अंतरराष्ट्रीय
डिजीटल सेक्स अपराध अब दक्षिण कोरिया में इतना व्यापक हो गया है कि इसका डर महिलाओं और लड़कियों के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है.
मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) का कहना है कि दक्षिण कोरिया वैश्विक खुफिया कैमरे का केंद्र बन गया है. छोटे और छिपे हुए कैमरे से पीड़ितों का नग्न या पेशाब करते वक्त वीडियो बनाया जा रहा है या फिर यौन संबंधों की रिकॉर्डिंग की जा रही है. अन्य मामले अंतरंग तस्वीरें बिना सहमति से लीक होने से जुड़े हैं या फिर यौन शोषण जैसे बलात्कार की वारदात कैमरे पर रिकॉर्ड कर उसे ऑनलाइन साझा किया गया है.
एचआरडब्ल्यू ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि पीड़ितों को तब ज्यादा सदमा लगता है जब उनका सामना पुलिस या अभियोजकों से होता है. और उनसे ही सबूत इकट्ठा करने और इंटरनेट की निगरानी करने को कहा जाता ताकि नई तस्वीरें सामने आने पर वे सूचित कर सकें. रिपोर्ट की लेखिका हीथर बर कहती हैं, "दक्षिण कोरिया में डिजीटल यौन अपराध इतने आम हो गए हैं कि वे महिलाओं और लड़कियों के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहे हैं."
उन्होंने एक बयान में कहा, "महिलाओं और लड़कियों ने हमें बताया कि वे सार्वजनिक शौचालयों के इस्तेमाल करने से बचती हैं. यहां तक कि वे अपने घरों में छिपे हुए कैमरे को लेकर चिंता महसूस करती हैं. डिजीटल सेक्स की पीड़ितों की एक खतरनाक संख्या ने बताया कि उन्होंने आत्महत्या का विचार किया था."
38 साक्षात्कारों और एक ऑनलाइन सर्वेक्षण पर आधारित रिपोर्ट कहती है कि डिजीटल यौन अपराध के मामले 2017 की तुलना में 2018 में 11 गुना बढ़े. डिजीटल सेक्स अपराध के आंकड़े कोरिया के अपराध विभाग से जुटाए गए थे. दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन ने यौन अपराध की बढ़ती संख्यों के दावों, जिसमें हाल ही में सेना के सदस्यों पर भी आरोप लगे हैं, कि जांच के लिए पुलिस को आदेश दिए हैं.
पिछले साल, पुलिस ने प्रलोभन देने वाले एक ऑनलाइन नेटवर्क को भंडाफोड़ किया था जो दर्जनों महिलाओं और कम उम्र की लड़कियों को ब्लैकमेल कर तस्वीरें मंगाता था. अधिकारियों का कहना था कि नेटवर्क लड़कियों से अपने बारे में हिंसक यौन कल्पना कर खुद से तस्वीरें निकालकर भेजने को कहता.
एचआरडब्ल्यू का कहना है कि सरकार को कानून को मजबूत करते हुए दोषियों को सख्त देनी चाहिए. पुलिस, अभियोजकों और जजों में महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ाई जानी चाहिए.
एए/वीके (रॉयटर्स)
हंगरी की संसद ने एक कानून पास किया है, जिसके तहत समलैंगिकता और लिंग परिवर्तन को बढ़ावा देने वाली सामग्री को स्कूलों में बांटना अवैध बना दिया गया है. मानवाधिकार संगठनों और देश के विपक्षी दलों ने इस कदम की आलोचना की है.
हंगरी की सरकार ने समलैंगिकता विरोधी एक कानून पास किया है जिसे लेकर कई मानवाधिकार संगठनों में नाराजगी है. दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान को अगले साल चुनाव का सामना करना है और पिछले कुछ समय में उनका कट्टरपंथी रवैया बढ़ता देखा गया है. समलैंगिकों और आप्रवासियों को लेकर उनका रुख लगातार सख्त होता गया है, जिस कारण देश के लोगों की सोच में भी विभाजन नजर आ रहा है.
विक्टर ओरबान की फिदेश पार्टी देश में ईसाई-रूढ़िवादी एजेंडो को बढ़ावा देती है. उसने बाल यौन शोषण के खिलाफ सजा को सख्त बनाने वाले एक विस्तृत कानून में ही स्कूलों में समलैंगिकता पर बात करने को भी जोड़ दिया, जिससे विपक्षी दलों के लिए इस कानून के विरोध में वोट करना मुश्किल हो गया.
ओरबान ने 2010 से लगातार तीन बार जोरदार बहुमत से चुनाव जीते हैं. लेकिन अब वहां के विपक्षी दलों ने पहली बार गठजोड़ बना लिया है जिसके बाद वे फिदेश पार्टी को ओपीनियन पोल में चुनौती दे रहे हैं.
बच्चों के बहाने से
आलोचकों का कहना है कि यह कदम गलत तरीके से बाल यौन शोषण को समलैंगिक मुद्दों से जोड़ता है. इस कानून के विरोध में 15 जून को संसद के बाहर एक रैली भी हुई थी जिसमें फिदेश पार्टी से अपना बिल वापस लेने की अपील की गई थी. लेकिन फिदेश के सांसदों ने पूरे जोश-ओ-खरोश से इल बिल का समर्थन किया. वामपंथी दलों ने वोटिंग का बहिष्कार कर दिया था.
पिछले हफ्ते ही इस बिल में कुछ संशोधन किए गए जिनके तहत 18 साल के कम आयु के किशोरों और बच्चों को ऐसी कोई सामग्री नहीं दिखाई जा सकती, जो उन्हें समलैंगिक बनने या लिंग परिवर्तन के लिए उकसाए या प्रोत्साहित करे. यह शर्त विज्ञापनों पर भी लागू होगी. इस कानून के तहत कुछ संगठनों की सूची दी गई है जो जिनके अलावा किसी और को स्कूलों में यौन शिक्षा की इजाजत नहीं होगी.
हंगरी में समलैंगिक विवाह गैर कानूनी है और पुरुष और स्त्री ही विवाह के बाद बच्चा गोद ले सकते हैं. ओरबान की सरकार ने विवाह की परिभाषा में बदलाव किए हैं जिसके बाद संविधान के तहत एक पुरुष और स्त्री के विवाह को ही मान्यता दी गई है. समलैंगिकों द्वारा बच्चे गोद लेने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस कानून की आलोचना हो रही है. हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट स्थित अमेरिकी दूतावास ने कहा है कि इस कानून के समलैंगिकता विरोधी पहलू को लेकर वह गंभीर रूप से चिंतित है. अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित एक बयान में अमेरिकी दूतावास ने कहा, "अमेरिका का विचार है कि सरकारों को अभिव्यक्ति की आजादी को बढ़ावा देना चाहिए और मानवाधिकारों की रक्षा करनी चाहिए, जिनमें समलैंगिक समुदायों के अधिकार भी शामिल हैं."
नए कानून के आलोचकों ने इसकी तुलना रूस के 2013 के एक कानून से की है, जिसके तहत युवाओं के बीच "गैर-पारंपरिक यौन संबंधों के बारे में प्रचार सामग्री बांटना" अवैध करार दे दिया गया था.
पोलैंड की रूढ़िवादी सत्ताधारी पार्टी लॉ एंड जस्टिस यूरोपीय संघ में फिदेश की मुख्य सहयोगी है. उसने भी समलैंगिकता के मुद्दे पर ऐसा ही रुख अपनायया है. हालांकि यूरोपीय संघ में हंगरी और पोलैंड कुछ रूढ़िवादी सुधारों को लेकर एक दूसरे के आमने-सामने हैं.
हंगरी के हालात पर यूरोपीय संसद के प्रतिवेदक ग्रीन्स सांसद ग्वेन्डोलिन डेलबोस-कोरफील्ड ने देश के नए कानून की आलोचना की. मंगलवार को उन्होंने कहा, "बच्चों की सुरक्षा को बहाना बनाकर समलैंगिक समुदाय पर निशाना साधना हंगरी के सारे बच्चों को नुकसान पहुंचा रहा है."
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
इस्राएल ने बुधवार सुबह गजा में फिर हमला किया है. येरुशलम में आयोजित मार्च के चलते इलाके में फिर तनाव बढ़ गया है. नई सरकार के कई नेताओं ने मार्च की आलोचना की है.
इस्राएल में एक बार फिर तनाव बढ़ गया है. बुधवार सुबह इस्राएल ने गजा पर हमला किया, जिसमें किसी व्यक्ति की जान जाने की सूचना नहीं है. 21 मई से दोनों पक्षों के बीच युद्ध विराम चल रहा है, जो 11 दिन चली गोलाबारी के बाद लागू हुआ था. लेकिन बुधवार सुबह इस्राएली सेना ने कहा कि उसने आग लगाने वाले गुब्बारों के जवाब में हमास के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया. सेना ने बताया कि गुब्बारों ने गजा सीमा के नजदीक दक्षिणी इस्राएल में 20 जगहों पर आग लगा दी.
इस्राएली सेना के प्रवक्ता एविके ऐड्री ने ट्विटर हवाई हमलों का एक वीडियो भी शेयर किया. उन्होंने लिखा कि गजा शहर और दक्षिणी कस्बे खान यूनिस में "आतंकियों के मिलने की जगह और अन्य सुविधाओं” को निशाना बनाया गया.
येरुशलम में फिर तनाव
इस बीच येरूशलम में एक बार फिर तनाव का माहौल है. मंगलवार को अतिराष्ट्रवादी दक्षिणपंथी यहूदी प्रदर्शनकारियों ने अरब-बहुल पूर्वी येरुशलम में एक मार्च निकाला और झंडे लहराए. पूर्वी येरुशलम के उस पुराने शहर में यह प्रदर्शन हुआ, जो इस्राएल-फलस्तीन विवाद में सबसे विवादास्पद इलाका है. कथित ‘ध्वज यात्रा' दमिश्क दरवाजे से होती हुई पुराने शहर के बीचोबीच से गुजरी, जहां यहूदी, इस्लाम और ईसाई धर्म के पवित्र स्थल हैं.
इस प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों की सुरक्षा के लिए हजारों इस्राएली पुलिसकर्मी मौजूद थे. पुलिस ने दमिश्क दरवाजे के सामने से मैदान साफ करवा दिया था. सड़कें और बाजार बंद कर दिए गए थे और फलस्तीनी प्रदर्शनकारियों को भी वहां से हटा दिया गया था. फलस्तीनियों ने बताया कि इस दौरान पुलिस के साथ लोगों की झड़पें भी हुईं, जिसके दौरान पांच लोग घायल हुए और छह को गिरफ्तार कर लिया गया. स्वास्थ्यकर्मियों ने बताया कि 33 फलस्तीनियों को चोटें आई हैं.
अतिराष्ट्रवादी सांसदों इतमार बेन-ग्वीर और बेजालेल समोत्रिच ने भी इस मार्च में हिस्सा लिया. प्रदर्शनकारियों ने उन्हें कंधों पर उठा रखा था. एक वक्त पर तो कुछ युवकों ने ‘अरब मुर्दाबाद' और ‘तुम्हारे गांव जलकर राख हो जाएं' जैसे नारे भी लगाए.
नई सरकार का रुख
इस्राएल में 14 जून को ही नई सरकार का गठन हुआ है और दक्षिणपंथी नेता नफताली बेनेट ने 12 साल तक प्रधानमंत्री रहे बेन्यामिन नेतन्याहू से कुर्सी हासिल की है. इस सरकार में यहूदी और अरब दक्षिणपंथियों के अलावा वामपंथी दल भी शामिल हैं. सरकार ने कहा कि मार्च के आयोजकों ने पुलिस से इस बारे में मश्विरा किया था कि कौन सा रास्ता लिया जाए, ताकि अरब मूल के लोगों के साथ तनाव को टाला जा सके.
सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले याइर लैपिड ने ट्विटर पर लिखा है कि वह मानते हैं, यह मार्च कानून के दायरे में थे. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि ‘यह समझ से बाहर है कि आप इस्राएल का झंडा हाथ में लेकर अरब मुर्दाबाद जैसे नारे कैसे लगा सकते हैं. ये लोग इस्राएल के लिए कलंक हैं.'
आक्रोश दिवस
यहूदियों की ध्वज यात्रा के विरोध में गजा और वेस्ट बैंक में अरब मूल के लोगों ने ‘आक्रोश दिवस' मनाने का आह्वान किया है. केंद्र सरकार में शामिल इस्लामिक दल ‘राम पार्टी' के नेता मंसूर अब्बास ने कहा कि यह मार्च ‘राजनीतिक मंशा से क्षेत्र को आग में झोंक देने की कोशिश' था और नई सरकार को कमजोर करता है.
हमास और फलस्तीनी की सरकार ने भी इस मार्च को भड़काने वाला बताया था. फलस्तीनी प्रधानमंत्री मोहम्मद श्ताये ने मार्च से एक दिन पहले ही ट्विटर पर लिखा, "हम चेतावनी दे रहे हैं कि इसके खतरनाक नतीजे हो सकते हैं.”
यह कथित ‘ध्वज यात्रा' पहले 10 मई को आयोजित थी लेकिन तब येरुशलम में तनाव बढ़ने के बाद हमास और इस्राएल के बीच गोलाबारी शुरू हो गई, जो 11 दिन तक चलती रही. इस बीच यात्रा का रास्ता भी बदल दिया गया था और उसे तब पुराने शहर से नहीं जाने दिया गया था.
वीके/ एए (रॉयटर्स, एएफपी)
पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में मंगलवार को वो सब कुछ हुआ जो नहीं होना चाहिए था. सत्ता पक्ष और विपक्ष के सांसद आपस में भिड़ गए और हाथापाई करते दिखे.
विपक्षी नेता शहबाज़ शरीफ़ मंगलवार को नेशनल असेंबली में बजट पर जारी बहस में दूसरे दिन बोलने की कोशिश कर रहे थे तभी सत्ता पक्ष और विपक्षी सांसद आपस में भिड़ गए.
सोशल मीडिया पर पाकिस्तानी संसद में उपद्रव का वीडियो जमकर शेयर किया गया है. वीडियो में दिख रहा है कि प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की सत्ताधारी पार्टी तहरीक़-ए-इंसाफ़ के अल्वी अवान एक विपक्षी सदस्य को भद्दी गालियां दे रहे हैं. सांसद एक दूसरे पर किताब भी फेंकते दिख रहे हैं. उसी बजट बुक से एक दूसरे को लोग मारते दिखे.
संसद में हिंसा बढ़ती देख नेशनल असेंबली के सचिव ने अतिरिक्त सुरक्षा बलों को बुलाने का अनुरोध किया. लेकिन अतिरिक्त सुरक्षा बलों के आने के बाद भी हालात काबू में नहीं हुए.
दोनों पक्ष संसद हॉल में एक दूसरे को निशाने पर लेते रहे. शहबाज़ शरीफ़ ने संसद के सत्र के बाद पूरे वाक़ये पर ट्वीट कर कहा, ''आज टीवी पर पूरा मुल्क ने देखा कि कैसे सत्ताधारी पार्टी ने गुंडागर्दी की. यहाँ तक की भद्दी गालियाँ भी दी गईं. इससे पता चलता है कि इमरान ख़ान और उनकी पार्टी फासीवादी हो गई है और विपक्ष के साथ गुंडागर्दी कर रही है.''
पाकिस्तान मुस्लिम लीग- नवाज़ (पीएमएलएन) की सांसद मरियम औरंगज़ेब ने पूरे घटनाक्रम के लिए प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को ज़िम्मेदार ठहराया.
उन्होंने ट्वीट कर कहा, ''इमरान ख़ान ने जो नया पाकिस्तान बनाया है, उसकी यह हक़ीक़त है. यह फासीवादी मानसिकता की झलक है. इमरान ख़ान संसद को अप्रासंगिक और लोकतंत्र को कमज़ोर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं. विपक्ष पर बजट बुक फेंकी गई. यही इमरान ख़ान की रियासत-ए-मदीना है.''
इमरान ख़ान अक्सर अपने भाषणों में पाकिस्तान को रियासत-ए-मदीना बनाने की बात करते हैं.
हालाँकि सत्ता पक्ष वाले संसद में उपद्रव के लिए विपक्षी सांसदों को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं. पीटीआई के सांसद अवान ने ट्वीट कर कहा कि भले उनके गाली-गलौज का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है लेकिन पहले विपक्षी सांसद ने सीमा तोड़ी थी. अवान का कहना है कि पहले पीएमएल-एन के सांसदों ने गाली दी, उसके बाद उन्होंने जवाब में गाली दी थी.
पाकिस्तान के सूचना मंत्री फ़वाद चौधरी ने कहा कि संसद में हिंसा की शुरुआत पीएमएल-एन सदस्य गौहर ख़ान के नारों से शुरू हुई. फ़वाद ने अपने ट्वीट में लिखा है, ''पीएमएल-एन के सदस्य ने पहले संसद की मर्यादा तोड़ी और गाली की शुरुआत भी उन्होंने ही की. इसके बाद कुछ नौजवान सदस्यों ने भावुक होकर बजट बुक फेंकी.'' (bbc.com)
इसराइल ने कहा है कि उसने ग़ज़ा पट्टी में हमास के ठिकानों पर हवाई हमले किए हैं. इसराइल डिफ़ेंस फ़ोर्स का कहना है कि यह कार्रवाई ग़ज़ा पट्टी से आग लगाने वाले गुब्बारे भेजने के बाद की गई.
बुधवार तड़के ग़ज़ा शहर धमाकों से गूंज उठा. इसराइल डिफ़ेंस फ़ोर्स (आईडीएफ़) ने कहा कि उसके लड़ाकू विमानों ने ख़ान यूनुस और ग़ज़ा शहर में हमास के परिसरों को निशाना बनाया.
आईडीएफ़ की ओर जारी बयान में कहा गया है, “इन परिसरों में आतंकवादी गतिविधि चल रही थी. ग़ज़ा पट्टी से जारी आतंकवादी हरकतों को देखते हुए आईडीएफ़ युद्ध शुरू करने समेत सभी तरह के हालात के लिए तैयार है.”
अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि इसराइली हमलों से जान-मान का नुक़सान हुआ है या नहीं.
