अंतरराष्ट्रीय
उत्तरी त्रिपुरा में कई मुस्लिम व्यापारियों की दुकानें जलाने और एक मस्जिद पर हमले की घटनाओं के बाद धारा 144 लगा दी गई है. ये घटनाएं उसी इलाके में विश्व हिंदू परिषद की एक रैली के बाद हुईं.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट
मामला त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से अरीब 155 किलोमीटर दूर स्थित पानीसागर इलाके का है जहां बांग्लादेश में दुर्गा पूजा के दौरान हुई हिंसा के विरोध में विश्व हिंदू परिषद ने 26 अक्टूबर को एक रैली निकाली थी. रैली के दौरान कुछ मुस्लिम व्यापारियों के घरों और दुकानों में तोड़फोड़ की गई और फिर उन्हें जला दिया गया. आरोप है कि एक मस्जिद में भी तोड़फोड़ की गई.
स्थानीय पुलिस का कहना है कि विश्व हिंदू परिषद की रैली में करीब 3,500 कार्यकर्ता शामिल थे. हिंसा के संबंध में दो मामले दर्ज किए हैं लेकिन अभी तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया है. पानीसागर और आस पास के इलाकों में धारा 144 लागू कर दी गई है. हालांकि कई लोगों का कहना है कि 26 अक्टूबर का घटनाक्रम छिटपुट नहीं था और राज्य के कई इलाकों में कई दिनों से हिंसक घटनाएं हो रही हैं जिनमें मुस्लिमों को निशाना बनाया जा रहा है.
नफरती अपराधों का सिलसिला
पत्रकार समृद्धि सकुनिया ने एक ट्वीट में बताया कि पिछले एक हफ्ते में पूरे राज्य में नफरती अपराधों के कम से कम 21 मामलों की पुष्टि हुई है. इनमें से 15 मामले अलग अलग मस्जिदों के तोड़ फोड़ के थे. उन्होंने यह भी कहा कि कुछ दूर दराज इलाकों की कम से कम तीन मस्जिदों को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया गया है.
हालांकि त्रिपुरा पुलिस का कहना है कि सोशल मीडिया पर झूठी खबरें, तस्वीरें और वीडियो फैला कर मामले को और भड़काने की कोशिश की जा रही है. पुलिस ने कहा है कि झूठी खबरों को फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.
बांग्लादेश में दुर्गा पूजा के दौरान 13 अक्टूबर से लेकर कई दिनों तक पूजा के पंडालों और हिंदु परिवारों के घरों पर हमले किए गए और उन्हें जला दिया गया. इस तरह की हिंसा देश के कई इलाकों में हुई. हालांकि बांग्लादेश सरकार ने हिंसा के तुरंत बाद देश के अल्पसंख्यक हिंदू समाज को सुरक्षा का आश्वासन देने के लिए कई कदम उठाए.
सत्तारूढ़ पार्टी अवामी लीग ने हिंसा के विरोध में रैलियां निकालीं. मीडिया रिपोर्टों में सामने आया है कि बांग्लादेश पुलिस ने 693 लोगों को हिरासत में लिया है. हालांकि भारत में विश्व हिंदू परिषद और अन्य हिंदूवादी दक्षिणपंथी संगठनों तब से इन घटनाओं पर आक्रोश प्रकट कर रहे हैं. परिषद ने इन घटनाओं को बांग्लादेश में "हिंदुओं का नरसंहार" बताते हुए, इसे रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र को भी चिट्ठी लिखी है. त्रिपुरा की रैली भी इसी अभियान का एक हिस्सा थी. (dw.com)
इस साल विभिन्न व्यवसायों में वरिष्ठ प्रबंधन पदों पर रहने वाली जर्मन महिलाओं की संख्या में बढ़ोतरी देखी गई है. एक सितंबर तक दो दर्जन से अधिक महिलाओं को कार्यकारी पदों पर नियुक्त किया गया जा चुका है.
एक गैर-लाभकारी संगठन ऑल ब्राइट फाउंडेशन द्वारा संकलित एक रिपोर्ट के मुताबिक इस साल अब तक 25 महिलाएं विभिन्न व्यावसायिक कंपनियों में कार्यकारी पदों पर बैठ चुकी हैं. ये महिलाएं बड़ी कंपनियों से संबंधित हैं जो फ्रैंकफर्ट स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हैं और व्यापारिक समुदाय में एक प्रमुख जगह रखती हैं.
ऑल ब्राइट फाउंडेशन की रिपोर्ट कहती है जर्मनी में व्यापार में वरिष्ठ पदों पर महिलाओं के रोजगार की दर में इस साल 3.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो कुल मिलाकर 13.4 प्रतिशत की दर तक पहुंच गई है. 19 महिलाएं भी विभिन्न संगठनों के प्रबंधन बोर्डों का हिस्सा बनीं. इस बढ़ोतरी को असामान्य बताया गया है. हालांकि यह संख्या अभी भी बहुत कम मानी जाती है क्योंकि उच्च पदों पर 603 पुरुष हैं. अब भी आधे से अधिक जर्मन कंपनियों के बोर्ड में कोई महिला नहीं है.
महिलाओं को कार्यकारी पदों पर प्रमोशन करने या उन्हें प्रबंध मंडल का हिस्सा बनाने में जर्मनी कई अन्य विकसित देशों से पीछे है. उदाहरण के लिए अमेरिका में शीर्ष 30 कंपनियों में महिला अधिकारियों की संख्या 31 प्रतिशत से अधिक है. कार्यकारी पदों पर 27.4 प्रतिशत महिलाओं के साथ यूके दूसरे स्थान पर है. तीसरे स्थान पर स्वीडन है.
ऑल ब्राइट फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक विब्के अंकर्सन का कहना है, "कंपनियों को एक-दूसरे के पीछे छिपने की जरूरत नहीं है. उन्हें कार्रवाई करने की जरूरत है." उन्होंने यह भी कहा कि कंपनियों का परीक्षण इस संदर्भ में किया जाएगा कि क्या उनमें कोई वास्तविक परिवर्तन हुआ है.
हाल ही के एक कानून के बाद 2,000 या अधिक कर्मचारियों वाली कंपनियों के पास अपने गवर्निंग बोर्ड में कम से कम एक महिला बोर्ड सदस्य होना चाहिए. इसी तरह जिन कंपनियों के गवर्निंग बोर्ड को महिला सदस्य की आवश्यकता नहीं लगती है, उन कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों के लिए अब कानूनी रूप से अनिवार्य है कि वह इसका कारण सरकारी प्राधिकरण को बताएं.
एए/सीके (डीपीए)
अमेरिका से भारत स्थित अपने घर जाने के बजाय तीन महीने तक शिकागो हवाई अड्डे पर ही टिके रहे एक व्यक्ति को अदालत ने बरी कर दिया है. आदित्य सिंह को जनवरी में गिरफ्तार किया गया था.
कुक काउंटी की जज एड्रिएने डेविस ने आदित्य सिंह को अनधिकृत प्रवेश के आरोपों से बरी कर दिया. शिकागो ट्रिब्यून अखबार ने लिखा है कि इसके लिए सिंह के वकील को जिरह तक नहीं करनी पड़ी. हालांकि 37 वर्षीय आदित्य सिंह का अदालत में आना जाना अभी लगा रहेगा. उन पर अपने इलेक्ट्रॉनिक मॉनिटिरिंग सिस्टम का उल्लंघन करने का भी आरोप है. अभी यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि जज डेविस ने किस आधार पर सिंह को बरी किया है.
आदित्य सिंह को 16 जनवरी को गिरफ्तार किया गया था. हालांकि शिकागो हवाई अड्डे का प्रबंधन देखने वाली ट्रांसपोर्टेशन सिक्यॉरिटी एडमिनिस्ट्रेशन ने कहा था कि उन्होंने एयरपोर्ट के किसी नियम का उल्लंघन नहीं किया था.
कुछ गलत नहीं किया
विमानन विभाग की प्रवक्ता क्रिस्टीन कैरिनो ने उनकी गिरफ्तारी के बाद बताया था, "श्री सिंह ने ना तो किसी नियम का उल्लंघन किया ना किसी जगह अवैध प्रवेश किया. वह उसी तरह आए जैसे दसियों हजार लोग रोज आते हैं.”
कैरिनो ने कहा था कि हम श्री सिंह के मकसद को लेकर कोई अटकल नहीं लगाएंगे. उन्होंने कहा, "उनके मकसद का हमें नहीं पता. उन्होंने सुरक्षित क्षेत्र में रुके रहने का फैसला किया और अपनी गिरफ्तारी तक एक यात्री के तौर पर माहौल में घुलने-मिलने की पूरी कोशिश की.”
जब पहली बार सिंह को अदालत में पेश किया गया था तो कुक काउंटी जज सुजाना ऑरटिज ने काफी हैरत जताई थी. उन्होंने तब कहा था, "तो, अगर मैं ठीक समझ रही हूं, आप मुझे बता रहे हैं कि एक अनधिकृत व्यक्ति, जो कर्मचारी भी नहीं है, कथित तौर पर ओ हेयर हवाई अड्डे के टर्मिनल पर 19 अक्टूबर 2020 से 16 जनवरी 2021 तक रहता रहा और किसी को पता भी नहीं चला. मैं इसे ठीक से समझना चाहती हूं.”
जज ऑर्टिज ने कहा था, "जितनी देर का यह मामला है, उसके लिए अदालत इन तथ्यों और हालात को बेहद हैरतअंगेज पाती है. चूंकि हवाई अड्डे को लोगों की सुरक्षित यात्रा के लिए एकदम सुरक्षित होना चाहिए, मुझे तो इन आरोपों से लग रहा है कि वह (आदित्य सिंह) समुदाय के लिए खतरा हैं.”
क्या है कहानी?
आदित्य सिंह लगभग छह साल पहले अमेरिका गए थे. वह अपनी मास्टर्स डिग्री के लिए वहां पढ़ाई कर रहे थे और कैलिफॉर्निया के ऑरेंज में रह रहे थे. पिछले साल अक्टूबर में उन्होंने भारत जाने के लिए लॉस एंजेलिस से फ्लाइट ली. शिकागो उनका पहला स्टॉप था. लेकिन वहां से आगे सिंह कभी नहीं गए और एयरपोर्ट पर ही तीन महीने तक रुके रहे.
जनवरी में पुलिस ने सिंह को तब गिरफ्तार किया जब युनाइटेड एयरलाइन्स के कर्मचारियों ने देखा कि उन्होंने एक बैज पहना हुआ है, जिसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट एक एयरपोर्ट ऑपरेशंस मैनेजर ने की थी.
सिंह ने पुलिस को बताया कि वह एयरपोर्ट पर इसलिए रहे क्योंकि कोरोनावायरस महामारी के कारण उन्हें विमान में उड़ान भरने से डर लग रहा था. उन्होंने कहा कि आने-जाने वाले यात्रियों से मिले खाने पर ही इतने दिन तक जिंदा रहे.
सिंह की एक दोस्त ने शिकागो ट्रिब्यून अखबार को बताया कि मेसेज पर उनकी बातचीत हुई और उस बातचीत में सिंह ने बताया कि वह लोगों के साथ अपने हिंदू और बौद्ध विश्वासों के बारे में बात करने का आनंद ले रहे थे. ऐसे ही एक मेसेज में सिंह ने लिखा था, "इस अनुभव के कारण मैं आध्यात्मिक रूप से बढ़ रहा हूं. मुझे पता है कि मैं ज्यादा मजबूत होकर बाहर आऊंगा.”
वीके/सीके (एपी)
पोलैंड पर यूरोपीय कोर्ट ऑफ जस्टिस ने करीब नौ करोड़ रुपये रोजाना का जुर्माना लगाया है. कोर्ट के फैसले को ना मानने पर यह सख्त सजा दी गई है, जो अब तक का सबसे बड़ा जुर्माना है.
यूरोपीय संघ के कोर्ट ऑफ जस्टिस (ECJ) ने पोलैंड पर एक मिलियन यूरो यानी लगभग नौ करोड़ रुपये प्रतिदिन का जुर्माना लगाया है. ऐसा पोलैंड द्वारा कुछ विवादित कानून पास करने के कारण किया गया. माना जाता है कि यूरोपीय संघ के किसी सदस्य पर अब तक का यह सबसे बड़ा जुर्माना है.
जब तक पोलैंड अदालत के फैसले का पालन नहीं करता, तब तक उस पर लगीं पाबंदियां जारी रहेंगी. ये पाबंदिया बीती जुलाई में लगाई गई थीं क्योंकि पोलैंड ने अपने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए एक व्यवस्था बनाई है. आलोचकों का कहना है कि यह व्यवस्था राजनीतिक आधार पर जजों को हटाने का रास्ता है.
क्यों लगा जुर्माना?
जुलाई में यूरोपीय कोर्ट ने पोलैंड को यह व्यवस्था खत्म करने का आदेश दिया था. कोर्ट का कहना था कि यह व्यवस्था निष्पक्ष न्याय के रास्ते में बाधा है. चूंकि पोलैंड ने आदेश का पालन नहीं किया, इसलिए कोर्ट ने अब उस पर जुर्माना लगाया है.
बुधवार को जारी एक बयान में यूरोपीयन यूनियन कोर्ट ऑफ जस्टिस ने कहा, "यूरोपीय संघ की न्याय व्यवस्था और कानून के राज पर आधारित यूरोपीय संघ के मूल्यों को गंभीर और स्थायी नुकसान से बचाने के लिए यह जुर्माना लगाया जाना जरूरी था.”
