्रीय बैंक को नई जालसाजी तकनीकों से अवगत कराना है.
यूरोपीय संघ के मुद्रा विकास प्रभाग के प्रमुख जीन-मिशेल ग्रीमेल का कहना है कि 20 साल पहले शुरू की गई यूरो मुद्रा की सुरक्षा का स्तर इतना ऊंचा है कि पूरे यूरोजोन में नागरिक के पास नकली नोट होने की संभावना बेहद कम है. उनके मुताबिक सालाना आधार पर यह संभावना और कम होती जा रही है.
नोटों के लिए यूरोपीय सेंट्रल बैंक जिम्मेदार
यूरोपीय सेंट्रल बैंक मुद्रा नोट जारी करने के लिए अधिकृत है, जबकि 19 यूरोजोन सदस्य देशों के केंद्रीय बैंक अपने खुद के सिक्के जारी करते हैं. यूरोपीय बैंक के मुताबिक 2020 में यूरोजोन में नकली नोटों का स्तर अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया. पिछले साल यूरोजोन में 4,60,000 नकली यूरो नोट जब्त किए गए. गौरतलब है कि यूरोजोन में असली नोट 27 अरब हैं और नकली नोटों की संख्या बहुत कम है.
ग्रीमेल के मुताबिक यूरो नोटों की सुरक्षा विशेषताओं ने यूरोजोन नागरिकों के बीच एकल मुद्रा में "मजबूत विश्वास" बढ़ा दिया है. हाल के एक सर्वेक्षण के अनुसार यूरोजोन के 80 प्रतिशत निवासी यूरो मुद्रा में विश्वास करते हैं.
लोहे की अलमारी में नकली नोट
इस लैब में सबसे बड़ा खजाना लोहे की अलमारी में है. जिसमें दो लोगों को दरवाजा खोलने की आवश्यकता होती है, जबकि दोनों ही इस अलमारी के ताले का एक हिस्सा ही जानते हैं. तिजोरी में पांच यूरो से लेकर पांच सौ यूरो तक के 1,000 नकली नोट हैं, जिनका पिछले दो दशकों में निरीक्षण और अध्ययन किया गया है.
नकली नोटों को चलन से रोकने के लिए हर यूरोजोन देश में नकली नोट पहचान केंद्र है. फ्रैंकफर्ट में यूरोपीय सेंट्रल बैंक में स्थित केंद्र ऐसे विशेषज्ञों से बना है जो नोटों का बहुत बारीकी से अध्ययन करते हैं.
एए/सीके (एएफपी)
पूर्व चांसलर अंगेला मैर्केल के टाइम टेबल के अनुसार ही जर्मनी अपने तीन परमाणु संयंत्रों को बंद करने जा रहा है. लेकिन इस समय जर्मनी समेत पूरा यूरोप अपने सबसे बुरे ऊर्जा संकट से गुजर रहा है.
बंद होने वाले संयंत्र ब्रोकडॉर्फ, ग्रोंडे और गुंडरेमिंगन में हैं. बिजली के दाम पहले से ही बढ़ रहे हैं. ऊपर से यूरोप और मुख्य गैस सप्लायर रूस के बीच तनाव भी इतना बढ़ा हुआ है जितना पहले कभी नहीं था.
अब इन संयंत्रों को बंद करने से जर्मनी की बाकी बची परमाणु क्षमता आधी हो जाएगी और ऊर्जा का उत्पादन करीब चार गीगावाट गिर जाएगा. यह 1,000 हवा की टरबाइनों द्वारा बनाई गई ऊर्जा के बराबर है.
बिजली के बढ़ते दाम
2011 में जापान के फुकुशिमा हादसे के बाद होने वाले विरोध प्रदर्शनों की वजह से मैर्केल ने परमाणु ऊर्जा को अलविदा कहने की प्रक्रिया की शुरुआत कर दी थी. अब जर्मनी की योजना 2022 के अंत तक नाभिकीय ऊर्जा को पूरी तरह से बंद कर देने की है.
समयसीमा के अंत तक नेकरवेसथाइम, एस्सेनबाक और एम्सलैंड में बचे आखिरी संयंत्रों को भी बंद कर दिया जाएगा. लेकिन पूरे यूरोप में बिजली के दाम आसमान छू रहे हैं और ऐसे में इस योजना का पूरा होना कठिनाइयों को बढ़ा देगा.
यूरोप में साल की शुरुआत में गैस के जो दाम थे अब वो 10 गुना ज्यादा बढ़ गए हैं. बिजली के दाम भी बढ़ रहे हैं. डार्मस्टाट एप्लाइड साइंसेज विश्वविद्यालय में ऊर्जा नीति के प्रोफेसर सेबास्टियन हेरोल्ड कहते हैं कि जर्मनी में परमाणु ऊर्जा के बंद हो जाने से संभव है कि दाम और बढ़ जाएंगे.
उन्होंने यह कहा, "लंबी अवधि में उम्मीद यह है कि अक्षय ऊर्जा में बढ़ोतरी से एक संतुलन आ जाएगा, लेकिन ऐसा अल्पावधि में नहीं होगा." जब तक जर्मनी अक्षय ऊर्जा को वाकई बढ़ा नहीं लेता तब तक वो परमाणु बंद होने से पैदा हुई कमी को भरने के लिए जीवाश्म ईंधनों पर निर्भर रहेगा.
अक्षय ऊर्जा की जरूरत
हेरोल्ड ने बताया, "इस से जर्मनी कम से कम अल्पावधि में प्राकृतिक गैस पर और ज्यादा निर्भर हो जाएगा और इस वजह से रूस पर भी उसकी निर्भरता बढ़ जाएगी." अक्षय ऊर्जा तक की यात्रा में भी अनुमान से ज्यादा समय लग सकता है क्योंकि हाल के सालों में ऊर्जा की परियोजनाओं के खिलाफ बड़ा विरोध हुआ है.
आशंका है कि 1997 के बाद पहली बार अक्षय ऊर्जा से बानी बिजली का अनुपात 2021 में गिर कर 42 प्रतिशत पर पहुंच जाएगा. 2020 में यह 45.3 प्रतिशत था. परमाणु संयंत्रों के बंद होने से जर्मनी के महत्वाकांक्षी जलवायु लक्ष्यों पर भी असर पड़ेगा.
फ्रांस समेत यूरोपीय संघ के दूसरे देश अभी भी परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल पर जोर दे रहे हैं और उसे निवेश के योग्य सस्टेनेबल ऊर्जा स्रोतों की संघ की सूची में शामिल किए जाने के लिए अभियान चला रहे हैं.
जर्मनी में परमाणु के प्रति लोगों का मत नर्म हो रहा है. हाल ही में वेल्ट ऐम सोनटाग अखबार के लिए यूगव द्वारा कराए गए एक सर्वे में सामने आया कि करीब 50 प्रतिशत जर्मन लोगों का कहना है कि वो बिजली के बढ़ते दामों की वजह से परमाणु ऊर्जा को बंद करने की योजना को पलटने के पक्ष में हैं. लेकिन जर्मनी की नई सरकार भी इसी योजना पर आगे बढ़ रही है.
सीके/एए (एएफपी)
मौजूदा कोविड महामारी ने वैश्विक आर्थिक बहाली को पीछे धकेल दिया है. लेकिन नये साल में निवेशकों की उम्मीदों और इरादों को झटका दे सकने वाले, कोरोना के अलावा और भी खतरे हैं.
डॉयचे वैले पर आशुतोष पाण्डेय की रिपोर्ट-
महामारी से उपजे हालात के बाद 2021 में वैश्विक अर्थव्यवस्था ने मजबूती से वापसी की थी. साल के दूसरे हिस्से में उसकी तेजी कुछ कम हुई थी और उसकी वजह थी महामारी के नए मामले, सप्लाई चेन के अवरोध, श्रम की किल्लत और कोविड-19 टीकों की सुस्त आमद, खासकर कम आय वाले विकासशील देशों में.
धीमी गति की इस बहाली ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और 38 सदस्यों वाली आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के अर्थशास्त्रियों को वैश्विक वृद्धि की अपनी भविष्यवाणियों को क्रमशः अक्टूबर और दिसंबर में एक साल के लिए हल्की कटौती करने के लिए बाध्य किया था.
2022 के लिए उन्होंने अपना नजरिया बनाए रखा लेकिन आगाह भी किया कि कोविड वैरिएंट वृद्धि को बाधित कर सकते हैं. उन्होंने वैश्विक आबादी के एक बड़े हिस्से के तेजी से टीकाकरण करने की जरूरत पर जोर दिया था. महामारी अभी भी वैश्विक वृद्धि में एक बड़े खतरे की तरह मौजदू है लेकिन 2022 में निवेशकों की सांसें अटकाने वाला ये अकेला खतरा नहीं है.
टीकानिरोधी कोविड वैरिएंट
नवंबर में वित्तीय बाजार में एक डर फैला था, एक नये कोरानावायरस वैरिएंट ओमिक्रॉन का, जिसका पता साउथ अफ्रीका में चला था. तेजी से फैलने वाले इस वैरिएंट के खौफ से वैश्विक वित्तीय और उत्पाद बाजार हिल गए.
अगले सप्ताह तक वैश्विक बाजार में उतार-चढ़ाव चलता रहा. निवेशक नये वैरिएंट के आर्थिक निहितार्थों को समझने की कोशिश में जूझते रहे. आर्थिक बहाली को अवरुद्ध करने वाले वैरिएंट पर काबू रखने के लिए सरकारें कड़े प्रतिबंध लगाती रहीं.
थोड़े बहुत शुरुआती साक्ष्यों और विशेषज्ञों की टिप्पणियों में ओमिक्रॉन की आमद की आशंका व्यक्त की गई थी. उसे डेल्टा वैरिएंट के मुकाबले ज्यादा संक्रामक बताया गया और ये भी कि वह उतना घातक नहीं होगा और मौजूदा टीकों या उपचारों से मुहैया रोग प्रतिरोधक क्षमता को नहीं तोड़ पाएगा. वैज्ञानिक अभी भी डाटा का विश्लेषण कर रहे हैं. इस बीच जेपी मॉर्गन से जुड़े रणनीतिकारों ने कहा है कि ओमिक्रॉन अगर कम मारक पाया गया तब वो महामारी के अंत को ही तेज करने की ओर बढ़ेगा. यानी वो महामारी को स्थानीय बीमारी के रूप में तब्दील कर देगा.
ये संभव है कि ओमिक्रॉन की वजह से आर्थिक बहाली पटरी से नहीं उतरेगी लेकिन भविष्य का कोई वैरिएंट ऐसा खतरा पैदा कर सकता है. जानकार आगाह करते रहे हैं कि अगर महामारी फैली है तो संभव है कि टीकानिरोधी कोविड वैरिएंट का उभार देखने को मिलेगा जो लॉकडाउन जैसे उपाय करने के लिए मजबूर कर सकता है.