इसराइल में हाल ही में नई गठबंधन सरकार बनने के बाद इसराइल और हमास के बीच यह पहली हिंसक झड़प है.
मई महीने में दोनों पक्षों के बीच 11 दिन तक भीषण युद्ध चला था जिसके बाद 21 मई को संघर्ष विराम हुआ था.
इससे पहले मंगलवार को यहूदी राष्ट्रवादियों ने इसराइल के क़ब्ज़े वाले पूर्वी यरूशलम में एक जुलूस निकाला था. इसके बाद ग़ज़ा पर शासन चलाने वाले चरमपंथी संगठन हमास ने धमकियां दी थीं.
इसराइल का कहना है कि मंगलवार को ग़ज़ा की ओर से आग लगाने वाले कई सारे गुब्बारे भेजे गए थे जिनकी वजह से कई जगहों पर आग लग गई.
इसराइली फ़ायर सर्विस के मुताबिक़, इन गुब्बारों के कारण दक्षिणी इसराइल में खेतों में आग लगने की कम से कम 20 घटनाएं हुईं.
ग़ज़ा में मौजूद बीबीसी के रुश्दी अबुअलफ़ ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया है. साथ में लिखा है कि पूरे इलाक़े के ऊपर इसराइली ड्रोन्स की आवाज़ सुनी जा सकती है.
ट्विटर पर हमास के एक प्रवक्ता ने कहा कि ‘फ़लस्तीनी अपने अधिकारों की रक्षा के लिए तब तक प्रतिरोध जारी रखेंगे जब तक क़ब्ज़ाधारी को हम अपनी पूरी ज़मीन से बाहर न निकाल दें.’
'कभी भी टूट सकता है संघर्षविराम
ग़ज़ा में मौजूद बीबीसी संवाददाता रुश्दी अबु अलफ़ ने बताया है कि ताज़ा हवाई हमले दस मिनट तक ही चले मगर पिछले दिनों हुए भीषण संघर्ष के झटके से उबर रहे ग़ज़ा के बाशिंदों को इस बात का अहसास दिला गए कि संघर्षविराम बहुत संवेदनशील है और कभी भी टूट सकता है.
उनके मुताबिक़ धमाकों की आवाज़ से ही लोगों को युद्ध की याद नहीं आती, जब आप शहर की सड़कों से गुज़रते हैं तो जहां-तहां तबाही का मंज़र नज़र आ जाता है. ग़ज़ा के बीचोबीच एक मुख्य सड़क अभी भी टनों मलबे से बंद पड़ी है.
अबु मोहम्मद नाम के शख़्स रीमाल इलाक़े में रेहड़ी लगाते हैं. यहां पर पिछले दिनों हुए संघर्ष के दौरान सबसे बड़ा हवाई हमला हुआ था. अबु मोहम्मद ने रुश्दी अबु अलफ़ को बताया, "हम और युद्ध नहीं झेल सकते. पहले तो कोरोना महामारी ने कई महीनों तक हमारा काम बंद रखा, फिर युद्ध के कारण हमें बहुत नुक़सान उठाना पड़ा. मैं अपने छह बच्चों का पेट नहीं भर पा रहा."
इसराइल ने ताज़ा हवाई हमले में हमास के जिस सैन्य ठाने को निशाना बनाया, उसके क़रीब रहने वाले एक शख़्स ने बीबीसी को फ़ोन पर बताया कि फिर से धुएं के ग़ुब्बार उठते देखना बहुत डरावना था.
यरूशलम मार्च' में क्या हुआ था?
1967 के यु्द्ध के दौरान पूर्वी यरूशलम पर इसराइल ने क़ब्ज़ा कर लिया था. उसी की याद में हर साल इसराइली 'यरूशलम डे फ़्लैग मार्च' निकालते हैं.
इस साल गुरुवार को यह आयोजन होना था मगर इसराइली पुलिस ने सुरक्षा कारणों का हवाला देकर इसके लिए इजाज़त नहीं दी. आयोजकों ने कार्यक्रम रद्द कर दिया था मगर बाद में इसराइल की नई गठबंधन वाली सरकरार ने इसके लिए इजाज़त दे दी.
मंगलवार को इस मार्च के लिए जगह ख़ाली करने के इरादे से इसराइली पुलिस ने फ़लस्तीनी प्रदर्शनकारियों पर स्टन ग्रेनेड और रबर की गोलियां दागीं. इस दौरान 30 फ़लस्तीनी प्रदर्शनकारी घायल हो गए और 17 को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया.
सोशल मीडिया पर दिख रहे कुछ वीडियो में इसराइली प्रदर्शनकारियों को 'अरब लोग मुर्दाबाद' के नारे लगाते हुए भी देखा गया.
विदेश मंत्री याइर लापिड ने इस मार्च में शामिल इसराइलियों की ओर से 'नस्लभेदी और हिंसक' नारे लगाने की आलोचना की है. उन्होंने कहा, "ये बात समझ नहीं आती कि कैसे कुछ लोग हाथ में इसराइल का झंडा पकड़कर अरब लोग मुर्दाबाद के नारे लगा सकते हैं."
तनाव की वजह क्या है?
इसराइल और हमास के बीच 10 मई को संघर्ष छिड़ने से पहले लगभग एक महीने से अशांति बनी हुई थी.
इसकी शुरुआत पूर्वी यरुशलम के शेख़ जर्रा इलाक़े से फ़लस्तीनी परिवारों को निकालने की धमकी के बाद शुरू हुईं जिन्हें यहूदी अपनी ज़मीन बताते हैं और वहाँ बसना चाहते हैं. इस वजह से वहाँ अरब आबादी वाले इलाक़ों में प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें हो रही थीं.
7 मई को यरुशलम की अल-अक़्सा मस्जिद के पास प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच कई बार झड़प हुई.
अल-अक़्सा मस्जिद के पास पहले भी दोनों पक्षों के बीच झड़प होती रही है मगर 7 मई को हुई हिंसा पिछले कई सालों में सबसे गंभीर थी.
इसके बाद तनाव बढ़ता गया और 10 मई को लड़ाई छिड़ गई. हमास ने इसराइल को यहाँ से हटने की चेतावनी देते हुए रॉकेट दागे और फिर इसराइल ने भी जवाब में हवाई हमले किए.
इसराइली सेना का कहना है कि इस दौरान चरमपंथियों ने उनकी ओर 4300 रॉकेट दागे और उन्होंने ग़ज़ा में हमास के 1000 से ज़्यादा ठिकानों को निशाना बनाया.
मिस्र और दूसरे देशों की मध्यस्थता के बाद दोनों पक्षों के बीच 21 मई को युद्धविराम पर समझौता हुआ था.
ग़ज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, इस संघर्ष के कारण उनके यहां 100 महिलाओं और बच्चों समेत 243 लोगों की मौत हुई. वहीं इसराइल का दावा है कि उसने ग़ज़ा में 225 चरमपंथियों को मारा है.
इसराइली स्वास्थ्य सेवा का कहना है कि हमास के हमलों में उनके देश में 12 लोगों की मौत हुई, जिनमें दो बच्चे थे. (bbc.com)
-सुजीत चक्रवर्ती
आइजोल, 16 जून | पड़ोसी देश म्यांमार के चिन प्रांत के मुख्यमंत्री सलाई लियान लुई ने भारत के मिजोरम राज्य में शरण ली है। अधिकारियों ने मंगलवार को यह जानकारी दी।
सैन्य तख्तापलट के बाद से महिलाओं सहित 9,250 म्यामांर के निवासी पहले ही सीमावर्ती राज्य में शरण ले चुके हैं।
बांग्लादेश के साथ सीमा साझा करने वाला चिन, पश्चिमी म्यांमार में एक प्रांत है और यह भारत के पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम के साथ अपनी पश्चिमी सीमा साझा करता है।
मिजोरम गृह विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने मंगलवार रात को बताया कि चिन राज्य के मुख्यमंत्री सोमवार की रात पूर्वी मिजोरम के चम्फाई शहर आए हैं।
नाम न छापने की शर्त पर अधिकारी ने कहा कि आंग सान सू की की पार्टी, नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) के लुई सहित 24 सांसदों ने तख्तापलट होने के बाद से मिजोरम के विभिन्न जिलों में विशेष रूप से सीमावर्ती क्षेत्रों में शरण ली है।
अधिकारी ने कहा, म्यांमार के 9,250 नागरिकों को विभिन्न नागरिक समाज, छात्र और युवा संगठनों और गैर सरकारी संगठनों द्वारा आश्रय और भोजन प्रदान किया जा रहा है।
सीमावर्ती राज्य में शरण लेने वालों में से अधिकांश चिन के हैं, जिन्हें 'जो'समुदाय के रूप में भी जाना जाता है। इस वंश के लोग मिजोरम के मिजो के समान वंश, जातीयता और संस्कृति को साझा करते हैं।
मिजोरम पुलिस के सीआईडी (अपराध जांच विभाग) के अनुसार, लगभग 9,250 म्यांमारी नागरिक, जो 1 फरवरी को पड़ोसी देश में सेना द्वारा सत्ता पर कब्जा करने के बाद से अपने देश से भाग गए थे, वर्तमान में राज्य के 11 जिलों में से 10 में रह रहे हैं। इनकी सबसे अधिक संख्या में चंफाई आवास हैं, जहां इनकी संख्या लगभग 4,160 है।
उल्लेखनीय है कि 1 फरवरी को सेना द्वारा राष्ट्रपति यू विन मिंट और स्टेट काउंसलर आंग सान सू की को हिरासत में लिए जाने के बाद म्यांमार में एक साल के लिए आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी गई है। इसके बाद सत्ता वरिष्ठ जनरल मिन आंग हलिंग को सौंप दी गई है। (आईएएनएस)
सुप्रीम कोर्ट ने इतालवी नौसैनिकों के खिलाफ भारत में लंबित सभी आपराधिक मामलों को बंद करने का आदेश दिया है. 2012 में दोनों नौसैनिकों ने केरल के पास दो मछुआरों को गोली मार दी थी.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट-
इटली की ओर से भारतीय सुप्रीम कोर्ट की रजिस्टरी में 10 करोड़ का मुआवजा जमा कराने के बाद कोर्ट ने सभी आपराधिक मामलों को बंद करने का आदेश दिया है. 10 करोड़ रुपये केरल हाई कोर्ट को ट्रांसफर किए जाएंगे, जिसके बाद पीड़ित के वारिसों को चार-चार करोड़ रुपये बतौर मुआवजा मिलेगा और बाकी के दो करोड़ रुपये नाव के मालिकों को दिए जाएंगे.
साल 2012 की घटना में केरल के तट के पास भारतीय मछुआरों की एक नाव वहां से गुजर रहे इतालवी तेल के टैंकर एनरिका लेक्सी के पास पहुंच गई थी. टैंकर पर तैनात दो इतालवी नौसैनिक सल्वातोरे जिरोने और मासिमिलियानो लातोरे के गोली चलाने से दो भारतीय मछुआरों की मौत हो गई. इटली का शुरू से दावा रहा था कि नौसैनिकों ने चेतावनी देने के इरादे से गोली चलाई थी, लेकिन भारतीय नौसेना ने इतालवी नौसैनिकों को हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था. इटली और भारत के बीच दोनों नौसैनिकों पर मुकदमा चलाने को लेकर भी काफी विवाद हुआ था.
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने केरल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से एक न्यायाधीश को नामित करने को कहा है, जो वारिसों के हितों की रक्षा के लिए मुआवजे का उचित आदेश पारित करे और यह सुनिश्चित करे कि यह वारिसों द्वारा प्राप्त किया गया है. जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस एमआर शाह की अवकाशकालीन बेंच ने मामले में दो इतावली नौसैनिकों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी और कार्यवाही रद्द करने का आदेश पारित किया. इसी साल अप्रैल महीने में केंद्र सरकार ने सुनवाई बंद करने की मांग की थी.
पीड़ितों को मिलेगा मुआवजा
सुप्रीम कोर्ट ने 9 अप्रैल 2021 को कहा था कि एनरिका लेक्सी मामले में दो इतालवी नौसैनिकों के खिलाफ भारत में लंबित आपराधिक मामले इटली गणराज्य द्वारा गोलीबारी की घटना के पीड़ितों को भुगतान किए जाने के लिए सहमत मुआवजे को जमा करने के बाद ही बंद किए जाएंगे.
इस आदेश के बाद यूरोपीय संघ के आर्थिक मामलों के आयुक्त पाओलो जेंटोलिनी ने ट्विटर पर लिखा, "सुप्रीम कोर्ट ने एनरिका लेक्सी मामले में मुआवजे को स्वीकार करते हुए इतालवी नौसैनिकों के खिलाफ आपराधिक मामलों को खारिज कर दिया." उन्होंने इसे इतालवी कूटनीति की जीत बताते हुए लिखा, "भारत के साथ मामला बंद हो गया है. यह इतालवी कूटनीति की सफलता है."
दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संकट खड़ा हुआ था
गोलीकांड के दो साल तक सल्वातोरे जिरोने और मासिमिलियानो लातोरे को हिरासत में रखा गया था लेकिन आधिकारिक रूप से कोई आरोप नहीं तय किए गए. इसके बाद सितंबर 2014 में इनमें से एक नौसैनिक और मई 2016 में दूसरा नौसैनिक सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई शर्तबंद जमानत पर इटली वापस लौट गए और फिर वापस नहीं आए. दोनों ने कहा था उन्होंने भारतीय मछुआरों को समुद्री डाकू समझ लिया था और चेतावनी के लिए गोली चलाई थी.
इस मामले को लेकर न सिर्फ भारत और इटली के संबंधों में तनाव आया था बल्कि यूरोपीय संघ के साथ भी खिंचाव देखने को मिला था. एक समय में यह पूरा मामला एक कूटनीतिक संकट में बदल गया था. इटली इस मामले के लिए लिए संयुक्त राष्ट्र की अदालत में भी गया था.
(dw.com)
कोविड़-19 महामारी से इन्सानों को बचाने के लिए लड़ी जा रही लड़ाई में बंदरों की अहम भूमिका है. अमेरिका के एक शोध केंद्र में पांच हजार बंदर इसीलिए रखे गए हैं. पर क्या यह नैतिक है?
अमेरिका के लुइजियाना में एक छोटे से कस्बे में पांच सौ एकड़ जमीन पर बने एक बाड़े में लगभग पांच हजार बंदर उछल-कूद करते देखे जा सकते हैं. इनमें से ज्यादातर रीसस मैकाकेस प्रजाति के हैं. ट्यूलान नैशनल रीसर्च सेंटर में रह रहे इन बंदरों में से ज्यादातर इन्सान की कोविड-19 महामारी से रक्षा में योगदान देने के लिए तैयार किए जा रहे हैं.
उच्च स्तरीय जैव-सुरक्षा वाले इस केंद्र में प्रयोगशालाएं ऐंथ्रेक्स जैसे गंभीर जैविक खतरों से निपटने में सक्षम हैं. लेकिन कोरोनावायरस महामारी के हमले के बाद इन प्रयोगशालाओं ने खुद को तेजी से कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई के लिए तैयार कर लिया. और ये पांच हजार बंदर उसी तैयारी का हिस्सा हैं.
केंद्र के एसोसिएट डायरेक्टर स्किप बॉम कहते हैं कि इन्सानी बीमारियों पर अध्ययन के लिए बंदरों का इस्तेमाल काफी सटीक रहता है क्योंकि उनका डीएनए और शारीरिक गुण उन्हें इन्सानों से तुलना के लिए एक आदर्श मॉडल बनाते हैं.
उन्होंने बताया, "ये गैर-मानव प्राइमेट हमारे लिए न सिर्फ बीमारी और उसके मानव शरीर पर होने वाले प्रभाव को समझ पाने के लिए लिहाज से बेहद अहम हैं, बल्कि हम विभिन्न इलाजों, थेरेपी और टीकों की तुलना भी कर सकते हैं."
वैज्ञानिक शोध में रीसस मैकाकेस प्रजाति के बंदरों का सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है. इसी प्रजाति के बंदर ट्यूलान केंद्र की ब्रीडिंग कॉलनी में सबसे ज्यादा हैं. पिछले एक साल में दो सौ से ज्यादा वयस्क बंदरों को कोरोनावायरस से संबंधित प्रयोगों में इस्तेमाल किया जा चुका है.
केंद्र में हो रहे कोविड-19 से संबंधित अध्ययनों में से एक बीती फरवरी में विज्ञान पत्रिका नेशनल अकैडमी ऑफ साइसेंज में प्रकाशित हुआ था. इस शोध में पता चला कि भारी शरीरों वाले ज्यादा आयु के मरीज सांस लेते ज्यादा वाष्पकण छोड़ते हैं, जो उन्होंने सुपरस्प्रैडर बनाता है. अध्ययन में शामिल रहे केंद्र के संक्रामक रोग विभाग के निदेशक चैड रॉय कहते हैं कि इस अध्ययन में बंदरों का योगदान बेहद अहम था.
आने वाले समय में लंबी अवधि के कोविड पर अध्ययन को योजना पर भी काम चल रहा है, जो कुछ मरीजों में देखा गया है. लगभग दस फीसदी मरीज लंबे समय तक कोविड से बीमार रहे हैं
अध्ययन पूरा हो जाने के बाद ट्यूलान सेंटर में, शोध में शामिल रहे बंदरों को मार दिया जाता है और उनके ऊतकों को जमा कर लिया जाता है, जिससे श्वसन तंत्र के इतर हो रहे कोविड-19 के असर का अध्ययन किया जा सके. इस वजह से कुछ लोग नाखुश भी हैं. जानवरों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) की कैथी गिलेर्मो कहती हैं कि बंदरों पर प्रयोग नहीं होने चाहिए.
वह कहती हैं, "अगर उनका इस्तेमाल ना किया होता, तो उन्हें मारना भी ना पड़ता. हमें अगर कुछ काम की बात पता चलेगी तो इन्सानों पर प्रयोग से ही पता चलेगी."
वीके/आईबी (रॉयटर्स)
अफ्रीका के कांगो में ऐसी कई बलात्कार पीड़ित हैं जो सदमे और खामोशी में अपना जीवन बिता रही हैं लेकिन अब उन्हें इससे उबरने का एक जरिया मिल गया है.
