अंतरराष्ट्रीय
सैन फ्रांसिस्को, 17 अक्टूबर| गूगल लेंस अब 15 अरब चीजों की पहचान कर सकता है। दो साल पहले तक गूगल लेंस सिर्फ एक अरब चीजों की पहचान कर सकता था। गूगल लेंस आपको स्मार्टफोन के कैमरे से चीजों को देखता है और उनकी पहचान करता है। इनमें पौधे, जानवर, लैंडमार्क और कई अन्य चीजें शामिल हैं।
गूगल ने कहा है कि अगर आप नई भाषा सीख रहे है तों गूगल लेंस आपके लिए 100 भाषाओं का अनुवाद कर सकता है। इनमें स्पेनिश और अरेबिक भी शामिल हैं। आप गूगल लेंस की मदद से शब्दों को साफ आवाज में सुन सकते हैं।
गूगल लेंस एंड्रायड और आईओएस प्लेटफार्म पर मौजूद है और यह आपके बच्चे को होमवर्क कराने में भी मदद कर सकता है।
शॉपिंग में गूगल लेंस आपकी सबसे अधिक मदद कर सकता है। खासतौर पर ऐसी चीजों के लिए जिन्हें आप खोज रहे हैं लेकिन जिनके बारे में आप साफ शब्दों में बता नहीं सकते।
लेंस की मदद से आप अपने मनचाहे प्रॉडक्ट का फोटो या फिर स्क्रीनशॉट लेकर उसे आसानी से खोज सकते हैं। (आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को, 17 अक्टूबर (आईएएनएस)| अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने में अब बस कुछ ही दिन बाकी रह गए हैं, इस बीच गूगल ने जुलाई से सितंबर तक की अवधि में 3,000 से अधिक ऐसे फर्जी यूट्यूब चैनल हटाए हैं, जो चीन से संबंधित एक बड़े स्पैम नेटवर्क का हिस्सा रहे थे। इनके द्वारा अपने चैनल पर चुनाव को प्रभावित किए जाने संबंधी अभियानों को संचालित किया जा रहा था। कंपनी द्वारा इनका सफाया किए जाने के परिणामस्वरूप अब ये अपने चैनल पर दर्शक जुटा पाने में असमर्थ हैं।
शुक्रवार देर रात गूगल ने अपने एक बयान में कहा, "हमने जितने भी वीडियोज के पहचान किए हैं, उनमें से अधिकतर में लोगों के देखे जाने की संख्या दस से भी कम हैं और इस पर भी असली के यूजर्स के मुकाबले इन्हें स्पैम अकांउट्स से ही देखे गए हैं, जो वर्तमान में सक्रिय नहीं है।"
गूगल थ्रेट एनालिसिस ग्रुप टीएजी से शेन हंटले ने कहा, "हालांकि इन नेटवर्क्स के द्वारा पोस्ट तो नियमित तौर पर किया जाता रहा है, लेकिन इनमें स्पैम कंटेंट की अधिकता रही है। हमने यूट्यूब पर प्रभावी ढंग से दर्शकों तक इनकी पहुंच नहीं देखी है।"
इस्लामाबाद, 17 अक्टूबर (आईएएनएस)| पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को विपक्षी दलों के गंभीर हमले का सामना करना पड़ रहा है। विपक्षी दलों ने अब एक साथ मिलकर सरकार विरोधी अभियान शुरू किया है, जिसका उद्देश्य सत्तारूढ़ सरकार को पटखनी देना है।
कम से कम 11 राजनीतिक दलों वाले विपक्षी दलों के गठबंधन, पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) ने शुक्रवार को पंजाब प्रांत के गुजरांवाला शहर में एक विशाल सभा का आयोजन किया, जिसमें विपक्षी नेताओं ने लोगों से खचाखच भरी रैली को संबोधित किया।
पीडीएम ने चेतावनी दी कि खान की सरकार के ज्यादा दिन नहीं रह गए हैं और उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है।
पीएमएल-एन की वाइस प्रेसीडेंट मरियम नवाज ने कहा, "मैं उन चीजों के लिए लड़ रही हूं जो मौजूदा सरकार के कार्यकाल के दौरान नष्ट हो गई हैं और पत्रकारों के लिए लड़ रही हूं जिन्हें सेंसर कर दिया गया। जो पत्रकार सच्चाई के साथ खड़े थे, उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। आज हालात ये हैं कि महिला स्वास्थ्यकर्मी इस्लामाबाद की सड़कों पर उतर कर विरोध प्रदर्शन कर रही हैं।"
अपने पिता, पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपदस्थ किए जाने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, "किसी को भी जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों को बाहर करने का अधिकार नहीं है। यह जनता है जो सरकारें बनाती है और जिसको बनाती है, उसे हटाने का भी हक है।"
पनामा लीक और अदालत के आदेशों के बारे में बात करते हुए, शरीफ परिवार को 'सिसिलियन माफिया' के रूप में संदर्भित किए जाने का जिक्र किया। मरियम ने याद दिलाया कि अदालत को 'वास्तव में एक माफिया क्या है' के बारे में अच्छी तरह से पता होगा।
उन्होंने कहा, "आज आपने (इमरान खान) ने मीडिया को दबा दिया है, यही वजह है कि कोई भी आपके भ्रष्टाचार के बारे में बात नहीं करता।"
पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी) के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो-जरदारी ने कहा कि खान के पास गरीबों की समस्याओं का कोई समाधान नहीं है।
बिलावल ने प्रधानमंत्री के वॉलंटियर फोर्स का मजाक उड़ाते हुए कहा, "इमरान के लिए महंगाई का समाधान टाइगर फोर्स है। टिड्डियों के लिए उनका समाधान टाइगर फोर्स है। कोविड-19 के लिए उनका समाधान टाइगर फोर्स है।"
बिलावल ने कहा कि इमरान खान ने भ्रष्टाचार को खत्म करने का वादा किया, लेकिन भ्रष्टाचार के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए। उन्होंने कहा कि पीटीआई के संस्थापक सदस्यों ने दावा किया है कि खान और उनकी राजनीतिक पार्टी भारत से वित्त पोषित हुई है।
जमीयत-उलेमा-ए-इस्लाम-फजल (जेयूआई-एफ) के नेता मौलाना फजलुर रहमान के रूप में सरकार विरोधी नाराजगी जारी रही, उन्होंने सरकार को नकली शासक वाली सरकार कहा।
उन्होंने कहा कि नकली शासक के भाग्य का फैसला जल्द होगा। लोकतंत्र का सूरज जल्द ही उगने वाला है। यदि आप निडर रहते हैं, तो यह सरकार दिसंबर का महीना नहीं देखेगी।
सरकार के खिलाफ विपक्ष के गठबंधन ने गुजरांवाला सभा से एक जोरदार शुरुआत की और आने वाले दिनों में कराची, मुल्तान, लाहौर और पेशावर में इसी तरह के सरकार विरोधी रैलियां करने की इसकी योजना है।
फजल ने कहा, "हमारा आंदोलन शुरू हो गया है, यह अब बंद नहीं होगा।"
इस्लामाबाद, 17 अक्टूबर (आईएएनएस)| भारतीय उच्चायोग इस्लामाबाद उच्च न्यायालय (आईएचसी) में पहुंच गया है और उसने पाकिस्तानी जेलों में बंद 4 भारतीय दोषियों की वापसी की मांग की है। इन दोषियों ने अपनी सजा पूरी कर ली है।
वकील मलिक शाह नवाज के जरिए दायर की गई याचिका में भारतीय उच्चायोग ने कहा कि वह अदालत से अनुरोध करते हैं कि वे भारतीय कैदियों - बिर्चु, बंग कुमार, सतीश भाग और सोनू सिंह को रिहा कर दें। ये चारों सैन्य अदालतों द्वारा पाकिस्तान में जासूसी और आतंकवाद के दोषी ठहराए जाने के बाद अपनी सजा पूरी कर चुके हैं।
याचिका में कहा गया है कि कैदियों को पाकिस्तानी सैन्य अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार किया गया था और उन पर पाकिस्तान सेना अधिनियम 1954 की धारा 59 और आधिकारिक गुप्त अधिनियम 1923 के तहत आरोप लगाए गए थे।
याचिका में कहा गया, "याचिकाकर्ताओं ने कोई अपराध नहीं किया है और गिरफ्तारी से लेकर सजा पूरी होने तक कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग किया गया है, लेकिन उन्हें अब भी जेल में रखना निर्थक है। वे एफजीसीएम द्वारा दी गई सजा की अपनी अवधि को पूरी कर चुके हैं।"
आईएचसी की एकल पीठ ने मामले की सुनवाई की। मामले को आगे की कार्यवाही के लिए मुख्य न्यायाधीश अतहर मिनल्लाह के पास भेजने से पहले कहा, "ऐसे ही अन्य मामले आईएचसी के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष लंबित हैं।"
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा, "कैदियों की हिरासत अवैध और अन्यायपूर्ण और देश की श्रेष्ठ अदालतों के कानून के खिलाफ है। ऐसा कोई कानूनी आधार नहीं है, जिसके तहत पूर्व दोषियों को सलाखों के पीछे रखा जा सके, इसलिए पूर्व दोषियों को रिहा किया जाना चाहिए और उनके देश में वापस लाया जाना चाहिए, ताकि वे अपने परिवारों से मिल सकें।"
आईएचसी के मुख्य न्यायाधीश इस मामले की सुनवाई ऐसे ही अन्य मामलों के साथ करेंगे।
न्यूजीलैंड, 17 अक्टूबर। न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डर्न की पार्टी ने शनिवार को हुए आम चुनावों में भारी जीत हासिल की है। अधिकतर मत गिने जा चुके हैं। अभी तक आए नतीजों में आर्डर्न की लेबर पार्टी को 49 फीसदी वोट मिले हैं और उम्मीद की जा रही है कि वो न्यूजीलैंड की राजनीति में दुर्लभ बहुमत हासिल कर लेंगी। विपक्षी मध्य-पंथी नेशनल पार्टी को अब तक 27 फीसदी वोट मिले हैं और पार्टी ने अपनी हार स्वीकार कर ली है।
नेशनल पार्टी की नेता जूडिथ कॉलिंस ने जेसिंडा आर्डर्न को मुबारकबाद देते हुए अपनी हार स्वीकार कर ली है। ये चुनाव एक महीना पहले सितंबर में होने थे लेकिन कोविड महामारी की वजह से इन्हें आगे बढ़ा दिया गया था। मतदान स्थानीय समयानुसार सुबह नौ बजे शुरू हुआ और शाम सात बजे खत्म हो गया।लेकिन तीन अक्तूबर को शुरू हुए जल्द मतदान में दस लाख के करीब लोगों ने वोट डाल दिया था। न्यूजीलैंड में आम चुनावों के साथ-साथ लोगों से दो जनमतसंग्रहों पर भी मदतान करवाया गया है।
क्या पूर्ण बहुमत हासिल कर लेंगी आर्डर्न?