आईएमएफ की चीफ इकोनोमिस्ट गीता गोपीनाथ ने अक्टूबर में कहा था कि "अगर कोविड-19 का दीर्घकालीन असर रहा – मध्यम अवधि के दौरान- तो वो वैश्विक जीडीपी में अगले पांच साल के दौरान मौजूदा अनुमान के सापेक्ष 5.3 खरब डॉलर कमी आ सकती है.”
गोपीनाथ कहती हैं, "उच्च नीतिगत प्राथमिकता ये होनी चाहिए कि हर देश में इस साल 40 फीसदी, और मध्य 2022 तक 70 प्रतिशत आबादी का पूर्ण टीकाकरण सुनिश्चित कर लिया जाए. अभी तक कम आय वाले विकासशील देशों में पांच फीसदी से भी कम आबादी का पूर्ण टीकाकरण हो पाया है.”
सप्लाई चेन के अवरोध
इस साल वैश्विक सुधारों की रुकावट में बड़ी भूमिका निभाई है सप्लाई चेन के अवरोधों ने. शिपिंग कंटेनरों की कमी के साथ साथ शिपिंग से जुड़े अवरोधों और महामारी से जुड़े प्रतिबंधों को हल्का करने के बाद मांग में तीखी वापसी ने उत्पादकों में घटकों और कच्चे मालों के लिए भगदड़ सी मचा दी.
ऑटो सेक्टर पर भी गाज गिरी. हाल के दिनों में जर्मनी समेत, यूरो जोन में उत्पादन लड़खड़ा गया. कार निर्माताओं ने एक माध्यमिक उपकरण के रूप में उत्पादन में कटौती की है खासकर सेमीकंडक्टरों की आपूर्ति में कमी बनी हुई है.
इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि सप्लाई की कमी, शिपिंग लागत में गिरावट और चिप निर्यातों में उभार से सुधार आ रहा है. लेकिन इसी के साथ जानकारों का अंदाजा है कि सप्लाई अवरोध अगले साल भी वृद्धि पर भारी गुजरेंगे.
परिवहन और लॉजिस्टिक्स की जर्मन कंपनी डीएसवी एयर एंड सी में प्रबंध निदेशक फ्रांक सोबोट्का ने नजदीकी देश में व्यापार को स्थानांतरित करने के चलन का हवाला देते हुए डीडब्ल्यू को बताया, "हमें पता है कि हालात 2022 में नहीं सुधर पाएंगे और तब तक तो बिल्कुल नहीं जब तक कि 2023 में नई प्रासंगिक महासागरीय परिवहन क्षमताएं विकसित नहीं कर ली जातीं या सप्लाई चेन को नीयरशोरिंग यानी नजदीकी देशों से व्यापार के लिए अनुकूलित नहीं कर लिया जाता.”
बढ़ती मुद्रास्फीति
कच्चे माल और वस्तुओं की आमद में कमी के साथ साथ ऊर्जा की ऊंची लागतों ने यूरो जोन और अमेरिका में मुद्रास्फीति को कई सालों की ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया है. वैश्विक निवेशक इससे विचलित हैं, उन्हें डर है कि ऊंची कीमतों को काबू में करने के लिए केंद्रीय बैंक, निर्धारित समय से पहले ही ब्याज की दरों को बढ़ाने को विवश हो सकते हैं.
यूरोपीय सेंट्रल बैंक का मानना है कि सप्लाई की किल्लत, ऊंची ऊर्जा दरों और बेस प्रभावों जैसे अस्थायी कारकों की वजह से कीमतें बढ़ी हैं. उसे उम्मीद है कि वैश्विक स्तर पर मांग-आपूर्ति असंतुलनों के प्रभाव एकबारगी कम होना शुरू होंगे तो मुद्रास्फीति भी ठंडी पड़ जाएगी.
जैसा कि सोचा जा रहा था उससे उलट, सप्लाई चेन के अवरोध देर तक टिके रहे हैं. ऐसे में मुद्रास्फीति 2022 में भी अधिकांश समय तक कायम ही रहेगी और यूरोपीय सेंट्रल बैंक के अधिकारियों को हैरान परेशान करती रहेगी.
अमेरिका में, मुद्रास्फीति से जुड़ी चिंताएं और बड़ी होने की संभावना है. इसकी गिरावट को रोकने का काम करती है आर्थिक बहाली, टैक्स की दरों में कटौती जैसे बड़े पैमाने पर राजस्व प्रोत्साहन और श्रम और सप्लाई की कमी. अमेरिका के संघीय रिजर्व बैंक का कहना है कि वो अपना बॉन्ड-खरीद की प्रोत्साहन योजना का आकार और तेजी से कम करेगा. उसने 2022 में ब्याज दरें बढ़ाने का संकेत भी दिया है. संघीय दर में बढ़ोत्तरी से कुछ उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के लिए संकट खड़ा हो सकता है, जिनमें साउथ अफ्रीका, अर्जेंटीना और तुर्की भी शामिल हैं. ये स्थिति निवेशकों का भरोसा तोड़ सकती है.
चीन की कड़ी कार्रवाई
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश चीन में 2022 के दौरान मंदी बेशक निवेशकों की चिंताओं में इजाफा करेगी. एशियाई आर्थिक पावरहाउस कहलाने वाले चीन ने 2020 के दरमियान, पूरी दुनिया में अपने इलेक्ट्रॉनिक और चिकित्सा सामान की भारी मांग के सहारे, महामारी से उपजी मंदी से दुनिया को उबारने में मदद की थी. इस साल चीनी अर्थव्यवस्था के कमोबेश आठ फीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद है. इस तरह भारत के बाद सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था चीन की होगी.
लेकिन अपनी दिग्गज टेक कंपनियों पर कड़ी कार्रवाई के जरिए चीन ने महामारी पश्चात की बहाली में गतिरोध भी खड़ा किया है. इन कंपनियों में अलीबाबा और टेनसेंट के अलावा कर्ज में फंसी रिएल इस्टेट कंपनियां जैसे एवरग्रांड और काइसा भी हैं और निजी शिक्षा उद्योग भी शामिल हैं. चीन के उच्च अधिकारियों ने यह कहकर आक्रोश को शांत करने की कोशिश की है कि अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाना अगले साल की उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है. इस वजह से माना जा रहा है कि 2022 की शुरुआत में ही चीन, वित्तीय प्रोत्साहन ला सकता है.
जीरो-कोविड के अपने रवैये को न छोड़ने की चीन की जिद भी वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा खतरा बनी रहेगी. चीन सरकार के इस रवैये की वजह से देश एक साल से भी अधिक समय तक अलग-थलग रहा है और कोविड का एक भी मामला आ जाने पर बहुत ही कड़े और भीषण प्रतिबंध लगाने पर आमादा रहा है.
भू-राजनीतिक तनाव
उत्तरी गोलार्ध में तापमान में भले ही गिरावट दर्ज की जा रही हो लेकिन वहां स्थित देशों के बीच तनाव बढ़ रहा है. अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगियों के साथ रूस के रिश्ते तल्ख होते जा रहे हैं. अमेरिका ने रूस को यूक्रेन पर हमला करने को लेकर आगाह कर दिया है जबकि यूक्रेन सीमा पर रूसी फौज का जमावड़ा बढ़ता ही जा रहा है.
अमेरिका और यूरोपीय देश, रूस के खिलाफ और आर्थिक प्रतिबंधों के बारे में विचार कर रहे हैं. अगर रूस ने अपने पड़ोसी यूक्रेन पर हमला किया तो ये देश विवादास्पद नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन को भी बंद करने जैसा कदम उठा सकते हैं.
ओआंडा ट्रेडिंग ग्रुप में वरिष्ठ बाजार विश्लेषक एडवर्ड मोया ने डीडब्ल्यू को बताया, "अमेरिका-रूस तनाव एक बड़ा खतरा है जिसके चलते नाटो के पूर्वी यूरोप के सहयोगी देश युद्ध के मुहाने पर आ सकते हैं.” उन्होंने कहा कि "अगर अमेरिका और यूरोप नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन को रोकते हैं तो इससे वैश्विक ऊर्जा संकट खड़ा हो जाएगा और तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच जाएंगी. बढ़ी हुई ऊर्जा दरें ही वह आखिरी धक्का हो सकती हैं जिससे दुनिया भर के बैंक कड़ी मुद्रा नीति को और तेजी से लागू करने को मजबूर होंगे.”
अमेरिका-चीन संबंध ताइवान को लेकर भी तनावपूर्ण रहे हैं. अमेरिका ने चीन को चेताया है कि वह ताइवान में यथास्थिति को बदलने का एकतरफा निर्णय न करे.अमेरिका ने चीन को इस घोषणा से और भड़का दिया है कि मानवाधिकारों पर चीन के "अत्याचारों” के खिलाफ विरोध जताते हुए अमेरिकी अधिकारी बीजिंग में फरवरी में हो रहे शीतकालीन ओलंपिक खेलों का बहिष्कार करेंगे. चीन ने भी जवाब देते हुए कहा है कि अमेरिका को अपने इस फैसले की "कीमत चुकानी” होगी. (dw.com)
पोलैंड ने लगभग हर तरह के एबॉर्शन पर रोक लगा दी तो अमेरिका में इसके कानून बेहद सख्त होने जा रहे हैं. वहीं थाईलैंड और बेनिन जैसे देशों में कई कानूनों में ढील भी दी गई है.
डॉयचे वैले पर इनेस आइजेले की रिपोर्ट-
बीते दशकों में दुनिया भर में गर्भपात की सुविधाओं तक महिलाओं की पहुंच बढ़ी है. सेंटर फॉर रिप्रोडक्टिव राइट्स की यूरोप निदेशक लेया हॉक्टर बताती हैं कि कुछ अपवादों को छोड़कर पूरा वैश्विक ट्रेंड इस मामले में आए उदारीकरण की ओर इशारा करता है. विश्व के कई देशों में 2021 में भी एबॉर्शन जैसे विवादास्पद मुद्दे पर बड़ी तरक्की हुई तो कहीं कहीं झटके भी लगे.
मेक्सिको
सितंबर में मेक्सिको के सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात पर चले आ रहे पूर्ण प्रतिबंध को असंवैधानिक करार दिया. लैटिन अमेरिका के दूसरे सबसे ज्यादा आबादी वाले देश मेक्सिको में यह महिला अधिकार संगठनों की बड़ी जीत है. कोर्ट ने महिलाओं के अपने शरीर से जुड़े फैसले को अजन्मे भ्रूण की जान से ज्यादा अहमियत दी.
सर्वोच्च अदालत ने कहा कि गर्भावस्था के शुरुआती चरणों में होने वाले एबॉर्शन, बलात्कार के कारण ठहरे गर्भ को गिराने और बच्चे की जान या उसके कारण मां की जान को खतरा होने की स्थिति में कराए जाने वाले एबॉर्शन को अपराध के दायरे से निकाला जाना चाहिए. नतीजतन देश के 31 राज्यों में से ज्यादातर में गर्भपात कानूनों में ढील लाई गई. लैटिन अमेरिका के कुछ ही और देशों जैसे अर्जेंटीना, उरूग्वे, क्यूबा, गियाना और फ्रेंच गुयाना में ही एबॉर्शन को वैधता मिली है.