बलात्कार पीड़ितों की खामोशी जब नृत्य शिक्षक अमीना लुसाम्बो ने देखी तो उन्होंने सोचा कि उनकी मदद करने के लिए कुछ जरूर करना चाहिए. इसलिए उन्होंने बलात्कार पीड़ितों के लिए पूर्वी कांगो के बुकावु में स्थित पंजी अस्पताल से जुड़े पुनर्वास केंद्र में डांस सेशन शुरू करने का फैसला किया. अस्पताल के अधिकारियों के मुताबिक अस्पताल के संचालन के 20 सालों के दौरान यौन हिंसा की शिकार 60,000 से अधिक महिलाओं का इलाज किया जा चुका है.
2003 में गृह युद्ध की आधिकारिक समाप्ति के बाद कांगो के पूर्वी सीमावर्ती इलाके हिंसा की चपेट में हैं. जमीन, संसाधनों और आत्मरक्षा के लिए संघर्ष कर रहे सशस्त्र समूहों के बीच हिंसा सालों से जारी है.
लुसाम्बो कहती हैं, "मैंने ऐसा उन लड़कियों की वजह से करना शुरू किया क्योंकि जो हमारे पास आती हैं वे एक अजीब खामोशी में होती हैं. कम उम्र में उनके साथ बलात्कार किया गया और उन्हें नहीं पता कि वे अपना दर्द कैसे बयां करें. वे मिलनसार नहीं हो पाती हैं." अब वही पीड़ित महिलाएं एक कतार में खड़ी हैं और वे नृत्य के जरिए अपने शरीर के साथ दोबारा जुड़ना सीख रही हैं.
लुसाम्बो कहती हैं, "तीन महीने की साइकोथेरेपी की तुलना में आप एक महीने के नृत्य में बहुत कुछ कर पाते हैं." पंजी अस्पताल और पुनर्वास केंद्र की स्थापना नोबेल पुरस्कार विजेता स्त्रीरोग विशेषज्ञ डेनिस मुकवेंगे ने की थी. मुकवेंगे कांगो में यौन हिंसा की पीड़ित महिलाओं का इलाज करते हैं. 1999 में स्थापित इस अस्पताल में आने वाली महिलाओं में ज्यादातर ऐसी होती हैं जिनकी सर्जरी करने की जरूरत होती है.
मुकवेंगे कहते हैं, "हम अब केवल चिकित्सा उपचार नहीं करते हैं." उनके मुताबिक केंद्र अब मनोवैज्ञानिक देखभाल भी करता है, महिलाओं को समाज में फिर से जोड़ने और आर्थिक रूप से उनका समर्थन करता है. उन्होंने बताया कि पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए भी केंद्र अपना समर्थन देता है.
डांस थेरेपी से पीड़ितों की मदद
लुसाम्बो की कक्षा में शामिल होने वाली एक 20 वर्षीय महिला ने बताया कि नृत्य करने से वह दर्द और डर से आजाद हो जाती है. वो दर्द और डर जो उसने अपने अंदर दबा रखा था. वो कहती है कि अब वह चैन की नींद भी सो पाती है और उसे फिर से मुस्कुराने का मौका मिला है. नाम नहीं बताने की शर्त पर इस महिला ने बताया कि अज्ञात पुरुषों द्वारा बलात्कार के बाद उसे मृत अवस्था में छोड़ दिया गया था. महिला कहती है कि उसे नहीं पता कि बलात्कार करने वाले लोग मिलिशिया समूह से थे या सैनिक.
पीड़ित महिला के परिजनों ने डर की वजह से अधिकारियों से बलात्कार की शिकायत नहीं की थी. उन्होंने बताया कि घटना के बाद महिला को पंजी अस्पताल ले जाया गया था. जानकारों का कहना है कि कांगो ने यौन अपराधों से निपटने में कुछ प्रगति की है. हाल के सालों में मिलिशिया के कमांडरों और सेना के अफसरों पर बलात्कार के लिए मुकदमा चलाया गया, लेकिन समस्या अभी भी व्याप्त है.
सेना के जवानों और अफसरों द्वारा यौन हिंसा के रिकॉर्ड के बारे में पूछे जाने पर कांगो सेना के प्रवक्ता ने कहा कि कुछ "तत्वों" ने अतीत में बलात्कार किया था, लेकिन सेना अब अपराधियों को सजा देने के लिए काम कर रही है. और यौन हिंसा की दर में उल्लेखनीय गिरावट आई है.
एक पीड़िता ने कहा, "मैं नहीं जानती कि इसे अपने आप को कैसे समझाऊं, लेकिन जब मैं खुद को देखती हूं तो मुझे गंदा लगता है. डांस थेरेपी की वजह से जो भी मेरे अंदर गंदी चीजें थीं वह दूर करने में मदद मिली है. उदासी और डर वह सब दूर हो गया है."
एए/सीके (रॉयटर्स)
ऑस्ट्रेलिया में जन्मी चार साल की एक तमिल बच्ची ने देश की सरकार और शरणार्थियों को लेकर उसकी नीति पर सवाल खड़े कर रखे हैं.
प्रिया मुरुगप्पन, उनके पति और दो बच्चियां दो साल बाद आखिरकार खुली हवा में सांस ले सकेंगे. हालांकि ऐसा ज्यादा समय के लिए नहीं होगा क्योंकि ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने इस तमिल परिवार को अस्थायी तौर पर ही हिरासत केंद्र से रिहा करने के आदेश दिए हैं.
मंगलवार को ऑस्ट्रेलिया के आप्रवासन मंत्री आलेक्स हॉक ने मीडिया से बातचीत में कहा कि परिवार को अस्थायी तौर पर रिहा किया गया है और इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि इस परिवार को वीजा मिल जाएगा.
तमिल शरणार्थी मुरुगप्पन परिवार को यह रिहाई तब मिली है जब उनकी छोटी बेटी, चार साल की थारनिका गंभीर रूप से बीमार हो गई और उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. हालांकि इस फैसले में भी ऑस्ट्रेलिया की सरकार को कई दिन लगे हैं. तीन दिन पहले ही थारनिका ने अपना चौथा जन्मदिन मनाया. हालांकि इस बार वह पर्थ के अस्पताल में भर्ती है और न्यूमोनिया और सेप्सिस से जूझ रही है, जिस कारण मरीज की जान भी जा सकती है.
थारनिका को पिछले हफ्ते तब क्रिसमस आईलैंड से पर्थ के बाल अस्पताल ले जाया गया, जब उसे बीमार हुए दस दिन हो गए थे. उसके साथ उसकी मां प्रिया भी थीं जबकि पिता और उसकी बड़ी बहन कोपिका हिरासत केंद्र में ही रह रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया के मानवाधिकार कार्यकर्ता परिवार की रिहाई की मांग कर रहे थे. अब सरकार ने उन्हें भी परिवार के पास भेजने का फैसला लिया है.
इमिग्रेशन मंत्री ऐलेक्स हॉक ने कहा, "यह फैसला करते हुए मैं सरकार की मजबूत सीमा सुरक्षा नीति का बच्चों के हिरासत केंद्र में होने की स्थिति में उचित सहानुभूति के साथ संतुलन बना रहा हूं."
क्या है मुरुगप्पन परिवार की कहानी
नादेसलिंगम मुरुगप्पन श्रीलंकाई मूल के तमिल हैं. 2012 में वे श्रीलंका से भागकर नाव से ऑस्ट्रेलिया आ गए थे और यहां उन्होंने शरण मांगी थी. 2018 में नादेसलिंगम ने कोर्ट को बताया कि उन्हें 2001 में श्रीलंका के उग्रवादी संगठन लिट्टे का सदस्य बनने के लिए मजबूर किया गया था और वापस स्वदेश जाने पर उनकी जान को खतरा है.
प्रिया का कहना है कि उनके गांव के कुछ लोगों समेत तत्कालीन मंगेतर को सेना ने जिंदा जला दिया था, जिसके बाद वह देश से भागकर 2013 में ऑस्ट्रेलिया आ गई थीं. उन्होंने भी यहां शरण मांगी थी. हालांकि दोनों की ही शरण की अर्जी को गैरकानूनी मानकर खारिज कर दिया गया. लेकिन उन्हें अस्थायी वीजा दिया गया और वे क्वीन्सलैंड के बिलोला कस्बे में रहने लगे जहां उन्होंने शादी कर ली. 2015 में उनकी पहली बेटी कोपिका का जन्म हुआ. 2017 में छोटी बेटी थारनिका जन्मी.
बिलोएला से हिरासत तक
4 मार्च 2018 को इस परिवार का अस्थायी वीजा खत्म हो गया और सीमा बल के अधिकारियों ने उन्हें उनके घर से हिरासत में ले लिया. तब उन्हें मेलबर्न के एक हिरासत केंद्र में रखा गया. इस कदम का बिलोएला के लोगों ने खासा विरोध किया और एक अभियान भी शुरू किया जिसमें इस परिवार को घर वापस लाने की अपील की गई थी.
मेलबर्न से इस परिवार को श्रीलंका निर्वासित किया जाना था जिसके खिलाफ उन्होंने फेडरल सर्किट कोर्ट में अपील की. जून 2018 में अदालत ने उनकी अपील खारिज कर दी. कोर्ट ने सरकार की इस परिवार को रिफ्यूजी का दर्जा ना देने की वजहों को जायज माना था. इनमें एक कारण यह भी था कि नादेसलिंगम ऑस्ट्रेलिया आने के बाद तीन बार श्रीलंका की यात्रा कर चुके थे जिससे उनका यह दावा प्रभावित हुआ कि उन्हें श्रीलंका के अधिकारियों से खतरा है.
परिवार ने इस फैसले के खिलाफ अपील की और इसकी सुनवाई तक वे हिरासत केंद्र में ही रहते रहे. ऊपरी अदालत से भी उनकी अपील खारिज होने के बाद 29 अगस्त 2019 को इस परिवार को हिरासत केंद्र से निकाल कर निर्वासन के लिए मेलबर्न हवाई अड्डे पर लाया गया. तब उनके समर्थन में बहुत से लोग भी हवाई अड्डे पर पहुंच गए थे. लेकिन अधिकारियों ने उन्हें विमान में बिठाया और विमान डार्विन की ओर उड़ चला, जहां से उन्हें श्रीलंका भेजा जाना था. हालांकि उसी वक्त कोर्ट ने एक अपील के आधार पर उन्हें देश से निकाले जाने के फैसले पर रोक लगा दी. विमान लौट आया और मुरुगप्पन परिवार को क्रिसमस आईलैंड स्थित हिरासत केंद्र में भेज दिया गया. हालांकि उसी साल जुलाई में इस हिरासत केंद्र को बंद कर दिया गया था इसलिए तब से वहां इस परिवार के अलावा और कोई नहीं है.
मौजूदा अपील
इस तमिल परिवार की अपील है कि छोटी बेटी थारनिका को शरणार्थी वीजा की अपील का हक मिलना चाहिए. कोर्ट इस अपील पर सुनवाई कर रहा है इसलिए फिलहाल यह परिवार देश में ही हैं. लेकिन ऑस्ट्रेलिया की सरकार का कहना है कि इस परिवार को वीजा देने से ऐसे लोगों को हौसला मिलेगा, जो अवैध तरीके से ऑस्ट्रेलिया में आते हैं और शरणार्थी वीजा चाहते हैं. मौजूदा प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने पिछली सरकार में इमिग्रेशन मंत्री रहते हुए ‘नौकाओं को ना' की नीति बनाई थी जिसके तहत नाव से ऑस्ट्रेलिया आने वाले लोगों को शरण न देने की सख्ती बरतने का फैसला किया गया था.
लेकिन कार्यकर्ताओं का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया की नीति अमानवीय है. रिफ्यूजी एक्शन कोएलिशन के इयान रितौल कहते हैं कि मुरुगप्पन परिवार की कहानी ऑस्ट्रेलिया की अमानवीय नीति की ही मिसाल है. डीडब्ल्यू से बातचीत में इयान ने कहा, "यह पूरा मामला इस बात का प्रतीक है कि ऑस्ट्रेलिया सरकार की नीति अमानवीय है. दो बच्चे जो यहां जन्मे हैं, यहां रहने का हक नहीं पा सकते. पूरा कस्बा इस परिवार को घर लाने के लिए अपील कर रहा है लेकिन सरकार वीजा देने को तैयार नहीं है. ऐसी नीति और किसी देश की नहीं है.”
मौजूदा मामले के बाद फिर से लोगों ने इस परिवार को वीजा देने की अपील की है.
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा हत्याओं को "घृणा से प्रेरित एक आतंकवादी हमला" बताए जाने के बाद मुस्लिम परिवार को ट्रक से कुचलने वाले पर आतंकवाद के आरोप लगाए गए हैं.
कनाडा के ओंटारियो में एक मुस्लिम परिवार को ट्रक से कुचलने वाले 20 वर्षीय चालक पर आतंकवाद से जुड़े आरोप लगाए गए हैं. कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने इसे आतंकी घटना करार दिया था, जिसके बाद सोमवार 14 जून को अभियोजकों ने जानकारी दी की आरोपी पर आतंकवाद के आरोप लगाए गए हैं. 6 जून को अफजाल परिवार के चार सदस्य-एक परुष और उसकी पत्नी, एक लड़की और उसकी मां, ओंटारियो के लंदन में टहलने के लिए निकले थे. उसी दौरान 20 साल के नथेनियल वेल्टमन ने अपने ट्रक से उन्हें कुचल डाला था. इस हादसे में एक बच्चा गंभीर रूप से घायल हुआ था और उसका इलाज अस्पताल में चल रहा है.
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने पूरे घटनाक्रम पर कड़ी निंदा व्यक्त करते हुए इसे आतंकवादी घटना करार दिया था. वेल्टमन के खिलाफ हत्या और हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया गया था. लेकिन अब इसमें आतंकवाद से जुड़े आरोप भी लगा दिए गए हैं. वेल्टमन पर पहले चार लोगों की हत्या और एक हत्या के प्रयास का मामला दर्ज था. वेल्टमन ने इस परिवार को सिर्फ इसलिए अपने ट्रक से कुचल डाला था क्योंकि यह एक मुस्लिम परिवार था. पुलिस के मुताबिक वेल्टमन पीड़ित परिवार को पहले से नहीं जानता था.
रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस ने एक बयान में कहा, "संघीय और प्रांतीय अटॉर्नी जनरलों ने आतंकवाद से जुड़े आरोपों की कार्रवाई शुरू करने के लिए अपनी सहमति दे दी है. हत्याएं और हत्या का प्रयास भी आतंकवादी गतिविधि स्थापित करता है." वेल्टमन का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और किसी चरमपंथी समूह से कोई संबंध नहीं है. उन्होंने वीडियो लिंक के माध्यम से अदालत को बताया कि उनके पास कोई वकील नहीं है. उन्होंने अभी तक कोर्ट में याचिका दायर नहीं की है और उन्हें 21 जून को अदालत में फिर से पेश होना है.
अफजाल का नौ साल का बेटा इस हादसे में बच गया था, लेकिन उसे गंभीर चोटें आई थीं. ट्रूडो ने हाउस ऑफ कॉमन्स में एक भाषण में कहा था, "यह हत्या कोई दुर्घटना नहीं थी. यह हमारे एक समुदाय के दिल में नफरत से प्रेरित एक आतंकवादी हमला था."
एए/ (रॉयटर्स, एएफपी)
चीन को लेकर सख्त रुख अपनाते हुए नाटो नेताओं ने कहा है कि चीन की चुनौती वास्तविक है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी अपनी पहली नाटो बैठक में चीन को एक गंभीर खतरे के रूप में पेश किया.
शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ से यूरोप की रक्षा करने के लिए बनाए गए गठबंधन के रवैये में यह एक बड़ा बदलाव है, कि अब वह चीन को अपनी मुख्य चुनौती मान रहा है. शिखर वार्ता के बाद जारी किए गए विस्तृत बयान में चीन के रवैये की ही आलोचना की गई है. नाटो नेताओं ने कहा, "चीन की जगजाहिर महत्वाकांक्षाएं और दबंग रवैया नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था, और गठजोड़ से जुड़े क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए वास्वितक खतरा हैं.”
एक दिन पहले ही जी-7 ने भी अपने बयान में चीन पर हमला बोला था और मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर उसकी तीखी आलोनचा की थी. नाटो बैठक के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने यूरोपीय सहयोगियों को बताया कि एक-दूसरे की रक्षा का समझौता एक ‘पवित्र जिम्मेदारी' है. अमेरिका के रुख में भी यह बदलाव जैसा है क्योंकि पिछले राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का नाटो को लेकर काफी नकारात्मक रुख रहा था और उन्होंने यूरोपीय सहयोगियों पर अपनी रक्षा में बहुत कम योगदान करने का आरोप लगाया था.
ट्रंप-युग खत्म
इस स्थिति को बदलते हुए जो बाइडेन ने कहा, "मैं पूरे यूरोप को बताना चाहता हूं कि अमेरिका उनके लिए मौजूद है. नाटो हमारे लिए बेहद जरूरी है.” बाइडेन ने 11 सितंबर 2001 के आतंकी हमले की याद में नाटो मुख्यालय में बनाए गए स्मारक पर भी कुछ वक्त बिताया. बाद में मीडिया से बातचीत में बाइडे ने कहा कि चीन और रूस नाटो गठबंधन को बांटने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "रूस और चीन दोनों हमारी एकता को तोड़ना चाह रहे हैं.”
अमेरिकी राष्ट्रपति ने व्लादीमीर पुतिन को सख्त और होनहार बताया. उन्होंने कहा कि वह रूस से कोई विवाद नहीं चाहते लेकिन मॉस्को ने यदि ‘खतरनाक गतिवाधियां' जारी रखीं, तो नाटो जवाब देगा. उन्होंने रूस के साथ विवाद में यूक्रेन का साथ देने का वादा भी किया. हालांकि उन्होंने इस बात पर कोई ठोस जवाब नहीं दिया कि यूक्रेन को नाटो की सदस्यता मिल सकती है या नहीं.
बाइडेन ने कहा, "हम यूक्रेन को इतना मजबूत बनाना चाहते हैं कि वे अपनी भौतिक सुरक्षा कर सकें.” लेकिन ऐसा कैसे होगा, इस बारे में उन्होंने कोई विस्तृत जानकारी नहीं दी.
