अंतरराष्ट्रीय
फिलीपींस में करीब एक सदी पुराने कानून में संशोधन कर यौन संबंध बनाने की सहमति की उम्र बढ़ाकर 16 साल कर दी गई. पहले सहमति से सेक्स की न्यूनतम आयु 12 साल थी. संशोधन लड़कियों को बलात्कार और यौन शोषण से बचाने में मदद करेगा.
फिलीपींस सरकार के फैसले पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा और बाल यौन शोषण विरोधी संगठनों ने संतोष जाहिर किया है. संशोधित कानून अब कम उम्र के बच्चों को बलात्कार और यौन शोषण से बचाने में मदद करेगा. कैथोलिक बहुसंख्यक देश में दुनिया में सहमति से सेक्स की सबसे कम उम्र थी. वयस्कों को 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के साथ यौन संबंध रखने की इजाजत थी, अगर वे सहमत हों.
फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो दुर्तर्ते ने शुक्रवार को संशोधित कानून पर हस्ताक्षर किए और 7 मार्च को इसे सार्वजनिक किया गया. कानून के मुताबिक 16 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ यौन संबंध बनाना अवैध होगा और ऐसा करने पर अधिकतम 40 साल की जेल की सजा हो सकती है.
वहीं संशोधित कानून यह भी कहता है कि सहमति से यौन संबंध रखने वाले किशोर जोड़ों के लिए अपवाद बने रहेंगे और जिनकी उम्र में तीन साल से अधिक का अंतर नहीं है.
यूनिसेफ की फिलीपींस शाखा में बाल संरक्षण विशेषज्ञ मार्गरेटा अर्दिवेला के मुताबिक, "इस संशोधित कानून के साथ, अब हमारे देश में बच्चों को यौन अपराधों और यौन हिंसा से बचाना आसान हो जाएगा."
उन्होंने कहा कि यह स्वागत योग्य है कि फिलीपींस में पहले की तुलना में अधिक प्रभावी ढंग से यह निर्णय लिया गया कि किस तरह की यौन स्थिति को कानूनी रूप से एक युवा लड़के या लड़की का बलात्कार माना जाएगा.
सरकार ने देश के उस कानून में संशोधन किया है, जो 1930 से लागू था. बाल अधिकार समूहों ने लंबे समय से तर्क दिया था कि सहमति से सेक्स के लिए न्यूनतम 12 वर्ष की आयु किसी भी तरह से समझने योग्य या स्वीकार्य नहीं थी.
इस बिल को पिछले साल दिसंबर में संसद के दोनों सदनों ने मंजूरी दी थी. फिलीपींस, ऑनलाइन बाल यौन संबंध के लिए सबसे बड़ा वैश्विक केंद्र है. देश में छोटी लड़कियों के साथ बलात्कार और बाल यौन शोषण की घटनाएं भी आम हैं.
2015 में यूनिसेफ द्वारा सरकार के सहयोग से पूरे किए गए एक राष्ट्रव्यापी अध्ययन में पाया गया कि फिलीपींस में 13 से 17 वर्ष की आयु के पांच बच्चों में से एक का यौन शोषण किया गया था और 25 बच्चों में से एक का बचपन में बलात्कार किया गया था.
एए/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)
दक्षिण-पूर्व एशिया में किसान कुछ बड़ा कर रहे हैं. वे ड्रोन से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आदि जैसी तकनीक की मदद से खेती में क्रांतिकारी बदलाव ला रहे हैं.
मनित बूंखीव जब बालक थे तो अपने दादा-दादी को बैंकॉक के पास धान के खेतों में काम करते देखा करते थे. खेत जोतने के लिए उनके दादा दादी भैंसे से काम लेते थे. बुआई और छिड़काव वह हाथों से ही करते थे. फिर वक्त बदला और उनके माता-पिता उसी काम को ट्रैक्टर और थ्रैशर से करने लगे. अब एक बार फिर वक्त बदल गया है. मनित बूंखीव अपने खेत में ड्रोन प्रयोग करते हैं.
धान, ऑर्किड और फलों की खेती करने वाले मनित के पास मान बाई इलाके में लगभग 40 एकड़ जमीन है. बान माई के किसानों ने मिलकर थाईलैंड की सरकार की एक योजना की मदद से ड्रोन खरीदा है, जो खेती में उनके खूब काम आ रहा है.
यह ड्रोन बीजाई से लेकर खाद और दवाएं छिड़कने आदि तक तमाम तरह के काम करता है. जो बान माई में हो रहा है, वह दक्षिण पूर्वी एशिया में खेती में आ रहे बदलाव की एक झलक है. महामारी के बाद मजदूरों की भयंकर कमी से जूझ रहे इन देशों में ड्रोन खेती में क्रांतिकारी बदलाव ला रहे हैं.
बान माई में सामुदायिक धान केंद्र के नेता, 56 वर्षीय मनित बताते हैं, “मजदूर हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती है. एक तो मिलते नहीं हैं और फिर महंगे भी बहुत हैं.” बान माई सामुदायिक धान केंद्र 57 सदस्यों की एक समिति है जिसके पास करीब 400 एकड़ जमीन है. समिति को ड्रोन के प्रयोग से कई फायदे हुए हैं.
मनित बताते हैं, “ड्रोन ने ना सिर्फ हम पैसे बचा रहे हैं बल्कि काम ज्यादा सटीक हो गया है. यह तेज है और सुरक्षित भी, क्योंकि हम रसायनों के सीधे संपर्क में नहीं हैं. और यह हमें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों जैसे कम बारिश आदि से निपटने में भी मददगार है.”
क्रांतिकारी बदलाव
एशिया पैसिफिक में खेतीबाड़ी में तकनीक का इस्तेमाल अब मशीनों से बढ़कर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की ओर जा रहा है. किसान रोबोट, बिग डाटा प्रोसेसिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी की मदद से ना सिर्फ फसल और आय बढ़ाने मे कामयाब हो रहे हैं बल्कि खेती की तकनीक में भी सुधार हो रहा है.
संयुक्त राष्ट्र की संस्था खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) की एक रिपोर्ट बताती है कि डेटा-आधारित खेती और अन्य डिजिटल युक्तियां प्रयोग करने की वजहों में जलवायु परिवर्तन के अलावा जनसंख्या में आ रहे बदलाव और तकनीकी विकास का भी योगदान है.
तकनीक के प्रयोग के बारे में संगठन की रिपोर्ट कहती है, “वे किसानो को कम पानी, जमीन, ऊर्जा और मजदूरी में ज्यादा उत्पादन में मदद करती हैं. जैव-विविधता के संरक्षण और कार्बन उत्सर्जन घटाने में भी सहायक हैं.”
लेकिन कृषि-तकनीकी या एग्री-टेक के अपने खतरे भी कम नहीं हैं. जैसे कि इसके कारण नौकरियां घटती हैं और बेरोजगारी बढ़ने से सामाजिक गैरबराबरी बढ़ती है. फिर डेटा की सुरक्षा को लेकर भी चिंताएं जताई गई हैं. कई विशेषज्ञ तकनीकी के कीमत पर सवाल उठाते हैं.
भारत जैसे हालात में
अलायंस फॉर सस्टेनेबेल ऐंड होलीस्टिक एग्रीकल्चर नामक संस्था के साथ काम करने वाले नचिकेत उदूपा कहते हैं, “भारत में तो चिंताएं बहुत गंभीर हैं जिनकी ओर सरकार को ध्यान देने की जरूरत है. हमने भारत में किसानों द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के लिए विशाल प्रदर्शन होते देखे हैं. ड्रोन हासिल करना उनके लिए सबसे बड़े मुद्दे नहीं हैं.”
दुनियाभर में क्लाउड कंप्यूटिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित तकनीकों ने खेतीबाड़ी से जुड़ी कई गतिविधियों में बिग डेटा के प्रयोग को आसान बनाया है. इन गतिविधियों में सिंचाई नियंत्रकों से लेकर मिट्टी की गुणवत्ता, मौसम और फसल उत्पादन आदि के अनुमानों के लिए डेटा कलेक्शन शामिल हैं. डिजिटल फार्मिंग के लिए एशिया पैसिफिक सबसे तेजी से बढ़ते बाजारों में से एक बन गई है. इसमें सूचनाएं, वित्तीय युक्तियां, ब्लॉकचेन तकनीक आदि का प्रयोग खूब जमकर किया जा रहा है.
लेकिन यह भी एक तथ्य है कि इस क्षेत्र में छोटे किसानों की संख्या बहुतायत में है. एफएओ का कहना है कि ऐसे किसानों के लिए भी सस्ती तकनीक जैसे मिट्टी की गुणवत्ता की जांच, ऐप या टेक्स्ट मेसेज आधारित सेवाओं के जरिए मौसम का पूर्वानुमान आदि जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं जिन्हें वे वहन कर सकते हैं.
गरीबों की मदद कैसे हो?
एक अन्य चुनौती इन तकनीकों तक महिलाओं की पहुंच बढ़ाना भी है. उदूपा कहते हैं कि भारत में, जहां जोत का औसत आकार दो एकड़ जितना छोटा है और तकनीकों का इस्तेमाल महंगा बना देता है. फसलों का विश्लेषण करने की सुविधा देने वाले एआई आधारित ऐप बनाने वाली डेटावैल ऐनालिटिक्स के सहसंस्थापक एम हरिदास कहते हैं भारत में दो करोड़ किसान खेती में तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं जो 50 करोड़ किसानों के देश में रत्तीभर है.
हरिदास कहते हैं, “डेटा से खेती ज्यादा लोकतांत्रिक हो जाती है. छोटे किसान भी एआई और मशीन लर्निंग का इस्तेमाल अपना उत्पादन बढ़ाने के लिए कर सकते हैं. सबसे बड़ी चुनौती है इंटरनेट की कनेक्टिविटी, कम डिवाइस और ट्रेनिंग ना होना.”
एफएओ ने इंटरनेट को ज्यादा दूर तक उपलब्ध करवाने के लिए माइक्रोसॉफ्ट और आईबीएम जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सहयोग से ‘डिजिटल विलेज’ नाम की योजना शुरू की है. दुनियाभर की एक हजार से ज्यादा जगहों पर चल रही यह योजना नेपाल, बांग्लादेश, फिजी, इंडोनेशिया. पापुआ न्यू गिनी और वियतनाम के किसानों की मदद कर रही है.
एफएओ में वरिष्ठ खाद्य सुरक्षा अधिकारी श्रीधर धर्मपुरी का कहना है, “इस योजना का मकसद तकनीक की मदद से खेती को आधुनिक बनाना, उसमें सुधार करना और ग्रामीण आबादी के लिए स्वास्थ्य और पोषण उपलब्ध बनाना है. जैसे 4जी सेवाएं फैलती हैं और 5जी सेवाओं का विस्तार होता है, और स्मार्टफोन की कीमतें कम होती हैं तो डिजिटल सेवाओं का विस्तार होगा और छोटे किसानों और उनके परिवारों का भी सशक्तिकरण होगा.”
वीके/सीके (रॉयटर्स)
ब्रिटेन की विदेश मंत्री लिज ट्रस ने कहा है कि भारत का रूस के खिलाफ वोट ना करने का फैसला उसकी रूस पर निर्भरता के चलते हैं. ट्रस ने भारत से रूस के खिलाफ खड़ा होने को भी कहा.
ब्रिटेन की विदेश मंत्री लिज ट्रस ने कहा है कि भारत कुछ हद तक रूस पर निर्भर करता है, जो उसकी संयुक्त राष्ट्र में रूस की निंदा में लाए गए प्रस्ताव पर वोट के दौरान गैरहाजिर रहने के लिए जिम्मेदार है. रूस के यूक्रेन पर हमले के कारण संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ निंदा प्रस्ताव लाया गया था, जिस पर मतदान से भारत गैरहाजिर रहा था.
ब्रिटिश मंत्री ने एक संसदीय समिति को बताया, "यहां मुद्दा यह है कि भारत कुछ हद तक रूस पर निर्भर करता है. यह निर्भरता रक्षा संबंधों में भी है और आर्थिक संबंधों में भी. और मेरा मानना है कि आगे बढ़ने के लिए भारत के साथ रक्षा और आर्थिक संबंधों में नजदीकियां बढ़ानी होंगी."
ट्रस ने कहा कि उन्होंने इस बारे में भारतीय विदेश मंत्री से बात की है. उन्होंने कहा, “मैंने अपने समकक्ष जयशंकर से बात की है और भारत को रूस के खिलाफ खड़ा होने के लिए प्रोत्साहित किया है.”
भारत रूस के साथ?
भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और फिर महासभा में भी रूस के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव पर मतदान में हिस्सा नहीं लिया था. सुरक्षा परिषद में लाए गए प्रस्ताव में भारत के अलावा यूएई और चीन ने भी मतदान से गैरहाजिर रहने का फैसला किया था, जिसे पश्चिमी देश रूस के समर्थन के रूप में देख रहे हैं.
यूक्रेन युद्ध पर संयुक्त राष्ट्र की महासभा के विशेष आपात सत्र बुलाने पर सुरक्षा परिषद में मतदान हुआ और इस बार भी भारत ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया. भारत का कहना है कि हिंसा तुरंत बंद होनी चाहिए और कूटनीति और बातचीत से समस्या को सुलझाना चाहिए.
भारत ने इस बारे में एक बयान जारी कर बताया था कि उसने मतदान में हिस्सा ना लेना का फैसला क्यों किया. अपने बयान में उसने कहा, “भारत यूक्रेन के ताजा घटनाक्रम से बहुत व्याकुल है. हम आग्रह करते हैं कि हिंसा रोके जाने के लिए सभी प्रयास किए जाने चाहिए. सभी सदस्य देशों को संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों का सम्मान करते हुए एक रचनात्कम हल खोजना चाहिए.”
पश्चिमी देश नाखुश
भारत के इस रुख से पश्चिमी देश बहुत ज्यादा खुश नहीं रहे हैं. हाल ही में भारत में जर्मनी के राजदूत वॉल्टर लिंडनर ने उम्मीद जताई थी कि आने वाले दिनों में भारत रूस को लेकर संयुक्त राष्ट्र में अपना रवैया बदलेगा. लिंडनर ने 'द हिंदू' अखबार को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि भले ही यूक्रेन भारत से दूर हो, "लेकिन अगर हम यूक्रेन के नागरिकों के खिलाफ हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन को बर्दाश्त करते हैं....तो यह दुनिया में और स्थानों तक भी फैल सकता है, हो सकता है भारत के काफी करीब भी."