एल सल्वाडोर
सेंट्रल अमेरिकी देश एल सल्वाडोर में इस पर प्रतिबंध है. कानून तोड़ने वालों को बहुत लंबे लंबे समय की जेल की सजा मिलती है. लेकिन मानुएला नामकी एक महिला के मामले ने बदलाव के रास्ते दिखाए हैं. 2008 में इस महिला का गर्भपात हो गया था, जिसके लिए उसे जेल में डाल दिया गया. प्रशासन ने उस पर गर्भपात करवाने का आरोप जड़ा था. 30 साल की लंबी जेल काटने के दौरान ही इस महिला की कैंसर के कारण मौत हो गई. इंटर अमेरिकल कोर्ट ऑफ जस्टिस ने इस साल मानुएला के मामले पर कहा कि उसकी मौत जेल में अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं ना मिलने के कारण हुई और यह उसके जीवन, स्वास्थ्य और न्यायिक सुरक्षा के मूलभूत अधिकारों का हनन है.
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सरकार को उस महिला के परिवारजनों को हर्जाना भरना चाहिए और इस तरह की नीतियों में बदलाव लाना चाहिए. मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते हैं कि इस आदेश से एल सल्वाडोर और पड़ोसी देशों की महिलाओं के लिए उम्मीद जगी है जहां बेहद सख्त एबॉर्शन कानून हैं. इस मामले की विशेषज्ञ लेया हॉक्टर कहती हैं कि बैन और सख्त कानूनों के कारण गर्भपात की दर कम नहीं होती बल्कि उससे लोगों की जान पर खतरा बढ़ जाता है क्योंकि वे गलत रास्तों का सहारा लेते हैं.
अमेरिका
अमेरिका में अलग अलग राज्यों का इस पर अलग अलग रुख है. कैलिफोर्निया में थोड़ा लिबरल तो टेक्सस में ज्यादा कड़ा. टेक्सस में ही सितंबर में भ्रूण में दिल की धड़कन आने के बाद होने वाले हर गर्भपात को अवैध करार दिया गया. इस कड़े कानून में इसकी भी गुंजाइश नहीं रखी गई कि अगर किसी महिला का गर्भ रेप के कारण या किसी जानने वाले के व्याभिचार के कारण ठहरा हो तो उसे अपवाद माना जाए.
टेक्सस के अलावा मिसीसिपी और कुछ अन्य अमेरिकी राज्यों के ऐसे कानून अब भी सुप्रीम कोर्ट पलट सकती है. 1973 की ऐतिहासिक रूलिंग रो वर्सेज वेड में कोर्ट ने गर्भपात पर गैरजरूरी रोक को असंवैधानिक करार दिया था. उसके अनुसार किसी भ्रूण को तब तक गिराया जा सकता है जब तक वह दुनिया में अपने दम पर जीवित रहने लायक नहीं हो गया हो. यही सीमा करीब 24 हफ्ते मानी जाती है. सुप्रीम कोर्ट में इस समय कंजर्वेटिव जजों की तादाद ज्यादा होने के कारण 2022 के मध्य में आने वाले उसके फैसले से राज्य अदालतों का फैसला बदले जाने की कम ही आशा है.
पोलैंड
पोलैंड के एबॉर्शन कानून पूरे यूरोप में सबसे सख्त हैं. 2021 की शुरुआत से लागू हुए नए कानून में संवैधानिक कोर्ट ने कहा था कि भ्रूण में गड़बड़ी के कारण गर्भ गिराने पर प्रतिबंध होना चाहिए. इसके साथ ही देश में किसी भी हालत में गर्भपात की अनुमति नहीं रह गई है. इसके कड़े विरोध के बावजूद कानून बदला नहीं गया बल्कि इसे और भी सख्त होते जाने का अंदेशा है.
जर्मनी
जर्मन क्रिमिनल कोड के अनुसार गर्भपात अपराध है. लेकिन पहले 12 हफ्तों के दौरान डॉक्टरी सलाह पर ऐसा करवाने वाली महिलाओं को जुर्माना नहीं भरना पड़ता. इसका कारण महिला को स्वास्थ्य से जुड़े खतरे हों या गर्भ बलात्कार के कारण ठहरा हो, तो महिला को इसके लिए अपराधी नहीं माना जाता. देश में इसी साल बनी नई सरकार जर्कीमनी में इस विवादित कानून को बदले जाने की बात कह चुकी है. फिलहाल किसी भी तरीके से गर्भपात का प्रचार करने पर भी रोक है और अगर कोई डॉक्टर ऑनलाइन इसकी सलाह देता पकड़ा जाता है तो उसे भी कानून पचड़े झेलने पड़ते हैं. यानि तकनीकी रूप से देखें, तो जर्मनी में महिलाओं की गर्भपात तक पहुंच तो है लेकिन फिर भी इसकी राह में कई रोड़े हैं.
थाईलैंड और बेनिन
2021 की शुरुआत में थाईलैंड की संसद में 12हफ्ते तक गर्भपात करवाने को मान्यता मिल गई. पहले ऐसा केवल कुछ अपवाद मामलों में ही किया जा सकता था. बाकी सबको अपराध के दायरे में रखा जाता था और पकड़े जाने पर जेल की सजा होती थी. अब भी जेल और जुर्माना देने का प्रावधान है अगर एबॉर्शन 12 हफ्ते के बाद करवाया गया हो.
बेनिन में कैथोलिक चर्च के कड़े विरोध के बावजूद इस साल वहां की संसद ने अक्टूबर में एबॉर्शन की सुवुधा देने वाले एक नए कानून को मंजूरी दे दी. अभी संवैधानिक अदालत में इसे स्वीकृति मिलना बाकी है लेकिन ऐसा होना तय माना जा रहा है. इस पश्चिम अफ्रीकी देश में अब गर्भपात कानूनी दायरे में आएगा अगर गर्भ रखने के कारण मां या होने वाले बच्चे के जीवन में "पैसों, पढ़ाई लिखाई, पेशे या नैतिक रूप से गंभीर संकट" आ सकता हो. अफ्रीका के ही कई पड़ोसी देशों में गर्भपात केवल कुछ अपवाद जैसे मामलों में किया जा सकता है और उसे सामाजिक मान्यता नहीं मिली है. बेनिन के स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि देश में दर्ज कुल माताओं की मृत्यु में से 20 फीसदी असुरक्षित तरीके से हुए गर्भपात के कारण होती हैं.
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तकनीक में एकाएक आई तेजी ने महामारी के दौरान जीवन को ज्यादा आसान और ज्यादा सुरक्षित बनाया है. लेकिन नियामक संस्थाओं की ओर से ये पूछा जाने लगा है कि ऐसा आखिर किस कीमत पर?
डॉयचे वैले पर क्रिस्टी प्लैडसन की रिपोर्ट-
नया साल आ चुका है और महामारी के चलते नये साल की पूर्व संध्या के समारोहों की तैयारियां वीडियो कॉल और डिजिटल हेल्थ पास यानी वैक्सीन सर्टिफिकेट की मदद से की गईं. 2021 में तो यही कायदा बन गया था.
यूरोप में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भूमिका को आकार देने वाले अभियान, यूरोपीय एआई फंड के निदेशक और टेक नीति विशेषज्ञ फ्रेडेरिके कलथ्युनर ने डीडब्ल्यू को बताया, "इनमें से कई प्रौद्योगिकियां शुरुआत में तब अमल में लाई गई थीं जब हम सोचते थे कि वो एक लघु आपातकाल था. मैं मानता हूं कि 2022 वो साल होगा जिसमें हमें ये अहसास हो जाएगा कि ये सब अभी जाने वाला नहीं है.”
व्यावहारिक तौर पर इसका अर्थ यह है कि जब खुदरा, सेवा और उद्योग सेक्टर- लॉकडाउन और उलझी हुई सप्लाई चेनों से दबे हुए थे तो उस दौरान बड़ी टेक कंपनियां लाभ कमा रही थीं और फलफूल रही थीं. टेक हार्डवेयर से लेकर डिजिटल एडवर्टाइजिंग और स्वचालित कारों तक- महामारी के दौरान अल्फाबेट, एप्पल, अमेजन, मेटा और माइक्रोसॉफ्ट जैसे सिलिकॉन वैली के दिग्गज एक दूसरे के इलाकों में दाखिल होते रहे. ये कहना है अलेक्जेंडर फैन्टा का- वो डिजिटल स्फीयर को कवर करने वाली जर्मन समाचार संस्था, नेत्सपोलिटिक में ईयू टेक नीति के पत्रकार हैं.
उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "इन कंपनियों की ताकत ये है कि वे इतनी ज्यादा बहुआयामी हैं. वे विभिन्न बाजारों को परे खिसका देती हैं और एक बाजार से हासिल ताकत के सहारे दूसरे बाजार पर अपना सिक्का जमाती हैं.”
आलोचना के घेरे में फेसबुक
सीधी और क्षैतिज वृद्धि की वजह से ये कंपनियां बाजार नियामकों के लिए एक ज्यादा बड़ा मुद्दा बन गई हैं. आज इस बात पर एक नजर रखना और कठिन हो गया है कि एक कंपनी क्या क्या करती है. संपत्ति में निरंतर वृद्धि और सीमित संख्या के इन खिलाड़ियों का प्रभाव, लोगों और ऑनलाइन बिजनेसों के लिए कई समस्याएं खड़ी करता है.
इस वृद्धि ने इन कंपनियों को एक दूसरे के साथ ज्यादा प्रत्यक्ष प्रतिस्पर्धा में भी ला खड़ा किया है. ये बात अप्रैल में ही स्पष्ट हो गई थी जब फेसबुक कहलाने वाली कंपनी, एपल के उस सॉफ्टवेयर अपडेट पर भड़क उठी जिसमें आईफोन यूजर्स को एड ट्रैकिंग का ऑप्श्न चुनने की जरूरत थी जबकि ये सोशल मीडिया महारथी फेसबुक के बिजनेस मॉडल का एक स्तंभ है. हाल में मेटा नाम से आई फेसबुक कंपनी अपनी तीसरी तिमाही में राजस्व लक्ष्य में थोड़ा पीछे रह गई तो इसके लिए कंपनी के सीईओ मार्क जकरबर्ग ने एप्पल को जिम्मेदार ठहराया.