चुनाव आयोग के मुताबिक लेबर पार्टी को 49 फीसदी, नेशनल पार्टी को 27 फीसदी और ग्रीन और एक्ट न्यूजीलैंड पार्टी को 8-8 फीसदी वोट मिले हैं।
नेशनल पार्टी की नेता जूडिथ कॉलिंस ने जेसिंडा आर्डर्न को मुबारकबाद दे दी है।
जीत के बाद अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए आर्डर्न ने कहा, न्यूजीलैंड ने लेबर पार्टी को पचास सालों में सबसे बड़ा समर्थन दिया है। हम आपके समर्थक को हल्के में नहीं लेंगे. मैं ये वादा करती हूं कि हमारी पार्टी न्यूजीलैंड के हर नागरिक के लिए काम करेगी।
आर्डर्न की पार्टी को 64 सीटें मिल सकती हैं। न्यूजीलैंड में 1996 में लागू हुई नई संसदीय प्रणाली (एमएमपी) के बाद से किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हुआ है। चुनावों से पहले विश्लेषकों ने आर्डर्न की पार्टी को इतनी बड़ी जीत मिलने पर संदेह जाहिर किया था।
यूनिवर्सिटी ऑफ ऑकलैंड की प्रोफेसर जेनिफर कर्टिन ने कहा था कि इससे पहले भी पार्टी नेताओं को बहुमत मिलने की उम्मीदें जाहिर की गईं थीं लेकिन वो नाकाम रहे थे।
उन्होंने कहा था, न्यूजीलैंड के मतदाता रणनीतिक मतदान करते हैं और अपना वोट पार्टियों में बांटते हैं। करीब तीस प्रतिशत मतदाता छोटी पार्टियों को वोट देते हैं, ऐसे में लेबर पार्टी का 50 फीसदी वोट हासिल करना मुश्किल होगा।
आर्डर्न ने अपने चुनाव अभियान में पर्यावरण संबंधी नीतियां लाने, पिछड़े स्कूलों के लिए अधिक फंड मुहैया कराने और अधिक आय वाले लोगों पर अतिरिक्त कर लगाने का वादा किया था।
न्यूजीलैंड में कैसे होता है चुनाव?
न्यूजीलैंड में हर तीन साल में आम चुनाव होते हैं. एमएमपी चुनाव व्यवस्था के तहत मतदाताओं से अपनी पसंदीदा पार्टी और संसदीय सीट के प्रतिनिधि के लिए अलग-अलग वोट देने के लिए कहा जाता है।
संसद में दाखिल होने के लिए एक पार्टी को कम से कम पांच फ़ीसदी पार्टी वोट या फिर संसदीय सीट जीतनी होती है। माओरी समुदाय के उम्मीदवारों के लिए भी सीटें सुरक्षित होती हैं।
सरकार बनाने के लिए 120 में से 61 सीटें जीतना अनिवार्य होता है। लेकिन एमएमपी लागू होने के बाद से कोई भी पार्टी अकेले अपने दम पर सरकार नहीं बना सकी है। आमतौर पर पार्टियों को मिलकर काम करना होता है और सरकार गठबंधन से चलती है।
इस व्यवस्था के तहत छोटी पार्टियों की भूमिका भी अहम हो जाती है। 2017 के चुनावों में नेशनल पार्टी को सबसे ज़्यादा सीटें मिलीं थीं लेकिन वो सरकार नहीं बना सकी थी। तब आर्डर्न की लेबर पार्टी ने ग्रीन पार्टी और न्यूजीलैंड फस्र्ट पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। (bbc.com/hindi)
वेलिंगटन, 17 अक्टूबर| न्यूजीलैंड के आम चुनाव में लाखों मतदाताओं ने शनिवार को मतदान केंद्रों की ओर रुख रहे हैं। प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न की नजर अपने दूसरे कार्यकाल के लिए बहुमत हासिल करने पर है। यह चुनाव पहले 19 सितंबर को होने वाला था, लेकिन कोविड-19 की दूसरी लहर के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, पिछली बार संसदीय चुनाव 23 सितंबर, 2017 को हुआ था। बीते 6 सितंबर को संसद को भंग कर दिया गया, ताकि चुनाव के लिए आधिकारिक रूप से मार्ग प्रशस्त हो सके।
देशभर के मतदान केंद्र सुबह 9 बजे खुले और शाम 7 बजे बंद होंगे।
3 अक्टूबर को शुरू हुए शुरुआती मतदान में 10 लाख से अधिक लोग पहले ही मतदान कर चुके हैं।
शनिवार को शाम 7 बजे मतदान खत्म होने के बाद आम चुनाव के प्रारंभिक परिणाम जारी किए जाएंगे।
आयोग के अनुसार, चुनाव परिणामों को प्राथमिकता दी जाएगी और शनिवार रात दो जनमत संग्रहों में दर्ज वोटों की गिनती नहीं की जाएगी।
प्रारंभिक जनमत संग्रह के परिणाम 30 अक्टूबर को जारी किए जाएंगे और चुनाव और जनमत संग्रह के आधिकारिक परिणाम 6 नवंबर को जारी किए जाएंगे।
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, इस बीच के मत सर्वेक्षण पर गौर करें तो जैसिंडा बहुमत के साथ दूसरी बार पद पर आसीन हो सकती हैं। उनके कोरोनावायरस प्रकोप से उबरने के लिए चलाए गए अभियान के सफल रहने से यह संभावना बढ़ी है।
हालांकि साल 1996 में मिक्स्ड मेंबर प्रोपर्शनल रिप्रेजेंटेटिव (एमएमपी) के रूप में जानी जाने वाली संसदीय प्रणाली की शुरुआत से ही अभी तक किसी भी पार्टी ने न्यूजीलैंड में एकतरफा बहुमत नहीं जीता है।
ऑकलैंड विश्वविद्यालय की प्रोफेसर जेनिफर कर्टिन ने बीबीसी को बताया कि पूर्व में भी ऐसी ही परिस्थितियां रही हैं, जहां एक नेता के बहुमत हासिल करने की पूरी संभावना थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
उन्होंने कहा, "जब जॉन की नेता थे, तो ऑपिनियन पोल ने उनके 50 प्रतिशत वोट पर अपनी संभावना जताई थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।" (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 17 अक्टूबर| एबीसी न्यूज पर आयोजित हुए डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बाइडेन के टाउन हॉल को 14.1 मिलियन यानी 1.4 करोड़ दर्शकों ने देखा। नए आंकड़ों के मुताबिक, इसने एनबीसी न्यूज पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टाउन हॉल रेटिंग को पीछे छोड़ दिया। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, नीलसन मीडिया रिसर्च के शुक्रवार के आंकड़ों से पता चला है कि ट्रंप के समारोह को पिछली रात एनबीसी और इसके एमएसबीसी और सीएनबीसी केबल चैनलों पर एक ही समय में प्रसारित किया गया था। इसे कुल मिलाकर 13.5 मिलियन यानी 1.35 करोड़ लोगों ने देखा।
सीएनएन की रिपोर्ट में कहा गया, "टीवी बिजनेस को लेकर ऐसे परिणामों की उम्मीद नहीं थी।"
टाउन हॉल प्रतिस्पर्धा से पहले व्यापक रूप से उम्मीद की जा रही थी कि ट्रंप को नीलसन रेटिंग में अच्छा स्कोर मिलेगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि बाइडेन का टाउन हॉल केवल एबीसी पर प्रसारित होना था, जबकि ट्रंप का टाउन हॉल एनबीसी और उसके दो केबल चैनलों पर भी प्रसारित होना था।
नीलसन रेटिंग में सभी चैनल और केबल चैनलों के दर्शकों की संख्या शामिल है, साथ ही साथ उन इंटरनेट टीवी के जरिए जुड़े दर्शकों की संख्या और घर के बाहर जैसे बार, रेस्तरां के दर्शकों की संख्या भी शामिल है।
दोनों उम्मीदवारों के टाउन हॉल फोन, कंप्यूटर और अन्य उपकरणों के जरिए लाइव-स्ट्रीम किए गए थे।
बता दें कि ट्रंप और बाइडेन के बीच मूल रूप से मियामी में गुरुवार को बहस होनी थी, लेकिन उसे रद्द कर दिया गया था। राष्ट्रपति पद के लिए बहस को आयोजित करने वाले आयोग ने ट्रंप के कोरोना संक्रमित होने के बाद इसे 1 अक्टूबर को वर्चुअली आयोजित करने का निर्णय किया था, लेकिन उसे रद्द कर दिया गया।