लिंडनर ने आगे कहा, "अभी भी समय है, हम भारत को अपने विचार बता रहे हैं. अगर इस तरह का युद्ध को उकसावा एक नया नियम बन गया तो सबका नुकसान होगा और हम उम्मीद कर रहे हैं कि इस बात को भारत में स्वीकारा जाएगा और संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्पष्टीकरण में या मत में या मतदान के स्वरूप में कुछ बदलाव आएगा."
इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा था कि रूस को लेकर अभी तक भारत की स्थिति का "समाधान नहीं निकला है" और इस पर अमेरिका भारत से "अभी भी बातचीत कर रहा है." इसी बयान के बाद सुरक्षा परिषद में मतदान हुआ था, जिससे भारत गैरहाजिर रहा था.
वीके/एए (रॉयटर्स, एपी)
कहते हैं मदद करने वाला भगवान होता है. यूनाइटेड किंग्डम में इन दिनों एक प्लंबर को लोग भगवान के दूत की तरह पूज रहे हैं. इसके पीछे की कहानी बहुत दिलचस्प है. दरअसल जेम्स एंडरसन नाम के इस प्लंबर ने इंटरनेट पर एक ऐसी रसीद डाली जिसके बाद लोग उसके तारीफों के कसीदे पढ़ने लगे. इस रसीद में काम करने के एवज में जो रकम मांगी गई है वो है- ज़ीरो मतलब शून्य. आप सोच रहे होंगे कि ज़ीरो अमाउंट की रसीद में ऐसी क्या खास बात है कि लोग तारीफ कर रहे हैं.
दरअसल एंडरसन ने 91 साल की एक बुजुर्ग महिला के घर में प्लंबिंग का काम किया. ये बुजुर्ग महिला अक्यूट ल्यूकेमिया से पीड़ित हैं. एंडरसन ने उन्हें जो बिल थमाया उसमें एक भी पैसा चार्ज नहीं किया. पूरी तरह से फ्री सर्विस दी. उसने जब ये स्टोरी शेयर की तो लोगों ने उसकी खूब वाहवाही की.
दिव्यांग और बुज़ुर्गों की करते हैं मदद
एंडरसन ने सिर्फ इसी बुजुर्ग महिला की मदद नहीं की. दरअसल 2017 में एंडरसन ने अपना प्राइवेट बिजनेस पूरी तरह बंद कर दिया और खुद को बुजुर्ग तथा दिव्यांग लोगों की मदद के लिए झोंक दिया. एंडरसन शारीरिक रूप से अक्षम और बुजुर्ग लोगों की मदद करते हैं और पूरी तरह फ्री सर्विस देते हैं. हैरानी की बात ये है कि इस फ्री सर्विस की वजह से उनपर करीब 8000 पॉन्ड का कर्ज भी हो गया. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी.
मुफ्त सेवा देने के लिए चलाया कैंपेन
एंडरसन ने मेट्रो लुक को बताया कि कर्ज की वो परवाह नहीं करते. एंडरसन ने इस मुफ्त सेवा के लिए फंडरेजिंग कैंपेन चलाया जिसे लोगों ने हाथों हाथ लिया. मात्र 42 दिनों के इस कैंपेन में लोगों ने एंडरसन को 49 हजार पॉन्ड से ज्यादा की मदद की. इस कैंपेन के दौरान एंडरसन ने उन लोगों के भावुक वीडियोज भी शेयर किए जिनकी मदद उन्होंने की थी. एंडरसन के मुताबिक वो इस बात की कोशिश करते हैं कि उनके देश में कोई दिव्यांग या बुजुर्ग बेजोड़ ठंड या पैसे न होने की वजह से ब्वॉयलर ठीक न कराने के कारण परेशान ना हो. पैसे न होने की वजह से किसी की मौत न हो. एंडरसन की ये कहानी सबके लिए सबक है कि मदद करने वाले से बड़ा कोई नहीं होता.
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की अपने पिछले कई वीडियो पोस्ट्स में यूक्रेन में नो फ़्लाई ज़ोन बनाने की अपील कर चुके हैं.
अपनी एक अपील में उन्होंने कीएव के दक्षिण-पश्चिम में बसे शहर विनितस्या के नागरिक हवाई अड्डे के पूरी तरह ध्वस्त होने की बात कही थी. साथ ही सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट करते हुए उन्होंने दुनिया के नेताओं से यूक्रेन में नो फ्लाई ज़ोन बनाने की अपील दोहराई थी.
इस पोस्ट में उन्होंने कहा था कि लोगों को बचाना दुनिया के नेताओं का मानवीय दायित्व है.
उन्होंने कहा था, ''अगर आप ऐसा नहीं करते और अपनी रक्षा करने के लिए हमें लड़ाकू विमान भी नहीं देते तो इसका एक ही निष्कर्ष निकला जा सकता है और वो ये कि आप भी चाहते हैं कि धीरे-धीरे हम मार दिए जाएं. ''
नेटो देश अब तक यूक्रेन के ऊपर नो-फ़्लाई ज़ोन बनाने की बात ख़ारिज करते आए हैं.
सोमवार को यूक्रेन के राष्ट्रपति ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि अगर अमेरिका और पश्चिमी सहयोगी देश अपने हिस्से की ज़िम्मेदारी निभाएं तो उनका देश यूक्रेन, रूस की आक्रामकता का पूरी तरह से सामना कर सकता है और यहाँ तक की उसे हरा भी हरा सकता है.
ज़ेलेंस्की ने एक्सियोस न्यूज़ को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि रूस पर जो प्रतिबंध, जिस इरादे से लगाए गए हैं, वो बिल्कुल सही दिशा में जा रहे हैं.
उन्होंने आगे कहा कि रूस के कई बैंकों को स्विफ़्ट सिस्टम से हटाने का फ़ैसला, साथ ही यूक्रेन को और अधिक स्टिंगर मिसाइल, एंटी टैंक हथियार देने का फ़ैसला सब कुछ सही दिशा में है. इसके अलावा हम पश्चिमी देशों से चाहते हैं कि वे यूक्रेन के महत्वपूर्ण हिस्सों के ऊपर नो-फ़्लाई ज़ोन लगाएं.
अपने बयान में उन्होंने आगे कहा था, "हम आक्रामकता को हरा सकते हैं और हम दुनिया को यह साबित भी कर रह रहे हैं लेकिन हमारे सहयोगियों को भी अपनी भूमिका निभानी होगी."
हालांकि नेटो ने शुक्रवार को ही उनके इस अनुरोध को आधिकारिक रूप से ख़ारिज कर दिया था.
नेटो के महासचिव जेन्स स्टोलेनबर्ग ने इससे पहले चेतानवी देते हुए कहा था कि अगर नो-फ़्लाई ज़ोन लागू किया गया तो इससे रूस के साथ नेटो देशों का सीधा संघर्ष शुरू हो जाएगा. साथ ही इससे होने वाली मानव-त्रासदी बहुत भयावह होगी.
वहीं रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी अपनी ओर से यह स्पष्ट कर चुके हैं कि अगर इस तरह की कोई भी कार्रवाई की जाती है तो इसे सीधे संघर्ष में भागीदारी के तौर पर लिया जाएगा.
साथ ही अमेरिकी अधिकारियों की ओर से भी भी हाल के दिनों में कहा गया है कि राष्ट्रपति जो बाइडन भी इस तरह के किसी ज़ोन के पक्षधर नहीं है.
वहीं यूक्रेन के राष्ट्रपति ने एक सवाल के जवाब में प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि आज गठबंधन नेतृत्व ने नो-फ़्लाई ज़ोन बनाने से मना करके यूक्रेन के शहरों और कस्बों पर बमबारी करने के लिए उन्हें(रूस) ग्रीन सिग्नल दे दिया है.
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने नेटो पर नो-फ़्लाई ज़ोन न घोषित करने के लिए उसकी आलोचना की थी और इसे 'कमज़ोरी' और 'एकता का अभाव' बताया था.
लेकिन खुलेतौर पर यूक्रेन का साथ देने के बावजूद, यूक्रेन में मची तबाही को देखने के बावजूद पश्चिमी सहोयगी देश नो-फ़्लाई ज़ोन लागू करने से इनकार क्यों कर रहे हैं?
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सरकारी विमान कंपनी एयरोफ़्लोट के फ़्लाइट अटेंडेंट के साथ बैठक के दौरान कहा था कि कोई भी देश अगर यूक्रेन पर नो-फ़्लाई ज़ोन लागू करता है तो उसे यूक्रेन में युद्ध में शामिल माना जाएगा.
रूसी राष्ट्रपति ने कहा, "इस दिशा में किसी भी उठाए गए क़दम को हम मानेंगे कि वो उस देश में एक सशस्त्र विद्रोह में शामिल हो रहा है."
आसान शब्दों ने समझें तो नो फ़्लाई ज़ोन ऐसे स्थान विशेष को परिभाषित करता है, जहाँ यह सुनिश्चित किया जाता है कि कुछ विमान उड़ान नहीं भर सकते हैं.
इसका इस्तेमाल संवेदनशील इलाक़ों की रक्षा के लिए किया जा सकता है. जैसे शाही-निवास स्थल, खेल-आयोजन या फिर कुछ विशेष और बड़े आयोजन लेकिन ये प्राय: अस्थायी रूप से ही लागू किया जा सकता है.
सेना के संदर्भ में नो फ़्लाई ज़ोन का मतलब होता है कि उस क्षेत्र में कोई भी विमान नहीं जा सकता है ताकि किसी हमले या निगरानी को रोका जा सके. लेकिन इसे सेना द्वारा लागू किया जाता है ताकि किसी विमान को संभावित रूप से गिराया जा सके.
यूक्रेन के राष्ट्रपति की मांग के अनुसार, नो-फ़्लाई ज़ोन लागू करने का मतलब यह होगा कि सैन्य बल, ख़ासतौर पर नेटो की सेना को अगर उस हवाई क्षेत्र में रूस का कोई भी विमान नज़र आता है तो वे उसे सीधे लक्षित कर सकेंगे और अगर ज़रूरत पड़ी तो उसे नष्ट कर सकेंगे.
अगर नेटो, रूसी एयरक्राफ़्ट और हथियारों को लक्ष्य बनाती है तो इससे युद्ध के और भीषण होने की आशंका बढ़ जाएगी. इससे संघर्ष के और व्यापक होने का ख़तरा है.
नेटो के महासचिव स्टोल्टेनबर्ग ने शुक्रवार को कहा भी था, "हम मानते हैं कि अगर हम ऐसा करते हैं तो इससे एक संपूर्ण संघर्ष का आह्वान होगा. जिसमें कई दूसरे देश भी शामिल होंगे और बहुत मानव त्रासदी भी भयावह होगी."
यह एक बड़ी वजह है, जिसके चलते एक ओर जहां पश्चिमी देश और संगठन एक के बाद एक रूस पर प्रतिबंध तो लगा रहे हैं लेकिन नो-फ़्लाई ज़ोन लागू करने से परहेज़ कर रहे हैं. वे यूक्रेन-रूस युद्ध में नेटो को सीधे तौर पर शामिल नहीं कर रहे हैं. ना ज़मीनी स्तर पर और ना ही हवाई स्तर पर.
पूर्व अमेरिकी वायु सेना जनरल फ़िलिप ब्रीडलोव ने फ़ॉरन पॉलिसी पत्रिका को दिए एक इंटरव्यू में कहा, "आप सिर्फ़ यह नहीं कहते हैं कि 'यह एक नो-फ़्लाई ज़ोन है. आपको बक़ायदा नो-फ़्लाई ज़ोन लागू भी करना होगा."
पुतिन ने क्राइमिया को रूस में कैसे मिलाया था? जानिए पूरी कहानी
पुतिन ने सोवियत संघ के विघटन के 30 साल बाद रूस को महाशक्ति कैसे बनाया?
जनरल ब्रीडलोव 2013 से 2016 तक नेटो के सर्वोच्च सहयोगी कमांडर के रूप में अपनी सेवा दे चुके हैं. वह मानते हैं कि यूक्रेन के नो-फ़्लाई ज़ोन की मांग का समर्थन करना सिर्फ़ नेटो के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक बेहद गंभीर फ़ैसला होगा.
वह कहते हैं, "ऐसा करना सीधे तौर पर एक संपूर्ण युद्ध को न्योता देने जैसा है."
ब्रिटेन के रक्षा मंत्री बेन वालास ने स्पष्ट किया है कि ब्रिटेन यूक्रेन पर नो-फ़्लाई ज़ोन लागू करने की मांग की मांग का समर्थन नहीं करता है क्योंकि रूसी विमानों को साधने का मतलब है- "पूरे यूरोप में युद्ध" छिड़ जाना.
अमेरिका ने भी कमोबेश इसी तरह के कारण देते हुए यूक्रेन के राष्ट्रपति की मांग को ख़ारिज कर दिया है.
इसके अलावा रूस के साथ संघर्ष बढ़ाने का एक ख़तरा परमाणु हथियारों के तौर पर भी है. यह ख़तरा इसलिए भी गंभीर है क्योंकि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने देश की न्यूक्लियर फ़ोर्सज़ को 'स्पेशल अलर्ट' पर रखा है. उनके इस क़दम से दुनिया भर में चिंता जताई जा रही है.
लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि पुतिन का ये क़दम शायद यूक्रेन के साथ उनकी जंग में अन्य किसी देश को शामिल होने से रोकने के लिए है. इसे परमाणु हथियार इस्तेमाल करने की इच्छा का संकेत नहीं माना जाना चाहिए.