वैसे मेटा पूरे साल ध्यान खींचने की जुगत में ही लगी रही. ये इस बात का सबसे पुख्ता उदाहरण है कि अपने समय की पसंदीदा मानी जाने वाली टेक कंपनियों के खिलाफ हवा का रुख कैसे बदला. कंपनी के बिजनेस क्रियाकलापों के प्रति जनता की बढ़ते असंतोष ने आखिरी चिंगारी को सुलगा दिया जब एक व्हिसलब्लोअर ने कंपनी के विवादास्पद बिजनेस तौरतरीकों का पर्दाफाश कर दिया.
लेकिन रीब्रांडिंग से यानी नये नाम के साथ, अपना ब्रांड बचाने की रणनीति साल के आखिर में जनता का ध्यान भटकाने में सफल रही है. नवंबर में जकरबर्ग ने मेटावर्स का खाका पेश किया, जिसे कंपनी एक आकर्षक और लुभावना ऑनलाइन अनुभव बताते हुए इंटरनेट के अगले उद्भव के तौर पर सामने ला रही है.
लेकिन हर कोई इससे प्रभावित नहीं है. कलथ्युनर कहते हैं कि "कोई मेटावर्स नहीं है. ये मौजूदा समस्याओं के बारे में बात करने का वाकई एक अच्छा तरीका भर है. हम घटनाओं में इसे पहले से देख ही रहे हैं, लोग इस शब्दावली का इस्तेमाल कर ही रहे हैं भले ही इसका मतलब कोई नहीं जानता. अगर मैं फेसबुक होता, मैं भी नाम बदल देता. वो ब्रांड वाकई अच्छा नहीं था.”
मुश्किलों का बखूबी सामना करते नियामक
फिर भी, ये कदम इस सवाल को उभारता है कि नियामक संस्थाओं या सरकारों के पास बड़ी टेक कंपनियों की सोच का मुकाबला करने लायक साधन हैं भी या नहीं. कई उदाहरणों से दिखता है कि उन्होंने कभी कड़ा प्रयत्न नहीं किया.
इस साल यूरोपीय संघ की एंटीट्रस्ट वॉचडॉग मार्ग्रेट वेस्टागर ने इन खिलाड़ियों को नाथने के लिए अपना अभियान छेड़ा है. इसके तहत 2020 के आखिर में डिजिटल मार्केट्स एक्ट (डीएमए) और डिजिटल सर्विसेज एक्ट (डीएसए) जैसे प्रमुख कानून के मसौद पेश किए गए हैं. इस तरह उन्होंने बड़ी तेजी से कानूनी तैयारियां पूरी की हैं.
डीएमए कानून, गूगल जैसी कथित गेटकीपर कंपनियों को मजबूर करने के लिए है कि वे उन प्रतिस्पर्धियों को भी और बराबरी से संचालन का मौका दें जो ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों पर निर्भर हैं. डीएसए के जरिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों पर मौजूद गैरकानूनी सामग्री पर और अधिक नियंत्रण लागू किया जा सकेगा.
आधिकारिक वार्ताएं जनवरी 2022 में शुरू होंगी. वेस्टागेर को उम्मीद है कि 2024 में यूरोपीय संसद का जनादेश पूरा होना से पहले ये ड्राफ्ट कानूनी रूप अख्तियार कर लेंगे.
नवंबर में एफटी-ईटीएनओ टेक ऐंड पॉलिटिक्स फोरम में वेस्टागेर ने कहा, "हर किसी के लिए ये समझना जरूरी है कि इस समय 80 प्रतिशत हासिल हो जाना कभी 100 प्रतिशत न हासिल हो पाने से ज्यादा अच्छा है. कहने का मतलब ये है कि ‘सर्वश्रेष्ठ' को ‘बहुत, ‘बहुत अच्छा' का दुश्मन नहीं होना चाहिए.”
रफ्तार उत्साहजनक है. लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि एक द्रुत टाइमलाइन एक वास्तविक सर्वसम्मति की कीमत पर ही तैयार हुई हो सकती है. जिसका मतलब है कि आगे चलकर और विस्तृत वार्ताएं होंगी.
वैश्विक स्तर पर कड़ी कार्रवाई
बड़ी टेक कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई में यूरोप अकेला नहीं है. चीन में भी प्रमुख कंपनियों को कड़ी कार्रवाई का सामना करना पड़ा था. अमेरिका के संघीय व्यापार आयोग (एफटीसी) की नयी प्रमुख लीना खान ने इस दलील के साथ ध्यान खींचा था कि अमेजन जैसी बड़ी कंपनियों के मामले में एंटीट्रस्ट कानून को और आगे जाने की जरूरत है.
लीना के एफटीसी में पद ग्रहण करने के एक महीने से भी कम समय में जेफ बेजोस, अमेजन के सीईओ पद से रिटायर हो गए थे. ट्विटर के संस्थापक जैक डोरसी ने भी पद से इस्तीफा दे दिया था. प्रमुख अमेरिकी टेक कंपनियों में जुकरबर्ग ही अकेले संस्थापक हैं जो प्रबंधन भूमिका में सक्रिय हैं.
फैंटा का कहना है कि अग्रिम पंक्ति से खुद को हटाना इन दिग्जगों की घबराहट का एक संकेत है. उन्हें उम्मीद है कि अमेरिका में 2022 में एक प्रमुख कानून सामने आ सकता है क्योंकि वहां बड़ी टेक कंपनियों पर नकेल कसना दोदलीय मुद्दा भी बन चुका है.
नया साल और क्या गुल खिलाएगा, कहा तो नहीं जा सकता है लेकिन न तो नियामक संस्थाएं और ना ही बड़ी टेक कंपनियां पीछे हटने का कोई संकेत दे रही है. सार्वजनिक हित में लड़ाई को लेकर टेक स्फीयर में आवाजें और ऊंची हो चली हैं, लेकिन कंपनियों की लॉबी अब भी मजबूत है.
बड़ी टेक कंपनियों के बारे में फैंटा कहते हैं, "उन्हें भी चुनौती का सामना करना पड़ेगा. मैं नहीं समझता कि बाजार में अपनी विशेषाधिकारपूर्ण स्थिति को वे छोड़ देंगे.” (dw.com)
कोविड-19 की वैश्विक महामारी के दौरान कुछ देशों में शराब और सिगरेट पीने की लत बढ़ गई है. इससे सबसे ज्यादा युवा प्रभावित हो रहे हैं. इसकी वजह हैरान करने वाली है.
डॉयचे वैले पर लुइजा राइट की रिपोर्ट-
साल 2020 और 2021 में पूरी दुनिया में तालाबंदी लागू करवा देने वाले कोरोना वायरस से अभी तक निजात नहीं मिली है. दुनिया की एक बड़ी आबादी का टीकाकरण हो गया है. इसके बावजूद, इस वायरस के नए ओमिक्रॉन वैरिएंट की वजह से कई देशों में कोविड-19 महामारी की पांचवीं लहर आने की आशंका जताई जा रही है. संक्रमण के बढ़ते खतरे के बीच शराब और सिगरेट पीने की लत भी बढ़ रही है.
इस साल अगस्त महीने में ‘एडिक्शन' जर्नल में छपे अध्ययन के मुताबिक, इंग्लैंड में लगे पहले लॉकडाउन के दौरान, महामारी से पहले की तुलना में 45 लाख से ज्यादा वयस्कों ने शराब पीना शुरू कर दिया. यह करीब 40 फीसदी की वृद्धि थी.
इस अध्ययन के लेखकों ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, "यह प्रवृति महिलाओं के साथ-साथ निम्न आय वाले लोगों में भी देखने को मिली, जो काफी चिंताजनक है.अध्ययन के मुताबिक, पहले लॉकडाउन के दौरान 6,52,000 युवाओं को धूम्रपान की लत लगी.
तम्बाकू के सेवन में वृद्धि
अक्टूबर 2021 में यूरोपियन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि फ्रांस में पहली बार मार्च 2020 में लॉकडाउन लगने के बाद, धूम्रपान करने वाले मौजूदा लोगों में 27 फीसदी ने बताया कि उनकी तम्बाकू की खपत बढ़ गई. वहीं, 19 प्रतिशत ने कहा कि उनकी तम्बाकू की खपत कम हो गई है.
जिन लोगों के बीच तम्बाकू की खपत बढ़ी उनमें ज्यादातर की उम्र 18 से 34 साल के बीच थी. साथ ही, वे उच्च शिक्षित लोग भी थे. शराब पीने वाले 11 फीसदी लोगों ने कहा कि लॉकडाउन के बाद से उनकी शराब की खपत बढ़ गई है. वहीं 24.4 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्होंने पीना कम कर दिया है. जिन लोगों के बीच शराब की खपत बढ़ी है उनकी उम्र 18 से 49 साल के बीच है.
जर्मनी में कुछ सिगरेट के विज्ञापनों की अभी भी अनुमति है. यहां भी सिगरेट पीने वाले युवाओं की संख्या तेजी से बढ़ी है. धूम्रपान की आदतों को लेकर जर्मनी में लंबे समय तक किए गए अध्ययन के मुताबिक, 2019 में 14 साल से ज्यादा उम्र के 27 फीसदी लोग सिगरेट पीते थे. अभी यह संख्या बढ़कर 31 फीसदी हो गई है.
जर्मनी में सिगरेट पीने की वजह से हर साल करीब एक लाख 20 हजार लोगों की मौत होती है. यह करीब उतनी ही संख्या है जितने लोगों की अब तक कोविड-19 की वजह से पिछले दो साल में मौत हुई है.
शराब का असर
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक शराब पीने की वजह से हर साल पूरी दुनिया में करीब 30 लाख लोगों की मौत होती है. दुनिया में होने वाली 5.1 फीसदी बीमारियों के लिए शराब जिम्मेदार है. शराब पीने से स्वास्थ्य पर काफी ज्यादा बुरा असर पड़ता है. अमेरिकी राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंसी ‘सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन' के मुताबिक, शराब के अत्यधिक सेवन की वजह से हाई ब्लड प्रेशर, ह्रदय से जुड़े रोग, स्ट्रोक, लीवर से जुड़ी बीमारियां सहित कई और तरह की स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं. इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो सकती है. व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार हो सकता है. साथ ही, शरीर कैंसर जैसी बीमारियों से ग्रसित हो सकता है.
तंबाकू सेवन की वजह से मरने वाले लोगों की संख्या भी काफी ज्यादा बढ़ गई है. दुनिया भर में हर साल करीब 80 लाख लोगों की मौत तंबाकू सेवन की वजह से होती है. इनमें 12 लाख ऐसे लोग भी शामिल हैं जो धूम्रपान नहीं करते हैं, लेकिन धूम्रपान करने वाले लोगों के आसपास मौजूद रहते हैं. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, दुनिया में 138 करोड़ लोग तंबाकू का सेवन करते हैं. इनमें से 80 फीसदी लोग निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं.