यूरोपीय आयोग ने 9 सितंबर को पोलैंड पर जुर्माने की सिफारिश की थी. यूरोपीय संघ के अन्य सदस्यों का कहना है कि संघ के सिद्धांतों की अनदेखी करने वाले पोलैंड को ईयू से मिलने वाली सब्सिडी बंद होनी चाहिए. बेल्जियम के प्रधानमंत्री आलेक्जांडर डे क्रू ने बुधवार को इस बात का जिक्र किया किया कि पोलैंड यूरोपीय संघ से फंड पाने वाले सबसे बड़े दशों में से है. उन्होंने कहा, "आपको पैसा तो चाहिए पर मूल्यों को खारिज कर देंगे, ऐसा नहीं चल सकता. पोलैंड यूरोपीय संघ को कैश मशीन समझकर नहीं चल सकता.”
नाराज हैं यूरोपीय देश
पोलैंड को यूरोपीय संघ से सालाना 12 अरब यूरो का फंड मिलता है. पोलैंड की सत्ताधारी दक्षिणपंथी पार्टी के प्रवक्ता रादोस्लाव फोगिएल ने दावा किया पोलैंड जितना यूरोपीय संघ से पाता है, उससे ज्यादा का योगदान करता है. देश, यूरोप के बर्ताव को ब्लैकमेल बता रहा है. ट्विटर पर पोलैंड के न्याय उप-मंत्री सेबास्टियान कालेटा ने जुर्माने को ‘वसूली और ब्लैकमेल' बताया. लेकिन इस बात का विरोध करने वाले देश के अंदर भी बहुत से लोग हैं.
डॉयचे वेले से बातचीत में यूरोपीय संसद में पोलैंड के सदस्य रादोस्लाव सिकोरस्की ने कहा वे सरकार के रुख का विरोध करते हैं. वह कहते हैं कि सभी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के कुछ नियम होते हैं जिन्हें तोड़े जाने पर सजा भी हो सकती है. उन्होंने कहा, "मैं उम्मीद करता हूं कि पोलैंड न्यायालय के फैसले का पालन करेगा. इसका कोई विकल्प नहीं है. हमने अपनी इच्छा से यूरोपीय न्याय व्यवस्था पर दस्तखत किए थे.”
सिकोरस्की ने कहा कि पोलैंड की सत्ताधारी पार्टी देश की संवैधानिक अदालत पर पहले ही लगाम लगा चुकी है और अब वह बाकी अदालतों पर भी नकेल कसना चाहती है.
विवाद की जड़
पोलैंड ने देश के सुप्रीम कोर्ट में अनुशासनात्मक चैंबर 2018 में शुरू किया था. इसके तहत जजों और वकीलों को बर्खास्त किया जा सकता है. ईसेजे को डर है कि इस चैंबर की ताकतों का इस्तेमाल निष्पक्षता बरतने वालों और राजनेताओं की मर्जी के आगे ना झुकने वालों के खिलाफ किया जा सकता है. तभी से यह चैंबर विवाद की जड़ बना हुआ है.
इसी महीने की शुरुआत में पोलैंड की संवैधानिक अदालत ने फैसला दिया कि विवाद की स्थिति में देश का कानून यूरोपीय कानून से बड़ा माना जाएगा. पिछले हफ्ते पोलिश प्रधानमंत्री मातेउश मॉरुविएत्सकी ने यूरोपीय संसद को भरोसा दिलाया था कि चैंबर को खत्म कर दिया जाएगा. लेकिन उन्होंने कोई समयसीमा नहीं बताई.
यूरोपीयी देश पहले भी पोलैंड पर न्यायालयों और मीडिया की आजादी पर हमले करने के आरोप लगाते रहे हैं. यूरोपीय संघ का कहना है कि पोलैंड ने न्यायपालिका का राजनीतिकरण कर दिया है और उन जजों जो नियुक्त कर दिया है जो सत्ताधारी लॉ एंड जस्टिस पार्टी के प्रति निष्ठावान हैं.
वीके/एए (एपी, डीपीए, रॉयटर्स)
चीन ने बहुत लंबी गगनचुंबी इमारतें बनाने पर कई तरह के प्रतिबंध लागू कर दिए हैं. इसे स्थानीय सरकारों की उन परियोजनाओं पर कम्युनिस्ट पार्टी का अंकुश माना जा रहा है जिन्हें वो अनावश्यक और दिखावे से भरा मानती है.
आवास और शहरी-ग्रामीण विकास मंत्रालय ने कहा है कि अब से बिना विशेष अनुमति लिए 30 लाख से कम आबादी के शहरों को 150 मीटर से लंबी और इससे ज्यादा आबादी वाले शहरों को 250 मीटर से लंबी इमारतें बनाने से मना कर दिया गया है.
देश में पहले से 500 मीटर से ज्यादा ऊंची इमारतें बनाने की मनाही है लेकिन नए नियम और ज्यादा कड़े हैं. नए नियमों के हिसाब से प्रतिबंधित इमारतों के निर्माण की इजाजत देने वाले अधिकारियों को इसके लिए "जिंदगी भर के लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा."
अंधाधुंध निर्माण
इसका मतलब है अधिकारियों को भविष्य में तय होने वाली कोई भी सजा दी जा सकती है. चीन में दुनिया की सबसे ऊंची इमारतों में से कई हैं. इनमें 632 मीटर ऊंचा शंघाई टावर और शेनजेन का 599.1 मीटर पिंग आन फाइनेंस सेंटर शामिल हैं.
चीन यह मानता तो है कि उसकी ऊंची इमारतें जमीन के और ज्यादा वृद्धिकर इस्तेमाल को बढ़ावा देती हैं, लेकिन अब इस बात की चिंताएं बढ़ रही हैं कि स्थानीय अधिकारी अंधाधुंध निर्माण करवाते जा रहे हैं और व्यावहारिकता और सुरक्षा पर ध्यान नहीं दे रहे हैं.
कुछ महीनों पहले शेनजेन में 356 मीटर ऊंची 71 मंजिला इमारत बार बार हिल गई थी जिसकी वजह से सुरक्षा को लेकर चिंताएं पैदा हो गई थीं. जांच के बाद पता चला था कि इसका कारण इमारत के ऊपर लगा हुआ 50 मीटर से भी ऊंचा एक खंभा था जो तेज हवा से हिलने लगा था.
कड़े नियम
उस हादसे के बाद ही पूरे देश में 500 मीटर से ज्यादा लंबी इमारतें बनाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. शेनजेन वाली इमारत से खंभे को हटाने के बाद उसे सितंबर में फिर से खोला गया.
पाकिस्तान में प्रतिबंधित धार्मिक और राजनीतिक दल तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान ने इमरान ख़ान हुकूमत के साथ बातचीत में नाकाम होने का दावा करते हुए बुधवार को राजधानी इस्लामाबाद और जीटी रोड पर अपने कार्यकर्ताओं के काफिले के साथ अपना 'लॉन्ग मार्च' फिर से शुरू कर दिया है.
इस काफ़िले को पुलिस आगे बढ़ने से रोकने की कोशिश कर रही है, वहीं गुजरांवाला प्रशासन ने भी रेंजर्स की मदद लेने का फैसला किया है. बीबीसी के शहजाद मलिक से बात करते हुए, तहरीक-ए-लब्बैक के नेता मुफ्ती उमर अल-अज़हरी ने दावा किया कि उनके कार्यकर्ताओं ने रास्ते की सभी बाधाओं को हटा दिया और आगे बढ़ गए.
संवाददाता तरहाब असगर के मुताबिक़, मार्च फिर शुरू होने के बाद साधुकी नाम की जगह पर पुलिस ने फिर से काफिले को रोकने की कोशिश की और आंसू गैस के गोले छोड़े. पुलिस और तहरीक-ए-लब्बैक कार्यकर्ताओं के बीच भी झड़पें हुई हैं.
पुलिस प्रवक्ता के मुताबिक ताज़ा झड़पों में कसूर पुलिस के एएसआई अकबर की मौत हो गई और 64 अन्य घायल हो गए, जबकि तहरीक-ए-लब्बैक ने पुलिस पर तेज़ाब की बोतलें फेंकने और फायरिंग करने का आरोप लगाया है. गुजरांवाला पुलिस के अनुसार, घायल पुलिस कर्मियों को स्थानीय अस्पतालों में भर्ती किया गया है.
शुक्रवार को लॉन्ग मार्च शुरू होने के बाद से झड़पों में तीन पुलिसकर्मियों की मौत हो चुकी है और 100 से अधिक घायल हो गए हैं. तहरीक-ए-लब्बैक ने यह भी दावा किया है कि उसके दस से अधिक कार्यकर्ता मारे गए और सैकड़ों घायल हुए, लेकिन स्वतंत्र स्रोतों से इस दावे की पुष्टि नहीं हो सकी है.
फ्रांसीसी राजदूत के निर्वासन की मांग
तहरीक-ए-लब्बैक के इस मार्च के कारण गुजरांवाला ज़िले में मोबाइल इंटरनेट सेवा भी बंद कर दी गई है. फ्रांसीसी राजदूत के निर्वासन और साद रिज़वी की रिहाई की मांग को लेकर तहरीक-ए-लब्बैक ने 22 अक्टूबर को लाहौर से एक जुलूस निकालना शुरू किया और 23 अक्टूबर की रात को गुजरांवाला जिले के मुरीदके इलाके में पहुंचा.
सरकार और तहरीक-ए-लब्बैक के बीच शुरुआती बातचीत के बाद, तहरीक-ए-लब्बैक ने अपने काफिले को मुरीदके में रहने की घोषणा की और सरकार को 26 अक्टूबर की शाम तक मांगों को पूरा करने की मोहलत दी.
तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान के नेता मुफ्ती उमर अल-अजहरी ने बीबीसी उर्दू के शहजाद मलिक से बात करते हुए कहा कि सरकार की मांगें पूरी नहीं होने के बाद बुधवार सुबह पार्टी ने कार्यकर्ताओं को आदेश दिया कि इस्लामाबाद की ओर आगे बढ़े.
इस आदेश के बाद हज़ारों की संख्या में कार्यकर्ता जीटी रोड पर मुरीदके से इस्लामाबाद की ओर यात्रा करने लगे हैं. काफिले को रोकने के लिए इस्लामाबाद की ओर जाने वाली सड़कों पर भी नाकाबंदी कर दी गई है, जबकि साधुकी के पास सड़क पर बड़े-बड़े गड्ढे खोद दिए गए हैं.
इस्लामाबाद और रावलपिंडी
साधुकी में जीटी रोड को पहले ही कंटेनरों से बंद कर दिया गया था. इस्लामाबाद और रावलपिंडी के प्रवेश और निकास पर कंटेनर और बैरियर लगाने का सिलसिला मंगलवार शाम से शुरू हो गया था. हालांकि सरकार और टीएलपी के बीच बातचीत शुरू होते ही बाधाओं को अस्थायी रूप से हटाने के आदेश जारी किए गए थे.
इमरान ख़ान हुकूमत के अनुसार इस्लामाबाद और रावलपिंडी को जोड़ने वाले फैज़ाबाद चौक को चारों तरफ़ से पूरी तरह से बंद कर दिया गया है जबकि रावलपिंडी के मुख्य मार्ग मर्री रोड पर भी कंटेनर रखे गए हैं. दोनों शहरों में सुरक्षा बढ़ा दी गई है.
पुलिस अधिकारियों के मुताबिक इस्लामाबाद में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए भारी संख्या में पुलिस बलों और रेंजर्स को तैनात किया गया है. सिविल एडमिनिस्ट्रेशन के मुताबिक़, बुधवार सुबह से दोनों शहरों में मेट्रो बस सेवा और मोबाइल फोन सेवा बंद करने का फैसला किया गया है.
मुरीदके में तहरीक-ए-लब्बैक के प्रदर्शनस्थल पर मौजूद मुफ्ती उमर ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि उनकी पार्टी के नेतृत्व ने सरकार को उनकी मांगों को मानने के लिए मंगलवार रात तक का समय दिया था, जो अब ख़त्म हो चुका है.
तहरीक-ए-लब्बैक की चेतावनी
इन मांगों में सबसे बड़ी थी पाकिस्तान में फ्रांसीसी राजदूत का निर्वासन. मुफ्ती उमर अल-अजहरी ने कहा कि इस्लामाबाद की ओर फिर से मार्च करने का फ़ैसला पार्टी के केंद्रीय नेताओं ने आम सहमति से लिया. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी के कार्यकर्ता इस्लामाबाद ज़रूर पहुंचेंगे भले ही इसमें कुछ हफ्ते लग जाएं.
तहरीक-ए-लब्बैक के एक सदस्य का कहना था कि मंगलवार को गृह मंत्री शेख रशीद ने पार्टी के मजलिस-ए-शूरा के केवल एक सदस्य पीर इनायत शाह के साथ बैठक की थी, जबकि मंगलवार की रात को उन्हें फिर बुलाया गया था जिसमें कोई प्रगति नहीं हुई.
मुफ्ती उमर ने कहा कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जाती, पार्टी अपना मार्च खत्म नहीं करने वाली है. उन्होंने कहा कि कुछ दिनों पहले केंद्रीय गृह मंत्री के नेतृत्व में उनकी पार्टी के शीर्ष नेताओं के साथ बातचीत हुई थी जिसमें सरकारी प्रतिनिधिमंडल ने आश्वासन दिया था कि उनकी मांगों को लागू किया जाएगा लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं हुआ.