लेकिन विश्व युद्ध के छिड़ने का एक छोटा सा संकेत भी परमाणु युद्ध की आशंका को बढ़ा सकता है और यूक्रेन पर नो-फ़्लाई ज़ोन लागू करना उसके लिए बीजारोपण करने जैसे हो सकता है. (bbc.com)
रूस-यूक्रेन संकट के बाद सबका ध्यान इस ओर गया कि भारत से इतनी बड़ी संख्या में बच्चे मेडिकल की पढ़ाई के लिए यूक्रेन जाते हैं। इस बात ने चिंता भी बढ़ाई है। भारत में मेडिकल की पढ़ाई में मेरिट को तवज्जो दी जाती है। मेडिकल पढ़ने वालों का सीधा संबंध लोगों के जीवन को बचाने से रहता है। ऐसे में पढ़ाई के दौरान किसी भी प्रकार की लापरवाही आगे चलकर खतरनाक हो सकती है। इस कारण भारत में नीट पास करने के बाद ही छात्रों का दाखिला लिया जाता है। उसमें भी रैंकिंग को प्रमुखता दी जाती है।
समस्या यह है कि निजी कालेजों की भारी-भरकम फीस के कारण यूक्रेन, रूस, चीन और नेपाल जैसे देश फायदा उठाते हैं। वहां बहुत से कालेज भारतीय बच्चों को बिना किसी प्रवेश परीक्षा के दाखिला देते हैं और मेडिकल की पढ़ाई करवाते हैं। भारत में इनके कई एजेंट होते हैं, जिनका लक्ष्य ही ज्यादा से ज्यादा बच्चों को वहां के कालेजों में प्रवेश दिलाना होता है। ऐसे में इनमें पढ़ाई का स्तर भी समझा जा सकता है। इन देशों में कई कालेज हैं, जो बस पैसे को ही महत्व देते हैं। कुछ कालेजों के मामले में तो कहा जा सकता है कि वहां बस पैसे के बदले डिग्री बांटने का खेल चल रहा है। पैसा कमाने के लिए कुछ कालेज कक्षा में अनुपस्थित रहने पर अच्छा-खासा जुर्माना भी लगाते हैं। पैसे और डिग्री के इस खेल में कई ऐसे बच्चे भी मेडिकल की पढ़ाई कर लेते हैं, जिनमें क्षमता नहीं होती है। यही सबसे ज्यादा चिंता वाली बात है। आज से करीब 15 वर्ष पहले तक इन देशों के मेडिकल कालेजों में पढ़ाई करने वाले बच्चे भारत में आकर सीधे प्रैक्टिस शुरू कर देते थे। बाद में भारत सरकार ने इसे गंभीरता से लिया और कई देशों से पढ़कर आने वाले मेडिकल छात्रों के लिए स्क्रीनिंग टेस्ट अनिवार्य कर दिया।
मेडिकल की पढ़ाई छात्रों की रुचि पर निर्भर करती है। जिनमें अंदर से इस क्षेत्र में काम करने की भावना होती है, वहीं इसे कर सकते हैं। किसी की देखादेखी डाक्टर नहीं बना जा सकता है। अभिभावकों को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए। अगर योग्यता के आधार पर देश के कालेजों में बच्चे को प्रवेश नहीं मिला है, तो समझना चाहिए कि उसकी तैयारी में भी कुछ कमी हो सकती है। शार्टकट खोजकर उसे कहीं से डिग्री दिला देने के बजाय अच्छी तैयारी के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। बिना योग्यता के डिग्री हासिल करने और डाक्टर बनने वाला छात्र भविष्य में किसी का जीवन भी संकट में डाल सकता है। विदेश से पढ़ना बुरा नहीं है, लेकिन देश और कालेज का चुनाव करते समय सतर्कता बरतनी बहुत जरूरी है। यह भी समझना चाहिए कि बच्चा वास्तव में अपनी रुचि से इस क्षेत्र में जाना चाह रहा है या किसी की देखादेखी ऐसा मन बनाया है। रूस-यूक्रेन संकट के बीच मेडिकल की पढ़ाई को लेकर केंद्र सरकार भी सक्रिय हुई है। इस बात के इंतजाम किए जा रहे हैं कि बच्चों को देश में ही पढ़ाई का अवसर मिले। यह एक सराहनीय पहल है। इससे पैसे के बदले डिग्री के खेल से जुड़े विदेशी कालेजों से भारतीय छात्र बचे रह पाएंगे। (jagran.com)
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान क्या देश के भीतर अमेरिका विरोधी भावनाओं का दोहन कर रहे हैं? जानकारों की राय इस पर बंटी हुई है.
इमरान ख़ान की नाराज़गी हाल के महीनों में अमेरिका के ख़िलाफ़ सार्वजनिक रूप से दिखी है. रविवार को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने एक बार फिर से इस्लामाबाद में पश्चिम के राजनयिकों को आड़े हाथों लिया.
पिछले हफ़्ते पाकिस्तान में पश्चिम के राजनयिकों ने इमरान ख़ान से कहा था कि वह यूक्रेन पर रूस के हमले की निंदा करें. इसके लिए यूरोपियन यूनियन के राजनयिकों ने पाकिस्तान की सरकार को एक ख़त लिखा था.
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को यह ख़त नागवार गुज़रा. उन्होंने रविवार को पंजाब प्रांत के वेहारी में एक रैली को संबोधित करते हुए ईयू के राजनयिकों को आड़े हाथों लिया.
इमरान ख़ान ने कहा, ''हमने कभी पाकिस्तान को झुकने नहीं दिया. न आज तक इमरान ख़ान किसी के आगे झुका है और इंशाअल्लाह जब तक मेरे में ख़ून है, मैं अपनी कौम को किसी के आगे झुकने नहीं दूंगा. पाकिस्तान को यूरोपियन यूनियन के लोगों ने ख़त लिखा कि आप रूस के ख़िलाफ़ बयान दें. मैं यूरोपियन यूनियन के राजदूतों से पूछता हूँ कि क्या आपने हिन्दुस्तान को भी यह ख़त लिखा था? ये वो पाकिस्तान था जिसने नेटो की मदद की. हमने उनका साथ दिया. मैं ऐसा नहीं करता, लेकिन उस वक़्त की सरकार ने उनका साथ दिया था.''
यूक्रेन संकट पर यूएन में हुई वोटिंग में पाकिस्तान का रुख़
इमरान ख़ान ने कहा, ''इससे पाकिस्तान को क्या मिला. 80 हज़ार पाकिस्तानियों की जान गई. हमारा क़बाइली इलाक़ा उजड़ गया. अरबों डॉलर का नुक़सान हुआ. मैं यूरोपियन यूनियन के नेताओं से पूछना चाहता हूँ कि क्या आपने हमारा शुक्रिया अदा किया? ये शुक्रिया अदा करने के बज़ाय अफ़ग़ानिस्तान में अपनी हार के लिए हमें ज़िम्मेदार ठहराने लगे. जब कश्मीर में हिन्दुस्तान ने अंतरराष्ट्रीय क़ानून तोड़ा तो क्या आपमें से किसी ने हिन्दुस्तान से रिश्ता तोड़ा? क्या हम आपके ग़ुलाम हैं कि जो आप कहें हम कर लें?''
जब इमरान ख़ान यह सब कह रहे थे तो रैली में मौजूद उनके समर्थक तालियों की गड़गड़ाहट से स्वागत कर रहे थे. पाकिस्तान पारंपरिक रूप से पश्चिमी देशों का सहयोगी रहा है. लेकिन यूक्रेन पर रूस के हमले के ख़िलाफ़ संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रस्ताव लाया गया तो पाकिस्तान वोटिंग से बाहर रहा था. पाकिस्तान के अलावा चीन, भारत, बांग्लादेश और श्रीलंका भी बाहर रहे थे. लेकिन भारत का यह कोई नया रुख़ नहीं था. पाकिस्तान शीत युद्ध में अमेरिकी खेमे में था लेकिन अब उसने पाला बदल लिया है.
जिस दिन रूस ने यूक्रेन में सैन्य अभियान की घोषणा की थी, उसी दिन इमरान ख़ान मॉस्को पहुँचे थे. तब भी पाकिस्तान के लोगों ने कहा था कि इमरान ने ग़लत समय पर रूस का दौरा किया है.
पाकिस्तान के जाने-माने स्तंभकार फ़ारुख़ सलीम ने ट्वीट कर कहा था, ''रूस ने यूक्रेन पर हमला किया. उसने अंतरराष्ट्रीय नियम को तोड़ा है. पूरी दुनिया की राय रूस के पक्ष में नहीं है. क्या इमरान ख़ान ऐसे वक़्त में रूस का दौरा कर यूक्रेन पर उसके हमले को सही ठहरा रहे हैं?''
इमरान ख़ान की आलोचना
शुक्रवार को पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने ईयू के ख़त को लेकर कहा था कि इस तरह से सार्वजनिक ख़त लिखना सामान्य राजनयिक प्रैक्टिस नहीं है.
अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रहे हुसैन हक़्क़ानी ने ट्वीट कर लिखा है, ''इमरान ख़ान, यूएस और ईयू पर आरोप लगा रहे हैं. उन दावों का क्या हुआ जिसमें वह कहते थे कि उनसे बेहतर कोई पश्चिम को नहीं समझता है. लेकिन सच यह है कि क्रिकेट खेलने से कोई अच्छी समझ नहीं बना लेता है. पाकिस्तान के नेता अमेरिका विरोधी भावना भी भड़काते हैं और अमेरिकी मदद भी चाहते हैं.''
इमरान ख़ान के इस बयान के बाद फ़ारुख़ सलीम ने फिर से ट्वीट कर कहा है, ''प्लीज़, प्लीज़ सस्ती लोकप्रियता के लिए पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को नुक़सान ना पहुँचाएं. ब्रिटेन, जर्मनी, नीदरलैंड्स, स्पेन, इटली, बेल्जियम, फ़्रांस, कनाडा, पोलैंड और पुर्तगाल को हम आठ अरब डॉलर का निर्यात करते हैं. अमेरिका से हमारा निर्यात चार अरब डॉलर का है. रूस से हमारा निर्यात महज़ 27.7 करोड़ डॉलर का है. आठ करोड़ हमारे श्रमिक निर्यात पर निर्भर हैं.''
पाकिस्तान के पूर्व वित्त मंत्री इशाक डार ने ट्वीट कर कहा है, ''इमरान ख़ान की एक और हेट स्पीच. प्रधानमंत्री के रूप में अपने आख़िरी दिनों में ज़हर उगल रहे हैं. जिस व्यक्ति ने एक भी वादा पूरा नहीं किया, वह पाकिस्तान को शर्मिंदा कर रहा है. राजनयिक नियमों का उल्लंघन करते हुए नेटो और ईयू पर सार्वजनिक रूप से हमले कर रहा है.''
ओआरएफ़ के सीनियर फेलो सुशांत सरीन ने लिखा है, ''इमरान ख़ान अमेरिका और ईयू को धमका रहे हैं. वह कह रहे हैं कि क़र्ज़ों पर जीने वालों का कोई आत्मसम्मान नहीं होता, लेकिन वह भूल गए हैं कि पाकिस्तान को उन्होंने दिवालिया बना दिया है और क़र्ज़ के जाल में फंसा दिया है.''
पाकिस्तानी पत्रकार सिरील अलमीडा ने ट्वीट कर कहा है, ''इमरान ख़ान अमेरिका को लेकर अपनी बेवकूफ़ियों से बाज़ नहीं आएंगे. राष्ट्रपति बाइडन ने उन्हें एक फ़ोन तक नहीं किया है. इमरान ख़ान अमेरिका से और कितनी दूरी बनाना चाहते हैं?'' (bbc.com)
फ्लोरिडा के पैनहैंडल में भीषण जंगल की आग के बाद 1,100 से अधिक घरों को खाली कराया गया है. तीन साल पहले एक तूफान ने क्षेत्र में भारी कहर बरपाया था.
दमकल विभाग के कर्मचारी बर्था स्वैंप रोड के पास 9,000 एकड़ और एडकिंस एवेन्यू में 841 एकड़ में फैली आग को काबू पाने की कोशिश में रविवार को भी जुटे रहे. जंगलों की आग के कारण फ्लोरिडा के बे काउंटी में करीब 1,100 मकानों में रहने वाले परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर भागने को मजबूर कर दिया. पिछले शुक्रवार को एडकिंस एवेन्यू में आग से 12 घरों नुकसान पहुंचा था.
फ्लोरिडा के गवर्नर रॉन डे सांतेस ने रविवार को कहा आग तेजी से फैल रही है. रविवार को ही एक तीसरी आग भड़की, जिसने पनामा सिटी में 120-बेड वाले नर्सिंग होम को खाली कराने के लिए मजबूर कर दिया. इसके अलावा पास के बे काउंटी जेल में 1,300 कैदियों को अन्य सुविधाओं तक पहुंचाने के लिए बसें तैयार रखी गईं हैं. अगर जरूरत पड़ती है तो जेल के कैदियों को वहां से निकाला जाएगा. 2050 तक 30 फीसदी तक बढ़ जाएंगी जंगलों में लगने वाली आग की घटनाएं
फ्लोरिडा वन विभाग के मुताबिक 2018 में आए तूफान माइकल ने बे काउंटी में 7.2 करोड़ टन पेड़ों को नष्ट कर दिया था, जिसने आग को और भड़काने का काम किया है. स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि वे नहीं जानते कि निवासी कब अपने घरों को लौट पाएंगे. काउंटी प्रशासन ने बेघर लोगों के लिए एक शिविर खोला है.
बे काउंटी के शेरिफ टॉमी फोर्ड ने कहा, "मुझे पता है कि घर नहीं लौट पाने के कारण लोगों में निराशा है. लेकिन हमारे पास ऐसी चीजें हैं जो एक मिनट के नोटिस पर सामने आ गई हैं और वास्तव में समस्याओं का कारण बनीं. हम जितनी जल्दी हो सके, लोगों को जाने देंगे."
शुक्रवार से ही एडकिंस एवेन्यू में आग लगी हुई है और मजबूरन कम से कम 600 घरों को खाली कराना पड़ा है. रविवार को 35 प्रतिशत आग पर काबू पा लिया गया था.
शुक्रवार से फ्लोरिडा फॉरेस्ट सर्विस के हेलीकॉप्टर 4,68,000 लीटर से अधिक पानी एडकिंस एवेन्यू की आग पर गिरा चुके हैं, और 25 बुलडोजर आग को आगे बढ़ने से रोकने के लिए मिट्टी हटा रहे हैं.
एए/वीके (एपी, एएफपी)
यूक्रेन पर हमले का असर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ता जा रहा है. चीन के ताइवान पर हमले की आशंकाएं तेज हो गई हैं और तैयारियां भी शुरू कर दी गई हैं.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट-
ऑस्ट्रेलिया के रक्षा मंत्री पीटर डटन ने संकेत दिए हैं कि चीन यदि ताइवान की ओर आक्रामक होता है तो उनका देश हथियारों से ताइवान की मदद कर सकता है. यह कुछ वैसा ही होगा, जैसे फिलहाल यूक्रेन को हथियारों द्वारा मदद की जा रही है. यह चीन द्वारा ताइवान पर नियंत्रण के लिए बल प्रयोग की आशंकाएं बढ़ने की ओर बड़ा संकेत है.
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने साफ कहा है कि यूक्रेन विवाद की आंच का हिंद-प्रशांत क्षेत्र में पहुंचना तय है. उनका इशारा चीन द्वारा ताइवान पर हमला करने की संभावना की ओर था. उन्होंने कहा कि दुनिया की नियम-आधारित व्यवस्था खतरे में है और उस पर हमला हो रहा है.
‘बदल रही है दुनिया की व्यवस्था'
ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री ने कहा, "हम एक ऐसी दुनिया बनने के खतरे से जूझ रहे हैं जहां सिद्धांत, जवाबदेही और पारदर्शिता के लिए कोई जगह नहीं होगी और सिर्फ मोलभाव चलेगा. जहां दादागीरी और धमकियों या फिर आर्थिक प्रलोभनों के जरिए संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और स्वतंत्रता को झुकाया जाएगा."