अब टेनेसी के नैशविले में 22 अक्टूबर को अंतिम राष्ट्रपति बहस होनी है। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 17 अक्टूबर| अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मजाक में कहा है कि अगर वह 3 नवंबर को अपने डेमोक्रेटिक प्रतिद्वंद्वी जो बाइडन से चुनाव हार जाते हैं तो शायद उन्हें देश छोड़ना पड़ेगा।
द हिल न्यूज वेबसाइट के मुताबिक, ट्रंप ने शुक्रवार रात मैकॉन, जॉर्जिया में एक प्रचार अभियान के दौरान यह टिप्पणी की।
उन्होंने कहा, " मुझे मजाक नहीं करना चाहिए क्योंकि आप जानते हैं कि राष्ट्रपति चुनाव की राजनीति के इतिहास में सबसे खराब उम्मीदवार के खिलाफ लड़ने से मुझ पर दबाव पड़ता है। क्या आप सोच सकते हैं कि अगर मैं हार गया? पूरे जीवन, मैं क्या करने जा रहा हूं? मैं कहने जा रहा हूं कि मैं राजनीति के इतिहास में सबसे खराब उम्मीदवार से हार गया। मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगेगा।"
राष्ट्रपति ने कहा, "शायद मुझे देश छोड़ना पड़ेगा? मुझे नहीं पता।"
ट्रंप के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए, पूर्व उपराष्ट्रपति ने एक ट्वीट में कहा, "मैं जो बाइडन हूं और मैं इस संदेश को अप्रूव करता हूं।"
ट्रंप का नवीनतम व्यंग्य नॉर्थ कैरोलिना में एक रैली में पिछले महीने दिए बयान के एक समान है, जहां उन्होंने कहा था, "अगर मैं उनसे (बाइडन) हार जाता हूं, तो मुझे नहीं पता कि मैं क्या करने जा रहा हूं। मैं आपसे फिर कभी बात नहीं करूंगा।"
2016 में चुनाव प्रचार करते समय, ट्रंप ने कहा था कि अगर वह राष्ट्रपति पद के लिए रिपब्लिकन नामांकन खो देते हैं, तो वह सार्वजिनक रूप से नजर नहीं आएंगे। (आईएएनएस)
अरुल लुइस
वाशिंगटन, 17 अक्टूबर| साल 2016 के चुनाव में इस समय तत्कालीन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप हजारों हिन्दू समर्थकों की एक बड़ी रैली को संबोधित कर रहे थे लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो रहा है, बल्कि होने की संभावना भी नहीं है। रिपब्लिकन हिंदू कोऑलिशन (आरएचसी) ने 15 अक्टूबर, 2016 को न्यूजर्सी में उस रैली का आयोजन किया था लेकिन इस साल उन्होंने निर्णय किया है कि जब तक ट्रंप इमीग्रेशन में सुधार करने की गारंटी नहीं देंगे, वो ट्रंप के लिए कोई प्रचार अभियान नहीं करेंगे।
आरएचसी के संस्थापक शलभ कुमार ने आईएएनएस से कहा, "हम अपने समूह के सदस्यों से ट्रंप का समर्थन करने के लिए कहेंगे और हिंदुओं से ट्रंप को वोट देने का आग्रह करेंगे, लेकिन हम 2016 जैसे किसी भी तरह के के प्रचार कार्यक्रम का आयोजन नहीं करेंगे, जिसमें 8,000 लोगों ने हिस्सा लिया था।"
उन्होंने आगे कहा, "पिछली बार हमने 'अबकी बार ट्रम्प सरकार' का नारा दिया था लेकिन इस बार हम राष्ट्रपति के साथ बैठक की प्रतीक्षा कर रहे हैं ताकि ग्रीन कार्ड को लेकर स्थिति की स्पष्टता पा सकें।"
उन्होंने बताया कि आरएचसी में लगभग 50,000 सदस्य हैं, जिनमें पूरी दुनिया के हिन्दू शामिल हैं।
जबकि डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडन कोविड -19 महामारी के कारण बड़ी रैलियां नहीं कर रहे हैं, वहीं ट्रंप अपने लिए एक हिंदू कार्यक्रम आयोजित करना चाहते हैं। उन्होंने 'हिन्दू वॉइसेस फॉर ट्रंप' नाम से एक प्रोग्राम लॉन्च किया है, जो अलग से सिखों, मुसलमानों और भारतीय-अमेरिकियों को टारगेट करता है लेकिन उन्होंने हिन्दुओं के लिए कुछ नहीं किया है।
वहीं डेमोक्रेट्स पहली बार राजा कृष्णमूर्ति के प्रतिनिधित्व में 'हिंदूज फॉर बिडेन' के जरिए हिन्दुओं तक पहुंच रहे हैं। डेमोक्रेटिक पार्टी में हुए इस बदलाव को देखते हुए, कुमार ने चुटकी ली, "हमने कम से कम हिन्दू शब्द को लोकप्रिय बना दिया है।"
कुमार जहां इमिग्रेशन सुधारों के जरिए ग्रीन कार्ड के पुराने मामलों का निपटारा (बैकलॉग) चाहता है। क्योंकि करीब 10 लाख लोगों का ग्रीन कार्ड बनना है और वे बहुत परेशानी में हैं। वहीं ट्रंप योग्यता के आधार पर इमिग्रेशन की बात करते हैं।
रिपब्लिकन सीनेटर माइक ली के अनुमान के अनुसार, बैकलॉग को लेकर स्थिति इतनी खराब है कि कुछ भारतीयों को ग्रीन कार्ड पाने में 195 साल लग सकते हैं। ग्रीन कार्ड स्थायी प्रवासी का दर्जा देता है और इसे पाने वालों को पूरी नागरिकता पाने की सूची में शुमार करता है।
कुमार कहते हैं, "हम सुनिश्चित करना चाहते हैं कि इमिग्रेशन के मुद्दे को ध्यान में रखा जाए, चाहे ट्रंप फिर से चुनकर आएं..जैसा कि हम चाहते हैं। लेकिन जमीन पर वास्तविकता को देखते हुए अगर बाइडन राष्ट्रपति बनते हैं तो हम चाहते हैं कि तब भी इस मुद्दे को ध्यान में रखा जाए।" (आईएएनएस)
पेरिस 17 अक्टूबर (स्पूतनिक) फ्रांस की राजधानी पेरिस में शुक्रवार को एक अज्ञात हमलावर ने चाकू से हमला कर एक शिक्षक की हत्या कर दी। हमलावर ने शिक्षक पर चाकू से हमला कर उसका सिर काट दिया।
पुलिस ने हमलावर को गिरफ्तार करने की कोशिश की लेकिन फिर उन्हें उसे गोली मारनी पड़ी जिसमें वह मारा गया है। हमलावर का नाम सार्वजनिक नहीं किया गया है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक एक अज्ञात हमलावर ने कॉन्फलांस-संत-हॉनोरिन इलाके में शिक्षण संस्थान के नजदीक शिक्षक पर हमला कर उसका सिर काट दिया। जिस शिक्षक की हत्या की गयी है वह अपने छात्रों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में पढ़ाया करते थे और उन्होंने छात्रों को पैगम्बर मोहम्मद के काॅर्टून भी दिखाए थे। शिक्षक पर हमला करने वाला व्यक्ति किसी छात्र का ही अभिभावक बताया जा रहा है।
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने शिक्षक की हत्या को एक आतंकवादी हमला करार दिया है।
श्री मैक्रॉन ने कहा, “ बच्चों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में पढ़ाने के लिए हमारे साथी की हत्या कर दी गयी। हमारा साथी एक आतंकवादी हमले का शिकार हुआ है।”
पेरिस, 17 अक्टूबर | फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने पेरिस के उत्तर-पश्चिमी उपनगर में एक शिक्षक का सिर काटे जाने की घटना को 'इस्लामिक आंतकी हमला' कहा है और उन्होंने चरमपंथियों से निपटने के लिए अपनी सरकार द्वारा त्वरित और ठोस कार्रवाई किए जाने का वादा किया।
मैक्रों ने हमले के कुछ घंटों बाद कॉन्फ्लैन्स-सौं-होनोरी मिडल स्कूल का दौरा करने के बाद मीडिया से कहा, "हमारे एक नागरिक की आज हत्या कर दी गई क्योंकि वह छात्रों को अभिव्यक्ति की आजादी सिखा रहा था।"
उन्होंने कहा, "वह एक शिक्षक थे, जिन्हें आतंकवादी ने मार डाला क्योंकि वह आतंकवादी गणतंत्र को नष्ट करना चाहता था .. हमारे बच्चों को स्वतंत्र नागरिक बनाने की संभावना को नष्ट कर देना चाहता था।"
मैक्रों ने जोर देकर कहा कि आतंकवादी फ्रांस को विभाजित नहीं कर पाएंगे।