टीएलपी की मजलिस-ए-शूरा के सदस्य पीर इनायत शाह ने बीबीसी को बताया कि सरकार की टीम ने वार्ता करने वाले दल के सदस्यों को आश्वासन दिया था कि टीएलपी के अनुरोध पर फ्रांसीसी राजदूत की नियुक्ति के संबंध में राजनयिक स्तर पर किए गए पत्राचार का आदान-प्रदान टीएलपी नेतृत्व के साथ भी किया जाएगा, लेकिन कोई दस्तावेज़ अब तक उनकी पार्टी को नहीं दिया गया है.
इंटीरियर मिनिस्टर शेख राशिद का बयान
पीर इनायत ने कहा कि उन्होंने सरकारी प्रतिनिधिमंडल को सुझाव दिया था कि फ्रांसीसी राजदूत के निर्वासन का मामला नेशनल असेंबली की समिति को भेजा जाना चाहिए और समिति जो भी फैसला करेगी, उनकी पार्टी इसे स्वीकार करेगी.
तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) के नेताओं ने दावा किया है कि संघीय गृह मंत्री ने मंगलवार को मामलों को सुलझाने के लिए गलत बयानी का इस्तेमाल किया.
गृह मंत्री शेख रशीद ने मंगलवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, "फ्रांस के राजदूत का निष्कासन टीएलपी की पहली और सबसे बड़ी मांग है, जिसे पूरा करना हमारे लिए मुश्किल है."
उन्होंने ये भी कहा कि वह ऐसी कोई अशांति नहीं चाहते जो पाकिस्तान की अखंडता और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करे.
इसके पहले तहरीक-ए-लब्बैक के अमीर (प्रमुख) साद रिज़वी ने पैगंबर मोहम्मद की ईशनिंदा के मुद्दे पर फ्रांसीसी राजदत के निष्कासन की मांग करते हुए इस्लामाबाद की ओर एक 'लॉन्ग मार्च' की धमकी दी थी. जिसके बाद लाहौर पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया था. वे अभी भी क़ैद हैं.
साद रिज़वी पर सरकार के विरोध में अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को उकसाने का आरोप लगा था, इस दौरान हिंसा में कई लोग मारे गए और घायल हुए थे.
साद रिज़वी की गिरफ्तारी के बाद, तहरीक-ए-लब्बैक ने देश भर के कई शहरों में हिंसक विरोध प्रदर्शनों की एक श्रृंखला शुरू की, जिसमें कम से कम चार पुलिसकर्मी मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए. (bbc.com)
न्यूयॉर्क, 28 अक्टूबर | एक नए अध्ययन के अनुसार, तीन किशोरों में आत्मघाती विचार 'व्यामोह जैसा भय', भ्रम और 'धुंधला मस्तिष्क' की पहचान की गई है। इन्हें हल्के या बिना लक्षण वाले कोविड-19 का संक्रमण था। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सैन फ्रांसिस्को के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए गए अध्ययन ने एंटी-न्यूरल एंटीबॉडीज - 'टर्नकोट' एंटीबॉडीज को देखा जो मस्तिष्क के ऊतकों पर हमला कर सकते हैं - बाल रोगियों में जो सार्स-कोव-2 से संक्रमित थे।
अध्ययन में, जामा न्यूरोलॉजी में प्रकाशित, शोधकर्ताओं ने तीन रोगियों के मस्तिष्कमेरु द्रव की जांच की, जो काठ का पंचर के माध्यम से प्राप्त किया, और पाया कि दो रोगियों, जिनमें से दोनों में अनिर्दिष्ट अवसाद और/या चिंता का इतिहास था। इनमें एंटीबॉडी थे जो इंगित करते हैं कि सार्स-कोव 2 ने केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर आक्रमण किया हो सकता है।
टीम ने कहा कि वही रोगी, जिनके पास हल्के/स्पशरेन्मुख कोविड था, उनके मस्तिष्कमेरु द्रव में तंत्रिका-विरोधी एंटीबॉडी भी थे, जिनकी पहचान मस्तिष्क के ऊतकों को प्रतिरक्षित करके की गई थी। यह एक प्रतिरक्षा प्रणाली का सुझाव देता है जो अमोक चल रही है, गलती से संक्रामक रोगाणुओं के बजाय मस्तिष्क को लक्षित कर रही है।(आईएएनएस)
ईरान में मंगलवार को बड़े पैमाने पर साइबर हमले से गैस स्टेशन प्रभावित हुए. इससे ईंधन की बिक्री पर बुरा असर पड़ा.
ईरान के सरकारी टेलीविजन ने पुष्टि की है कि मंगलवार को देश भर के गैस स्टेशनों पर साइबर हमले हुए, जिससे कुछ गैस स्टेशनों पर ईंधन की बिक्री बंद हो गई. हमले के कारण होर्डिंग पर संदेश बदल गए और ईंधन वितरित करने की सरकार की क्षमता को चुनौती दी.
ईरान के प्रसारक आईआरआईबी के मुताबिक, "मंगलवार को साइबर हमले से गैस स्टेशनों की ईंधन भरने की व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई. तकनीशियन समस्या को ठीक कर रहे हैं और जल्द ही ईंधन भरने का काम शुरू होगा." ईरान के तेल मंत्रालय ने कहा कि वह इस समस्या को सुलझाने के लिए एक आपात बैठक कर रहा है.
टेलीविजन फुटेज में हमले के बाद गैस स्टेशनों पर लंबी कतारें दिखाई दे रही हैं. किसी भी समूह ने फौरन हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है. इसका मकसद जाहिर तौर पर ईरान के सर्वोच्च नेता अयातोल्लाह अली खमेनेई की सर्वोच्चता को चुनौती देना है. होर्डिंग पर संपादित संदेश कुछ इस तरह थे: "खमेनेई! हमारा गैसोलीन कहां है?" एक अन्य बिलबोर्ड पर लिखा था, "जमरान गैस स्टेशन पर मुफ्त गैस!"
ईरानी सुप्रीम काउंसिल में साइबरस्पेस के सचिव सैयद अब्दुल हसन फिरोजाब्दी ने देर रात एक संदेश में कहा कि साइबर हमलों को रोकने के प्रयास किए जा रहे हैं. ईरानी समाचार एजेंसी ने कहा कि हमले से देश भर में लगभग 1,400 गैस स्टेशन प्रभावित हुए हैं.
अर्ध-आधिकारिक समाचार एजेंसी आईएसएनए ने इस घटना को साइबर हमला बताया. आईएसएनए ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में कहा कि जब लोगों ने सरकार द्वारा जारी कार्ड से ईंधन खरीदने की कोशिश की, तो उन्हें "साइबर हमले 64411" संदेश मिलने लगे. हालांकि, बाद में आईएसएनए ने अपनी वेबसाइट से इस खबर को हटा दिया और कहा कि वह खुद हैक हो गई है.
इससे पहले जुलाई में ईरान के रेलवे सिस्टम को निशाना बनाकर इसी तरह के साइबर हमले में 64411 नंबर का इस्तेमाल किया गया था. यह नंबर खमेनेई के कार्यालय द्वारा संचालित एक हॉटलाइन से जुड़ा है. ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण देश वर्तमान में गंभीर आर्थिक कठिनाई का सामना कर रहा है. अधिकांश ईरानी अपने वाहनों के लिए सरकारी सब्सिडी वाले ईंधन पर निर्भर हैं.
फिरोजाब्दी ने कहा, "यह हमला संभवत: किसी विदेशी देश ने किया है. किस देश द्वारा और किस तरह से यह घोषणा करना जल्दबाजी होगी."
साइबर हमले ऐसे समय में हुआ जब देश दो साल पहले 2019 में ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी का विरोध झेल चुका है. सरकार के इस कदम का विरोध करने के लिए ईरानी सड़कों पर उतर आए थे.
मानवाधिकार समूह एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक ईरानी सुरक्षा बलों ने विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिए हिंसा का इस्तेमाल किया था, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए थे. ईरान पहले भी कई साइबर हमलों का शिकार हो चुका है. वह हमलों के लिए अमेरिका और इस्राइल को जिम्मेदार ठहराता आया है.
एए/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)
अफगानिस्तान में महिलाएं अपने अधिकारों को लेकर लगातार प्रदर्शन कर रही हैं. वे तालिबान के लड़ाकों से नहीं डर रही हैं और पढ़ाई-काम करने के अधिकार मांग रही हैं.
काबुल में महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने एक बार फिर विरोध प्रदर्शन किया. मंगलवार को उनके हाथों में तख्तियां थीं जिन पर लिखा था "दुनिया हमें चुपचाप मरते हुए क्यों देख रही है?" अफगानिस्तान में संकट पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की निष्क्रियता का महिलाएं विरोध कर रही थीं.
लगभग एक दर्जन महिलाएं तालिबान के कोप का जोखिम उठाते हुए मंगलवार को काबुल की सड़कों पर उतरीं. तालिबान ने अगस्त में सत्ता संभालने के बाद से प्रदर्शनों पर प्रतिबंध लगा दिया और हिंसा का प्रयोग करके उन्हें बंद कर दिया. महिलाओं ने "शिक्षा के अधिकार" और "काम करने के अधिकार" जैसे पोस्टर लिए हुए थे. लेकिन तालिबान ने प्रेस को मार्च के करीब पहुंचने से पहले रोक दिया.
हक की मांग करतीं महिलाएं
अफगानिस्तान में महिला कार्यकर्ताओं के आंदोलन के आयोजकों में से एक वाहिदा अमीरी ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "हम संयुक्त राष्ट्र महासचिव से अपने अधिकारों, शिक्षा, काम करने के लिए समर्थन करने के लिए कह रहे हैं. हम आज हर चीज से वंचित हैं."
पहले यह प्रदर्शन अफगानिस्तान में "राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति" को संबोधित करते हुए शुरू में अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र मिशन (यूएनएएमए) के पास करने की योजना बनाई गई थी. लेकिन आखिरी समय में इसे पूर्व ग्रीन जोन के पास कर दिया गया. ग्रीन जोन वह इलाका है जहां पश्चिमी देशों के दूतावास स्थित हैं. हालांकि तालिबान के देश पर कब्जे के बाद से मिशन खाली है.
एएफपी के एक रिपोर्टर ने तब एक दर्जन तालिबान लड़ाकों को देखा, जिनमें से अधिकांश हथियारबंद थे. तालिबान के लड़ाकों ने पत्रकारों को पीछे धकेल दिया और एक स्थानीय रिपोर्टर का मोबाइल फोन जब्त कर लिया, जो विरोध को फिल्मा रहा था.
अड़ी हुईं हैं महिलाएं
अमीरी कहती हैं, "हमारे पास तालिबान के खिलाफ कुछ भी नहीं है, हम सिर्फ शांतिपूर्वक प्रदर्शन करना चाहते हैं."
हाल के हफ्तों में काबुल में महिलाओं द्वारा प्रतीकात्मक प्रदर्शन एक नियमित घटना बन गई है क्योंकि तालिबान ने अभी भी उन्हें काम पर लौटने की अनुमति नहीं दी है या अधिकांश लड़कियों को स्कूल जाने की अनुमति नहीं दी है.
पिछले गुरुवार को लगभग 20 महिलाओं को 90 मिनट से अधिक समय तक मार्च करने की अनुमति दी गई थी, लेकिन रैली को कवर करने वाले कई विदेशी और स्थानीय पत्रकारों को तालिबान लड़ाकों ने पीटा था.
पिछले दिनों नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई और कई अफगान महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने एक खुले पत्र में लिखा था, "तालिबान अधिकारियों के लिए लड़कियों की शिक्षा पर वास्तविक प्रतिबंध को हटा दें और लड़कियों के माध्यमिक विद्यालयों को तुरंत फिर से खोलें."
उन्होंने मुस्लिम देशों के नेताओं से तालिबान शासकों को यह स्पष्ट करने का भी आह्वान किया कि "लड़कियों को स्कूल जाने से रोकना धार्मिक रूप से उचित नहीं है."
एए/वीके (एपी, एएफपी)
वैश्विक स्वास्थ्य मॉनिटर का कहना है कि कोरोना महामारी के डेढ़ साल में दुनिया ने अभी भी प्रतिक्रिया देने के लिए बहुत कम काम किया है.
एक वैश्विक स्वास्थ्य मॉनिटर ने मंगलवार को कहा कि कोरोना वायरस महामारी के डेढ़ साल में, दुनिया ने अभी भी प्रतिक्रिया देने के लिए बहुत कम काम किया है और अपनी गलतियों से सीखने में विफल रही है.
बर्लिन में पेश की गई एक रिपोर्ट में विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व बैंक द्वारा स्थापित एक स्वतंत्र निकाय ग्लोबल प्रिपेयर्डनेस मॉनिटरिंग बोर्ड (जीपीएमबी) ने महामारी की वैश्विक प्रतिक्रिया में निरंतर विफलताओं की आलोचना की है.
रिपोर्ट में कहा गया, "अगर कोविड-19 महामारी के पहले वर्ष को तैयारियों को गंभीरता से लेने और विज्ञान के आधार पर तेजी से कार्य करने में सामूहिक विफलता द्वारा परिभाषित किया गया तो दूसरे को गहन असमानताओं और नेताओं की विफलता के रूप में चिह्नित किया गया है."