इससे पहले ऑस्ट्रेलियाई रक्षा मंत्री ने ताइवान को हथियारों से मदद का संकेत देते हुए कहा कि हम वो सब करेंगे जो चीन को हमारे इलाके में आक्रामक होने से रोकने के लिए जरूरी है. जब पत्रकारों ने पूछा कि क्या ऑस्ट्रेलिया ताइवान को उसी तरह हथियार देगा, जैसे यूक्रेन को दे रहा है, तो पीटर डटन ने कहा, "मैं साफ कर दूं कि हम चाहते हैं हमारे क्षेत्र में शांति रहे. लेकिन अगर आप कमजोर हैं और शांति के लिए आग्रह कर रहे हैं तो शांति नहीं मिलेगी." पीटर डटन ने कहा कि चीन परमाणु हथियार बना रहा है और वे विशाल फौज जुटा रहा है.
ऑस्ट्रेलिया ने पिछले साल ही ब्रिटेन और अमेरिका के साथ मिलकर एक सैन्य संगठन बनाया है जिसके तहत उसे परमाणु पनडुब्बियां मिलेंगी. 2040 तक ये पनडुब्बियां ऑस्ट्रेलिया में तैनात होने की संभावना है. ऑस्ट्रेलिया ने अपने पूर्वी तट पर, यानी सिडनी के पास इनके लिए एक नया बेस बनाने का भी ऐलान किया है.
‘विदेशी दखल बर्दश्त नहीं होगा'
शनिवार को एक संबोधन में चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग ने कहा था कि देश राष्ट्रपति शी जिनपिंग के उस सपने को पूरा करेंगे कि सेना को नए युग की सैन्य रणनीति के लिए तैयार करना है. हालांकि उन्होंने ताइवान के लेकर चीन की रणनीति में किसी तरह के बदलाव का संकेत नहीं किया.
ली ने कहा, "चीन ताइवान खाड़ी में विकास और चीनी एकीकरण की दिशा में शांतिपूर्ण कदम बढ़ाएगा. हम ताइवान की आजादी जैसे अलगाववादी गतिविधियों का सशक्त विरोध करते हैं और किसी भी तरह की विदेशी दखलअंदाजी का विरोध करते हैं.”
चीन ने शनिवार को ही ऐलान किया था कि वह अपने रक्षा बजट में 7.1 प्रतिशत की वृद्धि कर 2022 में उसे 229 अरब डॉलर यानी लगभग 1756 अरब रुपये कर रहा है. अमेरिका के बाद चीन का रक्षा बजट दुनिया में सबसे ज्यादा है. पिछले साल ही उसने इस बजट में 6.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी की थी.
इस साल अमेरिका ने अपने रक्षा बजट में सिर्फ दो प्रतिशत की वृद्धि की है और वह 768.2 अरब डॉलर रक्षा मद में खर्च कर रहा है. चीन की सरकार का कहना है कि उसका खर्च अपने सैनिकों की भलाई के लिए होगा.
चीन के हमले का खतरा
रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले के बाद दुनिया के कूटनीतिक और रणनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि चीन भी इसी तर्ज पर ताइवान पर हमला कर सकता है. पिछले महीने जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूसी नेता व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की थी तो उनके द्वारा नाटो प्रसार के विरोध का समर्थन किया था.
24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया था और उसी दिन ताइवान के एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन में आठ चीनी जेट लड़ाकू विमान ने उड़ान भरी थी. ऐसा चीन पिछले साल भी कई बार कर चुका है, जिसका ताइवान ने विरोध किया था और हमले की आशंका जताई थी.
पिछले महीने जर्मनी के म्यूनिख में हुए सुरक्षा सम्मेलन में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने एक ज्यादा दुस्साहसी चीन के प्रति दुनिया को आगाह किया था. 19 फरवरी को, यानी यूक्रेन पर हमले से पहले जॉनसन ने कहा था, "अगर यूक्रेन खतरे में है, तो उसकी गूंज पूरी दुनिया में सुनाई देगी. यह गूंज पूर्वी एशिया में भी सुनाई देगी. यह गूंज ताइवान में भी सुनाई देगी. लोग इस नतीजे पर पहुंचेंगे कि आक्रामकता फलदायी होती है और जिसकी लाठी होगी, उसी की भैंस होगी.” (dw.com)
लीव (यूक्रेन), सात मार्च। रूसी सेना के यूक्रेन में गोलाबारी तेज करने के बीच युद्धग्रस्त देश के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने पश्चिमी देशों से रूस के खिलाफ प्रतिबंध और कड़े करने का आग्रह किया है।
जेलेंस्की ने रूसी रक्षा मंत्रालय की घोषणा का जवाब नहीं देने के लिए रविवार शाम एक वीडियो संदेश में पश्चिमी नेताओं की आलोचना की। रूसी रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि वह यूक्रेन के सैन्य-औद्योगिक परिसर पर हमला करेगा और उसने इन रक्षा संयंत्रों के कर्मचारियों को काम पर नहीं जाने को भी कहा है।
जेलेंस्की ने कहा, ‘‘ मैंने एक भी विश्व नेता की इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं सुनी। आक्रमण करने वाले का दुस्साहस दिखाता है कि मौजूदा प्रतिबंध पर्याप्त नहीं हैं।’’
जेलेंस्की ने ऐसे अपराधों का आदेश देने और उन्हें अंजाम देने वालों को न्याय के कटघरे में लाने के लिए एक ‘‘प्राधिकरण’’ बनाने का आह्वान किया।
उन्होंने कहा, ‘‘कब्जा करने वालों की हिम्मत देखिए, जो इस तरह के नियोजित अत्याचारों की घोषणा कर सकते हैं।’’
रूसी रक्षा मंत्रालय ने रविवार को घोषणा की थी कि उसकी सेना यूक्रेन के सैन्य-औद्योगिक परिसर पर सटीक हथियारों से हमला करेगी।
रूस की सरकारी समाचार एजेंसी ‘तास’ ने एक खबर में रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता इगोर कोनाश्नेकोव के हवाले से कहा था, ‘‘ हम यूक्रेन के रक्षा उद्योग संयंत्रों के सभी कर्मियों से आग्रह करते हैं कि वे उद्यम परिसरों से बाहर चले जाएं।’’ (एपी)
यूक्रेन में जारी संघर्ष के दौरान रूस पर आम नागरिकों को निशाना बनाने का आरोप लग रहा है. इन आरोपों के बाद रूस पर संभावित युद्ध अपराध के मामले की जांच शुरू हुई है.
इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के मुख्य अभियोजक ने कहा कि कथित युद्ध अपराधों, मानवता के ख़िलाफ़ अपराध और नरसंहार के सबूत एकत्रित किए जा रहे हैं. इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ने यह कदम 39 देशों द्वारा जांच की मांग उठाए जाने के बाद उठाया है.
वहीं, दूसरी ओर रूस ने आम नागरिकों को निशाना बनाने के आरोपों से इनकार किया है. लेकिन बड़ा सवाल यही है कि रूस पर जिसका आरोप लग रहा है वह युद्ध अपराध क्या हैं?
युद्ध अपराध को परिभाषित करने वाले क़ानून जिनेवा कन्वेंशन कहलाते हैं. हालांकि, यूगोस्लाविया और रवांडा में इंटरनेशनल क्रिमिनल ट्रायब्यूनल के तहत युद्ध अपराध के मामलों की जांच हुई थी.
जिनेवा कन्वेंशन क्या है?
अब सवाल यह भी है कि जिनेवा कन्वेंशन क्या है? यह अंतराष्ट्रीय संधियों की एक सिरीज़ है, जो किसी भी युद्ध में मानवीय उपचार के लिए अंतरराष्ट्रीय क़ानूनी मानकों को निर्धारित करती है.
पहले तीन कन्वेंशन युद्ध में लड़ने वाले सैनिकों और युद्ध बंदियों की सुरक्षा के लिए प्रावधान निर्धारित करते हैं जबकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद चौथा कन्वेंशन शामिल किया गया जिसके तहत युद्ध क्षेत्र के आम नागरिकों की सुरक्षा की जाती है. 1949 के जिनेवा कन्वेंशन को रूस सहित संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों ने अनुमोदित किया था.
- जानबूझ कर की गई हत्या
- अत्याचार या अमानवीय व्यवहार
- जानबूझ कर गंभीर शारीरिक चोट या स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाना
- संपत्ति का व्यापक विनाश, जिसकी सैन्य ज़रूरत नहीं होने पर भी संपत्ति का व्यापक विनाश और उपयोग
- बंधक बनाना
- गैर-क़ानूनी निर्वासन या गैर-क़ानूनी कारावास
1998 का रोम अधिनियम भी सशस्त्र संघर्ष के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संधि है. इसे अंतरराष्ट्रीय क़ानून और उसके उल्लंघन को समझने के लिए उपयोगी गाइड माना जाता है. इसके मुताबिक युद्ध अपराध है-
- जानबूझ कर आम लोगों पर सीधे हमले करना या युद्ध में जो लोग शामिल नहीं हैं उन पर जानबूझ कर हमले करना.
- जानबूझ कर ऐसे हमला करना जिसके बारे में पता हो कि इन हमलों से आम लोगों की मौत हो सकती है या उन्हें नुकसान पहुंच सकता है.
- बिना रक्षा कवच वाले क़स्बों, गांवों, आवासों या इमारतों पर किसी भी तरह से हमला या बमबारी.
- इसमें कहा गया है कि अस्पताल, धार्मिक आस्था या शिक्षा से जुड़ी इमारतों को जानबूझ कर निशाना नहीं बनाया जा सकता है.
- यह कुछ हथियारों के साथ-साथ ज़हरीली गैसों के उपयोग पर भी प्रतिबंध लगाता है.
युद्ध अपराध की सुनवाई कैसे होती है?
रोम अधिनियम 1998 के तहत इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट की स्थापना 1998 में नीदरलैंड्स के हेग में हुई थी. यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय को नुकसान पहुंचाने के सबसे गंभीर अपराधों के अभियुक्तों पर मुक़दमा चलाने वाली और सुनवाई करने वाली एक स्वतंत्र संस्था है.
यह युद्ध अपराधों, नरसंहार, मानवता के ख़िलाफ़ अपराध और आक्रामकता के अपराध की जांच करता है.
कोई भी देश अपनी अदालतों में संदिग्ध अभियुक्तों पर मुक़दमा चला सकती है. आईसीसी केवल उस क्षेत्राधिकार का प्रयोग कर सकता है जहां कोई देश ऐसा करने के लिए तैयार नहीं हैं या नहीं कर सकते हैं. यह 'न्याय के लिए अंतिम उपाय की व्यवस्था' है.
लेकिन इस अदालत के पास अपना पुलिस बल नहीं है और अभियुक्तों की गिरफ़्तारी के लिए वह संबंधित देश के सहयोग पर निर्भर है.
इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के 123 सदस्य देश हैं, रूस और यूक्रेन इसके सदस्य नहीं हैं. लेकिन यूक्रेन ने अदालत के न्याय क्षेत्र को स्वीकार किया है, यानी अब इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट यूक्रेन में कुछ निश्चित कथित अपराधों की जांच कर सकती है.
अमेरिका, चीन और भारत भी इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के सदस्यों में शामिल नहीं हैं.
युद्ध अपराध के आरोपों की पहले भी जांच हुई है?
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान लाखों लोग मारे गए थे. जर्मनी की नाज़ी सेना द्वारा सबसे ज़्यादा यहूदी लोगों को निशाना बनाया गया था. इसके बाद दोनों तरफ़ से आम नागरिकों और युद्ध बंदियों को बहुत अत्याचार का सामना करना पड़ा था.
मित्र देश की सेना ने बाद में उन लोगों पर मुक़दमे चलाए जिन्हें वे हालात के लिए ज़िम्मेदार मान रहे थे. 1945 और 1946 की न्यूरमबर्ग की सुनवाई के दौरान 10 नाज़ी नेताओं को मौत की सज़ा सुनाई गई थी. इसी तरह की प्रक्रिया 1948 में टोक्यो में अपनायी गई थी, तब जापानी सेना के सात कमांडरों को फांसी दी गई थी.
अनिवार्य तौर पर, इन सुनवाइयों से बाद में भी सज़ा देने का चलन कायम हुआ. 2012 में, कांगो के सरदार थॉमस लुबंगा आईसीसी द्वारा दोषी ठहराए जाने वाले पहले व्यक्ति थे, जब उन्हें 2002 और 2003 में अपनी विद्रोही सेना में बच्चों को सैनिक के रूप में भर्ती करने और उनके इस्तेमाल करने का दोषी पाया गया था. उन्हें 14 साल की सज़ा सुनाई गई थी.
पूर्व यूगोस्लाविया के लिए इंटरनेशनल क्रिमिनल ट्रायब्यूनल संयुक्त राष्ट्र की संस्था थी. 1993 से 2017 तक चली इस संस्था का गठन यूगोस्लाव युद्ध के दोषियों को सज़ा देने के लिए हुई थी.
इसने बोस्नियाई सर्ब के पूर्व नेता रादोवन कराडज़िक को 2016 में युद्ध अपराधों, नरसंहार, संघर्ष और मानवता के ख़िलाफ़ अपराधों में भूमिका के लिए दोषी क़रार दिया गया था. बोस्नियाई सर्ब बलों के सैन्य कमांडर रात्को मलाडिक को भी 2017 में इन्हीं अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था.
अन्य एडहॉक अदालतों ने भी रवांडा और कंबोडिया में नरसंहार और मानवता के ख़िलाफ़ अपराधों के लिए व्यक्तियों पर मुक़दमा चलाया है.
इंटरनेशनल ट्रायब्यूनल फॉर रवांडा नरसंहार के साधन के रूप में बलात्कार के इस्तेमाल की पहचान करने वाला पहला संस्थान था.
रूस पर क्या आरोप हैं?
पिछले कुछ दिनों में कीएव, ख़ारकीएव, खेरसोन पर काफ़ी हमले हुए हैं.
रूस के ख़ारकीएव पर हवाई हमले के बाद आम लोगों को निशाना बनाए जाने को लेकर यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने रूस पर युद्ध अपराध का आरोप लगाया है.
रूस पर ख़ारकीएव के अंदर क्लस्टर बम के इस्तेमाल करने का आरोप भी है. क्लस्टर बम ऐसे हथियार हैं जिसके इस्तेमाल से छोटे छोटे हथियारों के इस्तेमाल से हमला किया जाता है.