स्थानीय मीडिया के अनुसार, पीड़ित एक 47 वर्षीय इतिहास शिक्षक हैं, जिन्होंने कथित तौर पर अपने छात्रों को पैगंबर मोहम्मद के कार्टून दिखाए थे, जिन्हें मुसलमानों द्वारा ईश निंदा के रूप में माना जाता है, और एक आतंकवादी ने चाकू से उनका सिर काट दिया।"
माना जा रहा है कि संदिग्ध हमलावर 18 साल का है, जिसके बारे में ज्यादा जानकारी ज्ञात नहीं है।
उसे गश्ती पुलिस ने चाकू के साथ देखा था।
उसने कथित तौर पर हमले से पहले 'अल्लाहु अकबर', या कगॉड इज ग्रेटेस्टत चिल्लाया।
आत्मसमर्पण करने से इनकार करने पर अधिकारियों ने उस पर गोली चला दी, जिससे वह मारा गया।
शिक्षा मंत्री जीन-मिशेल ब्लैंकर ने ट्वीट किया, "आज रात, यह गणतंत्र है जिसके सेवक, एक शिक्षक की हत्या के साथ उस पर (गणतंत्र) हमला हुआ है।"
उन्होंने कहा कि एकता और ²ढ़ता ही इस्लामिक आतंकवाद की संकीर्णता का जवाब है।
फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने भी इस घटना की निंदा की है।(आईएएनएस)
ब्रसेल्स, 17 अक्टूबर | बेल्जियम के प्रधानमंत्री अलेक्जेंडर डे क्रू ने परामर्श समिति की बैठक के अंत में कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए एक राष्ट्रव्यापी कर्फ्यू सहित सख्त कदम उठाए जाने की घोषणा की।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने शुक्रवार को बताया कि क्रू के अनुसार, आधी रात से सुबह 5 बजे तक कर्फ्यू लगाया जाएगा, जिसकी शुरुआत सोमवार से हो रही है।
महीने भर तक के लिए कैफे और रेस्तरां बंद रहेंगे। प्रधानमंत्री ने आश्वस्त किया कि एक निष्पक्ष और वित्तीय सहायता योजना इन उपायों के साथ होगी।
रात 8 बजे के बाद शराब की बिक्री नहीं होगी।
बाजार खुले रहेंगे लेकिन 1.5 मीटर की सोशल डिस्टेंसिग को बनाए रखना होगा। मास्क पहनना होगा और हाथ साफ रखना जैसी बातों का भी ध्यान रखना होगा। हालांकि, क्रिसमस मार्केट और फ्ली मार्केट रद्द कर दिए गए हैं।
बेल्जियम में कोरोना के अब तक 191,959 मामले सामने आ चुके हैं, जबकि 10,327 लोग जान गंवा चुके हैं।(आईएएनएस)
लंदन, 16 अक्टूबर | ब्रिटेन के डरहम यूनिवर्सिटी में पिछले कुछ सप्ताह में कोरोनावायरस से छात्र और स्टाफ मेंम्बर समेत लगभग 1,000 लोग पॉजिटिव पाए गए हैं। सिंहुआ न्यूज एजेंसी के रिपोर्ट अनुसार, उत्तरी इंग्लैंड में स्थित विश्वविद्यालय ने गुरुवार को अपने बयान में कहा है कि कोरोनावायरसजांच रिपोर्ट में 958 छात्र और 6 स्टाफ सदस्य पॉजिटिव पाए गए हैं।
स्कूल प्रवक्ता ने कहा, "पिछले एक सप्ताह में कोरोनावायरस से कई छात्र और स्टाफ संक्रमित हुए हैं। यहां रोजाना कम से कम 100-150 पॉजिटिव मामले पाए जा रहे हैं।"
उन्होंने कहा, "हम लगातार और नियमित रूप से स्थानीय और राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के साथ स्थिति पर निगरानी रखे हुए हैं और जहां आवश्यक हो उचित कार्रवाई कर रहे हैं।"
उन्होंने कहा कि सभी संक्रमित कर्मचारी और छात्र एनएचएस द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार, होम-आईसोलेशन में हैं और हमारा पूरा समर्थन प्राप्त कर रहे हैं।
विश्वविद्यालय के 17 कॉलेजों में से दो, सेंट मेरीज और कॉलिंगवुड में 8 अक्टूबर के बाद से नए प्रतिबंध लगाए गए थे ताकि कोरोना प्रसार पर लगाम लगाया जा सके।
विश्वविद्यालय में 20,500 छात्र और 4,000 स्टाफ मेंम्बर हैं।
--आईएएनएस
बीजिंग, 16 अक्टूबर | चीन दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है। मिस्र, मैसोपोटामिया और भारत की तरह चीनी इतिहास की जड़ें भी कई हजार साल पुरानी हैं। चीन में एक विशेष और अनोखी संस्कृति पैदा हुई जो सदियों तक सामंती प्रभाव में रही। फिर 20वीं सदी में चीनी समाज ने करवट बदली, और सामंतवाद और उपनिवेशवाद के विरूद्ध जन आंदोलन हुआ। साल 1949 में कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में नये चीन की स्थापना हुई। साल 1950 से 1970 के दशकों में चीन में समाजवाद और उसके प्रमुख नेताओं- माओ त्सेतुंग और चोऊ एनलाए का बोलबाला रहा, तब बाहरी दुनिया को चीन बंद-बंद और कटा-कटा नजर आता था। लेकिन, साल 1976 में माओ और चाऊ का निधन हो गया और फिर साल 1978 से चीन में सुधारों का दौर शुरू हुआ।
जब चीन में आर्थिक सुधार को लागू किया गया, तब चीन की दिशा और दशा में बड़ा परिवर्तन आया। साल 1980 से चीन के बुद्धिजीवी और अधिकारी नई तरह से सोचने लगे, और देश के विकास में नई रोशनी आने लगी। कहा जाए तो चीनी समाज ने रास्ता बदला और राजनीति से ज्यादा अर्थव्यवस्था महत्वपूर्ण हो गई। तब चीन में अमीर बनने पर जोर दिया जाने लगा। चीन ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को अलग रूप देने में काफी हद तक सफलता हासिल की।
बहरहाल, पिछले चार दशक से चीन ने दुनिया के लिए दरवाजे खोल दिये, और विदेशी कंपनियों को पूंजी निवेश करने का न्यौता दिया जाने लगा। नतीजा यह रहा कि चीन एक गरीब और साधनहीन देश से ऊपर उठकर दुनिया की दूसरी बड़ी महाशक्ति बन गया। नई तकनीक, सस्ता श्रम और निर्यात ने चीन में बनी वस्तुओं को दुनिया भर में सस्ता और लोकप्रिय बना दिया।
चीन ने एक बड़ी छलांग लगाई और बड़े पैमाने पर सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन हुआ। इसमें कोई शक नहीं कि इससे चीनी लोगों का जीवन स्तर ऊपर उठा है। आर्थिक सुधारों से पहले की 'तथाकथित' समाजवादी नीतियां काम नहीं कर रही थीं, लेकिन आज चीन में अधिकतर लोग अच्छा जीवन गुजार रहे हैं। उनके विचारों की पुष्टि आंकड़ों से भी होती है। कोरोना महामारी से कुछ साल पहले से चीन के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर 8-9 प्रतिशत के आसपास रही है, जो कि बहुत अच्छी मानी जाती है।
यकीनन, चीन के इस तेज विकास का श्रेय आर्थिक सुधारों को जाना चाहिए। पिछले 40 सालों में चीन में हुए आर्थिक विकास का प्रमुख कारण है कि चीनी सरकार और कम्युनिस्ट पार्टी ने अलग नीतियां अपनाईं, और सारा जोर आर्थिक प्रगति पर दिया, जिसके चलते चीनी नेताओं की और देश की मानसिकता बदल गई, और नई सदी में चीन आधुनिक और बड़ी महाशक्ति के रूप में उभरा।
अब चीन का दुनिया पर प्रभाव है जो पहले से कहीं अधिक व्यापक, गहरा और दीर्घकालिक है, और दुनिया चीन पर भी अधिक ध्यान दे रही है। चीन ने कम समय में कामयाबी हासिल कर ली, जिसे कुछ विकसित देशों को हासिल करने में कई सौ साल लग गए थे। चीन अब दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जिसने अपने लगभग 1.4 बिलियन लोगों की भौतिक जरूरतों को पूरा किया, और चौतरफा समृद्धि हासिल की।
आज, चीन विश्व आर्थिक विकास का प्रमुख स्थिरता और प्रेरक बल बन गया है। चीन का विकास एक खतरा या चुनौती के बजाय दुनिया के लिए एक अवसर है। इसने विकास को अन्य विकासशील देशों के लिए अनुभव और सबक की ओर अग्रसर किया है।