महामारी से क्या सीखा
रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकाला गया कि ने एक ऐसी दुनिया को उजागर कर दिया है जो "असमान, विभाजित और बेहिसाब" है. रिपोर्ट कहती है, "स्वास्थ्य आपातकालीन पारिस्थितिकी तंत्र इस टूटी हुई दुनिया को दर्शाता है. यह उद्देश्य के लिए उपयुक्त नहीं है और इसमें बड़े सुधार की जरूरत है." बर्लिन में ग्लोबल हेल्थ समिट में यह रिपोर्ट पेश की गई. कोरोना वायरस के कारण मौतों की संख्या पचास लाख के करीब पहुंचने वाली है.
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कोविड-19 से जुड़ी अधिक मृत्यु दर को ध्यान में रखते हुए डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि कुल मृत्यु दर दो से तीन गुना अधिक हो सकती है. टीकाकरण दरों के मामले में अमीर और गरीब देशों के बीच गहरा मतभेद नजर आता है.
विश्व व्यापार संगठन की प्रमुख एनगोजी ओकोंजो-इविएला ने इस महीने की शुरुआत में बताया था कि दुनिया भर में दी जाने वाली छह अरब से अधिक टीकों की खुराक में गरीब देशों में केवल 1.4 प्रतिशत लोगों को पूरी तरह से टीका लगाया गया है.
जीपीएमबी के सह-अध्यक्ष एल्हाद एस सी ने रिपोर्ट की प्रस्तावना में लिखा, "कोविड-19 के दौरान वैज्ञानिक प्रगति, विशेष रूप से वैक्सीन विकास की गति, हमें गर्व का कारण देती है." वे आगे लिखते हैं, "हालांकि, हमें कई त्रासदियों पर गहरी शर्म महसूस करनी चाहिए. टीके की जमाखोरी, कम आय वाले देशों में ऑक्सीजन की विनाशकारी कमी, शिक्षा से वंचित बच्चों की पीढ़ी, नाजुक अर्थव्यवस्थाओं और स्वास्थ्य प्रणालियों का टूटना आदि."
उन्होंने यह भी कहा कि महामारी से लाखों मौतें "न तो सामान्य थीं और न ही स्वीकार्य" थीं. 2020 की एक रिपोर्ट में जीपीएमबी ने कहा कि महामारी ने पहले ही खुलासा कर दिया था कि दुनिया ने इस तरह की आपदाओं की तैयारी पर कितना कम ध्यान केंद्रित किया था, पर्याप्त चेतावनी के बावजूद बड़ी बीमारी का प्रकोप अपरिहार्य था.
एए/वीके (एएफपी)
सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक के बारे में एक के बाद एक हो रहे खुलासों से विभिन्न देशों के नेताओं में चिंता है और अब इस कंपनी को रोके जाने पर चर्चा शुरू हो गई है.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट
यूरोपीय कॉम्पीटिशन कमीशनर मार्गरेटे वेस्टागेर ने डॉयचे वेले को दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि फेसबुक के खिलाफ फौरन कार्रवाई करने की जरूरत है. मंगलवार को दिए इस इंटरव्यू में वेस्टागेर ने कहा कि फेसबुक को तोड़ने में तो सालों लग सकते हैं इसलिए फौरन कार्रवाई करनी चाहिए ताकि यह सोशल मीडिया कंपनी और नुकसान ना कर सके.
जब वेस्टागेर से पूछा गया कि क्या फेसबुक इतनी बड़ी और ताकतवर हो चुकी है कि बाहर से उसे बदलने की कोशिशें व्यर्थ हैं, तो उन्होंने कहा, "हमारे लोकतंत्र के लिए नहीं." उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक ताकतें अगर साथ मिलकर काम करें तो यह सुनिश्चित कर सकती हैं कि फेसबुक को कैसे काम करना चाहिए.
वेस्टागेर ने कहा कि जब बात ऐसी कंपनियों की हो रही हो, जो लोकतंत्र पर गहरा असर डाल सकती हैं, लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती हैं, तो सख्त नियम बनाए जाने की जरूरत है. वेस्टागेर ने कहा, "फेसबुक जिस तरह के खतरे युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य के लिए खड़े कर रही है, उनका आंकलन करने के लिए उसे तैयार करना और इस बात के लिए तैयार करना कि बाहरी लोग जांच करें और देखें कि चीजें ठीक की जा सकती हैं या नहीं, यह भी एक अहम कदम होगा."
अभी कार्रवाई की जरूरत
पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक पर इस तरह के इल्जाम लग रहे हैं कि उसने अपने फायदे के लिए नफरती संदेशों को बढ़ावा दिया और ऐसी सामग्री को फैलाने में मदद की, जिससे सामाजिक और लोकतांत्रिक मूल्यों को नुकसान पहुंचता है. हाल ही में समाचार एजेंसी एपी ने लीक हुए दस्तावेजों के हवाले से लिखा था कि फेसबुक के एल्गोरिदम ने ही हेट स्पीच को बढ़ावा दिया और खतरों को जानते हुए भी कार्रवाई नहीं की.
फेसबुक की पूर्व कर्मचारी फ्रांसिस हॉगन ने भी कई गंभीर आरोप लगाए हैं जिनमें शामिल है कि फेसबुक जानती थी कि उसकी नीतियों से बच्चों की मानसिक स्थिति प्रभावित हो सकती है. वेस्टागेर कहती हैं कि यूरोपीय आयोग ने ऐसे कानून का मसौदा तैयार किया है जो अभिव्यक्ति की आजादी के साथ-साथ इस बात का संतुलन बनाने की कोशिश करता है कि वे चीजें दफा की जाएं जो ऑफलाइन अवैध हैं, जैसे कि हिंसा भड़काने की कोशिश.
वेस्टागेर कहती हैं, "अगर हम किसी ऐसे के बारे में बात कर रहे हैं जो मानसिक स्वास्थ्य और हमारे लोकतांत्रिक विकास दोनों को प्रभावित कर रहा है तो हमें बहुत सख्ती बरतने की जरूरत है." उन्होंने माना कि फेसबुक के खिलाफ किसी तरह की कानूनी लड़ाई का कोई अंत नहीं होगा और यह सोशल मीडिया कंपनी सालों तक अदालतों में लड़ सकती है.
डेनमार्क की राजनीतिज्ञ वेस्टागेर ने उम्मीद जताई है कि अगर यूरोपीय संघ अभी कार्रवाई करे तो चीजें बदल सकती हैं तब छोटे उद्योगों को बाजार तक पूरी पहुंच मिलेगी और फेसबुक जैसी विशालकाय कंपनियों को अपने किए नुकसान की जिम्मेदारी लेनी होगी.
भारत में फेसबुक पर विवाद
फेसबुक के कुछ लीक हुए दस्तावेजों से पता चला है कि यह वेबसाइट भारत में नफरती संदेश, झूठी सूचनाएं और भड़काऊ सामग्री को रोकने में भेदभाव बरतती रही है. खासकर मुसलमानों के खिलाफ प्रकाशित सामग्री को लेकर कंपनी ने भेदभावपूर्ण रवैया अपनाया है.
समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस (एपी) के हाथ लगे कुछ दस्तावेजों से पता चला है कि भारत में आपत्तिजनक सामग्री को रोकने में फेसबुक नाकाम रही है. इस बात के सामने आने के बाद विपक्षी कांग्रेस ने कंपनी पर भारत के चुनावों को "प्रभावित" करने और लोकतंत्र को "कमजोर" करने का आरोप लगाते हुए इसकी संयुक्त संसदीय समिति से जांच कराने की मांग की है.
कांग्रेस ने आरोप लगाया कि सोशल मीडिया साइट फेसबुक ने भारत में खुद को "फेकबुक" में तब्दील कर लिया है. कांग्रेस ने अपने आरोप को दोहराया कि बीजेपी से सहानुभूति रखने वालों ने फेसबुक में "घुसपैठ" की है और यह सोशल मीडिया दिग्गज बीजेपी की "सहयोगी" की तरह काम कर रही है.
कंपनी के शोधकर्ताओं ने बताया है कि इसके मंच पर "भड़काऊ और भ्रामक मुस्लिम विरोधी सामग्री" से भरे समूह और पेज हैं. भारत में सोशल मीडिया पर सांप्रदायिक और भड़काऊ सामग्री एक बड़ी चिंता का विषय रहा है. फेसबुक या वॉट्सऐप पर साझा की गई सामग्री के कारण हिंसा तक हो चुकी है. (dw.com)
कोरोना वायरस ने जब दुनिया की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया तो सरकारों ने लोगों की मदद के लिए महामारी के नाम पर लोन बांटने शुरू कर दिए. उनका मकसद तो था नुकसान झेल रहे लोगों को नया बिजनेस खड़ा करने में मदद करना, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने इसे मज़ाक समझ लिया. जॉर्जिया के रहने वाले विनाथ ऑडोम्सिन भी उनमें से एक हैं. इन महाशय ने अमेरिकन सरकार से लिए 42 लाख रुपये के लोन को पोकेमोन कार्ड खरीदने में बर्बाद कर दिया.
जॉर्जिया के डबलिन में रहने वाले इस शख्स ने कोरोना आर्थिक राहत लोन के लिए झूठा आवेदन किया. जब उसे लोन मिल गया तो उसने 57,000 डॉलर यानि भारतीय मुद्रा में 42,80,027 रुपये का इस्तेमाल किसी सार्थक काम नहीं किया बल्कि अपना शौक पूरा करने में कर डाला. मज़े की बात ये है कि उस शख्स को इसका कोई पछतावा भी नहीं है.
64 लाख के लोन में 42 लाख बर्बाद किए
इस शख्स ने अपनी कंपनी के राजस्व और यहां काम करने वाले लोगों की संख्या के बारे में झूठ बोलकर आवेदन किया था और इसका इस्तेमाल अपना शौक पूरा करने में किया. जब ये मामला खुला तो विनाथ ऑडोम्सिन पर केस दर्ज हो गया. कोर्ट ने कहा कि पिछले साल अगस्त में विनाथ ने 85,000 डॉलर यानि करीब 64 लाख रुपये का लोन हासिल किया था. इसमें से 42 लाख रुपये उसने पोकेमोन कार्ड खरीदने में खर्च कर दिया. फर्जी दस्तावेज़ के साथ लिए गए लोन की जब पोल खुली तो मामला कोर्ट तक पहुंचा.
वकील की दलील भी जबदस्त है !
The Telegraph की रिपोर्ट के मुताबिक विनाथ के वकीलों ने जो बयान जारी किया है उसके ये नहीं पता है कि विनाथ किन पोकेमोन कार्ड्स की खरीद के लिए आरोपी बनाए गए हैं, लेकिन उनके पास जो पोकेमोन कार्ड हैं, उनमें से कई दुर्लभ हैं. उसके पास मौजूद रेयर कार्ड्स को कलेक्टर ट्रेडिंग कार्ड, वीडियो गेम और मोमेंटम के लिए नीलाम किया जा सकता है और अच्छी खासी रकम इकट्ठा की जा सकती है.
सैन फ्रांसिस्को, 26 अक्टूबर | दुनिया भर की सरकारों की गहन छानबीन के बीच, विशेष रूप से ऑस्ट्रेलिया में, फेसबुक ने तीसरी तिमाही के राजस्व में 29 बिलियन डॉलर 35 प्रतिशत (ऑन-ईयर) और 28.3 बिलियन डॉलर विज्ञापन राजस्व कमाई की सूचना दी है। सोशल नेटवर्क ने 9.1 अरब डॉलर की शुद्ध आय दर्ज की, जो पिछले साल की इसी तिमाही की तुलना में 17 प्रतिशत अधिक है।
तीसरी तिमाही की कमाई के बाद फेसबुक के शेयरों में 1.9 की तेजी आई है।
कंपनी ने सोमवार को अपने तीसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर अवधि) के परिणामों की घोषणा करते हुए कहा, "लगभग 2.8 बिलियन लोग दैनिक आधार पर इसके कम से कम एक ऐप का उपयोग कर रहे हैं, और 3.6 बिलियन लोग सितंबर में मासिक आधार पर कम से कम एक का उपयोग करते हैं।"
सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने कहा, "हमने इस तिमाही में अच्छी प्रगति की है और हमारा समुदाय लगातार बढ़ रहा है। मैं अपने रोडमैप को लेकर विशेष रूप से रचनाकारों, वाणिज्य और मेटावर्स के निर्माण में मदद करने के लिए उत्साहित हूं।"
फेसबुक के दैनिक सक्रिय उपयोगकर्ता 1.93 बिलियन तक पहुंच गए हैं, जो पिछले वर्ष की तुलना में 6 प्रतिशत या 110 मिलियन अधिक हैं, जबकि महीनों के सक्रिय उपयोगकर्ताओं में पिछले वर्ष की तुलना में 170 मिलियन या 6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
फेसबुक वर्तमान में 68,177 लोगों को रोजगार दे रहा है जो साल-दर-साल 20 प्रतिशत की वृद्धि है।(आईएएनएस)
संयुक्त राष्ट्र द्वारा कराई गई एक जांच में सामने आया है कि ईरान ने 2020 में 250 से ज्यादा लोगों को मौत की सजा दी, जिनमें चार बच्चे भी शामिल थे. इस साल भी अभी तक 230 लोगों को मृत्युदंड दिया जा चुका है.
इस साल जिन्हें मृत्युदंड दे दिया गया उनमें नौ महिलाएं और एक बच्चा शामिल थे. यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र जांचकर्ता जावेद रहमान ने संयुक्त राष्ट्र महासभा की मानवाधिकार समिति को दी.
