अंतरराष्ट्रीय
ल्वीव (यूक्रेन), 19 मार्च (एपी)। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने कहा है कि रूसी सेनाएं बड़े शहरों को घेर रही हैं और इस तरह की दयनीय स्थिति पैदा करना चाहती हैं कि यूक्रेन के नागरिकों को उनका सहयोग करना पड़े।
हालांकि, जेलेंस्की ने शनिवार को चेताया कि ये रणनीति सफल नहीं होगी और यदि रूस युद्ध को समाप्त नहीं करता है तो उसे लंबे समय तक नुकसान उठाना पड़ेगा। यूक्रेन के राष्ट्रपति ने क्रेमलिन (रूस के राष्ट्रपति कार्यालय) पर जानबूझकर ‘‘मानवीय संकट’’ पैदा करने का आरोप लगाया।
जेलेंस्की ने राष्ट्र के नाम अपने वीडियो संदेश में कहा, ‘‘यह पूरी तरह से सोची-समझी चाल है। बस अपने लिए तस्वीर है कि मॉस्को के उस स्टेडियम में 14,000 लाशें हैं और हजारों घायल लोग हैं। ये वो कीमत है जो रूस को अब तक युद्ध में चुकानी पड़ी है।’’ वीडियो कीव में बाहर रिकॉर्ड किया गया था, उनके पीछे राष्ट्रपति कार्यालय था।
यूक्रेनी राष्ट्रपति ने कहा, 'क्षेत्रीय अखंडता बहाली और यूक्रेन के लिए न्याय का समय आ गया है। ऐसा नहीं करने की सूरत में रूस को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी, जिससे वे पीढ़ियों तक उभर नहीं पाएंगे।'
जेलेंस्की ने फिर से पुतिन से सीधे उनसे मिलने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, ‘‘यह मिलने का समय है, बात करने का समय। मैं चाहता हूं कि खासकर मास्को में हर कोई मेरी बात सुने।’’
इस बीच, यूक्रेन के शहरों पर रूसी सैनिकों की भीषण गोलाबारी के बीच रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपनी सेना की प्रशंसा में एक विशाल रैली का आयोजन किया।
रूस के राष्ट्रपति ने शुक्रवार को खचाखच भरे मास्को स्टेडियम को संबोधित किया और कहा कि क्रेमलिन के सैनिकों ने ‘‘कंधे से कंधा मिलाकर’’ लड़ाई लड़ी और एक-दूसरे का समर्थन किया। उन्होंने उत्साही भीड़ से कहा, ‘‘इस तरह की एकता लंबे समय से नहीं दिखी थी।’’
आक्रमण के कारण रूस के भीतर युद्ध-विरोधी विरोध प्रदर्शन हुए और रैली को लेकर संदेह था कि कहीं यह क्रेमलिन-निर्मित देशभक्ति का प्रदर्शन तो नहीं था। कार्यक्रम उस वक्त हुआ जब रूस को युद्ध के मैदान में अपेक्षा से अधिक नुकसान झेलना पड़ा।
पुलिस ने कहा कि मास्को कार्यक्रम के लिए लुज्निकी स्टेडियम में और उसके आसपास 200,000 से अधिक लोग थे, जिसमें देशभक्ति के गीत जैसे ‘‘मेड इन द यूएसएसआर’’ गाए गए, जिसके शुरुआती बोल थे ‘‘यूक्रेन एंड क्रीमिया, बेलारूस एंड मोल्दोवा, इट इज ऑल माई कंट्री।’’
पुतिन की उपस्थिति ने हाल के सप्ताह के दौरान उनके अपेक्षाकृत अलग-थलग रहने के विपरीत एक बदलाव को चिह्नित किया, जब उन्हें दुनिया के नेताओं और अपने कर्मचारियों के साथ असाधारण रूप से लंबी मेजों पर या वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से मिलते हुए दिखाया गया है।
संघर्ष से हटकर तीन रूसी अंतरिक्ष यात्री शुक्रवार को यूक्रेनी ध्वज के रंगों से मेल खाते हुए चमकीले पीले और नीले रंग के फ्लाइट सूट पहने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुंचे। युद्ध शुरू होने के बाद से कई लोगों ने देश के साथ एकजुटता दिखाने के लिए यूक्रेन के झंडे और उसके रंगों का इस्तेमाल किया है।
यूक्रेन के साथ कई दौर की वार्ता में रूसी वार्ताकारों का नेतृत्व करने वाले व्लादिमीर मेदिंस्की ने रैली के बाद कहा कि दोनों पक्ष यूक्रेन के नाटो में नहीं शामिल होने और तटस्थ स्थिति अपनाने के मुद्दे पर समझौते के करीब पहुंच गए हैं। उन्होंने कहा कि रूसी मीडिया के हवाले से उन्होंने कहा कि यूक्रेन के विसैन्यीकरण के मुद्दे पर दोनों दोनों पक्ष करीब आधा दूरी तय कर चुके हैं।
उधर, कीव में शनिवार को भी भारी गोलाबारी जारी रही और रूसी सेना ने पोलैंड की सीमा के करीब ल्वीव के बाहरी इलाके में एक विमान मरम्मत केंद्र की स्थापना की। यूक्रेन के अधिकारियों ने शुक्रवार देर रात कहा कि रूसी घेरे वाले दक्षिणी बंदरगाह शहर मारियुपोल का अजोव सागर तक नियंत्रण खो चुका है और रूसी सेना अब भी शहर पर धावा बोलने की कोशिश कर रही है।
रूसी घेराबंदी का सामना कर रहे मारियुपोल में स्थित अजोवस्ताल स्टील इकाई पर रूस ने नियंत्रण कर लिया है। ये इकाई यूरोप की सबसे बड़ी स्टील इकाइयों में से एक है।
यूक्रेन के गृह मंत्रालय में सलाहकार वाडिम डेनिसेंको ने शनिवार को कहा, ' मैं यह कह सकता हूं कि हम इस भारी-भरकम आर्थिक संपत्ति को खो चुके हैं। असल में, यूरोप की सबसे बड़ी स्टील इकाई को तबाह किया जा रहा है।'
कीव क्षेत्रीय प्रशासन ने शनिवार को कहा कि उत्तर-पश्चिम कीव के उपनगरीय बुचा, होस्तोमेल, इरपिन और मोशचुन में जबरदस्त हमले किए गए हैं। प्रशासन ने कहा कि राजधानी कीव से 165 किलोमीटर दूर स्थित स्लावुतिच शहर 'अलग-थलग' पड़ गया है।
इस बीच, रूसी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता मेजर जनरल इगोर कोनासेंकोव ने शनिवार को कहा कि रूसी बलों ने अपनी हालिया हाइपरसोनिक मिसाइल का लड़ाई में पहली बार उपयोग किया है।
उन्होंने कहा कि इस मिसाइल के जरिए उस स्थान को निशाना बनाया गया, जहां यूक्रेन ने अपनी मिसाइलें रखी हुई थीं।
वहीं, यूक्रेन की उप प्रधानमंत्री इरयाना वेरेशचुक ने शनिवार को कहा कि यूक्रेन और रूस के अधिकारी युद्धग्रस्त मारियुपोल, कीव और लुहांस्क क्षेत्र में मानवीय सहायता पहुंचाने और आम लोगों को बाहर निकलने देने के लिए 10 मानवीय गलियारे बनाने को लेकर सहमत हुए हैं।
उन्होंने खेरसोन शहर के लिए भी मानवीय सहायता उपलब्ध कराने की योजना का ऐलान किया जोकि मौजूदा समय में रूसी बलों के नियंत्रण में है।
जेलेंस्की के एक सलाहकार मिखाइलो पोदोलीक ने रूसी मूल्यांकन को ‘‘मीडिया में तनाव भड़काने वाले’’ के रूप में चित्रित किया। उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘हमारी स्थिति बदली नहीं है। युद्धविराम, सैनिकों की वापसी और ठोस फार्मूलों के साथ मजबूत सुरक्षा गारंटी।’’
इस बीच, नार्वे में उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के युद्ध अभ्यास के दौरान एक विमान दुर्घटना में चार अमेरिकी सैनिकों की मौत हो गयी। नॉर्वे के प्रधानमंत्री जोनास गहर स्टोर ने शनिवार को यह जानकारी देते हुए कहा कि इस अभ्यास का यूक्रेन युद्ध से लेना-देना नहीं है।
जोनास स्टोर ने ट्वीट कर कहा कि शुक्रवार की रात हुई इस दुर्घटना में अमेरिका के चार सैनिकों की मौत हो गयी।
उन्होंने ट्वीट किया, “अमेरिका के यह सैनिक नाटो के एक संयुक्त युद्धाभ्यास में हिस्सा ले रहे थे। हम मारे गए सैनिकों के परिवारों और साथियों के प्रति गहरी संवेदना प्रकट करते हैं।’’
नार्वे की सेना के मुताबिक दुर्घटना का शिकार हुआ विमान अमेरिकी नौसेना का वी-22बी ऑस्प्रे विमान था।
न्यूजीलैंड की खाड़ी में दो दर्जन से ज्यादा व्हेल मारी गई हैं. यह 10वां मौका है जब इस खाड़ी में व्हेलें फंसी हैं. ऐसा बार बार क्यों हो रहा है?
न्यूजीलैंड के संरक्षण विभाग के मुताबिक, अब तक लंबे फिन वाली 29 पायलट व्हेलों की मौत हो चुकी है. गुरुवार देर शाम गोल्डन बे कही जाने वाली खाड़ी में 34 व्हेलों के फंसने की जानकारी मिली थी. संरक्षण विभाग के प्रवक्ता डेव विंटरबर्न का कहना है कि पांच व्हेलों को बचाने की कोशिश की जा रही है. लेकिन उनके बचने की उम्मीदें भी कम ही हैं क्योंकि "व्हेलें काफी समय से पानी से बाहर हैं."
विभाग के मुताबिक शुक्रवार सुबह ऊंची लहरों के दौरान पांच व्हेलों को समंदर में वापस पहुंचाने की कोशिश की गई. लेकिन इतने बड़े और विशाल जीवों को बिना नुकसान पहुंचाए सागर में लौटाना आसान नहीं है.
व्हेलों के झुंड का इस तरह तटों पर फंसना और मारा जाना नया नहीं है. विज्ञान और विशेषज्ञ अभी तक यह नहीं समझ सके हैं कि महासागरों में मौजूद ये विशाल स्तनधारी जीव तटों पर क्यों अटक जाते हैं. विंटरबर्ग कहते हैं, "यह घटना दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन व्हेलों को इस तरह तटों पर फंसना प्राकृतिक है."
गोल्डन बे में व्हेलें जिस जगह पर निढाल पड़ी हैं, उसे फेयरवेल स्पिट भी कहा जाता है. फेयरवेल स्पिट तस्मान सागर में एक पतली लकीर जैसा इलाका है. वहां 26 किलोमीटर लंबी और 800 मीटर चौड़ी एक जमीनी रेखा समंदर को बांटती हैं. व्हेलें इसी रेतीले तट में फंसी हैं.
व्हेलें सोनार सिग्नल छोड़ती हैं. यह सिग्नल दूसरे जीवों या तटों से टकराकर वापस लौटते हैं. इससे व्हेलों को इलाके और भोजन की सटीक जानकारी मिलती है. कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि छिछले समंदर में व्हेलों का सोनार नेविगेशन सिस्टम गड़बड़ा जाता है. इसके कराण व्हेलें रास्ता भटक जाती हैं और ऊंची लहरों के साथ वे छिछले इलाके तक पहुंच जाती हैं. लेकिन कुछ घंटे बाद लहरें तो नीचे उतर जाती हैं पर व्हेलें वहीं फंसी रह जाती हैं.
व्हेलों की दुनिया का सफर
फेयरवेल स्पिट में बीते 15 साल में व्हेलों के अलग-अलग झुंड 10 बार फंस चुके हैं. इस इलाके में व्हेलों के फंसने का सबसे बड़ा मामला फरवरी 2017 में सामने आया. तब करीब 700 व्हेलें रेत में अटक गई थीं. बचाव की तमाम कोशिशों के बावजूद 250 व्हेलों ने दम तोड़ दिया था.
पायलट व्हेलें न्यूजीलैंड के आस पास महासागर में मिलने वाली सबसे आम प्रजाति हैं. पायलट व्हेलें 20 फुट तक लंबी हो सकती हैं. झुंड में रहने वाली समुद्री स्तनधारी जीवों की ये प्रजाति सबसे ज्यादा तटों पर अटकती है.
पेरिस, 18 मार्च। फ्रांस के राष्ट्रपति एमेनुअल मैक्रों ने शुक्रवार को अपने रूसी समकक्ष व्लादिमीर पुतिन से मारियूपोल की घेराबंदी हटाकर मानवीय मदद पहुंचाने की अनुमति देने और तत्काल संघर्ष विराम का आदेश देने की अपील की।
मैक्रों ने पुतिन से फोन पर 70 मिनट तक बात की। इससे पहले, दिन में पुतिन ने जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्ज से फोन पर बात की थी। शॉल्ज ने भी पुतिन से तत्काल संघर्ष विराम का अनुरोध किया।
फ्रांस के राष्ट्रपति कार्यालय एलिसी पैलेस ने कहा कि मैक्रों ने यूक्रेन में आम नागरिकों पर हमले और मानवाधिकारों का सम्मान करने में रूस की नाकामी को लेकर एक बार फिर चिंता जतायी।
राष्ट्रपति कार्यालय ने कहा कि जवाब में पुतिन ने यूक्रेन को युद्ध के लिए जिम्मेदार बताया। (एपी)
जिनेवा, 18 मार्च। संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी संबंधी एजेंसी के अनुमान के अनुसार यूक्रेन में अब तक कुल 65 लाख लोग विस्थापित हो चुके हैं, जबकि 32 लाख लोग पहले ही देश छोड़कर जा चुके हैं।
अंतरराष्ट्रीय प्रवास संगठन (आईओएम) के अनुमान से पता चलता है कि यूक्रेन विस्थापन के मामले में पिछले तीन सप्ताह में ही सीरिया से आगे निकल चुका है, जहां साल 2010 में भीषण युद्ध की शुरुआत हुई थी। सीरिया में अब तक 1 करोड़ 30 लाख से अधिक लोग या तो विस्थापित हो चुके हैं या फिर देश छोड़कर चले गए हैं।
संयुक्त राष्ट्र एजेंसी का यह अनुमान शुक्रवार को प्रकाशित एक दस्तावेज में सामने आया है। (एपी)
क्या हो अगर आपको पता चले कि आपकी करोड़ों की लॉटरी लग गई है? सहयद एक नॉर्मल इंसान इसके बाद अपने लिए आलीशान घर, गाड़ी और जरुरत की सारी चीजें खरीदेगा. या फिर अपना कर्जा उतारेगा. हो सकता है कुछ लोग इसके बाद रोड ट्रिप पर ही निकल जाएं. लेकिन बहुत कम ही लोग होंगे जो ऐसा होने के बाद पैसों को दान दे दें. थाईलैंड में रहने वाले एक बौद्ध भिक्षु ने कुछ ऐसा ही किया.
थाईलैंड में रहने वाले फ्रा क्रू फनोम वहां के एक मंदिर के सेक्रेटरी हैं. Wat Phra That Phanom Woramahawihan नाम के इस मंदिर के सेक्रेटरी ने एक दिन पूजा करने के दौरान एक बोर्ड देखा जिसपर 605 लिखा था. उसे ये भगवान का इशारा लगा. उसने सोचा कि वो इस नंबर का एक लॉटरी टिकट खरीदेगा. आगे उसने ऐसा ही किया. फिर से हुआ, उसने सबके होश उड़ा दिए.