तनाव और उदासी
सामाजिक रूप से पीने के कम मौके होने के बावजूद, जर्मनी में कुछ समूहों में शराब की खपत में वृद्धि हुई है. जर्मन सोसाइटी फॉर एडिक्शन रिसर्च ऐंड एडिक्शन थेरेपी के डॉक्टर और अध्यक्ष फाल्क किएफर ने जर्मन समाचार एजेंसी डीपीए को बताया कि लगभग 25 फ्रतिशत वयस्कों ने महामारी से पहले की तुलना में ज्यादा शराब पी.
किएफर ने कहा, "पहले जो लोग शाम में आनंद के लिए नियमित तौर पर घर पर शराब पीते थे, महामारी के दौरान वे अकेलापन, तनाव, और उदासी की वजह से ज्यादा शराब पीने लगे.
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में इंसानों के व्यवहार से जुड़े मामलों के वैज्ञानिक और एडिक्शन अध्ययन की प्रमुख लेखिका सारा जैक्सन ने कहा कि लॉकडाउन को कई लोगों ने धूम्रपान छोड़ने के अवसर के तौर पर इस्तेमाल किया. वहीं, कई लोग तनाव की वजह धूम्रपान करने लगे. वहीं, कुछ पहले की तुलना में ज्यादा धूम्रपान करने लगे.
जैक्सन ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, "पहली बार लॉकडाउन लगने के दौरान कई लोग काफी ज्यादा तनाव में आ गए थे. जो लोग इस महामारी की वजह से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए उनके बीच शराब और सिगरेट पीने की लत में वृद्धि देखी गई.
अल्कोहल का इस्तेमाल कितना फायदेमंद है?
कुछ अध्ययनों में पाया गया है कि सीमित मात्रा में शराब का सेवन करने से स्वास्थ्य को लाभ मिलता है. हालांकि, हाल के अध्ययनों के मुताबिक शराब पीने से स्वास्थ्य पर हमेशा नकारात्मक प्रभाव ही पड़ता है.
कई अध्ययनों में बताया गया है कि काफी ज्यादा मात्रा में शराब पीने या एकदम शराब नहीं पीने की तुलना में सीमित मात्रा में शराब पीने से हार्ट अटैक का खतरा कम हो जाता है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, पेकिंग यूनिवर्सिटी और चाइनीज एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज के शोधकर्ता यह जानना चाहते थे कि क्या इसके पीछे कोई वजह है.
अप्रैल 2019 में द लांसेट में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक वैज्ञानिकों ने 10 वर्षों तक पूर्वी एशिया के पांच लाख लोगों का इंटरव्यू लिया और उनके बारे में जानकारी इकट्ठा की. पूर्वी एशिया में रहने वाले लोग अनुवांशिक तौर पर ऐसे हैं कि जो अल्कोहल से होने वाले असर को बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं. इसलिए, यहां अल्कोहल की खपत कम हो जाती है. हालांकि धूम्रपान और अन्य जीवनशैली को लेकर स्थिति इससे बिल्कुल अलग है.
वैज्ञानिकों ने पाया कि अनुवांशिक भिन्नता की वजह से लोगों ने शराब का सेवन कम कर दिया था. इस वजह से उनके बीच ब्लड प्रेशर और स्ट्रोक के खतरे भी कम हो गए थे. शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि अल्कोहल का सेवन करने से स्ट्रोक का खतरा 35 फीसदी बढ़ जाता है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि व्यक्ति सीमित मात्रा में पी रहा है या थोड़ा ज्यादा पी रहा है.
एडिक्शन स्टडी के लिए धन मुहैया कराने वाली संस्था कैंसर रिसर्च यूके की चीफ एक्जीक्यूटिव मिशेल मिचेल ने कहा, "शराब पीने या धूम्रपान करने का कोई ‘सुरक्षित स्तर' नहीं है. अगर कोई व्यक्ति शराब पीना या धूम्रपान करना बंद कर देता है, तो उसे कैंसर होने का खतरा कम हो सकता है.
शराब के ज्यादा सेवन से घरेलू हिंसा में भी वृद्धि होती है. लॉकडाउन के दौरान, कई देशों में यह प्रवृति देखने को मिली. आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के अनुसार, यूरोपीय संघ के देशों में घरेलू हिंसा को लेकर आने वाली आपातकालीन कॉल में 60 फीसदी की वृद्धि हुई है. (dw.com)
आयकर विभाग ने शुक्रवार को बताया कि 21 दिसंबर को बड़े पैमाने पर की गई जांच में उसने पाया है कि चीनी मोबाइल फ़ोन बनाने वाली दो कंपनियों में कई अनियमितताएं हैं.
अंग्रेज़ी अख़बार 'द हिंदू' लिखता है कि इस मामले में विदेश से नियंत्रित कई मोबाइल संचार और मोबाइल फ़ोन निर्माता कंपनियां और उनकी इकाइयां शामिल हैं.
यह जांच तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, असम, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, गुजरात, बिहार, राजस्थान और दिल्ली और इसके आसपास के शहरों में की गई.
आयकर विभाग का कहना है, "जांच में पता चला है कि इन दो बड़ी कंपनियों ने विदेश में स्थित अपनी ग्रुप कंपनियों को रॉयल्टी के रूप में जो रक़म भेजी वो कुल मिलाकर 5500 करोड़ रुपये से अधिक है. उसके लिए जिन ख़र्चों का दावा किया गया है, वो सबूतों और तथ्यों की रोशनी में उचित नहीं लग रहे हैं."
26 दिसंबर को इस मामले में चीनी चेंबर्स ऑफ़ कॉमर्स ने भारत से कहा था कि वह अनियमित टैक्स जाँच में बदलाव करे. चीनी चेंबर्स ऑफ और इंडिया चाइना मोबाइल फ़ोन इंटरप्राइज असोसिएशन ने भारत सरकार से कहा था कि चीनी कंपनियों के लिए भारत में भेदभाव रहित कारोबारी माहौल होना चाहिए.
चीनी चेंबर्स ऑफ और इंडिया चाइना मोबाइल फ़ोन इंटरप्राइज असोसिएशन के लिखे पत्र को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का मुखपत्र माने-जाने वाला अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने ट्वीट किया था.
इस पत्र में लिखा गया था, ''हाल ही में चीनी मोबाइल फ़ोन कंपनियों को भारत में अप्रत्याशित मुश्किलों का सामना करना पड़ा है. कुछ कंपनियों को अचानक भारत सरकार से जुड़ी एजेंसियों की जाँच का सामना करना पड़ा है. इसका नतीजा यह हुआ कि कंपनिया अपना उत्पादन सामान्य करने में असमर्थ हैं. विकाशील भारत में हमारा भरोसा कमज़ोर हुआ है. ऐसा करने से भारत में निवेश पर बुरा असर पड़ेगा.''
ग्लोबल टाइम्स ने अपने ट्वीट में लिखा था, ''इन चीनी फर्मों का भारत में तीन अरब डॉलर का निवेश है और पाँच लाख भारतीयों को रोज़गार मिला हुआ है.''
अख़बार के अनुसार, एजेंसी का कहना है कि दोनों कंपनियां आयकर विभाग क़ानून के तहत अपनी मातहत कंपनियों के साथ किए गए लेन-देन के बारे में बताने के लिए बाध्य नहीं थीं.
विभाग ने कहा, "इस तरह की ख़ामी के लिए उन पर आयकर विभाग क़ानून के तहत क़ानूनी कार्रवाई बनती है, इसकी सज़ा 1,000 करोड़ रुपये से अधिक का जुर्माना हो सकती है."
एजेंसी का दावा है कि भारतीय कंपनी के बहीख़ाते में विदेशी फ़ंड्स को दिखाया गया था लेकिन जिस स्रोत के तहत यह फ़ंड्स आए हुए थे, उनकी प्रकृति पर संहेद था और कथित रूप से क़र्ज़दाता की कोई ख़ास योग्यता नहीं थी. इस तरह के उधार की रक़म 5,000 करोड़ रुपए बताई गई है, जिसमें ब्याज ख़र्चों का भी दावा किया गया है.
आयकर विभाग ने अपने बयान में कहा है, "ख़र्चों की रक़म, संबंधित कंपनियों के आधार पर किए गए भुगतान आदि को लेकर सबूत मिले हैं, जो भारतीय मोबाइल निर्माता कंपनी के कर योग्य लाभ में भी कमी दिखाते हैं. इस तरह की रक़म 1,400 करोड़ से अधिक हो सकती है."
पहली कंपनी के मामले में कथित तौर पर वो भारत में ही स्थित दूसरी इकाई की सेवाएं ले रही थी और अप्रैल 2020 से प्रभाव में आए स्रोत पर ही कर कटौती के प्रावधानों का पालन नहीं कर रही थी. इस खाते पर देनदारी लगभग ₹300 करोड़ हो सकती है.
बयान में कहा गया है, "इस कंपनी के भारतीय निदेशकों ने स्वीकार किया है कि कंपनी के प्रबंधन में उनकी कोई भूमिका नहीं थी और उन्होंने निदेशक पद के लिए सिर्फ़ अपने नाम दिए हुए थे. ऐसे सबूत मिले हैं कि कंपनी के 42 करोड़ रुपये के राजस्व को बिना टैक्स दिए हुए भारत से बाहर ट्रांसफ़र किया गया."
कई ओर फ़िनटेक और सॉफ़्टवेयर सेवा कंपनियों पर की गई छापेमारी में पता चला है कि कई इकाइयां खर्चों को बढ़ाने और धन की हेराफेरी करने के लिए बनाई गई थीं.
एजेंसी ने आरोप लगाया है, "इन कंपनियों ने असंबंधित व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए भुगतान किया और उन बिलों का इस्तेमाल किया. इस तरह से ख़र्च की गई रक़म की मात्रा लगभग 50 करोड़ रुपये होगी."
एस-400 की पहली यूनिट पंजाब में की गई तैनात
अंग्रेज़ी अख़बार 'द इंडियन एक्सप्रेस' लिखता है कि पाकिस्तान और चीन के किसी भी हमले से बचने के लिए भारत ने पंजाब में सुरक्षा के लिहाज़ से रूसी एयर डिफ़ेंस मिसाइल सिस्टम एस-400 ट्रायम्फ़ की पहली यूनिट की तैनाती की है.
अख़बार सूत्रों के हवाले से लिखता है कि राज्य में पांच भारतीय वायु सेना के एय़रबेस में से एक एयरबेस पर इसकी तैनाती की गई है जो पाकिस्तान की सीमा के नज़दीक है.
भारत की वायु रक्षा क्षमता में यह मिसाइल बड़ी भूमिका निभाएगी क्योंकि यह हथियार 400 किलोमीटर की दूरी पर किसी लक्ष्य को नष्ट करने में सक्षम है. (bbc.com)
-इमरान क़ुरैशी
अगर ऐसा हो गया तो तय हो चुकी शादियों के अगले कुछ सालों तक टल जाने की पूरी आशंका है. ऐसी स्थिति से बचने के लिए हैदराबाद के कई परिवार 18 से 20 साल की अपनी बेटियों की शादी जितना ज़ल्दी हो सके, करने को बेताब हो गए हैं.