यूरोप का नपा-तुला रुख
जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल की यह सितंबर में पद छोड़ने से पहले आखिरी नाटो बैठक थी. उन्होंने राष्ट्रपति बाइडेन के आगमन को एक नए अध्याय की शुरुआत बताया. मैर्केल ने भी चीन के खतरे को लेकर गंभीरता जताई लेकिन उनके शब्द नपे-तुले थे. उन्होंने कहा, "अगर आप साइबर और अन्य मिले-जुले खतरों को देखें, और रूस और चीन के बीच चल रहे सहयोग को देखें तो आप चीन को नजरअंदाज नहीं कर सकते. लेकिन इसे जरूरत से ज्यादा अहमियत भी नहीं दी जानी चाहिए. हमें सही संतुलन खोजना होगा.”
नाटो के महासचिव येंस स्टोल्टेनबर्ग ने कहा कि बाल्टिक से अफ्रीका तक चीन की बढ़ती सैन्य मौजूदगी का अर्थ यह है कि परमाणु-शक्ति संपन्न नाटो को तैयार रहना होगा. उन्होंने कहा, "चीन हमारे करीब आता जा रहा है. हम उसे साइबरस्पेस में देख रहे हैं, अफ्रीका में देख रहे हैं, और हम देख रहे हैं कि वह अपने अहम बुनियादी ढांचे में निवेश कर रहा है.”
लेकिन ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन का रुख भी नपा-तुला था. उन्होंने कहा कि चीन के नुकसान भी हैं और फायदे भी. जॉनसन ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि कोई भी चीन के साथ एक नया शीत युद्ध चाहता है.”
वीकेएए (रॉयटर्स, डीपीए)
कोरोना महामारी के बाद की पत्रकारिता कैसी होगी? डॉयचे वेले की सालाना ग्लोबल मीडिया फोरम में जर्मन चासलर अंगेला मैर्केल ने कहा कि डिजीटल आजादी और नागरिक अधिकारों की सुरक्षा में संतुलन जरूरी है.
कोरोना महामारी के बाद की पत्रकारिता पर मंथन, लेकिन इस साल का ग्लोबल मीडिया फोरम खुद महामारी के साए में रहा. इसका आयोजन इस बार हाइब्रिड रूप में हुआ जिसमें कुछ लोगों ने सम्मेलन में सीधे हिस्सा ले रहे हैं तो ज्यादातर लोगों ने ऑनलाइन हिस्सेदारी कर रहे हैं. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने सम्मेलन की शुरुआत में भागीदारों को अपने शुभकामना संदेश में कहा, "लोकतांत्रिक समाजों में, जहां हम नए विकासों के लिए खुले हैं, हमें सावधानी से सोचना होगा कि हमारे लिए स्वतंत्रता के क्या मायने हैं, और हम स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों की रक्षा कैसे करेंगे. "
यूरोप में भी पत्रकारों को प्रताड़ना
डॉयचे वेले के महानिदेशक पेटर लिम्बुर्ग ने अपने शुरुआती भाषण में कहा कि यूरोप में भी पत्रकारिता दबाव में है. बेलारूस में अलेक्सांडर लुकाशेंको विचारों की खुली अभिव्यक्ति को दबा रहे हैं और लोगों को इसके लिए को सजा दी जा रही है. लिम्बुर्ग ने कहा, "जो बेलारूस में हो रहा है, वह यूरोप के लिए शर्म की बात है, और ये रूस की सरकार के भारी समर्थन के बिना संभव नहीं था. दूसरे सभी निरंकुश शासकों की तरह लुकाशेंको और पुतिन ऐसा मीडिया चाहते हैं जो हमेशा उनकी तारीफ करे." डॉयचे वेले के महानिदेशक ने कहा कि ये पत्रकारिता नहीं है, ये विशुद्ध प्रोपेगैंडा है.
पेटर लिम्बुर्ग ने इस बात की ओर ध्यान दिलाया कि बेलारूस में डॉयचे वेले के रिपोर्टर अलेक्सांडर बुराकोव को एक अदालती कार्रवाई पर रिपोर्ट करने के लिए 20 दिन कैद की सजा दी. उन्होंने कहा, "जब प्रेस स्वतंत्रता या विचारों की खुली अभिव्यक्ति का मामला हो तो हमें स्पष्ट रवैया अपनाना होगा, पूरी दुनिया में."
महामारी के काल में खुली सूचना
कोरोना महामारी ने मीडिया जगत को भी प्रभावित किया है और उसे बहुत हद तक बदल कर रख दिया है. इस साल होने वाले संसदीय चुनावों में चांसलर पद के उम्मीदवार और नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया प्रांत के मुख्यमंत्री आर्मिन लाशेट ने कोरोना महामारी की चर्चा करते हुए कहा, महामारी "जिसने हमें आश्चर्यचकित किया और साफ कर दिया कि दुनिया एक दूसरे पर कितना निर्भर है," गहराई से रिसर्च की हुई पत्रकारिता के महत्व को भी दिखाती है. उन्होंने कहा कि कोरोना जैसी महामारी से वैश्विक स्तर पर निपटना होगा.
आर्मिन लाशेट ने पत्रकारों के साथ और ज्यादा एकजुटता दिखाने की अपील की. उन्होंने कहा, "जब भी लोगों को अनिश्चितता का अहसास होता है, वे विश्वसनीय सूचना चाहते हैं. ऐसे पत्रकार हैं जो ऐसा करने के लिए सबकुछ जोखिम पर लगाते हैं, और उन्हें हमारे पूरे समर्थन की जरूरत है."
ग्रीन पार्टी की तरफ से चांसलर पद की उम्मीदवार अनालेना बेयरबॉक ने कहा कि "अभिव्यक्ति और प्रेस की स्वतंत्रता कोरोना महामारी से आने से पहले से ही दबाव" में है. लेकिन इस महामारी ने दुनिया भर में दमनकारी रुझानों को बढ़ा दिया है.
भविष्य का रास्ता रचनात्मक पत्रकारिता
ग्लोबल मीडिया फोरम में आए भागीदार भविष्य में पत्रकारिता के स्वरूप पर चर्चा कर रहे हैं. पहले दिन दिए गए भाषणों में एक बात उभर कर सामने आई कि भविष्य की चुनौती आसान नहीं होगी. हार्वर्ड के प्रोफेसर स्टीवन पिंकर ने जख्म पर अंगुली रखते हुए कहा कि आज की तेज डिजीटल दुनिया में अक्सर मीडिया कंपनियां दुर्घटनाओं और संकट जैसे ब्रेकिंग न्यूज के पीछे दौड़ रही है. इसका असर लोगों की मानसिकता पर पड़ रहा है.
उन्होंने इसकी मिसाल देते हुए कहा कि पिछले 200 सालों में दुनिया में गरीबी में भारी कमी आई है. एक समय 90 फीसदी लोग अत्यंत गरीबी की हालत में रहते थे तो आज उनकी तादाद सिर्फ 9 प्रतिशत रह गई है. भले ही गरीबों की 70 करोड़ की संख्या अभी भी कम नहीं है, लेकिन उनकी मदद के लिए ध्यान विकास की ओर ले जाना होगा. एक ऐसे समय में मीडिया कंपनियां संसाधनों के लिए एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर रही हैं, मीडिया में लोगों का भरोसा बनाना और उसे कायम रखना सबसे बड़ी चुनौती है.
पाकिस्तान के सिंध प्रांत में इस्तेमाल की गई सिरिंज के दोबारा इस्तेमाल से फैले एचआईवी संक्रमण की सबसे बड़ी कीमत बच्चे चुका रहे हैं.
पाकिस्तानी प्रांत सिंध के रत्तोडेरो के रहने वाले शाहजादो शार के पांच साल के बेटे को एचआईवी है. उन्हें साल 2019 में अपने बेटे को एचआईवी होने का पता चला था. इस वजह से शार को दवा और भोजन के बीच किसी एक को चुनने के लिए मजबूर होना पड़ता है. इससे पहले, एक डॉक्टर ने सिंध प्रांत के चिकित्सा इतिहास में सबसे बड़ा चिकित्सा घोटालों में से एक का पर्दाफाश किया था, जिसमें गंदी सुई का दोबारा इस्तेमाल हो रहा था. डॉक्टरों का कहना है कि इस्तेमाल की गई सुई के दोबारा इस्तेमाल से एचआईवी का प्रसार हुआ है.
प्रांतीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार दो वर्षों में कुल 1,500 से अधिक लोग एचआईवी से प्रभावित हो चुके हैं. तेजी से बढ़ते मामलों के बाद पाकिस्तान में सबसे बड़ा एचआईवी परीक्षण और उपचार केंद्र रत्तोडेरो में स्थापित किया गया था. केंद्र एचआईवी रोगियों को मुफ्त जीवन रक्षक दवाएं तो देता है, लेकिन पीड़ित परिवारों को अतिरिक्त खर्च खुद उठाना पड़ता है. शार अपने बेटे के लगातार बुखार, पेट और गुर्दे में दर्द के बारे में बताते हैं, "वे हमें निजी अस्पतालों में आगे के परीक्षण के लिए जाने के लिए कहते हैं, लेकिन हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं."
रत्तोडेरो से कुछ ही किलोमीटर दूर सुभानी शार गांव में करीब 30 बच्चे एचआईवी से संक्रमित हैं. पाकिस्तान में सार्वजनिक अस्पताल, जो ज्यादातर बड़े शहरों में स्थित हैं, आमतौर पर वहां भारी भीड़ होती है. ग्रामीण परिवारों को निजी अस्पतालों की ओर रुख करने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जबकि इनमें से अधिकांश लोग भारी शुल्क का भुगतान नहीं कर सकते हैं. ऐसे में कई लोग बिना लाइसेंस वाले डॉक्टरों से इलाज करवाते हैं.
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. फातिमा मीर कहती हैं कि अब तक एचआईवी से कम से कम 50 बच्चों की मौत हुई है, लेकिन उनका कहना है कि प्रभावित क्षेत्र में मौत कम है. कुपोषण भी बच्चों में मौत का एक प्रमुख कारण है. अधिकारियों का कहना है कि रत्तोडेरो के जाने-माने बाल रोग विशेषज्ञ मुजफ्फर घांग्रो इस महामारी का कारण है. आरोपी डॉक्टर को गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन वह हाल ही में जमानत पर बाहर आया है. हालांकि घांग्रो ने आरोपों से इनकार किया है.
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक फिलहाल एशिया में पाकिस्तान दूसरा ऐसा देश है जहां एचआईवी सबसे तेजी से फैल रहा है. (dw.com)
एए/सीके (एएफपी)
नेफ़्टाली बेनेट की नज़र इसराइल के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर लंबे समय से थी और अब जाकर उन्हें कामयाबी मिली है. नेफ़्टाली की यामिना पार्टी को पिछले आम चुनाव में मुट्ठी भर सीटों पर ही जीत मिली थी.
इसके साथ ही बिन्यामिन नेतन्याहू की इसराइली प्रधानमंत्री पद से विदाई हो गई है. वे पिछले 12 साल से इसराइल के प्रधानमंत्री थे. इसराइली संसद में नयी गठबंधन सरकार के पक्ष में बहुमत होने के चलते नेतन्याहू को अपना पद गंवाना पड़ा है.
हालांकि नेतन्याहू ने आख़िरी समय तक उम्मीद नहीं छोड़ी थी, इसका अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि विपक्षी गठबंधन को 60 प्रतिनिधियों का समर्थन मिला जबकि नेतन्याहू को 59 प्रतिनिधियों का.
नेतन्याहू भले सरकार में नहीं हो लेकिन वे दक्षिण पंथी लिकुड पार्टी के प्रमुख और इसराइली संसद में नेता, प्रतिपक्ष बने रहेंगे.
इसराइली संसद नेफ़्टाली बेनेट की पार्टी सात सांसदों के साथ पाँचवें नंबर पर है, लेकिन वर्तमान राजनीतिक स्थिति में वह किंगमेकर की भूमिका में थे और इसी वजह से वे अब उन्होंने प्रधानमंत्री पद की शपथ ले ली है. यामिना पार्टी के साथ ही तीन और पार्टियाँ हैं, जिनके सात-सात सांसद हैं.
नेफ़्टाली का समर्थन इसराइल में सरकार बनाने के लिए महत्वपूर्ण था, क्योंकि किसी भी खेमे के पास बहुमत नहीं है. ये पहले ही साफ़ हो गया था कि अगर कोई गठबंधन सरकार बनती है तो नेफ़्टाली के बिना नहीं बनेगी.
नेफ़्टाली को बिन्यामिन नेतन्याहू और विपक्षी नेता येर लेपिड के साथ प्रधानमंत्री का पद साझा करने का प्रस्ताव दिया गया था. आख़िरकार दक्षिणपंथी नेफ़्टाली ने मध्यमार्गी येर लेपिड के साथ जाने का फ़ैसला किया जबकि दोनों में विचारधारा के स्तर पर काफ़ी दूरियाँ हैं.
49 साल के नेफ़्टाली को एक समय तक नेतन्याहू का वफ़ादार माना जाता था. नेतन्याहू से अलग होने से पहले तक नेफ़्टाली 2006 से 2008 तक इसराइल के चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ रहे थे.
नेतन्याहू की लिकुड पार्टी छोड़ने के बाद नेफ़्टाली दक्षिणपंथी धार्मिक यहूदी होम पार्टी में चले गए थे. 2013 के आम चुनाव में नेफ़्टाली इसराइली संसद में चुनकर पहुँचे.
साल 2019 तक हर गठबंधन सरकार में नेफ़्टाली मंत्री बने. साल 2019 में नेफ़्टाली के नए दक्षिणपंथी गठबंधन को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली. 11 महीने बाद फिर चुनाव हुए और नेफ़्टाली यामिना पार्टी के प्रमुख के तौर पर संसद में चुनकर पहुँचे.
नेफ़्टाली को नेतन्याहू से भी ज़्यादा अति-राष्ट्रवादी और दक्षिणपंथी माना जाता है. नेफ़्टाली इसराइल की यहूदी राष्ट्र के तौर पर वकालत करते हैं. इसके साथ ही वे वेस्ट बैंक, पूर्वी यरुशलम और सीरियाई गोलान हाइट्स को भी यहूदी इतिहास का हिस्सा बताते हैं.
इन इलाक़ों पर 1967 के मध्य-पूर्व युद्ध के बाद से इसराइल का नियंत्रण है. नेफ़्टाली वेस्ट बैंक में यहूदियों को बसाने का समर्थन करते हैं और इसे लेकर वो काफ़ी आक्रामक रहे हैं.
हालाँकि वे ग़ज़ा पर कोई दावा नहीं करते हैं. 2005 में इसराइल ने यहाँ से सैनिकों को हटा लिया था. वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम की 140 बस्तियों में 6 लाख से ज़्यादा यहूदी रहते हैं. इन बस्तियों को क़रीब-क़रीब पूरा अंतरराष्ट्रीय समुदाय अवैध मानता है, जबकि इसराइल इसे नकारता है.
फ़लस्तीनियों और इसराइल के बीच बस्तियों का निर्धारण सबसे विवादित मुद्दा है. फ़लस्तीनी इन बस्तियों से यहूदियों को हटाने की मांग कर रहे हैं और वे वेस्ट बैंक, ग़ज़ा के साथ एक स्वतंत्र मुल्क चाहते हैं, जिसकी राजधानी पूर्वी यरुशलम हो.
नेफ़्टाली इसे सिरे से ख़ारिज करते हैं और वे चाहते हैं कि यहूदियों की बस्तियाँ तेज़ी से बसाई जाएँ. नेफ़्टाली को लगता है कि यहूदियों को बसाने के मुद्दे पर नेतन्याहू की नीति भरोसे लायक़ नहीं है.
नेफ़्टाली फ़र्राटेदार अंग्रेज़ी बोलते हैं और अक्सर विदेशी टीवी नेटवर्क पर दिखते हैं और इसराइली कार्रवाइयों का बचाव करते हैं. घरेलू टीवी बहसों में नेफ़्टाली बिना लाग लपेट के और आक्रामक होकर बोलते हैं.
एक बार एक अरब-इसराइली सांसद ने कहा था कि इसराइल को वेस्ट बैंक में यहूदी बस्तियाँ बसाने का कोई अधिकार नहीं है. इसे धिक्कारते हुए नेफ़्टाली ने कहा था- जब आप पेड़ पर झूला झूल रहे थे, तभी से यहाँ एक यहूदी स्टेट है.
नेफ़्टाली इसराइल से लगे फ़लस्तीनियों के लिए एक मुल्क की मांग को ख़ारिज करते हैं. दूसरी तरफ़ अंतरराष्ट्रीय समुदाय दो-राष्ट्र सिद्धांत को इसराइल और फ़लस्तीनियों की समस्या के समाधान के रूप में देखता है.
दो-राष्ट्र सिद्धांत की वकालत अमेरिका भी करता रहा है और राष्ट्रपति जो बाइडन भी इससे सहमत दिखते हैं.
फ़रवरी 2021 में नेफ़्टाली ने एक इंटरव्यू में कहा था, ''जब तक मैं किसी भी रूप में सत्ता में हूँ, तब तक एक सेंटीमीटर ज़मीन नहीं मिलेगी.'' वेस्ट बैंक में नेफ़्टाली इसराइल की पकड़ और मज़बूत करने की वकालत करते हैं. नेफ़्टाली वेस्ट बैंक के इलाक़े को हिब्रू में जुडिया और सामरिया कहते हैं.
नेफ़्टाली फ़लस्तीनी चरमपंथियों से निपटने के लिए और सख़्त क़दम उठाने की बात करते हैं. वह मौत की सज़ा देने की वकालत करते हैं. यहूदियों के जनसंहार में दोषी ठहराए गए एडॉल्फ आइशमन को 1961 में इसराइल में आख़िरी बार फाँसी दी गई थी. उसके बाद से किसी को भी सज़ा-ए-मौत नहीं मिली है.