-- आईएएनएस
इस्लामाबाद, 16 अक्टूबर| पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में एक आतंकवादी हमले में आठ सैनिक और सात सिविल सुरक्षाकर्मी मारे गए हैं। पुलिस सूत्रों ने यह जानकारी दी।
सूत्रों ने सिन्हुआ समाचार एजेंसी को बताया कि यह घटना गुरुवार को ओरमारा इलाके में हुई, जब आतंकवादियों के एक समूह ने घात लगाकर फ्रंटियर कोर (एफसी) और ऑयल एंड गैस डेवलपमेंट कंपनी लिमिटेड (ओजीडीसीएल) के एक काफिले पर हमला किया और घटनास्थल से भाग गए।
सूत्रों ने बताया, "तीन एफसी वाहनों की सुरक्षा में ओजीडीसीएल के दो वाहन कराची जा रहे थे, जब आतंकवादियों ने उनपर हमला कर दिया।"
हमले के बाद आंतकवादियों ने वाहनों को भी जलाकर नष्ट कर दिया।
अर्धसैनिक बल और पाकिस्तानी नौसेना के जवान हमले की जगह पर पहुंच गए और शवों को पास के नौसैनिक अड्डे पर भेज दिया।
भागने वाले आतंकवादियों को गिरफ्तार करने के लिए क्षेत्र में एक तलाशी अभियान शुरू किया गया है।
प्रांत के कई चरमपंथी संगठनों के गठजोड़ से बने एक गैरकानूनी संगठन बलूच राजी अजोई संगर (बीआरएसी) ने हमले की जिम्मेदारी ली है।
इसी संगठन ने अप्रैल 2019 में इसी इलाके में हमला कर नौसेना के करीब 11 जवानों की जान ले ली थी।
हमले की निंदा करते हुए, प्रधानमंत्री इमरान खान ने घटना की एक रिपोर्ट मांगी है और संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया कि हमले के अपराधियों की पहचान करने और उन्हें न्याय के कठघरे में लाने के लिए हर संभव प्रयास करें। (आईएएनएस)
इस्लामाबाद, 16 अक्टूबर | पाकिस्तान के राष्ट्रीय जवाबदेही ब्यूरो (एनएबी) ने इस्लामाबाद हाईकोर्ट (आईएचसी) को सूचित किया है कि फर्जी बैंक खातों के मामले में पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया है। डॉन न्यूज के मुताबिक, हालांकि, हाई कोर्ट ने जरदारी को चिकित्सा कारणों से व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट दे दी है।
विपक्षी दलों के पहले शक्ति प्रदर्शन से एक दिन पहले गिरफ्तारी वारंट जारी करने पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी) के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो-जरदारी ने गुरुवार को ट्वीट किया, "पंजाब में पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट के पहले जलसा के लिए जाने के दौरान खबर मिली कि एनएबी ने मेरे पिता के लिए गिरफ्तारी वारंट जारी किया है जो पिछले कुछ दिनों से अस्पताल में भर्ती हैं।"
उन्होंने कहा, "ये रणनीति पीपीपी के लिए नई नहीं है और अब हमें कुछ भी नहीं डिगा सकता।"
जरदारी अपने सहायक निजी सचिव मुश्ताक और जैन मलिक के जॉइंड अकाउंट के माध्यम से बहरिया टाउन से 8.3 अरब पाकिस्तानी रुपये के संदिग्ध लेन-देन से संबंधित मामले में गिरफ्तारी पूर्व जमानत की मांग कर रहे हैं।
हाईकोर्ट ने 18 जून, 2019 को मामले में जरदारी को गिरफ्तारी पूर्व अंतरिम जमानत दी थी।
अभी जमानत की पुष्टि नहीं हुई है।
अदालत ने सुनवाई को 5 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दिया और पूर्व राष्ट्रपति की अंतरिम जमानत भी उसी तारीख तक बढ़ा दी गई है।(आईएएनएस)
जर्मनी ने कोरोना के रोज नए हजारों मामलों के सामने आने के बाद नए सख्त नियम लागू किए हैं. जर्मनी में पिछले 24 घंटों में 6,638 नए मामले दर्ज किए गए. फ्रांस ने मामलों को देखते हुए नौ शहरों में रात का कर्फ्यू लगा दिया है.
यूरोपीय देश एक बार फिर कोरोना वायरस के नए मामलों से जूझ रहे हैं. कोरोना के नए मामलों को देखते हुए सरकारें दोबारा सख्त कदम उठाने को मजबूर हुई हैं. पिछले 24 घंटों में जर्मनी में कोविड-19 के 6,638 नए मामले दर्ज किए गए हैं. रोजाना इतने मामले महामारी के शुरू होने के बाद पहली बार दर्ज किए गए हैं. जर्मनी में कोरोना के मामलों में बेतहाशा वृद्धि होने के आसार के बाद देश में चिंता बढ़ गई है.
जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने बुधवार को 16 राज्यों के साथ बैठक की और वायरस के प्रसार को रोकने के लिए प्रतिबंधों को और सख्त करने का फैसला लिया. रॉबर्ट कॉख इंस्टीट्यूट के मुताबिक इससे पहले 28 मार्च को एक दिन में सबसे अधिक 6,294 मामले दर्ज किए गए थे.
कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए जो कदम उठाए गए हैं उनमें चेहरे पर मास्क लगाना और कितने लोग आपस में मिल सकते हैं, को लेकर नियम शामिल हैं. कोविड-19 मामलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए लोगों के मिलने जुलने की संख्या पर संघीय और राज्य सरकारों ने सख्त कदम उठाने को लेकर सहमति जताई है. वायरस के प्रसार को रोकने के लिए उपायों के मुताबिक निजी समारोह में लोगों की संख्या सीमित करना, हॉटस्पॉट वाले क्षेत्रों में बार और रेस्तरां के लिए कर्फ्यू लगाना शामिल है.
जर्मन चांसलर अंगेला मर्केल और 16 राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच बुधवार को आठ घंटे की बैठक के बाद इन नियमों पर सहमति व्यक्त की गई है. मैर्केल ने कहा, "मुझे यकीन है कि अब हम जो करेंगे वह इस महामारी के दौर से पार पाने में निर्णायक होगा." उन्होंने आगे कहा, "हम कोरोना के मामलों में बेतहाशा बढ़ोतरी के चरण में हैं, रोजाना के आंकड़े यह बताते हैं."
मैर्केल ने देश के युवाओं से अपील की कि वे अभी से पार्टियों से बचें ताकि वे बाद में जीवन का आनंद ले सकें. उन्होंने कहा, "हमें विशेष रूप से युवाओं को कुछ पार्टियों के बिना रहने का आग्रह करना चाहिए ताकि वे आने वाले दिनों में अच्छी जिंदगी जी सकें." बवेरिया राज्य के मुख्यमंत्री मारकुस जोएडर ने भी इस बैठक में हिस्सा लिया और कहा, "हमने बहुत लंबा सफर तय किया है क्या अभी और बहुत कुछ देखना बाकी है."
जर्मनी में कड़े नियम
जिन क्षेत्रों को हॉटस्पॉट के तौर पर देखा जा रहा वहां सभी कार्यक्रमों में लोगों की संख्या 10 कर दी गई जबकि निजी स्थानों में वाले कार्यक्रम में सिर्फ दो परिवार ही हिस्सा ले पाएंगे. एक हॉटस्पॉट को एक ऐसे क्षेत्र के रूप में परिभाषित जाता है जहां सात दिनों की अवधि में प्रति 1,00,000 लोगों पर 50 नए संक्रमण के मामले दर्ज किए जाते हैं. गैर हॉटस्पॉट वाले क्षेत्रों में होने वाले समारोह के लिए 25 लोगों की संख्या तय की गई और निजी समारोह में केवल 15 लोग ही शामिल हो पाएंगे. हॉटस्पॉट वाले इलाकों में पब और रेस्तरां को रात 11 बजे तक बंद करने होगा. बर्लिन और फ्रैंकफर्ट में यह नियम पहले से ही लागू है.
मास्क को लेकर भी नियम कड़े कर दिए गए हैं. प्रति एक लाख में 35 नए संक्रमण के मामले आने पर सभी सार्वजनिक जगहों पर मास्क लगाना अनिवार्य होगा. अगर क्षेत्र हॉस्पॉट में तब्दील हो जाता है तो मास्क को लेकर नियम और सख्त कर दिए जाएंगे.