फनोम इसके बाद अपने रिश्तेदारों के साथ डिनर के लिए गया. वहां उसने कुछ लॉटरी टिकट वालों से बात करके स्पेसिफिक नंबर वाले टिकट लेने चाहे. लेकिन कई ने इससे इंकार कर दिया. लेकिन इसके बाद खुद ही एक टिकट बेचने वाला उसके पास आया और उससे टिकट खरीदने की रिक्वेस्ट करने लगा. हालांकि, उसे 605 की जगह 905 नंबर का टिकट मिला.
कुछ दिनों बाद उसे पता चला कि उसने चार करोड़ की लॉटरी जीत ली है. लेकिन इस बौद्ध भिक्षु ने पैसों को वापस सोसाइटी की मदद के लिए भेज दिया. उसने सारे पैसे दान में दे दिए. इसके अलावा हर बौद्ध भिक्षु को भी थोड़े थोड़े पैसे बांट दिए. मंदिर में काम करने वाले मजदूरों को भी उसने कुछ अमाउंट डोनेट कर दिया. लोग इस बौद्ध भिक्षु की काफी तारीफ कर रहे हैं.
-जेन वेकफील्ड
ट्विटर पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का एक ऐसा डीपफ़ेक वीडियो पोस्ट किया गया जिसमें वो युद्ध समाप्त करने की घोषणा कर रहे हैं.
इसी बीच, इस सप्ताह यूट्यूब और मेटा ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की का एक डीपफ़ेक वीडियो हटाया जिसमें वो रूस के समक्ष आत्मसमर्पण की बात कर रहे हैं.
युद्ध में दोनों ही पक्ष प्रभावित करने वाले मीडिया कंटेंट का इस्तेमाल कर रहे हैं. सवाल उठता है कि इस युद्ध में ग़लत जानकारियों को लेकर ये डीपफ़ेक वीडियो क्या दर्शाते हैं.
राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की का डीपफ़ेक बहुत विश्वसनीय नहीं था और यूक्रेन में बहुत से लोगों ने इसे मज़ाक में लिया.
इस वीडियो में वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की एक पोडियम के पीछे से बोल रहे हैं. वे यूक्रेन के लोगों से हथियार डालने के लिए कह रहे हैं. वीडियो में उनका सिर शरीर के मुक़ाबले अधिक बड़ा और धुंधला नज़र आ रहा है. यही नहीं उनकी आवाज़ भी अधिक ग़हरी सुनाई दे रही है.
अपने अधिकारिक इंस्टाग्राम पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में असली राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने इस वीडियो को बचकाना हरकत बताया है.
लेकिन यूक्रेन के सेंटर फॉर स्ट्रेटेजिक कम्यूनिकेशन ने चेतावनी दी है कि रूस की सरकार ऐसे ही डीपफ़ेक वीडियो का इस्तेमाल करके यूक्रेन के लोगों को हथियार डालने के लिए उकसा सकती है.
मेटा के सिक्यूरिटी पॉलिसी प्रमुख नैथेनियल ग्लाइशर ने ट्विटर पर कई सिलसिलेवार ट्वीट कर के बताया है कि उन्होंने तुरंत डीपफ़ेक वीडियो की समीक्षा की और इसे भ्रामक मीडिया को लेकर कंपनी की पॉलिसी के तहत हटा दिया गया.
वहीं यूट्यूब का भी कहना है कि उसने भी भ्रामक जानकारियों को लेकर अपनी नीति के तहत इस वीडियो को हटा दिया है.
डीपफ़ेक्स किताब की लेखिका नीना श्चिक के मुताबिक ज़ेलेंस्की के वीडियो को डिलीट करना सोशल मीडिया कंपनियों के लिए आसान जीत की तरह था क्योंकि ये वीडियो इतना बदतर था कि इसे आम दर्शकों ने भी आसानी से पकड़ लिया.
वे कहती हैं कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इस वीडियो से निबटने के लिए अपनी पीठ थपथपा सकते हैं लेकिन ये प्लेटफॉर्म दूसरी भ्रामक जानकारियों से निबटने के लिए बहुत कुछ नहीं कर रहे हैं.
"युद्ध को लेकर बहुत सी भ्रामक जानकारियां हैं जिन्हें अभी तक झूठ नहीं ठहराया गया है. भले ही ये वीडियो बहुत ख़राब और क्रूड हों लेकिन नज़दीकी भविष्य में मामला इतना आसान नहीं होगा."
वे कहती हैं, "बावजूद इसके ये वीडियो विश्वसनीय मीडिया में भरोसा कम तो करेगा ही."
नीना श्चिक कहती हैं, "लोग ये मानने लगेंगे कि कुछ भी फ़र्ज़ी या फ़ेक हो सकता है."
"ये एक नया हथियार है और दृश्यों के ज़रिए झूठ फैलाने का संभावित तरीक़ा है और हर कोई इसका इस्तेमाल कर सकता है."
मृत रिश्तेदारों के एनिमेशन बनाने का टूल बहुत चर्चित हुआ है और मॉय हेरिटेज़ वेबसाइट अब डीपफ़ेक के बोलने की क्षमता भी दे रही है.
डीपफ़ेक तकनीक कई चेहरे
रिश्तेदारों के पुराने तस्वीरों से डीपफ़ेक एनिमेशन बनाने वाला टूल बहुत चर्चित हुआ है और अब इसे बनाने वाली कंपनी मॉयहेरिटेज एक नया फ़ीचर लाइवस्टोरी लेकर आई हैं जिसके जरिए चरित्र बोल भी सकते हैं.
लेकिन पिछले साल जब दक्षिण कोरिया के प्रसारक नेटवर्क एमबीएन ने बताया कि वो अपनी एक न्यूज़रीडर किम जू हा के डीपफ़ेक का इस्तेमाल कर रहा है तब इसे लेकर मिश्रित प्रतिक्रिया हुई थी.
कुछ लोग इस बात से प्रभावित थे कि वो कितना असली दिख रहीं थीं जबकि बाकी ये चिंता ज़ाहिर कर रहे थे कि इससे किम जू हा की नौकरी जा सकती है.
डीपफ़ेक तकनीक के ज़रिए अब पोर्न वीडियो भी बनाए जा रहे हैं. कुछ वेबसाइटें यूजर को तस्वीरों को न्यूड करने की तकनीक भी दे रही हैं.
और इसका इस्तेमाल व्यंग्य के लिए भी किया जा सकता है. पिछले साल चैनल 4 ने महारानी का डीपफ़ेक बनाकर नए साल का संदेश साझा किया था.
हालांकि राजनीति के क्षेत्र में अभी डीपफ़ेक का इस्तेमाल दुर्लभ ही है.
अगर डीपफ़ेक पकड़ा ना जाए तो?
विटनेस डॉट ओआरजी के निदेशक सेम ग्रेगरी कहते हैं कि ज़ेलेंस्की का वीडियो डीपफ़ेक की समस्या का अच्छा उदाहरण है.
"ये बहुत अच्छा डीपफ़ेक नहीं था इसलिए शुरुआत में ही पकड़ लिया गया. यूक्रेन ने इसका पर्दाफ़ाश कर दिया था और राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने स्वयं सोशल मीडिया पर इसे फ़र्ज़ी बताया, ऐसे में फ़ेसबुक के लिए इसे हटाना आसान नीतिगत फ़ैसला था."
लेकिन दुनिया के कई हिस्सों में पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की चिंता है कि न ही उनके पास डीपफ़ेक को पकड़ने के टूल हैं और न ही उन्हें डीबंक (फ़र्ज़ी ठहराने) करने की क्षमता.
लेकिन बीते साल एक ऑनलाइन डिटेक्टर ने बताया था कि म्यांमार के एक वरिष्ठ राजनेता का एक सही माना गया वीडियो वास्तव में डीपफ़ेक था. इस वीडियो में ये राजनेता भ्रष्टाचार के आरोप स्वीकार करते दिख रहे थे. अभी इस बात को लेकर बहस है कि ये वीडियो असली था या डीपफ़ेक था.
ग्रेगरी कहते हैं, "सौ प्रतिशत सबूत का अभाव और लोगों की ये मानने की अनिच्छा की ये डीपफ़ेक था, वास्तविक माहौल में डीपफ़ेक की चुनौतियों को प्रदर्शित करता है."
"कुछ सप्ताह पहले राष्ट्रपति पुतिन का एक डीपफ़ेक वीडियो आया था और इसे अधिकतर लोगों ने व्यंग्य ही माना था. हालांकि व्यंग्य और भ्रामक जानकारी के बीच रेखा बहुत मोटी नहीं है."
बीबीसी मॉनिटरिंग के शायान सरदारीजादेह का विश्लेषण
बुधवार को यूक्रेन के टीवी चैनल यूक्रानिया 24 के प्रसारण के दौरान ज़ेलेंस्की के वीडियो का ट्रांस्क्रिप्ट सबसे पहले टिकर पर दिखाई दिया.
बाद में इसका स्क्रीनशॉट और पूरा भाषण उसकी वेबसाइट पर नज़र आया.
यूक्रानिया 24 ने बाद में पुष्टि की कि उसकी वेबसाइट और टिकर को हैक कर लिया गया था. बुधवार को अधिकतर समय ये वेबसाइट बंद रही.
बाद में ये वीडियो रूस में टेलीग्राम और रूस के फ़ेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म वीके पर जमकर शेयर किया गया.
वहां से ये फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी पहुंच गया.
काफ़ी समय से ये चेतावनी दी जाती रही कि डीपफ़ेक तकनीक युद्ध जैसे हालातों में घातक साबित हो सकती है.
हालांकि भरोसेमंद डीपफ़ेक बनाना महंगा और समय लेने वाला काम है.
इस युद्ध में अभी तक पुराने वीडियो और छेड़छाड़ करके बनाए जा रहे मीम अभी तक दुष्प्रचार का सबसे प्रभावी तरीक़ा नज़र आ रहे हैं.
ज़ेलेंस्की का डीपफ़ेक न ही बहुत अच्छे से बनाया गया था और न ही ये भरोसा करने लायक था. अभी तक इतना ख़राब डीपफ़ेक हमने नहीं देखा है.
लेकिन ये ग़ौर करने वाली बात है कि युद्ध के दौरान एक डीपफ़ेक बनाया गया और उसे साझा किया गया है.
हो सकता है कि आगे आने वाले डीपफ़ेक इतने ख़राब न हों.
-ज़ुबैर अहमद
यूक्रेन में लड़ाई अभी शुरुआती दौर में है लेकिन पश्चिमी देशों को डर है कि यह महीनों और वर्षों तक खिंच सकती है.
यूक्रेन पर रूसी हमले की तुलना या तो 1979 के सोवियत संघ के अफ़ग़ानिस्तान पर हमले से की जा रही है या फिर 2001 में अफ़ग़ानिस्तान पर अमेरिका के नेतृत्व वाले आक्रमण से.
सोवियत संघ को 10 साल के अंदर शिकस्त खाकर लौटना पड़ा था और दूसरे मामले में अमेरिका को 20 साल बाद कुछ हासिल किए बग़ैर लौटना पड़ा था. दोनों मामलों में हार आक्रमण करने वाले देश की हुई थी.
तो क्या रूसी हमले के बाद यूक्रेन की हालत अफ़ग़ानिस्तान जैसी हो सकती है, अमेरिकी हमले के बाद वाला अफ़ग़ानिस्तान या फिर सोवियत हमले के बाद वाला.
अमेरिका में कुछ प्रभावशाली शख़्सियतें ये चाहती हैं कि यूक्रेन में रूस को उसी तरह के दलदल में फंसाया जाए जिस तरह से अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत संघ को फंसाया गया था जिसके बाद हमलावर फौज की भारी शिकस्त हुई थी और 10 साल बाद उन्हें अफ़ग़ानिस्तान छोड़कर वापस जाना पड़ा था.
उनका तर्क है कि अमेरिका और नेटो उसी तरह से वॉलंटियर्स और ग़ैर-सरकारी एक्टर्स को हथियार और ट्रेनिंग देंगे जिस तरह से इन देशों ने अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत यूनियन से लड़ने के लिए मुजाहिदीन को तैयार किया था, यहाँ भी ऐसा ही होगा.
अमेरिका की भूतपूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा, "याद रखें, 1980 में रूसियों ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया था. रूसियों के लिए इसका अंत अच्छा नहीं था... सच यह है कि एक बहुत ही प्रेरित, अच्छी तरह से फंडेड और सशस्त्र विद्रोह ने मूल रूप से रूसियों को अफ़ग़ानिस्तान से बाहर निकाल दिया."
सोवियत सैनिकों ने 24 दिसंबर 1979 को अफ़ग़ानिस्तान पर आक्रमण किया था और 10 साल तक वहां रहने के बाद 1989 में उन्हें हार के बाद अपने देश भागना पड़ा था. अफ़ग़ानिस्तान में अपनी मर्ज़ी का शासन लागू करने में विफल होने के बाद सोवियत संघ ने 1988 में अमेरिका, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए और सोवियत सैनिकों की वापसी 15 फ़रवरी, 1989 को पूरी हुई.
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपने हालिया 'स्टेट ऑफ़ द यूनियन' संबोधन में इसी पॉलिसी को अपनाने की तरफ़ इशारा भी किया था. उस भाषण में उन्होंने कहा था कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को यूक्रेन पर हमला करने के बदले एक लंबे अरसे तक क़ीमत चुकानी पड़ेगी.
शिकागो में रहने वाले लेखक ब्रैंको मार्सेटिक ने जो बाइडन पर पर एक चर्चित किताब लिखी है, वे कहते हैं कि फ़िलहाल वाशिंगटन में कई तरह की आवाज़ें सुनाई दे रही हैं. उनमें से एक ये है कि रूस को यूक्रेन के दलदल में फँसाया जाए.
बीबीसी से एक ईमेल इंटरव्यू में वो कहते हैं, "मेरे विचार में दोनों तरफ़ के राजनेताओं (रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी) और बाइडन के प्रशासन में अधिकारियों के बीच राय अलग-अलग है. लेकिन ये (रूस को यूक्रेन में फंसा कर रखना) निश्चित रूप से कुछ लोगों के लिए पसंदीदा विकल्प है. हम जानते हैं कि बाइडन प्रशासन कम-से-कम पिछले दिसंबर से इस तरह के परिणाम के लिए स्पष्ट रूप से योजना बना रहा है."
वे कहते हैं, "इस बार अमेरिका और उसके नेटो सहयोगी देशों ने ये साफ़ तौर पर तय कर लिया है कि वो इस लड़ाई में सीधे तौर पर शामिल नहीं होंगे. मेरी समझ में इनकी कोशिश ये रहेगी कि रूस को उलझाकर रखा जाए. यूक्रेन की अखंडता पर आक्रमण हुआ है, इसे देखते हुए रूस पर कई तरह के सख्त प्रतिबंध लगाए जाएँ, उनका अंतिम लक्ष्य ये है कि आर्थिक और सैन्य रूप से रूस को कमज़ोर किया जाए."
अचल मल्होत्रा कहते हैं, "अगर आप पश्चिमी देशों को देखें तो पुतिन को एक विलेन की तरह से पेश किया जा रहा है. इसके अलावा रूस को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग किया जा रहा है. दूसरी तरफ़ उनकी कोशिश ये है कि यूक्रेन के अंदर जारी प्रतिरोध को राजनयिक, नैतिक, राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य सहायता करके ज़िंदा रखें. अगर इसका कोई हल नहीं निकला तो ये युद्ध सालों तक चल सकता है और यूक्रेन एक स्थायी युद्ध क्षेत्र बन सकता है."