नेफ़्टाली ने ग़ज़ा के प्रशासक हमास के साथ 2018 में हुई युद्धविराम संधि का विरोध किया था. उन्होंने पिछले महीने मई में 11 दिनों तक हमास के साथ चले हिंसक संघर्ष में मारे गए फ़लस्तीनियों के लिए भी उसे ही ज़िम्मेदार ठहराया है.
नेफ़्टाली की राजनीति में यहूदी गर्व और राष्ट्रवाद सबसे अहम है. वे अपने सिर पर किप्पाह पहनते हैं. इससे धार्मिक यहूदी अपना सिर ढँकते हैं.
2014 में पार्टी के कैंपेन में नेफ़्टाली ने न्यूयॉर्क टाइम्स और लेफ़्ट-विंग अख़बार हारेट्ज़ की नक़ल करते हुए सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट किया था. दोनों अख़बारों ने इसराइल की कार्रवाइयों की आलोचना की थी.
इस वीडियो में नेफ़्टाली न्यूयॉर्क टाइम्स और हारेट्ज़ का मज़ाक उड़ाते हुए लगातार सॉरी-सॉरी बोलते दिखे थे. वीडियो के अंत में नेफ़्टाली घोषणा करते हैं कि अब माफ़ी मांगना बंद कर देंगे.
नेफ़्टाली की पृष्ठभूमि राजनीति में आने से पहले सेना और कारोबारी की थी. वे इसराइली विशेष बलों की दो ब्रांचों में सेना में रहने के दौरान सेवा दे चुके हैं. सेना में सेवा देने के बाद उन्होंने कई हाई-टेक कंपनियों को खड़ा किया और इससे उन्होंने बेशुमार पैसे कमाए.
2014 में नेफ़्टाली ने एक इंटरव्यू में अपनी संपत्ति के बारे में कहा था, ''न मैं 17 स्टिक्स खाता हूँ और न ही प्राइवेट प्लेन है. बस मेरी इतनी हैसियत है कि जो करना चाहता हूँ उसे कर लेता हूँ.'' (bbc.com)
इस्राएल की संसद ने प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू के 12 साल के शासन को समाप्त करते हुए आठ पार्टियों के गठबंधन सरकार को मंजूरी दे दी है. सरकार की कमान दक्षिणपंथी नेता नफताली बेनेट संभालेंगे.
इस्राएल के सांसदों ने रविवार को गठबंधन सरकार में विश्वास मत को मंजूरी दे दी. और इसी के साथ प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू का युग समाप्त हो गया. गठबंधन सरकार में पार्टियों के बीच मजबूत वैचारिक मतभेद हैं, लेकिन वे नेतन्याहू को बाहर करने के लिए सहमत हुए.
120 सदस्यीय इस्राएली संसद में नफताली बेनेट के पक्ष में 60 सांसदों ने वोट दिया जबकि 59 सांसदों ने इसके विरोध में वोट डाला. एक सदस्य अनुपस्थित था.
मतदान के तुरंत बाद, नफताली बेनेट ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली और वे इस्राएल के पहले रूढ़िवादी यहूदी नेता के रूप में प्रधानमंत्री बने हैं. गठबंधन सरकार के समझौते के तहत, दक्षिणपंथी यामिना पार्टी के नफताली बेनेट 2023 तक प्रधानमंत्री बने रहेंगे और येश एतिड पार्टी के नेता यश अतीद के नेता याइर लैपिड को दो और वर्षों के लिए सत्ता सौंप दी जाएगी.
बेनेट का कैबिनेट को पहला संबोधन
बेनेट ने पारंपरिक यहूदी तरीके से नए मंत्रिमंडल की पहली बैठक शुरू की. उन्होंने कहा कि देश "एक नई दिशा में आगे बढ़ रहा है. इस्राएल के नागरिक हमारी ओर देख रहे हैं और उनकी उम्मीदों पर खरा उतरना हमारी जिम्मेदारी है. इस जिम्मेदारी को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए हमें यह ध्यान रखना होगा कि हम सभी को अपने-अपने वैचारिक मुद्दों के प्रति सहिष्णु होना होगा."
याइर लैपिड ने अपने छोटे संबोधन में कहा, "यह सरकार दोस्ती और विश्वास पर आधारित है और हमें इसे बनाए रखना चाहिए."
गठबंधन सरकार में कौन शामिल है?
गठबंधन सरकार अलग-अलग राजनीतिक विचारधाराओं वाली आठ पार्टियों से बनी है, जिनमें दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी यामिना पार्टी से लेकर अरब इस्लामिक कंजर्वेटिव राम पार्टी तक शामिल हैं. 120 सदस्यीय संसद में गठबंधन दलों के कुल 61 सदस्य हैं. गठबंधन सरकार में कुल तीन दक्षिणपंथी, दो मध्यमार्गी, दो वामपंथी और एक अरब दल शामिल हैं. यह पहली बार है जब कोई अरब पार्टी इस्राएल के सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल हुई है. यामिना पार्टी के नेता बेनेट ने कहा, "आज ढाई साल के राजनीतिक संकट का अंत हो गया."
इस्राएली संसद में इस्लामिक राम पार्टी के प्रमुख मंसूर अब्बास ने कहा कि उनकी पार्टी अपने सहयोगियों के लिए और "देश के सभी नागरिकों, यहूदियों और अरबों के लिए बेहतर, नए, सैद्धांतिक संबंधों के लिए बड़ा बलिदान कर रही है."
विश्व नेताओं की प्रतिक्रिया
दुनिया के कई नेताओं ने इस्राएल को नया प्रधानमंत्री मिलने पर बधाई दी है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एक बयान में कहा, "मैं प्रधानमंत्री नफताली बेनेट, वैकल्पिक प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री याइर लैपिड और नई इस्राएली कैबिनेट के सभी सदस्यों को बधाई देता हूं." उन्होंने कहा, "मैं संबंधों को मजबूत करने के लिए प्रधानमंत्री बेनेट के साथ काम करना चाहता हूं. अमेरिका के लिए इस्राएल से बेहतर कोई दोस्त नहीं हो सकता है."
जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने एक बयान में कहा, "जर्मनी और इस्राएल के बीच एक अद्वितीय मैत्रीपूर्ण संबंध है और हम इसे और मजबूत करना चाहते हैं. मैं आपके साथ करीब से काम करना चाहती हूं." वहीं यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल ने भी बेनेट को बधाई दी और क्षेत्र में सामान्य समृद्धि और शांति और स्थिरता के लिए यूरोपीय संघ-इस्राएल संबंधों को मजबूत करने का आह्वान किया.
नए प्रधानमंत्री बेनेट ने हाई टेक सेक्टर में हजारों करोड़ कमाए हैं. वे तेल अवीव के उप नगर में रहते हैं और नेतन्याहू के पूर्व सहयोगी हैं. उनकी पार्टी ने मार्च में हुए चुनाव में केवल सात सीटें जीती थीं. उनकी धार्मिक राष्ट्रवादी पार्टी के सांसद ने गठबंधन के विरोध में उनका साथ छोड़ दिया लेकिन नेतन्याहू को पद से हटाने के लिए बेनेट अडिग रहे और उन्होंने आखिरकार सत्ता हासिल कर ही ली.
एए/वीके (एपी, डीपीए, एएफपी, रॉयटर्स)
दुनिया के सबसे धनी देशों में से सात ने दुनिया के गरीब देशों को कोविड वैक्सीन की एक अरब खुराक देने का फैसला तो किया है, साथ ही चीन में कोरोना वायरस की उत्पत्ति की गहन जांच की भी मांग की है.
इंग्लैंड में हुई एक जी-7 की सालाना बैठक में मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर चीन की निंदा की गई. शिनजियांग प्रांत में उइगुर मुसलमानों की प्रताड़ना के अलावा जी-7 में हांग कांग की स्वायत्तता और चीन में कोरोना वायरस की उत्पत्ति की जांच का मुद्दा भी गर्माया रहा. जी-7 के नेताओं ने ताइवान जैसे कई ऐसे मुद्दों पर एक साझा तीखा बयान जारी किया, जो चीन के लिए काफी संवेदनशील हैं.
चीन को चेतावनी
चीन को पश्चिमी देश बड़ी चुनौती मानते हैं और पिछले दशकों में उसका एक ताकत के रूप में उभरना अमेरिका सहित बाकी धनी देशों को विचलित करता रहा है. यहां तक कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने चीन को अपना मुख्य प्रतिद्वन्द्वी बताया है और उसके 'आर्थिक दुर्व्यवहार' व मानवाधिकार उल्लंघनों को आड़े हाथों लेने का संकल्प लिया है.
जी-7 के बयान में भी यही बात केंद्र में रही. उन्होंने कहा, "हम अपने मूल्यों का प्रसार करेंगे. इसमें चीन को मानवाधिकारों और मूलभूत स्वतंत्रताओँ की सम्मान करने के लिए कहना भी शामिल है, खासकर शिनजियांग प्रांत के संबंध में. और, हांग कांग को अधिकार, स्वतंत्रता और उच्च स्तर की स्वयत्तता देना भी जो चीन व ब्रिटेन की साझा घोषणा में तय की गई है."
साथ ही, जी-7 देशों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कोविड-19 की चीन में उत्पत्ति की दूसरे दौर की विशेषज्ञों द्वारा पारदर्शी जांच की भी मांग की. जनवरी में हुई पहले दौर की जांच के बारे में बाइडेन ने कहा कि चीन की प्रयोगशालाओं में जाने की इजाजत नहीं दी गई थी. उन्हेंने कहा कि अभी भी यह स्पष्ट नहीं है कि "कोविड-19 किसी चमगादड़ के कारण फैला, या किसी प्रयोगशाला में किसी प्रयोग में हुई गड़बड़ी के कारण."
लोकतंत्र बनाम तानाशाही
हालांकि, चीन को इस आलोचना का भान था, इसलिए जी-7 का बयान आने से पहले ही उसने कहा था कि वे दिन अब बीत चुके हैं जब कुछ देशों के एक छोटे से समूह में दुनिया की किस्मत के फैसले लिए जाते थे. चीन कहता रहा है कि बड़ी शक्तियां अब भी पुराने पड़ चुकी उसी साम्राज्यवादी मानसिकता से जकड़ी हुई हैं.
उधर चीन पर निशाना साधते हुए बाइडेन ने कहा कि लोकतांत्रिक सरकारें इस वक्त एकाधिकारवादी सरकारों के साथ मुकाबले में हैं और जी-7 को एक विकल्प बनना होगा. उन्होंने कहा, "हमारा मुकाबला चल रहा है, चीन के साथ नहीं, तानाशाहों के साथ, तानाशाही सरकारों के साथ. और तेजी से बदल रही 21वीं सदी में लोकतांत्रिक सरकारें उनका मुकाबला कर पाएंगी या नहीं... जैसा कि मैंने (चीनी राष्ट्रपति) शी जिनपिंग से कहा था, मैं विवाद नहीं चाहता. जहां हम सहयोग करते हैं, करेंगे. लेकिन, जहां हम असहमत हैं, वो मैं साफ-साफ कहूंगा."
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों और मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि चीन ने हाल के सालों में दस लाख से ज्यादा लोगों को उत्तर पश्चिमी प्रांत शिनजियांग में शिविरों में हिरासत में डाला है. चीन इन आरोपों का खंडन करता है.
महामारी के दौर में
शिखर वार्ता के आखरी दिन जी-7 देशों ने कोरोना वायरस से लड़ने का संकल्प लिया. गरीब देशों को अगले एक साल में एक अरब वैक्सीन की खुराक देने का वादा किया गया है. साथ ही, महामारी के दौर में ओलंपिक और पैरालंपिक प्रतियोगिताएं सफलतापूर्वक कराने में भी मदद का वादा किया गया. ओलंपिक इस साल जुलाई से जापान में होने हैं लेकिन बहुत से संगठन इन खेलों का विरोध कर रहे हैं क्योंकि इन्हें महामारी के लिहाज से असुरक्षित माना जा रहा है.
इस बैठक में जलवायु परिवर्तन की भी चर्चा हुई और इसे वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए खतरा माना गया. जी-7 देशों ने 2025 तक जीवाश्म ईंधनों से सब्सिडी खत्म करने का संकल्प दोहराया और इस दशक में महासागरों और जमीन की सुरक्षा की बात कही. जी-7 ने गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए सौ अरब डॉलर सालाना उपलब्ध कराने का भी वादा किया गया.
जी-7 वैश्विक न्यूनतम कॉरपोरेट कर का समर्थन किया गया, जिस पर हाल ही में वित्त मंत्रियों की बैठक में फैसला किया गया था. महामारी के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था की मदद के लिए 12 खरब डॉलर उपलब्ध कराने की योजना पर भी चर्चा हुई.
संकल्पों की आलोचना
स्वास्थ्य और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने जी-7 के संकल्पों की आलोचना की है. ऑक्सफैम में असमानता नीति के अध्यक्ष मैक्स लॉसन ने कहा, "जी-7 के नाम पर बट्टा लग गया है. जबकि दुनिया सदी के सबसे बड़े स्वाथ्य आपातकाल से गुजर रहे हैं और जलवायु परिवर्तन हमारे ग्रह को बर्बाद कर रहा है, तब वे समय की चुनौतियों से निपटने में नाकाम रहे."
कार्यकर्ताओं का कहना है कि जी-7 देशों ने यह नहीं बताया कि 2030 तक विश्व की 30 फीसदी भूमि और जल को बचाने के लिए जो ‘प्रकृति समझौता' हुआ है, उसके लिए धन कैसे दिया जाएगा. उन्होंने गरीब देशों को को एक अरब खुराक उपलब्ध कराने के फैसले की भी यह कहते हुए आलोचना की है कि ये नाकाफी हैं क्योंकि दुनिया को 11 अरब खुराक चाहिए.
ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन ने कहा कि टीकाकरण के लिए एक ज्यादा महत्वाकांक्षी योजना न बना पाना एक "अक्षम्य नैतिक विफलता" है.
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
बर्लिन में राजनेताओं और विशेषज्ञों की बैठक “अफ्रीका राउंडटेबल” हुई जिसमें संबंधों को सुधारने के अलावा जलवायु परिवर्तन और महामारी की वजह से आए आर्थिक संकट को सुधारने पर भी चर्चा हुई.
डॉयचे वैलर पर क्रिस्टीना क्रिपफाल की रिपोर्ट
जर्मनी के राष्ट्रपति फ्रैंक वाल्टर स्टाइनमायर ने बुधवार को शुरू हुए "अफ्रीका राउंडटेबल” के अपने शुरुआती उद्बोधन में जब यूरोप और अफ्रीका के बीच महान साझेदारी की बात कही तो एक तरह से उन्होंने इस बैठक के उद्देश्य को स्पष्ट कर दिया. ग्लोबल पर्स्पेक्टिव इनिशियेटिव यानी जीपीआई की ओर से आयोजित एक ऑनलाइन सम्मेलन में उन्होंने कहा, "हमें, अफ्रीका और यूरोप को, बड़ी चुनौतियों से निबटने के लिए एक दूसरे के सहयोग की जरूरत है और हम इस प्रक्रिया में एक दूसरे से काफी कुछ सीख सकते हैं.”
स्टाइनमायर ने कहा कि कोरोना महामारी से लड़ने, जलवायु परिवर्तन, प्रवासन, डिजिटलीकरण, चरमपंथ और वैश्वीकरण के मामले में आपसी सहयोग बहुत महत्वपूर्ण था. उन्होंने कोरोना वायरस के खिलाफ वैश्विक स्तर पर टीकाकरण अभियान चलाने में पश्चिमी देशों के योगदान की जरूरत पर जोर दिया. नाइजीरिया के अर्थशास्त्री ओबी इजेवेस्ली ने कहा कि कोविड महामारी ने दुनिया को एक सीख दी है "स्वास्थ्य ही अर्थव्यवस्था है और अर्थव्यवस्था ही स्वास्थ्य है.” और बहस में शामिल सभी वक्ता उनकी इस बात पर पूरी तरह से सहमत थे.
नगोजी ओकोंजो इविएला ने फरवरी में ही इस बात की चेतावनी दे दी थी जब उन्होंने विश्व व्यापार संगठन के महानिदेशक का पदभार संभाला था. उन्होंने कहा था कि महामारी के बाद सब कुछ पहले जैसा नहीं रह पाएगा. ऑनलाइन परिचर्चा में उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वो चाहती हैं कि आधारभूत चिकित्सा उत्पादों, वैक्सीन्स और कुछ अन्य ज़रूरी चीजों पर व्यापारिक व्यवधानों को खत्म किया जाना चाहिए.
अफ्रीका के लिए न्याय
सेनेगल के राष्ट्रपति मैकी साल इस बात से सहमत थे कि महामारी के खात्मे के लिए वैश्विक स्तर पर टीकाकरण बहुत महत्वपूर्ण था और वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्था को फिर से शुरू करने के लिए भी यह बहुत जरूरी है. लेकिन अफ्रीका की समस्या सिर्फ इतने से ही हल नहीं होने वाली हैं. साल का कहना था, "हमें मजबूत और नए तरीकों से अर्थव्यवस्था की तेजी के लिए काम करना होगा.”
मैकी साल का सुझाव था कि इन तरीकों में कर्ज सीमा नियमों में लचीलापन और विकासशील देशों के लिए बजट घाटे की सीमा शामिल है. अन्य सुझावों में जरूरी बुनियादी ढांचे में भारी निवेश और अफ्रीका में निवेश जोखिम को और पारदर्शी बनाने के तरीकों का आकलन करना शामिल है. कई प्रतिभागियों ने इस बात पर जोर दिया कि व्यापार निवेश के उच्च जोखिम ने इस महाद्वीप में अत्यावश्यक निवेश प्रक्रिया को बाधित किया है.
कई प्रतिभागियों का कहना था कि अफ्रीकी लोगों के लिए यह अत्यंत जरूरी है, हालांकि यूरोप और दूसरे अन्य देशों की तुलना में ये देश कोविड-19 से उतनी बुरी तरह से नहीं प्रभावित थे. परिचर्चा में शामिल लोगों ने जिस दूसरे मुद्दे पर सबसे ज्यादा चिंता जताई, वो था जलवायु परिवर्तन का स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर खतरा.