फ्रांस में कर्फ्यू
फ्रांस ने कोरोना वायरस की दूसरी लहर के बीच बुधवार रात कर्फ्यू का ऐलान कर दिया है. फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने टीवी पर दिए अपने संबोधन में कहा कि पेरिस और अन्य आठ शहरों में कर्फ्यू लगाया जाएगा. फ्रांस के नौ शहरों में रात 9 बजे से लेकर सुबह 6 बजे तक कर्फ्यू लागू रहेगा. यह कर्फ्यू शनिवार से लागू होगा और यह अगले चार हफ्ते तक लागू रहेगा. कर्फ्यू के दौरान लोग घरों से बाहर रेस्तरां में नहीं जा सकेंगे और ना ही किसी के घर पर. माक्रों ने अपने संबोधन में कहा, "हमें अब कदम उठाना होगा. हमें वायरस के प्रसार पर ब्रेक लगाना होगा."
गौरतलब है कि कि फ्रांस में पिछले कुछ दिनों से कोविड-19 के नए मामलों में तेजी से इजाफा होना शुरू हुआ है जिसके बाद फ्रांस सरकार को कर्फ्यू जैसा कदम उठाना पड़ा है.
एए/सीके (डीपीए, एएफपी, रॉयटर्स)
अरुल लुईस
न्यूयॉर्क, 16 अक्टूबर| एक नए सर्वे में पता चला है कि डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बाइडन को भारतीय-अमेरिकी समुदाय का जबरदस्त समर्थन मिल रहा है। वहीं, पार्टी की उपराष्ट्रपति पद की भारतीय मूल की उम्मीदवार कमला हैरिस ने चुनाव के मद्देनजर जोश और उत्साह बढ़ा दिया है।
अमेरिका में 3 नवंबर को चुनाव है।
गुरुवार को जारी सर्वेक्षण में बताया गया है कि पंजीकृत भारतीय-अमेरिकी मतदाताओं में से 72 प्रतिशत ने कहा कि उन्होंने बाइडन-हैरिस के समर्थन में मतदान करने की योजना बनाई है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को महज 22 प्रतिशत का समर्थन हासिल है।
2016 पोस्ट-इलेक्शन नेशनल एशियन-अमेरिकन सर्वे के अनुसार, 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में हिलरी क्लिंटन को मिले 77 प्रतिशत समर्थन के मुकाबले बाइडन को मिल रहे समर्थन में पांच प्रतिशत की कमी देखने को मिल रही है। वहीं, पिछले चुनाव में 16 प्रतिशत की तुलना में ट्रंप के समर्थकों में छह प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
कार्नेगी द्वारा प्रकाशित विश्लेषण वाले पेपर के अनुसार, नए सर्वेक्षण से पता चलता है कि ट्रंप और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच घनिष्ठ संबंध रिपब्लिकन की ओर भारतीय अमेरिकी मतदाताओं को रिझाने में खास कामयाब नहीं रही है।
विश्लेषण में कहा गया कि उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार के तौर पर हैरिस का चयन से 'वोटों की संख्या में बदलाव' कुछ खास नहीं होगा लेकिन इसने डेमोक्रेट्स के अंदर उत्साह जरूर पैदा किया है।
'इंडियन अमेरिकन एटीट्यूड्स सर्वे'(आईएएएस) का आयोजन पिछले महीने पोलिंग ऑर्गनाइजेशन यूजीओवी और कानेर्गी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस और जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी और अध्ययन से जुड़े पेंसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी के साथ साझेदारी में किया गया था।
आईएएएस पोल ने पिछले महीने जारी एशियन अमेरिकन वोटर सर्वे (एएवीएस) में 65 प्रतिशत की तुलना में बाइडन को सात प्रतिशत अधिक समर्थन दिखाया और ट्रंप को एएवीएस में दर्शाए 28 प्रतिशत के मुकाबले 6 प्रतिशत कम समर्थन दर्शाया।
आईएएएस पोल के कानेर्गी विश्लेषण ने कहा कि इसने और एएवीएस दोनों ने दिखाया कि 54 प्रतिशत एशियाई भारतीयों को डेमोक्रेट समर्थक के रूप में पहचाना जाता है, जबकि 57 प्रतिशत इसके सदस्यों के रूप में पंजीकृत हैं, और 16 प्रतिशत रिपब्लिकन के रूप में पहचाने जाते हैं, जिनमें से 13 प्रतिशत पार्टी सदस्य के रूप में पंजीकृत हैं।
39 प्रतिशत से अधिक भारतीय-अमेरिकियों ने बताया कि डेमोक्रेटिक पार्टी भारत-अमेरिका संबंधों पर बेहतर काम करती है, जबकि 18 प्रतिशत ने कहा कि रिपब्लिकन पार्टी बेहतर है।
विश्लेषण में कहा गया है कि यह डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए उनकी मूल प्राथमिकताओं को अच्छी तरह से दर्शा सकता है।
इसने कहा कि 21 प्रतिशत भारतीय-अमेरिकियों ने कोविड -19 महामारी प्रभावित अर्थव्यवस्था को शीर्ष मुद्दे के रूप में चुना और स्वास्थ्य संबंधी समस्या 20 प्रतिशत के लिए मुख्य मुद्दा है। (आईएएनएस)
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट
भारतीय सेना ने उसके खिलाफ चार युद्ध लडऩे वाली पाकिस्तानी सेना के एक मृत अधिकारी की कब्र का जीर्णोद्धार किया है। पाकिस्तानी सेना के एक अलंकृत मेजर की यह कब्र कश्मीर के नौगाम सेक्टर में है।
भारतीय सेना ने दावा किया है कि उसने कश्मीर में पाकिस्तानी सेना के एक अलंकृत अधिकारी की टूटी हुई कब्र की मरम्मत कर उसे फिर से पहले जैसा बनवा दिया है। यह जानकारी सेना के श्रीनगर स्थित चिनार कोर इकाई ने दी। सेना के अनुसार नौगाम सेक्टर में स्थित यह कब्र पाकिस्तानी सेना के मेजर मोहम्मद शाबिर खान की है, जिन्हें पाकिस्तान में सितार-ए-जुर्रत की उपाधि से नवाजा गया था।
कब्र पर लिखी जानकारी के मुताबिक, मेजर खान पांच मई 1972 को भारतीय सेना के नौ सिख रेजिमेंट द्वारा किए गए एक जवाबी हमले में मारे गए थे। उनकी कब्र की मरम्मत की जानकारी देते हुए चिनार कोर ने ट्वीट किया, एक सिपाही, चाहे वो किसी भी देश का हो, शहादत के बाद आदर और सम्मान का हकदार होता है।
सितारा-ए-जुर्रत पाकिस्तान का तीसरा सबसे प्रतिष्ठित सैन्य पुरस्कार है, जो बहादुरी या लड़ाई में विशिष्ट सेवाओं के लिए दिया जाता है। पाकिस्तान ने अभी तक इस अधिकारी की कब्र के कश्मीर में भारतीय सेना द्वारा मरम्मत किए जाने की पुष्टि नहीं की है. दोनों देशों की सेनाएं एक दूसरे के खिलाफ कम से कम चार युद्ध और कई छोटी लड़ाइयां लड़ चुकी हैं। 1972 दोनों देशों के बीच तुलनात्मक रूप से शांति का साल था।
1971 में दोनों देशों के बीच युद्ध हुआ था, जिसमें भारतीय सेना विजयी रही थी और भारतीय सेना और सरकार की कोशिशों की वजह से पूर्वी पाकिस्तान की जगह एक नए देश बांग्लादेश की स्थापना हुई थी। 1972 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे, जिसे शिमला समझौते के नाम से जाना जाता है। इसी समझौते के तहत दोनों देशों के बीच नियंत्रण रेखा पर सहमति हुई थी।
हालांकि यह समझौता दोनों देशों के बीच लंबे समय तक शांति और मैत्री की स्थापना सुनिश्चित कर पाया। दोनों देशों के आपसी रिश्ते जल्द ही बिगडऩे लगे और 1999 में एक बार फिर दोनों देशों के बीच युद्ध हुआ, जिसे कारगिल युद्ध के नाम से जाना जाता है।
पाकिस्तान में आजकल चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) को चीज पिज्जा इकोनॉमिक कॉरिडोर कहा जा रहा है। इसके अलावा पाकिस्तानी सोशल मीडिया में इन दिनों 'बाजवा पापा जॉन पिज्जा' को लेकर खासा मजाक बन रहा है। 'बाजवा पापा जॉन' दरअसल ले.जनरल (रिटायर्ड) आसिम सलीम बाजवा हैं जो पिछले दो महीनों से अरबों डॉलर की धांधली की वजह से सुर्खियों में हैं।
दो दिन पहले ही छोटा बाजवा कहे जाने वाले ले.जनरल (रिटायर्ड) बाजवा ने प्रधानमंत्री इमरान खान के विशेष सलाहकार के पद से एक बार फिर इस्तीफा दिया और इस बार इमरान खान के पास इसे स्वीकार करने के अलावा कोई चारा नहीं था। लेकिन वह 62 अरब डॉलर वाले चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर के चेयरमैन के पद पर जमे हुए हैं।