मौजूदा संकट 2014 से ही चला आ रहा है जब रूस ने यूक्रेन से जुड़े इसके पूर्वी हिस्से क्राइमिया पर हमला करके क़ब्ज़ा कर लिया था. नेटो और अमेरिका से यूक्रेन की सैनिक मदद उसी समय शुरू हो गई थी.
स्कॉट रिटर अमेरिका में रूसी मामलों के एक विशेषज्ञ हैं और अमेरिकी मरीन फोर्स के कमांडर रह चुके हैं. वो बग़दाद में एक हथियार निरीक्षक भी रह चुके हैं. उनके अनुसार अमेरिका और नेटो 2015 से ही यूक्रेन की सेना को प्रशिक्षित कर रहे हैं.
एक ट्वीट में उन्होंने कहा कि अमेरिका और नेटो के सैनिक 2015 से नेटो के यवोरिव सुविधा केंद्र में डोनबास (पूर्वी यूक्रेन) में लड़ाई के लिए हर साल यूक्रेन की सेना के पांच बटालियन को ट्रेन करने का काम कर रहे हैं. इसका मतलब ये हुआ कि आठ साल में यूक्रेन की 40 बटालियन को ट्रेनिंग दी जा चुकी है."
आम नागरिकों को दी जा रही है ट्रेनिंग
पश्चिमी देशों के सैकड़ों वालंटियर्स यूक्रेन में रूसी सेना से लड़ने के लिए वहां पहुँच रहे हैं, उन्हें हथियारों की आपूर्ति भी की जा रही है. यूक्रेन के आम नागरिकों को भी शहरी युद्ध में सशस्त्र और प्रशिक्षित किया जा रहा है.
शिकागो में अमेरिकी विश्लेषक ब्रैंको मार्सेटिक के मुताबिक़ यूक्रेन में सक्रिय नियो-नाज़ी और विदेश से आ रहे रंगभेद समर्थकों के हाथों में हथियार देना ख़तरे से खाली नहीं. वे कहते हैं, "पश्चिमी देशों के समर्थन वाले यूक्रेन में प्रतिरोध करने वाले बलों से ख़तरा अमेरिका को बना रहेगा इससे इनकार नहीं किया जा सकता".
उनका कहना है कि यूक्रेन में जारी प्रतिरोध को हथियार और ट्रेनिंग देना उसी तरह से देखा जाना चाहिए जिस तरह से अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका ने मुजाहिदीन को दिया था. उन्हें इस बात का ख़तरा है कि अपने हाथों में हथियार उठाने वाले रंगभेद समर्थक गोरे लोग अमेरिका वापस आकर हिंसक न हो जाएँ.
वो आगे कहते हैं, "अल्ट्रा-नेशनलिस्ट और अन्य सुदूर दक्षिणपंथी चरमपंथियों की यूक्रेन में लंबे समय से एक ख़तरनाक और प्रभावशाली उपस्थिति रही है और जिस तेज़ी और आसानी से पश्चिमी देशों के हथियार यूक्रेन में आ रहे हैं इसमें कोई संदेह नहीं कि वो उनके हाथों में आएंगे, वास्तव में, हम जानते हैं कि उनके पास ये हथियार पहले से ही हैं."
ब्रैंको मार्सेटिक के मुताबिक़, अब इनमें से कई पश्चिमी चरमपंथी अपनी हिंसक गतिविधियों के लिए वास्तविक दुनिया का अनुभव प्राप्त करने के लिए यूक्रेन की यात्रा भी कर रहे हैं. "चिंता की बात यह है कि हम इन सबका अंजाम उस वक़्त ही जान पाएंगे जब तक कि बहुत देरी हो चुकी होगी."
बीस साल बाद यानी पिछले साल उन्हें अफ़ग़ानिस्तान छोड़ कर जाना पड़ा था.
जिस तरह अचानक पश्चिमी देशों के सैनिकों ने अफ़ग़ानिस्तान छोड़ा उससे अमेरिका की काफ़ी बदनामी हुई और कहा गया कि अमेरिका और नेटो की अफ़ग़ानिस्तान में शिकस्त हुई है.
अचल मल्होत्रा कहते हैं कि राष्ट्रपति बाइडन के लिए यूक्रेन एक बड़ी चुनौती है. इस साल नवंबर में अमेरिकी कांग्रेस का चुनाव है. बाइडन को अमेरिका के अंदर ये दिखाना है कि अमेरिका अब भी वर्ल्ड लीडर है और वो रूस का यूक्रेन में डटकर मुक़ाबला कर रहा है. अगर यूक्रेन में रूस की जीत हुई तो अमेरिका की छवि को काफी बड़ा नुकसान हो सकता है.
अचल मल्होत्रा कहते हैं, "ऐसा हो सकता है. रूस अफ़ग़ानिस्तान में ऐसी स्थिति झेल चुका है. अमेरिका भी अफ़ग़ानिस्तान में नाकामी देख चुका है. अमेरिका वियतनाम में शिकस्त खा चुका है. ये इस बात पर निर्भर करेगा कि अमेरिका और उसके साथी देश यूक्रेन में प्रतिरोध को कब तक मज़बूती से चला पाएँगे."
इस समय युद्ध के साथ-साथ रूस और यूक्रेन ने बातचीत के ज़रिए मसले का हल निकालने की कोशिश जारी रखी है. लेकिन संकेत ऐस मिल रहे हैं कि रूस केवल अपनी शर्तों पर ही यूक्रेन से वापस जाएगा.
उसकी शर्तों में जो बातें शामिल हैं इसमें ख़ास ये हैं: यूक्रेन नेटो में शामिल न हो, यूक्रेन की सेना हथियार डाल दे और यूक्रेन क्राइमिया को मान्यता दे.
राष्ट्रपति पुतिन ये भी चाहते हैं कि यूक्रेन में उनके समर्थन वाली सरकार स्थापित हो. अगर यूक्रेन ने शर्तें मान लीं तो हार अमेरिका और नेटो की होगी. (bbc.com)
"हम तो उनसे कुछ नहीं मांगते, ये अपनी बीवियों को ख़ुश रखें लेकिन बूढे मां-बाप को भी बेआसरा न छोड़ें."
ये शब्द थे पेशावर हाई कोर्ट में अपने और अपने पति की देख-रेख के लिए अपील करने वाली एक मां के, जो छह बेटे होने के बावजूद बुढ़ापे में बेआसरा हैं और उनके बेटे मां-बाप को अपने पास रखने के लिए रज़ामंद नहीं.
पेशावर हाई कोर्ट में एक ऐसी अपील पर सुनवाई हुई जो बूढ़े मां-बाप की ओर से अदालत में दी गई थी.
इस अपील में बूढ़े माता-पिता ने बताया है कि उनके छह बेटे हैं, जिनमें से पांच नौकरीपेशा हैं और एक विकलांग है.
किराए पर रह रहे हैं मां-बाप
अपील में कहा गया है कि उन्होंने अपने बेटों की परवरिश, शिक्षा और शादी-ब्याह के लिए अपना सब कुछ बेच दिया था और अब वो ख़ुद किराए के मकान में रहते हैं जिसका वो किराया भी नहीं दे पा रहे हैं.
ये मामला अदालत में सामने आया है जिस पर जस्टिस रूहुल अमीन ने कहा कि अगर बच्चे अपने परिजनों को अपने पास नहीं रखते तो हम उन्हें अपने पास रख लेंगे.
उन बुज़ुर्ग परिजनों की ओर से वकील अफ़शां बशीर अदालत में पेश हुईं. उन्होंने बीबीसी को बताया कि आज अदालत में जब सुनवाई शुरू हुई तो उन माता-पिता का सिर्फ़ एक बेटा अदालत में पेश हुआ जबकि बाक़ी चार अदालत में नहीं थे.
उन्होंने बताया कि सुनवाई के दौरान बेटे कहा कि वो माता-पिता को हर महीने कुछ रुपये देंगे, जिस पर अदालत ने कहा कि उन्हें पैसों की नहीं मुहब्बत की ज़रूरत है.
अफ़शां बशीर एडवोकेट के मुताबिक़ बूढ़े माता-पिता इस वक़्त किराए के मकान में रहते हैं जिसका किराया कोई 4000 रुपये है और वो ये किराया अदा नहीं कर सकते हैं.
स्थानीय पत्रकार अदालत में मौजूद थे, उन्होंने बीबीसी को बताया कि अदालत ने बेटे से पूछा कि बूढ़े माता-पिता को बेसहारा क्यों छोड़ा है. अदालत ने बुज़ुर्ग महिला निसार बीबी से पूछा कि क्या आप अपने बच्चों से ख़ुश हैं, जिस पर बेटों की मां ने कहा मां को तो बच्चे मारें भी तो मां ख़फ़ा नहीं होती, और ये बातें कहते हुए निसार बीबी की आंखो में आंसू भर आए.
निसार बीबी ने अदालत में कहा कि 'उनके बेटे अपनी-अपनी बीवियों को ख़ुश रखें मगर परिजनों को बेआसरा न छोड़ें. हमने अपने बच्चों की बहुत मेहनत और मुहब्बत से परवरिश की है.'
बेटों की शादी के लिए बेच दिया था मकान
उन्होंने कहा कि उनकी शादियों के लिए अपना निजी मकान बेचा और बाक़ी जो जमा-पूंजी थी सब ख़र्च कर दी और 'अब हम दरबदर की ठोकरें खा रहे हैं.'
इस दौरान अदालत ने बेटे से कहा कि मां-बाप ने अपने बच्चों के लिए अपना मकान बेच दिया और बेटों ने मां-बाप के साथ क्या सलूक किया, सिर्फ़ हज़ार-हज़ार रुपये देने से मां-बाप के ख़र्चे पूरे नहीं होते.
अदालत ने अपनी टिप्पणी के दौरान कहा कि सरकार की ओर से माता-पिता के कल्याण के लिए जारी ऑर्डिनेंस भी क़ानून की शकल नहीं ले सका, 'क्या ये ऑर्डिनेंस सिर्फ़ लोगों को दिखाने के लिए था.'
बीते साल सितंबर में पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने माता-पिता की सुरक्षा ऑर्डिनेंस 2021 जारी किया था जिसके तहत बच्चे परिजनों को अपने घरों से ज़बरदस्ती नहीं निकाल सकते चाहे वो अपने घर में रह रहे हों या किराए के मकान में.
इस ऑर्डिनेंस के तहत माता-पिता को घरों से बेदख़ल करने वाले बच्चों को एक साल तक क़ैद और जुर्माने की सज़ा दी जा सकती है.
अदालत ने संबंधित पुलिस थाने के एसएचओ से कहा कि आगे कि सुनवाई के दौरान सभी बेटों को अदालत में पेश किया जाए.
अफ़शां बशीर एडवोकेट ने बताया कि बुज़ुर्ग माता-पिता का एक बेटा विदेश में रहता है जबकि दो यहां नौकरी करते हैं, एक सिक्योरिटी में है और दूसरा मुंशी है.
उन्होंने बताया कि बुज़ुर्ग महिला उनके पास एक-दो बार आई थीं और अपनी परेशानी बताई थी जिसके बाद मानवीय सहानुभूति के आधार पर अदालत में अपील की.
बेटों के घर नहीं जाना चाहते हैं
इस अपील में उन्होंने संबंधित सरकारी संस्थाओं और बुज़ुर्ग माता-पिता के बेटों को एक पार्टी बनाया है. इस अपील में कहा गया है कि बुज़ुर्ग माता-पिता को एहसास प्रोग्राम और बेनज़ीर इनकम सपोर्ट प्रोग्राम और अन्य इस तरह के प्रोग्राम से भी कोई मदद नहीं की जा रही है.
अदालत में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार आमिर जमील ने बताया कि इस अपील की सुनवाई के दौरान भी मां अपने बेटे से कह रही थी कि तुम परेशान न होना हम मजबूर हैं. इन बच्चों के पिता गौहर अली एक बुज़ुर्ग व्यक्ति हैं और जब उनसे बात करना चही तो उन्होंने कहा कि वो बात नहीं कर सकते.
उनकी पत्नी ने कहा, "उन्हें अब बच्चों के पास वापस न भेजा जाए, बल्कि उनके लिए अलग कोई इंतज़ाम अगर हो सकता है तो वो किया जाए क्योंकि अतीत में भी ऐसे ही फ़ैसले हुए और रज़ामंदी से हमें बेटों के हवाले किया गया और बाद में तमाम बेटे ज़िम्मेदारियां एक-दूसरे पर डालने लगे कि तुम अब मां-बाप को रखो."
अदालत में पेश होने वाले इस मुक़दमे की कहानी भी बॉलीवुड की फ़िल्म 'बाग़बान' से मिलती-जुलती है जिसमें बाप का किरदार अमिताभ बच्चन और मां का किरदार हेमा मालिनी ने अदा किया था.
इस फ़िल्म में भी माता-पिता के रिटायरमेंट और बेटों के नौकरीपेशा होने के बाद मां-बाप के लिए बेटों के घरों में जगह कम पड़ जाती है और बेटे आपस में एक-दूसरे पर ज़िम्मेदारियां डालते हैं कि मां-बाप को अब तुम रखो. (bbc.com)
ईरान सरकार ने ईरानी मूल की ब्रितानी नागरिक नाज़नीन ज़घारी रैट्क्लिफ़ को छह साल तक हिरासत में रखने के बाद बीते बुधवार रिहा कर दिया है.
नाज़नीन को साल 2016 में ईरान सरकार ने कथित रूप से जासूसी करने के मामले में हिरासत में लिया था.
ईरानी अधिकारियों ने दावा किया था कि नाज़नीन तेहरान में ईरान सरकार के तख़्तापलट की साजिश रच रही थीं लेकिन उनके ख़िलाफ़ लगाए गए आरोपों को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया.
नाज़नीन के ख़िलाफ़ क्या थे आरोप
ईरान के रिवॉल्युशनरी गार्ड्स ने इस मामले में दावा किया था कि नाज़नीन अपनी ईरान यात्रा के दौरान विदेश से जुड़े एक विरोधी नेटवर्क का नेतृत्व कर रही थीं.
वहीं, नाज़नीन का कहना था कि वह ईरानी नववर्ष मनाने के लिए अपनी बेटी गेबरिएला के साथ माता-पिता के घर तेहरान पहुंची थीं.
इस मामले में थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन के साथ साथ बीबीसी मीडिया एक्शन ने बयान जारी करके बताया था कि वह ईरान में काम के सिलसिले से नहीं बल्कि छुट्टियां मनाने गई थीं.
नाज़नीन ने साल 2021 में परोल पर रहते हुए अपनी सज़ा का अंतिम साल तेहरान स्थित अपने माता-पिता के घर पर बिताया.
लेकिन इसके बाद ईरान सरकार के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार करने से जुड़े एक मामले में दोषी पाए जाने के बाद उन्हें एक साल जेल की सज़ा और एक साल का यात्रा प्रतिबंध लगाया गया.
नाज़नीन ने इस फ़ैसले को चुनौती देते हुए अपील दायर की लेकिन इस कोशिश में वह सफल न हो सकीं.
ब्रितानी विदेश मंत्री लिज़ ट्रस ने इस फ़ैसले की निंदा करते हुए इसे नाज़नीन के साथ बरती जा रही क्रूरता की भयावह निरंतरता बताया था.
ईरान ने नाज़नीन को साल 2016 में हिरासत में लिया गया था जिसके बाद अप्रैल से जून तक उनसे गहन पूछताछ की गई और एकांत कारावास में रखा गया था.
इसके बाद सितंबर 2016 में तेहरान की रिवॉल्युशनरी कोर्ट ने उन्हें पांच साल क़ैद की सज़ा सुनाई.
नाज़नीन ने इस मामले में साल 2017 के अप्रैल महीने ईरान की सुप्रीम कोर्ट में में अपील दर्ज की गई लेकिन उनके हाथ निराशा लगी.