रहमान ने कहा कि ईरान अभी भी "खतरनाक दर" से मृत्युदंड दे रहा है. उन्होंने यह भी बताया कि "इन मामलों के बारे में आधिकारिक आंकड़ों और पारदर्शिता का अभाव है जिसकी वजह से इनके बारे में जानकारी दबी रह जाती है."
अस्पष्ट आरोप
ऐमनेस्टी इंटरनैशनल के मुताबिक मध्य पूर्वी देशों में ईरान में सबसे ज्यादा मृत्युदंड दिए जाते हैं. इस पूरे प्रांत में मौत की सजा के 493 मामले सामने आए, जिनमें से सबसे ज्यादा मामले ईरान के ही थे. उसके बाद मिस्र, इराक और सऊदी अरब का नंबर था.
ऐमनेस्टी की सूची में चीन शामिल नहीं है क्योंकि माना जाता है कि वहां हर साल हजारों लोगों को मौत की सजा दी जाती है लेकिन इनके बारे में जानकारी गोपनीय है. सीरिया जैसे संघर्ष से प्रभावित देशों को भी इस सूची से बाहर रखा गया है.
रहमान ने बताया कि उनकी ताजा रिपोर्ट उन वजहों को लेकर भी गंभीर चिंताओं को रेखांकित करती है जिनका इस्तेमाल ईरान मृत्युदंड देने के लिए करता है. इनमें "राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर लगाए गए अस्पष्ट आरोप शामिल हैं."
उन्होंने यह भी कहा कि ईरान में "बुरी तरह से दोषयुक्त न्यायिक प्रक्रियाएं हैं जिनमें बुनियादी हिफाजतें तक नहीं हैं." रहमान ने यह भी बताया कि अदालतें यातनाएं दे कर जबरन हासिल किए गए इकबाल-ए-जुर्म जैसे हथकंडों पर बहुत निर्भर रहती हैं.
मानवाधिकारों का उल्लंघन
इन सब कारणों से वो इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि ईरान में मृत्युदंड के जरिये मनमाने ढंग से लोगों को जीवन के अधिकार से वंचित रखा जा रहा है.
रहमान का जन्म पकिस्तान में हुआ था और उन्होंने लंदन के ब्रुनेल विश्वविद्यालय में मानवाधिकार और इस्लामिक कानून की पढ़ाई की. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा कि मृत्युदंड के अलावा ईरान में मानवाधिकारों को लेकर कुल मिलाकर हालात काफी खराब हैं.
उन्होंने "मानवाधिकार कानूनों के गंभीर उल्लंघन के लिए भी बार बार दंड से दी जा रही मुक्ति" की भी बात की और इसमें शक्तिशाली पदों पर आसीन और सरकार में सर्वोच्च स्तर पर मौजूद लोग भी शामिल हैं.
रहमान ने कहा कि "इसी साल जून में हुए राष्ट्रपति पद के चुनाव इस बात को स्पष्ट रूप से दिखाते हैं." उन्होंने आगे कुछ नहीं कहा लेकिन ईरान के नए राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी इससे पहले देश की न्यायपालिका के मुखिया थे.
अपने करियर की शुरुआत में अभियोजक के रूप में उन्होंने एक कथित "मृत्यु समिति" के लिए काम किया जो यह फैसला करती थी कि किसे मौत की सजा दी जाएगी और किसे बख्शा जाएगा. माना जाता है कि 1988 में इस प्रक्रिया के तहत कम से कम 5,000 लोगों को मार दिया गया था."
सीके/एए (एपी)
अमेरिकी राज्य टेक्सस के गवर्नर ने पब्लिक स्कूलों में लड़कियों के खेलों में ट्रांसजेंडर लड़कियों के हिस्सा लेने पर रोक लगाने वाले एक कानून पर हस्ताक्षर कर दिया है.
गवर्नर ग्रेग ऐबट ने इस विधेयक पर हस्ताक्षर कर दिए हैं और यह 18 जनवरी से लागू हो जाएगा. इसके पहले भी रिपब्लिकन पार्टी द्वारा शासित कई राज्यों में इस तरह के कानून लाए जा चुके हैं.
कानून के समर्थकों का कहना है कि ट्रांसजेंडर खिलाड़ियों के पास महिला खिलाड़ियों के मुकाबले स्वाभाविक शारीरिक बढ़त होती है. उनका कहना है कि इस कानून से स्कूली खेलों में सबको बराबर अवसर मिलेगा.
रूढ़ीवादियों का अभियान
समान अधिकारों के समर्थक इस तरह के प्रतिबंधों की निंदा करते हैं और इन्हें भेदभावपूर्ण बताते हैं. उनका कहना है कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि ट्रांस महिलाएं या लड़कियां खेलों पर हावी हैं.
उनका मानना है कि ये कदम 'नफरत' की वजह से उठाए जा रहे हैं जिनका असली मकसद है सामाजिक रूढ़िवाद के प्रति पूरी तरह से समर्पित लोगों को उत्साहित करना. इसी साल सात दूसरे राज्यों ने इसी तरह के कानून पारित किए हैं.
मार्च 2020 में आइडहो ने पब्लिक स्कूलों और कॉलेजों में जन्म के समय महिला मानी गईं खिलाड़ियों की टीम के खिलाफ उन खिलाड़ियों के खेलने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था जिन्हें जन्म के समय पुरुष माना गया हो. उसके बाद से रिपब्लिकन पार्टी ने इसे लेकर एक राष्ट्रीय अभियान की शुरुआत कर दी थी.
कई दक्षिणपंथी विधेयक
हालांकि एक फेडरल अदालत ने आइडहो के बैन के लागू किए जाने पर रोक लगा रखी है. अदालत में इस प्रतिबंध को चुनौती दी गई थी. लेकिन आइडहो के बाद अलाबामा, अरकांसॉ, फ्लोरिडा, मिसिसिपी, मोंटाना, टेनेसी और वेस्ट वर्जिनिया की विधायिकाओं ने भी ऐसे ही कानून पारित कर दिए.
साउथ डकोटा के गवर्नर ने तो शासकीय आदेश ही जारी कर दिया. इनमें से भी कुछ कानूनों को अदालतों में चुनौती दी गई है. इसके बावजूद नेशनल कांफ्रेंस ऑफ स्टेट लेजिस्लेचर्स के आंकड़ों के मुताबिक जहां 2019 में इस तरह के सिर्फ दो विधेयक लाए गए थे, 2020 में इनकी संख्या बढ़ कर 29 हो गई.
2021 में अभी तक 31 राज्यों में इस तरह के विधेयक लाए जा चुके हैं. टेक्सस में तो इसके अलावा और भी कई दक्षिणपंथी विधेयक लाए गए हैं. इनमें मतदान को लेकर नए प्रतिबंध, गर्भपात को लेकर नए नियम और हथियार रखने के लिए परमिट की अनिवार्यता को हटाने के नए नियमों पर विधेयक शामिल हैं.(dw.com)
सीके/वीके (रॉयटर्स)
जापान के सम्राट की भतीजी प्रिसेंस माको ने शाही परिवार छोड़कर एक आम आदमी से शादी कर ली है, जिसे वह कॉलेज के दिनों से प्यार करती रही हैं.
जापान की राजकुमारी माको ने शाही परिवार छोड़कर मंगलवार को अपने प्रेमी से शादी कर ली. इस रिश्ते के कारण राजकुमारी माको को इतनी आलोचना सहनी पड़ी कि उन्हें पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर तक हो गया था.
बीते शनिवार को 30 साल की हुईं माको ने अपने 30 वर्षीय प्रेमी केई कोमुरो से चार साल पहले सगाई का ऐलान किया था. पहले पहले इस ऐलान का स्वागत हुआ था लेकिन कोमुरो के परिवार के बारे में कई तरह के स्कैंडल सामने आने के बाद इस रिश्ते की आलोचनाएं होने लगीं थीं. मीडिया में लगातार आलोचना के बाद शादी टल गई और कोमुरो 2018 में कानून पढ़ने न्यूयॉर्क चले गए. इसी सितंबर में वह जापान लौटे हैं.
30 साल में जापान के शाही परिवार में यह पहली शादी थी, लेकिन इसमें कोई तामझाम नहीं हुआ और दस्तावेजों पर दस्तखत के साथ ही दूल्हा-दुल्हन औपचारिक तौर पर एक दूसरे के हो गए. एक आम आदमी से शादी करने के कारण माको का शाही परिवार से नाता भी टूट गया है.
अपने शाही संबंध को लेकर माको इस कदर मोहभंग में हैं कि उन्होंने आम लोगों से शादी करके एक आम जापानी नागरिक बनने पर राजकुमारियों को आमतौर पर मिलने वाले 13 लाख डॉलर भी स्वीकार नहीं किए.
स्कैंडल और आलोचनाएं
माको ने एक और परंपरा को तोड़ते हुए शादी के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस की. शाही परिवार के लोग आमतौर पर पहले से लिखकर दिए सवालों के ही जवाब देते हैं. माको और उनके पति ने एक संक्षिप्त बयान जारी किया और सवालों के जवाब हाथ से लिखकर दिए.
शाही परिवार के प्रबंधन देखने वाली संस्था इंपीरियल हाउसहोल्ड एजेंसी (IHA) ने समाचार चैनल एनएचके को बताया, "कुछ सवालों ने गलत सूचनाओं को तथ्यों के तौर पर लिया, जिससे राजकुमारी परेशान हो गईं.”
2017 में राजकुमारी माको ने अपनी सगाई का ऐलान एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए किया था. उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में राजकुमारी और उनके मंगेतर के बर्ताव की देशभर में जमकर तारीफ हुई थी. लेकिन कुछ ही महीने बाद एक टैबलॉयड अखबार ने खबर छापी जिसमें एक व्यक्ति ने दावा किया कि कोमुरो और उनीक मां ने उसका करीब 35,000 डॉलर का कर्ज नहीं चुकाया.
इंपीरियल हाउसहोल्ड एजेंसी इस बारे में कोई वाजिब स्पष्टीकरण नहीं दे पाई, जिसके बाद यह मामला बढ़कर राष्ट्रीय स्तर पर फैल गया. इसी साल कोमुरो ने 24 पेज का एक बयान जारी किया और कहा कि वह कर्ज चुका देंगे.
क्यों नाराज हैं लोग?
रायशुमारी में सामने आया है कि इस शादी को लेकर जापान के लोगों की राय बंटी हुई है. विश्लेषकों का कहना है कि शाही परिवार को बहुत बड़े आदर्श के तौर पर देखा जाता है इसलिए धन या राजनीति जैसे मामले में मामूली सा हेरफेर भी लोगों को परेशान कर सकता है.
नागोया यूनिवर्सिटी में इतिहास के एसोसिएट प्रोफेसर हिदेया कावानिशी के मुताबिक, "राजकुमारी माको के पिता और छोटे भाई हिसाहितो, दोनों ही सम्राट नारुहितो को उत्तराधिकारी हैं क्योंकि सम्राट की अपनी बेटी को विरासत नहीं मिल सकती. इस कारण यह स्कैंडल खासतौर पर नुकसानदायक हो गया.”
उन्होंने कहा, "यह सच है कि वे दोनों प्राइवेट सिटीजन हैं लेकिन माको का छोटा भाई एक दिन सम्राट बनेगा. इसलिए कुछ लोग को लगा कि माको को ऐसे किसी व्यक्ति से शादी नहीं करनी चाहिए जिसकी दिक्कतें (कोमुरो जैसी) हों.”