शादी कराने वाले क़ाज़ी भी स्वीकार कर रहे हैं कि शादियों की रफ़्तार में अचानक ही अभूतपूर्व तेज़ी आ गई है.
वैसे ग़रीब परिवारों में ये हड़बड़ाहट सबसे अधिक है. इसका कारण शायद ये भी है कि ग़रीब परिवारों को उनकी लड़कियों की शादी के लिए सरकार से आर्थिक मदद मिला करती है.
इस बारे में वहां के मौलाना सईद उल क़ादरी ने बीबीसी से बातचीत की है. वो कहते हैं, ''हैदराबाद और देश के हर जगह के मुसलमान परिवारों में प्रस्तावित क़ानून को लेकर घबराहट सी दिख रही है. ग़रीब लोग अपनी बेटियों के विवाह के लिए और तीन सालों तक इंतज़ार नहीं करना चाहते, इसलिए वे शादी को लेकर हड़बड़ी में हैं.''
लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने का प्रस्ताव
केंद्र सरकार ने हाल में ख़त्म हुए संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान संसद में एक संशोधन क़ानून पेश किया है.
बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, 2021 में प्रस्ताव है कि लड़कियों की शादी की मौजूदा उम्र को 18 साल से बढ़ाकर लड़कों की तरह 21 साल कर दिया जाए.
इस संशोधन विधेयक पर कई सवालों के खड़े होने के बाद सरकार ने फ़िलहाल इसे लोकसभा की सिलेक्ट कमिटी के हवाले कर दिया है. अब इस बारे में रिपोर्ट मिलने के बाद ही सरकार के इस दिशा में आगे बढ़ने की संभावना है.
कई ऐसे मामले हैं, जिसमें शादियां पहले से तय हो चुकी हैं और शादियों को आने वाले वक़्त में अंज़ाम देने की योजना थीं. लेकिन शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल करने के केंद्र सरकार के फ़ैसले ने लोगों को तय समय से पहले विवाह करने को मजबूर कर दिया है.
तौफ़ीक़ का उदाहरण लें, जिनकी बेटी की शादी केवल एक दिन की तैयारी में हो गई. उन्होंने बताया, "चर्चा के बाद तय हुआ था कि हम चार या पाँच महीने बाद सगाई करेंगे और विवाह डेढ़ साल बाद हो सकता है."
लेकिन वो कहते हैं कि उनके परिवार को पता चला कि यदि नया क़ानून जल्दी लागू हो गया, तो उनकी बेटी का अगले तीन साल तक विवाह नहीं हो पाएगा. वो कहते हैं, ''मेरी बेटी अभी 18 साल की है और उसने 10वीं पास कर ली है. इसलिए, हमें उसकी शादी सिर्फ़ एक दिन में करने को मज़बूर होना पड़ा.''
तौफ़ीक़ के परिवार को अपनी इस दूसरी बेटी की शादी के लिए क़र्ज़ लेना पड़ा, क्योंकि ''कोरोना के चलते हमें कोई आय नहीं हो पाई. हमें अपनी गाड़ी का लोन चुकाना पड़ा, जिसे हम कोरोना के चलते नहीं चुका पाए थे. हमने सोचा था कि अगले डेढ़ साल में कुछ पैसे बचाकर ये शादी कर लेंगे.''
तय रिश्तों के टूटने की आशंका
उन्होंने बताया, ''लड़का एक यूनानी मेडिकल स्टोर में काम करता है. यदि हम उनकी शादी नहीं करते तो नया क़ानून आने पर हमें उसे और तीन साल रखना पड़ता और उस समय हम इससे बेहतर रिश्ते की उम्मीद नहीं कर सकते. हालांकि अभी उसकी विदाई नहीं हुई. हम बाद में ऐसा करेंगे.''
इस बारे में मौलाना सईद कहते हैं, ''पश्चिमी या अरब देशों के विपरीत, हमारे यहाँ लड़का और लड़की न मिलते हैं और न शादी तय करते हैं. भारत में विवाह सिर्फ़ लड़के और लड़की की नहीं होती. यह रीति-रिवाज़, संस्कृति और भाषा को देखकर दो परिवारों के बीच का रिश्ता होता है, जो काफ़ी सोच समझकर लिया जाता है. ऐसी शादियों के लिए दो-तीन सालों तक इंतज़ार नहीं किया जा सकता.''
बीते कुछ दिनों में कई शादियां कराने वाले क़ाज़ी अस्मातुल्लाह क़ादरी ने इस बारे में बीबीसी हिंदी से बातचीत की.
उन्होंने बताया, "न केवल ग़रीब बल्कि मध्यम और अमीर वर्ग के भी कई परिवार, अपनी लड़कियों की शादी जल्दी में केवल इसलिए करवा रहे हैं, क्योंकि उन्हें नए क़ानून का डर सता रहा है. हैदराबाद में रिवाज़ है कि लड़कियों की शादी 18 साल में हो जाए. मध्यम वर्ग और अमीर परिवार भी नहीं चाहते कि तीन साल इंतज़ार करते करते तय शादी टूट जाए. वहीं ग़रीब परिवारों को लगता है कि उन्हें और तीन साल तक लड़की की देखभाल का बोझ उठाना पड़ेगा.''
तौफ़ीक़ बताते हैं, ''हमारे जानने वाले रिश्तेदारों और दोस्तों के यहां कई ऐसी शादियां हो रही हैं. इसकी मुख्य वजह नए क़ानून से पैदा होने वाला डर है कि उनकी बच्ची की शादी के लिए तीन साल और इंतज़ार करना पड़ेगा.''
मौलाना सईद के मुताबिक़, देर से विवाह करने पर तय रिश्तों के टूटने की आशंका है.
हालांकि, हैदराबाद में जल्दी शादी होने का जो रुझान दिखा है, वही हाल बेंगलुरु जैसे दूसरे शहरों में देखने को नहीं मिल रहा है.
इस बारे में जामिया मस्जिद, बेंगलुरु के मौलाना मक़सूद इमरान ने बीबीसी हिंदी को बताया, ''बेंगलुरु में इस चलते कई विवाह हो रहे हैं, लेकिन दूसरे जगहों के मुक़ाबले यहां ऐसे मामले निश्चित तौर पर कम हैं. कर्नाटक का माहौल अलग है.''
वहीं नाम न छापने की शर्त पर कर्नाटक के एक अधिकारी ने बताया, ''यह एक सच्चाई है कि लंबे समय तक काम करने से माता-पिता की ऊर्जा ख़त्म हो जाती है, ख़ासकर मेहनत मज़दूरी करने वालों में. इससे लोग मजबूर हो जाते हैं कि उनके बच्चे भी जल्द से जल्द काम करने लगें.'' (bbc.com)
इराक़ के राष्ट्रपति रहे सद्दाम हुसैन को 30 दिसंबर को फांसी दी गई थी. सद्दाम हुसैन की मौत के 15 साल बाद उनकी बेटी रग़द हुसैन ने इराक़ के लोगों से एकजुट होने और अरब दुनिया में बदलाव लाने में भूमिका अदा करने के लिए कहा है.
अपने पिता की बड़ी तस्वीर के आगे बैठकर रग़द ने इराक़ के लोगों से कहा कि वे एक दूसरे से शत्रुता भुलाकर एकजुट हो जाएं. रग़द ने कहा कि संप्रदाय और अपनी पृष्ठभूमि को पीछे छोड़ एक-दूसरे को माफ़ कर दें.
रग़द ने अपने हालिया संबोधन में कहा है, ''इराक़ को अरब के किसी गुट में शामिल नही होना चाहिए. मैं आपसे गुज़ारिश करती हूँ कि आपसी मतभेद को भुला दें. सबकी ताक़त एकजुट होगी तभी हम इराक़ के लिए कुछ कर सकते हैं.'' रग़द ने अपने पिता की मौत की 15वीं बरसी पर एक रिकॉर्डेड संदेश जारी किया है.
रग़द हुसैन ने भविष्य में इराक़ की राजनीति में आने से इनकार नहीं किया है. रग़द ने कहा कि जिन्होंने अक्टूबर क्रांति में अपनों को खोया है, उन्हें इसके दोषियों को माफ़ नहीं करना चाहिए. रग़द इराक़ी सुरक्षा बलों या ईरान समर्थित विद्रोहियों की प्रर्दशनकारियों पर गोलीबारी का हवाला दे रही थीं.
रग़द हुसैन कौन हैं?
इराक़ के पूर्व राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन की बड़ी बेटी रग़द हुसैन जब स्कूल में पढ़ती थीं, तभी उनकी शादी हो गई थी.
तब उनकी उम्र महज़ 15 साल थी. शादी के वक़्त इराक़ और ईरान में जंग चल रही थी. फ़रवरी 1996 में 25 साल की उम्र में रग़द ने अपने परिवार वालों के कहने पर तलाक़ लिया और तलाक़ के दो दिन बाद उनके पति की हत्या कर दी गई.
रग़द की शादी सद्दाम हुसैन के चचेरे भाई हुसैन कैमेल अल माजिद से हुई थी. हुसैन कैमेल तब सद्दाम हुसैन की सुरक्षा में लगे थे. सद्दाम की दूसरी बेटी राना सद्दाम की शादी भी हुसैन कैमेल के भाई सद्दाम कैमेल अल माजिद से हुई थी.
दोनों बेटियों की शादी, तलाक़ और इनके पतियों की हत्या की बहुत ही दुखांत कहानी है. 2018 में रग़द सद्दाम हुसैन का नाम तत्कालीन इराक़ी सरकार ने मोस्ट वॉन्टेड की लिस्ट में डाल दिया था.
एजेंट जिसने असली सद्दाम को पहचाना
रग़द सद्दाम हुसैन ने इसी साल फ़रवरी में अल-अरबिया को दिए इंटरव्यू में अपने निजी जीवन की कई अहम बातें कही थी. रग़द से पूछा गया था कि इस शादी के लिए उन्हें उनके पिता सद्दाम हुसैन ने दबाव डाला था या अपने मन से किया था?
जवाब में रग़द ने कहा था, ''मेरे पिता ने अपने पाँच में से किसी भी बच्चे पर शादी का दबाव नहीं डाला. उनकी बेटियों के सामने किसी ने शादी के लिए प्रस्ताव भी रखा, तो उन्होंने हमलोगों से पूछा कि क्या करना है. उन्होंने पूरी आज़ादी दी थी. मैं तब किशोरी थी. गर्मी के दोपहर का वक़्त था. मेरे पिता ने दरवाज़ा खटखटाया और रूम में आए. मैं झपकी ले रही थी और उन्होंने बहुत प्यार से जगाया. वो मेरे बगल में बिस्तर पर बैठ गए. उन्होंने हालचाल पूछा. फिर उन्होंने पूछा कि तुम्हारा एक प्रेमी है? उन्होंने उसका नाम भी बताया.''