यूरोप का उत्तरदायित्व
अर्थशास्त्री इजेवेस्ली ने अफ्रीका में अर्थव्वयस्था की वृद्धि के महत्व को स्वीकार किया, खासकर अमीर देशों के साथ बराबर की साझेदारी को लेकर. लेकिन इसके लिए सबसे जरूरी यह है कि अफ्रीका को अपने विकास की जिम्मेदारी खुद लेनी होगी. उनका कहना था कि ऐसा कोई रास्ता नहीं है कि जर्मनी या फिर कोई अन्य यूरोपीय देश विकास को उड़ाकर अफ्रीका तक पहुंचा देगा.
बराबर की साझीदारी के लिए यूरोप को अपने विशेष उत्तरदायित्वों को समझना होगा. मसलन, जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में. यूरोपीय संसद में ग्रीन्स/ ईएफए समूह की प्रमुख स्का केलर ने इस बात पर जोर दिया कि जलवायु संकट में अफ्रीकी महाद्वीप का योगदान बहुत थोड़ा है, खासकर जब हम यूरोपियन यूनियन के देशों से तुलना करते हैं जो कि ऐतिहासिक रूप से ग्रीन हाउस कैसों का उत्सर्जन कर रहे हैं. उनके मुताबिक, "जलवायु परिवर्तन से निबटने के लिए यूरोपीय संघ को और मेहनत करनी होगी ताकि इस मामले में वैश्विक सहयोग को बढ़ाया जा सके.”
यूरोपीय आयोग के एग्जीक्यूटिव वाइस प्रेसीडेंट फ्रांस टिमरमैन्स का कहना था कि अफ्रीका के लिए ऊर्जा के नवीकृत स्रोतों के जरिए बड़े आर्थिक अवसर पैदा किए जा सकते हैं. उनके एक सवाल के जवाब में केलर का कहना था, "यह महत्वपूर्ण है कि हमें ऊर्जा के नवीकृत स्रोतों के साथ वह नहीं करना है जो हमने पहले ऊर्जा के खनिज स्रोतों के साथ किया जिनका उत्पादन तो बड़े स्तर पर अफ्रीकी महाद्वीप में हुआ और फिर उन्हें यूरोप भेज दिया गया.”
स्वच्छ ऊर्जा के बिना विकास नहीं
सिएरा लियोन के कृषि अर्थशास्त्री कांडे युमकेला का कहना था कि अफ्रीकी महाद्वीप के सभी लोगों के लिए स्वच्छ और पर्याप्त ऊर्जा के महत्व पर जोर नहीं दिया जा सकता. उनका कहना था, "ग्रामीण समुदाय के लोगों की आमदनी बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन के एवज में लंबी अवधि का आर्थिक सहयोग देना बहुत ज़रूरी है. आप विश्वसनीय ऊर्जा के बिना गंभीर तरीके से हिफाजत नहीं कर सकते. बिना ऊर्जा के स्रोतों के आपके पास कोविड-19 से लड़ने के लिए ऑक्सीजन नहीं होगी. महिलाओं को प्रसव के दौरान जब रक्तस्राव होता है तो बिना रक्त का भंडारण किए आप मातृ मृत्युदर को कम नहीं कर सकते.”
युमकेला के मुताबिक, सिर्फ अशुद्ध ऊर्जा स्रोतों से खाना बनाने की वजह से हर साल दस लाख लोगों की जान जा रही है, जिनमें साठ फीसद महिलाएं और बच्चे हैं. वह कहती हैं, "सामाजिक सुरक्षा के लिए ऊर्जा और स्वास्थ्य दोनों का साथ होना बहुत जरूरी है.” (dw.com)
यरुशलम, 14 जून | दक्षिणपंथी यामिना (यूनाइटेड राइट) पार्टी के नेता नफ्ताली बेनेट ने रविवार रात को इजरायल के नए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। इसी के साथ बेंजामिन नेतन्याहू का बीते 12 साल से चला आ रहा शासन समाप्त हो गया। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, नई गठबंधन सरकार, जिसका नेतृत्व बेनेट और मध्यमार्गी येश अतीद (फ्यूचर) पार्टी के नेता यायर लैपिड कर रहे हैं को संसद या केसेट द्वारा विश्वास मत में अनुमोदित किया गया था।
इससे पहले संसद में हुए विश्वास मत में 120 सदस्यीय सदन के 60 सांसदों ने नई सरकार के पक्ष में मतदान किया जबकि 59 ने इसके खिलाफ मतदान किया।
संसद सत्र के टीवी फुटेज में बेनेट और लैपिड को संसद में गठबंधन सीटों पर अपनी नई सीटें लेते हुए दिखाया गया जबकि इजरायल में सबसे लंबे समय तक काम करने वाले पीएम नेतन्याहू विपक्ष की पिछली सीटों पर चले गए।
नई सरकार के तहत 27 नए मंत्रियों को भी शपथ दिलाई गई।
बेनेट और लैपिड दो साल के अंतराल पर प्रधानमंत्री बनेंगे। बेनेट पहले प्रधानमंत्री बने हैं और इस आधार पर 2023 में लैपिड पीएम बनेंगे। अभी फिलबाल लैपिड इजरायल के वैकल्पिक प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के रूप में काम करेंगे।(आईएएनएस)
-ज़ुबैर अहमद
अमेरिकी संसद में डेमोक्रैट और रिपब्लिकन, दोनों राजनीतिक पार्टियों के सांसदों ने पाँच विधेयक पेश किए हैं. माना जा रहा है कि इन विधेयकों को मंज़ूरी मिलने पर बड़ी टेक कंपनियों की कथित मनमानी पर रोक लग सकेगी.
अमेज़न, गूगल, ऐपल और फ़ेसबुक जैसी कंपनियों की 16 महीने लंबी पड़ताल के बाद अमेरिकी संसद में पाँच विधेयकों का मसौदा पेश किया गया है.
ये पाँच विधेयक इन ग्लोबल टेक कंपनियों की ताक़त को सीमित करने के उद्देश्य से लाए गए हैं.
इन विधेयकों का ताल्लुक डेटा मैनेजमेंट, प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने और ख़ुद से छोटी कंपनियों को ख़रीदने से है.
विधेयक को तैयार करने वाली समिति में रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक, दोनों पार्टियों के सांसद शामिल हैं. अभी इन विधेयकों पर सहमति बनने और इनके कानून का रूप में लेने में काफ़ी समय लग सकता है.
मनमानी और जुर्माना
सोमवार को फ़्रांस ने गूगल पर बड़ा जुर्माना लगाया जिससे एक बार फिर टेक्नोलॉजी की वैश्विक कंपनियों की नीतियों पर सवाल उठने लगे हैं.
दुनिया में सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाले इंटरनेट सर्च इंजन गूगल के ख़िलाफ़ विश्व भर में सरकारें शिकंजा कसती जा रही हैं. फ़ेसबुक, ऐपल और अमेज़न को भी कई सरकारों के मुक़दमे या कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है.
पिछले साल अक्टूबर में अमेरिका के जस्टिस डिपार्टमेंट और इसके कुछ राज्यों ने गूगल के ख़िलाफ़ मोनोपोली या एकाधिकार जमाने का इल्ज़ाम लगाते हुए शिकायत दर्ज की. गूगल के ख़िलाफ़ 'एंटी ट्रस्ट' कानूनों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया है.
दिसंबर, 2020 में अमेरिका में 46 राज्यों सहित केंद्र सरकार ने एकाधिकार या प्रतिस्पर्धा-विरोधी तौर-तरीके अपनाने के लिए फेसबुक पर मुकदमा दायर किया था. फेसबुक को पहले भी अदालत में घसीटा गया है लेकिन यह इसके ख़िलाफ़ अब तक का सबसे गंभीर मुक़दमा माना जा रहा है.
गूगल के ख़िलाफ़ पिछले साल भारत में भी इसी तरह की शिकायत दर्ज की गई है. दो वकीलों की शिकायत पर भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) इस बात की जांच कर रहा है जिसमें दावा किया गया है कि गूगल ने स्मार्ट टेलीविजन ऑपरेटिंग सिस्टम में अपनी प्रमुख बाजार स्थिति का दुरुपयोग किया है.
इस साल फ़रवरी में ऑस्ट्रेलिया ने गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियों को देश की मीडिया कंपनियों के कंटेंट का इस्तेमाल करने के बदले पैसे देने के लिए क़ानूनी तौर पर बाध्य किया.
सुप्रीम कोर्ट के वकील और साइबर क़ानून के जानकार विराग गुप्ता बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, "गूगल, ऐपल और फेसबुक जैसे टेक जाइंट्स ने अनेक ग्रुप कंपनियों से जमा किए गए भारी-भरकम डेटा के माध्यम से ई-कॉमर्स, मीडिया, विज्ञापन, रिटेल समेत अर्थव्यवस्था के अधिकांश क्षेत्रों पर अपना एकाधिकार हासिल कर लिया है. अमेरिका में एफटीसी और ऑस्ट्रेलिया, यूरोप और भारत में संबंधित प्राधिकरणों की रिपोर्टों से इन कंपनियों के एकाधिकारवादी रवैये की पुष्टि होती है."
अमेरिका में रहने वाली टेक्नोलॉजी क्षेत्र की वकील मिशी चौधरी ने बीबीसी से कहा, "हमने बिग टेक कंपनियों को बिना किसी जांच के लंबे समय तक चलने देने के प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रभावों को देखा है. घटती प्राइवेसी, अधिक विज्ञापन, खराब प्रोडक्ट इसका परिणाम हैं."
भारत और अमेरिका दोनों देशों में सक्रिय मिशी चौधरी कहती हैं कि ऐपल के उपकरण और इकोसिस्टम भारी कीमत पर आते हैं और "गूगल और फेसबुक ने अपने यूजर्स को ही एक प्रोडक्ट बना दिया है."
इसी हफ़्ते फ्रांस ने गूगल पर करोड़ों का जुर्माना लगाया है जिसे गूगल ने स्वीकार कर लिया है. गूगल ने फ्रांस के एंटीट्रस्ट वॉचडॉग के साथ एक अभूतपूर्व समझौते के तहत व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली अपनी कुछ ऑनलाइन विज्ञापन सेवाओं में बदलाव करने पर सहमति व्यक्त की है.
प्राधिकरण ने कैलिफ़ोर्निया स्थित कंपनी पर 26 करोड़ डॉलर से अधिक का जुर्माना भी लगाया, जब एक जांच में पाया गया कि इसने ऑनलाइन जटिल विज्ञापन व्यवसाय में अपनी मार्केट शक्ति का दुरुपयोग किया, जहां बड़े प्रकाशक गूगल के मुताबिक चलने को मजबूर हो गए हैं.
मिशी चौधरी इस पर कहती हैं, "फ्रांसीसी अधिकारियों और गूगल के बीच समझौता इसके एक पहलू को उजागर करता है. गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियों के लेन-देन की गोपनीयता, विज्ञापन की कीमतों, इन्वेंट्री और उनके पास जो डेटा है जिसका दूसरे मुक़ाबला नहीं कर सकते. निश्चित रूप से कई अन्य बातों की तरह यह एक गंभीर चिंता का विषय है".
इस साल गूगल को लगने वाला ये दूसरा झटका था. पहला झटका ऑस्ट्रेलिया ने फ़रवरी में दिया था जब उसने एक नया क़ानून पारित किया जिसके तहत गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियों को इस बात के लिए बाध्य किया कि वो अपने प्लेटफार्म पर मीडिया कंपनियों का कंटेंट इस्तेमाल करने के लिए पैसे दें.
पहले तो फेसबुक ने ऑस्ट्रेलिया में न्यूज़ सेवा बंद कर दी और गूगल ने देश छोड़ने की धमकी दी लेकिन अंत में उन्हें क़ानून का पालन करने के लिए बाध्य होना पड़ा और दोनों ने ऑस्ट्रेलिया की मीडिया को पैसे देने पर अलग-अलग समझौते किए.
गूगल से पहले का सर्च सिस्टम
तीस साल पहले किसे मालूम था कि 'खोज' या 'सर्च' खरबों डॉलर का एक वैश्विक व्यापार बन जाएगा.
गूगल के वैश्विक व्यापार के आज के सच की उस समय भी भविष्यवाणी कोई नहीं कर सकता था जब लोग सुस्त रफ़्तार इंटरनेट पर 'नेटस्केप' और 'एओएल' जैसे ढीले-ढाले सर्च इंजन का इस्तेमाल कर रहे थे.
सितंबर 1998 में लैरी पेज और सर्गेई ब्रिन ने एक बहुत बड़े बाज़ार के सपने को साकार करने के लिए गूगल की शुरूआत की और कुछ सालों में गूगल के बिना इंटरनेट की कल्पना मुश्किल हो गई. इसके बाद गूगल ने सर्च से जुड़े हर क्षेत्र में पैर पसारे और कंपनी जल्दी ही भारी मुनाफ़ा कमाने लगी. उसने सर्च के कारोबार पर एकाधिकार कर लिया.
नवंबर 2006 में गूगल ने सबसे बड़ी वीडियो साइट यूट्यूब को ख़रीद लिया. कंपनी ने न सिर्फ़ विज्ञापन, मार्केटिंग, ट्रेवल, फूड, म्यूज़िक, मीडिया जैसे हर क्षेत्र में अपना पैर फैला लिए बल्कि ग्राहकों से मिलने वाले डेटा का इस्तेमाल अपने धंधे को चमकाने के लिए किया.
गूगल का व्यापार कैसे चलता है?
विशेषज्ञों के अनुसार गूगल का व्यापारिक मॉडल उन अरबों लोगों के व्यक्तिगत डेटा के आधार पर काम करता है जो ऑनलाइन सर्च कर रहे हैं, यूट्यूब वीडियो देख रहे हैं, डिजिटल मैप का इस्तेमाल कर रहे हैं, इसके वॉयस असिस्टेंट से बात कर रहे हैं या इसके फ़ोन सॉफ़्टवेयर का उपयोग कर रहे हैं.
ये डेटा उस विज्ञापन मशीन को चलाने में मदद करता है जिसने गूगल को एक दिग्गज कंपनी में बदल दिया है. यानी गूगल का डेटा एनालाइज़ करने वाला सिस्टम जानता है कि आपको किस तरह के विज्ञापन दिखाए जाने पर आपके सामान खरीदने की संभावना बढ़ जाएगी.
गूगल क्रोम आज 69 प्रतिशत मार्केट शेयर के साथ न सिर्फ़ सर्च बल्कि ब्राउज़र की दुनिया का बेताज बादशाह है, यानी जब आप सर्च नहीं भी कर रहे होते हैं तब भी जीमेल, क्रोम या किसी अन्य तरीके से गूगल के ही दायरे में होते हैं और आपका डेटा उसके पास जमा होता रहता है.
दूसरी तरफ़ माइक्रोसॉफ़्ट के इंटरनेट एक्स्प्लोरर का मार्केट शेयर अब 5 प्रतिशत तक सीमित हो गया है और माइक्रोसॉफ़्ट ने इसके अंतिम दिन की घोषणा कर दी है, अगले साल 15 जून के बाद एक्सप्लोरर बंद हो रहा है.
गूगल के कथित एकाधिकार का सफ़र
साल 1998 में अपनी स्थापना के बाद गूगल ने दर्जनों कंपनियों के अधिग्रहण किए हैं जिसके कारण ये अमरीकी सर्च मार्केट में 90% का भागीदार बन गया है.
अमेरिकी न्याय विभाग के मुकदमे में दिए गए तर्कों के आधार पर, ये ऐसे सौदे हैं जिन्होंने गूगल को दुनिया भर में ऐसा सर्च इंजन बना दिया है जिसका कोई प्रतिस्पर्धी ही नहीं है.
गूगल के कुछ सौदों पर एक नज़र
- 2005 में एंड्रॉइड को केवल 50 मिलियन डॉलर में खरीदा. ये डिजिटल जगत का सबसे अहम और सबसे सस्ता सौदा माना जाता है. ये गूगल के लिए गेम चेंजर साबित हुआ. आज दुनिया के हर 10 मोबाइल फ़ोन में से 7 एंड्राइड फ़ोन हैं, जिनमें गूगल सर्च इंजन है पहले से लगा हुआ है.
- 2007 में 3.1 अरब डॉलर में 'डबल क्लिक' का अधिग्रहण किया, जिससे डिजिटल विज्ञापन जगत में इसका तेज़ी से विस्तार हुआ. उस समय गूगल याहू से 10 गुना छोटा था.
- 2010 में गूगल ने आईटीए सॉफ्टवेयर को 700 मिलियन डॉलर में खरीद लिया, जिससे ट्रैवल सर्च और बुकिंग में ये एक बड़ा प्लेयर बन गया. इससे पहले उसके प्रतिद्वंदी आईटीए सर्च इंजन पर निर्भर करते थे.
- 2013 में गूगल ने चीनी ऐप वेज़ को 1.1 अरब डॉलर में खरीदकर मैप में अपने प्रतिद्वंद्वियों के व्यवसाय को एक बड़ा झटका दिया, वेज़ की लोकप्रियता का ये हाल है कि गगूल ने इसे आज भी एक अलग सॉफ्टवेयर की तरह स्थापित रखा है और ये गूगल मैप से बेहतर माना जाता है.
गूगल का तर्क
गूगल को एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम के अधिग्रहण ने इसके विस्तार और उसकी मोनोपोली बनाने में जितनी मदद की है उतनी किसी और खरीदारी ने नहीं की. आज एंड्रॉइड फ़ोन सर्च से केवल गूगल को ही फायदा है इसीलिए अमेरिकी प्रशासन ने इसके ख़िलाफ़ मोनोपोली ट्रेड करने का आरोप लगाया है.
गूगल इस इल्ज़ाम से इनकार करता है. इसका कहना है, ''लोग गूगल का इस्तेमाल अपनी मर्ज़ी से करते हैं. कोई उन्हें मजबूर नहीं करता और ऐसा भी नहीं है कि उनके पास कोई विकल्प नहीं है."
कपंनी ने कहा कि उसके ख़िलाफ़ मुक़दमों और तर्कों में खोट है.
वकील विराग गुप्ता विराग गुप्ता ने गोविंदाचार्य की ओर से दायर याचिका में इस मामले पर बहस की है. उसी मुकदमे की वजह से पहली बार अगस्त 2013 में कंपनी को भारत में शिकायत अधिकारी नियुक्त करने के लिए विवश होना पड़ा था.