माको और उनके पति ने न्यूयॉर्क में रहने का फैसला किया है. हालांकि माको अभी कुछ समय तक जापान में ही रहेंगी और जाने से संबंधी कामकाज निपटाएंगी. इसके अलावा उन्हें अपनी जिंदगी का पहला पासपोर्ट भी बनवाना है. (dw.com)
वीके/एए (रॉयटर्स)
दोहा, 26 अक्टूबर | चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने कतर की राजधानी दोहा में तालिबान के कार्यवाहक उप प्रधानमंत्री मुल्ला अब्दुल गनी बरादर से मुलाकात की। यह अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद से दोनों पक्षों के बीच पहली बातचीत है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, सोमवार को बैठक के दौरान स्टेट काउंसलर वांग ने कहा कि अफगानिस्तान कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिसमें मानवीय संकट, आर्थिक अराजकता, आतंकवादी खतरा और शासन संबंधी कठिनाइयां शामिल हैं। इन चुनौतियों पर काबू पाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से ज्यादा समर्थन की आवश्यकता है।
विदेश मंत्री वांग यी देश के स्टेट काउंसलर भी हैं।
वांग ने आशा व्यक्त की कि तालिबान सभी जातीय समूहों और गुटों को एकजुट करेगा और महिलाओं और बच्चों के अधिकारों और हितों की प्रभावी ढंग से रक्षा करेगा।
शीर्ष चीनी अधिकारी ने तालिबान से अपने पड़ोसी देशों के प्रति मैत्रीपूर्ण नीति अपनाने और लोगों की इच्छाओं के साथ-साथ समय की प्रवृत्ति के अनुरूप एक आधुनिक देश का निर्माण करने का भी अनुरोध किया।
उन्होंने कहा कि चीन हमेशा अफगानिस्तान की संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करता है और स्वतंत्र रूप से भाग्य का निर्धारण करने और विकास का रास्ता चुनने के लिए अफगान के लोगों का समर्थन करता है।
वांग ने कहा कि चीन ने अमेरिका और पश्चिम देशों से प्रतिबंध हटाने का अनुरोध किया और सभी पक्षों से तालिबान के साथ तर्कसंगत और व्यावहारिक तरीके से जुड़ने का आह्वान किया ताकि अफगानिस्तान को विकास के मार्ग पर चलने में मदद मिल सके।
उन्होंने अफगानिस्तान को अपनी क्षमता के भीतर मानवीय सहायता प्रदान करना जारी रखने और देश को अस्थायी कठिनाइयों को कम करने और आर्थिक पुनर्निर्माण के साथ-साथ स्वतंत्र विकास को साकार करने में मदद करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ काम करने की चीन की इच्छा व्यक्त की।
वांग ने आगे कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा सूचीबद्ध एक अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठन 'ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट' (ईटीआईएम) न केवल चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता के लिए एक वास्तविक खतरा है, बल्कि अफगानिस्तान में घरेलू स्थिरता और दीर्घकालिक स्थिरता को भी खतरे में डालता है।
उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद और विश्वास है कि तालिबान ईटीआईएम और अन्य आतंकवादी संगठनों के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई करने के लिए प्रभावी उपाय करेगा।
बरादर ने वांग को अफगानिस्तान में मौजूदा स्थिति के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि स्थिति नियंत्रण में है और सुधार हो रहा है, सरकारी फरमानों को प्रभावी ढंग से लागू किया जा रहा है।
बरादर ने कहा कि अफगान अंतरिम सरकार लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है और अपने ऐतिहासिक अनुभव से अपनी राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुरूप बदलाव करेगा ।
इस बीच, बरादर ने कहा कि तालिबान महिलाओं और बच्चों के अधिकारों और हितों की रक्षा के प्रयासों को मजबूत करने के लिए तैयार है और उन्हें शिक्षा और काम के अधिकारों से वंचित नहीं करेगा।
तालिबान के अधिकारी ने कहा कि अभी के लिए, चिकित्सा संस्थानों, हवाई अड्डों और अन्य स्थानों पर महिलाओं ने अपना काम फिर से शुरू कर दिया है और कई प्रांतों में प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में लड़कियां स्कूल लौट आई हैं, लेकिन उन्हें अभी सुविधाओं और पैसे की कमी जैसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
बरादर ने आशा व्यक्त की कि चीन और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय अफगानिस्तान को मानवीय संकट से उबरने और विकास के सही रास्ते पर लौटने में मदद करने के लिए सहायता को आगे बढ़ाएंगे।
दोहा प्रवास के दौरान वांग तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से भी मुलाकात करेंगे। (आईएएनएस)
सियोल, 26 अक्टूबर | दक्षिण कोरिया ने दक्षिणपूर्व एशियाई राष्ट्र के साथ संबंधों को मजबूत करने और सियोल के व्यापार पोर्टफोलियो में विविधता लाने में मदद की उम्मीद में फिलीपींस के साथ एक मुक्त व्यापार समझौता किया है। इसकी जानकारी व्यापार मंत्रालय ने मंगलवार को दी। व्यापार, उद्योग और ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार, व्यापार मंत्री येओ हान-कू और उनके फिलिपींस के समकक्ष रेमन लोपेज ने द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के समापन की घोषणा की और दिन में होने वाली एक वर्चुअल बैठक के दौरान अपने संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर किया।
योनहाप न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, दोनों पक्षों ने जून 2019 में बातचीत शुरू की और समझौते पर पहुंचने से पहले पांच दौर की आधिकारिक वार्ता की।
सिंगापुर, वियतनाम, मलेशिया और कंबोडिया के बाद यह दक्षिण कोरिया का दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) के सदस्य देशों के साथ पांचवां द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौता है।
मंत्रालय ने एक बयान में कहा, "समझौते से युवा, बाजार तक हमारी पहुंच बढ़ाने में मदद मिलने की उम्मीद है।"
"यह स्वास्थ्य सेवा, इलेक्ट्रिक वाहन और जलवायु परिवर्तन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक द्विपक्षीय सहयोग की नींव के रूप में भी काम करेगा।"
आसियान में ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, थाईलैंड, सिंगापुर और वियतनाम शामिल हैं। (आईएएनएस)
ताशकंद, 26 अक्टूबर | देश के केंद्रीय चुनाव आयोग (सीईसी) ने घोषणा की है कि 24 अक्टूबर के चुनाव में 80.1 प्रतिशत वोटों के साथ उज्बेकिस्तान के मौजूदा राष्ट्रपति शवकत मिर्जियोयेव को दूसरे कार्यकाल के लिए फिर से चुना गया है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, चुनाव आयोग ने सोमवार को जैसे ही स्थानीय टीवी चैनलों पर परिणामों की लाइव घोषणा की, जिसके बाद मिर्जियोयेव की पार्टी और समर्थकों ने जीत का जश्न मनाया।
64 वर्षीय ने शवकत ने कहा कि मुझे अपने प्रिय लोगों का आभार व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं मिल रहे हैं। यह तथ्य कि 80 प्रतिशत से अधिक लोग चुनाव में मतदान करने आए थे, यह दशार्ता है कि हमारा देश, देश के भविष्य के प्रति उदासीन नहीं है। मिर्जियोयेव ने लोगों को उनके भरोसे और समर्थन के लिए धन्यवाद दिया।
सीईसी के अनुसार, रविवार को हुए चुनाव में देश के योग्य मतदाताओं में से 80 प्रतिशत का ऐतिहासिक मतदान दर्ज किया गया।
सीईसी ने कहा कि चुनाव अंतरराष्ट्रीय मानदंडों, घरेलू कानून और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के अनुरूप खुले और पारदर्शी तरीके से हुए।
मिर्जियोयेव को सत्तारूढ़ उज्बेकिस्तान लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी द्वारा नामित किया गया था, और चुनाव अभियान के दौरान, उन्होंने अधिक औद्योगिक परियोजनाओं को शुरू करने, रोजगार प्रदान करने और आबादी वाले मध्य एशियाई राष्ट्र में जीवन स्तर को बढ़ाने के लिए सुधार जारी रखने का वादा किया था।
अन्य उम्मीदवारों में नेशनल रिवाइवल डेमोक्रेटिक पार्टी के अलीशेर कादिरोव, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी से मक्सुदा वरिसोवा, एडोलैट (जस्टिस) सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी से बहरोम अब्दुहालिमोव और इकोलॉजिकल पार्टी के नारजुलो ओब्लोमुरोदोव शामिल थे। (आईएएनएस)
काठमांडू, 25 अक्टूबर| सीपीएन-माओवादी सेंटर के अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' ने सोमवार को कहा कि अगर भारत सकारात्मक नहीं होता तो नेपाल में शांति बहाल करना संभव नहीं होगा। उन्होंने कहा कि नेपाल में शांति प्रक्रिया शुरू करने में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण है।
नेपाल में पूर्व भारतीय राजदूत रंजीत राय के एक पुस्तक विमोचन समारोह में अपनी टिप्पणी में, प्रचंड ने कहा कि उनके प्रयासों या नेपाल की राजनीतिक ताकतों द्वारा किए गए प्रयासों से शांति प्रक्रिया शुरू करना संभव नहीं था।
उन्होंने कहा, "भारत के समर्थन के बिना नेपाल में शांति प्रक्रिया संभव नहीं है। भारत की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। भारत के समर्थन से शांति प्रक्रिया शुरू हुई और नेपाल में शांति समझौते पर हस्ताक्षर हुए।"
एक दशक लंबे 'जनयुद्ध' को समाप्त करते हुए, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी-माओवादी और फिर सात पार्टी गठबंधन ने 2005 में नई दिल्ली में 12-सूत्रीय समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिससे माओवादियों के मुख्यधारा की राजनीति में शामिल होने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
बाद में, उन्होंने 2006 की शुरुआत में काठमांडू में एक व्यापक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसने अंतत: संविधान सभा के चुनावों का मार्ग प्रशस्त किया। माओवादियों ने भी अपने हथियार और सेनाएं रखीं, शांतिपूर्ण राजनीति में शामिल हुए और चुनावों में भाग लिया।
प्रचंड ने कहा कि नेपाल में राजनीतिक स्थिरता और विकास नेपाल-भारत संबंधों को मजबूत करने से ही संभव है।
उन्होंने कहा कि नेपाल-भारत संबंधों के आयाम बहुत व्यापक हैं और संबंधों को मजबूत करके ही नेपाल का विकास संभव होगा। (आईएएनएस)
फिलहाल दुनिया के सबसे महंगे और महान पेंटर माने जाते हैं पाब्लो पिकासो. उन्होंने पेंटिंग्स को नए तेवर और नई धाराएं दीं और साथ में ऐसे वो प्रयोग किए, जो वाकई अनोखे थे. पाब्लो पिकासो का आज यानि 25 अक्टूबर को जन्मदिन है. वो स्पेन के मलागा में 1881 में पैदा हुए थे. बचपन बहुत अच्छा नहीं था. जवानी भी गुरबत में ज्यादा बीती. बहुत संघर्ष करना पड़ा. फिर जब पहचान बनी तो ऐश्वर्य और धन उनके कदमों में लोटने लगा. पिकासो फितरती थे. बेहद रोमांटिक. जैसे जैसे बूढ़े हुए, ज्यादा रोमानी तबीयत के होते चले गए. यही वजह थी कि 70 साल की उम्र में उनके जीवन में 19 साल की एक लड़की प्रेमिका बनकर आई. वैसे उन्होंने अपने जीवन में घोषित तौर पर 07 प्यार किए और अघोषित तौर पर कहीं ज्यादा.
स्पेन के मशहूर चित्रकार पाब्लो पिकासो की प्रेमिकाएं अलग-अलग समय में उनके चित्रों में छाई रहीं. उन्होंने जिससे प्रेम किया. उसे कैनवस पर भी उतारा. उनकी प्रेमिकाओं में फर्नांदे ओलिवर, रूसी बैले डांसर ओल्गा कोकलोवा, फ्रेंग्सवाज जीलो, जैक़लीन शामिल रहीं. कई महिलाएं कम वक़्त के लिए उनके संपर्क में रहीं. लेकिन ये सवाल जरूर पूछा जाता रहा है कि पिकासो ने भी अपनी पेंटिंग्स में एक मोनालिसा बनाई थी, वो कौन थी. शायद इसका जवाब है सिलवेट डेविड.
ये कहने में कोई हर्ज नहीं कि पाब्लो देखने में सुंदर था. उसकी आंखें खूबसूरत और आर-पार छेदने वाली ओजस्वी सी लगती थीं. देहयष्टि गठी हुई. वह कद में छोटे थे लेकिन आकर्षक. उन्हें पहला प्यार 12 साल 06 महीने की उम्र में ही हो गया. लड़की की उम्र भी इसी के आसपास रही होगी. पाब्लो ने उसका पीछा करना शुरू कर दिया. नतीजतन लड़की को उसके परिवारवालों ने किसी दूसरे शहर भेज दिया.
पिकासो को जल्दी ही प्रेम होता था और जल्दी ही उससे ऊब भी जाते थे. हर बार खुद को प्रेम से दूर कर लेते थे. लेकिन ये सही है कि उनकी सभी प्रेमिकाओं ने उनकी पेंटिंग्स और पेटिंग्स के मूड पर बहुत असर डाला. हर प्यार के अफसाने के बाद पिकासो की पेंटिंग्स ने नया टर्न लिया.
पहली प्रेमिका
वर्ष 1904 में पिकासो 23 साल के थे. संघर्ष कर रहे थे. लोग जानते नहीं थे. तब उनकी पहली प्रेमिका बनीं फर्नांदे ओलिवर. तभी पिकासो ने अपनी मशहूर पेंटिंग्स ‘द रोज़ पीरियड’ पर काम किया. माना जाता है कि तब उन्होंने अपनी पेंटिंग्स में जिस महिला को उकेरा, वो ओलिवर ही थीं. दोनों 09 साल साथ रहे. लेकिन पिकासो का प्रेम बहुत अजीब था.
अगर ओलिवर कुछ देर के लिए बाहर जाती थी तो वो उसके लिए व्याकुल हो जाते थे. उस पर शक करने लगते थे. अगर वो खुद कहीं बाहर जाते थे तो प्रेमिका को ताले में बंद करके जाते थे.
दूसरा प्रेम
हालांकि कुछ सालों में अपनी पेंटिंग्स के साथ पिकासो पहचान बनाने लगे थे. साथ ही पेंटिंग्स में शैली पर भी प्रयोग कर रहे थे. उन्होंने एक नया स्टाइल विकसित किया क्यूबिज्म, जिसे लेकर अब भी उनकी बहुत चर्चा होती है. वह व्यस्त थे. उसी समय उनके जीवन एवा गूल एक नए झोंके की तरह आई. लेकिन वो ओलिवर की तरह पिकासो के सामने हर मामले पर समझौता करने वाली नहीं बल्कि बेधड़क, बोल्ड और टकराने वाली.
ये प्रेम-संबंध बहुत छोटा रहा. एवा ने दूर होने की धमकी दी तो पिकासो ने खुद ही अपने को दूर कर लिया. एवा बर्दाश्त नहीं कर पाई. अवसाद, मनोरोग की वह शिकार हुई. टीबी की बीमारी भी. 1915 में उसकी मृत्यु हो गई. ये बात सही है कि उसकी मौत ने पिकासो को तोड़ दिया. आप जब भी पिकासो की क्यूबिज्म शैली की पेंटिंग्स देखें तो एवा को जरूर याद करें.