रग़द ने कहा था कि शादी तो परिवार के भीतर ही होनी थी, इसलिए यह बहुत असहज स्थिति नहीं थी. 'मेरे पिता ने कहा कि तुम रिश्ता स्वीकार करने या ठुकराने के लिए स्वतंत्र हो. जब वो ये सब कह रहे थे, तो मैं लजा रही थी. तब उन्होंने कहा कि बेटी तुम अपना फ़ैसला अपनी माँ को बता देना. हुसैन कैमेल अल-माजिद मेरे पिता के रक्षा दल में थे, इसलिए उनकी मुलाक़ात सद्दाम हुसैन से रोज़ होती थी. मेरे पिता बाक़ी के अंगरक्षकों को लंच पर बुलाते थे, जिसमें ये भी शामिल रहते थे.''
''हम दोनों एक दूसरे को प्यार करने लगे थे. मेरी माँ को पता था. तब मैं बच्ची ही थी, लेकिन प्यार जल्दी ही शादी में तब्दील हो गया. मैं तब स्कूल में ही पढ़ती थी. शादी के बाद भी मैंने पढ़ाई जारी रखी और ग्रैजुएशन की पढ़ाई पूरी की. मेरे पति पढ़ाई के पक्ष में नहीं थे लेकिन मैंने पढ़ाई पूरी की. शायद मेरे पति ने ऐसा ईर्ष्या के कारण किया हो. इराक़ में तब सुरक्षा को लेकर कोई दिक़्क़त नहीं थी इसलिए स्कूल नहीं जाने देने की ज़िद करने के पीछे ये कोई कारण नहीं हो सकता. हालाँकि मेरे पति मुझे प्यार और आदर दोनों देते थे. वे मेरे माता-पिता का भी आदर करते थे.''
'पिता की मोहब्बत की तुलना नहीं'
रग़द ने कहा था, ''मेरे पिता मुझे बेपनाह प्यार करते थे. इसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती. उन्होंने जितना प्यार दिया, उसकी तुलना न तो पति से की जा सकती है और ना ही मेरे बच्चों से.''
रग़द ने कहा था कि इराक़-ईरान युद्ध के दौरान वो छोटी थीं और स्कूल में पढ़ती थीं. उस जंग से जुड़ी अपनी यादों को साझा करते हुए रग़द ने बताया, ''तब हमलोग का एक और घर था. वहाँ भी हमलोग आ-जा सकते थे. एक दिन मैं स्कूल नहीं गई, क्योंकि भारी बमबारी हुई थी. मेरे पिता सेना की ड्रेस में आए और बोले कि तुम स्कूल क्यों नहीं गई. मैंने युद्ध के ख़तरों को लेकर कहा, तो उनका जवाब था कि इराक़ के बाक़ी बच्चे भी स्कूल जा रहे हैं, तुमको भी जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर तुम स्कूल जाओगी, तो स्कूल में पढ़ने वाले बाक़ी के बच्चों का साहस बढ़ेगा. तुम्हें उनका भी ख़्याल रखना चाहिए. मेरे पिता चाहते थे कि हमें सद्दाम हुसैन की संतान होने की वजह से कोई विशेषाधिकार ना मिले. मेरे भाइयों की जान तो इराक़ की रक्षा में ही गई. ''
रग़द ने कहा था कि वो राजनीतिक फ़ैासलों में शामिल नहीं होती थीं, लेकिन कई मानवतावदी फ़ैसलों का हिस्सा रहीं. रग़द ने कहा कि कई मामलों में मेरे पति से भी बहस होती थी.
पति और पिता में संघर्ष
रग़द ने अपने पति हुसैन कैमेल और पिता सद्दाम हुसैन के रिश्तों में आई कड़वाहट पर भी बात की थी. रग़द ने कहा था, ''मैं कोई अकेली नहीं थी, जिसके पति मारे गए. तब इराक़ में बड़ी संख्या में महिलाओं ने अपने आदमियों को खोया. इनमें उनके पति, पिता और बच्चे भी शामिल थे. मेरे पति 1995 के अगस्त महीने में जॉर्डन गए. उन्होंने जाते वक़्त मुझसे संपर्क किया था. मुझे लगा कि अगर वे यहाँ रहेंगे, तो ख़ून ख़राबा होगा. ऐसा परिवार के बीच ही होता. इसीलिए मैंने उनके इराक़ छोड़ने के फ़ैसले का समर्थन किया. सद्दाम हुसैन की बेटी होने के नाते यह आसान नहीं था कि मैं दूसरे मुल्क जा सकूँ. हालाँकि जॉर्डन में हमारा स्वागत गर्मजोशी से हुआ. कभी ऐसा नहीं लगा कि मैं बाहरी हूँ. लेकिन जब प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर इसे सार्वजनिक किया गया, तो मुझे इसका अंदाज़ा नहीं था कि क्या बात कही जाएगी.''
रग़द ने इस इंटरव्यू में कहा था, ''जॉर्डन जाने के बाद प्रेस कॉन्फ़्रेंस में क्या कहा जाएगा, इसका मुझे कोई इल्म नहीं था.''
इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस में हुसैन कैमेल ने सद्दाम हुसैन के ख़िलाफ़ बोला था. हुसैन कैमेल ने कहा था कि उनके जॉर्डन आने से सद्दाम का शासन हिल गया है. कैमेल ने इराक़ के सैनिकों से सत्ता परिवर्तन के लिए तैयार रहने को कहा था. (bbc.com)
नई दिल्ली, 31 दिसम्बर| तालिबान सुरक्षा बलों ने अफगानिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी निमरोज प्रांत में डूरंड रेखा के एक हिस्से पर पाकिस्तानी सेना को बाड़ लगाने से रोक दिया है।
पझवोक न्यूज की रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। नाम न जाहिर करने की शर्त पर एक सूत्र ने गुरुवार को बताया कि पाकिस्तानी सेना चाहरबोलुक जिले के डाक इलाके में डूरंड लाइन पर बाड़ लगाने की योजना बना रही थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तानी सेना अफगानिस्तान के क्षेत्र में 10 से 15 मीटर अंदर घुस गई और एक सैन्य अड्डे की स्थापना और बाड़ लगाने की योजना बना रही थी, जिसे तालिबान सुरक्षा कर्मियों ने नाकाम कर दिया।
सूत्र ने कहा कि अफगान सुरक्षा कर्मियों ने बाड़ से संबंधित सामग्री जब्त कर ली है। इस मुद्दे के बारे में पझवोक ने प्रांतीय अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन उनसे इस संबंध में कोई टिप्पणी प्राप्त नहीं हो सकी।
एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले हफ्ते तालिबान सैनिकों द्वारा पूर्वी प्रांत नंगरहार में बाड़ लगाने की प्रक्रिया को बाधित करने की कोशिश के बाद, ऐसी खबरें थीं कि पाकिस्तान और तालिबान सरकार बातचीत के माध्यम से सीमा पर बाड़ लगाने के मुद्दे को हल करने के लिए सहमत हो गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबान के एक स्थानीय खुफिया प्रमुख ने बाड़ को हटाने की कोशिश की और यह तालिबान नेतृत्व द्वारा अनुमोदित (अप्रूव्ड) निर्णय नहीं था।
घटना के तुरंत बाद पाकिस्तान और तालिबान ने उच्चतम स्तर पर संपर्क स्थापित किया और बातचीत के माध्यम से इस मुद्दे को हल करने पर सहमत हुए। अधिकारी ने कहा, "दोनों पक्षों ने स्थिति को आगे नहीं बढ़ाने के लिए एक समझौता किया है।"
उन्होंने कहा कि सीमा पर बाड़ लगाने के संबंध में कुछ मुद्दे हैं और दोनों पक्ष इसे पारस्परिक रूप से हल करेंगे।
अधिकारी ने आगे कहा, "अफगान पक्ष से बाड़ लगाने से पहले बॉर्डर एलीगमेंट में समन्वय करने का अनुरोध किया गया है।" (आईएएनएस)
न्यूयॉर्क, 31 दिसम्बर| कोविड-19 का नया वैरिएंट ओमिक्रॉन दुनिया भर में बहुत तेजी से फैल रहा है। इस बीच अमेरिका के एक डॉक्टर ने कहा है कि यह उछाल 'हमारी ओर से अब तक देखी गई किसी भी चीज के विपरीत' है। जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी अस्पताल में आपदा चिकित्सा के प्रमुख जेम्स फिलिप्स ने सीएनएन से बातचीत करते हुए कहा, "यह (ओमिक्रॉन) किसी भी चीज के विपरीत है, जिसे हमने अभी तक देखा है। यहां तक कि यह कोविड के पूर्व उछाल के चरम से भी अधिक है।"
फिलिप्स ने कहा, "अभी हम जो अनुभव कर रहे हैं, वह वाशिंगटन में आपातकालीन विभागों के लिए पूरी तरह से भारी पड़ रहा है।"
जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय के आंकड़ों के अनुसार, देश पिछले सप्ताह की तुलना में 300,886 औसत नए दैनिक मामलों की एक नई महामारी का सामना कर रहा है।
सीएनएन के अनुसार, यह एक ऐसा ²श्य है, जो पूरे देश में चल रहा है, क्योंकि न्यू जर्सी और न्यूयॉर्क से अर्कांसस और शिकागो में रिकॉर्ड मामले सामने आए हैं, जहां अस्पताल के बिस्तरों की क्षमता भी एक चिंता का विषय बन चुका है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि एरिजोना और न्यू मैक्सिको में, संघीय चिकित्सा कर्मियों को कोविड-19 में वृद्धि के बीच सहायता प्रदान करने के लिए तैनात किया है।
रिपोर्ट के अनुसार, लुइसियाना के अस्पतालों में पिछले दो हफ्तों में कोविड-19 के मरीज तीन गुना बढ़ गए हैं, क्योंकि कोविड मामलों में एक नया रिकॉर्ड देखा गया है। (आईएएनएस)
चीन के सख्त कोविड प्रोटोकॉल के नियम तोड़ने वाले चार संदिग्धों को देश के दक्षिण में एक शहर में परेड में घुमाया गया.
चीन के सख्त कोरोना वायरस विरोधी उपायों के तहत कम से कम चार संदिग्ध नियम तोड़ने वालों को देश के दक्षिण में एक शहर में सार्वजनिक रूप से बदनाम किया गया. राज्य मीडिया ने बताया कि गुआंग्जी के स्वायत्त क्षेत्र के जिनशी शहर में एक बड़ी भीड़ के सामने आरोपियों का सफेद सुरक्षात्मक सूट में जुलूस निकाला गया.
इन लोगों पर अवैध प्रवासियों को सीमा पार करने में मदद करने का आरोप है. प्रवासी पड़ोस के विएतनाम से हैं. महामारी के प्रकोप के बाद से ही चीन अपनी सीमाओं को लगभग पूरी तरह से बंद कर चुका है. सीमाओं को सील कर चीन बाहर से आने वाले संक्रमणों को रोकना चाहता है.