इसके बाद अगस्त 2018 में उन्हें तीन दिन के लिए रिहा किया गया जिससे वह अपनी बेटी गेबरिएला से मिल सकीं.
साल 2019 के जनवरी महीने में मेडिकल ट्रीटमेंट नहीं मिलने पर नाज़नीन ने तीन दिन तक भूख हड़ताल शुरू की.
इसके बाद 2019 के जून महीने में ही बिना शर्त रिहाई के लिए उन्होंने 15 दिनों की भूख हड़ताल की.
साल 2020 के मार्च महीने में महामारी की वजह से उन्हें जेल से अस्थाई रूप से रिहा किया गया. इसके बाद से वह तेहरान में अपने माता-पिता के घर पर रहीं.
साल 2020 के सितंबर महीने में उन्हें बताया गया कि उन्हें एक अन्य मामले में कानूनी मुकदमे का सामना करना पड़ेगा.
साल 2021 के अप्रैल में उन्हें फिर एक साल जेल की सज़ा सुनाई गयी. साल 2021 के अक्टूबर महीने में उन्होंने दूसरी बार अपील की लेकिन इस बार भी उनके हाथ निराशा लगी.
इसके बाद मार्च 2022 में नाज़नीन को रिहा कर दिया गया और वह ब्रिटेन वापस लौट रही हैं.
आख़िर क्या था मामला?
नाज़नीन के रिचर्ड रैट्क्लिफ़ पिछले काफ़ी समय से अपनी पत्नी की रिहाई के लिए मुहिम चला रहे थे. और इस दौरान वह लंदन में अपनी बेटी के साथ रह रहे थे.
रिचर्ड रैट्क्लिफ़ ने अपनी पत्नी की सज़ा को लेकर बताया था कि उनकी पत्नी से कहा गया है कि उनकी हिरासत की वजह ईरान और ब्रिटेन के बीच 1970 के दशक से चला आ रहा कई मिलियन पाउंड का विवाद है. और नाज़नीन को हिरासत में रखकर ईरान ब्रिटेन पर इस विवाद का समाधान करने का दबाव बनाना चाहता था.
ईरान का दावा था कि ब्रिटेन को 1500 चीफ़्टेन टैंक के लिए दिए गए पैसे को वापस लौटाना चाहिए.
बता दें कि ईरान ने सत्तर के दशक में ब्रिटेन से 1500 चीफ़्टेन टैंक ख़रीदने के लिए अग्रिम भुगतान किया था.
लेकिन ब्रिटेन ने ये टैंक ईरान को नहीं दिये और इसके बदले में अग्रिम भुगतान भी वापस नहीं किया. ऐसे में ईरान का दावा था कि ब्रिटेन को 400 मिलियन पाउंड की रकम लौटानी होगी.
नाज़नीन की रिहाई के बारे में सूचना देते हुए ट्रस ने बताया कि इस रकम को ब्रितानी और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों और विधिक नियमों के तहत चुका दिया गया है.
उन्होंने बताया कि इस बारे में ईरान के साथ ओमान की मदद से पिछले कुछ महीनों से बातचीत जारी थी.
इसके बाद जानकारी सामने आई है कि नाज़नीन ओमान से होते हुए ब्रिटेन लौट रही हैं. (bbc.com)
(ललित के झा)
वाशिंगटन, 18 मार्च। अमेरिकी सांसदों के एक द्विदलीय समूह ने भारत से यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के खिलाफ बृहस्पतिवार को आवाज उठाने का आग्रह किया।
कांग्रेस सदस्य जो विल्सन और भारतीय-अमेरिकी सांसद रो खन्ना के नेतृत्व में सांसदों ने अमेरिका में भारत के शीर्ष राजदूत तरनजीत सिंह संधू को फोन करके इस मामले पर चर्चा की।
खन्ना ने कहा कि उन्होंने विल्सन के साथ मिलकर राजदूत संधू से फोन पर बात की और दौरान भारत से यूक्रेन में नागरिकों को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा निशाना बनाए जाने के खिलाफ आवाज उठाये जाने का आग्रह किया।
उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘दोनों दलों में भारत के मित्र उससे शांति के लिए अपने प्रभाव का उपयोग करने का आग्रह कर रहे हैं।’’
विल्सन ने ट्वीट किया, ‘‘अपने सहयोगी के साथ मिलकर अमेरिका में भारत के राजदूत को फोन किया। यह महत्वपूर्ण है कि विश्व नेता यूक्रेन में पुतिन द्वारा किए जा रहे अत्याचारों की निंदा करें।’’
दो दिनों में यह दूसरी बार है जब अमेरिकी सांसदों ने भारत से यूक्रेन के खिलाफ सैन्य हमले को लेकर रूस की निंदा करने का आग्रह किया है।
एक दिन पहले, दो सांसदों टेड डब्ल्यू लियू और टॉम मालिनोवस्की ने भारत से रूस की निंदा करने का आग्रह किया था।
उन्होंने संधू को लिखे एक पत्र में कहा, ‘‘हालांकि हम रूस के साथ भारत के संबंधों को समझते हैं, हम संयुक्त राष्ट्र महासभा के दो मार्च के मतदान से दूर रहने के आपकी सरकार के फैसले से निराश हैं।’’ (भाषा)
कोई खतरनाक शख्स अचानक से साधू बन जाए तो ताज्जुब होना लाज़िम हो जाता है. दिमाग में ये सवाल बार-बार उठने ही लगता है कि आखिर एक खूंखार इंसान इतना कैसे और क्यूं बदल गया. ऐसे ही कोई भी जीव अपनी प्रवृति के विपरित काम करने लगे तो आश्चर्य तो होगा ही. हाल ही में एक ऐसा ही वीडियो सामने आया जिसने ये सवाल उठाने पर मजबूर कर दिया.
Dr. Ajayita ने ट्विटर अकाऊंट @DoctorAjayita पर उन्होंने एक वीडियो शेयर किया जिसमें मगरमच्छों की भरमार के बीच अचानक एक मछली छटकती हुई आ पहुंची, मगर किसी ने भी उसे देख लार नहीं टपकाई. बाद में एक मगरमच्छ ने कोशिश भी की तो बाकी साथियों ने उसे रोक दिया. जिसे देखकर मन में ये सवाल उठा कि क्या खतरनाक मगरमच्छ वेजिटेरियन होने लगे हैं!
क्या मगरमच्छ होने लगे शाकाहारी!
सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो है तो बड़ा मज़ेदार, साथ ही सवाल भी खड़े करता है कि आखिर क्यों और कैसे? दरअसल इस वायरल वीडियो में मगरमच्छों के जमघट के बीच अचानक एक मछली छटकती हुई कही से आ टपकी. लेकिन हैरानी तो इस बात पर हुई कि आंखों के सामने शिकार होते हुए भी किसी ने उस मछली की तरफ आंख उठाकर देखा भी नहीं. 13 सेकेंड के इस वीडियो को जिसने भी देखा वो इसका आखिरी सीन देखकर हंसे बिना नहीं रह सकता. क्रोकोडायल्स की खूंखार प्रजाति से ऐसी उम्मीद कोई नहीं कर सकता था जैसा उन्होंने किया. सबसे मजेदार तो ये रहा कि जब हर मगर ने मछली की जान छोड़ दी तभी मौके का फायदा उठाने के लिए दूर पड़ा एक मगरमच्छ आ पहुंचा. वो मछली की तरफ लपका भी लेकिन तब उसके साथियों ने ही मछली को उसके मुंह का निवाला नहीं बनने दिया. और दो मगर ने मिलकर उस तीसरे मगर को पानी में पटक दिया.
वीडियो जितने ही मज़ेदार हैं कमेंट्स भी
वीडियो पर इतने ही मज़ेदार कमेंट भी देखने को मिले. तो कुछ लोगों ने आपत्ति भी जताई. एक यूज़र ने लिखा ये वीडियो ठीक वैसा ही है जैसा किसी शादी में वेज दोस्त नॉनवेज खाने वालों के साथ करते हैं. तो एक ने इस मछली को Luckiest fish in the world कहा. दुखी जीवन जीने के लिए उसे भी उसी कुंड में प्रवेश करना पड़ता है ! एक यूज़र इस वीडियो पर होने वाले मज़ाक से अपसेट थी. लिहाज़ा उसने लिखा “जीवन के लिए संघर्ष करती एक मछली को देखना कैसा मज़ाक है? क्रूरता का कोई अंत नहीं है!” वहीं वीडियो शेयर करने वाली Dr Ajayita ने इस पर कैप्शन दिया No Wally no, you are on a diet!.
बरसों तक ईरान की जेल में बंद रहने के बाद ब्रिटेन के दो नागरिक स्वदेश लौट आए हैं। ईरानी परमाणु संधि के दौरान कैदियों की आपसी रिहाई के चलते इन लोगों को आजादी मिल पाई।
ईरानी मूल की ब्रिटिश नागरिक नाजनीन जगारी-रैटक्लिफ और अनुशेह अशूरी सालों तक ईरानी जेल में रहने के बाद आखिरकार रिहा होकर ब्रिटेन लौट आए हैं। गुरुवार को दोनों ब्रिटेन के ऑक्सफर्डशर स्थित सैन्य हवाई अड्डे ब्राइज नॉर्टन पर पहुंचे। साथ ही, ब्रिटेन ने बताया है कि ईरानी मूल के अमेरिकी पर्यावरणविद मुराद ताबाज को बुधवार को फरलो पर रिहा किया गया है। ताबाज भी ब्रिटिश नागरिक हैं।
इससे पहले ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने ट्विटर पर लिखा, इस बात की पुष्टि करते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है कि नाजनीन जगारी-रैटक्लिफ और अनुशेह अशूरी की ईरान में अन्यायपूर्ण हिरासत खत्म हो गई है और वे यूके लौट रहे हैं।
जगारी-रैटक्लिफ के पति रिचर्ड ने कहा कि लगता है एक अरसे से जारी यह कठिन परीक्षा खत्म हुई। लंदन स्थित अपने घर से पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा, यह ख्याल कि हम एक आम जिंदगी जी पाएंगे, कि हमें लड़ते नहीं रहना होगा, कि यह लंबी यात्रा लगभग खत्म हो गई है, बहुत राहत की बात है।
अशूरी के परिवार की ओर से जारी एक बयान में उनकी रिहाई की कोशिशें करने वालों को शुक्रिया कहा गया। परिवार ने कहा, 1672 दिन पहले हमारे परिवार की नींव हिल गई थी जब हमारे पिता और पति को अन्यायपूर्ण रूप से हिरासत में लेकर हमसे दूर कर दिया गया था। अब हम उस नींव के फिर से निर्माण के बारे में सोच सकते हैं क्योंकि हमारा मील का पत्थर लौट आया है। अशूरी को 2019 में इस्राएल की जासूसी एजेंसी मोसाद के लिए जासूसी करने के आरोप में दस साल की कैद सुनाई गई थी।
जासूसी के आरोप
जगारी-रैटक्लिफ को ईरानी सेना ने 3 अप्रैल 2016 को तेहरान में गिरफ्तार किया था। तब वह अपनी 22 महीने की बेटी गैब्रिएला के साथ अपने माता-पिता के पास ईरानी नव वर्ष मनाने के बाद ब्रिटेन लौटने की कोशिश कर रही थीं। ईरानी अदालत में उन पर ईरानी सरकार का तख्तापलट करने की साजिश का दोष सिद्ध हुआ। उनकी संस्था और परिवार इस आरोप का खंडन करते रहे हैं। संस्था ने कहा था कि वह निजी यात्रा पर ईरान गई थीं और वहां कोई काम नहीं कर रही थीं।
जगारी-रैटक्लिफे के नियोक्ता एंटोनियो जापुला ने कहा कि जब दुनिया उथल-पुथल से गुजर रही है तब उनकी रिहाई उम्मीद की नई रोशनी है। जापुला की कंपनी एक समाजसेवी संस्था है जो थॉमसन-रॉयटर्स से संबंद्ध है लेकिन स्वतंत्र रूप से काम करती है।
फरवरी में ईरान ने इन दोनों की रिहाई का ऐलान तब किया था जबकि 2015 की परमाणु संधि को फिर से जिंदा करने के लिए बातचीत चल रही थी। तब ईरान ने कहा कि वह ईरान की जब्त संपत्तियों की मुक्ति और पश्चिमी जेलों में बंद उसके नागरिकों के बदले इन दोनों को रिहा करने को तैयार है।
करीब दो हफ्ते पहले ईरानी परमाणु समझौता समाप्ति की ओर पहुंच रहा था जब रूस ने यूक्रेन पर हमले के बाद कुछ नई शर्तें जोड़ दीं। ऐसा प्रतीत होता है कि अब रूस ने अपनी मांगें कम कर दी हैं जो परमाणु संधि से ही जुड़ी हैं।
ब्रिटेन ने चुकाया कर्ज
ईरान की अर्धसरकारी समाचार एजेंसी फार्स ने कहा है कि जगारी-रैटक्लिफ और अशूरी को तब रिहा किया गया जब ब्रिटेन ने अपना पुराना कर्ज चुका दिया। ईरानी शासकों का कहना है कि ब्रिटेन पर देश के पूर्व सम्राट यानी शाह का 40 करोड़ पाउंड यानी लगभग 40 अरब रुपये का कर्ज बकाया था। यह धन ब्रिटेन ने 1,750 टैंकों और अन्य वाहनों के लिए लिया था लेकिन 1979 की क्रांति के बाद इन वाहनों की डिलीवरी नहीं की गई।
अमेरिका-ईरान के बीच सुलह कराने में जुटे हैं बड़े देश
ब्रिटिश विदेश मंत्री लिज ट्रस ने कहा कि ब्रिटेन इस कर्ज को चुकाने के रास्ते खोज रहा था। एक बयान में उन्होंने कहा, हमें नाजनीन, अनुशेह और मुराद और उनके परिजनों के हौसले पर फख्र है। उन्होंने वो झेला है जो किसी परिवार को कभी ना झेलना पड़े। और यह लम्हा बहुत बड़ी राहत लेकर आया है।
साथ ही, ट्रस ने कहा कि ब्रिटेन ने अपना कर्ज भी चुका दिया है। उन्होंने कहा, जैसा कि हमने कहा था, हमने कर्ज चुका दिया है। उन्होंने कहा कि ईरान पर लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के अनुसार ही कर्ज चुकाया गया है और इस धन का इस्तेमाल मानवीय जरूरतों का सामान खरीदने में ही किया जाएगा।
वीके/एए (रॉयटर्स, एपी)
12 जुलाई 2021 को रूस की सरकारी वेबसाइट पर क़रीब साढ़े छह हज़ार शब्दों का एक लेख प्रकाशित हुआ. इसमें बीते कई सदियों के रूस और यूक्रेन के साझा इतिहास के बारे में बताया गया.
दावा किया गया कि रूस, यूक्रेन और बेलारूस प्राचीन रूस का हिस्सा थे और ये विशाल स्लाविक देश कभी यूरोप का सबसे बड़ा मुल्क हुआ करता था.
ये लेख रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने लिखा था. उनके अनुसार 20वीं सदी की शुरुआत में यूक्रेन ने अपनी एक अलग 'काल्पनिक' पहचान बनानी शुरू की. और फिर, रूस विरोधी पश्चिमी मुल्कों के प्रभाव के कारण यूक्रेन रूस को अपना दुश्मन समझने लगा.
दुनिया जहान में इस सप्ताह पड़ताल इसी बात की कि यूक्रेन को लेकर पुतिन का दावा कितना सही है? और रूस और यूक्रेन का इतिहास क्या है?
रूस और यूक्रेन के पूर्वज कीएवन रूस नाम के एक स्लाविक देश का हिस्सा थे. वाइकिंग ओलेग ने नौवीं सदी में इसकी स्थापना की थी.