फिर रूसी नर्तकी जीवन में आई
फिर खूबसूरत रूसी नर्तकी ओल्गा कोकलोवा उनके जीवन में आई. दोनों के प्रेम संबंध भी अजीब तरीके से बने. दरअसल पिकासो के प्रेम संबंध ओल्गा की कई फ्रेंड्स से थे. उसी दौरान वो ओल्गा की ओर आकर्षित हुए. और इस कदर हुए कि उन्हें लगा कि ऐसा प्रेम उन्हें इससे पहले कभी नहीं हुआ. ओल्गा रूसी नर्तकी थी. यूरोप में बड़े लोगों के बीच उसका उठना बैठना था. उसने पिकासो को भी अभिजात्य सर्किल से रू-ब-रू कराया.
इसका फायदा भी उन्हें हुआ. हालांकि दोनों को कुछ समय बाद लगने लगा कि वो दोनों एक दूसरे के लिए नहीं बने हैं. उनकी शादी 1918 में हुई और अलगाव 1935 में. हालांकि इस बीच भी पिकासो के जीवन में कई लड़कियां आईं और गईं.
पिकासो ने फिर पेंटिंग्स के साथ नया प्रयोग किया. वो सुंदर चीजों को भद्देपन में बदल देते थे. उनका रंगों का इस्तेमाल भी ज्यादा लाउड और आक्रामक हो गया.
हालांकि ओल्गा इस दौरान पिकासो की आदतों औऱ जीवन से इतना परेशान हो गई कि उसे नर्वस ब्रेकडाउन हो गया. वो विक्षिप्त-सी हो गई. हालत ये हो गई कि उसने पिकासो से तलाक मांगा. उन्होंने इसलिए ऐसा नहीं किया क्योंकि संपत्ति के एक बड़े हिस्से से हाथ धो सकते थे. दोनों के एक बेटा हुआ. 17 साल की शादी के बाद ओल्गा तब बेटे के साथ अलग हो गई जब उसने सुना कि पिकासो का अफेयर 17 साल की वाल्टर के साथ चल रहा है. ये खबरें भी आईं कि वो प्रेग्नेंट है. ओल्गा का निधन 1955 में हुआ लेकिन पिकासो ने उसे कभी तलाक नहीं दिया.
एक नई प्रेमिका
पिकासो 45 साल का हो चुका था. उसके पास शोहरत भी थी. पैसा भी. वो दुनिया के बड़े पेंटर्स में शुमार होने लगा था. यूरोप के तमाम देशों में उसकी पेंटिंग्स सराही जा रही थीं. प्रदर्शनी लग रही थी लेकिन पिकासो फिर नई नई लड़कियों की ओर आकर्षित हो रहा था. 1920 के दशक के खत्म होते होते वो 17 साल की फ्रेंच लड़की मैरी थेरेसा वाल्टर के साथ प्रेम की पींगें बढ़ा रहा था. हालांकि दोनों ने शुरू में अपने इस रिश्ते को छिपाने की कोशिश की लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
पिकासो ने अपने घर के सामने एक मकान किराए पर लेकर मैरी को दिया. कुछ ही बरसों बाद उन्होंने एक महलनुमा स्टूडियो बनाया. मैरी वहां रहने लगी. 1935 में मैरी ने बेटी को जन्म दिया. हालांकि मैरी से रिश्ते के दिनों में पिकासो की पेंटिंग्स में भी खुशी और उत्साह झलकता था. उसकी पेटिंग में इन दिनों जो स्त्री दिखती है वो दरअसल मैरी ही है.हालांकि मैरी भी बहुत दुखी होकर अपनी बेटी के साथ उन्हें छोड़कर चली गई. हालांकि पिकासो ने हमेशा उसकी आर्थिक मदद तो की लेकिन उन्हीं के चलते उसने फांसी लगाकर खुदकुशी भी कर ली.
अब डोरा मार जीवन में आई
एक तरफ तो पिकासो मैरी के साथ रह रहे थे. उसकी बेटी के पिता बन चुके थे लेकिन वह उससे उबने लगे और उनकी आंखें डोरा मार से चार हुईं. ये रिश्ता 1935 से 1943 तक चला. होरा बेइंतिहा खूबसूरत थी. जब वो पिकासो से मिली तो 26-27 की उम्र की थी. कहा जाता है कि पिकासो की महान पेंटिंग गेर्निका डोरा मार से प्यार की परिणति है. इसमें सुंदर सा महिला का चेहरा डोरा का ही है, जो युद्ध की विभीषिका में रो रही है.सात साल बाद पिकासो डोरा मार से भी अलग हो गए. डोरा को इससे गहरा सदमा लगा.
पिकासो की अजीब मानसिकता
पिकासो हमेशा उन हालात को पसंद करते थे जब दो महिलाएं उनके लिए आपस में लड़ जाएं. मैरी और डोरा के बीच उनके सामने जमकर हाथापाई हुई औऱ पिकासो कुर्सी पर बैठकर उसका आनंद लेते रहे.
फिर 30 साल छोटी जीलो पर मरमिटे
पिकासो 63 साल के थे और तब पेंटिंग्स की मेघावी छात्रा 23 वर्षीय जीलो उनपर मरमिटी. वो खुद बहुत शानदार पेंटर थी. अगर वो पिकासो की बजाए स्वतंत्र रहकर काम करती तो ज्यादा बड़ी पेंटर बन सकती थी. हालांकि उसने आर्ट क्रिटिक के तौर पर काफी नाम कमाया. बाद में जीलो की स्थिति भी पागलपन वाली होने लगी. उसने 10 साल साथ रहने के बाद पिकासो को छोड़ दिया
अलग होने के बाद उसने किताब लिखी- लाइफ़ विद पिकासो, जिसकी लाखों प्रतियां बिकीं. पिकासो ने इसका प्रकाशन रुकवाने के लिए कोर्ट का रुख भी किया लेकिन उस मुकदमे में वो हार गए.
1940 और 1950 के दशक में पिकासो के साथ रही फ्रेंग्सवाज जीलो भी पिकासो के बच्चों की मां बनी. जीलो लिखती हैं, “मुझे लगने लगा था कि अगर मैं उसे और करीब से देखूंगी या साथ रहूंगाी तो उनकी आधा दर्जन पूर्व पत्नियों के सिर फंदे से लटके मिलेंगे.फिर 27 साल की जैकलीन के साथ दूसरी शादी की
पिकासो बेशक बूढे हो रहे हों लेकिन दिल से जवान होते जा रहे थे. ज्यादा रोमानियत भरे होते जा रहे थे. अबकी बार उनके जीवन कई छिटपुट संबंधों के बाजद 27 साल की जैकलीन रोके से रिश्ते बने. रोके से उन्हें पहली नजर में प्यार हो गया. वह 06 महीने तक लगातार हर रोके को गुलाब देते रहे. आखिरकार विवाहित रोके भी उनके प्यार में पड़ गई.
फिर पति को तलाक देकर पिकासो से शादी कर ली. ये शादी 1961 में हुई यानि पिकासो की उम्र 80 की होने पर. रोके न केवल उनकी पत्नी थी, बुढ़ापे का भी सहारा, बल्कि उनकी सेक्रेटरी भी. 1973 में पिकासो की मौत के बाद उनकी जायदाद को लेकर विवाद हो गया.वो प्रेमिका कौन थी, जो उनकी मोनालिसा बनी
शायद ये बात तब की जब पिकासो ने दूसरी शादी नहीं की थी. तब उनके जीवन में एक और लड़की आई. जो उनसे 50 साल छोटी थी. उसका नाम था सिलवेट डेविड. दोनों की मुलाकात 1954 में हुई. पिकासो तब अंतरराष्ट्रीय सैलेब्रिटी थे. फ्रांस के वैलेयुरिस में आलीशान महल में रहते थे. 70 बरस से अधिक के हो चले पिकासो की नज़र तब सिलवेट पर पड़ी. 19 साल की सिलवेट के बाल सुनहरे थे और वह सिर पर ऊंची चोटी बांधा करती थीं.
कुछ ही महीने पहले सिलवेट और उनके मंगेतर टोबी जेलीनेक वैलेयुरिस शहर आए थे. उसके पति ने वहीं अपना फर्नीचर का स्टूडियो खोला, जहां से पिकासो ने कुछ कुर्सियां खरीदी थीं. वहां उनकी निगाह पहली बार सिलवेट पर पड़ी. वो मोहित हो गए. उन्होंने उसकी एक पेंटिंग बनाई.बालों की लट और पोनीटेल वाली एक महिला की यह साधारण सी तस्वीर थी.
फिर उन्होंने सिलवेट स्टूडियो में नियमित तौर पर बैठने के लिए मनाया ताकि उसकी कुछ पेंटिंग्स बना सकें. पिकासो ने सिलवेट के 60 से अधिक रेखाचित्र बना डाले, जिसमें 28 कलाकृतियां शामिल थीं. शायद यह पहली बार था कि किसी ख़ास महिला के उन्होंने इतने रेखाचित्र बनाए हों. और यही सिलवेट उनकी मोनालिसा कही जाती हैं.
बीजिंग, 25 अक्टूबर | आज से 50 वर्ष पहले, यानी 25 अक्तूबर, 1971 को अंतर्राष्ट्रीय संगठन के इतिहास में एक मील का पत्थर घटना को चिह्न्ति करते हुए संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में चीन लोक गणराज्य की कानूनी सीट को बहाल किया गया था।
इस वर्ष संयुक्त राष्ट्र की कहानी का एक नया अध्याय शुरू करते हुए, चीन ने कसम खाई है कि वह पिछली आधी सदी के उलटफेर के बाद अपनी मूल आकांक्षा पर खरा उतरेगा। उसने मानव जाति के लिए एक साझा भविष्य के साथ एक समुदाय के निर्माण के लिए संयुक्त प्रयासों का आह्वान किया।
चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने सोमवार को इस ऐतिहासिक घटना को चिह्न्ति करने वाली एक स्मारक बैठक में अपने भाषण में कहा कि चीन हमेशा विश्व शांति का निर्माता रहा है, वैश्विक विकास में योगदानकर्ता और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का रक्षक रहा है।
इतना ही नहीं, संयुक्त राष्ट्र के साथ चीन की शानदार यात्रा की समीक्षा करते हुए उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में चीन लोक गणराज्य की सीट की बहाली को चीन के साथ-साथ दुनिया के लोगों की जीत करार दिया।
दरअसल, पिछले 50 वर्षों में चीन के शांतिपूर्ण विकास और सभी मानव जाति के कल्याण के प्रति चीन की प्रतिबद्धता देखी गई है। इस वर्ष, चीन ने पूर्ण गरीबी के खिलाफ अपनी लड़ाई में पूरी जीत हासिल की, सभी तरह से एक मध्यम समृद्ध समाज के निर्माण के लक्ष्य को पूरा किया और एक आधुनिक समाजवादी देश के निर्माण की दिशा में एक नई यात्रा शुरू की।
1971 में संयुक्त राष्ट्र में अपनी कानूनी सीट की बहाली के बाद से, चीन अंतरराष्ट्रीय मामलों में अधिक सक्रिय भूमिका निभा रहा है। उदाहरण के लिए, दुनिया के सबसे बड़े विकासशील देश और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में से एक के रूप में, चीन ने संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में 50,000 से अधिक शांति सैनिकों को भेजा है और अब संयुक्त राष्ट्र और संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में दूसरा सबसे बड़ा वित्तीय योगदानकर्ता है।
यह सक्रिय रूप से सभी देशों को विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने और अपने कार्यों से जीने के लिए प्रेरित कर रहा है। यहां तक कि अपनी संप्रभुता पर लगातार उकसाने के बावजूद, चीन अभी भी सैन्य कार्रवाई को अंतिम उपाय के रूप में मानता है और शांतिपूर्ण संवाद और कूटनीति के माध्यम से समाधान चाहता है।
पिछले 50 सालों में चीन की राष्ट्रीय परिस्थितियों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में महान विकास हुए हैं। वैश्विक व्यवस्था की स्थिरता से सभी को लाभ होता है और इसे बनाए रखना सभी का कर्तव्य है।(आईएएनएस)
बीजिंग, 25 अक्टूबर | चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने 25 अक्टूबर को पेइचिंग में चीन लोक गणराज्य द्वारा संयुक्त राष्ट्र की कानूनी सीट की बहाली की 50वीं वर्षगांठ के लिये स्मारक समारोह में भाग लिया और महत्वपूर्ण भाषण भी दिया।
शी चिनफिंग ने कहा कि 50 वर्ष पहले 26वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा में बहुमत से नंबर 2758 प्रस्ताव को पारित कर संयुक्त राष्ट्र संघ में चीन लोक गणराज्य के सभी अधिकारों की बहाली करने का फैसला किया गया । साथ ही इस बात को भी स्वीकार किया गया कि चीन लोक गणराज्य सरकार संयुक्त राष्ट्र संघ में चीन का एकमात्र कानूनी प्रतिनिधि है। यह चीनी जनता की विजय है, और विश्व के विभिन्न देशों की जनता की जीत भी है।
शी चिनफिंग ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ में चीन की कानूनी सीट की बहाली विश्व के लिये एक बड़ी घटना के साथ संयुक्त राष्ट्र संघ के लिये एक बड़ी घटना भी है। यह विश्व में सभी शांति को प्यार करने और न्याय का पालन करने वाले देशों की समान कोशिश का फल है। इससे जाहिर हुआ है कि चीनी जनता फिर एक बार संयुक्त राष्ट्र के मंच पर चढ़ी।