2008 में कलस्टर युद्ध सामग्रियों के इस्तेमाल पर हुई कन्वेंशन के बाद कई देशों में इस बम के इस्तेमाल पर पाबंदी है. लेकिन समझौते में शामिल नहीं होने के चलते ना तो रूस और ना ही यूक्रेन में इसके इस्तेमाल पर पाबंदी है.
मानवाधिकार समूहों और संयुक्त राष्ट्र में यूक्रेन के राजदूत ने भी यूक्रेन के उत्तर-पूर्वी शहर ओख़्तरका पर हमले में वैक्यूम बम का इस्तेमाल करने का आरोप रूस पर लगाया है.
वैक्यूम बम एक थर्मोबेरिक हथियार है जो वाष्पीकृत ईंधन के बादल को प्रज्वलित करके भारी विनाश का कारण बन सकता है.
उनके उपयोग पर विशेष रूप से प्रतिबंध लगाने वाला कोई अंतरराष्ट्रीय कानून नहीं है, लेकिन यदि कोई देश उनका उपयोग निर्माणाधीन क्षेत्रों, स्कूलों या अस्पतालों में नागरिक आबादी को लक्षित करने के लिए करता है, तो उसे 1899 और 1907 के हेग सम्मेलनों के तहत युद्ध अपराध का दोषी ठहराया जा सकता है.
हालांकि पुतिन प्रशासन ने युद्ध अपराध करने या क्लस्टर और वैक्यूम बम का उपयोग करने से इनकार किया है और इन आरोपों को फ़ेक न्यूज़ कहा है.
देश के रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु ने कहा, 'हमले केवल सैन्य ठिकानों पर और विशेष रूप से उच्च-सटीकता वाले हथियारों से किए गए हैं.' (bbc.com)
-जोएल गुंटर
यूक्रेन के बंदरगाह शहर मारियुपोल में शनिवार की सुबह संघर्ष विराम का ऐलान किया गया. यहां फंसे नागरिकों के बाहर निकलने का यह अच्छा मौका था. शहर पर रूसी सेना की भारी बमबारी हो रही थी और यहां लगभग दो लाख लोगों के फंसे होने का अंदेशा था.
जैसे ही संघर्ष विराम का ऐलान हुआ, नगर प्रशासन ने लोगों को निकालने लिए फ़टाफ़ट 50 बसों का इंतज़ाम कर लिया. लोग भी अपने घरों से निकल कर सिटी सेंटर पहुंचने लगे. बसों को यहीं से रवाना होना था.
लेकिन इसके दो घंटे से भी कम समय में रूसी सेना ने फिर से आवासीय इलाकों पर गोले बरसाने शुरू कर दिए. बाद में रूस ने कहा कि यह संघर्ष विराम उसने नहीं यूक्रेनियों ने तोड़ा है.
दादा-दादी की देखभाल कर रहे नौजवान की आपबीती
मारियुपोल में पिछले पांच दिन से ना पानी है और ना बिजली और ना सफाई की व्यवस्था. खाना और पानी तेज़ी से खत्म हो रहा है.
अपने दादा-दादी की देखभाल कर रहे 27 साल के आईटी डेवलपर मैक्सिम ने बीबीसी को बताया कि किस तरह शनिवार का दिन उनके लिए पहले उम्मीद की तरह आया और फिर निराशा में खत्म हो गया.
उन्होंने कहा, ''हमने आज यहां से निकलने की कोशिश की थी. हमें संघर्ष विराम के दौरान निकलना था, जब गोलीबारी न हो रही हो. हमने सुना कि इस दौरान हम यहां से निकल सकते हैं.''
मैक्सिम ने कहा, ''जितनी जल्दी हो सके मैंने अपने और दादा-दादी के लिए चार बैग में गर्म कपड़े और खाना भर लिया. घर में जितना पानी बचा हुआ था उसे भी ले लिया. मैंने सारी चीजों को अपनी कार में रख दिया.''
''मेरे दादा-दादी उम्र के आठवें दशक में हैं इसलिए उनके लिए यह सब करना मुश्किल था. मैं ही यह सारा सामान छह मंज़िली इमारत की सीढ़ियों से लेकर उतरा. सारी चीज़ें कार में रखीं. अभी इमारत में लिफ्ट नहीं चल रही है. ''
''लेकिन जैसे ही मैं कार स्टार्ट करने वाला था, बमबारी दोबारा शुरू हो गई. मैंने नज़दीक ही विस्फोट की आवाज़ सुनी. जितनी जल्दी हो सके मैं सारी चीज़ें लेकर ऊपर भागा. अपने अपार्टमेंट में पहुंच कर मैंने देखा कि शहर से धुएं के गुबार उठ रहे हैं. यह धुआं हाईवे से जेपोरिझिया की ओर बढ़ रहा था. माना जा रहा था कि लोग इधर ही भागेंगे.''
निकलने की आस में सिटी सेंटर पहुंचे लोग बमबारी में फंसे
मैक्सिम के मुताबिक वह अब भी अपने दादा-दादी के अपार्टमेंट में ही हैं. उन्होंने बताया, ''शनिवार को दिन-भर बमबारी और विस्फोट होते रहे. लेकिन अब अपार्टमेंट में हम तीनों के अलावा और 20 लोग आ चुके हैं.''
मैक्सिम ने बताया, ''कई लोग यह सुन कर सिटी सेंटर पहुंचे थे कि संघर्ष विराम का ऐलान हो चुका और यहां से बसें उन्हें सुरक्षित जगहों की ओर ले जाएंगी. रूसी बमबारी से वे बच जाएंगे. लेकिन जब दोबारा बमबारी शुरू हुई तो वे फंस गए. रूसी सेना के दोबारा हमला शुरू करने की वजह से वे अपनी छिपने की जगहों पर नहीं लौट सके. '
मैक्सिम ने कहा, ''इन हालात को देखते हुए हमने कई लोगों को अपने अपार्टमेंट में बुला लिया. ये सभी लोग शहर के उत्तरी इलाके के रहने वाले हैं. उन्होंने बताया कि उनका इलाका हमले में बुरी तरह ध्वस्त हो चुका है. मकानों में आग लगी हुई है. आग बुझाने वाला भी कोई नहीं है. शहर की सड़कों पर लाशें बिखरी हुई हैं और उन्हें वहां से हटाने वाला भी कोई नहीं है.''
''मैं पड़ोस के तीन लोगों को तो जानता हूं लेकिन बाकियों के बारे में नहीं जानता. इनमें सबसे बुजुर्ग एक महिला हैं. उनकी उम्र 70 साल की है. सबसे कम उम्र का एक बच्चा है. दो बिल्लियां, एक तोता और एक कुत्ता भी साथ है. ''
''हम लोगों ने फर्श पर महिलाओं और बच्चों के सोने का इंतज़ाम किया है. अतिरिक्त गद्दे नहीं थे इसलिए हमने कुछ कालीनों और कपड़ों को ही फर्श पर बिछा दिया. ''
मैक्सिम ने कहा, ''हम लोगों के पास बोतलबंद पानी खत्म हो गया है. नलों का पानी भी बंद हो गया है. एक मात्र गैस की सप्लाई चालू है. नहाने का पानी गर्म कर इसे पीने लायक बना सकते हैं.''
मैक्सिम ने बताया, ''आज पुलिस ने स्टोर खोल दिए और लोगों को कहा कि यहां से सारी चीजें ले जाएं. हमारे पड़ोसी किसी तरह वहां से कुछ कैंडी, मछली और कोल्ड ड्रिंक ला सके.''
'संघर्ष विराम एक धोखा था'
मैक्सिम कहते हैं, ''संघर्ष विराम एक धोखा था. एक पक्ष ने कभी भी फायरिंग रोकने की प्लानिंग नहीं की थी. अगर वह कहते हैं कि कल (रविवार) को संघर्ष विराम है तो हमें यहां से निकलने की कोशिश करनी होगी लेकिन हमें यह पता नहीं क्या वास्तव में ऐसा होगा. कहीं दोबारा गोलाबारी न होने लगे. अच्छा है हम यह यहां छिपे रह कर अच्छी स्थिति में हैं.''
मैक्सिम ने कहा, ''जब तक मेरे फोन में बैटरी है, तब तक आप मुझे कॉल कर सकते हैं. लेकिन मुझे पता नहीं यह बैटरी कब तक चलेगी. मैं निराश हो गया हूं. आज के बाद मुझे हर दिन खुद को और पड़ोसियों को बचाए रखने के लिए संघर्ष करना होगा.''
''इसके बाद मुझे पता नहीं कि क्या होगा. हम बहुत थक गए हैं और हमें बाहर निकलने का रास्ता भी नज़र नहीं आ रहा है. '' (bbc.com)
यूक्रेन से जुड़े वीडियोज़ के लिए 20 साल की मार्ता वसुता अब टिकटॉक पर जाना पहचाना नाम हैं. आमतौर पर वो टिकटॉक का वैसे ही इस्तेमाल किया करती थीं, जैसा उनकी उम्र के दूसरे युवा करते हैं.
पिछले हफ्ते तक उनके टिकटॉक प्रोफाइल पर कुछ हज़ार फॉलोअर ही थे. वो आमतौर पर अपनी पसंद की म्यूज़िक पर लिप सिंक वीडियो, नाइट आउट के वीडियोज़ ही डाला करती थीं.
रूस ने जब यूक्रेन पर हमला किया, उस वक्त मार्ता ब्रिटेन में अपनी यूनिवर्सिटी के दोस्तों से मिलने आई थीं.
ऐसे में कीएव पर हुए हमले की ख़बरों को देखकर वो डर गई थीं. इसके बाद मार्ता ने जो किया, उसने उनको रातों-रात टिकटॉक इंफ़्लूएंसर बना दिया.
यूक्रेनियन, रशियन और अंग्रेज़ी बोलती हैं मार्ता
23 फ़रवरी के बाद से यूक्रेन पर चल रहे संघर्ष से जुड़े जो वीडियो उन्होंने शेयर किए हैं उन पर करोड़ों व्यूज़ हैं. टिकटॉक पर बहुत सारे लोग, ख़ासकर युवा यूक्रेन से जुड़ी ख़बरों और वीडियोज़ के लिए मार्ता पर भरोसा दिखा रहे हैं. वो कहती हैं, "मैं लोगों को सिर्फ़ समझाना चाहती हूं कि यूक्रेन केवल यूक्रेन के लोगों की समस्या नहीं है, ये हर किसी की समस्या है.''
जैसे ही उन्हें यूक्रेन पर हमले की ख़बर मिली वो टेलीग्राम मैसेज़िंग ऐप पर यूक्रेन के चैनलों को स्क्रॉल करने लगीं. टेलीग्राम मैसेज़िंग ऐप यूक्रेन में काफ़ी पॉपुलर है.
इन चैनल्स पर यूक्रेन के लोग वीडियो अपलोड कर रहे थे. मार्ता ऐसे वीडियो को सेव करने लगीं. वो कहती हैं, ''मेरा फ़ोन इन वीडियोज़ की वजह से पूरी तरह भर गया, सभी ख़बरें मुझे मिल रही थीं.''
इसके बाद मार्ता इन वीडियोज़ की सत्यता की पुष्टि में जुट गईं. इनसे जुड़े कमेंट्स को देखने लगीं. मार्ता कहती हैं, ''मैं ये देख सकती थी कि लोग कह रहे हैं कि ये सच है, वो कह रहे हैं कि ऐसा ही अभी वहां चल रहा है.''
फिर मार्ता ने टिकटॉक पर वीडियोज़ को पोस्ट करना शुरू कर दिया और ऐसा कर वो सो गईं. वो कहती हैं, ''जब मैं सुबह उठी और टिकटॉक देखा तो उन वीडियोज़ पर पहले से ही 90 लाख व्यूज़ थे.''
मानवीय संकट के दौरान सोशल मीडिया का इस्तेमाल कैसे किया जाता है इस पर सैम ग्रैगरी नज़र रखते हैं. उनका कहना है कि टिकटॉक का एल्गोरिथम टॉपिक बेस्ड होता है. सैम कहते हैं, ''आपकी रुचि के हिसाब से कंटेंट परोसे जाते हैं. ऐसे में अगर आप यूक्रेन में रुचि दिखाते हैं तो आपको यूक्रेन या यूक्रेन से जुड़े कंटेंट ज़्यादा देखने को मिलेंगे.''
इस तरह के अल्गोरिथम ने मार्ता जैसे कंटेंट क्रिएटर्स को मदद की है और वो रातों-रात इंफ़्लूएंसर बनने की तरफ़ बढ़े हैं. मार्ता के वीडियोज़ को 17 मिलियन से अधिक लाइक्स मिल चुके हैं और अब उनके 200,000 फॉलोअर्स हैं.
अब भी उनको इन नंबर्स पर भरोसा नहीं हो रहा है, वो अपने फोन से पोस्ट पर मिले रिएक्शंस के नंबर पढ़ती हैं और कहती हैं, ''इन नंबर्स को मैं समझ नहीं पा रही हूं.''
हालांकि, विशेषज्ञों ने ये चेतावनी दी है कि टिकटॉक ग्राउंड से आने वाले वीडियोज़ के लिए अच्छी जगह हो सकती है लेकिन इस प्लेटफ़ॉर्म पर ग़लत जानकारियां भी मिलती हैं.
मार्ता ये मानती हैं कि कंटेंट को वेरिफ़ाई करने की कोशिश करना एक मुश्किल काम हो सकता है. भले ही कोई वीडियो यूक्रेन का ही क्यों न हो, लोग यूक्रेनी भाषा ही क्यों न बोल रहे हों, फिर भी वीडियोज़ देश के पूर्वी हिस्से में 2014 से शुरू हुए लंबे संघर्ष का हो सकता है. और वो ये भी मानती हैं कि वीडियो वेरिफाई करने में वो विशेषज्ञ नहीं हैं.
मार्ता ने जो वीडियोज़ पोस्ट किए हैं उनमें से कुछ की बीबीसी न्यूज़ समेत मीडिया आउटलेट्स ने पुष्टि की है.
मार्ता का मानना है कि कुछ लोग परंपरागत न्यूज़ आउटलेट की बजाए उनके जैसे सोशल मीडिया सोर्स से ख़बर को लेना पसंद करते हैं. वो कहती हैं, ''कुछ लोग पेशेवर पत्रकारों, यहां तक कि वेरिफाइड सोर्सेज़ पर भी भरोसा नहीं करते हैं.''
उनके लिए यूक्रेन की एक सामान्य युवा महिला होना, उन्हें बहुत सारे दर्शकों के लिए भरोसेमंद बनाता है. वो कहती हैं, "इससे वो मुझपर और मेरे वीडियोज़ पर अधिक भरोसा करते हैं.''