गुप्ता कहते हैं, "इन कंपनियों का यह कहना कि वे फ्री-सर्विस देते हैं इसलिए कोई एकाधिकार नहीं है, यह बात पूरी तरह से गलत और बेबुनियाद है. जिस तरीके से सरकार इनकम टैक्स पर डायरेक्ट टैक्स और जीएसटी से इनडायरेक्ट टैक्स वसूलती है, उसी तरीके से बड़ी टेक कंपनियां करोड़ों ग्राहकों से उनकी जानकारी के बगैर पैसे कमा रही हैं. इन कंपनियों के अनूठे व्यापारिक मॉडल से पूरी दुनिया के 300 करोड़ से ज्यादा यूजर्स प्रोडक्ट बनकर डेटा के अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में रोज़ाना नीलाम हो रहे हैं".
मगर अमेरिकन इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक रिसर्च के लिए लिखते हुए आर्ट कार्डेन तर्क देते हैं कि गूगल ने कोई मोनोपोली नहीं बना रखी है.
वो कहते हैं, "सबसे पहले, गूगल सर्च या डिजिटल विज्ञापन स्पेस, या वेब ब्राउज़िंग या वर्ड प्रोसेसिंग, या किसी अन्य क्षेत्र में गूगल व्यापार करने वाली अकेली कंपनी नहीं है. मैंने कल ही अपने गूगल क्रोम ब्राउज़र सिस्टम में आसानी से अपने डिफ़ॉल्ट सर्च इंजन को गूगल से 'डकडकगो' सर्च इंजन में बदल दिया. केवल कुछ बटन क्लिक करने पड़े. मैं चंद मिनट में अपने फ़ोन या कंप्यूटर से क्रोम डिलीट करके सफ़ारी, ओपेरा, फ़ायरफ़ॉक्स या ब्रेव सर्च इंजन को डिफ़ॉल्ट सर्च इंजन बना सकता हूँ, गूगल हमें रोक नहीं सकता.''
कार्डेन कहते हैं, ''मैं गूगल प्रोडक्ट्स इसलिए इस्तेमाल करता हूँ क्योंकि इनसे मुझे मुफ़्त में सुविधा और गुणवत्ता हासिल होती है.''
उनका तर्क है कि गूगल को मार्केट में बढ़त बनाए रखने के लिए नई चीज़ें करनी पड़ती हैं, इनोवेशन करते रहना पड़ता है, वरना गूगल का हाल भी इंटरनेट एक्स्प्लोरर की तरह होगा."
ऐपल और गूगल दोनों ही अपने ऐप स्टोर से इन-ऐप खरीदारी के लिए 30% तक शुल्क लेते हैं, दोनों कंपनियों का दावा है कि यूजर्स को सुरक्षा प्रदान करने के बदले शुल्क उचित है.
अमेरिकी सीनेट न्यायपालिका समिति के एंटी ट्रस्ट पैनल का कहना है कि ऐपल के ऐप स्टोर और गूगल के गूगल प्ले प्रतिस्पर्धा-विरोधी हैं. पैनल के मुताबिक़ दोनों स्टोर "उन ऐप्स को बाहर कर देते हैं या दबाते हैं जो उनके साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं". गूगल प्ले और ऐप स्टोर से दुनिया भर में अधिकांश ऐप्स डाउनलोड किए जाते हैं.
डेवलपर्स का दावा है कि प्रतिस्पर्धा की कमी के कारण ऐपल और गूगल जबरन वसूली कर सकते हैं, ऐसे भी दावे किए गए थे कि ऐपल ने अपने ऐप स्टोर का उपयोग प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़ने के लिए किया था.
मिशी चौधरी कहती हैं कि उन्हें दूसरे देशों का नहीं पता लेकिन "कम से कम अमेरिका में हमने देखा है कि जब दम घुटने वाले एकाधिकार को विभिन्न कंपनियों में विभाजित किया जाता है, तो परिणाम अक्सर अधिक बेहतर होता है जो यूजर्स के लिए अच्छा होता है."
फेसबुक ने ट्रंप के अकाउंट को दो साल के लिए निलंबित कर दिया है. पिछले दिसंबर में उनके शासनकाल में 46 राज्यों सहित उनकी सरकार ने एकाधिकार या प्रतिस्पर्धा-विरोधी तरीके अपनाने के आरोप में फेसबुक पर मुकदमा दायर किया था.
वर्तमान मुक़दमे में फेसबुक पर एक गंभीर आरोप लगाया गया-फेसबुक अवैध रूप से एक खरीदो और दफनाओ (बाइ एंड बरी) की रणनीति को लागू करके उस एकाधिकार शक्ति को बनाए रखता है जो प्रतिस्पर्धा की संभावना को खत्म करता है, यूजर्स और विज्ञापन देने वालों, दोनों को नुकसान पहुंचाता है.
फेसबुक कॉम्पिटिशन को कैसे मारता है उसकी एक मिसाल इसके सीईओ मार्क ज़ुकेरबर्ग के 2012 के एक आधिकारिक ईमेल से मिलता है जो अब सार्वजनिक है.
इसमें उन्होंने लिखा था, "हाल में मैं एक व्यावसायिक प्रश्न पर ग़ौर कर रहा हूँ कि हमें इंस्टाग्राम और पाथ जैसी मोबाइल ऐप कंपनियों को हासिल करने के लिए कितना भुगतान करना चाहिए जो हमारे अपने साथ प्रतिस्पर्धी नेटवर्क बना रहे हैं, व्यापार अभी शुरूआती दौर में है लेकिन
उनका नेटवर्क स्थापित है. ब्रैंड पहले से ही स्थापित हैं और अगर वे बड़े पैमाने पर विकसित होते हैं तो वे हमारे लिए बहुत नुकसानदेह हो सकता है."
फेसबुक ने इंस्टाग्राम को एक अरब डॉलर में खरीद लिया और दो साल बाद वॉट्सऐप को 19 अरब डॉलर में खरीद लिया. मुक़दमे में अमेरिका के 46 राज्य मांग कर रहे हैं कि अदालत वॉट्सॅऐप और इंस्टाग्राम की ख़रीद को रद्द कर दे.
अगर अदालत इस आकलन से सहमत होती है, तो फेसबुक को अपने तरीकों में सुधार करना होगा. संभवत: वॉट्सऐप और इंस्टाग्राम को बेचना होगा. साथ ही भविष्य में और कंपनियाँ खरीदना मुश्किल होगा.
हालाँकि मिशी चौधरी के अनुसार भारत में नागरिकों की प्राइवेसी की सुरक्षा के लिए पर्याप्त डेटा प्रोटेक्शन क़ानून नहीं हैं. वो कहती हैं, ''भारत सरकार के पास अधिकार हैं, लेकिन हमने शायद ही कभी उन्हें यूजर्स के हित में इस्तेमाल किया गया हो."
वकील विराग गुप्ता कहते हैं, "भारत में भी फेसबुक और टि्वटर जैसी कंपनियां सरकार की नहीं सुनतीं. कंटेंट मॉडरेशन के बारे में इन कंपनियों के नियमों में पारदर्शिता न होने के साथ एकरूपता का भी अभाव है, जिससे इंटरमीडियरी की कानूनी छूट पर भी बड़ी बहस शुरू हो गयी है.''
वो कहते हैं, "भारत में पहली बार 2011 में इन कंपनियों के लिए आईटी इंटरमीडिएरी नियम बनाए गए थे, जिनका क्रियान्वयन 2013 में गोविंदाचार्य मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के बाद शुरू हुआ. नए नियमों में कई तरह का घालमेल करने से जटिलता बढ़ गई है, जिसकी वजह से इनके क्रियान्वयन में आगे चलकर कठिनाई के साथ कई तरह के न्यायिक विवाद भी सामने आ सकते हैं."
विराग गुप्ता कहते हैं, "इन नियमों के दो प्रमुख उद्देश्य हैं. पहला भारत के कानून के तहत इन कंपनियों की जवाबदेही जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा, महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा और आपत्तिजनक कंटेंट पर तुरंत कार्रवाई हो. दूसरा, भारत में इन कंपनियों का फिजिकल इस्टैब्लिशमेंट और औपचारिक कानूनी ऑफिस हो जिससे कि इन कंपनियों से भारत में खरबों रुपए की टैक्स वसूली हो सके."
हालांकि इन कंपनियों के लिए भारत एक विशाल मार्केट है इसलिए ये भारत में टिके रहने के लिए कुछ समझौता करेंगी.
मिशा चौधरी कहती हैं, "मैं व्यवसायों की तरफ़ से नहीं बोल सकती लेकिन सरकार के साथ समझौता करने के लिए उन्हें कुछ कम्प्रोमाइज़ करना पड़ सकता है".
रिलायंस जियो में निवेश करके फेसबुक और गूगल की रणनीति साफ़ ज़ाहिर है कि इन टेक कंपनियों ने भारत में लंबे समय तक रहने के बारे में सोच रखा है. (bbc.com)
कोलंबो, 12 जून | श्रीलंकाई अधिकारियों ने घोषणा की है कि महामारी की तीसरी लहर के बीच कोविड-19 के और प्रसार को रोकने के लिए देश भर में चल रहे यात्रा प्रतिबंधों को 21 जून तक और बढ़ा दिया जाएगा। सेना कमांडर और कोविड-19 की रोकथाम के लिए राष्ट्रीय अभियान केंद्र के प्रमुख जनरल शैवेंद्र सिल्वा ने समाचार एजेंसी सिन्हुआ को बताया कि कोरोनोवायरस टास्क फोर्स और राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के बीच हुई बैठक के बाद यात्रा प्रतिबंधों में विस्तार करने का निर्देश दिया गया है।े
यात्रा प्रतिबंध शुरू में 14 जून को हटाए जाने की उम्मीद थी।
हालांकि, सिल्वा ने कहा कि परिधान कारखानों, प्रमुख निर्माण परियोजनाओं, आवश्यक सेवाओं, आर्थिक केंद्रों, कृषि परियोजनाओं में शामिल लोगों और जैविक उर्वरक निर्माताओं सहित सभी कारखानों को प्रतिबंधों के दौरान भी काम करने की अनुमति होगी।
श्रीलंका वर्तमान में तीसरी लहर के बीच में है और पिछले दो महीनों के भीतर, 100,000 से अधिक नए संक्रमणों की सूचना मिली है।(आईएएनएस)
अगर चीन ने ये सोचा था कि डॉनल्ड ट्रंप के जाने के बाद अमेरिका से रिश्ते सुधरेंगे, तो ये उसकी भूल थी. चीन हर क्षेत्र में पश्चिमी देशों को टक्कर दे रहा है और चीन और अमेरिका के बीच प्रतिस्पर्धा एक तल्खी भरा मोड़ ले चुकी है.
डॉयचे वैले पर राहुल मिश्र का लिखा
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के कार्यकाल में ही दोनों महाशक्तियों के बीच टकराव शुरू हो गया था, जिसका चरम अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक संघर्ष और ट्रंप की इंडो-पैसिफिक नीति के रूप में देखने को मिला. जो बाइडेन की सरकार आने पर परिस्थितियां सुधरने की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन धीरे-धीरे यह साफ होता जा रहा है कि बाइडेन सरकार का चीन के प्रति रवैया भी वैसा ही रहेगा. आर्थिक मामलों में बाइडेन की सख्ती ट्रंप सरकार के मुकाबले भारी ही पड़ती दिख रही है. मानवाधिकारों और पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर भी बाइडेन सरकार की मार चीनी कंपनियों पर ज्यादा पड़ने की संभावना है. इसकी एक झलक हाल में तब देखने को मिली जब पिछले हफ्ते बाइडेन सरकार ने अमेरिकी कंपनियों के चीन में निवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है. बाइडेन प्रशासन का यह नया प्रतिबंध 2 अगस्त, 2021 से लागू होगा.
इस तरह का ऐसा पहला कानून ट्रंप प्रशासन ने ही बनाया था. बाइडेन ने न सिर्फ इसे जारी रखा है बल्कि 59 कंपनियों की एक नई सूची भी जारी की है जिनमें चीन की विवादित बहुराष्ट्रीय कंपनी हुआवे टेक्नोलॉजीज भी है. यूरोपीय संघ और भारत ने हुआवे पर पहले ही प्रतिबंध लगा रखा है. आइटी सेक्टर, 5-G तकनीक, और रक्षा क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों पर बाइडेन प्रशासन की नजर पैनी रही है. प्रतिबंधित कंपनियों की सूची से यह बात बहुत साफ हो जाती है. प्रतिबंधित कंपनियों की फेहरिस्त में चीन की सबसे बड़ी टेलिकॉम कंपनियां, चाइना मोबाइल कम्यूनिकेशंस कॉरपोरेशन, चाइना टेलीकम्यूनिकेशंस कॉरपोरेशन और चाइना यूनीकॉम लिमिटेड के अलावा सेमिकंडक्टर बनाने वाली बहुचर्चित कंपनी इंस्पर भी है.
चीन के बाहर विकल्पों की तलाश
सेमिकंडक्टर का इस्तेमाल आइटी सेक्टर में व्यापक पैमाने पर होता है और चीन से निवेश हटाने के चक्कर में ही अमेरिका ताइवान, थाईलैंड, और भारत जैसे देशों में विकल्पों की तलाश में जुटा है. सुरक्षा और सरवेलांस से जुड़ी अन्य कंपनियां भी इस मार की शिकार होंगी जिसमें कुख्यात सर्वेलांस और फेसियल रिकॉग्निशन कंपनी हांगझाऊ डिजिटल टेक्नोलॉजी कंपनी भी है जिसने चीन की सरकार को शिनजियांग में मानव चेहरों की पहचान संबंधी अभूतपूर्व डाटाबेस उपलब्ध कराया. अमेरिका को यह आशंका रही है कि कहीं यह कंपनी अमेरिकी नागरिकों के डाटाबेस को चीनी सरकार से साझा न कर दे.
ट्रंप की प्रतिबंधित कंपनियों की सूची से बाइडेन की सूची निस्संदेह एक कदम आगे है और व्यापक और गहन शोध और सुरक्षा चिंताओं के गहन आकलन पर आधारित है. इस नई सूची की और प्रतिबंध से जुड़े प्रावधानों की वजह यह भी रही है कि प्रतिबंधित कंपनियों ने अमेरिकी न्यायालयों में सरकार के निर्णय के खिलाफ अपील की और कुछ सफलता भी पायी. जाहिर है, सरकार को यह बात नागवार गुजरी और लिहाजा नये चाक चौबन्द कानूनों की व्यवस्था की गई. चीन ने भी अपनी तरफ से प्रतिबंधों का मुकाबला करने की तैयारी शुरू कर दी है. उसने इसी हफ्ते एक नया कानून पास किया है जिसमें विदेशी प्रतिबंधों के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई तय की गई है. इसमें वीजा की मनाही से लेकर एकल व्यक्तियों और उद्यमों के खिलाफ प्रतिबंध और उनकी संपत्ति को जब्त करने का प्रावधान है. इसमें प्रतिबंधित व्यक्तियों के परिवार के सदस्यों को भी शामिल किया जा सकता है.
अमेरिका और चीन के रिश्ते कितने जटिल हैं, इसका पता इस बात से चलता है कि अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने चीनी विदेश मंत्री यांग जीची से बातचीत की है. इस बातचीत में विवाद के कई मुद्दों पर चर्चा हुई. ब्लिंकेन ने शिनजियांग में उइगुर मुसलमानों के कत्लेआम का आरोप लगाया और हांगकांग में लोकतांत्रिक नियमों को कमजोर किए जाने पर चिंता जताई और चीन से ताइवान पर दबाव नहीं डालने को कहा. तो यांग ने कहा कि अमेरिका को ताइवान सवाल पर संभलकर और सोची समझी कार्रवाई करनी चाहिए.
अमेरिका चीन विवाद का असर तीसरे देशों पर भी पड़ेगा, यह तय है. बहुत से गरीब देश कर्ज में डूबे और कोरोना महामारी ने उनकी अर्थव्यवस्था की हालत और खराब कर दी है. पश्चिमी देश समय समय पर कर्ज माफी की चर्चा करते रहते हैं, लेकिन इस समय अमेरिकी वित्त मंत्री जनेट येलेन की चिंता ये है कि गरीब देशों के कर्ज माफ करने की पहलकदमी का चीन को फायदा पहुंचेगा. अगर इन देशों को वित्तीय मदद दी जाती है तो उसका इस्तेमाल चीन के कर्ज की वापसी के लिए हो सकता है. जी 20 के देश गरीब देशों की ब्याज अदायगी को कुछ समय के लिए रोकने पर सहमत हुए हैं लेकिन अमेरिका चाहता है कि इन रियायतों का लाभ चीन बैंकों को नहीं मिले.
बाइडेन प्रशासन अपने नए पैंतरे से चीन में अमेरिकी कंपनियों के लिए समान और निर्बाध अवसर की तलाश में है. और अब जब तकनीकी कंपनियों का मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ गया है तो अमेरिकी कदमों की गंभीरता और बढ़ जाती है. लेकिन इन तमाम बातों के बावजूद सच यही है कि यह इन दोनों महाशक्तियों के बीच दिनोंदिन बढ़ती दूरियां दुनिया और इन दोनों ही देशों के लिए एक बुरी खबर से ज्यादा कुछ नहीं हैं.
(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं)
अफगानिस्तान में मौजूद बुंडेसवेयर के पूर्व कर्मचारियों को एक ओर जर्मनी में शरण मांगने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, तो दूसरी ओर तालिबान से बढ़ते खतरों का. तालिबान से जुड़े लोग इन्हें ‘देशद्रोही’ मानते हैं.