शी चिनफिंग ने कहा कि 50 वर्षों में चीनी जनता हमेशा से ²ढ़ता के साथ चीन के आगे बढ़ाने की दिशा पर कायम रही है। चीनी जनता हमेशा से विश्व के विभिन्न देशों की जनता के साथ मिलजुलकर सहयोग करती है, अंतर्राष्ट्रीय न्याय व निष्पक्षता की रक्षा करती है, और विश्व शांति व विकास के लिये महत्वपूर्ण योगदान देती है। चीनी जनता हमेशा संयुक्त राष्ट्र संघ के स्थान की रक्षा करती है, बहुपक्षवाद का पालन करती है। चीन व संयुक्त राष्ट्र संघ के बीच के सहयोग दिन-ब-दिन गहन हो रहा है।
शी चिनफिंग ने बल दिया कि चीनी जनता हमेशा विश्व के विभिन्न देशों की जनता के साथ एकता व सहयोग कर अंतर्राष्ट्रीय न्याय व निष्पक्षता की सुरक्षा करती है। चीनी जनता ने विश्व शांति व विकास के लिए बड़ा योगदान दिया है। चीनी जनता शांतिप्रिय है और हमेशा स्वतंत्रता तथा शांतिपूर्ण कूटनीति पर कायम रहती है और प्रभुत्ववाद एवं बल की राजनीति का डटकर विरोध करती है। चीनी जनता व्यापक विकासशील देशों द्वारा प्रभुसत्ता ,सुरक्षा और विकास के हितों की सुरक्षा करने वाले न्यायपूर्ण संघर्ष का डटकर समर्थन करती है। चीनी जनता समान विकास में संलग्न है और विकासशील देशों को यथासंभव मदद देती है और चीन के विकास के जरिये विश्व को नये मौके प्रदान करती है।
उन्होंने बल दिया कि चीनी जनता हमेशा संयुक्त राष्ट्र की प्रतिष्ठा और स्थान की सुरक्षा करती है और बहुपक्षवाद पर कायम रहती है। चीन और संयुक्त राष्ट्र का सहयोग दिन ब दिन गहरा हो रहा है। चीन निष्ठा से यूएन सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य के कर्तव्यों का पालन करता है और अंतर्राष्ट्रीय मामलों में यूएन की केंद्रीय भूमिका की सुरक्षा करता है।
उन्होंने कहा कि चीन ने हमेशा यूएन चार्टर और विश्व मानवाधिकार घोषणा भावना का पालन कर मानवाधिकार की व्यापकता और चीन की वास्तविक स्थिति को जोड़कर समय की धारा और चीनी विशेषता वाले मानवाधिकार विकास का रास्ता निकाला है, जिसने चीन के मानवाधिकार की प्रगति और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कार्य के लिए बड़ा योगदान दिया है।
शी चिनफिंग ने कहा कि वर्तमान में विश्व में बड़ा परिवर्तन हो रहा है। शांति, विकास व प्रगति की शक्ति निरंतर रूप से बढ़ रही है। हमें ऐतिहासिक रुझान से मेल खाना चाहिये, सहयोग पर कायम रहने के साथ विरोध न करना, खुलेपन पर कायम रहने के साथ द्वार बंद न करना, आपसी लाभ व समान जीत पर कायम रहने के साथ जीरो-सम गेम नहीं खेलना चाहिये। साथ ही हमें सभी प्रकार के आधिपत्यवाद का विरोध करना, सभी प्रकार के एकपक्षवाद व संरक्षणवाद का विरोध करना चाहिये।
शी चिनफिंग ने कहा कि हमें शांति, विकास, न्याय, निष्पक्षता, लोकतंत्र, मुक्ति का विकास करना चाहिये, एक साथ ज्यादा सुन्दर दुनिया का निर्माण करना चाहिये। विविधता में मानव सभ्यता की सुन्दरता छिपी हुई है। वह भी विश्व के विकास की शक्ति स्रोत भी है। सभ्यता केवल आदान-प्रदान में प्रगति हासिल कर सकेगी।
शी चिनफिंग ने कहा कि किसी देश का रास्ता काम करेगा या नहीं, इसकी कुंजी इस बात पर निर्भर करती है कि वह अपनी राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुकूल है या नहीं? वह युग के विकास से मेल खाता है या नहीं? वह आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति, जन जीवन का सुधार, सामाजिक स्थिरता, और जनता से समर्थन प्राप्त करता है या नहीं?
शी चिनफिंग ने कहा कि मानव एक समुदाय है, पृथ्वी एक परिवार जैसी है। कोई व्यक्ति या कोई देश अकेले काम नहीं करेगा। मानव को सहयोग करके मानव साझा नियति समुदाय का निर्माण करना चाहिये, और एक ज्यादा सुन्दर भविष्य बनाना चाहिये।
शी चिनफिंग ने कहा कि जनता के लिये विकास करने का महत्व ज्यादा बड़ा होगा। और जनता पर निर्भर करके विकास करने की ज्यादा शक्ति मिल सकेगी। विश्व के विभिन्न देशों को जनता से केंद्रित होकर ज्यादा उच्च गुणवत्ता वाला, कारगर, न्यायपूर्ण, अनवरत व सुरक्षित विकास प्राप्त करना चाहिये।
शी चिनफिंग ने कहा कि हमें सहयोग को मजबूत करके मानव के सामने मौजूद विभिन्न चुनौतियों व वैश्विक मामलों का मुकाबला करना चाहिये। क्षेत्रीय मुठभेड़, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, इन्टरनेट सुरक्षा, जैव सुरक्षा आदि वैश्विक मामले अब अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने मौजूद हैं। केवल ज्यादा सहनशील वैश्विक शासन, ज्यादा कारगर बहुपक्षीय व्यवस्था और ज्यादा सक्रिय क्षेत्रीय सहयोग करके उन मामलों का मुकाबला किया जा सकेगा।
शी चिनफिंग ने कहा कि हमें ²ढ़ता से संयुक्त राष्ट्र संघ की रक्षा करनी और एक साथ वास्तविक बहुपक्षवाद का पालन करना चाहिये। मानव साझा नियति समुदाय के निर्माण को बढ़ावा देने में एक शक्तिशाली संयुक्त राष्ट्र संघ चाहिये, और सुधार व वैश्विक शासन व्यवस्था चाहिये। विभिन्न देशों को संयुक्त राष्ट्र संघ से केंद्रित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की रक्षा करनी चाहिये, और अंतर्राष्ट्रीय कानून के आधार पर अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था, संयुक्त राष्ट्र चार्टर के आधार पर अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के बुनियाद नीति-नियमों की रक्षा करनी चाहिये।
शी चिनफिंग ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय नीति-नियम को संयुक्त राष्ट्र संघ के 193 सदस्य देशों द्वारा एक साथ निश्चित किया जाना चाहिये। साथ ही 193 सदस्य देशों को एक साथ इस का पालन करना चाहिये। संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रति विश्व के विभिन्न देशों को इस का सम्मान करना, और इस बड़े परिवार की रक्षा करनी चाहिये। ताकि संयुक्त राष्ट्र संघ मानव की शांति व विकास में ज्यादा सकारात्मक भूमिका अदा कर सके।
शी चिनफिंग ने कहा कि इतिहास की नयी शुरूआत पर चीन शांति व विकास के रास्ते पर कायम रहेगा, हमेशा के लिये विश्व शांति का निमार्ता बनेगा, सुधार व खुलेपन पर कायम रहेगा, वैश्विक विकास का योगदानकर्ता बनेगा, बहुपक्षवाद पर कायम रहेगा, हमेशा के लिये अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का रक्षक बनेगा।
शी चिनफिंग ने कहा कि हम हाथ में हाथ डालकर इतिहास की सही दिशा में खड़े होकर मानव की प्रगति की दिशा में खड़े होकर विश्व में दीर्घकालीन शांति व विकास को प्राप्त करने के साथ साथ मानव साझा नियति समुदाय के निर्माण को बढ़ावा देने में पूरी कोशिश करेंगे।(आईएएनएस)
बीजिंग, 25 अक्टूबर | सौ दिन के बाद दुनिया की निगाहें चीन पर टिकी होंगी और पेइचिंग में ऐतिहासिक 2022 शीतकालीन ओलंपिक का आयोजन होगा। पेइचिंग शीतकालीन ओलंपिक मशाल को ओलंपिक खेल के उद्गम स्थल ग्रीस के पेलोपोनिस प्रायद्वीप में प्राचीन ओलंपिया खंडहर में प्रज्वलित किया गया। 19 अक्टूबर को एथेंस के पनाथिनाइको स्टेडियम में ग्रीस ओलंपिक समिति द्वारा औपचारिक तौर पर पेइचिंग शीतकालीन ओलंपिक आयोजन समिति को सौंप दिया गया, और फिर पेइचिंग शीतकालीन ओलंपिक आयोजन समिति इसे चीन में वापस लायी। इसके बाद चीन में पवित्र अग्नि की प्रदर्शनी और रिले शुरू हुई।
31 जुलाई 2015 से पेइचिंग और चांग चिआखो ने 2022 शीतकालीन ओलंपिक और पैरालिंपिक की मेजबानी का अधिकार हासिल किया। छह साल बीत चुके हैं, और शीतकालीन ओलंपिक की तैयारी एक महत्वपूर्ण चरण में प्रवेश कर गई है। पेइचिंग शीतकालीन ओलंपिक आयोजन समिति के ओलंपिक गांव के निदेशक और पेइचिंग शीतकालीन ओलंपिक गांव (शीतकालीन पैरालंपिक गांव) के आयोजन स्थल संचालन टीम के निदेशक शेन छानफान ने परिचय दिया कि शीतकालीन ओलंपिक गांव का आवासीय क्षेत्र पूरी तरह से पूरा हो चुका है और आयोजन स्थल संचालन दल आधिकारिक तौर पर मई में संचालन में चला गया।
पेइचिंग शीतकालीन ओलंपिक निकट आ रहा है, और अधिक से अधिक चीनी तत्व शीतकालीन ओलंपिक के मंच पर खिल रहे हैं, चीनी कहानियों को आगे बढ़ा रहे हैं। ओलंपिक प्रतीकों से लेकर आयोजन स्थलों के निर्माण तक, चीनी संस्कृति को नए सिरे से प्रस्तुत किया गया है और शीतकालीन ओलंपिक मंच पर व्यक्त किया गया है। अद्भुत शीतकालीन ओलंपिक स्थल बड़े पर्दे के खुलने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
बीजिंग 2022 शीतकालीन ओलंपिक और शीतकालीन पैरालिंपिक पहले ओलंपिक खेल हैं जिन्होंने ओलंपिक 2020 एजेंडा को बोली लगाने, आयोजन से लेकर मेजबानी तक की पूरी प्रक्रिया में लागू किया है। सस्ती, लाभदायक और अनवरत की ओलंपिक सुधार अवधारणा शीतकालीन ओलंपिक की तैयारी में चलती है। अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के अध्यक्ष थॉमस बाख द्वारा नए ओलंपिक बेंचमार्क के रूप में उनकी अत्यधिक प्रशंसा की गई।
बर्फ और बर्फ के खेल में भाग लेने के लिए 3 अरब लोगों को प्रेरित करना 2022 शीतकालीन ओलंपिक की मेजबानी के लिए पेइचिंग और चांग चिआखो द्वारा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए किया गया एक गंभीर वादा है। जैसे-जैसे शीतकालीन ओलंपिक नजदीक आ रहे हैं, चीन के बर्फ और बर्फ के खेलों की मशाल व्यापक क्षेत्र में पहुंचाई जा रही है। पेइचिंग शीतकालीन ओलंपिक की शानदार तस्वीर अधिक से अधिक पूरी तरह से दुनिया के सामने पेश की जाएगी।(आईएएनएस)
टोक्यो, 25 अक्टूबर | टोक्यो और आसपास के तीन प्रांतों कनागावा, सैतामा और चिबा साथ ही पूरे जापान में संक्रमण में जारी गिरावट के बाद भोजनालयों पर से कोविड प्रतिबंध हटा दिया गया है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, राजधानी और ओसाका में लगे प्रतिबंध को 11 महीनों में हटा लिया गया था।
टोक्यो ने रविवार को 19 दैनिक संक्रमणों की पुष्टि की, जो 17 जून, 2020 के बाद सबसे कम है।
टोक्यो में, आवश्यक कोविड उपायों के रूप में प्रमाणित लगभग 102,000 भोजनालयों को रात 8 बजे तक ही शराब परोसना की अनुमति दी जाएगी।
हालांकि, लगभग 18,000 अप्रमाणित भोजन प्रतिष्ठानों को पुराने प्रतिबंधों का पालन करना होगा।
इसके अलावा, सभी भोजनालयों से समूह के आकार को प्रति टेबल चार लोगों तक सीमित करना होगा, और बड़े समूहों के लिए टीकाकरण के प्रमाण की आवश्यकता होगी।
टोक्यो मेट्रोपॉलिटन सरकार ने कहा कि वह नवंबर के अंत तक कोविड-विरोधी उपायों को सु²ढ़ करेगी, जिससे संक्रमण को रोकने के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों को आगे बढ़ाया जा सके। (आईएएनएस)