मार्ता का परिवार यूक्रेन में हैं और उनकी सुरक्षा को लेकर वो चिंतित हैं. लेकिन ऐसे वीडियोज़ को शेयर करके वो मानती हैं कि वो दुनिया और ख़ासकर युवा दर्शकों की मदद कर रही हैं, ये देखने में कि असल में ग्राउंड पर क्या हो रहा है.
अब ये देखते हुए कि वो ब्रिटेन में फंसी हुईं हैं तो टिकटॉक ही वो तरीका है जिससे वो कुछ कर पा रही हैं. (bbc.com)
सैन फ्रांसिस्को, 6 मार्च | यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोदिमिर जेलेंस्की ने टेस्ला के संस्थापक और सीईओ एलन मस्क को युद्ध के बाद अपने देश आने का न्योता दिया है। मीटिंग का एक वीडियो जेलेंस्की के इंस्टाग्राम पर पोस्ट किया गया था।
जेलेंस्की ने ट्विटर पर पोस्ट किया, "मैंने एलन मस्क से बात की। मैं शब्दों और कार्यो के साथ यूक्रेन का समर्थन करने के लिए उनका आभारी हूं। अगले सप्ताह हमें नष्ट किए गए शहरों के लिए स्टारलिंक सिस्टम का एक और बैच प्राप्त होगा। संभावित अंतरिक्ष परियोजनाओं पर चर्चा की। लेकिन मैं युद्ध के बाद इस बारे में बात करूंगा।"
मस्क ने शनिवार को कहा कि उनकी रॉकेट कंपनी स्पेसएक्स का सैटेलाइट इंटरनेट डिवीजन स्टारलिंक रूसी समाचार स्रोतों को ब्लॉक नहीं करेगा।
मस्क ने लिखा, "स्टारलिंक को कुछ सरकारों (यूक्रेन नहीं) ने रूसी समाचार स्रोतों को ब्लॉक करने के लिए कहा है। वह अभिव्यक्ति की आजादी के समर्थक हैं और जब तक बंदूक के दम पर नहीं कहा जाएगा, वह रूसी संगठनों को ब्लॉक नहीं करेंगे।"
इस बीच, एप्पल, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, ट्विटर, यू-ट्यूब, मेटा और कई अन्य तकनीकी प्लेटफार्मो सहित टेक दिग्गजों ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के मद्देनजर आरटी और स्पुतनिक पर पहले ही प्रतिबंध लगा दिया है। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, छह मार्च। अपने देश के अस्तित्व के लिए लड़ रहे यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने अमेरिका से और लड़ाकू विमान भेजने और रूस से तेल आयात कम करने की ‘भावुक’ अपील की है ताकि उनका देश रूसी सैन्य कार्रवाई का मुकाबला कर सके।
जेलेंस्की ने शनिवार को अमेरिकी सांसदों को निजी तौर पर किए गए वीडियो कॉल में कहा कि संभव है कि वे उन्हें आखिरी बार जिंदा देख रहे हों। यूक्रेन के राष्ट्रपति राजधानी कीव में ही मौजूद हैं जिसके उत्तर में रूसी बख्तरबंद टुकड़ियों का जमावड़ा है।
सेना की हरे रंग की शर्ट में सफेद दीवार की पृष्ठभूमि में यूक्रेन के झंडे के साथ नजर आ रहे जेलेंस्की ने कहा कि यूक्रेन को अपनी हवाई सीमा की सुरक्षा करने की जरूरत है और यह या तो उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) द्वारा उड़ान वर्जित क्षेत्र लागू करने से या अधिक लड़ाकू विमानों के भेजे जाने से ही हो सकता है।
जेलेंस्की कई दिनों से उड़ान वर्जित क्षेत्र घोषित करने की मांग कर रहे हैं लेकिन नाटो इससे इंकार कर रहा है और उसका (नाटो) कहना है कि ऐसे कदम से रूस के साथ लड़ाई बढ़ सकती है।
जेलेंस्की ने करीब एक घंटे तक अमेरिका के 300 सांसदों और उनके स्टाफ से बातचीत की। यह बातचीत ऐसे समय में हुई है जब यूक्रेन के शहरों पर रूसी बमबारी जारी है और कई शहरों को उन्होंने घेर लिया है जबकि 14 लाख यूक्रेनियों ने पड़ोसी देशों में शरण ली है।
सीनेट में बहुमत के नेता चक शूमर ने कहा, ‘‘राष्ट्रपति जेलेंस्की ने हताश होकर गुहार लगाई है।’’
उन्होंने कहा कि जेलेंस्की चाहते हैं कि अमेरिका पूर्वी यूरोपीय साझोदारों से विमानों को भेज।
शूमर ने कहा, ‘‘ मैं वह सबकुछ करूंगा जो प्रशासन को उनके हस्तातंरण में मदद करने के लिए कर सकता हूं।’’ (एपी)
लवीव (यूक्रेन),छह मार्च। (एपी) रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने चेतावनी देते हुए कहा कि यूक्रेन का देश का दर्जा खतरे में है। उन्होंने पश्चिमी प्रतिबंधों को रूस के खिलाफ ‘‘युद्ध की घोषणा’’ करार देते हुए कहा कि कब्जे में आए बंदरगाह शहर मारियुपोल में आतंकी घटनाओं की वजह से संघर्षविराम भंग हुआ।
इस बीच, यूक्रेन के अधिकारियों ने दावा किया कि शनिवार को रूसी सेना ने मरियुपोल में बमबारी तेज कर दी और वह कीव के उत्तर स्थित चेरनीहीव के रिहायशी इलाकों में शक्तिशाली बम गिरा रही है।
पुतिन ने कहा, ‘‘जो वे (यूक्रेनी) कर रहे हैं और अगर उसे जारी रखा तो वे यूक्रेन के देश के दर्जे पर सवाल उठाने का आह्वान कर रहे हैं। अगर ऐसा होता है तो इसके लिए वे पूरी तरह से जिम्मेदार होंगे।’’
उन्होंने रूस की अर्थव्यस्था को नुकसान पहुंचाने और उसकी मुद्रा को कमजोर करने के लिए लगाए जा रहे प्रतिबंधों पर पश्चिमी देशों को आड़े हाथ लिया।
पुतिन ने रूसी विमानन कंपनी एयरोफ्लोट के फ्लाइट अटेंडेंट के साथ हुई मुलाकात में कहा, ‘‘लगाए जा रहे प्रतिबंध युद्ध की घोषणा के समान हैं।’’
वहीं, यूक्रेन के अधिकारियों ने दावा किया कि रूसी तोपखाने और विमानों ने बमबारी कर लोगों की निकासी के कार्य को बाधित किया जबकि पुतिन ने यूक्रेन पर इस प्रक्रिया को ध्वस्त करने का आरोप लगाया।
इलॉन मस्क ने संकेत दिया है कि वो यूक्रेन में इंटरनेट की सुरक्षा करेंगे और अगर अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन के ध्वस्त होकर धरती पर आ गिरने की नौबत आई तो वो दुनिया को भी बचाएंगे. लेकिन आखिर कैसे करेंगे?
डॉयचे वैले पर जुल्फिकार अबानी की रिपोर्ट-
यूक्रेन के उप प्रधानमंत्री मिखाइलो फेदोरोफ ने सोमवार को एक ट्वीट के जरिए स्टारलिंक के टर्मिनलों की खेप की आमद स्वीकार करते हुए आभार जताया. इलॉन मस्क का जवाब थाः "यू आर मोस्ट वेलकम.”
टोरंटो यूनिवर्सिटी में साइबरसुरक्षा से जुड़े एक वरिष्ठ शोधकर्ता जॉन स्कॉट-राइलटन ने भी तभी एक ट्वीट कियाः "अच्छा लगा देखकर. लेकिन ध्यान रहेः अगर #पुतिन #यूक्रेन के आसमान पर कब्जा जमा लेते हैं, तो यूजरों के अपलिंक ट्रांसमिशन, रूसी हवाई हमलों के लिए बीकन यानी संकेत-दीप की तरह काम करेंगे.”
15 बिंदुओं वाले एक थ्रेड में स्कॉट-राइलटन का ट्वीट पहला था.
रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रॉसकॉस्मॉस के प्रमुख के ट्वीटों की बौछार के बीच उपरोक्त ट्वीट आया था. वो ट्विटर पर छिड़ी उस लंबी बहस का हिस्सा था जो बृहस्पतिवार देर शाम शुरू हुई थी और सप्ताहांत तक चलती रही. स्पेकएक्स और स्टारलिंक के मुखिया इलॉन मस्क भी यूक्रेन के हालात पर जारी बहस में कूद पड़े.
रॉसकॉस्मॉस के प्रमुख दिमित्री रोगोजिन उन प्रतिबंधों पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे थे जो अमेरिका और कुछ यूरोपीय देशों ने, यूक्रेन पर युद्ध थोपने के विरोध में रूस पर लगाए गए हैं.
इन प्रतिबंधों में एक ओर खेल गतिविधियों और मुकाबलों का बहिष्कार या उन्हें रूस से बाहर कराने जैसे कदम शामिल हैं तो दूसरी और आर्थिक चेतावनियां भी शामिल हैं. लेकिन इन प्रतिबंधों के दायरे में अब बाहरी अंतरिक्ष भी आ गया है.
रोगोजिन के ट्वीटों से मचा बवाल
ट्वीट पर भी युद्ध छिड़ गया. रोगोज़िन की प्रतिक्रियाओं के अलग अलग, सही-गलत बहुत से मायने निकाले जा रहे हैं. उदाहरण के लिए, उन्होंने अपने ट्विटर संदेशो में कहा है कि यूरोप, एशिया, और अमेरिका अंतरिक्ष में रूस के सहयोग के बिना कुछ नहीं कर सकते हैं. हमने रोगोजिन के ट्वीटों का अनुवाद किया है. पूरी थ्रेड को तो प्रकाशित नहीं किया जा सकता है, फिर भी कुछ काबिलेगौर हिस्से यहां पेश हैं.
रोगोजिन ने एक संख्याबद्ध थ्रेड में पूछा, "क्या आप तमाम देशों पर अपने अंतरिक्षयानों को रूसी रॉकेटो से छोड़ने पर रोक लगाना चाहते हो, जबकि हमारे रॉकेट दुनिया में सबसे भरोसेमंद हैं?”
"आप तो पहले ही ये कर चुके हैं.”
"क्या आप अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में हमारे सहयोग को बर्बाद करना चाहते हैं.” "हमारे अंतरिक्ष यात्रियों और उनके प्रशिक्षण केंद्रों के बीच आदानप्रदान पर रोक लगाकर आप ये पहले ही कर चुके हैं.”
लेकिन यहीं पर "प्रतिभाशाली कारोबारी” पर हमले की शुरुआत हुई जिसमें उस कारोबारी को धरती की कक्षा को अंतरिक्ष के मलबे से प्रदूषित करने का आरोप लगाया गया. धरती के ऊपर इसी हिस्से में हमारे सबसे नजदीकी संचार उपग्रह उड़ रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन भी उसी इलाके में उड़ता है. ये ट्वीट आया नहीं कि मस्क भी बहस में कूद पड़े.
धरती से लेकर अंतरिक्ष तक पहुंची रूसी धमकियां
"अगर आप हमसे सहयोग बंद कर देंगे तो आईएसएस को बेकाबू होकर अमेरिका या यूरोप के ऊपर गिरने से भला कौन रोकेगा? स्टेशन भारत या चीन के ऊपर भी गिर सकता है. क्या आप उन्हें इस किस्म के खतरे में डालेंगे? अंतरिक्ष स्टेशन रूस के ऊपर से तो गुजरता नहीं है, खतरा आप लोगों पर ही है. क्या आप उसके लिए तैयार हैं? तो इसीलिए चूंकि रूस एक साझेदार है, मेरी सलाह है कि आप लोग गैरजिम्मेदार खिलाड़ी जैसा बर्ताव बंद करिए और इन अल्जाइमर की बीमारी सरीखे प्रतिबंधों को हटा दीजिए. ये मेरी दोस्ताना सलाह है.”
इलॉन मस्क कार निर्माता टेस्ला कंपनी, उपग्रह संचालित कंपनी स्टारलिंक और रॉकेट कंपनी स्पेसएक्स के मालिक हैं. (ये तो बस सबसे बड़ी तीन कंपनियां हैं उनकी). मस्क ने रूसी अधिकारी के ट्वीटों का जवाब स्पेसएक्स के लोगो की तस्वीर भेजकर दिया.
ट्विटर पर मस्क के फॉलोअरों ने जब उनसे पूछा कि क्या इसका मतलब ये है कि स्पेसएक्स, अंतरिक्ष स्टेशन को बचाएगा, तो मस्क ने एक शब्द में जवाब दियाः "हां.”
आखिर कंपनी के पास ऐसा कौनसा सटीक उपाय है जिससे वो सुनिश्चित करेगी कि अंतरिक्ष स्टेशन संभावित रूप से किसी रोज किसी सघन आबादी वाले क्षेत्र में न गिर पाए. ये अभी साफ नहीं है. लेकिन ये बात साफ है कि नासा और उसके सहयोगियों की मदद करने में, जिनमें रूसी स्पेस एजेंसी भी है- मस्क और दूसरी स्पेस कंपनियों के, अपने स्वार्थ हैं.
2031 में अंतरिक्ष स्टेशन की विदाई
नासा और उसे नियंत्रित करने वाली, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और उप राष्ट्रपति कमला हैरिस की सरकार ने, 2030 तक अंतरिक्ष स्टेशन अभियान जारी रखने की प्रतिबद्धता जताई है. जनवरी में प्रकाशित नासा की एक रिपोर्ट में रूस एक प्रमुख साझेदार के रूप में सूचीबद्ध है. लेकिन ये बात यूक्रेन पर रूसी हमले से पहले की है.
2030 के बाद, अंतरिक्ष स्टेशन पर चलने वाल आज सरीखे अभियान निजी सेक्टर को देने के लिए नियत किए गए हैं. माना जाता है कि स्पेसएक्स, एक्सियम, ब्लू ऑरिजिन, नैनोरैक्स और नॉर्थरोप ग्रुम्मान जैसी कंपनियां, नासा की मदद से धरती की कक्षा के निचले इलाकों में वाणिज्यिक ठिकाने विकसित करेंगी.
उसके बाद अंतरिक्ष स्टेशन को हटा दिया जाएगा- उसे धरती पर एक नियंत्रित ढंग से वापस लाया जाएगा- और वो आखिरकार प्रशांत क्षेत्र के उस हिस्से में उतारा जाएगा जिसे साउथ पैसेफिक ओशनिक अनइनहैबिटड एरिया (एसपीओयूआ) यानी दक्षिणी प्रशांत महासागरीय निर्जन क्षेत्र कहा जाता है. ये पॉइन्ट नेमो के आसपास का इलाका है.