फेथ हिलिस यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो में रूसी इतिहास की प्रोफ़ेसर हैं. वो कहती हैं कि बाल्टिक सागर और काला सागर के बीच की वो जगह जहां आज यूक्रेन है, वहां क़रीब हज़ार साल पहले छोटे-छोटे समुदाय रहा करते थे.
वो कहती हैं, "स्लाविक समुदाय असंगठित थे और अलग-अलग मंडलों में बंटे हुए थे. प्रचलित कहानियों के अनुसार इन समुदायों ने निप्रो नदी के रास्ते स्कैंडिनेविया से बाइज़ेंटीयम आने-जाने वाले स्कैंडिनेवियन व्यापारियों के नेतृत्व में एकजुट होकर नया देश बनाने का फ़ैसला किया. ये नया देश था कीएवन रूस और इसकी राजधानी थी कीएव. ये स्लाविक लोग न तो यूक्रेनी थे और न रूसी. इसमें आदिवासी, खानाबदोश, मुसलमान और यहूदी जैसे ग़ैर-स्लाविक समुदाय भी शामिल थे."
यहां के अलग-अलग समुदायों को एक ऑर्थोडॉक्स धार्मिक आस्था ने आपस में जोड़कर रखा था, जिसके तार रोमन साम्राज्य के पूर्व से जुड़े थे. यहां कइयों ने ऑर्थोडॉक्स ईसाई धर्म अपनाया, हालांकि यहां अलग-अलग नस्लीय समुदाय भी रहे.
13वीं सदी में मंगोलों ने कीएवन रूस पर आक्रमण किया. यहां की स्लाविक आबादी तीन बड़े हिस्सों में बंट गई. आने वाले वक्त में ये इलाक़े आधुनिक दुनिया के रूस, यूक्रेन और बेलारूस बने.
14वीं सदी में जब मंगोलों का पतन हो रहा था, उस वक्त कीएव पर एक और ख़तरा मंडरा रहा था. पोलैंड अपनी सीमाओं के विस्तार की तैयारी कर रहा था और इसका नेतृत्व रोमन कैथलिकों के हाथ में था.
फेथ हिलिस कहती हैं, "पोलैंड और लिथुआनिया ने आपस में हाथ मिला लिया और 16वीं सदी में ये दक्षिण की तरफ पैर फैलाने लगे. कीएव पर पोलैंड-लिथुआनिया का शासन हो गया. यहां एक ऑर्थोडॉक्स समूह ने सिर उठाना शुरू किया. ये वो लोग थे जो पोलैंड-लिथुआनिया के तौर-तरीकों को नापसंद करते थे. ये थे कोसाक जो खुद को पोलैंड और कैथलिकों द्वारा सताए ऑर्थोडॉक्स ईसाइयों की आवाज़ मानते थे."
रूस और यूक्रेन के इतिहास में अहम मोड़ 17वीं सदी में आया. पोलैंड के शासन वाले कीएव के स्लाविक और रूसी ज़ार के शासन वाले रूस के स्लाविक ने एक ऑर्थोडॉक्स ईसाई गठबंधन किया.
फेथ हिलिस समझाती हैं, "ये वो अहम मोड़ था जहां से राष्ट्रीयता को लेकर चर्चा शुरू हुई और मौजूदा दौर में भी जारी है. कोसाक लोगों ने यूक्रेन शब्द का इस्तेमाल किया था. उन्होंने रूस का ज़िक्र करते हुए कहा था कि ये ऑर्थोडॉक्स ईसाइयों की विरासत है जिसे वो बचाना चाहते हैं. हालांकि उन्होंने कभी न तो खुद को रूसी कहा और न ही जिस इलाक़े को वो बचा रहे थे उसे रशिया कहा, वो उसे यूक्रेन कहते थे."
18वीं सदी में जब रूस औपचारिक तौर पर रूसी साम्राज्य बना तब यूक्रेन का पूर्वी हिस्सा इसमें शामिल था. यहां की अपनी संस्कृति, अपना स्वायत्त शासन और अपने नेता थे. 1762 में रूस की साम्राज्ञी बनी कैथरीन द ग्रेट का मानना था कि इस हिस्से का स्वतंत्र रहना उनसे शासन के लिए बड़ी चुनौती हो सकता है.
वो कहती हैं, "उन्होंने इसका दमन किया, उस वक्त यूक्रेन का एक औपचारिक इलाक़ा हुआ करता था, जिसे उन्होंने ख़त्म कर दिया. उन्होंने कोसाक द्वारा बनाई स्वायत्त शासन व्यवस्था को भी ख़त्म कर दिया."
पूर्वी यूक्रेन का नाम अब नोवोरशिया यानी न्यू रशिया हो गया था. वहीं पश्चिम की तरफ का हिस्सा पहले ऑस्ट्रिया का और फिर हैप्सबर्ग वंश के शासन में ऑस्ट्रो-हंगरी साम्राज्य के अधीन रहा.
फेथ हिलिस कहती हैं, "19वीं सदी के आख़िर तक सम्राट को ये अंदाज़ा हो गया कि यूक्रेनी राष्ट्रवाद रूस के ख़िलाफ़ लड़ाई में उनके काम आ सकता है. वो इसे आर्थिक मदद देने लगे."
यूरोप में साम्राज्यों के बीच की यही तनातनी 1914 में विश्व युद्ध का कारण बनी. चार साल बाद जब युद्ध ख़त्म हुआ, न तो ऑस्ट्रो-हंगरी बचा था और न ही रूसी साम्राज्य. एक, हार के बाद बिखर चुका था, तो दूसरे को क्रांति ने उखाड़ फेंका था. आने वाले सालों में यहां एक महाशक्ति का उदय हुआ, ये था सोवियत संघ.
वो कहते हैं कि प्रथम विश्व युद्ध और रूसी क्रांति के बाद पैदा हुए उथलपुथल ने यूरोप का नक्शा बदल दिया. यूक्रेनी, यूरोप के सबसे बड़े नस्लीय समूह के रूप में उभरे और अपना अलग स्वतंत्र देश बनाने की कोशिश में जुट गए. 1917 में यूक्रेन सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक बना. हालांकि ये अधिक दिन नहीं रहा.
1921 में पोलैंड-सोवियत युद्ध ख़त्म करने के लिए हुई रीगा संधि हुई जिसके तहत यूक्रेन के कुछ इलाक़े पोलैंड, चेकस्लोवाकिया और रोमेनिया का हिस्सा बने तो कुछ सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक के रूप में व्लादिमीर लेनिन और बोल्शेविक के नेतृत्व वाले सोवियत संघ में आ गए.
रूस के मौजूदा राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इसे एक एतिहासिक भूल मानते हैं. उनके अनुसार सोवियत रिपब्लिक यानी पूर्वी यूक्रेन, दोनेत्स्क और लुहांस्क हमेशा से रूस का हिस्सा थे.
सर्ही प्लॉख़ी कहते हैं, "बोल्शेविक पहले अधिक ताकतवर नहीं थे. उन्हें पहले के रूसी साम्राज्य से जुड़े अलग-अलग आंदोलनों को साथ मिलकर चलना था. इसके लिए उन्होंने उन्हें भाषा, संस्कृति की आज़ादी दी. उन्होंने यूक्रेनियों की अलग पहचान और अलग गणराज्य बनाने की चाहत को भी सम्मान दिया. वो ज़मीनी हकीकत को देखते हुए अपने कदम रख रहे थे."
धीरे-धीरे यूक्रेन पर सोवियत संघ की पकड़ मज़बूत होती गई. 1930 के दशक में सोवियत संघ ने औद्योगिकरण को लेकर जो नीति बनाई उसमें यूक्रेन की उपजाऊ ज़मीन पर कारखाने खोले गए. नतीजा ये हुआ कि यूक्रेन में अकाल पड़ गया.
वो कहते हैं, "ये 1932, 1933 में हुआ. क़रीब 40 लाख लोगों की मौत हुई जिनमें अधिकतर किसान थे. मरने वालों में नस्लीय यूक्रेनी की संख्या सबसे ज़्यादा थी. ये यूक्रेन की आबादी का दसवां हिस्सा था."
1932-33 में हुए अप्राकृतिक अकाल में मारे गए लोगों की याद में कीएव में एक मेमोरियल बनाया गया है, जहां लोग हर साल गेहूँ के दाने और फल रखते हैं और मरने वालों को याद करते हैं.
क़रीब आधी सदी बाद सोवियत संघ का विघटन हुआ, लेकिन उससे पहले एक और युद्ध होना बाकी था. रूस-यूक्रेन तनाव का एक हिस्सा इस दौर से भी जुड़ा है. व्लादिमीर पुतिन कहते हैं कि यूक्रेनियों ने नाज़ी जर्मनी का साथ दिया था.
सर्ही प्लॉख़ी कहते हैं, "1939 में हिटलर ने पोलैंड पर हमला किया, उस वक्त वहां सबसे बड़ा नस्लीय अल्पसंख्यक समूह यूक्रेनियों का था. यूक्रेन के राष्ट्रवादियों ने नाज़ी सैन्य ख़ुफ़िया तंत्र का साथ दिया. वो पोलैंड को दमनकारी और जर्मनी को सहयोगी के रूप में देखते थे. यूक्रेनी राष्ट्रवादी आंदोलन ने नाज़ियों के साथ हाथ मिला लिया."
लेकिन जल्दी ही ये संगठन ख़त्म भी हो गया.
वो कहते हैं, "जर्मन सेना यूक्रेन में घुसी तो राष्ट्रवादियों ने यूक्रेन की आज़ादी की घोषणा कर दी. जर्मनी ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. 1941 के आख़िर तक यूक्रेनी राष्ट्रवादियों के सभी संगठन नाज़ी जर्मनी के विरोधी बन गए. और जब नाज़ी यूक्रेन के दूसरे हिस्सों की तरफ बढ़े तो, उस युद्ध में लाखों यूक्रेनी शामिल हुए."
द्वितीय विश्व युद्ध ख़त्म हुआ तो यूरोप का नक्शा एक बार फिर बदल चुका था. अब यूक्रेन पहले पोलैंड का हिस्सा रहे कुछ इलाक़ों तक फैल चुका था. यूक्रेनी एक इलाक़े के तौर पर साथ आ चुके थे, हालांकि यूक्रेन अभी स्वतंत्र मुल्क नहीं बना था.
सर्ही प्लॉख़ी कहते हैं, "जब स्टालिन आए तो उन्होंने यूक्रेन के पूरे इलाक़े को सोवियत संघ में शामिल कर लिया. युद्ध से पहले इसके जो हिस्से पोलैंड, चेकोस्लोवाकिया, हंगरी और रोमानिया के साथ थे वो भी सोवियत संघ का हिस्सा बने. ये काफी हद तक आज के यूक्रेन की तस्वीर है हालांकि उस वक्त वहां सोवियत नियंत्रण था."
यूक्रेन में सोवियत रूस का विरोध लगातार चलता रहा. क़रीब सात दशक के सोवियत नियंत्रण के बाद 1989 में बर्लिन की दीवार गिरी और यहीं से सोवियत संघ के विघटन की शुरूआत हुई.
यूक्रेन की आज़ादी
दिसंबर 1991 में बेलारूस में रूस, बेलारूस और यूक्रेन के नेताओं की मुलाक़ात हुई. तीनों में सोवियत संघ से बाहर जाने को लेकर सहमति बनी. सोवियत युग का अंत हो गया. यूक्रेन अब एक स्वतंत्र राष्ट्र बनने को तैयार था.
मार्गरीटा बामासेडा अमेरिका के सीटन हॉल यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर हैं. वो कहती हैं यूक्रेन आज़ाद तो हुआ लेकिन आम लोगों के लिए यहां ज़िंदगी मुश्किल हो गई.
वो कहती हैं, "यूक्रेन में बड़े पैमाने पर खनन का काम होता था. उस दौरान खदानों के पास मज़दूरों और सप्लायर्स को देने के लिए पैसा नहीं था. स्टील कंपनियों के पास कोयला खरीदने के पैसे नहीं थे. मुद्रा की तो तंगी थी ही, व्यवस्था के अलग-अलग हिस्सों को कैसे जोड़ा जाए, उसे लेकर भी मुश्किलें थीं."
रूस पश्चिमी यूरोप को जो प्राकृतिक गैस बेचता उसका 80 फीसदी यूक्रेन के रास्ते हो कर गुज़रता. इस काम में रूस की मदद के बदले यूक्रेन को सस्ता ईंधन मिल जाता. इससे कुछ मदद तो मिली लेकिन भ्रष्टाचार बढ़ने लगा. और फिर रूस कभी भी इसे लेकर यूक्रेन पर दबाव डाल सकता था.
हालांकि यूक्रेन पर दबाव डालने के लिए रूस के पास एक और रास्ता था. यूक्रेन के अधिकतर उद्योग देश के पूर्व में हैं जहां रूसी भाषा बोलने वालों की संख्या अधिक है.
मार्गरीटा समझाती हैं, "उस दौर में यूक्रेन की राजनीति के बारे में कहा जाता था कि राजनीति कीएव से चलती है और पैसा दोनेत्स्क से आता है. मतलब ये कि देश की अर्थव्यवस्था में दोनेत्स्क का बड़ा आर्थिक योगदान था, यहां के रईसों ने राजनीति के मामलों को पूरी तरह कीएव पर छोड़ दिया था."
सोवियत रूस के राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव, यूक्रेन के नव निर्वाचित राष्ट्रपति लियोनिड क्रावचुक और बेलारूस के राष्ट्रपति स्टानिस्लाव सुश्केविच
2004 में यूक्रेन एक बार फिर बदलाव के मोड़ पर था. यहां राष्ट्रपति चुनावों में रूसी समर्थन वाले विक्टर यानुकोविच और पश्चिमी मुल्कों के समर्थक विक्टर यूश्चेन्को के बीच लड़ाई था.
यानुकोविच को विजेता घोषित कर दिया गया. लेकिन उनपर चुनावों में धांधली के आरोप लगे और उनके विरोध में प्रदर्शन शुरू हो गए. इन विरोध प्रदर्शनों को ऑरेन्ज रिवोल्यूशन कहा गया. ऑरेंज यूश्चेन्को के चुनावी अभियान का रंग था.
मार्गरीटा कहती हैं, "लोगों ने एक बार फिर से चुनाव करवाने की मांग की और इसमें विक्टर यूश्चेन्को की जीत हुई. वो राष्ट्रपति बने. ये उस दौर का एक बड़ा राजनीतिक आंदोलन था जिसमें गणतांत्रिक और भ्रष्टाचार मुक्त देश की बात की गई."
इसके बाद अर्थव्यवस्था में तेज़ी आई और निवेश बढ़ा. राष्ट्रीयता को लेकर भी लोगों की सोच मज़बूत हुई. लेकिन फिर 2008 की वैश्विक मंदी आई और अर्थव्यवस्था लड़खड़ाने लगी.
वो कहती हैं, "इसमें कोई शक़ नहीं कि यूक्रेन की राजनीति में ऑरेंज रिवोल्यूशन बेहद बड़ी कामयाबी थी. लेकिन असल में इससे लोगों की ज़िंदगी में वो बदलाव नहीं आया जिसकी उन्हें उम्मीद थी. शायद इसी कारण कुछ साल बाद सत्ता में यानुकोविच की वापसी हुई."
2010 में विक्टर यानुकोविच को पूर्वी हिस्सों का समर्थन मिला और वो चुनाव जीत गए. लेकिन यूक्रेन में एक और क्रांति की भूमिका बन रही थी.