डॉयचे वैले पर मसूद सैफुल्लाह का लिखा
नाटो के कई देशों ने सितंबर से पहले अफगानिस्तान में मौजूद अपने स्थानीय कर्मचारियों को अपने देश में शरण देने के प्रयासों को तेज कर दिया है. पिछले महीने यूनाइटेड किंगडम ने कहा कि अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो सैनिकों की वापसी से पहले वह अफगानिस्तान में मौजूद अपने स्थानीय कर्मचारियों को अपने देश में लाने का प्रयास करेगा. पूर्व और वर्तमान अफगान कर्मचारियों के लिए पुनर्वास योजना के तहत 1300 से अधिक अफगान कर्मचारियों और उनके परिवारों को पहले ही यूके लाया जा चुका है. ब्रिटेन के रक्षा सचिव बेन वालेस के अनुसार, इस योजना के तहत लगभग 3,000 और लोगों को ब्रिटेन लाया जाएगा. हालांकि, जो अफगानी कर्मचारी जर्मन सेना (बुंडेसवेयर) के साथ काम कर रहे हैं, उन्हें जर्मनी में शरण लेने और वहां जाने के लिए आवेदन करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है.
साल 2001 में अमेरिका ने अफगानिस्तान में दखल दिया था और तालिबान को सत्ता से बेदखल कर दिया था. इस दौरान विदेशी सेनाओं को स्थानीय लोगों की मदद की काफी जरूरत पड़ी थी. सेनाओं को अनुवादक, दुभाषिए, रसोइये, सफाईकर्मी और साथ ही सुरक्षा विशेषज्ञ चाहिए थे, ताकि वे देश की राजनीतिक और सुरक्षा से जुड़ी स्थितियों को अच्छे से समझ सकें. इन सभी कामों में विदेशी सेना का सहयोग करने वाले स्थानीय लोगों को तालिबान ‘देशद्रोही' के तौर पर देखता है. तालिबान का कहना है कि इन लोगों ने विदेशी सेनाओं को ‘अवैध' कब्जे को मजबूत करने में मदद की.
करीब दो दशक तक चले युद्ध के बाद, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने घोषणा की कि 11 सितंबर तक सभी अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान छोड़ देंगे. जर्मनी सहित नाटो के अन्य सहयोगियों ने भी अमेरिका के इस कदम का समर्थन किया है और वे भी अफगानिस्तान से अपनी सेना को वापस बुलाने पर सहमत हो गए हैं. अफगानिस्तान से विदेशी सैनिकों की बिना शर्त वापसी से नाटो के लिए काम काम करने वाले स्थानीय लोग मुश्किल स्थिति में फंस गए हैं.
छिन गई नौकरी
डीडब्ल्यू ने पाया कि बुंडेसवेयर के 26 पूर्व कर्मचारियों को पिछले हफ्ते उनकी नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था क्योंकि उन्होंने जर्मनी में शरण मांगी थी. इन कर्मचारियों में 5 महिलाएं शामिल हैं. जिन लोगों को बर्खास्त किया गया है वे बवार मीडिया सेंटर (बीएमसी) में काम करते थे. इनमें से ज्यादातर लोगों से 2016 तक सेना ने खुद संपर्क किया था. हालांकि, तब से उनके अनुबंध बदल दिए गए हैं. यह सेंटर उत्तर पश्चिमी बल्ख प्रांत में स्थित है. इसे चलाने का पूरा खर्च जर्मन सेना वहन करती है.
जिन लोगों को नौकरी से बर्खास्त किया गया है उनमें से एक ने सुरक्षा कारणों से नाम न छापने की शर्त पर डॉयचे वेले को बताया, "अगर तालिबान के लोग मुझे पकड़ लेते हैं, तो वे बदले हुए अनुबंध की परवाह नहीं करेंगे. उनके लिए, मैं एक ऐसा आदमी हूं जो बुंडेसवेयर के लिए काम करता था और आज भी करता है. अनुबंध में बदलाव के बावजूद, हम बुंडेसवेयर के संपर्क में रहे और हमारे काम को लेकर जर्मनी की सेना के साथ नियमित तौर पर बैठक होती रही. इस वजह से हम तालिबान और दूसरे चरमपंथी समूहों को निशाने पर हैं.” बीएमसी के एक पूर्व कर्मचारी ने डॉयचे वेले को बताया कि उन्होंने नए अनुबंध पर सहमति जताई क्योंकि वे अपनी नौकरी नहीं खोना चाहते थे.
एक खूनी अभियान
युद्ध की सबसे बड़ी कीमत अफगानियों ने चुकाई है. ब्राउन विश्वविद्यालय के "युद्ध की कीमत" प्रोजेक्ट के मुताबिक पिछले 20 सालों में अफगानिस्तान के कम से कम 47,245 नागरिक मारे जा चुके हैं. इसके अलावा 66,000-69,000 अफगान सैनिकों के भी मारे जाने का अनुमान है. अमेरिका ने 2,442 सैनिक और 3,800 निजी सुरक्षाकर्मी गंवाएं हैं और नाटो के 40 सदस्य राष्ट्रों के 1,144 कर्मी मारे गए हैं.
अस्वीकार किए जा रहे वीजा के आवेदन
जर्मन सेना के लिए काम करने वाले कुछ दुभाषियों ने शिकायत की है कि उन्हें जर्मनी में शरण नहीं दी जा रही है. 31 साल के जाविद सुल्तानी ने डॉयचे वेले को बताया, "मैंने 2009 से लेकर 2018 तक जर्मन सेना के लिए काम किया. 2018 में मुझे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. इसके बाद से मैं बुंडेसवेयर के लिए काम करने वाले ऐसे दर्जनों कर्मचारियों से मिल चुका हूं जिन्हें किसी तरह की सुरक्षा उपलब्ध नहीं कराई गई है.” सुल्तानी का कहना कि जर्मनी के अधिकारी अब तक आठ बार उनके वीजा को अस्वीकार कर चुके हैं.
सुल्तानी ने कहा कि पूर्व कर्मचारियों के एक समूह ने सुरक्षा की मांग को लेकर बल्ख में जर्मन सेना के अड्डे के पास एक अस्थायी शिविर स्थापित किया है. वह शिकायती लहजे में कहते हैं, "मेरे वीजा के आवेदन को अस्वीकार करने के पीछे की वजह स्पष्ट नहीं है. किसे शरण मिलती है और किसे नहीं, यह कोई नहीं जानता. हम काफी डरे हुए हैं. अफगानिस्तान में हर कोई जानता है कि विदेशी सैनिकों के लिए हमने क्या काम किया है. 11 सितंबर के बाद हमें आसानी से निशाना बनाया जा सकता है.”
तालिबान ने हाल में कहा है कि पिछले 20 वर्षों में देश में विदेशी सैनिकों की सहायता करने वाले अफगानिस्तानी नागरिक अगर ‘पश्चाताप' का भाव दिखाते हैं, तो वे "किसी भी खतरे में नहीं होंगे". हालांकि, तालिबान के बयान में ‘आश्वासन के शब्दों' के बीच ‘धमकी' भी छिपी हुई है. चरमपंथी समूह ने चेतावनी दी है कि विदेशी सैनिकों के साथ काम करने वाले स्थानीय लोगों को ‘देश नहीं छोड़ना चाहिए' और ‘भविष्य में ऐसी गतिविधियों में शामिल नहीं होना चाहिए.' समूह की तरफ से जारी बयान में कहा गया है, "अगर वे शरण मांगने के लिए ‘खतरे का बहाना' बना रहे हैं, तो यह उनकी अपनी समस्या है.”
जर्मन सेना की प्रतिक्रिया
जर्मन सेना ने एक ईमेल के जवाब में डीडब्ल्यू को बताया कि बीएमसी कर्मचारियों के लिए अनुबंधों में बदलाव नाटो के ‘रेसोल्यूट सपोर्ट मिशन' के रूप में अफगानों को जिम्मेदारी सौंपने का हिस्सा था. सेना के एक प्रवक्ता ने बताया, "यह बदलाव पूरा हो गया था और बीएमसी के कर्मचारियों के अनुबंध को ‘स्वतंत्र रोजगार' में बदल दिया गया था. इसलिए, सभी कर्मचारियों से जुड़ी जिम्मेदारियों के लिए बुंडेसवेयर जवाबदेह नहीं है.”
हालांकि, बीएमसी की ओर से अफगानिस्तान के सुरक्षा बलों को भेजे गए एक पत्र में कहा गया है कि बीएमसी कर्मचारियों को "सलाहकारों के परामर्श और अनुमोदन से" उनकी नौकरी से बर्खास्त किया गया था क्योंकि उन्होंने जर्मनी में शरण के लिए आवेदन किया था और संगठन के "नियमों और मूल्यों" की अनदेखी की थी.
साल 2104 के बाद से, जर्मन सेना में काम करने वाले कई अफगानियों को जर्मनी में शरण मिल चुकी है. इनमें बीएमसी के कुछ कर्मचारी भी शामिल हैं. साल 2014 में बीएमसी की पूर्व कर्मचारी पावाशा तोखी अपने घर में मृत पाई गई थीं. कहा गया था कि जर्मन सेना के साथ संबंध होने की वजह से उनकी ‘मौत' हुई है. इस घटना के बाद से, शरण पाने वाले लोगों में ज्यादातर 2014 में ही जर्मनी चले आए थे.
अप्रैल महीने में जर्मनी के रक्षा मंत्री आनेग्रेट क्रांप कारेनबावर ने कहा, "जर्मनी उन अफगान नागरिकों को अपने देश में लाने के लिए तैयार होगा जिन्होंने युद्ध के दौरान बुंडेसवेयर की मदद की थी.” जिन अफगान कर्मचारियों को शरण की जरूरत है उन्हें लाने की एक प्रक्रिया जर्मनी में पहले से मौजूद है. हालांकि, इससे जुड़े कई मामले विवादित हैं. रक्षा मंत्रालय के अनुसार, 2013 से लेकर अब तक 781 लोगों को जर्मनी में शरण दी जा चुकी है. हालांकि, अभी तक यह साफ नहीं हुआ है कि अभी और कितने ऐसे अफगानी कर्मचारी बचे हुए हैं.
क्रांप कारेनबावर इस पूरी प्रक्रिया को आसान और तेज बनाना चाहते हैं. वेल्ट अम जोनटाग अखबार ने गृह मंत्रालय का हवाला दते हुए बताया है कि जर्मनी ने काबुल में एक कार्यालय स्थापित करने की योजना बनाई है. इसमें से एक संभवत: उत्तरी अफगानिस्तान के मजार-ए-शरीफ में हो सकता है, ताकि शरण मांगने वालों से जुड़ी प्रक्रिया में मदद की जा सके.
पाकिस्तान में कुलभूषण जाधव को सैन्य अदालत के फैसले के खिलाफ याचिका दायर करने की अनुमति देने वाला बिल पारित हो गया है. विपक्ष ने आरोप लगाया है कि सरकार ने तय प्रक्रिया को दरकिनार कर बिल को जबरदस्ती पास करा लिया.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
आईसीजे (रिव्यु एंड रिकंसिडरेशन) बिल, 2020 को पाकिस्तान की संसद के निचले सदन नेशनल असेंबली ने पास कर दिया है. उम्मीद की जा रही है कि इससे जाधव को थोड़ी राहत मिलेगी और वो उन्हें दिए गए मौत के फैसले के खिलाफ प्रभावी रूप से अपील कर पाएंगे. बिल का संसद के ऊपरी सदन सीनेट से पास होना अभी बाकी है. नेशनल असेंबली में विपक्ष ने बिल का और उसे पारित कराए जाने की प्रक्रिया का विरोध किया.
विपक्ष ने आरोप लगाया कि बिल को जल्दबाजी में पारित कराया गया और विपक्ष के सांसदों को उसे ठीक से पढ़ने का समय भी नहीं दिया गया. विपक्ष ने यह भी कहा कि ऐसा लग रहा है कि यह बिल सिर्फ जाधव के लिए ही लाया गया था और बिल के उद्देश्यों में उनका नाम भी दर्ज है. हालांकि सरकार ने बिल का समर्थन करते हुए कहा कि इसे अंतरराष्ट्रीय न्यायिक अदालत (आईसीजे) के आदेशों का सम्मान करते हुए लाया गया है और इसे ला कर सरकार ने साबित कर दिया है कि पाकिस्तान एक "जिम्मेदार" देश है.
इस बिल के प्रावधानों को अध्यादेश के जरिए मई 2020 में ही लागू कर दिया था. आईसीजे ने 2019 में ही पाकिस्तान को आदेश दिया था कि वो जाधव को दी गई सजा पर "प्रभावी रूप से पुनर्विचार" करे और उन्हें भारत के उच्च-आयोग से संपर्क करने दे. जाधव भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी हैं और उन्हें पाकिस्तान की एक सैन्य अदालत ने जासूसी और आतंकवाद के आरोपों का दोषी पाया था. उन्हें अप्रैल 2017 में मौत की सजा सुनाई थी.
वकील कौन होगा
भारत ने इस फैसले के खिलाफ आईसीजे में अपील की थी और आईसीजे ने फैसला भारत के पक्ष में दिया था. लेकिन इस मामले में अब सबसे बड़ी अड़चन इस सवाल पर है कि जाधव का वकील कौन होगा. भारत की काफी समय से यह मांग है कि एक भारतीय वकील को जाधव का केस लड़ने की इजाजत दी जाए, लेकिन पाकिस्तान सरकार का कहना है कि पाकिस्तान के कानून के तहत किसी विदेशी नागरिक को किसी भी पाकिस्तानी अदालत में जिरह करने की अनुमति नहीं है.
भारत ने यह भी प्रस्ताव दिया है कि क्वींस काउंसिल यानी इंग्लैंड की महारानी का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता को जाधव के पक्ष में दलीलें पेश करने की इजाजत दी जाए. यूके और कुछ कॉमनवेल्थ देशों में यूके की राजशाही की तरफ से कुछ जाने माने वकीलों को क्वींस काउंसिल नियुक्त किया जाता है, जो कॉमनवेल्थ देशों की अदालतों में राजशाही का प्रतिनिधित्व करते हैं. हालांकि पाकिस्तान ने इस प्रस्ताव पर अभी तक कुछ नहीं कहा है.
दिलचस्प यह है कि एक तरफ इस मामले में भारत पाकिस्तान पर लगातार सहयोग ना करने का आरोप लगाता आया है, लेकिन दूसरी तरफ यह नया बिल लाने के लिए पाकिस्तान सरकार को विपक्ष की आलोचना झेलनी पड़ रही है.
पाकिस्तानी मीडिया में कहा गया है कि नेशनल असेंबली में बिल के पारित होने पर विपक्ष ने प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ नारे लगाए और उन पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ दोस्ती निभाने के लिए पाकिस्तान के साथ गद्दारी करने का आरोप लगाया गया. देखना होगा कि भारत इस बिल के पारित होने पर क्या प्रतिक्रिया देता है और जाधव का मामला क्या मोड़ लेता है. (dw.com)
साल 2007 में ऑस्ट्रेलिया में खोजे गए डायनासोर की एक प्रजाति के जीवाश्म का अध्ययन करने के बाद शोधकर्ताओं ने इसे महाद्वीप का अब तक सबसे बड़ा डायनासोर बताया है.
शोधकर्ताओं का कहना है कि दुनिया में अब तक जिन 15 सबसे बड़े डायनासोर के बारे में जानकारी मौजूद है. उनमें से द ऑस्ट्रेलोटिटन कोपरेंसिस या द सदर्न टाइटन (टाइटोनोसॉर) एक है.
विशेषज्ञों के अनुसार, ये टाइटोनोसॉर 6.5 मीटर ऊंचे और 30 मीटर तक लंबे रहे होंगे. इसका मतलब ये है कि इनका आकार लगभग एक बास्केटबॉल कोर्ट के जितना रहा होगा.
टाइटोनोसॉर का कंकाल सबसे पहले दक्षिण पश्चिम क्वींसलैंड के अरोमंगा के एक खेत में मिला था.
वैज्ञानिक पिछले एक दशक से अधिक समय से इसका अध्ययन कर रहे हैं. इसकी हड्डियों के स्कैन की तुलना अन्य सॉरोपोड्स से करने के बाद वैज्ञानिकों ने यह तय किया है कि अभी तक जितने भी सॉरोपॉड्स के बारे में जानकारी है, ये उनसे अलग है.
सॉरोपोड्स विशाल आकार के डायनासोर थे जो पेड़-पौधों पर निर्भर रहते थे. उनके सिर का आकार छोटा हुआ करता था और उनकी गर्दन लंबी होती थी. उनकी पूंछ मोटी और लंबी होती थी जबकि उनके पैर खंभों की तरह हुआ करते थे.
वैज्ञानिकों के अनुसार ये डायनासोर लगभग 9.2 से 9.6 करोड़ साल पहले क्रेटेशियस काल के दौरान महाद्वीप पर रहे होंगे.
चूंकि टाइटोनोसॉर का ये जीवाश्म क्वींसलैंड में कूपर क्रीक के पास मिला था, शोधकर्ताओं की टीम ने इसका नाम कूपर रखा था.
वैज्ञानिक बताते हैं कि कंकाल के आकार और आसपास की परिस्थितियों के कारण इस पर शोध करना उनके लिए काफी मुश्किल रहा.
हालांकि, क्वींसलैंड संग्रहालय और अरोमंगा प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय ने बताया कि अवशेष के कई टुकड़े अच्छी स्थिति में थे.
शोधकर्ताओं का मानना है कि यह डायनासोर तीन अन्य सॉरोपोड्स प्रजातियों- विंटोनोटान, डायमेंटिनसॉरस और स्वानासॉरस का क़रीबी रहा होगा.
शोध दल के प्रमुख डॉ. स्कॉट हॉकनाल का कहना है कि ऐसा लगता है कि ऑस्ट्रेलिया का यह सबसे बड़ा डायनासोर एक विशाल परिवार का हिस्सा रहा होगा.
इसके जीवाश्म पहली बार अरोमंगा के पास एक खेत में मिले थे और इसका स्वामित्व दो डायनासोर शोधकर्ताओं, रॉबिन और स्टुअर्ट मैकेंज़ी के पास था.
क्वींसलैंड राज्य सरकार ने इस नई खोज का स्वागत किया है. क्वींसलैंड संग्रहालय नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी डॉ. जिम थॉम्पसन ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया डायनासोर की खोज के लिए दुनिया की कुछ आख़िरी जगहों में बचा है और इसके बाद अब क्वींसलैंड ऑस्ट्रेलिया की आर्कियोलॉजिकल कैपिटल बनने के लिए तैयार है.
हालांकि उन्होंने यह भी माना कि इस मामले में अभी बहुत अधिक शोध की आवश्यकता है. (bbc.com)