बड़े बाजवा यानी पाकिस्तानी आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा यही चाहते थे। पाकिस्तानी आर्मी की निष्ठा और ईमानदारी पर जब उंगली उठ रही हो तब बड़े बाजवा क्या करें? खासकर, जब सारा विपक्ष एकजुट होकर छोटा बाजवा के साथ-साथ इमरान खान से भी इस्तीफे की मांग को लेकर देशव्यापी प्रदर्शन करने जा रहा हो। छोटा बाजवा ने प्रधानमंत्री के सलाहकार के पद से इस्तीफा दिया है। 11 विपक्षी दलों के संगठन पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट का आरोप है कि बाजवा के खानदान की अरबों की कमाई में सीपीईसी का भी पैसा है। पाकिस्तान के तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके नवाज शरीफ, उनकी बेटी मरियम, दामाद, भाई और पार्टी के सीनियर नेताओं के साथ दूसरी पार्टियों के नेताओं को भ्रष्टाचारों के आरोपों में या तो देशद्रोही करार दिया गया है या जेल में बंद कर रखा है। जबकि छोटे बाजवा के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।
नवाज शरीफ की बेटी और उनकी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग की नेता मरियम नवाज शरीफ का आरोप है कि इमरान खान की हिम्मत नहीं है कि वह भ्रष्टाचार में डूबे जनरलों के खिलाफ कुछ करें। मरियम ने कहा, "सलाहकार के पद से इस्तीफा काफी नहीं, बाजवा को सीपीईसी से भी इस्तीफा देना पड़ेगा। उनके खिलाफ उसी तरह जांच हो जैसा सलूक नवाज शरीफ और दूसरे नेताओं के साथ हो रहा है। इमरान खान को भी इस्तीफा देना पड़ेगा।"
अब तो पाकिस्तान की जनता मानने लगी है उनकी (देशभक्त) फौज भी उतनी ईमानदार नहीं है। उनके रहनुमा जनरलों की करतूतों का रोज खुलासा हो रहा है। बड़े बाजवा ने पाकिस्तानी मीडिया पर तो पाबंदी लगा दी थी लेकिन पाकिस्तान के बाहर से चल रहे डिजिटल मीडिया का क्या करें? छोटे बाजवा ने अपने हलफनामे में कहा था कि उनकी पारिवारिक कंपनी में उनका और उनकी पत्नी का कोई हिस्सा नहीं है। लेकिन बेवसाइट फैक्ट फोकस की ताजा रिपोर्ट में अमेरिकी सरकार के दस्तावेजों के हवाले से कहा गया है कि बाजवा परिवार की कुछ अमेरिकी कंपनियों में ले.जनरल बाजवा की पत्नी फारुख जेबा भी हिस्सेदार हैं।
इसके साथ ही अमेरिका में उनके नाम पर 13 रिहायशी बंगले और दो शॉपिंग मॉल हैं, जिसकी कीमत करीब 60 लाख अमेरिकी डॉलर बताई जा रही है। जाहिर है इतनी बड़ी रकम सिर्फ किसी निवेश से तो कमाई नहीं जा सकती। पाकिस्तानी जानकारों का मानना है कि इसमें सीपीईसी का भी हिस्सा हो सकता है। इतनी धांधलियों के बावजूद क्यों बाजवा अभी तक सीपीईसी में बने हुए हैं? इस सवाल का जवाब बड़े बाजवा यानि पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा ही दे सकते हैं, जिन्होंने छोटे बाजवा को सीपीईसी के चेयरमैन के पद पर बिठाया था।
चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर का करार चीन और पाकिस्तान के बीच हुआ था और पाकिस्तान की सरकार इसे गेमचेंजर कहती रही है। लेकिन नवाज शरीफ की बर्खास्तगी के बाद जब इमरान खान प्रधानमंत्री बने तबसे पाकिस्तान की सिविल सरकार नहीं, बल्कि पाकिस्तानी आर्मी इस प्रोजेक्ट की कर्ता-धर्ता बन गई। इसके मद्देनजर पाकिस्तानी पार्लियामेंट में सीपीईसी बिल-2020 को कानूनी जामा पहना दिया गया। पाकिस्तानी पार्लियामेंट, सरकार और मीडिया इसके बारे में कोई सवाल नहीं उठा सकती है। एक तरह से कहा जा सकता है कि सीपीईसी का मसला पाकिस्तानी आर्मी और चीन की सरकार के बीच हो गया है। पाकिस्तानी जानकारों को आपत्ति इसी बात से है कि "आखिर यह कैसे हो सकता है..करार दो देशों की सरकारों के बीच हुआ था, आर्मी बीच में कैसे आ गई। कैसे कंट्रोल पाकिस्तान की सरकार के पास नहीं होकर आर्मी चीफ के पास है।"
पिछले साल जब आर्मी चीफ बड़े बाजवा और प्रधानमंत्री इमरान खान चीन के बुलावे पर बीजिंग गए थे, तब चीन के विदेशमंत्री ने सीपीईसी प्रोजेक्ट में हो रही देरी को लेकर दोनों को आड़े हाथों लिया था। इमरान खान के वित्तीय सलाहकार अब्दुल रजाक दाऊद ने उस दौरान बयान दिया था, सीपीईसी भ्रष्टाचार का अड्डा बना हुआ है, यह पाकिस्तान के हित में नहीं है। चीन को पता है कि बलूचिस्तान में किस तरह विरोध हो रहा है। यह प्रोजेक्ट अगर पूरा भी हो जाता है तो इसका उद्देश्य कभी पूरा नहीं होगा। चाइना को मालूम है कि प्रोजेक्ट पर लगने वाला पैसा तो सिर्फ इसकी सुरक्षा में जा रहा है, निर्माण में नहीं।
यह अलग बात है कि कुछ दिनों बाद रजाक अपने बयान से मुकर गए। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। चीन ने प्रोजेक्ट का जिम्मा बाजवा को सौंप दिया। इमरान देखते रह गए। कर भी क्या सकते थे? विपक्षी दलों के संगठन पीडीएम के मुताबिक इमरान खान तो महज फौज की कठपुतली हैं। चुनावों में धांधली कर उन्हें प्रधानमंत्री बनाया गया है। पाकिस्तान डेमोक्रेटक मूवमेंट ने इमरान खान के इस्तीफे के लेकर आंदोलन छेड़ दिया है। लेकिन उनका रुख पाकिस्तानी आर्मी के खिलाफ थोड़ा नरम है। उनका कहना है कि वो आर्मी के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि आर्मी के बाजवा जैसे जनरलों के खिलाफ हैं, जिनके ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। उनके खिलाफ जांच हो और जब तक जांच पूरी न हो, उनका पद पर बने रहना पाकिस्तानी आर्मी की छवि के लिए सही नहीं।
उधर पाकिस्तान का 'सभी मौसमों वाला दोस्त' चीन भी इन खबरों से परेशान है। सीपीईसी के पहले चरण का काम ही कई वजहों से रुका पड़ा है और बजट बढ़कर 87 अरब डॉलर तक जा पहुचा है। इसके बाद अभी तीन चरणों का काम बाकी है।
करार के मुताबिक, बजट का 90 फीसद खर्च पाकिस्तान के नाम पर कर्ज है, जो चीन ने देने का वादा किया है। लेकिन अब चीन का हाथ तंग है। पाकिस्तान के खैबर पख्तून राज्य की असेंबली ने भी अपने क्षेत्र में हो रहे सीपीईसी के काम को लेकर सवाल खड़े किए हैं। पाकिस्तानी मामलों के जनकारों के मुताबिक, यह अरबों डॉलर का प्रोजेक्ट नहीं, खरबों डॉलर का कर्जा होगा जिसे पाकिस्तान को चुकाना है। सीपीईसी का फंदा पाकिस्तान के गले पड़ चुका है जिसे यहां की जनता को चुकाना होगा।
(यह आलेख इंडिया नैरेटिव के सौजन्य से)
--आईएएनएस
वाशिंगटन 16 अक्टूबर (स्पूतनिक) अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने देश के विभिन्न प्रांतों में कोरोना वायरस (कोविड-19) संक्रमण के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए कई गवर्नरों की ओर से लगाए गए लॉकडाउन को असंवैधानिक करार दिया है।
श्री ट्रम्प ने गुरुवार को टाउन हॉल की एक बैठक के दौरान यह बात कही। उन्होंने कहा, “ तथ्य यह है कि हम कोरोना संक्रमण को नियंत्रित करने में सफल रहे हैं लेकिन विभिन्न प्रांतों के गवर्नर जो कर रहे हैं वह असंवैधानिक है, मैं मानता हूं कि वे राजनीतिक कारणों से ऐसा कर रहे हैं।”
अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि कोरोना से संक्रमित होने के बावजूद मास्क पहनने को लेकर उनकी राय में कोई बदलाव नहीं आया है। वह अब भी इस बात पर कायम हैं कि लोग मास्क पहनें अथवा नहीं यह लोगों पर ही निर्भर करना चाहिए।
इसी बीच, राष्ट्रपति चुनाव के लिए डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बिडेन ने पुलिस के बजट में कटौती करने के प्रस्ताव को गलत ठहराते हुए कहा है कि पुलिस की संख्या अधिक होने से अपराध कम होगा।