मिदान स्क्वायर आंदोलन
सर्गेई राडचेन्को ब्रिटेन की कार्डिफ़ यूनिवर्सिटी में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर हैं. वो कहते हैं कि असल में यूक्रेन को दो हिस्सों में देखा जा सकता है, पहला पश्चिमी हिस्सा जहां यूक्रेनी भाषा बोलने वाले लोग हैं और दूसरा पूर्वी हिस्सा जहां नस्लीय रूसी आबादी है.
वो कहते हैं, "विक्टर यानुकोविच का राष्ट्रपति बनना अभूतपूर्व घटना नहीं थी. अगर यूशचेन्कों के कार्यकाल में अर्थव्यव्स्था में बड़े सुधार हुए होते तो शायद यानुकोविच नहीं जीतते. उन्हें लुहांस्क, दोनेत्स्क और क्राइमिया जैसे पूर्वी हिस्सों का समर्थन मिला था."
तो क्या यानुकोविच के कार्यकाल में विदेश नीति में पूर्व की तरफ अधिक झुकाव था?
वो कहते हैं, "यानुकोविच का किसी एक तरफ यानी पूर्व या पश्चिम की तरफ झुकाव नहीं था. आज के वक्त में उन्हें रूस के हाथों की कठपुतली माना जा रहा है, लेकिन उस दौर में ऐसा नहीं था. वो यूरोपीय संघ और रूस दोनों के साथ बेहतर रिश्ते चाहते थे."
2013 में हालात जटिल हो गए. यानुकोविच को यूरोप या रूस में किसी एक में चुनना पड़ा. यूरोपीय संघ के साथ समझौते से ठीक पहले उन्होंने अपने हाथ पीछे खींच लिए और इसके लिए रूसी दबाव को ज़िम्मेदार ठहराया.
पश्चिमी हिस्से में लोगों को लगा कि यानुकोविच के फ़ैसले ने एक बेहतर भविष्य का उनका सपना तोड़ दिया है. कीएव के मिदान स्क्वायर में भीषण विरोध प्रदर्शन क़रीब सौ लोगों की मौत हुई. यानुकोविच ने रूस में शरण ली.
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन हरकत में आए. उन्होंने यूक्रेन में सरकार गिरने का कारण पश्चिमी ताकतों को बताया. उन्होंने क्राइमिया को रूस का हिस्सा घोषित कर दिया और लुहांस्क और दोनेत्स्क पर नियंत्रण करना शुरू किया.
सर्गेई राडचेन्को कहते हैं, "यूक्रेनी कभी अपनी एक ऐसी राष्ट्रीय पहचान बना नहीं सके जो देश के पूर्वी और पश्चिमी हिस्से के लोगों को एकजुट कर सके. 2014 में हुई हिंसा के बाद डोनबास, लुहांस्क और दोनेत्स्क में रूस समर्थक अलगाववादी ताकतवर होते गए और रूसी समर्थक इन इलाक़ों की तरफ जाने लगे. वहीं पूर्वी इलाक़ों से भी पश्चिम की तरफ पलायन शुरू हुआ."
2014 के बाद से रूस और यूक्रेन के सीमावर्ती इलाक़ों में संघर्ष कभी थमा ही नहीं. और फिर, कई महीनों से यूक्रेन से सटी अपनी सीमा पर सैनिकों की संख्या बढ़ा रहे रूस ने 24 फरवरी 2022 को यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया.
राष्ट्रपति पुतिन के लिए रूस और यूक्रेन के इतिहास की जड़ें एक होना केवल बीते कल की बात नहीं है, वो आने वाले कल में इसे सच्चाई बनते देखना चाहते हैं. वो बीते तीन दशक से आज़ाद रहे अपने पड़ोसी मुल्क की स्वतंत्र पहचान को स्वीकार नहीं करना चाहते.
हमारे आख़िरी एक्सपर्ट सर्गेई राडचेन्को के शब्दों में, "एक तरह से पुतिन फिर से रूसी साम्राज्य खड़ा करना चाहते हैं. ऐसा लगता है, वो 21वीं सदी में ऐसा साम्राज्य बनाने की कोशिश कर रहे हैं जो अब इतिहास के पन्नों का हिस्सा बन चुका है." (bbc.com)
वाशिंगटन, 17 मार्च। यूक्रेन पर रूस के बढ़ते हमलों के बीच, राजनयिक 2015 में हुए ईरान परमाणु समझौते को बचाने की कोशिश कर रहे हैं और संघर्ष के कारण ध्यान भटकने के बावजूद वार्ता को आगे बढ़ा रहे हैं। वे अब ऐसा समझौता करने के निकट पहुंचते प्रतीत होते हैं, जिससे समझौते में अमेरिका की वापसी हो जाएगी और ईरान को उसके परमाणु कार्यक्रम पर सीमा का पालन करने के लिए राजी किया जा सकेगा।
विएना में 11 महीने से वार्ता जारी है। अमेरिकी अधिकारियों और अन्य का कहना है कि केवल कुछ मामलों को सुलझाया जाना शेष है। ईरान और अमेरिका समझौते संबंधी अंतिम निर्णय पर पहुंचने को लेकर एक दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे है, जिसके कारण समझौता लटका हुआ है, जबकि सभी संबंधित पक्षों का कहना है कि यह एक आवश्यक मामला है और इसे जल्द से जल्द सुलझाए जाने की आवश्यकता है।
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने बुधवार को कहा, ‘‘हम संभावित समझौता करने के निकट हैं, लेकिन अभी यह हुआ नहीं है। हम आगामी कुछ समय में यह पता लगाएंगे कि हम यह समझौता कर पाएंगे या नहीं।’’
इस बीच, जर्मनी के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता क्रिस्टोफर बर्गर ने बर्लिन में बुधवार को कहा कि ‘‘ अंतिम पाठ का मसौदा तैयार करने का काम पूरा हो गया है’’ और ‘‘राजधानियो में अब आवश्यक राजनीतिक फैसले किए जाने की आवश्यकता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि ये वार्ताएं अब जल्द ही पूरी हो जाएंगी।’’
ईरान ने अमेरिका और अन्य विश्व शक्तियों के साथ 2015 में एक समझौता किया था जिसके तहत उसने अपना परमाणु कार्यक्रम सीमित किया था, लेकिन 2018 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को इस समझौते से अलग कर लिया था और ईरान ने भी समझौते के तहत निर्धारित शर्तों का उल्लंघन किया और यूरेनियम का संवर्धन बढ़ाया।
संयुक्त समग्र कार्य योजना (जेसीपीओए) के नाम से जाने जाने वाले इस समझौते में फिर से शामिल होना अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन की प्राथमिकता रहा है।
इस बीच, ईरान द्वारा हिरासत में बंद दो ब्रितानी नागरिकों को रिहा किए जाने के बाद समझौते की प्रगति के संबंध में बुधवार को आशा की एक नई किरण मिली। प्राइस ने मंगलवार को कहा था कि यदि कैदियों के मामले को सुलझा लिया गया, तो परमाणु वार्ता के बीच अंतर को जल्द पाटा जा सकता है।
ईरान के विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियन ने रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के साथ मंगलवार को मॉस्को में बातचीत के बाद कहा कि समझौता पूरी तरह से वाशिंगटन पर निर्भर करता है। अब्दुल्लाहियन ने कहा कि उन्हें भरोसा दिलाया गया है कि ‘‘रूस विएना में अंतिम समझौते का हिस्सा बना रहेगा।’’
प्राइस ने कहा कि अमेरिका ईरान के माध्यम से धन या अन्य संपत्ति प्राप्त करके रूस को यूक्रेन हमले के कारण लगाए गए प्रतिबंधों से बचने नहीं देगा। (एपी)
(योषिता सिंह)
न्यूयॉर्क (अमेरिका), 17 मार्च। न्यूयॉर्क स्थित एक सांस्कृतिक संगठन कठपुतली शो, कला गतिविधियों, भारतीय नृत्य कार्यशाला से लेकर भारत के रंगों के त्योहार और यहां समुदायों के बीच भारतीय संस्कृति के बारे में जागरूकता फैलाने समेत विशेष कार्यक्रमों के जरिए होली का त्योहार मनाने के लिए तैयार है।
दक्षिण एशिया की संस्कृति को बढ़ावा देने वाला संगठन ‘द कल्चरल ट्री’ न्यूयॉर्क सिटी के सांस्कृतिक केंद्र ‘द सीपोर्ट’ के साथ मिलकर 19 मार्च को होली के मौके पर विशेष कार्यक्रमों का आयोजन करेगा।
‘द कल्चरल ट्री’ की संस्थापक और अध्यक्ष अनु सहगल ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘सांस्कृतिक शिक्षक के तौर पर मैं बच्चों को विश्वसीय, लंबे और प्रेरणादायी अनुभव देने को लेकर हमेशा उत्साहित रहती हूं। हमारे होली के समारोह में हम जिंदगी को, सबसे मजेदार त्योहारों में से एक के रंगों से भरेंगे और समुदाय को एक साथ लाएंगे।’’
संगठन ने बताया कि कठपुतली शो ‘कलर्स ऑफ कृष्णाज लव’ में भगवान कृष्ण के बचपन की प्रिय कहानियां बतायी जाएंगी जिसमें राधा और सुदामा समेत उनके मित्रों और परिवारों के साथ खेल और हंसी-ठिठोली दिखायी जाएगी। (भाषा)
मेक्सिको सिटी, 17 मार्च । अमेरिका ने मेक्सिको के सीमावर्ती शहर नुएवो लारेदो में अमेरिकी वाणिज्य दूतावास से बुधवार को कुछ कर्मचारियों और उनके परिवारों को जाने की अनुमति दी।
यह कदम तब उठाया गया है जब एक मादक पदार्थ गिरोह से जुड़े बंदूकधारियों ने रविवार रात को नुएवो लारेदो में अमेरिकी वाणिज्य दूतावास की इमारत पर गोलियां चलायी।
विदेश विभाग ने एक बयान में कहा, ‘‘विदेश विभाग सुरक्षा परिस्थितियों के कारण नुएवो लारेदो में अमेरिकी महावाणिज्य दूतावास के गैर-आपातकालीन सरकारी कर्मियों और उनके परिवार के सदस्यों को वहां से जाने की अनुमति देता है।’’
उसने कहा, ‘‘15 मार्च तक विदेश विभाग नुएवो लारेदो में अमेरिकी महावाणिज्य दूतावास से नियमित दूतावास संबंधी सेवाएं नहीं दे पाया है। नुएवो लारेदो से जाने की इच्छा रखने वाले अमेरिकी नागरिक स्थानीय समाचारों और घोषणाओं पर नजर रखें और दिन के समय सुरक्षित माहौल होने पर ही वहां से निकलें।’’
विभाग ने अपराध और सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए अमेरिकी नागरिकों को तामाउलिपास राज्य न जाने की भी सलाह दी है जहां नुएवो लारेदो स्थित है।
गौरतलब है कि मादक पदार्थ गिरोह के सरगना जुआन गेरार्दो त्रिविनो की गिरफ्तारी के जवाब में रविवार देर रात और सोमवार तड़के गोलीबारी की गयी। (एपी)
वाशिंगटन, 16 मार्च। राष्ट्रपति जो बाइडन ने बुधवार को कहा कि रूस के खिलाफ अमेरिका यूक्रेन को उसकी रक्षा में सहायता के लिए और अधिक विमान-रोधी वाहन, हथियार और ड्रोन भेज रहा है।
बाइडन ने कहा, ‘‘हम यूक्रेन को आगे आने वाले सभी कठिन दिनों में लड़ने और अपनी रक्षा करने के लिए हथियार देने जा रहे हैं।’’
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने रूस के खिलाफ यूक्रेन की लड़ाई में अमेरिकी संसद से और अधिक मदद की अपील करते हुए पर्ल हार्बर और 11 सितंबर 2001 को हुए आतंकवादी हमलों का बुधवार को जिक्र किया। हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि उनके देश के ऊपर उड़ान वर्जित क्षेत्र की घोषणा संभव नहीं हो सकती है।
अमेरिकी संसद परिसर में सीधे प्रसारण वाले अपने संबोधन में जेलेंस्की ने कहा कि अमेरिका को रूसी सांसदों पर अवश्य ही प्रतिबंध लगा देना चाहिए और रूस से आयात रोक देना चाहिए। साथ ही, उन्होंने अपने देश में युद्ध से हुई तबाही और विनाश का एक मार्मिक वीडियो सांसदों से खचाखच भरे एक सभागार में दिखाया।
जेलेंस्की के संबोधन के कुछ घंटों बाद बाइडन ने कहा कि अमेरिका यूक्रेन को और अधिक देने जा रहा है।
हालांकि, जेलेंस्की ने उड़ान वर्जित क्षेत्र की घोषणा करने पर जोर देने के बजाय रूसी हमला रोकने के लिए सैन्य मदद मांगी।
उल्लेखनीय है कि व्हाइट हाउस ने उड़ान वर्जित क्षेत्र घोषित करने के जेलेंस्की के अनुरोध को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है।
उनके संक्षिप्त संबोधन के पहले और बाद में सांसदों ने अपनी सीट पर खड़े होकर उनका अभिनंदन किया। (एपी)
(ललित के. झा)
वाशिंगटन, 17 मार्च। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन को लॉस एंजिलिस के मेयर एरिक गार्सेटी पर पूरा भरोसा है और उनका मानना है कि वह भारत में देश के एक उत्कृष्ट प्रतिनिधि साबित होंगे।
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने विश्वास जताया कि संसद जल्द ही भारत में अमेरिकी राजदूत के रूप में उनके नाम की पुष्टि करेगी, जिसे पहले रिपब्लिकन सांसद चक ग्रासली ने रोक दिया था।
साकी ने दैनिक संवाददाता सम्मेलन में पत्रकारों से कहा, ‘‘ वह (ग्रासली) वास्तव में मतदान नहीं रोक सकते। मेरा मतलब है कि वह अपना विरोध व्यक्त कर सकते हैं, जैसा कि किसी भी सांसद का अधिकार है। हम जल्द संसद में मतदान की उम्मीद कर रहे हैं।’’
साकी ने एक सवाल के जवाब में कहा, ‘‘ राष्ट्रपति को मेयर गार्सेटी पर भरोसा है और उनका मानना है कि वह भारत में एक उत्कृष्ट प्रतिनिधि साबित होंगे। बेशक यह महत्वपूर्ण है, हमने भारत सहित अपने सभी दूतावासों के प्रमुख की पुष्टि की है और हम संसद से उनके नाम की जल्द से जल्द पुष्टि करने का आग्रह करते हैं।’’
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने पिछले साल जुलाई में भारत में देश के राजदूत के तौर पर गार्सेटी को नामित किया था। आंतरिक जांच के दौरान गार्सेटी के नाम की पुष्टि पर रोक लगा दी गयी थी, जिससे भारत में ऐसे अहम वक्त में अमेरिका का शीर्ष राजनयिक पद खाली है जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है। (भाषा)
तोक्यो, 17 मार्च । उत्तरी जापान के फुकुशिमा तट पर बुधवार रात को 7.4 तीव्रता का शक्तिशाली भूकंप आया, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई और 90 से अधिक लोग घायल हो गए।
जापान के प्रधानमंत्री फुमिओ किशिदा ने बृहस्पतिवार सुबह संसद के एक सत्र में कहा कि भूकंप के दौरान चार लोगों की मौत हो गई, जबकि 97 अन्य घायल हुए हैं।
जापान मौसम विज्ञान एजेंसी ने बृहस्पतिवार तड़के फुकुशिमा और मियागी प्रांत के तटों पर सुनामी के लिए अपनी कम जोखिम वाली चेतावनी वापस ले ली है।
जापान मौसम विज्ञान एजेंसी ने बताया कि स्थानीय समयानुसार बुधवार रात 11 बजकर 36 मिनट पर आए भूकंप का केन्द्र समुद्र में 60 किलोमीटर की गहराई में था। यह क्षेत्र उत्तरी जापान का हिस्सा है, जो 2011 में नौ तीव्रता वाले विनाशकारी भूकंप और सुनामी से तबाह हो गया था। भूकंप के कारण परमाणु आपदा भी आई थी। (एपी)
-टिम बाउलर
यूक्रेन पर हमले के बाद और पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों की वजह से हो सकता है कि रूस उस हालत में पहुंच जाए जहां वो कर्ज चुकाने में डिफॉल्ट कर जाए.
अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में जारी किए गए दो बॉन्ड्स के निवेशकों को रूस को बुधवार को 117 मिलियन डॉलर का ब्याज चुकाना है. ये बॉन्ड्स डॉलर के लिए जारी किए गए थे.
लेकिन रूस का 630 बिलियन डॉलर का विदेश मुद्रा भंडार इस समय फ्रीज कर दिया गया है.
क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने भी चेतावनी दी है कि रूस का अपने कर्ज़ों की अदायगी में 'डिफॉल्टर होना तय' है.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि वो रूस की कर्ज चुकाने में नाकामी के असर को लेकर चिंतित ज़रूर हैं लेकिन वो ये नहीं मानते कि इससे कोई वैश्विक वित्तीय संकट खड़ा होने वाला है.
रूस कर्ज़ चुकाने में क्यों नाकाम हो सकता है?
रूस की सरकार और गज़प्रोम, ल्युकऑइल, स्बेरबैंक जैसी सरकारी कंपनियों पर विदेशी निवेशकों का 150 अरब डॉलर का कर्ज़ है.
इनमें से ज़्यादातर कर्ज़ों की देनदारी डॉलर या फिर यूरो में है. और चूंकि रूस के कारोबारी संस्थान प्रतिबंध की वजह से विदेश में मौजूद अपने डॉलर या यूरो वाले खातों का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं.
अगर रूस कर्ज़ों की वक़्त पर अदायगी में नाकाम रहता है तो साल 1998 के बाद पहली बार ऐसा होगा कि वो डिफॉल्ट करेगा.
विदेशी मुद्रा में लिए गए कर्ज़ को चुकाने के मामले में भी साल 1917 की क्रांति के बाद ये रूस पहली बार डिफॉल्टर होने जा रहा है. तब नई बॉल्शेविक सरकार ने पिछले बरस के कर्ज़ों को चुकाने से इनकार कर दिया था.
अगर रूस रूबल में भुगतान करता है तो क्या होगा?
रूस के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि अगर उसे डॉलर या यूरो में भुगतान करने से रोका गया तो वो अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को रूबल में भुगतान करना चाहेगा.
लेकिन दिक्कत ये है कि डॉलर में जारी किए गए जिन दो बॉन्ड्स के लिए बुधवार को भुगतान किया जाना है, उसमें किसी और मुद्रा में पैसा देने का कोई प्रावधान नहीं है.
लेकिन रूस के अन्य ऋण समझौतों में ये प्रावधान है कि अन्य मुद्रा में भुगतान किया जा सकता है. ऐसा हुआ तो कर्ज़ों के भुगतान में रूबल का सहारा लिया जा सकता है.
लेकिन ये इस बात पर निर्भर करेगा कि रूबल में भुगतान क्या डॉलर या यूरो के उसी वैल्यू के साथ किया जाएगा जिसकी निवेशकों को उम्मीद होगी.
रूस में निवेशकों ने हाल के दिनों में देखा है कि उनके निवेश के मूल्य में गिरावट दर्ज की गई है.
दिक्कत ये है कि रूस की वित्तीय स्थिति इतनी तेज़ी से बिगड़ी है कि कुछ लोगों को मौका ही नहीं मिला कि वे अपने निवेश को बेच सकें.
क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडी का कहना है कि 21 प्वॉयंट के रेटिंग स्केल बताता है कि निवेश के लिहाज से कोई देश कितना सुरक्षित है. रूस इस पैमाने पर नीचे से दूसरे स्थान पर आ गया है और वो इससे भी नीचे जा सकता है.
मूडी के चीफ़ क्रेडिट ऑफ़िसर कोलिन एलिस ने बीबीसी से कहा, "हम ये संकेत दे रहे हैं कि हमें ना सिर्फ रूस के कर्ज ना चुकाने का अंदेशा है बल्कि हम निवेशकों को ये भी बता रहे हैं कि उन्हें कितना नुकसान हो सकता है. वो अपने निवेश का 35 से 65 प्रतिशत तक गंवा सकते हैं."
अधिकारिक तौर पर कर्ज ना चुकाने का एक नतीजा ये हो सकता है कि कर्ज़ देने वाले दावे पेश करना शुरू कर सकते हैं. ये क्रेडिट स्वैप किसी इंश्यूरेंस की तरह काम करते हैं. कर्ज़दाता इन्हें एडवांस में ख़रीदते हैं ताकि किसी कंपनी या देश के कर्ज़ चुकाने में नाकाम रहने पर वो नुक़सान की भरपाई कर सकें.
आख़िरी बार रूस 1998 में क़र्ज़ चुकाने में नाकाम रहा था. तब इससे वैश्विक वित्तीय बाज़ार हिल गए थे. कैपिटल इकोनॉमिक्स के प्रमुख अर्थशास्त्री विलियम जैकसन के मुताबिक अभी यदि रूस डिफॉल्ट करता है तो ये सांकेतिक रूप से तो अहम होगा लेकिन इसका कोई वास्तविक असर शायद ही हो.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का कहना है कि वो साल 2022 के लिए वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रगति के अपने 4.4 प्रतिशत रहने के पूर्वानुमान को युद्ध की वजह से घटा देगा. आईएमएफ़ की प्रमुख क्रिस्टेलीना जॉर्जीवा भी मानती हैं कि रूस के डिफॉल्ट होने का वैश्विक वित्तीय व्यवस्था पर व्यापक असर नहीं होगा.
हालांकि वो चेताती हैं कि रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों की वजह से वहां अर्थव्यवस्था में बड़ी गिरावट आ सकती है और साथ ही दुनियाभर में खाद्य पदार्थों और ऊर्जा के दाम बढ़ सकते हैं.
हालांकि यहां एक अज्ञात कारक ये है कि रूस की कंपनियों का क़र्ज़ डिफॉल्ट कितना बड़ा हो सकता है और इससे रूस में निवेश करने वालों पर क्या असर हो सकता है.
रूस इस समय जिन वित्तीय मुश्किलों और चुनौतियों का सामना कर रहा है, क़र्ज़ ना चुकाने से वो बढ़ेंगी ही.
यूक्रेन पर आक्रामण से पहले रूस को क़र्ज़ चुकाने के मामले में सबसे भरोसेमंद देशों में शामिल किया जाता था. रूस पर क़र्ज़ भी बहुत ज़्यादा नहीं था. लेकिन अब हालात नाटकीय ढंग से बदल गए हैं.
विदेशी कंपनियां बड़ी तादाद में रूस को छोड़ रही हैं, रूबल और अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए रूस ने पहले से ही पैसे के बाहर जाने पर सख़्त नियम लागू कर दिए हैं. हालांकि प्रतिबंधों की वजह से इस साल रूस की अर्थव्यवस्था 7 प्रतिशत तक सिकुड़ सकती है.
फ़रवरी में यूक्रेन पर आक्रामण से पहले यहां महंगई दर पहले से ही 9.15 प्रतिशत के उच्च स्तर पर भी. आशंका है कि इस साल इसमें और भी इज़ाफ़ा हो सकता है.
रूस की सेंट्रल बैंक ने क़र्ज़ पर ब्याज़ की दर को पहले ही 9.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दिया है. (bbc.com)
भारत में बहुत से लोग अपने बारे में लेख और वीडियो आदि इंटरनेट से हटवाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं. भुलाए जाने का अधिकार भारत में अब तक हासिल नहीं है.
उस बात को दस साल से भी ज्यादा बीत चुके हैं जबकि एक्टर आशुतोष कौशिक को शराब पीकर गाड़ी चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. वह उस बात को पीछे छोड़ देना चाहते हैं लेकिन इंटरनेट उन्हें ऐसा करने नहीं दे रहा. इसीलिए वह इंटरनेट से अपना इतिहास हटाए जाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं.
कौशिक ने पिछले साल दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी. उनकी मांग है कि उनकी गिरफ्तारी और अन्य घटनाओं से जुड़े लगभग 20 लेख और वीडियो इंटरनेट से हटा दिए जाएं. कौशिक की यह मांग बहुत से लोगों की इंटरनेट से अपना बीता हुआ कल हटाए जाने की इच्छा से जुड़ी है.
कौशिक के वकील अक्षत बाजपेयी कहते हैं, "मेरे मुवक्किल एक दशक से भी ज्यादा समय से बहुत छोटी सी घटना की सजा भुगत रहे हैं, जबकि उसके लिए वह कीमत चुका चुके हैं. क्यों ऐसा होना चाहिए जब भी कोई उनका नाम गूगल पर सर्च करे तो उन्हें उस घटना की दोबारा सजा मिले?”
दर्जनों याचिकाएं लंबित
कौशिक द्वारा दायर याचिका ऐसी ही दर्जनों याचिकाओं में से एक है जिनमें इंटरनेट से सूचनाएं हटाने की अपील की गई है. याचिकाकर्ताओं का दावा है कि ये सूचनाएं निजता या अभिव्यक्ति के अधिकार का उल्लंघन करती हैं या फिर अब इनकी जरूरत और प्रासंगिकता खत्म हो चुकी है.
बाजेयी कहते हैं कि जैसे सूचना का अधिकार जरूरी है, उतनी ही अहमियत भुलाए जाने के अधिकार की भी है. वह बताते हैं, "सूचना के अधिकार का भुलाए जाने के अधिकार के साथ तालमेल होना चाहिए. हर बार किसी का नाम गूगल करने पर छोटी-छोटी पुरानी बातें सामने आने से कौन सा सामाजिक भला हो रहा है?”
इस बारे में भारत में किसी तरह का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है. इस वजह से हाल के समय में कई अदालतों ने भुलाए जाने के अधिकार को निजता के अधिकार का ही एक अंग मानते हुए फैसले सुनाए हैं. 2017 में भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को मूलभूत अधिकार माना था. उसी आधार पर इंटरनेट पर अपनी सूचनाएं हटवाने को विभिन्न अदालतों ने निजता में निहित माना है.
अन्य देशों की स्थिति
सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के कारण यह मुद्दा सिर्फ भारत में नहीं बल्कि कई अन्य देशों में भी विवाद का विषय बन चुका है. इसी के चलते कई देशों ने तो इस बारे में कानून भी पास किए हैं. यूरोप ने 2014 में ही भुलाए जाने के अधिकार को मान्यता दे दी थी. यह यूरोपीय संघ के जनरल डाटा प्रोटेक्शन रेग्युलेशन (जीडीपीआर) का भी हिस्सा है. लेकिन 2019 में यूरोपीय संघ की सर्वोच्च अदालत ने एक फैसले में सर्च इंजन चलाने वाली कंपनियों को यह छूट दे दी थी कि कहीं और उन्हें इस कानून को लागू करने की जरूरत नहीं है.
भारत में भी डाटा प्रोटेक्शन बिल लंबे समय से चर्चा में है. अधिकारी कहते हैं कि इस बिल में भुलाए जाने का अधिकार भी शामिल है लेकिन बिल ही काफी वक्त से लंबित है.
कौशिक ने अपनी याचिका में गूगल के एक प्रवक्ता का नाम भी लिया है. उस प्रवक्ता का कहना है कि गूगल के पास ऐसी व्यवस्था मौजूद है जिसके तहत कोई भी व्यक्ति ऐसी जानकारी को चिन्हित कर सकता है जो उसकी निजता का उल्लंघन करती है. प्रवक्ता के मुताबिक इस व्यवस्था में "स्थानीय कानूनों का उल्लंघन करने वाली सामग्री को हटाने” का प्रावधान भी है. प्रवक्ता ने कहा, "हमारा मकसद हमेशा यह रहा है कि सूचना की सर्वोच्च सुलभता का समर्थन किया जाए.”
2014 में यूरोपीय संघ का फैसला आने के बाद गूगल के पास लोगों द्वारा सूचनाएं हटाने के 12 लाख से ज्यादा आग्रह आए थे. इन आग्रहों में 48 लाख लिंक थे जो राजनेताओं और मशहूर हस्तियों से लेकर आम लोगों तक ने भेजे थे.
सर्च इंजन चलाने वाली कंपनियों की यह जिम्मेदारी है कि "अनुचित और अप्रासंगिक” जानकारियां देने वाले लिंक को जनहित को ध्यान में रखते हुए हटा दे. गूगल के डाटा के मुताबिक आग्रहों में से लगभग आधे लिंक हटा दिए गए. अन्य देशों में भी इस बारे में नियम बनाए गए हैं. मसलन, रूस में कुछ मामलों में सूचनाएं इंटरनेट से हटाई जा सकती हैं. स्पेन, अर्जेंटीना और अमेरिका ने भी कुछ मामलों में भुलाए जाने के अधिकार को मान्यता दी है.
जिंदगी पर असर
भारत में सूचनाएं हटवाने की ज्यादातर याचिकाएं ऐसे लोगों ने की हैं जिन्हें किसी अपराध में सजा हुई और उन्होंने अपनी सजा भुगती. कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनके बारे में सूचनाएं उनकी इजाजत के बिना प्रकाशित की गईं. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इन पुरानी सूचनाओं के कारण उनकी छवि, करियर और शादियां तक प्रभावित होती हैं.
कौशिक कहते हैं, "जब मैं शराब पीकर गाड़ी चलाने के लिए गिरफ्तार हुआ था तो 26-27 साल का था. अब मैं 42 साल का हूं और अब तक सजा भुगत रहा हूं. उन ऑनलाइन रिपोर्टों ने मेरे परिवार को प्रभावित किया और मेरा करियर भी. मेरी एक सार्वजनिक जिंदगी है लेकिन निजी जिंदगी भी तो है. निजता मेरा भी अधिकार है.”
इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन की अनंदिता मिश्रा कहती हैं कि कानून ना होने के कारण अदालतों की अपनी सीमाएं हैं क्योंकि किसी सूचना को हटाने की बात करते ही वैध जनहित, सूचना का अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी जैसे मुद्दे खड़े हो जाते हैं. मिश्रा कहती हैं कि भुलाए जाने का अधिकार कई और बड़ी समस्याओं को जन्म दे सकता है.
आईएफएफ का कहना है, "हमारा रुख है कि अगर कोई सूचना पब्लिक रिकॉर्ड में है तो उस पर निजता का अधिकार लागू नहीं होता और जब तक डाटा प्रोटेक्शन कानून नहीं बनता, तब तक कोर्ट का रिकॉर्ड पब्लिक रिकॉर्ड है.” यानी जब तक यह कानून नहीं बन जाता, तब तक लोगों को हर मामले में अलग-अलग कानूनी लड़ाई लड़नी होगी. यह लंबी और दुरूह लड़ाई हर बार जीती भी नहीं जाएगी.
वीके/एए (रॉयटर्स)
अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री मार्क वांडे हइ तकरीबन एक साल से अंतरिक्ष में हैं. उनके काम का शायद सबसे मुश्किल वक्त अब आया है, जब रूस के साथ चल रहे तनाव के दौर में उन्हें धरती पर वापसी करनी है.
अंतरिक्ष यात्री मार्क वांडे हई को एक रूसी कैप्सूल में धरती पर वापसी करनी है. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा इस बात पर अड़ी है कि उनकी वापसी पहले से तय समय पर हो. उनकी वापसी मार्च के आखिर में प्रस्तावित है. रूस के यूक्रेन पर हमले का एक नतीजा अंतरिक्ष अभियानों के टलने और करारों के रद्द होने के साथ ही जुबानी जंग के रूप में भी नजर आया है.