इसी जगह पर अंतरिक्ष कार्यक्रम वाले देश अपने बेकार उपग्रहों और दूसरा अंतरिक्ष कबाड़ डालते हैं. वैसे ये इलाका बस कहने को ही निर्जन या उजाड़ है. जैसा कि हमने दूसरी रिपोर्ट में बताया है, एसपीओयूआ शोध से वंचित लेकिन विविधता और प्रचुर समुद्री जीवन वाला एक ठिकाना है.
अनुमान और अटकलें
अंतरिक्ष स्टेशन में लोगों और साजोसामान को पहुंचाने के लिए नासा ने स्पेसएक्स से सेवाएं ली हैं. ये एक प्रमुख वाणिज्यिक कंपनी है. और अंतरिक्ष स्टेशन के भविष्य के निर्माण में अपनी एक केंद्रीय भूमिका निभाने की तलबगार है.
एक्सियम को अंतरिक्ष स्टेशन में पहला प्राइवेट क्रू भिजवाने का ठेका मिला है. वो अपना खुद का अंतरिक्ष स्टेशन बनाने का संकल्प पहले ही कर चुकी है. उस अभियान के लिए उसे मौजूदा अंतरिक्ष स्टेशन और एक शुरुआती बिंदु की दरकार है.
लेकिन ये लोग जो भी हैं और भविष्य में ये जो भी करें, इंडस्ट्री में हर कोई जानता है कि स्पेस में भारी सामग्रियां ले जाना कितना कठिन है. बहुत संभव है कि कम से कम इनमें से कुछ कंपनियां अंतरिक्ष स्टेशन के हिस्सों को बचाए रखने की उम्मीद कर रहे हैं.
तो फिर खतरा क्या है?
एक सवाल फिर भी बचा रह जाता है कि क्या रोगोजिन की टिप्पणियां एक विस्तारित युद्ध के संदर्भ वाली धमकियां थी. लेकिन इसका जवाब इन पंक्तियों का लेखक न ही दे तो बेहतर.
अंतरिक्ष से धड़ाधड़ गिर रहे हैं स्पेसएक्स के सेटेलाइट
इसकी बजाय हम लोग यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी में रोगोजिन के समकक्ष योसेफ आश्चबाखेर का रुख करते हैं जिनका ट्विटर पर बस इतना ही कहना थाः "मौजूदा संघर्ष के बावजूद नागरिक अंतरिक्ष सहयोग एक पुल की तरह बना हुआ है. सहयोगी देशों और अन्य साझेदारों के साथ प्रतिबद्धता का सम्मान करते हुए, यूरोपीय स्पेस एजेंसी, ईएसए उनके सभी कार्यक्रमों से जुड़ी रहेगी जिनमें अंतरिक्ष स्टेशन और एक्सोमार्स लॉंच अभियान भी शामिल हैं. हम हालात पर नजर रखे हुए हैं.”
एक्सोमार्स पर पड़ने वाला अप्रत्यक्ष प्रभाव
यूक्रेन के हालात और रूस पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के बारे में ईएसए ने सोमवार को जारी एक आधिकारिक बयान में कहा कि वो "अपने सदस्य देशों के रूस पर लगाए गए प्रतिबंधो को पूरी तरह से लागू कर रही है.”
ईएसए ने कहा, फ्रेंच गयाना के कौरू में यूरोपीय स्पेसपोर्ट से अपने कर्मचारियों को हटाने के रूसी स्पेस एजेंसी के फैसले का "हम लोग संज्ञान लेते हैं.”
इस फैसले का असर आने वाले अंतरिक्ष अभियानों पर पड़ सकता है क्योंकि कई अंतरिक्ष यान ऐसे हैं जो लॉन्चिंग के लिए रूसी सोयुज रॉकेटों का इस्तेमाल करते हैं. ईएसए का कहना है कि वो जहां जरूरत होगी उस हिसाब से यूरोपीय रॉकेटों का इस्तेमाल करेगी.
एक्सोमार्स 2022 प्रोग्राम को जारी रखने के मुद्दे पर ईएसए का कहना है, "प्रतिबंधों के चलते और एक ज्यादा व्यापक संदर्भ को देखते हुए 2022 में तो लॉन्च हो पाना संभव नहीं है.” एक्सोमार्स के दूसरे चरण को रूस के बाइकोनुर से सितंबर या अक्टूबर में छोड़ा जाना था.
स्टारलिंक और यूक्रेन में इंटरनेट
शनिवार को यूक्रेन के उप प्रधानमंत्री और डिजिटल रूपांतरण मंत्री मिखाइलो फेदोरोफ ने एक लिहाज से मस्क को देश में इंटरनेट सेवा ठप होने से बचाने की चुनौती ही दे डाली थी. फेदोरोफ का ट्वीट थाः "@इलॉनमस्क, आप मार्स में कॉलोनी बसाने की कोशिश कर रहे हैं और इस बीच रूस यूक्रेन पर कब्जे की कोशिश में है!”
"आपके रॉकेट अंतरिक्ष से सफलतापूर्वक पहुंच रहे हैं वहीं रूसी रॉकेट यूक्रेन के नागरिकों पर निशाना साध रहे हैं! हम आपसे मांग करते हैं कि आप यूक्रेन को स्टारलिंक के स्टेशन मुहैया कराएं और समझदार रूसियों को स्टैंड लेने को कहें.”
दस घंटे होते होते मस्क का जवाब आ गयाः "स्टारलिंक सेवा अब यूक्रेन में एक्टिव है. और भी टर्मिनल दिए जा रहे हैं.”
उन्हें स्टारलिंक टर्मिनलों की जरूरत क्यों है?
टर्मिनलों से जुड़ा एक किस्म का अटपटा सा उल्लेख असल में एक जीवंत संदर्भ है. पर्याप्त टर्मिनल यानी संचार उपग्रह के जमीन पर स्थित रिसीवरों के बिना यूक्रेन स्टारलिंक के अंतरिक्ष स्थित इंटरनेट ट्रांसमीटरों का इस्तेमाल नहीं कर पाएगा. किसी भी उपग्रह सेवा में यही बात लागू होती हैः आपको जमीन पर सैटेलाइट रिसीवरों की जरूरत होती है, वे सिग्नल पकड़ते हैं और उन्हें वापस रवाना करते हैं. सैटेलाइट फोन, सैटेलाइट टीवी, सैटेलाइट इंटरनेट- ये सब एक समान हैं.
लेकिन जैसा कि बताया जाता है कि रूस तमाम किस्म के जमीनी बुनियादी ढांचे को निशाना बना रहा है, तो इस स्थिति में ये देखना बाकी है कि क्या या किस हद तक मस्क का स्टारलिंक का संकल्प, यूक्रेन के इंटरनेट की हिफाजत करेगा और सूचना और मुक्त संचार तक उसकी पहुंच को निर्बाध बनाए रखने में मददगार होगा. (dw.com)
रूस और यूक्रेन के बीच का युद्ध अब 11वें दिन में प्रवेश कर चुका है. यूक्रेन की राजधानी कीएव के उत्तर पश्चिम में मौजूद शहरों पर रूसी सेना के लगातार हमले जारी हैं.
इरपिन में मौजूद बीबीसी संवाददाता ने बताया है कि यहां से सुरक्षित स्थानों की तरफ जाने की कोशिश कर रहे हैं. लोग या तो पैदल या फिर किसी भी साधन के ज़रिए थोड़ा ज़रूरी सामान लेकर बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं.
कुछ लोगों का कहना है कि रूसी सेना राजधानी कीएव की तरफ बढ़ने का प्रयास कर रही है और यहां शनिवार को पूरी रात लगातार गोलाबारी हुई है.
इरपिन शहर होस्तोमेल एयरपोर्ट के नज़दीक है जिस पर कुछ दिन पहले रूसी सेना ने हमला किया था. ये यूक्रेन की राजधानी की तरफ बढ़ रहे रूसी सेना के काफ़िले के रास्ते के भी क़रीब है.
संघर्षविराम के उल्लंघन का आरोप
इधर मारियुपोल और वोल्नोवांख़ा शहरों से लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने की कोशिशें नाकाम हो गई हैं.
यूक्रेनी अधिकारियों का कहना है कि युद्ध के दसवें दिन यानी शनिवार को अस्थायी संघर्ष विराम लागू तो किया गया लेकिन रूसी सेना ने आधे घंटे से कम वक़्त के लिए हमले रोके जिससे यहां से हज़ारों लोगों को बाहर निकालने की प्रक्रिया बाधित हुई है.
यूक्रेन ने रूस पर मारियुपोल और वोल्नोवांख़ा में संघर्ष विराम का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है. मारियुपोल के डिप्टी मेयर सग्रेई ओर्वोव ने बीबीसी से कहा है कि रूसी सेना ने आधे घंटे से कम वक़्त के लिए हमले रोके और फिर लगातार गोलाबारी शुरू कर दी.
उन्होंने आरोप लगाया कि स्कूलों और लोगों को बाहर निकालने के लिए तैयार की गई बसों पर हमले किए गए हैं.
उन्होंने कहा, "रूसी सैनिक शहर को तबाह कर रहे हैं और यूक्रेन के लोगों को मार रहे हैं. हम सड़कों में पड़ी सभी लाशें तक नहीं उठा पाए. अगर आप मुझसे पूछें कि अब तक इस युद्ध में कितने लोग मारे गए हैं तो मैं कहूंगा कि मुझे नहीं पता. हम सड़कों पर पड़ी सभी लाशें उठा नहीं पा रहे, राष्ट्रपति पुतिन और रूसी सेना हर घंटे हर दिन शहर को नुक़सान पहुंचा रहे हैं. यहां शायद ही ऐसी कोई इमारत बची हो जो सही सलामत हो."
'नर्क जैसी स्थिति'
मारियुपोल से बाहर निकलने में कामयाब रहे एक निवासी ने बीबीसी को बताया कि शहर में स्थिति 'नर्क के जैसी है'.
मारियुपोल यूक्रेन का प्रमुख बंदरगाह शहर है जिसकी रूसी सेना ने घेराबंदी की हुई है. बीते कुछ दिनों से यहां न तो बिजली है औ न ही खाना. मिल रही ख़बरों के अनुसार यहां दवाओं की भी भारी कमी है.
वहीं वोल्नोवांख़ा शहर को भी रूसी हमले में काफी नुक़सान पहुंचने की ख़बरें मिल रही हैं.
रूस ने कहा है कि उसकी सेना अब पूर्व की तरफ भी आगे बढ़ रही है. उसने कहा है कि डोनबास की तरफ सेना सात किलोमीटर आगे बढ़ने में कामयाब हुई है और इस बीच रास्ते में पड़ने वाले शहरों और कस्बों को अपने कब्ज़े में ले लिया है. (bbc.com)
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा है कि यूक्रेन पर रूस के "भयानक" आक्रमण को विफल करने के लिए दुनिया के नेताओं को नए सिरे से कोशिश करनी चाहिए.
न्यू यॉर्क टाइम्स के लिए एक आलेख में प्रधानमंत्री जॉनसन ने लिखा है, "भविष्य के इतिहासकार नहीं बल्कि यूक्रेन के लोग हमारा फ़ैसला करेंगे."
पीएम जॉनसन ने एक छह सूत्रीय योजना बताई है. उनका कहना है कि इससे पुतिन को रोका जा सकता है.
- विश्व के नेताओं को यूक्रेन के लिए एक "अंतरराष्ट्रीय मानवीय गठबंधन" बनाना चाहिए.
- दुनिया के नेताओं को आत्मरक्षा के लिए यूक्रेन के प्रयासों में भी मदद करनी चाहिए.
- रूस पर आर्थिक दबाव बढ़ाया जाना चाहिए.
- अंतरराष्ट्रीय समुदाय को रूस को यूक्रेन में अपने कृत्यों का "सामान्यीकरण" करने से रोकना चाहिए.
- युद्ध को रोकने के लिए कूटनीति का रास्ता अपनाना चाहिए, लेकिन सिर्फ तब जब इसमें यूक्रेन की वैध सरकार की पूरी भागीदारी हो.
- नेटो देशों के बीच सुरक्षा सहयोग को मज़बूत करने के लिए बड़े स्तर पर कोशिश होनी चाहिए.
प्रधानमंत्री जॉनसन सोमवार को कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और डच पीएम मार्क रूट के साथ डाउनिंग स्ट्रीट में बैठक दौरान अपना संदेश भी दे सकते हैं.
मंगलवार को, पीएम जॉनसन मध्य यूरोपीय देशों के वी4 समूह के नेताओं की मेज़बानी करेंगे. इनमें चेक गणराज्य, हंगरी, पोलैंड और स्लोवाकिया शामिल हैं. (bbc.com)
रूस के कहा है कि वो यूक्रेन में फंसे आम लोगों और भारत के नागरिकों को निकालने के लिए हर संभव उपाय कर रहा है, लेकिन यूक्रेन उसकी कोशिशों को रोक रहा है.
रूस के नेशनल सेंटर फॉर स्टेट डिफेंस कंट्रोल के प्रमुख कर्नल जनरल मिख़ाइल मिज़िंत्सेव ने कहा है कि वोल्नोवांख़ाऔर मारियुपोल में रोज़ मानवीय कॉरिडोर खोले जा रहे हैं लेकिन यूक्रेन की सेना लोगों को वहां से निकलने से रोक रही है.
उन्होंने कहा कि यूक्रेन में मानवीय स्थिति तेज़ी से बिगड़ रही है और भयानक रूप ले रही है. वहीं, रूस यूक्रेन के लोगों के लिए मौजूदा स्थिति को स्थिर करने के लिए हर संभव उपाय कर रहा है. वह अपनी मानवीय ज़िम्मेदारियां पूरी कर रहा है और करता रहेगा.
वहीं, इसेसे पहले यूक्रेन ने रूस पर संघर्ष विराम का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है.
यूक्रेनी अधिकारियों ने कहा कि युद्ध के दसवें दिन यानी शनिवार को अस्थायी संघर्ष विराम लागू तो किया गया लेकिन रूसी सेना ने आधे घंटे से कम वक़्त के लिए हमले रोके जिससे यहां से हज़ारों लोगों को बाहर निकालने की प्रक्रिया बाधित हुई है.