श्री बिडेन ने कहा कि वह एक समूह बनायेंगे पुलिस अधिकारियों के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भी होंगे जो मिलकर सामुदायिक स्तर पर सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालेंगे।
वैश्विक महामारी कोरोना वायरस (कोविड-19) से गंभीर रूप से जूझ रहे अमेरिका में इसके संक्रमण से 2.17 लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।
अमेरिका में यह महामारी विकराल रूप ले चुकी है और अब तक 79 लाख से अधिक लोग इससे संक्रमित हो चुके हैं।
अमेरिका की जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के विज्ञान एवं इंजीनियरिंग केन्द्र (सीएसएसई) की ओर से जारी किए गए ताजा आंकड़ों के मुताबिक अमेरिका में कोरोना से मरने वालों की संख्या 2,17,745 पहुंच गयी है जबकि संक्रमितों की संख्या 79 लाख काे पार कर 79,74,502 हो गयी है।
इस्लामाबाद 16 अक्टूबर (स्पूतनिक) पाकिस्तान के पश्चिमी हिस्से में हुए दो अलग-अलग आतंकवादी हमलों में कम से कम 20 सुरक्षाकर्मियों की मौत हो गयी।
पाकिस्तान के दैनिक समाचार पत्र द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने गुरुवार देर रात अपनी एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी।
रिपोर्ट के मुताबिक पहला हमला पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के ग्वादर जिले में हुआ जबकि दूसरा हमला खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत के उत्तरी वज़ीरिस्तान जिले में हुआ। उत्तरी वज़ीरिस्तान के रजमाक क्षेत्र में एक आईईडी विस्फोट हुआ जिसमें एक अधिकारी समेत छह सुरक्षाकर्मियों की मौत हो गयी।
जबकि बलूचिस्तान के ओरमारा शहर में आतंकवादियों ने तेल एवं गैस विकास कंपनी लिमिटेड के एक काफिले पर हमला कर दिया जिसमें 14 सुरक्षाकर्मियों की मौत हो गयी। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने इन हमलों की निंदा करते हुए मृतकों के परिजनों के प्रति संवेदना प्रकट की है।
वाशिंगटन, 15 अक्टूबर (आईएएनएस)| एक नए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि भारतीय मूल के अमेरिकी मतदाता इस बात से प्रभावित नहीं होंगे कि वे डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बाइडेन को इसलिए चुनें, क्योंकि उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ रहीं कमला हैरिस भारतीय मूल की हैं। इसी तरह वे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच के रिश्ते से भी अप्रभावित रहेंगे। अमेरिकन बाजार की बुधवार की रिपोर्ट के मुताबिक, इंडियन अमेरिकन एटिट्यूड्स सर्वे 2020 (आईएएएस) में इस पर भी फोकस किया गया कि ट्रंप-मोदी की दोस्ती होने के कारण बाइडेन प्रशासन अमेरिका-भारत संबंधों का प्रबंधन कैसे कर पाएगा।
अभी अमेरिका के सभी पंजीकृत मतदाताओं का केवल 1 फीसदी भारतीय-अमेरिकी समुदाय का है।
डेटा में दिखाया गया है कि भारतीय-अमेरिकियों का जुड़ाव डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ है। इसके अलावा भारतीय-अमेरिकी इस चुनावी चक्र में अमेरिका-भारत संबंधों को एक कम प्राथमिकता वाले मुद्दे के रूप में देखते हैं और वे स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था जैसे राष्ट्रीय मुद्दों को अधिक तवज्जो देते हैं।
पोल के अनुसार, 72 प्रतिशत पंजीकृत भारतीय-अमेरिकी मतदाताओं ने बिडेन को वोट देने की योजना बनाई है, वहीं ट्रंप को केवल 22 प्रतिशत ने। यहां तक कि खुद को निर्दलीय कहने वाले भारतीय-अमेरिकी मतदाताओं ने भी बाइडेन को ही वोट देने का फैसला किया है।
डॉयचे वैले पर ईशा भाटिया सानन की रिपोर्ट
अमेरिका में 3 नवंबर को राष्ट्रपति चुनाव हो रहे हैं। चुनाव में अब बस कुछ ही दिन बचे हैं और ताजा सर्वे के अनुसार अमेरिका में रह रहे भारतीय मूल के लोगों को डॉनल्ड ट्रंप की तुलना में जो बाइडेन ज्यादा पसंद आ रहे हैं।
ताजा सर्वे के अनुसार अमेरिका में रह रहे भारतीय मूल के लोगों को ट्रंप की तुलना में जो बाइडेन ज्यादा पसंद आ रहे हैं।
बुधवार को जारी एक सर्वे के अनुसार अमेरिका में रहने वाले भारतीय मूल के ज्यादातर लोग जो बाइडेन और कमला हैरिस की जोड़ी को वोट देंगे। 2020 इंडियन अमेरिकन एटीट्यूड सर्वे के अनुसार भारतीय मूल के 72 फीसदी वोटर बाइडेन को वोट देंगे, जबकि सिर्फ 22 फीसदी ही ट्रंप के समर्थन में हैं। बाकी बचे छह फीसदी में से तीन किसी तीसरी पार्टी को वोट करना चाहते हैं, जबकि तीन फीसदी किसी को भी वोट नहीं देना चाहते।
इस सर्वे में कुल 936 लोगों ने हिस्सा लिया। पोलिंग फर्म यूगोव ने 1 से 20 सितंबर के बीच पोलिंग कराई। ये सर्वे अमेरिका की मशहूर जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वेनिया और कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस ने मिलकर कराया है। अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार कमला हैरिस का जो बाइडेन का जोड़ीदार होना उन्हें फायदा पहुंचा रहा है। अखबार के अनुसार बाइडेन को फ्लोरिडा, मिशिगन और पेनसिल्वेनिया राज्यों में इसका फायदा मिल सकता है। कमला हैरिस की मां भारतीय थीं और इस वजह से ना केवल अमेरिका में रहने वाले भारतीयों में, बल्कि भारत में भी वे लोकप्रिय हो रही हैं।
कमला हैरिस का जादू
सर्वे के नतीजों में भी यह बताया गया है कि 45 फीसदी लोगों ने यह माना कि वे कमला हैरिस के ही कारण वे नवंबर में वोट डालने जाने वाले हैं। शोध में कहा गया है, इस चुनाव में भारतीय मूल के अमेरिकी लोगों के लिए अमेरिका और भारत के रिश्ते कम मायने रखते हैं, जबकि राष्ट्रहित के मुद्दे जैसे स्वास्थ्य व्यवस्था और अर्थव्यवस्था लोगों के लिए ज्यादा अहम है। अमेरिका की राजनीति में भारतीय मूल के लोगों का महत्त्व बढ़ रहा है। यह शोध लोगों के रवैयों में विविधता को दिखाता है और एक विस्तृत तस्वीर पेश करता है।
अमेरिका में 3 नवंबर को चुनाव होने हैं। कोरोना महामारी के बीच इस बार चुनावी रैलियां उतनी भव्य नहीं हैं जितनी आम तौर पर अमेरिका में देखी जाती हैं। महामारी को लेकर डॉनल्ड ट्रंप का रुख भी इस चुनाव की दिशा को निर्धारित करेगा। अमेरिका और भारत दोनों ही कोरोना महामारी से सबसे अधिक प्रभावित देश हैं। जहां आधिकारिक रूप से अमेरिका में अब तक 80 लाख से ज्यादा कोरोना संक्रमण के मामले दर्ज किए गए हैं, वहीं भारत में यह संख्या 73 लाख है। अमेरिका में दो लाख से ज्यादा लोग इस वायरस के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं, वहीं भारत में यह आंकड़ा लगभग आधा है।
अंकारा, 15 अक्टूबर| तुर्की में 40 हजार से ज्यादा स्वास्थ्य कर्मचारियों का कोरोनावायरस परीक्षण पॉजिटिव आया है। देश के स्वास्थ्य मंत्री फहार्टिन कोका ने यह जानकारी दी है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, कोका ने बुधवार को एक प्रेस ब्रीफिंग को संबोधित करते हुए कहा कि अब तक इस घातक वायरस के कारण 107 स्वास्थ्य पेशेवरों की जान जा चुकी है।
कोका ने कहा, "हाल ही में स्वास्थ्य पेशेवरों की मौतों की संख्या में वृद्धि हुई है।"
बुधवार को तुर्की में 1,671 नए कोविड-19 मामले और 57 मौतें दर्ज की हैं। जिसके बाद यहां मामलों की कुल संख्या 3,40,450 और मृत्यु संख्या 9,014 हो गई है।
तुर्की के स्वास्थ्य पेशेवरों ने पिछले 24 घंटों में 1,15,328 परीक्षण किए, जिसके बाद परीक्षणों की कुल संख्या 11,961,670 हो गई। वहीं अब तक कुल 2,98,368 लोग ठीक हो चुके हैं।
तुर्की में 11 मार्च को पहला मामला दर्ज हुआ था। (आईएएनएस)