अंतरिक्ष स्टेशन के भविष्य पर सवाल
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के भविष्य को लेकर तमाम सवाल उठ रहे हैं. रूसी अंतरिक्ष एजेंसी के प्रमुख और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के करीबीदमित्री रोगोजिन ने हाल ही में कई कठोर बातें कही हैं. बहुत से लोग इस बात पर चिंता जता रहे हैं कि रोगोजिन कई दशकों से धरती के बाहर चल रहे साझे शांतिपूर्ण अभियानों को अपने बयानों से खतरे में डाल रहे हैं.
अंतरिक्ष यात्री वांडे हई को रूसी सोयूज कैप्सूल के सहारे धरती पर वापस आना है. ऐसे में उनकी वापसी को लेकर चिंताएं स्वाभाविक हैं. मंगलवार को वांडे हई ने एक बार में सबसे ज्यादा समय तक अंतरिक्ष में रहने का अमेरिकी रिकॉर्ड बनाया है जो 340 दिन का है. दुनिया के लिए यह रिकॉर्ड 438 दिन का है जो अब भी रूसी अंतरिक्ष यात्री के नाम है. वापस लौटने तक हाइ इस रिकॉर्ड को 355 दिन तक पहुंचा देंगे. हालांकि फिलहाल सबकी नजर उनकी वापसी पर है.
नासा के रिटायर हो चुके अंतरिक्ष यात्री स्कॉट केली के पास अब तक सबसे ज्यादा समय अंतरिक्ष में बिताने का अमेरिकी रिकॉर्ड था. केली यूक्रेन में हो रहे युद्ध से काफी नाराज हैं. उन्होंने अंतरिक्ष में खोज के लिए मिले रूसी मेडल को भी वापस कर दिया है. हालांकि भारी तनाव के बावजूद केली का मानना है कि दोनों पक्ष अंतरिक्ष में साथ मिल कर काम कर सकते हैं. केली का कहना है, "हमें उदाहरण पेश करने की जरूर है कि दोनों देश, जो ऐतिहासिक रूप से बहुत दोस्ताना नहीं रहे हैं, फिर भी किसी जगह पर शांति से काम कर सकते हैं. और वो जगह है अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन. यही वजह है कि हमें इसको बनाए रखने के लिए संघर्ष करना होगा."
कब तक चलेगा अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन?
नासा अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को 2030 तक चालू रखना चाहती है. यूरोपीय, जापानी और कनाडाई अंतरिक्ष एजेंसिया भी यही चाहती हैं. लेकिन रूसी एजेंसी ने 2024 के बाद इसे बनाए रखने के लिए कोई प्रतिबद्धता नहीं दिखाई है.
अमेरिका और रूस इस स्टेशन के मुख्य ऑपरेटर हैं. 2020 में स्पेस एक्स ने अंतरिक्ष यात्रियों को स्टेशन पर भेजना शुरू किया. उससे पहले तक अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री नियमित रूप से रूसी सोयूज कैप्सूल के सहारे ही वहां जाते रहे और हर बार एक-एक सीट के लिए रूस को करोड़ों डॉलर की फीस दी जाती. रूस और अमेरिकी की अंतरिक्ष एजेंसियां अब भी लंबे समय के लिए आपसी सहयोग के तंत्र पर काम कर रही हैं. इसके तहत रूसी एजेंसी स्पेस एक्स के कैप्सूल को लॉन्च करेगी और अमेरिकी यात्री सोयूज से जाएंगे. इससे स्टेशन में अमेरिका और रूस की मौजूदगी हमेशा बनी रहेगी.
अंतरिक्ष में यूक्रेन युद्ध पर चर्चा
55 साल के वांडे हई सेना से रिटायर्ड अधिकारी हैं. पिछले साल अप्रैल में वह अंतरिक्ष स्टेशन में गए थे. उनके साथ रूस के प्योत्र दुब्रोव और दूसरे अंतरिक्ष यात्री भी थे. हई और दुब्रोव ने वहां सामान्य से दोगुना ज्यादा समय बिताया है. ताकि एक रूसी फिल्म क्रू को जगह दी जा सके. यह फिल्म क्रू अक्टूबर में वहां गया था.
अंतरिक्ष स्टेशन में तो फिलहाल सब ठीक ही चल रहा है. लेकिन वहां से करीब 420 किलोमीटर नीचे धरती पर हालात बिगड़ गए हैं. वांडे हई ने माना है कि वह यूक्रेन के बारे में दुब्रोव और रूसी कमांडर एंटन शकाप्लेरोव से बातचीत नहीं कर रहे हैं. तीन और रूसी अंतरिक्ष यात्री इस शुक्रवार कजाखस्तान से अंतरिक्ष स्टेशन के लिए उड़ान भरने वाले हैं, जो उनकी जगह लेंगे.
वांडे हाइ ने फरवरी के मध्य में एक टीवी चैनल के साथ इंटरव्यू में कहा था, "हमने इस बारे में बहुत ज्यादा बात नहीं की है. मुझे यकीन है कि हम सचमुच वहां नहीं जाना चाहते."
नासा के मुताबिक, अंतरिक्ष स्टेशन का कामकाज अंतरिक्ष में और धरती पर पहले की तरह ही चल रहा है. नासा की ह्यूमन स्पेसफ्लाइट चीफ काथी लॉयडर्स का कहना है, "अगर हम अंतरिक्ष में अपना अभियान शांतिपूर्ण तरीके से जारी नहीं रख सके तो अंतरराष्ट्रीय अभियानों के लिए वह दुखद दिन होगा."
हई के लिए सोयूज का विकल्प
मंगलवार को बने रिकॉर्ड की ओर ध्यान दिलाने के लिए नासा ने ट्विटर पर लोगों से वीडियो के जरिए सवाल पूछने को कहा. कुछ लोगों ने पूछा है कि क्या वांडे हाई वापसी के लिए अमेरिकी यान चुन सकते हैं? नासा के स्पेश स्टेशन प्रोग्राम मैनेजर जोएल मोंटाल्बानो ने सोमवार को एक प्रेस ब्रीफिंग के दौरान कहा कि रूसी स्पेस एजेंसी ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि वो वांडे हई और दो दूसरे रूसी अंतरिक्ष यात्रियों को वापस लाएंगे. नासा का एक जहाज और छोटी टीम कजाखस्तान से वांडे हाई को ह्यूस्टन ले जाने के लिए हमेशा की तरह वहां जाने की तैयारी में है.
सहयोग पर प्रतिबंधों का साया
नासा के पूर्व अंतरिक्ष यात्री हाइडमैरी स्टेफानिशिन पाइपर के पिता यूक्रेन में जन्मे थे. वो मानती हैं कि मौजूदा परिस्थिति कठिन है. पाइपर ने कहा, "हम रूस पर प्रतिबंध लगा रहे हैं, कंपनियां रूस से कारोबार समेट रही हैं लेकिन अब भी अमेरिकी सरकार, स्पेस एजेंसी रूस के साथ कारोबार कर रहे हैं." उनका कहना है अंतरिक्ष स्टेशन के दो हिस्सों को "एकदम से अलग करने के लिए हमारे पास कोई बटन नहीं है."
अंतरिक्ष स्टेशन से बाहर निकल कर इसे अमेरिका, यूरोप या कहीं और गिराने की धमकियों के अलावा, रोगोजिन ने इस महीने इंटरनेट सेटेलाइट लेकर जाने वाले सोयूज रॉकेट पर दूसरे देशों के झंडों को ढंकवा दिया था.
यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी भी असमंजस में है. रूस के साथ मिल कर तैयार हुए मार्स रोवर को लॉन्च करने की समय सीमा साल 2020 तय की गई थी. इसे इस साल सितंबर में भेजने की कोशिश भी खटाई में पड़ गई है. मौजूदा हालात देखकर संभावना कम नजर आती है कि 2024 से पहले मंगल ग्रह पर इसे भेजा जा सकेगा.
वहीं रूस ने दक्षिण अमेरिका में फ्रांस की लॉन्च साइट से अपने स्टाफ वापस बुला लिया है. इसके साथ ही यूरोपीय सेटेलाइटों के लिए सोयूज की लॉन्चिंग भी निलंबित कर दी है. इसके बाद रूसी सरकार ने नवंबर में एंटीसेटेलाइट मिसाइल का भी परीक्षण किया है. इसकी वजह से पहले से ही अंतरिक्ष में मौजूद कचरे की मात्रा और ज्यादा बढ़ गई. इस वजह से कई दिनों तक स्पेश स्टेशन में मौजूद सात अंतरिक्ष यात्रियों को अलर्ट पर रहना पड़ा.
रूस, अमेरिका का अंतरिक्ष में सहयोग कब तक चलेगा?
जेफ्री मैनबर ने 1990 के दशक में अमेरिका और रूस के बीच सहयोग बढ़ाने में मदद की थी. उनके प्रयासों के चलते 1998 में दोनों देशों ने स्पेस स्टेशन का पहला हिस्सा लॉन्च किया गया. वह इसे दोनों देशों के सहयोग का ऐसा प्रारूप मानते हैं जो तमाम विरोधों के बावजूद काम करता रहा है. हालांकि उनका यह भी कहना है, "अगर समझौता टूट जाता है तो फिर वापसी का कोई रास्ता नहीं बचेगा और इसका नतीजा आईएसएस प्रोग्राम के समय से पहले खत्म होने के रूप में सामने आएगा."
कई विशेषज्ञों का मानना है कि स्पेस स्टेशन पर क्या होता है, उसकी परवाह ना करें तो भी रूस और पश्चिमी देशों के बीच लंबे समय के अंतरिक्ष सहयोग की गुंजाइश अब कम ही है. जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जॉन लांग्सडन कहते हैं, "रूस पहले ही चीन की तरफ बढ़ रहा है, मौजूदा स्थिति उधर जाने की गति और तेज कर देगी."
वांडे हाई तो ट्विटर पर खामोश हैं लेकिन दूसरे लोग रोगजिन की धमकियों का जवाब दे रहे हैं. रोगोजिन ने कहा था कि रूस अमेरिकी कंपनियों को रॉकेट के इंजिन की सप्लाई बंद कर देगा. साथ ही कहा कि अमेरिकी कंपनियां झाड़ू की तीलियों के सहारे ऑर्बिट में जा सकती हैं. पिछले हफ्ते स्पेस एक्स ने लॉन्च के वक्त आधिकारिक रूप से कहा था, "अमेरिकी झाड़ू की तीलियों के उड़ने का वक्त आ गया है और आजादी की आवाज सुनाई दे रही है."
एनआर/आरएस (एपी)
यूक्रेन और रूस के बीच 21वें दिन भी लड़ाई जारी है. रूस कीएव पर नियंत्रण के लिए लगातार कोशिशें कर रहा है लेकिन उसे विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है. वहीं, दोनों देशों के बीच शांति वार्ता भी चल रही है लेकिन फिलहाल कोई समाधान नहीं निकला है.
आइये जानते हैं इस बीच यूक्रेन में बीते कुछ घंटों में कैसे रहे हालात:
- ·यूक्रेन के कई शहरों में हवाई हमलों से पहले सायरन बज रहे हैं.
- ·रूस और यूक्रेन के बीच शांति वार्ता के चौथे दौर में कुछ प्रगति नज़र आई है. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने शांति वार्ता को लेकर कहा कि अब लग रहा है कि रूस के साथ 'असल बातचीत' हो रही है.
- स्लोवेनिया,चेक रीपब्लिक और पोलैंड के प्रधानमंत्री यूक्रेन को अपना समर्थन देने के लिए ट्रेन से यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की से मिलने ट्रेन से कीएव पहुंचे.
- स्लोवेनिया के प्रधानमंत्री ने यूक्रेन के लोगों को संबोधित करते हुए कहा, “आप लोग अकेले नहीं हैं. आपकी लड़ाई हमारी भी लड़ाई है.”
- यूक्रेन की राजधानी कीएव में अब भी बमबारी जारी है और वहां 35 घंटों का कर्फ्यू भी लग चुका है. हवाई हमलों में मंगलवार को कम से कम 5 लोग मारे गए.
- मारियुपोल के मेयर ने बताया कि वहां रूसी सैनिकों ने 400 डॉक्टरों और मरीज़ों को बंधक बना लिया है.
- अमेरिका यूक्रेन को सैन्य सहायता देने के लिए 1 बिलियन डॉलर की मदद दे सकता है.
- संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि युद्ध की शुरुआत से हर दिन 70,000 बच्चे शरणार्थी बन जाते हैं. यूक्रेन से आने वाले शरणार्थियों की संख्या अब 30 लाख से भी ज़्यादा हो चुकी है.
- रूस ने अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन पर प्रतिबंध लगाए हैं. ये प्रतिबंध अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन, रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन और सीआईए प्रमुख विलियम बर्न्स पर भी लागू होंगे. (bbc.com)
वाशिंगटन, 15 मार्च । दवा निर्माता कंपनी फाइजर इस सप्ताह वरिष्ठ नागरिकों के लिए कोविड-रोधी टीके की अतिरिक्त बूस्टर खुराक की मंजूरी के लिए आवेदन कर सकती है। सूत्रों ने यह जानकारी दी है।
मंजूरी मिलने की सूरत में यह महामारी से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले 65 वर्ष से अधिक आयुवर्ग के लोगों को संक्रमण से बचाव के लिए टीके की चौथी खुराक होगी क्योंकि अब तक टीके की दो खुराक देने के बाद बूस्टर खुराक दी जाती है।
सूत्र ने कहा कि इस बात की पूरी संभावना है कि खाद्य एवं औषधि प्रशासन और रोग नियंत्रण केंद्र इस आवेदन को मंजूरी दे सकता है।
फाइजर की प्रवक्ता जेरिका पिट्स ने कहा, 'हमने सभी उपलब्ध आंकड़े एकत्र करना और उनका आकलन करना जारी रखा है और हम वायरस से निपटने के लिए कोविड-19 टीका रणनीति बनाने के मद्देनजर लगातार नियामकों और स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ संवाद कर रहे हैं।'(एपी)
न्यूयॉर्क (अमेरिका), 16 मार्च। यूक्रेन में ‘फॉक्स न्यूज’ के लिए काम करने वाले एक अनुभवी वीडियोग्राफर और 24 वर्षीय एक यूक्रेनी पत्रकार की मौत हो गई है। कीव के बाहर उनके वाहन में आग लग गई थी।
पियरे ज़कर्ज़वेस्की (55) और ऑलेक्ज़ेंड्रा ‘साशा’ कुवशिनोवा सोमवार को होरेन्का में फॉक्स न्यूज के पत्रकार बेंजामिन हॉल के साथ यात्रा कर रहे थे। हॉल अभी अस्पताल में भर्ती हैं।
नेटवर्क की मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) सुजैन स्कॉट ने मंगलवार को कर्मचारियों को जारी किए गए एक ज्ञापन में कहा, ‘‘ आज फॉक्स न्यूज मीडिया के लिए और उन सभी पत्रकारों के लिए बेहद दुखद दिन है, जो खबर दिखाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं।’’
वृत्तचित्र फिल्म निर्माता ब्रेंट रेनॉड की भी रविवार को युद्ध क्षेत्रों को कवर करते समय मौत हो गई थी। रूसी सेना ने कीव के बाहर इरपिन में उनके वाहन पर गोलियां चला दी थीं।
रूस के यूक्रेन पर हमला करने के बाद से युद्ध संबंधी खबरों को कवर कर रहे तीन पत्रकारों की मौत हो चुकी है। (एपी)