उन्होंने आरोप लगाया कि स्कूलों और लोगों को बाहर निकालने के लिए तैयार की गई बसों पर हमले किए गए हैं. लेकिन, रूस इस बात से इनकार कर रहा है और यूक्रेन पर फंसे हुए लोगों को इलाक़े से ना निकलने देने का आरोप लगा रहा है. (bbc.com)
रूस यूक्रेन युद्ध अपने 11वें दिन में पहुंच गया है. जानिए, युद्ध के 10वें दिन क्या-क्या हुआ-
- युद्ध के 10वें दिन यूक्रेन के दो शहरों मारियुपोल और वोल्नोवांख़ा में अस्थायी संघर्ष विराम लागू हुआ. दोनों मुल्कों में मानवीय कॉरिडोर बनाने पर सहमति हुई. लेकिन कुछ घंटों बाद यूक्रेनी अधिकाारियों ने रूसी सेना पर संघर्ष विराम का आरोप लगाया और कहा कि हमले रोके नहीं गए जिस कारण लोगों को वहां से बाहर निकालना मुश्किल हो गया है.
- संघर्ष विराम लागू होने के कुछ देर बाद मारियुपोल के प्रशासन ने कहा कि रूसी हमले के कारण उन्हें लोगों को निकालने की प्रक्रिया टालनी पड़ रही है.
- रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने चेतावनी दी है कि कोई भी देश अगर यूक्रेन पर नो-फ़्लाई ज़ोन लागू करता है तो उसे यूक्रेन में युद्ध में शामिल माना जाएगा. इससे पहले यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की से कहा था कि रूसी हवाई हमलों से यूक्रेन को बचाने के लिए उसे नो-फ्लाई ज़ोन घोषित किया जाए. हालांकि, नेटो ने ये कहते हुए इससे इनकार कर दिया था कि ऐसा करने से यूरोप में नेटो के दूसरे सहयोगियों तक युद्ध के फ़ैलने का ख़तरा बढ़ सकता है.
- काले सागर के पास मौजूद खे़रसोन में क़रीब 2000 आम नागरिकों ने रूसी हमले के विरोध में प्रदर्शन किया.
- सैमसंग, पेपाल, कपड़ों के ब्रांड ज़ारा और प्राडा ने रूस में अपना कारोबार रोका. इससे पहले हर्मेस, केरिंग और शनाल ने रूस में अपना काम बंद कर दिया था.
- मास्टरकार्ड और वीज़ा रूस में काम बंद करेंगे
- जानीमानी पेमेन्ट कंपनी मास्टरकार्ड और वीज़ा ने यूक्रेन पर रूस के हमले के विरोध में रूस में अपना कारोबार बंद करने का ऐलान किया है. मास्टरकार्ड ने एक बयान जारी कर कहा कि उसका नेटवर्क रूसी बैंकों को सपोर्ट नहीं करेगा और देश के बाहर जारी किए कार्ड रूसी एटीएम मशीनों पर काम नहीं करेंगे. वहीं, वीज़ा ने कहा है कि वो आने वाले दिनों में देश के भीतर सभी तरह के ट्रांज़ेक्शन पर रोक लगा देगा, वित्तीय संस्थानों द्वारा रूस के बाहर जारी किए गए कार्ड भी रूस में नहीं चलेंगे.
- डीज़ल पेट्रोल बेचने वाली कंपनी शेल ने कहा है कि रूस और यूक्रेन के बीच जारी संघर्ष में उसे रूस से तेल खरीदने का "मुश्किल फ़ैसला" लेना पड़ रहा है. कंपनी ने कहा है कि यूरोपीय बाज़ार में कच्चे तेल की ज़रूरी आपूर्ति पूरी करने के लिए उन्होंने रूस से कच्चा तेल खरीदा है. कंपनी ने एक बयान जारी कर कहा, "वैकल्पिक स्रोतों से आ रहा तेल वक़्त रहते बाज़ार तक नहीं पहुंच सकता था, इससे तेल सप्लाई में बाधा आने का डर था."
- कंपनी ने कहा कि रूस से मिल रहा कच्चा तेल वैश्विक तेल आपूर्ति के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण है. इस कारण मुश्किल वक़्त में उसे रूसी तेल खरीदने का फ़ैसला करना पड़ रहा है. हालांकि, कंपनी ने कहा है कि रूस से सीमित मात्रा में खरीदे जा रहे तेल से मिलने वाले लाभ को मानवीय राहत के रूप में यूक्रेन को दिया जाएगा. दुनिया के कच्चे तेल की सप्लाई का 8 फीसदी रूस से मिलता है.
- यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने शनिवार को कहा है कि उन्होंने स्पेसएक्स के सीईओ एलन मस्क से बात की है. बाद में उन्होंने घोषणा की कि कंपनी इस सप्ताह यूक्रेन को और स्टालिंक इंटरनेट टर्मिनल भेजने वाली है. स्टारलिंक के ज़रिए लो ऑर्बिट सैटलाइट की मदद से धरती पर इंटरनेट सेवा मुहैय्या कराई जाती है.
- एलन मस्क से बात करने के बाद ज़ेलेंस्की ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया कि दोनों के बीच भविष्य की स्पेस परियोजनाओं को लेकर भी बात हुई है लेकिन इस पर आगे चर्चा युद्ध के बाद होगी. (bbc.com)
पाकिस्तान के एक प्रमुख विपक्षी दल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) ने प्रधानमंत्री इमरान ख़ान पर जमकर हमला बोला है.
अख़बार नवा-ए-वक़्त के अनुसार पीपीपी के चेयरमैन बिलावल भुट्टो ने लॉन्ग मार्च में शामिल लोगों को संबोधित करते हुए कहा, "पीपुल्स पार्टी ने जनरल ज़िया, जनरल मुशर्रफ़ का मुक़ाबला किया है, आप तो एक कठपुतली हैं जिसे चुना गया है."
बिलावल ने आगे कहा कि इमरान ख़ान सरकार आठ मार्च तक ख़ुद ही इस्तीफ़ा दे दे वर्ना उसके बाद उनको भागने की भी जगह नहीं मिलेगी.
बिलावल ने कहा, "कठपुतली का कोई भविष्य नहीं है. उन्हें तो लंदन भागना है और हमारा तो मरना जीना अवाम के साथ है."
उन्होंने कहा कि अब वक़्त आ गया है कि इस "निकम्मी सरकार" को जनता की ताक़त से घर भेज दिया जाए.
बिलावल ने कहा, "अब वक़्त आ गया है कि सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाया जाए. अब सब इसके पक्ष में हैं तो पहले नहीं थे. जनता चाहती है कि नया चुनाव हो और नई सरकार बने."
विपक्ष के तमाम दावों को ख़ारिज करते हुए केंद्रीय गृहमंत्री शेख़ रशीद ने कहा कि इमरान ख़ान की सरकार के ख़िलाफ़ लाया गया अविश्वास प्रस्ताव गिर जाएगा.
अख़बार जंग के अनुसार शेख़ रशीद ने कहा, बेसब्री से मुंह जल जाएगा. उन्होंने कहा, "सत्ता के भूखे लोग याद रखें ऐसे भी हालात बन सकते हैं कि आपके हाथ कुछ भी न आए."
उधर रक्षा मंत्री परवेज़ ख़टक भी अविश्वास प्रस्ताव पर कहा, "विपक्ष अगर हमारे 10 सासंद तोड़ेगा तो हम उनके 15 सांसद तोड़ेंगे. इमरान ख़ान को अल्लाह ही गिरा सकता है, विपक्ष नहीं गिरा सकता."
अख़बार जंग के अनुसार रक्षा मंत्री ने कहा, "इमरान ख़ान के डर के कारण विपक्षी पार्टियां एकसाथ आ गईं हैं. उनके पास सरकार के ख़िलाफ़ कोई एजेंडा नहीं है." (bbc.com)
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा है कि सरकार के पास इस बात की जानकारी है कि शुक्रवार को पेशावर के शिया जामा मस्जिद में हुए धमाके में शामिल दहशतगर्द कहां से आए थे.
शुक्रवार को पेशावर के क़िस्सा ख़्वानी बाज़ार स्थित शिया मस्जिद में हुए धमाके में कम से कम 57 लोग मारे गए थे और क़रीब 200 लोग घायल हुए थे.
अख़बार दुनिया के अनुसार इमरान ख़ान ने कहा, "मैं इस मामले की ख़ुद निगरानी कर रहा हूं. इस हवाले से अब हमें तमाम जानकारियां मिल गईं हैं. इसलिए पूरी ताक़त से उनके पीछे जा रहे हैं."
पाकिस्तान में शिया मुसलमानों के एक संगठन जाफ़रिया-ए-पाकिस्तान के प्रमुख अल्लामा सैय्यद साजिद अली नक़वी ने तीन दिनों का शोक मनाने और रविवार को देश भर में विरोध प्रदर्शन करने की घोषणा की है.
एक और शिया संगठन मजलिस-ए-व हदत-ए-मुस्लिमीन के महासचिव अल्लामा अहमद इक़बाल रिज़वी ने कहा है कि अगर सुरक्षा के प्रभावी इंतज़ाम किए जाते तो यह हादसा कभी नहीं होता. (bbc.com)
इकबाल अहमद
अफ़ग़ानिस्तान के अंतरिम गृहमंत्री और तालिबान के वरिष्ठ नेता सिराजुद्दीन हक़्क़ानी पहली बार सार्वजनिक रूप से सामने आए हैं.
अख़बार डॉन के अनुसार हक़्क़ानी एक सरकारी कार्यक्रम में शामिल हुए और उनकी तस्वीरें भी सामने आईं हैं. हाल तक वो अमेरिका की तरफ़ से जारी मोस्ट वॉन्टेड लिस्ट में शामिल थे.
हक़्कानी शनिवार को काबुल में अफ़ग़ान पुलिस अधिकारियों के पासिंग आउट परेड में शामिल हुए थे. इस कार्यक्रम को अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रीय टीवी चैनल पर भी लाइव प्रसारित किया गया था.
कार्यक्रम ख़त्म होने के बाद तालिबान ने ख़ुद इस कार्यक्रम में शामिल होते हुए सिराजुद्दीन हक़्क़ानी की तस्वीर सोशल मीडिया पर जारी की है.
इस दौरान पुलिस अधिकारियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, "आपकी संतुष्टि और आपको आश्वस्त करने के लिए मैं मीडिया और अवाम के सामने आया हूं."
अब तक सिराजुद्दीन हक़्क़ानी की सिर्फ़ एक ही तस्वीर सामने आई थी जिसमें उनका चेहरा बहुत ही धुंधला दिखता है.
पिछले साल अगस्त में तालिबान के काबुल में दाख़िल होने के बाद वो तालिबान के वरिष्ठ अधिकारियों और विदेशी मेहमानों से लगातार मिलते रहे लेकिन उन मुलाक़ातों की कोई तस्वीर सार्वजनिक नहीं की जाती थी.
एक बार वो एक चैनल को इंटरव्यू देते हुए भी देखे गए लेकिन उसमें भी उनका चेहरा नहीं दिखाया गया था.
सिराजुद्दीन हक़्क़ानी आज भी अमेरिका के एफ़बीआई के मोस्ट वॉन्टेड लिस्ट में हैं और उनके बारे में ख़बर देने वाले को एक करोड़ डॉलर इनाम देने की घोषणा है. (bbc.com)
कीव, पांच मार्च (एपी)। रूसी सैनिकों ने यूरोप के सबसे बड़े परमाणु संयंत्र पर आधी रात को किए गए हमले के बाद कब्जा कर लिया है। इस हमले के दौरान वहां पर आग लग गई थी जिसको लेकर पूरी दुनिया में कुछ समय के लिए परमाणु विकिरण से तबाही होने की चिंता बढ़ गई थी।
हालांकि, संयुक्त राष्ट्र और यूक्रेन के अधिकारियों ने विज्ञप्ति जारी कर बताया कि शुक्रवार के हमले के बाद दमकल कर्मियों ने आग को बुझा दिया है और कोई विकिरण नहीं हुआ है।
इस बीच, रूस द्वारा यूक्रेन के विभिन्न शहरों पर हमले जारी हैं।
अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के प्रमुख राफे मारियानो ग्रोसी ने यूक्रेन के दक्षिणी शहर इनेरहोदर स्थित जापोरिजिया परमाणु संयंत्र पर हमले के बारे में कहा कि रूसी ‘‘मिसाइल’’ प्रशिक्षण केंद्र पर गिरा न कि वहां मौजूद छह रिएक्टरों में से किसी पर।
इस हमले ने दुनिया की चिंता बढ़ा दी और आशंका पैदा हो गई कि वर्ष 1986 में हुए चर्नोबिल हादसे से भी बड़ी आपदा पैदा हो सकती है। रात को एक भावुक भाषण में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने कहा कि उन्हें आशंका है कि धमाका ‘‘सभी का खात्मा कर सकता है। यूरोप को खत्म कर सकता है। यूरोप को खाली कर सकता है।’’
हालांकि, स्वीडन से लेकर चीन तक के अधिकारियों ने कहा कि विकिरण के स्तर में वृद्धि नहीं हुई है।
अधिकारियों ने बताया कि रूसी सैनिकों ने पूरे इलाके को अपने कब्जे में ले लिया है लेकिन संयंत्र पर कार्यरत कर्मचारी अपना कार्य कर रहे हैं। ग्रोसी ने हमले के बाद कहा कि केवल एक रिएक्टर 60 प्रतिशत क्षमता के साथ काम कर रहा है।
उन्होंने बताया कि आग से दो लोग झुलस गए हैं। हालांकि, यूक्रेन के सरकारी परमाणु संयंत्र परिचालक एनेरहोतम ने बताया कि तीन यूक्रेनी सैनिकों की मौत हुई है जबकि दो अन्य घायल हुए हैं।
अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन के प्रवक्ता लॉन कीर्बि ने कहा, ‘‘यह प्रकरण रेखांकित करता है कि कितनी लापरवाही के साथ रूसियों ने अकारण हमला किया है।’’
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठक में यूक्रेन के संयुक्त राष्ट्र में राजदूत सर्गेई किस्लित्सिया ने कहा कि आग रूसी गोलाबारी का नतीजा था और उन्होंने रूस पर ‘परमाणु आतंकवाद’ का आरोप लगाया।
वहीं, इस हमले से 1986 के चर्नोबिल परमाणु दुघर्टना की याद ताजा हो गयी और उससे भी भयावह स्थिति की आशंका पैदा हो गई।
परमाणु विशेषज्ञों ने चेतावनी देते हुए कहा कि तकनीशियनों, प्रबंधकों की निर्बाध पहुंच सुनिश्चित की जानी चाहिए ताकि परमाणु संयंत्र सुरक्षित तरीके से चलते रहे।
इस बीच, पूर्वी यूरोप और स्कैंडिवियन देशों में विकिरण की स्थिति में मददगार आयोडिन टैबलेट की मांग बढ़ गई है।