इस परेड का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. इस वीडियो में चारों आरोपी पीपीई किट पहने हुए नजर आ रहे हैं और हाथ में उनकी तस्वीर वाले प्लेकार्ड हैं. इनपर उनके नाम भी लिखे हुए हैं. इनके साथ दो-दो सुरक्षाकर्मी भी पीपीई किट पहने चल रहे हैं.
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के अभियान की वजह से चीन ने साल 2010 में संदिग्ध अपराधियों को इस तरह सार्वजनिक तौर पर सजा देने के चलन को बंद कर दिया था. लेकिन एक बार फिर इस तरह से सजा की तीखी आलोचना हो रही है.
वीबो पर एक यूजर ने लिख, "इस तरह के लोग इसके ही लायक हैं. क्या होगा अगर वे वायरस को देश के अंदर ले आएं?" यह तस्वीरें माओत्से तुंग के तहत 1966 से 1976 के बीच हुई सांस्कृतिक क्रांति के दौरान आम थीं. उस समय भी इसी तरह से आरोपियों को सार्वजनिक तौर पर बेइज्जत किया जाता था.
चीनी सरकार ने 2010 में अपराधियों की सार्वजनिक बदनामी पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन हाल के महीनों में यह प्रथा कोरोना वायरस विरोधी कार्रवाई के मद्देनजर बार-बार सामने आई है.
एए/सीके (एएफपी, डीपीए)
बीजिंग में होने वाले ओलंपिक खेल लगभग पूरी तरह से कृत्रिम बर्फ पर निर्भर होंगे. जानकारों का कहना है कि पानी की कमी वाले इलाके में बड़े पैमाने पर ऊर्जा और संसाधनों को लगा कर कृत्रिम बर्फ बनाना गैर-जिम्मेदाराना है.
बीजिंग शीतकालीन ओलंपिक खेल जहां होने हैं वहां चमकदार पीले रंग की टरबाइनें कृत्रिम बर्फ फेंक रही हैं. खेलों के आयोजन के लिए यह बर्फ बहुत जरूरी है. 1980 में न्यू यॉर्क के लेक प्लेसिड में हुए शीतकालीन ओलंपिक खेलों के बाद से कृत्रिम बर्फ का इस्तेमाल अलग अलग मात्रा में लगातार होता रहा है.
लेकिन फरवरी में होने वाले बीजिंग खेल लगभग पूरी तरह से कृत्रिम बर्फ पर निर्भर होंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि वो चीन के सबसे ज्यादा सूखे हिस्सों में से एक में हो रहे हैं. खेलों के आयोजन में बस पांच सप्ताह बचे हैं और आयोजक जल्दी जल्दी पगडंडियों पर उच्च गुणवत्ता वाली बर्फ की परतें चढ़ा रहे हैं.
पर्यावरण को नुकसान
यह एक काफी बड़ा और जटिल काम है. आलोचकों का कहना है कि यह पर्यावरण की दृष्टि से ठीक भी नहीं है. यहां बर्फ बनाने वाली स्वचालित प्रणालियां लगी हुई हैं जो अधिकतम बर्फ बनाने के लिए हवा के तापमान और नमी पर नजर रखती हैं.
"स्नो गन" नाम की करीब 300 टरबाइनें यहां लगी हुई हैं जो हवा को कंप्रेस की हुई हवा के साथ पानी मिला कर बूंदों को हवा में छोड़ती हैं. यही बूंदें फिर बर्फ बन जाती हैं. फिर "स्नोकैट्स" कहे जाने वाले ट्रक जैसे वाहनों के इस्तेमाल से इस बर्फ को प्रतियोगिताओं के स्थानों पर फैलाया जाता है.
यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि हर जगह बर्फ की गहराई, सख्ती और गाढ़ापन एकदम सही मानकों के हिसाब से हो. बीजिंग से करीब 80 किलोमीटर दूर यांशिंग के राष्ट्रीय ऐल्पाइन स्कीइंग केंद्र में माउंटेन ऑपरेशन्स के डिप्टी प्रमुख ली शिन बताते हैं, "हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती बर्फ की एक जैसी गुणवत्ता को बरकरार रखना है."
उन्होंने एक पत्रकार वार्ता में बताया कि बर्फ बनाने की प्रक्रिया में अगर भिन्नता आ जाए तो उससे "बर्फ कुछ जगहों पर काफी सख्त और कुछ दूसरी जगहों पर काफी नर्म हो सकती है, जो कि खिलाड़ियों के लिए खतरनाक हो सकता है."
यहां के सफेद पैच यांशिंग के भूरे पहाड़ों के आगे स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं. इन पहाड़ों में बहुत ही कम प्राकृतिक बर्फ गिरती है. वैज्ञानिक पत्रिका साइंस में 2020 में छपे एक अध्ययन में बताया गया था कि उत्तरी चीन में भूजल का खत्म होना एक "गंभीर विषय" है.
"ग्रीन" खेलों का प्रण
गहन सिंचाई, तेज शहरीकरण और एक सूखे मौसम की वजह से यह यहां भूजल का स्तर दुनिया में सबसे कम स्तरों में से है. शोधकर्ताओं ने कहा है कि इसकी वजह से करोड़ों बीजिंग निवासियों को पानी की कमी का सामना करना पड़ता है भविष्य में इस स्थिति के और खराब ही होने की संभावना है.
खेलों के आयोजकों का कहना है कि बर्फ बनाने वाली मशीनें अक्षय ऊर्जा से चलती हैं और वो पहाड़ों के इकोसिस्टम को नुकसान नहीं पहुचाएंगी.
इसके अलावा मशीनें जिस पानी का इस्तेमाल करती हैं वो बसंत में बर्फ के पिघलने पर स्थानीय जलाशयों में चला जाएगा. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि कृत्रिम बर्फ पर निर्भरता से बीजिंग के "ग्रीन" खेलों के प्रण कमजोर होता है.
फ्रांस के स्ट्रैबोर्ग विश्वविद्यालय में भूगोल की प्रोफेसर कारमेन द जोंग कहती हैं कि ऊर्जा और संसाधनों को बड़ी मात्रा में इस्तेमाल करके पानी की कमी वाले इस इलाके में बर्फ बनाना गैर-जिम्मेदाराना है. उन्होंने कहा, "ऐसे तो हम ओलम्पिक खेलों की आयोजन चांद पर या मंगल पर भी कर सकते थे."
सीके/एए (एएफपी)
नई दिल्ली, 30 दिसंबर| एक नया आदेश आने के बाद चीनी फुटबॉलरों को टैटू हटाने या राष्ट्रीय टीम द्वारा ठुकराए जाने की दर्दनाक प्रक्रिया से गुजरना होगा। खेल सामान्य प्रशासन (जीएएस) 2018 की तुलना में एक कदम आगे चला गया है, जब खिलाड़ियों को खेलना जारी रखने के लिए टैटू को ढकने के लिए मजबूर किया गया था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अपने नए कदम में जीएएस ने टैटू को पूरी तरह से अवैध कर दिया है और चाहता है कि पहले से मौजूद टैटू वाले किसी भी खिलाड़ी को चीनी समाज के लिए 'एक अच्छा उदाहरण स्थापित करने' के मकसद से हटा दिया जाए।
जीएएस के बयान में कहा गया है, "राष्ट्रीय टीम और अंडर-23 राष्ट्रीय टीम के एथलीटों को नए टैटू रखने की सख्त मनाही है और जिनके पास पहले से ही टैटू हैं, उन्हें खुद को हटाने की सलाह दी जाती है।"
इसमें कहा गया है, "अगर टीम द्वारा विशेष परिस्थितियों पर सहमति जताई जाती है, तो (खिलाड़ियों को) प्रशिक्षण और मैचों के दौरान टैटू को ढकना चाहिए।"
रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने पहले 2018 में एक महिला फुटबॉल मैच के साथ अपने खिलाड़ियों की उपस्थिति में कदम रखा था, जब खिलाड़ियों को बताया गया था कि उन्हें रंगे बालों से खेलने से मना किया गया था।
चीन में टैटू का तिरस्कार किया गया है, लेकिन कई फुटबॉलरों सहित युवा वयस्कों में उनकी लोकप्रियता बढ़ी है।
गुआंगझोउ एफसी के झांग लिनपेंग एक ऐसे खिलाड़ी हैं, जो अपने व्यापक स्याही काम के लिए पूरे चीनी फुटबॉल में जाने जाते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि नए नियम युवा खिलाड़ियों के लिए समस्याग्रस्त साबित होने के लिए तैयार हैं, क्योंकि किसी भी नए टैटू के कारण राष्ट्रीय टीम से निष्कासन की संभावना है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 30 दिसंबर| प्रमुख पाकिस्तानी इस्लामिक विद्वान और कराची दारुल उलूम के प्रमुख मुफ्ती तकी उस्मानी ने कराची में तारिक रोड पर मदीना मस्जिद को गिराने के अदालती आदेश के खिलाफ ट्वीट किया है। पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कराची में डोलमेन मॉल के पास एक बहुमंजिली इमारत मदीना मस्जिद सहित अतिक्रमित भूमि पर बने कई ढांचे को गिराने का आदेश दिया।
अदालत ने पाया कि मस्जिद का निर्माण पार्क के लिए आवंटित भूमि के एक टुकड़े पर किया गया था।
उस्मानी ने अपने ट्वीट में कहा कि मस्जिद को गिराने और पार्क बनाने का आदेश 'बिल्कुल गैरवाजिब' है। रिपोर्ट के अनुसार, तारिक रोड पर यह मस्जिद 25 साल पहले बनाई गई थी और तब से नमाजी इसका इस्तेमाल कर रहे हैं।
धार्मिक विद्वान ने कहा कि यह समझ से बाहर है कि पड़ोस में रहने वाले लोगों की बात सुने बिना ऐसी मस्जिद को गिराने का आदेश दिया जाए। उन्होंने कहा कि अदालत को खुद इस मुद्दे की तुरंत समीक्षा करनी चाहिए।
वर्ष 1981 से 1982 तक फेडरल शरीयत कोर्ट में सेवा देने वाले उस्मानी ने पाकिस्तान में इस्लामिक बैंकिंग की अवधारणा का बीड़ा उठाया है।
फ्राइडे टाइम्स के मुताबिक, पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश गुलजार अहमद और सिंध प्रांत के मुख्यमंत्री मुराद अली शाह को गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी, जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम-फजल (जेयूआई-एफ), सिंध के महासचिव राशिद महमूद सूमरो ने भी कहा कि पार्टी अदालत के फैसले को लागू नहीं होने देगी।
सूमरो ने ट्विटर पर एक वीडियो पोस्ट किया, जो बुधवार देर रात तक वायरल हो गया, जिसमें अधिकारियों को मस्जिद तोड़ने की चुनौती दी गई है। (आईएएनएस)


